Pages

Friday, October 18, 2013

कामि‍नी (दोसर संस्‍करण)

कामिनी

अन्हरगरे भैयाकाका लोटा नेनइ मैदान दिससँ आबि रस्तेपर सँ बोली देलखिन...।
हमहूँ मैट्रिकक परीक्षा दइले जाइक ओरियान करैत रही। ओना हमर नीन बड़ मोट अछि मुदा खाइए बेरमे माएकेँ कहि देने रहिऐ जे कनी तड़गरे उठा दिहेँ नै तँ गाड़ी छूटि जाएत। किएक तँ साढ़े पाँचे बजे गाड़ीक अछि। आध घंटा स्टेशन जाइओमे लगैए। तँए, पौने पाँच बजे घरसँ विदा होएब तखने गाड़ी पकड़ाएत। जँ ई गाड़ी छूटि जाएत तँ भरि दिन रस्तेमे रहब। निर्मलीसँ जयनगर लेल एक्केटा डायरेक्ट गाड़ी अछि। नै तँ सभ गाड़ी सकरीमे बदलए पड़ै छै। तहूमे बसबला सभ तेहेन चालाकी केने अछि जे एक्कोटा गाड़ीक मेले ने रहए देने अछि। जइसँ तीन-चारि घंटा सकरीक प्लेटफार्मपर बैसू तहन‍‍ दरभंगा दिससँ गाड़ी औत। तहूमे तेहेन लोक कोंचल रहत जे चढ़बो मुश्किल। तँए ई गाड़ी पकड़ब जरूरी अछि। तेतबे नै, अपन स्कूलक विद्यार्थीओ सभ यएह गाड़ी पकड़त। अनभुआर इलाका तँए असगर-दुसगर जाएबो ठीक नै। सुनै छी जे ओइ इलाकामे उचक्को बेसी अछि। जँ कहीं कोनो समान उड़ौलक तँ आरो पहपटिमे पड़ि जाएब। भैयाकक्काक बोली सुनि चिन्हैमे देरी नै भेल। किएक तँ हुनकर अवाज तेहेन मेही छन्‍हि‍ जे आन केकरो बोलीसँ नै मिलैत। बोली अकानि हम दरबज्जेक कोठरीसँ कहलियनि-
“काका, आउ-आउ। हमहूँ जगले छी। पँचबजिया गाड़ी पकड़ैक अछि तँए समान सभ सेरियबै छी।
रस्तापर सँ ससरि काका दरबज्जाक आगूमे आबि कहलनि-
“कनी हाथ मटिया लइ छी। तहन‍‍ निचेनसँ बैसबो करब आ गप्पो करब।
कहि पूब मुहेँ कल दिस बढ़ला। हमहूँ हाँइ-हाँइ समान सेरियाबए लगलौं। कलपर सँ आबि काका ओसारक चौकी तरमे लोटा रखि‍‍ अपने चौकीपर बैसला। चौकीपर बैसिते गोलगोलाक जेबीसँ बिलेती तमाकुलक पात निकालि तोड़ैत बजला-
“भाय साहैब कहाँ छथुन?”
“काल्हिए बेरू पहर नवानी गेला, से अखनि‍ धरि नै एला।
हमर बात सुनि, भैयाकाका चुनौटीसँ चुन निकालि तरहत्थीपर लैत बजला-
“अखनि‍ जाइ छी, हएत तँ ओइ बेरमे फेर आएब।
कक्काक आपस होएब हमरा नीक नै लागल। किएक तँ लगले एला आ चोट्टे घूमि जेता। तँए बैसै दुआरे बजलौं-
“अहाँ तँ काका गाममे दगबिज्जो कऽ देलिऐ। एते खर्च करि कऽ कियो कन्यादान नै केने छला। अहाँ रेकर्ड बना लेलिऐ।
अपन प्रशंसा सुनि भैयाकाका मुस्‍कीआइत बजला-
“बौआ, जुग बदलि रहल अछि। तँए सोचलौं जे नीक पढ़ल-लिखल वर संग बेटीक बि‍आह करब। हमरो बेटी तँ बड़ पढ़ल-लिखल नहियेँ अछि। मुदा रामायण, महाभारत तँ धुरझार पढ़ि लइए। चिट्ठीओ-पुरजी लिखिए-पढ़ि लइए। घर-आश्रम जोकर तँ ऊहो पढ़नइ अछि। ओकरा की कोनो नोकरी-चाकरी करक छै, जे स्कूल-कौलेजक सर्टिफिकेट चाही। अपना सभ गिरहस्त परिवारमे छी तँए बेटीकेँ बेसी पढ़ाएब नीक नै।
“किए?”
