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Friday, October 18, 2013

ठेलाबला (दोसर संस्‍करण)

ठेलाबला

टाबरक घड़ीमे बारह बजेक घंटी बजिते भोलाक निन्न टूटि गेलनि। ओछाइनपर सँ उठि सड़कपर आबि हियासए लगला तँ देखलनि जे डंडी-तराजू माथसँ कनीए पच्‍छि‍म झुकल अछि। मेघन दुआरे सतभैयाँ झँपाएल। जेम्‍हर साफ मेघ रहए ओम्हुरका तरेगण हँसैत मुदा जेम्‍हर मेघोन रहए ओम्हुरका मलिन। गाड़ी-सबारी एक्कोटा नै। सड़क सुनसान। मुदा बिजलीक इजोत पसरल। गस्तीक सिपाही टहलैत। सड़कपर सँ भोला आबि ओछाइनपर पड़ि रहला। मुदा मन उचला-चाल करैत रहनि। सिनेमाक रील जकाँ पछि‍ला जिनगी मनमे नचैत रहनि‍। जहिना चुल्हिपर चढ़ल बरतनक पानि तरसँ ऊपर अबैत तहिना भोलोक मनक खुशी हृदैसँ निकलि चिड़ै जकाँ अकासमे उड़ैत रहनि‍। किएक ने खुशी अबि‍तनि‍? हराएल वस्तु जे भेट गेल रहनि‍। मन गेलनि परसुका चि‍ट्ठीपर। जे गामसँ दुनू बेटा पठौने रहनि। असंभव काज बूझि बि‍सवासे नै होइत रहनि। पत्र तँ नै पढ़ल होइत रहनि मुदा पढ़बै काल जे पाँति‍ सभ सुनने रहथि से ओहिना आँखिक आगू नचैत रहनि। पत्र उघारि आँखि गड़ा देखए लगला। “बाबू, पाँच तारीखकेँ दुनू भाँइ ज्वाइन करए जाएब। इच्छा अछि जे घरसँ विदा होइकाल अहाँकेँ गोड़ लागि घरसँ निकली। तँए पाँच तारीखकेँ दस बजेसँ पहिनइ अपने गाम पहुँच‍ जाइ।पत्रक बात मनमे अबिते भोला गाम आ शहरक बीचक सीमापर लसकि गेला। मनमे एलनि, समाजसँ निकलि छातीपर ठेला घीचि दूटा शिक्षक समाजकेँ देलिऐ, की ओइ समाजक आरो ऋण बाँकी छै? जँ नै तँ किएक ने छाती लगाैता...।
जहिना गामसँ धोती गोल-गोला आ दू टाका लऽ कऽ निकलल छेलौं, तहिना देहक कपड़ा, सनेस, चाह-पानक खर्च छोड़ि किछु ने ऐठामसँ लऽ जाएब...।
चिड़ै टाँहि देलकै, फेर ओछाइनपर सँ उठि निकलला, तँ देखलखिन जे बाँस भरि ऊपर भुरूकबा आबि गेल अछि। चोट्टे घूमि कऽ आबि संगी-साथीकेँ उठा अपन सभ किछु बाँटि देलखिन, अपना लेल खाली मासुलक खर्च, सनेस आ पाँकेट खर्च मिला सए रूपैआ रखि, कपड़ा पहि‍र, धरमशालाकेँ गोड़ लागि हँसैत निकलि गेला।
जहन‍‍ आठे बर्खक भोला रहए तहि‍ए माए मरि गेलखिन। तीनिए मासक पछाति पिता चुमाैन कऽ लेलखिन। ओना पहुलको पत्नीसँ रघुनी चारि सन्तान भेल रहनि। मुदा खाली भोलेटा जीवित रहल। सतमाएकेँ परिवारमे ऐने भोलाकेँ सुखे भेलै। ओना गामक जनिजातिओ आ पुरुखोकेँ होइत जे सतमाए भोलाकेँ अलबा-दोलबा कऽ घरसँ भगा देतै, नै तँ परिवारमे भिनौज जरूर कराइए देती। मुदा सबहक अनुमान गलत भेल। भोला घरसँ सोलहन्नी फ्री भऽ गेल। फ्री खाली काजेटा मे भेला, मान-दान बढ़िए गेल। दुनू साँझ भानस होइते माए फुटा कऽ भोलाले सीकपर थारी साँठि कऽ रखि दइ छेली। भलहिं‍ं भोला दिनुका खेनाइ साँझमे आ रतुका खेनाइ भोरमे किएक ने खाइत।
