Pages

Friday, October 18, 2013

रिक्‍शाबला (दोसर संस्‍करण)

रिक्‍शाबला

“ओ रिक्शा, ओ रिक्शा।
कनी फड़िक्केसँ जीबछ जोरसँ बाजल।
हाथमे बम्बैया बैग, जिन्स पेन्ट आ शर्ट पहि‍रने, दहिना हाथमे चौड़गर घड़ी। फुल जुत्ता, मौजा सेहो लगौने। बम्बैए हिप्पी कट केश, बुच्चा मोछ आ आँखिपर चश्मा। रिक्शाबला-बचनू अपन ताशक संगी संग ताश खेलाइत। ताशो ओहिना नै खेलैत, एक सेटपर चारू गोटेक चाह-पानक खर्च, हारलाहा पार्टीकेँ देमए पड़ैत। पाँचटा लाल बचनूक जोड़ाकेँ। तँए एक्केटा सेठ होइमे बाँकी। एकटा लाल हएत, चाह-पानक जोगार लगत। तँए एकाग्र भऽ बचनू लालक पाछू दिमाग लगौने। ताशक चौखड़ी लग आबि जीबछ दुइभेपर बैग रखि‍ रूमालसँ मुँह लग हौंकए लगल। कनीकाल हौंकि रिक्शाबलाकेँ चड़िअबैत कहलक-
“हौ भाय, हमरा बहुत दूर जाइक अछि, झब दे चलह?”
ताशपर सँ नजरि उठा, जीबछ दिस देखि बचनू बाजल-
“भाय, केहेन सुन्दर ठंढ़ा छै, कनी सुसता लैह। तोरो देखै छिअ जे पसीनासँ तड़-बत्तर भेल छह। हमरो एक्केटा लाल बाँकी अछि, दू-तीन खेपमे भइए जाएत। अगर जँ अपन लाल नहियोँ हएत आ विरोधीएकेँ दूटा कारी भऽ जेत्तै, तैयो जीत हेबे करत।
बचनूक बात सुनि जीबछ शर्टो आ गंजीओ निकालि कऽ रौदमे पसारि देलक। आसीन मास। तीख रौद। तैपर सँ गुमकी सेहो। रेलबे स्टेशनसँ जीबछ पएरे आएल। किएक तँ स्टेशनक बगलेमे तेहेन हच्चा बाढ़िमे बनि गेल जे रिक्शो आ टमटमोक रस्ता बन्न भऽ गेलै। पएरे लोक कहुना कऽ थाल-पानिमे टपैत। बाढ़ि तँ तेहेन आएल छल जे जँ स्टेशन ऊँचगर जमीनपर नै रहैत तँ ऊहो भँसि कऽ केतए-कहाँ चलि जाइत। मुदा तैयो स्टेशनक पुबरिया गुमती, पुल आ आध किलोमीटर रेलबे लाइन दहाइए गेल। रेलबेक दछिन तेहेन मोइन फोड़ि देलक जे गाड़ीओ बन्न भऽ गेल। डेढ़ मासमे पुलो बनल आ गाड़ीओ चलब शुरू भेल।
भरि‍ गाममे रिक्शा बचनूएटा केँ। जइसँ कोनो तरहक प्रतियोगिता नै। प्रतियोगिता तँ शहर-बजारमे होइत, जैठाम सैकड़ो-हजारो रिक्शा रहैत। अनेरो रिक्शाबला सभ रिक्शापर बैस, एम्‍हरसँ ओम्‍हर घुमबैत आ बजैत-
“कोट-कचहरी..., बैंक..., पोस्ट आॅफिस..., कौलेज..., स्कूल..., स्टेशन..., बस स्टेण्ड..., अस्पताल..., बड़ा बजार..., सिनेमा चौक..., डाकबंगला..., भगतसिंह चौक..., आजाद चौक।