“अपना सबहक परिवारमे गोंत-गोबरसँ लऽ कऽ थाल-कादो धरिक काज अछि। ओ तँ घरेक लोक करत। तइमे देखबहक, जे स्त्रीगण पढ़ल-लिखल अछि ओ ओइ काजक भीड़ि नै जाए चाहतह। आब तोंही कहऽ जे तहन‍‍ गिरहस्ती चलतै केना?”
कक्काक तर्कक जवाब हमरा नै फुड़ल। मुदा चुप्पो रहब उचित नै बूझि कहलियनि-
“जहन‍‍ जुग बदलि रहल अछि तहन‍‍ तँ सभकेँ शिक्षित होएब जरूरी अछि कि‍ने? सभ पढ़त सभ नोकरी करत। नीक तलब उठौत। जइसँ घरक उन्नति आरो तेजीसँ हएत। तहूमे महिला आरक्षण भेने नोकरीओमे बेसी दिक्कत नहियेँ हएत।
भैयाकाका-
“कहलह तँ बड़ सुन्दर बात मुदा एकटा बात कहऽ जे दुनू गोटे, मर्दे-औरत आ एक्के स्‍कूल आकि‍ ऑफिसमे नोकरी करत तहन‍‍ ने एकठाम डेरा रखि‍‍ परिवार चलौत। मुदा जहन‍‍ पुरुष दोसर राज्य वा दोसर जिला वा दस कोस हटि कऽ नोकरी करत तहन‍‍ केना चलतै। परिवार तँ पुरुष-नारीक योगसँ चलैए कि‍ने? परिवारमे अनेको ऐहेन काज अछि जे दुनूक मेलसँ हएत। मनुख तँ गाछ-बिरिछ नै ने छी जे फलक आँठी केतौ फेक देबै तँ गाछ जनमि जाएत। आब तँ तहूँ कोनो बच्चा नहियेँ छह जे नै बुझबहक। मनुखक बच्चा नअ मास माने दू सए सत्तरि‍ दिन माएक पेटमे रहैए। चारि-पाँच मासक पछाति‍ माएक देहमे बच्चाक चलैत केते रंगक रोग-बि‍आदिक प्रवेश भऽ जाइ छै। किएक तँ माएक संग-संग बच्चोक विकास लेल अनुकूल भोजन, आराम आ सेवाक आवश्यकता होइत। तहन‍‍ माए असगरे की करत? नोकरी करत आकि पालन करत? अइले तँ दोसरेक मदतिक जरूरत होइत।
“आन-आन देशमे तँ मर्द-औरत सभ नोकरी करैए आ ठाठसँ जिनगी बितबैए।
भैयाकाका-
“आन देशक माने ई बुझै छहक, जेते दोसर देश अछि सबहक रीति-नीति जीवन शैली एक्के रंग छै? नै। एकदम नै। किछु देशक एक रंगाहो अछि। मुदा फराक-फराक सेहो अछि। हँ, किछु एहेन अछि जैठाम मनुख सार्वजनिक सम्पति बूझल जाइए। ओइ देशक बेवस्थो दोसर रंगक अछि। सभ तरहक सुविधा सबहक लेल अछि। तैठाम लेल ठीक अछि। मुदा अपना ऐठाम अपना देशमे तँ से नै अछि। तँए ऐठाम लेल ओते नीक नै अछि जेते अधला।
अपनाकेँ निरुत्तर होइत देखि बातकेँ विराम दइक विचार मनमे उठए लगल। तैबीच आँगनसँ माए आबि गेली। माएकेँ देखिते हम अपन समान सरियबैले कोठरी दिस बढ़ि गेलौं।
भैयाकाकाकेँ देखि माए कहलकनि-
“बौआ, अहाँ तँ गाममे सभकेँ उन्नैस कऽ देलिऐ। आइ धरि गाममे बेटी बि‍आहमे एते खर्च कियो ने केने छला।
अपन बहादुरी सुनि मुस्‍कीआइत भैयाकाका कहलखिन-
“भौजी कामिनीकेँ असिरवाद दियौ जे नीक जकाँ सासुर बसए।
माए-
“भगवान हमरो औरुदा ओकरे देथुन जे हँसी-खुशीसँ परिवार बनाबए। पाहुन-परक तँ सभ चलि गेल हेता?”