परोपट्टामे जालिम सिंह आ उत्तम चन्दक नाच जोर पकड़ने। सभ गाममे तँ नाच पार्टी नै मुदा एक गाममे नाच भेने चारि कोसक लोक देखए अबैत।
भोला गामक नाच पार्टी सभसँ सुन्दर अछि। जेहने नगेड़ा बजौनिहार तेहने बिपटा। जइसँ पार्टीक प्रतिष्ठा दिनानुदिन बढ़िते जाइत। घरसँ फ्री भेने भोला नाचक परमानेंट देखिनिहार भऽ गेल। नाचो भरि रतुका नै कि एक घंटा, दू घंटा, तीन घंटाक। जेहने देखिनिहार जिद्दी तेहने नचिनिहारो। गामक बूढ़-बुढ़ानुससँ लऽ कऽ छौड़ा-मारड़ि भरि मन मनोरंजन करैत। मनोरंजनो सस्ता। ने नाच पार्टीकेँ रूपैआ दिअ पड़ैत आ ने खाइ-पीबैक कोनो झंझटि। ओना गामक बारह-चौदह आना लोकक हालतो रद्दिए। मुदा जे किसान परिवार छल ओ अपना ऐठाम मासमे एक-दू दिन जरूर नाच करबै छला। नटुआकेँ खाइओले दइ छेलखि‍न आ कोनो-कोनो समानो कीनि कऽ दइ छेलखिन। भोलो नाच पार्टीक अंग बनि गेल, डिग्री सेदैक जिम्मा भेट गेलै। डिग्री सेदैक जिम्मा भेटिते काजो बढ़ि गेलै। घूर लेल जारनोक ओरियान करए पड़ै छेलै। अपना काजमे भोला मस्त रहए लगल। मुदा एतबेसँ ओकर मन शान्त नै भेलै। काजक सृजन ओ अपनोसँ करए लगल। स्टेजक आगूमे जे छोटका धिया-पुता बैसि पीह-पाह करैत रहैए ओकरो सभपर निगरानी करए लगल। आब ओ चुपचाप एकठाम नै बैसैए। घूमि-घूमि कऽ महफिलोक निगरानी करए लगल। आरो काज बढ़ैलक। नटुआ सभकेँ बीड़ी सेहो लगबए लगल। बीड़ी सुनगबैत-सुनगबैत अपनो बीड़ी पीअब सीखि लेलक। किछुए दिनक पछाति भोला नम्‍हर बीड़ीक-पियाक भऽ गेल। किएक तँ एक्के-दू दम जँ पीबए तैयो भरि रातिमे तीस-पैंतीस दम भऽ जाइ छेलै। जइसँ भरि राति मूड बनल रहै छेलै।
बीड़ीक कसगर चहटि भोलाकेँ लागि गेलै। रातिमे तँ नटुए सभसँ काज चलि जाइ छेलै मुदा दिनमे जहन‍‍ अमलक तलक जोर करै तँ मन छटपटाए लगै। मूडे भङठि जाइ छेलै। मूड बनबै दुआरे भोला बापक राखल बीड़ी चोरा-चोरा पीबए लगल। जइक चलतबे सभ दिन किछु-ने-किछु बापक हाथे मारि खाइत। एक दिन एक्केटा बीड़ी रघुनीकेँ रहनि। भोला चोरा कऽ पीब लेलक। कोदारि पाड़ि रघुनी गामपर एला तँ बीड़ी पीबैक मन भेलनि। खोलियासँ अानए गेला तँ बीड़ी नै देखलनि। चोटपर भोला पकड़ा गेल। सभ तामस रघुनी भोलापर उतारि‍ लेलनि‍। मारि खाए भोला कनैत उत्तर मुहेँक रस्ता पकड़लक। कनीए आगू बढ़ल आकि करियाक्काक नजरि परखलनि‍। भोलाक कानब सुनि ओ बूझि गेला जे भीतरिया मारि लागल छै। पुचुकारि कऽ पुछलखिन-
“की भेलौ भोला, किए हुचकै छँह?”