मुदा से तँ गाममे नै। मुदा तँए कि गामक रिक्शाबलाकेँ कमाइ नै होइत। खूब होइत। एक तँ गामक कच्ची रस्ता, तैपर सँ जेतए-तेतए टुटलो आ गहुम पटौनिहार सभ कटनौ। एहेन सड़कमे दोसर कोन इंजनबला सवारी सकत। तँए गामक सवारी रिक्शा। जइसँ गामक बेटी-पुतोहुक बि‍दागरी निमहैत। धैनवाद तँ रिक्शेबलाकेँ दी जे वेचारा छातीपर भार उठा, कखनो चढ़ि कऽ तँ कखनो उतरि कऽ पार लगबैत। कठिन मेहनति‍क पाइ कमाइत।
अखनि‍ धरि ताशक खेल नै फड़ियाएल। किएक तँ कखनो लाल कमि जाए तँ कखनो कारी। औगताइत जीबछ बाजल-
“भाय, ताश नै फड़िएतह। बहुत दुरस जाइक अछि। झब दे चलह। नै तँ अन्हार भेने तोरो दिक्कत हेतह आ हमरो अबेर भऽ जाएत। कहुना-कहुना तँ ऐठामसँ सुग्गापट्टी पाँच कोस हएत।
बचनू-
“हँ, से तँ पाँच कोससँ कम नहियेँ हएत। मुदा तइसँ की? ई की कोनो शहर-बजार छिऐ जे रातिक कोन बात जे दिने देखार पौकेटमारी, डकैती, अपहरण होइ छै। ने रस्तामे भीड़-भड़क्का आ ने कोनो चीजक डर। निचेनसँ जाएब।
गामक बीचमे चौबट्टी। जैठाम पान-सातटा छोट-छोट दोकान। जइसँ गामोक आ आनो गामक लोक चौक कहए लगल। चौकक पछबरिया कोनपर एकटा खूब झमटगर पाखरिक गाछ। जैपर हजारो चिड़ैक खोँता। दिन भरि चिड़ै सभ चराउर करए बाहर जाइत आ गोसाँइ निच्चाँ होइते पतिआनी लगा-लगा गाछपर आबए लगैत। केतेको रंगक चिड़ै तँए सभ जातिक चिड़ै अपन-अपन संगोर बना-बना अबैत। तेतबे नै, गाछक डारिओ बाँटि नेने अछि। एक जातिक चिड़ै एक डारिपर खोँता बनौने अछि तहि‍ना दोसर-तेसर दोसर-तेसर डारि‍पर। तँए एक जातिक चिड़ैसँ दोसर जातिक चिड़ैक बीच ने कहा-कही होइत आ ने झगड़ा- झंझटि। मुदा अपनामे एक जातिक बीच नीक-अधलाक गप-सप्‍प जरूर होइत। कथा-कुटुमैतीसँ लऽ कऽ रामायण-महाभारतक खि‍स्‍सा-पिहानी जरूर होइत। पान-पुनक चर्चा सेहो करैत। अधला काज केनिहारकेँ डाँटो-फटकार दैत आ जुरि‍मनो करैत। ओही गाछक निच्चाँमे बाटो-बटोही रौदमे ठंढ़ाइत आ पाि‍न-बुनीमे सेहो जान बँचबैत। ताशक चौखड़ी सेहो जमैत।
बचनूक बात सुनि जीबछ पेन्टक पछि‍ला पौकेटसँ सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकाललक। एकटा सिगरेट अपनो लेलक आ एकटा बचनूओकेँ देलक। दुनू गोटे सिगरेट लगा, रिक्शापर चढ़ि विदा भेल। कनीए आगू बढ़ल आकि बचनू जीबछकेँ पुछलक-
“भाय तूँ बम्बैमे रहै छह?”
“हँ
“मन तँ हमरो बहु दिनसँ होइए मुदा पलखतिए ने होइए जे जाएब।
“ओइठीम मन तँ खूब लगैत हेतह?”