भैयाकाका-
“हँ भौजी। काल्हि सत्यनारायण भगवानक पूजा कऽ हमहूँ निचेन भऽ गेलौं। पाहुनमे-पाहुन आब एक्केटा सरहोइजेटा रहि गेल अछि। ऊहो जाइले छटपटाइए। मुदा ओकरा पाँच दिन आरो रखए चाहै छी।
माए-
“जहिना एकटा बेटीक बि‍आहक काजकेँ खेलौना जकाँ गुड़केलौं, तहिना सरहोजिकेँ आब गुड़कबैत रहू।
सरहोजि दिस इशारा होइत देखि काका बूझि गेलखिन। मकइक लावा जकाँ बत्तीसो दाँत छिटकबैत बजला-
“धरमागती पूछी तँ भौजी एते भारी काज, जइमे ने खाइक पलखति होइ छल आ ने पानि पीबैक। तीन राति एक्को बेर आँखि नै मुनलौं। मुदा सरहोजिकेँ धैनवाद दिऐ जे घिड़नी जकाँ दिन-राति नचैत रहल। ओते फ्रीसानी रहए तैयो कखनो मुँह मलिन नै। हरिदम मुहसँ लबे छिटकैत। तँए सोचै छी जे पाँच दिन पहुनाइ करा दिऐ।
माए-
“बच्चा कएटा छै?”
“एक्कोटा नै। तीनिए सालसँ सासुर बसैए। उमेरो बीस-बाइस बर्खसँ बेसी नहियेँ हेतै।
“आब तँ लोककेँ बिआहे साल बच्चा होइ छै आ अहाँ कहै छी जे तीन सालसँ सासुर बसैए।
“एँह, हमरा तँ अपने पान साल पछाति‍ भेल आ अहाँ तीनिए सालमे हदिआइ छी। अच्छा एकटा बात हमहीं पुछै छी, भैया ने हमरासँ साल भरि जेठ छथि मुदा अहाँ तँ साल छौ मास छोटे हएब। अहूँ कोन-कोन गहबर आ ओझा-गुनी लग गेल रही।
अपनाकेँ हारैत देखि बात बदलैत माए बाजलि-
“सभ मिला कऽ केते खर्च भेल?”
भैयाकाका-
“धरमागती पूछी तँ भौजी हमहूँ कंजुसाइ केलिऐ। मुदा तैयो पाँच लाखसँ ऊपरे खर्च भेल। तीन लाख तँ नगदे गनि कऽ देने छलिऐ। तैपर सँ डेढ़ लाखक समान, गहना, बरतन, लकड़ीक समान, कपड़ा देलिऐ। पचास हजारसँ ऊपरे बरियातीक सुआगतमे लागल। तैपर सँ झूठ-फूसमे सेहो खर्च भेल।
“एते खर्च केलिऐ तहन‍‍ किए कहै छिऐ जे हमहूँ कंजुसाइ केलिऐ?”