करियाक्काक बात सि‍नेह पाबि‍ भोला आरो हुचकि-हुचकि कानए लगल। हिचकैत भोला कनीए जोरसँ काकाकेँ कहलकनि, हुचकि‍एमे हरा गेल। काका भोलाक बात नै बुझलनि‍। मुदा बिगड़लखिन नै, दहिना डेन पकड़ि रघुनीकेँ कहए बढ़लथि। काकाकेँ देखि रघुनीओक मन पघिल गेलनि‍। लगमे आबि‍ काका कहलखिन-
“रघुनी, भोला बच्चा अछि किएक तँ बि‍आह नै भेलैए। तँए नीक हेतह जे बि‍आह करा दहक। अपन भार उतरि‍ जेतह। परिवारक बोझ पड़तै अपने सुधरत। अखनि‍ मारने दोषी हेबह, समाज अबलट्ट जोड़तह जे बाप कुभेला करै छै। जनिजातिक मुँह रोकि सकबहक ओ कहतह जे `माए मुइने बाप पित्ती।
करियाक्काक विचार रघुनीक करेजकेँ छेदि देलकनि‍। आँखिमे नोर आबि गेलनि‍। अखनि‍ धरि जे आँखि रघुनीक करियाक्कापर छेलै ओ भोलाक गाल पड़क सूखल नोरक टघारपर पहुँच‍ अँटकि गेलनि‍। मारिक चोट भोलाक देहमे निजाइए गेलै जे संग-संग बि‍आहक बात सुनि मनमे खुशीओ उपकलै। बुधि‍क हिसाबसँ भलहिं‍ं भोला बुड़िबक अछि मुदा नाचमे मेल-फीमेल गीत तँ गबिते अछि।
पिताक हैसियतसँ रघुनी करियाकाकाकेँ कहलखिन-
“काका, हम तँ ओते छह-पाँच नै बुझै छिऐ, काल्हिए चलह केतौ लड़की ठेमा कऽ बि‍आह कइए देबै।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि करियाकाका रस्ता घेलनि।
भोलाक बि‍आह भेला आठे दिन भेल छेलै कि पाँच गोटे संग ससुर आबि रघुनीकेँ कहलकनि-
“बि‍आहसँ पहिने हम सभ नै बुझलिऐ, परसू पता लागल जे लड़ि‍का नाच पार्टीमे रहैए। नटुआ-फटुआ लड़ि‍का संग अपन बेटीकेँ हम नै जाए देब। तँए ई सम्बन्ध नै रहत। अपना सभमे तँ खुजले अछि। अहूँ अपन बेटाकेँ बिआहि लिअ आ हमहूँ अपना बेटीक दोसर बि‍आह कऽ देब।
कहि पाँचो गोटे चलि गेला।
ससुरक बात सुनि भोलाक बुधि‍ए हरा गेलै। जहिना जोरगर बिर्ड़ो उठलापर सभ किछु अन्हरा जाइ छै तहिना भोलोक मन अन्हरा गेलै। दुनियाँ अन्हार लागए लगलै। ओना तीन मास पहिनइ‍ नाच पार्टी टूटि गेल छेलै। एकटा नटुआ एकटा लड़की लऽ कऽ पड़ा गेल छल जइसँ गाम दू फाँक भऽ गेने दू ग्रुपमे गाम बँटा गेलै। सौंसे गाममे सनासनी चलए लगलै। तैपर सँ भोला आरो दू फाँक भऽ गेल।
पाण्डु रोगी जकाँ भोलाक देहक खून तरे-तर सुखए लगलै। मुदा की करैत वेचारा? किछु फुड़बे नै करै छेलै। ग्लानिसँ मन कसाइन हुअ लगलै। मोने-मन अपनाकेँ धिक्कारए लगल, कोन सुगराहा भगवान हमरा जनम देलनि जे बहुओ छोड़ि देलक। विचारलक जे ऐ गामसँ केतौ चलिए जाएब नीक हएत।