“एँेह भाय मन। की कहबह? जखनिए डेरासँ निकलबह आकि रंग-बिरंगक छौड़ी सभकेँ देखबहक। उमेरगरो सभ जे कपड़ा लगौने रहतह से देखबहक तँ बूझि पड़तह जे कुमारिए अछि। मुदा छौड़ो सभ की ओइसँ कम अछि। एक तँ ओहिना जे छौडी सभ दामी-दामी कपड़ा पहिरने अछि आ सौंसे देह झक-झक करै छै। तैपर सँ छौड़ो सभ करीक्का चश्मा पहिर लेतह आ निङहारि-निङहारि देखैत रहतह। चश्मो की कोनो एक्की-दुक्की रहै छै। जखनिए आँखिमे लगेबह आकि देहपर कपड़ा बुझिए ने पड़तह।
“ओहेन चश्मा हमरा सभ दिस कहाँ छै, हौ।
“एँह, ओइठीन विदेशी चश्मा सभ बिकाइ छै कि‍ने। देहातमे ओहेन चश्मा के किनत।
चौकसँ कनीए उत्तर एकटा ताड़ीक दोकान। चारि-पाँच कट्ठाक खजुरबोनी। बीच-बीचमे ताड़क गाछ सेहो। उत्तरे-दछिने रस्ता। पछबारि भाग ताड़ी दोकान। ताड़ी दोकान देखि जीबछ बचनूक पीठमे आँगुरसँ इशारा करैत रोकैले कहलक। बचनूक मनमे भेलै, भरिसक पेशाब करत। रिक्शा रोकि उतरि गेल। जीबछ बाजल-
“भाय, ताड़ी दोकान देखै छिऐ। चलह दू घोंट मारि‍ दि‍ऐ, तहन‍‍ चलब। हमहीं पाइओ देबै।
ताड़ीक नाओं सुनि बचनू कहलक-
“ओना ताड़ी हमहूँ पीबै छी मुदा ताड़ी पीब कऽ ने रिक्शा चलबै छी आ ने ताड़ी पीनिहारकेँ रिक्शापर चढ़बै छी। तँए अखनि‍ ताड़ी-दारू बन्न करह। जहन‍‍ घरपर पहुँचबह तहन‍‍ जे मन हुअ से करिहऽ।
“भाय, ओतए भेटत की नै भेटत, अखनि‍ तँ आगूमे अछि।
“तब अखनि‍ नै जाह। ताड़ी कीनि कऽ नेने चलह। गामेपर दुनू गोटे पीब लेब आ रातिमे रहि जइहऽ।
“ऐठीम केतए रहब?”
“से की, हमरा घर-दुआर नै अछि। ओत्तै रहि कऽ राति बि‍ता लिहऽ। भोरे पहुँचा देबह।
“अच्छा, ठीक छै, चलह।
दुनू गोटे ताड़ी दोकान दिस बढ़ल। दोकान लग पहुँचि‍ते जीबछ घैलक-घैल ताड़ी फेनाइत देखलक। घैलक पतिआनी देखि मोने-मन सोचए लगल जे हमरा होइ छेलए जे शहरे-बजारक लोक ताड़ी पीबैए। मुदा से नै गामो-घरक लोक खूब पीबैए। पच्चीस-तीस गोटे दोकानक भीतरो आ बाहरो ताड़क पातक चटाइपर बैसि ताड़ीओ पीबैत आ चखनो खाइत। कियो-कियो असगरे पीबैत तँ कियो-कियो दू-दू, तीन-तीन, चारि-चारि गोटेक संगोरमे। कियो खिस्सा कहैत तँ कियो गीत गबैत। कियो अन्ना-गाहिंस गारिए पढ़ैत। सभ उमंगमे। जहिना ताड़ीक फेन उधियाइत तहिना सबहक मन। ताड़ीक खटाइन गंध लगिते जीबछकेँ होइ जे कखनि‍ दू गिलास चढ़ा दिऐ।
ताड़ी दोकानसँ कनी हटि दूटा बुढ़िया चखनाक दोकान पसारने। एकटा दोकानमे मुरही, घुघनी बदामक कचड़ी आ दोसरमे चारि पाँच रंगक माछक तरूआ। ओंगरिक इशारासँ मझोलका डाबा देखबैत जीबछ बचनूकेँ कहलक-
“भाय, दुइए गोटे पीनिहार छी, तँए वएह डाबा लऽ लैह।
बचनू-
“पहिने दाम पूछि लहक?”
डाबाक कान पकड़ि जीबछ पासीकेँ दाम पुछलक। तोड़-जोड़ करैत पैंतीस रूपैआमे पटि गेलै। पेन्टक जेबीसँ नमरी निकालि ओ जीबछकेँ देलक। नमरी पकड़ैत दोकानदार कहलकै-
“ताड़ीए टाक दाम कटै छिअ। डाबा घुमा दिहऽ।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि बचनू डाबा उठा लेलक। डाबाकेँ चखना दोकानक आगूमे रखि‍ बचनू मोने-मन सोचए लगल जे औझुका तँ कमाइओ ने भेल। धिया-पुता की खाएत? से नै तँ तेना कऽ मुरही-कचड़ी कीनि ली जे सभ तूर खाएब।
जेहने झुर करि कऽ कचड़ी बनौने तेहने माछक कुटिया। एकदम लाल-बुन्द। माछक कुटिया देखि जीबछक मुँहमे पानि आबए लगल। मन चटपटाए लगल। बचनूकेँ कहलक-
“भाय, केते चखना लेबह?”