“देखिओ भौजी, हमरा दस बीघा खेत अछि। तेकर बादो केते रंगक सम्पति अछि। गाछ-बाँस, घर-दुआर, माल-जाल। ऐ सभकेँ छोड़ि दइ छी। खाली खेतेक हिसाब करै छी। अपना गाममे दस हजार रूपैए कट्ठासँ लऽ कऽ साठि हजार रूपैए कट्ठाक जमीन अछि। ओना सहरगंजा जोड़बै तँ पैंतीस हजार रूपैए कट्ठा भेल। मुदा हम्मर एक्कोटा खेत ओहेन नै अछि जेकर दाम चालीस हजार रूपैए कट्ठासँ कम अछि। बेसीओक अछि। मुदा चालिसे हजारक हिसाबसँ जोड़ै छी तँ आठ लाख रूपैए बीघा भेल। दस बीघाक दाम अस्सी लाख भेल। तीन भाए-बहि‍न अछि। हमरा लिए तँ जेहने बेटा तेहने बेटी। अनका जकाँ तँ मनमे दुजा-भाव नै अछि। आब अहीं कहूँ जे कोन बेसी खर्च केलिऐ।
बातक गंभीरताकेँ अंकैत माए बाजलि-
“अहाँ विचारे बेटीक बि‍आहमे केते खर्च बापकेँ करैक चाहिऐ?”
भैयाकाका-
“देखियौ भौजी, जे बात अहाँ पुछलौं ओकर जवाब सोझ-साझ नै अछि। किएक तँ जेते रंगक लोक आ परिवार अछि तेते रंगक जिनगी छै। मुदा अनका जे होउ, हमरा मनमे ई अछि जे बेटा-बेटी एक-रंग जिनगी जीबए। मुदा समस्यो गंभीर अछि। धाँइ दे किछु कहि देने नै हेतै।
“एते लोक सोचै छै?”
“से जँ नै सोचै छै तँए ने, एना होइ छै। जँ अपने कोनो बात नै बुझिऐ तँ दोसरसँ पुछैओमे नै हिचकिचेबाक चाही।
कामिनीक बि‍आह लालाबाबू संग भेल। जेहने हृष्‍ट-पुष्ट शरीर कामिनीक तेहने लालबाबूक। दुनूक रंगमे कनी अन्तर। जैठाम लालबाबू लाल गोर तैठाम कामिनी पिंडश्याम। ने अधिक कारी आ ने अधिक गोर, जइसँ दाइ-माइक अनुमान जे किछु दिनक पछाति‍ दुनूक रंग मिलि जाएत, अर्थात् एकरंग भऽ जाएत।
बि‍आहक तीन मास पछाति‍ लालबाबूक बहाली कौलेजक डिमोंसट्रेटरक पदपर भेल। नोकरी पबिते सासुरेक दहेजबला रूपैआसँ दरभंगामे डेढ़कट्ठा जमीन कीनि घर बना लेलक। गामसँ शहर दिस बढ़ल। जइसँ जिनगीमे बदलाउ हुअ लगलै। एक दिस बजारूआ आधुनिकता जोर पकड़ए लगलै तँ दोसर दिस ग्रामीण जिनगीक रूप टुटए लगलै। रंग-बि‍रंगक भोग-विलासक वस्तुसँ घर सजबए लगल। पाइक अभावे ने बूझि पड़ैत रहइ। किएक तँ भैयारीमे असगरे। तँए गामक सभ सम्पति बेचि-बेचि आनए आ मौज करए। मिथिलाक कन्या कामिनी। तँए पतिक काजमे हस्तक्षेप नै करए चाहैत। पति-पत्नीक बीच ओहने सम्बन्ध जेहेन अधिकांशक।