घरसँ भोला पड़ा गेल। संगी-साथीक मुहसँ दिल्ली, कलकत्ता, बम्बइक विषएमे सुननइ रहए। जइसँ गाड़ीओक भाँज बुझले रहैए। ने जेबीमे पाइ रहैए आ ने बटखर्चा। खाली दूटा टाका संगमे रहैए। अबधारि कऽ कलकत्ताक गाड़ी पकड़ि लेलक।
हबड़ा स्टेशन गाड़ी पहुँचि‍ते भोला उतरि‍ विदा भेल। टिकट नै रहनौं एक्को मिसिआ डर मनमे नै रहै। निर्मली-सकरीक बीच कहियो टिकट नै कटबै छल। एक बेर पनरह अगस्तकेँ सिमरिया धरि बिनु टिकटे घूमि‍ आएल रहए। प्लेटफार्मक गेटपर दूटा सिपाही संग टी.टी. टिकट ओसुलैत। भोलाकेँ देखि टी.टी.क मनमे भेलै, दरभंगीया छी भीख मंगए आएल अछि। टिकट नै मंगलकै। सिपाहीओकेँ बूझि पड़लै जे जेबीमे किछु छै नै। टिकटेबला यात्री जकाँ भोलो गेट पार भऽ गेल।
सड़कपर आबि आँखि उठा कऽ तकलक तँ नम्‍हर-नम्‍हर कोठा चौरगर
सड़क
, हजारो छोटका-बड़का गाड़ी आ लोकक भीड़ भोला देखलक। मनमे भेलै, भरिसक आँखिमे ने किछु भऽ गेल अछि। जहिना आँखि गड़बड़ भेने एक्के चान सात बूझि पड़ैत तहिना। दुनू हाथे दुनू आँखि मीड़ि फेर देखलक तँ ओहिना भीड़ देखि मनमे एलै, जहन‍‍ एते लोकक गुजर-बसर चलै छै तँ हमर किए ने चलत। आगू बढ़ि लोकक बोली अकानए लगल। मुदा केकरो बाजब बुझबे नै करैत। अखनि‍ धरि बुझैत जे जहिना गाए-महिंस सभठाम एक्के रंग बजैए तहिना ने मनुखो बजैत हएत। मुदा से नै देखि भेलै जे भरिसक हम मनुखक जेरिमे हरा ने तँ गेलौं हेन। फेर मनमे एलै, लोक तँ संगीक बीच हराइए, असगरमे केना हराएत। विचित्र स्थितिमे पड़ि गेल। ने आगू बढ़ैक साहस होइ आ ने केकरोसँ किछु पुछैक। हिया हारि उत्तर मुहेँ विदा भेल। सड़कक किनछरिए सभमे खाइ-पीबैक छोट-छोट दोकान पतिआनी लागल देखलक। भुख लगले रहै मुदा अपन पाइ आ बोली सुनि हिम्मते ने होइत। जेबी टोबलक तँ एकटा दू-टकही रहै। मन पड़लै मधुबनीक स्टेशन कातक होटल जइमे पाँच रूपैए प्लेट दैत। ई तँ सहजहि कलकत्ता छी। ऐठाम तँ आरो बेसी महग हेबे करत। एकटा दोकानक आगूमे ठाढ़ भऽ गर अँटबए लगल जे नै भात-रोटी तँ एक गिलास सतुए पीब लेब। बगए देखि दोकानदारे कहलक-
“आबह, आबह बौआ। ठाढ़ किएक छह?”
अपन बोली सुनि भोला घुसुकि कऽ दोकान लग पहुँच‍ पुछलक-
“दादा, केना खुआबै छहक?”