मोने-मन बचनू हिसाब जोड़ए लगल। दू-दूटा कचड़ी आ दू-दूटा माछ दुनू बच्चाले आ अपना सभ लेल चारि-चारिटा। किएक तँ गरम चीज होइ छै, तँए बेसी खराब करतै। बाजल-
“भाय, एक किलो मुरही, एक किलो घुघनी, सोलहटा कचड़ी आ सोलहटा माछक कुटिया लऽ लैह।
सएह केलक। ताड़ीक डाबा उठा जीबछ विदा भेल। रिक्शा लग आबि बचनू चखनाक मोटरी सेहो जीबछेकेँ दऽ देलक।
चौक रस्ता छोड़ि बचनू घर दि‍सक रस्ता धेलक। लगेमे घर। दुइएटा घर बचनूकेँ। रिक्शा रखैले एकचारी भनसे घरक पँजरामे देने। एकटा घरमे भानसो करए आ जरनो-काठी रखए। दोसरमे सभतूर सुतबो करए आ चीजो-बौस रखए। अपना दरबज्जा नै। मुदा घरक आगूमे धूर दसेक परती, जैपर सरकारी चबुतरा बनल। घर लग अबिते बचनू रिक्शा ठाढ़ कऽ आँगन बाढ़नि आनए गेल। बचनूकेँ देखि घरवाली कहलकै-
“आइ जे भाड़ा नै कमेलौं, तँ राति खएब की? अपनो दुनू गोटे तँ ओहुना सूति रहब मुदा बच्चा सभ केना रहत?”
बिनु किछु उत्तर देनइ बचनू बाढ़नि‍ लऽ अँगनासँ निकलि गेल। चबुतराकेँ दोहरा कऽ बहारलक। चबुतराक बनाबट सुन्दर, तँए बहारिते चमकए लगल। चबुतराक चमकी देखि जीबछ बाजल-
“भाय, जेहने मजगूत चबुतरा छह तेहने सुन्दर। संगमरमर जकाँ चमकै छह।
जीबछक बात सुनि बचनूकेँ ओ दिन मन पड़लै जइ दिन ओ ठीकेदारकेँ गरिऔने रहए। मुस्‍कीआइत कहलकै-
“भाय, ओहिना एहेन सुन्दर बनल अछि। जे ठीकेदार बनबाबैक ठीकेदारी नेने रहए ओ नमरी चोर। तीन नम्बर ईंटा आ कोसीकातक बालुसँ बनबए चाहैत रहए। हम गामपर नै रही। जहन‍‍ एलौं तँ देखलिऐ। देखिते सौंसे देह आगि लागि‍ गेल। मुदा ऐठाम रहए कि‍यो ने। दोसर दिन नाओ कोड़ए ठीकेदारो आ जनो एलै। हमरा तँ गरमी चढ़ले रहए। जखने कोदारि लगौलक आकि जनक हाथसँ कोदारि छीनि ठीकेदारकेँ गरियाबए लगलौं। जहाँ गारि पढ़लिऐ आकि ठीकेदारो गहुमन साँप जकाँ हुहुआ कऽ उठल। जहाँ ओ जोरसँ बाजल आकि हमहूँ गरियेबिते दुनू हाथे कोदारिक बेंट पकड़ि कहलिऐ, सार नाओं लइसँ पहिने तोरे काटि देबह। मुदा सभ पकड़ि लेलक। डरे ठीकेदारो थर-थर कँपए लगल। तहन‍‍ जा कऽ एक नम्मर सभ किछु -ईंटा, सिमटी, बालु आनि बनौलक।
जीबछ बाजल-
“बाह।
बचनू-
“कनी ऊपर आबि कऽ देखहक जे की सभ बनबौने छी। देखहक ई खेलाइ लऽ पच्चीसी घर छी, कौड़ीसँ खेलाएल जाइए। मुदा ई खेल समैया छी। एकर चलती खाली आसिनेटा मे रहैए। कोजगरा दिन तँ लोक भरि राति खेलते रहैए।
दोसरकेँ देखबैत-
“ई मुगल पैठानक घर छी। हमरा गाममे लोक एकरा मुगल-पैठान कहै छै मुदा आन-आन गाममे एकरा कौआ-ठुट्ठी कहै छै। गोटीसँ खेलाएल जाइए।
तेसर घर देखबैत-
“ई बच्चा सबहक छिऐ। एकरा चैरखी-चैरखी घर कहैए। झुटकासँ खेलल जाइए।
जीबछ बाजल- हौ भाय, तूँ तँ बड़ खेलौड़िया बूझि पड़ै छह।
बचनू-