शिक्षाक स्तर खसल। अजाति सभ सरस्वतीक मंदिरमे प्रवेश केलक। जैठाम प्राइवेट टयूशन पढ़ाएब अधला काज बूझल जाइ छल, से प्रतिष्ठित भऽ गेल। परिणाम भेल जे टयूशनकेँ अधला आ पाप बुझनिहार शिक्षक स्वयं मुरूखक प्रतीक बनि गेला। अवसरक लाभ अज्ञानीकेँ बेसी भेलै। पाइ-कौड़ीबला लालबाबू केना नै अवसरक लाभ उठबैत। बीसे हजारमे एम.एस.सी. फिजिक्सक सर्टिफिकेट कीनि लेलक। विश्वविद्यालओमे कानून पास केने जे नवशिक्षकक बहालीमे कौलेजक डिमोसट्रेटरकेँ प्राथमिकता देल जाएत। लालोबाबू फिजिक्सक प्रोफेसर बनि गेल। हाइ स्कूल वा सरकारी ऑफिस जकाँ प्रोफेसरकेँ ड्यूटीओ नै। सालमे कौलेज छह मास बन्ने रहैत बाँकी समैमे कहियो ड्यूटी हएत कहियो नै हएत। तैपर सँ अपन सी.एल. आ मेडिकल पछुआइले।
पाँच बर्ख बीतैत-बीतैत लालबाबूक माए-बाप मरि गेल। मरने लाभे। घराड़ी धरि बेचि कऽ बैंकमे लालबाबू जमा कऽ लेलक। मुदा एकटा बात जरूर केलक, ओ ई जे घराड़ीक रूपैआसँ पाँचटा आलमारी आ जेते किताबसँ आलमारी भरत, ओते किताब जरूर कीनि लेलक। एक तँ पाइक गर्मी दोसर किताबक गर्मी, अध्ययनक गर्मी नै देखलाहा गर्मीसँ लालबाबूक मति ऐहेन बदलि गेलै जेहेन ठंढ़ा पानि आ ठंढ़ा दूधसँ चाह बनैत। अखनि‍ धरि छह बर्खमे दूटा सन्तान सेहो भेलै। अपन दुनियाँक बीच कामिनी नचैत तँए लालबाबूक जिनगी केना देखैत? दोसर उचितो नै किएक तँ हर युवा आदमीकेँ अपन जिनगीक बाटपर नजरि राखक चाहिऐ।
साँझू पहर लालबाबू होटलसँ सीधे आबि कोठरीमे कपड़ा बदलए लगल। देहक सभ कपड़ा उतारि‍ लेलक। ऊपर सँ लऽ कऽ भीतर धरि शरीरमे आगिक ताव जकाँ लहकैत। पंखाक बटन दबलक। मुदा भगवानक मूर्तिक आगूक जे कोठरीक दिवारक खोलियामे रखने छल, से बौल जरौने बिनु अपन कोठरीक बौल केना जरबैत। तँए पहिने ओ बौल जरौलक। मुदा मूर्ति आगू बौल जरौला पछाति‍ अपन कोठरीक बौल जरौनाइ बिसरि गेल। पियाससँ कंठ सुखैत। मुदा टंकीपर जाइक डेगे ने उठै। लटपटाइत। कहुना कऽ कुरसीपर बैसल आकि टेबुल तरक जगपर नजरि पड़लै। दिनुके पानि राखल। जग उठा पीब गेल। जग रखि‍‍ कुरसीपर अंगोठि मोने-मन अकासक चिड़ैकेँ हियासए लगल। उड़ैत मृगनयनीपर नजरि गेलै। कौलेजक छात्रा मृगनयनीकेँ किछु देर देखि पत्नी कामिनीपर नजरि देलक। मनमे उठलै दू बेटीक जिनगी। फेर मन देखलकै चहकैत मृगनयनी। निर्णए केलक जे अपना घर मृगनयनीकेँ जरूर आनब। रसे-रसे मन शान्त हुअ लगलै।