“तीन मास पहिने धरि आठे आनामे खुअबै छेलिऐ। अखनि‍ बारह आनामे खुअबै छिऐ।
भोलाक मनमे संतोख भेलै। पाइएबला गहिंकी जकाँ बाजल-
“कुरुड़ करैले पानि लाबह।
भरि पेट खेनाइ खा भोला आगू बढ़ल। ओना तँ रंग-बि‍रंगक वस्‍तु देखैत मुदा भोलाक नजरि खाली दुइएठाम अँटकैत। देबाल सभमे साटल सिनेमाक पोस्टरपर आ सड़कपर चलैत ठेलापर। जइ पोस्टरमे डान्स करैत देखए ओइठाम अँटकि सोचए जे ई नर्तकी मौगी छी आकि मुनसा। गाम-घरमे तँ पुरुखे मौगी बनि डान्स करैए। फेर मन पड़लै संगीक मुहेँ सुनल ओ बात जे कहने रहैए सत्य हरिश्चन्द फिल्ममे मर्दे मौगीओक रौल केने रहए। गुनधुन करैत बढ़ल तँ अपने जकाँ छौड़ाकेँ ठेला ठेलने जाइत देखि सोचए लगल, ई काज तँ हमरो बुते भऽ सकैए। गाड़ीक डरेबरी तँ करल नै अबैए। बिनु सिखने रिक्शो केना चलाैल हएत? ततमत करैत आगू बढ़ल। सड़कक बगलेमे एकटा ठेलाबलाकेँ चाह पीबैत देखलक। ओइठाम जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल। चाह पीब ठेलाबला पुछलक-
“कोन गाँ रहै छह?”
“बि‍शौल।
“हमहूँ तँ सुखेते रहै छी। चलह हमरा संगे।
गप-सप्‍प करैत दुनू गोटे धरमतल्लाक पुरना धरमशाला लग पहुँचल, ठेलाकेँ सड़केपर छोड़ि दीनमा भोलाकेँ धरमशालाक भीतर लऽ जा कऽ कहलक-
“समांग असगरे केतौ जइहऽ नै। हरा जेबह। हम एक ट्रीप मारने अबै छी।
टंकीपर हाथ-पएर धोइ भोला दीनमासँ बीड़ी मांगि पीब, पीलर लगा ओँगठि कऽ बैसि गेल। आँखि उठा कऽ तकलक तँ झड़ल-झुरल देबालक सिमटी, तैपर केतौ-केतौ बर-पीपरक गाछ जनमल देखलक। पैखाना कोठरी आ पानिक टंकीक आगूमे ठेहुन भरि थाल किचार सेहो देखलक मन पड़लै गाम। नाच-पार्टी टूटि गेल, घरवाली छोड़ि देलक। दू पाटी गाम भऽ गेल। सोचिते-सोचिते निन्न आबि गेलै। बैसिले-बैसल सूति रहल।
गोसाँइ डुमि‍ते बुचाइ -दोसर ठेलाबला- आबि भोलाकेँ जगबैत पुछलक-
“कोन गाम रहै छह?”
आशा भरल स्वरमे भोला बाजल-
“बिशौल।
बि‍शौलक नाओं सुनिते मुस्की दैत बुचाइ पुछलक-
“रूपनकेँ चि‍न्है छहक?”
“उ तँ हमरा कक्के हएत।
अपन भाएक ससुर बूझि भोलासँ सार-बहनोइक सम्बन्ध बनबैत कहलक-
“चलू, पहिने चाह पीबी। तहन‍‍ निचेनसँ गप-सप्‍प करब।
कहि टंकीपर जा बुचन देह-हाथ धोइ, कपड़ा बदलि भोलाकेँ संग केने दोकानपर गेल। आँखिक इशारासँ दोकानदारकेँ दू-दूटा पनितुआ, दू-दूटा समौसा दइले कहलक। दुनू गोटे खा, चाह पीब पानक दोकानपर पहुँच‍ बुचाइ पान मंगलक। पान सुनि भोला बाजल-
“पान छोड़ि दियौ। बीड़ीए कीनि लिअ।