“हौ, जिनगीमे आउर छै की? खाइत-पीबैत, हँसी-चौल करैत बिता ली। सभ दिन कमेनाइ, सभ दिन खेनाइ। कोनो हर-हर, खट-खट नै। धिया-पुताले तँ हम अपने स्‍कूल खोलि देने छिऐ। खेती-पथारीक काजसँ लऽ कऽ रिक्शा चलौनाइ, ईंटा बनौनाइ सभ लूरि‍ हमरा अछि। धिया-पुता तँ देखिए कऽ सीखि लेत।
ओना जीबछ बचनूक गप सुनैत मुदा मन ताड़ीक खटाइन गंधपर अँटकल। होइ जे कखनि दू गिलास चढ़ाएब। नै तँ कम-सँ-कम आँगुरमे भिड़ा नाकोक दुनू पुड़ामे लगा ली। जीबछकेँ बचनू कहलक-
“भाय, ताबे तूँ सभ कि‍छु सेरियाबह, हम घरमे रिक्शा रखि‍ दइ छिऐ। काजसँ निचेन भऽ जाएब।
जीबछ सभ समान सेरियाबए लगल। रिक्शाकेँ गुड़कौने बचनू एकचारीमे
रखि‍ आँगन जा दुनू बच्चो आ पत्नीओकेँ कहलक-
“दुनू बाटिओ आ दुनू छिपलीओ नेने चलू।
कहि बचनू आगू बढ़ि गेल। पत्नीक मन खुशीसँ झूमि उठल। दुनू बच्चा दुनू बाटी नेने आगू बढ़ल। दुनू छिपली नेने पत्नी डेढ़िया लग ठाढ़ भऽ मुँहपर नुआ नेने कनडेरिए आँखिए दुनूकेँ देखैत। अपना दुनू गोटेले बचनू चारि-चारिटा पीस माछ, चारि-चारिटा कचड़ी आ अदहा किलो करीब मुरही-घुघनी मिला कऽ रखि‍, दुनू बच्चाकेँ एक-एक कचड़ी, एक-एक माछक कुटिया आ दू-दू मुट्ठी मुरही-घुघनी मिला कऽ देलक। दुनू बच्चा देखि कऽ चपचपा गेल। अपन-अपन बाटी बामा हाथे उठा दहिना हाथे खाइत विदा भेल। माए लग पहुँच‍‍ दुनू बच्चा अपन-अपन बाटी देखए देलक। बाटीमे घुघनीक मिरचाइक टुकड़ी आ कचड़ीमे सटल मिरचाइकेँ देखि माए कहलकै-
“बौआ, मिरचाइ बीछि कऽ रखि‍ लि‍हँ। तोरा सभकेँ कड़ू लगतौ।
तैबीच बचनू गमछाक एक भागमे मुरही-घुघनीकेँ मिला, चारि-चारिटा कचड़ी आ चारि-चारिटा माछक कुटिया फुटा, दुनू गोटेले रखलक। चबुतरेपर सँ बचनू घरवालीकेँ हाक पाड़ि कहलक-
“ई सभ लऽ जाउ।
अदहा मुँह झँपने बचनूक पत्नी सरधा चबुतरापर पहुँच‍‍ दुनू छिपली बचनूक आगूमे रखि‍ देलक। एकटा छिपलीमे मुरही कचड़ी आ दोसरमे घुघनी-माछ बचनू दऽ देलक। झुर माछक तरूआ देखि सरधाक मन हँसए लगल। मनमे एलै, कल्हुका जलखै तकक ओरियान भऽ गेल। दुनू छिपली तरा-ऊपरी रखि‍ दुनू हाथसँ पकड़ि आँगन विदा भेल।
दुनू गोटे –जीबछ आ बचनू- दुनू भाग बैसि बीचमे ताड़ीक डाबा, गिलास आ चखना रखलक। दुनू गिलासमे जीबछ ताड़ी ढारि, आगूमे रखि‍ आँखि मूनि, ठोर पटपटबैत मंत्र पढ़ए लगल। कनी काल मंत्र पढ़ि, आँखि खोलि तीन बेर ताड़ीमे आँगुर डुबा निच्चाँमे झाड़ि बाजल-
“हुअ भाय, आब पीबह।
छगाएल दुनू, तँए एक लगाइते तीन-तीन गिलास पीब लेलक। मन शान्त भेलै। मन शान्त होइते जीबछ सिगरेट निकालि एकटा अपनो लेलक आ एकटा बचनूओकेँ हाथमे देलकै। दुनू गोटे सिगरेट धड़ा पीबए लगल। सिगरेट पीबैत-पीबैत दुनूकेँ निशाँ चढ़ए लगल। निशाँ चढ़िते गप-सप्‍प करैक मन दुनू गोटेकेँ हुअ लगलै। एक मुट्ठी मुरही आ एक टुकड़ी माछ तोड़ि जीबछ मुँहमे लेलक। बचनूओ लेलक। मुँह महक घांेटि जीबछ बाजल-
“भाय, तोरा रिक्शा चला कऽ परिवार चलि जाइ छह?”