दोसर दिन कोर्ट होइत लालबाबू मृगनयनी संग घर पहुँचल। मृगनयनीकेँ देखि कामिनी घबड़ाएल नै। मन पड़लै दादी मुँहक सुनल खिस्सा। तँए पुरुख लेल दूटा पत्नी होएब कोनो अधला नै। अपन दुनियाँमे मस्त। काजक कोनो घटती नै, कनी-मनी बढ़तीए। तँए जुआनीक आनन्द कामिनीमे।
बि‍आहक आठ बर्ख बाद जे लालबाबू डिमोसट्रेटरसँ प्रोफेसर बनल, ओ आइ स्त्रीक खिलौना बनि गेल! एहेन-एहेन लोकक केते आश।
आठ बजे साँझ। बजारसँ दुनू परानी मृगनयनी आ लालबाबू मोटर साइकिलसँ उतरि‍ कोठरीमे पहुँचल। अगल-बगलक कुरसीपर बैसि ब्राण्डीक बोतल निकालि टेबुलपर रखलक। मुदा टेबुल कहऽ चाहै जे `भाय सोझहा-सोझही बेइज्जत नै करह', हम किताब रखैबला छी, नै कि बोतल। मुदा वेचाराक विचार, मिथिलाक कन्याँ जकाँ, तँए सभ कि‍छु सहि लैत। जहिना राज-दरबारमे मिथिलाक राजा-जनककेँ जननिहार पंडित सहि लथि‍।
असेरी गिलाससँ दुनू बेकती एक-एक गिलास ब्राण्डी चढ़ा अपन दुनियाँमे विचरण करए लगल। प्रश्न उठल कामिनीक।
मृगनयनी-
“हम्मर एकटा विचार सुनू।
“बाजू।
“पत्नीक सभ सुख जँ एक पत्नीसँ पूर्ति हुअए तहन‍‍ दोसर रखबाक कोन खगता?
“कोनो नै।
“तहन‍‍ सौतीन कामिनीकेँ रखि‍‍ कऽ की फेदा?
कनी गुम्म भऽ लालबाबू सोचए लगल। मन पड़लै कामिनी। निस्सकलंक, स्वच्छ, कोमल-कोमल पंखुड़ी गंध युक्त कामिनी।
दोहरा कऽ मृगनयनी बाजलि-
“बस, यएह पुरुखक कलेजा छी। कामिनीकेँ रस्तासँ हटाएब हम्मर जिम्मा भेल।
मृगनयनीक रूप देखि विधातो अपन गल्तीपर सोचितथि, नारी-पुरुषक बीच जेहेन थलथला पुल बनोलिऐ तेहेन नारी-नारीक बीच किए ने बनोलिऐ! मृगनयनी आ लालबाबूक बीचक बात कामिनीओ सुनैत। जहिना मृगनयनीक करेजमे कामिनीक प्रति आगि धधकैत तहिना मृगनयनीओक प्रति कामिनीक करेजमे आगि पजरि गेल। मुदा अपनाकेँ सम्हारैत ओ घरसँ निकलि जाएब नीक बुझलक। किएक तँ तीन जिनगीक प्रश्न आगूमे आबि ठाढ़ भऽ गेलै। तहूमे दूटा ओहेन जिनगी जे दुनियाँमे अखनि‍ पएरे रखलक अछि। चुपचाप कामिनी अपन रहैबला कोठरी आबि दुनू बेटीकेँ एक टक देखि, छह बर्खक रीताकेँ पएरे आ तीन बर्खक सीताकेँ कोरामे नेने घरसँ निकलि गेल। मनमे आगि लगल, तँए कोनो सुधि-बुधि नै।