बीड़ी पीबैत दुनू गोटे धरमशालाक भीतर पहुँचल। समए भेने एका-एकी ठेलाबला सभ आबए लागल। बिशौलक नाओं सुनिते अपन-अपन सम्बन्ध सभ फरि‍छाबए लगल। सम्बन्ध स्थापित होइते बेरा-बेरी चाह चलए लगलै। चाह पीबैत-पीबैत भोलाक पेट अगिया गेल। अखनि‍ धरिक जिनगीमे एहेन सि‍नेह भाेलाकेँ पहिल दिन भेटलै। ठेलाबला परिवारक अंग बनि गेल। भोलाक सभ बेवस्‍था ठेलाबला सभ कऽ देलक। दोसर दिनसँ ठेला ठेलए लगल।
शनि दिनकेँ सभ ठेलाबला रतुका शो सिनेमा देखए जाइत। ओइ शोमे एक क्लासक कन्सेशन भेटै। भोलो सभ शनि सिनेमा देखए लगल।
चौदह मास बि‍तला पछाति‍ भोला गाम आएल। नव चेहरा नव वि‍चार भोलाक। घरक सभ सदस लेल कपड़ा अनने अछि। धिया-पुताकेँ दू-दूटा चौकलेट देलक। धिया-पुताकेँ चौकलेट देखि एका-एकी जनिजातिओ सभ आबए लगली। झबरीदादी आबि भोलाकेँ देखि बाजए लगली-
“कहूँ तँ ऐसँ सुन्नर पुरुख केहेन होइ छै जे सौंथ जरौनियाँ छोड़ि देलकै।
दादीक बात भोलाकेँ बेधि देलक। आँखि नोराए लगलै। रघुनीक मन सेहो कानए लगलै। दोसरे दिन रघुनी लड़की ताकए घरसँ निकलल। ओना लड़कीक तँ कमी नै, मुदा गाम-घर देखि कऽ कुटुमैती करैक विचार रघुनिक मनमे रहए। लड़कीक कमी तँ ओइ समाजमे अधिक अछि जइमे भ्रूण-हत्याक रोग धेने छै। समैओ बदलल। गिरहस्त परिवारसँ अधिक पसि‍न लोक नोकरिया परिवारकेँ करैए। बगलेक गाममे भोलाक बि‍आह भऽ गेल।
बि‍आहक तीनिए दिन पछाति कनियाँक बिदागरीओ भऽ गेलै आ पाँचमे दिन अपनो कलकत्ता चलि देलक।
सालक एगारह मास भोला कलकत्ता आ एक मास गाममे गुजारए लगल। गाम अबैत तँ अपनो घरक काज सम्हारि अनको सम्हारि दैत।
तेसर साल चढ़िते भोलाकेँ जौआँ बेटा भेलै। नवम् मास चढ़िते भोला गाम आबि गेल। मनमे आशो बनले रहै जे पाइ-कौड़ीक दिक्कत तँ नहियेँ हएत। सभ ठेलाबला अपन संस्था बना पाइ-कौड़ीक प्रबन्ध अपने केने अछि। मुदा पहिल बेर छी, कनियाँक देखभाल तँ कठिन अछिए। सरकारीक कोनो बेवस्थो नहियेँ छै। मुदा समाजो तँ समुद्र छी। बिनु कहनौं सेवा भेटैए। जइसँ भोलोकेँ कोनो बेसी परेशानी नहियेँ भेलै।
समय आगू बढ़ल। पाँच बर्ख पुरिते भोला दुनू बेटाकेँ स्कूलमे नाओं लिखौलक। शहरक वातावरणमे रहने भोलोक विचार धिया-पुताकेँ पढ़बै दिस झुकि गेल रहै। मनमे अरोपि लेलक जे भलहिं खटनी दोबर किएक ने बढ़ि जाए मुदा दुनू बेटाकेँ जरूर पढ़ाएब। अपन आमदनी देखि पत्नीक ऑपरेशन करा देलक। जइसँ परिवारो समटले रहलै।
पढ़ैमे जेहने चन्सगर रतन तेहने लाल। क्लासमे रतन फस्ट करैत आ लाल सेकेण्ड। सतमा क्लास धरि दुनू भाँइ फस्ट-सेकेण्ड स्कूलमे करैत रहल। मुदा हाइ स्कूलमे दुनू भाँइ आर्ट लऽ पढ़ए लगल जइसँ क्लासमे कोनो पोजीसन तँ नहियेँ होइत मुदा नीक नम्बरसँ पास करए लगल।