कचड़ी तोड़ि मुँहमे लैत बचनू उत्तर देलक-
“किए ने चलत। हमरा की कोनो कोठा बनबैक अछि जे गुजर नै चलत। तहूमे की हम रिक्शा बारहो मास थोड़बे चलबै छी। भरि बरसात चलबै छी। जहाँ बर्खा बन्न भेलै आकि महाकान्त भाइक चिमनीमे काज करै छी।
“नोकरीओ करै छह?”
“एहेन नोकरी तँ भगवान सभकेँ देथुन। अलबेला लोक छथि महाकान्त भाय। हुनकर खाली पूजीटा छि‍यनि‍। असली कारबारी हम दू गोटे छी। सरूप मुनसी आ हम। पजेबाक खरीद-बिकरीसँ लऽ कऽ कोइला मंगौनाइ, ओकर हिसाबबारी केनाइ हुनकर काज छि‍यनि‍। आ हमर काज पथेरीक देखभाल केनाइ, समैपर ओकरा दमकल चला, खाधिमे पानि देनाइसँ लऽ कऽ बजारसँ समान कीनि कऽ अननाइ आ चिमनीपर सँ घर-परक दौग-बरहा केनाइ रहैए।
“तब तँ खूब कमाइ होइत हेतह?”
“कमाइ जँ करए चाही तँ ठीके खूब हएत। मुदा से नै करै छी। एक सए रूपैआ रोज होइए। ओ घरवालीक हाथमे दऽ दइ छिऐ। बाँकी खेलौं-पीलांै। किएक तँ नजाइज पाइ जँ घरमे देबै तँ ओइसँ भाभन्स नै हएत।
दुनू गोटे डबो भरि ताड़ीओ आ चखनो खा-पीब गेल। एक दिस निशाँसँ दुनूक देह भँसियाइत, दोसर दिस जोरसँ पेशाब लागि‍ गेलै। उठैक मोने ने होइ। मुदा पेशाबो जोेरे होइत जाइत। दुनू गोटे उठि कऽ पेशाब करए गेल। जाबे पेशाब करैले बैसै ताबे बूझि पडै़ जे कपड़ेमे भऽ जेतै। मुदा कहुना-कहुना कऽ सम्हारि पेशाब करए बैसल। पेशाब बन्ने ने होइ। बड़ी काल पछाति‍ पेशाबो बन्न भेलै आ भक्को खुजलै।
चबुतरापर दुनू गोटे आबि कऽ बैसल। जीबछ कहलकै-
“भाय, हमरा डान्स करैक मन होइए।
जीबछक बात सुनि बचनू पल्था मारि बैस, ठेहुनपर दुनू हाथसँ बजबए लगल। मुदा ओइसँ अवाज नै निकलै। अवाज निकलै मुहसँ। जहिना-जहिना मुहसँ बोल निकलै तहिना-तहिना दुनू ठेहुनपर हाथ चलबै। तैबीच दुनू बच्चो चबुतरापर आबि थोपड़ी बजबए लगल। अँगनाक मुहथरिपर सरधा बैसि देखए लगली। जीबछ डान्स करए लगल। थोड़े काल पछाति‍ बचनूक मुँह दुखा गेलै। मुदा जीबछ डान्स करिते रहल। दुनू बच्चो थोपड़ी बजैबते रहल। जहिना बाढ़िक रेतपर हेलनिहार चीत गरे सूति केतौ-सँ-केतौ भँसिआ कऽ चलि जाइत तहिना बैसल-बैसल सरधाक मन भँसियाइत। तैबीच बचनू उठि कऽ आँगन गेल। घैलची परक घैलसँ पानि फेक नेने आएल। उल्टा कऽ घैल रखि‍, हाथमे औंठी रहबे करै, दुनू हाथे घैलक पेनपर बजबए लगल। लाजवाब बाजा। नचैत-बजबैत दुनू गोटे थाकि गेल। सूति रहल।
भोर होइते दुनू गोटे उठि, मुँह-हाथ धोइ रि‍क्‍शा लऽ वि‍दा भेल।