स्टेशन आबि कामिनी ट्रेन-गाड़ीक पता लगौलक। चारि घंटा पछाति‍ गाड़ी। दुनू बच्चा संग कामि‍नी प्लेटफार्मपर गाड़ीक प्रतीक्षामे बैसि रहलि। मनमे अनेको रंगक प्रश्न उठए लगलै। मुदा सभ प्रश्नकेँ मनसँ हटबैत ऐ प्रश्नपर अँटकल जे जे माए-बाप जनम देलक ओ जरूर गड़ा लगौत। जँ नै लगौत तँ बड़ीटा दुनियाँ छै, बूझल जेत्तै। तँए सभसँ पहिने माए-बाप लग जाएब। डेढ़ बजे रातिमे गाड़ी पकड़ि, दुनू बच्चा संग भोरमे अपना नैहरक स्टेशन उतरल। भुखे तीनू लहालोट होइत। मुदा ऐठामक नारीमे तँ सभसँ पैघ ई गुण होइत जे धरती जकाँ सभ दुखकेँ सहि लइए। मुदा दुनू बेटीक मुँह देखि चिन्ताक समुद्रमे डुमए लगल। की केकरोसँ भीख मांगि बच्चाकेँ खुआबी? कथमपि नै। की बच्चाक जिनगीकेँ एतै अन्त हुअए दिऐ? अपन साध कोन! मुदा नाना ऐठाम तक पहुँचत केना? जी-जाँति कऽ एकटा मुरही-कचड़ीक दोकानपर कामिनी पहुँच‍ मुरही बेचैवाली बुढ़ियाकेँ कहलक-
“दीदी, हमर नैहर दुखपुर छी। ओत्तै जाइ छी। दुनू बच्चा रातिमे खेलक नै, तँए भुखे लहालोट होइए। दू रूपैआक मुरही-कचड़ी उधार दिअ। काल्हि पाइ दऽ देब।
बिनु किछु सोचनइ-विचारने बुढ़िया बाजलि-
“बुच्ची, तोरा पाइ नै छह तँ की हेतै। हमरो एहेन-एहेन चारि गो पोता-पोती अछि। हम बच्चाक भुख बुझै छिऐ।
कहि दुनू बच्चाकेँ मुरही-कचड़ी देलक। तीनू खा कऽ विदा भेल।
कामिनीक नैहर पहुँचैत-पहुँचैत सुरूज एक बाँस ऊपर चढ़ि गेल। दुखपुरक दछिनबरि‍आ सीमापर एकटा पाखरिक गाछ। पाखरिक गाछसँ आगू बढ़ैक साहसे ने कामिनीकेँ होइ। गाछक निच्चाँमे बैसि ठोह फाड़ि कानए लगल। दुखपुरक सएओ ढेरबा बचिया घास छिलैत बाधमे। कामिनीक कानब सुनि सभ पथिया-खुरपी नेनइ पहुँच‍‍ गेलि। दुनू बच्चाकेँ दू गोटे कोरामे लऽ कामिनीकेँ संग केने घरपर एली।

¦¦¦ ��� #N� � x @ ग रहमतक माए पोखरिक महारपर आँचर नेने दुनू हाथ जोड़ि बाबीपर आँखि गड़ौने। तखने मुसबा गिलासमे दूध नेने पहुँचल। किनछरिमे पैसि एक ठोप, दू ठोप दूध सभ कोनियाँमे छि‍टए लगल।

हाथ उठा बाबी पानिसँ निकलि, साड़ी बदलि, छठिक कथा कहए लगलखिन। कथा कहि औंकरी छीटि पावनिक विसर्जन केलनि।
अखनि‍ धरि जे ढोलिया एक तालमे ढोल बजबै छल ओ समदाउनिक ताल धेलक। नटुओ समदाउन गाबए लगल।
सभ अपन-अपन कोनियाँ समेटि छिट्टामे रखि‍‍, ढोलियाकेँ एकटा ठकुआ एक छीमी केरा दऽ दऽ विदा भेल।

¦¦¦

No comments:

Post a Comment