मैट्रिकक परीक्षा दऽ दुनू भाँइ कलकत्ता गेल। अखनि‍ धरि आने परदेशी जकाँ अपनो पिताकेँ बुझै छल। तँए मनमे रंग-बि‍रंगक इच्छा संयोगने कलकत्ता पहुँचल रहए। मुदा पिताक मेहनति‍ -छाती बले ठेला घीचैत देखि- पराते भने गाम घुमैक विचार दुनू भाँइ कऽ लेलक। पितेक जोरपर तीन दिन अँटकल। मुदा किछु किनैक विचार छोड़ि देलक। मेहनति‍क कमाइ देखि अपन इच्छाकेँ मोनेमे दुनू भाँइ दाबि लेलक। मुदा तैयो भोला दुनू बेटाकेँ फुलपेंट, शर्ट, धड़ी, जुत्ता कीनि देलखिन।
तीन मासक पछाति‍ मैट्रिकक रिजल्ट निकलल। दुनू भाँइ-रतनो आ लालो- प्रथम श्रेणीसँ पास केलक। फस्ट डिवीजन भेलोपर आगू पढ़ैक विचार मनमे नै अनलक। उपार्जन लेल सोचए लगल। नोकरीक भाँज-भुँज लगबए लगल। नोकरीओ सबहक तँ वएह हाल। गामक-गाम पढ़ल बिनु पढ़ल नौजवानक फौज तैयार अछि। एक काज लेल हजार हाथ तैयार अछि। जइसँ समाजक मूल पूजी –मानवीय-आगिमे जरैत सम्पति जकाँ नष्ट भऽ रहल अछि।
समए मोड़ लेलक। पढ़ल-लिखल नौजवान लेल नोकरीक छोट-छीन दरबज्जा खुजल। गामक स्कूलमे शिक्षा-मित्रक बहाली हुअ लगलै। जइसँ नव ज्योतिक संचार गामोक पढ़ल लिखल नौजवानमे भेलै। ओना समैक हिसाबसँ शिक्षा मित्रक मानदेय मात्र खोराकी भरि अछि मुदा बेरोजगारीक हिसाबसँ तँ नीक अछिए। बगले गामक स्कूलमे रतनो आ लालोक बहाली भऽ गेलै। पाँच तारीककेँ दुनू भाँइ ज्वाइन करत।
आगू नै पढ़ैक दुख जेते दुनू भाँइक मनमे नै रहै तइसँ बेसी खुशी नोकरीसँ भेलै। कोँपर बुधि‍मे कलुषताक मिसिओ भरि आगमन नै भेल अछि। दुनू भाँइ बैसि कऽ अपन परिवारक सम्बन्धमे विचारए लगल। रतन लालकेँ कहलक-
“बौआ, कोन धरानी बाबू अपना दुनू भाँइकेँ पढ़ौलनि से तँ देखले अछि। अपनो सभ एक सीमा धरि पहुँच गेल छी। तँए अपनो सबहक की दायित्व बनैए से तँ सोचए पड़तह?”
रतनक बात सुनि लाल बाजल-
“भैया, अपना सभ ओइ धरतीक सन्तान छी जइ धरतीपर श्रवण कुमार सन बेटा भऽ चुकल छथि। पाँच तारीखसँ पहिने बाबूकेँ कलकतासँ बजा लहुन। हम सभ ठेलाबलाक बेटा छी, ऐमे कोनो लाज नै अछि। मुदा लाजक बात तहन हएत जहन ओ ठेला घीचता आ अपना सभ कुरसीपर बैसि दोसरकेँ उपदेश देबै।
मुड़ी डोला स्वीकार करैत रतना बाजल-
“आइए बाबूकेँ चि‍ट्ठी खसा दइ छि‍यनि‍ जे पढ़ि‍ते गाड़ी पकड़ि घर चलि आउ। पाँच तारीखकेँ दुनू भाँइ ज्वाइन करए जाएब। दुनू भाँइक विचार अछि जे अहाँकेँ गोड़ लागि घरसँ डेग उठाएब।
दुनू भाँइक विचार सुनिते माएक मन सुख-दुखक सीमापर लसकि गेलनि। जरल घराड़ीपर चमकैत कोठा देखए लगली। आँखिमे नोर छि‍लैक गेलनि। मुदा ओ दुखक नै सुखक रहए।

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