ऐ बेर आसिन अपन चालि बदलि लेलक। किएक तँ आन साल अधहा आसिनक पछाति‍ हथिया नक्षत्र अबै छल। से ऐ बेर नै भेलै। पहिने हथिए चढ़ल। दू दिन हथिया बितला पछाति‍ आसिन चढ़ल। ओना बूढ़-बुढ़ानुसक कहब छन्‍हि‍ जे दुर्गापूजामे हथिया पड़िते अछि, मुदा से नै भेलै। आसिनक इजोरिया पखक परीवकेँ दुर्गा पूजा शुरू होइत। ऐ बेर अमबसीए दिन हथिया चलि गेल। तहिना बर्खोक भेल। जइ दिन आसिन चढ़ल ओइ दिन घनघनौआ बर्खा भेल आ तेकर पछाति‍ फुहीओ ने पड़ल। झाँटक कोन गप। हथिया लेल ओरिऔल जरनो-काठी आ अन्नो-पानि सबहक घरमे रहिए गेल। मुदा तैयो किसान सबहक मनमे खुशी नै कमल। किएक तँ जँ हथियामे धानक खेतमे ठेंगाक हूर गड़त तँ धान हेबे करत। मुदा किछु गोटेक मनमे शंका जरूर होइ जे निचला खेतमे ने पानि लगल अछि मुदा ऊपरका खेतक धान केना फुटत? किएक तँ ऊपरका खेतक पानि टघरि कऽ निचला खेतमे चलि गेल। किछु खेतक पानि काँकोड़क बोहरि देने तँ किछु खेतक पानि मूसक बिल देने बहि गेल। जइसँ बर्खाक तेसरे दिन ऊपरका खेत सभ सूखि गेल। ओना दशमीक मेलो देखिनिहारक आ मेलामे दोकानो-केनिहारक मनमे खुशी। किएक तँ रूख-सुखमे नाचो-तमाशा जमत आ देखिनिहारोक भीड़ जुटत। ओना पछि‍ला सालक सभ छगाएल। किएक तँ जइ दिन सतमी मेला शुरू भेल ओइ दिन तेहेन झाँट आ पानि भेल जे मेलाक चुहचुहीए चलि गेलै।
सुखार समए रहने महाकान्त ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल सोचए लगल। जहियासँ चिमनी शुरू केलौं तहियासँ एहेन समए नै पकड़ाएल छल। आन साल दियारीक पछाति चिमनीक काजमे हाथ लगबै छेलौं, से ऐ बेर भगवान तकलनि। कहुना-कहुना तँ दियारी अबैत-अबैत दू खेप भट्ठा जरूर लागि‍ जाएत। सरकारोक योजना नीक पकड़ाएल। एक दिस खरन्जाक स्कीम तँ दोसर दिस इन्दिरा आबासक घर। तेतबे नै स्कूल आ अस्पताल सेहो बनत। ई सभ तँ अपने गामटा मे बनत से नै, आनो-आन गाममे बनत। सालो भरि ईंटाक महगीए रहत। ओते पुराइए ने पाएब। एते बात मनमे अबिते मुहसँ हँसी निकलल। तखने पत्नी रागिनी बेड टी नेने आबि चुप-चाप सिरमा दिस ठाढ़ भऽ पतिकेँ मुस्‍कीआइत देखलनि। पतिक मुस्की देखि रागिनी मोने-मन सोचए लागलि, की बात छिऐ जे ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल मुस्करा रहल छथि। मुदा बिनु किछु बजनइ टेबुलपर चाह रखि‍, ओरिया कऽ नाक पकड़ि डोला देलकै। नाक डोलैबते महाकान्त उठि कऽ बैसि रहल। आगूमे रागिनीकेँ ठाढ़ देखि चौबन्निया मुस्की दैत आँखिक इशारासँ पलंगपर बैसैले रागिनीकेँ कहलक। पतिक मूड देखि रागिनी ससरिए जाएब नीक बुझलक। 
महाकान्त आ रागिनी, संगे-संग कौलेजमे पढ़ने। जहिए दुनू गोटे बी.ए.मे पढ़ै छल तहिए दुनूक बीच प्रेम भऽ गेल। दुनू सम्पन्न परिवारक। ओना पढ़ैमे दुनू ओते नीक नै जेते दुनूक रिजल्ट नीक होइ। दुनूकेँ मैट्रिको आ इन्टरोमे फस्ट डिविजन भेल रहए। तेकर कारण मेहनति‍ नै पैरबी छल। नीक रिजल्ट दुआरे संगीओ-साथीक बीच आ शिक्षकोक बीच दुनूक आदर होइ। दुनूक बीच सम्बन्ध बी.ए. आनर्सक क्लासमे भेलै। किएक तँ आनर्समे कम विद्यार्थी रहने गप-सप्‍प करैक अधिक समए भेटै। दुनूक बीच सम्बन्ध गप-सप्‍पसँ शुरू भेल। तेकर पछाति‍ किताबक लाथे डेरोमे एनाइ-गेनाइ शुरू भेल। सम्बन्ध बढ़िते गेलै। संगे बजार बुलनाइ, किताब-कापी खरीदनाइसँ लऽ कऽ कपड़ा, जुत्ता-चप्पल खरीदनाइ धरि संगे हुअ लगलै। सिनेमा तँ मेटनीओ शोमे देखए लगल। जइसँ आंगिक सम्बन्ध सेहो शुरूह भऽ गेलै। एकटा डबलरूम लऽ दुनू गोटे डेरो एकठाम कऽ लेलक। दुनूक बीचक सम्बन्धक चर्चा खाली विद्यार्थीए आ शिक्षके धरि नै रहि दुनूक पिता धरि पहुँच‍ गेलै। मुदा दुनूक पिताक दू विचार। तँए बूझिओ कऽ दुनू अनठा देलक। महाकान्तक पिता सुधीर जुआन-जहानक खेल बुझैत तँ रागिनीक पिता रमानन्दक सम्पन्न परिवार आ पढ़ल-लिखल लड़ि‍का बूझि बेटीक भार उतरब बुझैत।
एम.ए. पास केलापर दुनूक बि‍आह भऽ गेलै। सुधीरक परिवार एक पुरखियाह। अपनो भैयारीमे असगरे आ बेटो तहिना। ओना बेटी चारिटा, जे सासुर बसैत। परिवारक काजसँ महाकान्तकेँ कम्मे सरोकार। तँए भरि-भरि दिन चौखड़ी लगा जुओ खेलैत आ शराबो पीबैत। जे पितो बुझैत। महाजनीक कारोबार, तँए भरि दिन सुधीर रूपैएक हिसाबबारी आ धने लेन-देनमे बेस्‍त रहैत। महाकान्तक क्रियाकलाप देखि एक दिन खिसिआ कऽ सुधीर कहलखिन-
“बौआ, बड़ कठिनसँ धन होइ छै। एना जे भरि-भरि दिन बौआएल घुमै छह, तइसँ कएक दिन लछमी रहथुहुन। तँए किछु उद्यम करह।
पिताक बात महाकान्त चुपचाप सुनि लेलक। किछु बाजल नै। बेटाकेँ चुप देखि फेर कहलखिन-
“पाँच लाख रूपैआ दइ छिअ, चिमनी चलाबह। उत्तरबरिया बाधमे अपने बीस बीघा ऊँच जमीन छह, ओइमे चिमनी बना लैह।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि महाकान्तो चुप भऽ गेल। पिताक मनमे रहनि‍ जे जखने काजमे लागि‍ जाएत तखने चालि-ढालि बदलि जेत्तै। किएक तँ काज ओहेन कारखाना होइए, जइमे मनुख पैदा लैत।
आने साल जकाँ अपन काज बचनू करए लगल। पथेरीक देखभालसँ लऽ कऽ हाट-बजार आ महाकान्तक घरपर जा रागिनीकेँ ब्राण्डीक बोतल पहुँचबै धरि। महाकान्तो अपन आने साल जकाँ निअमित काज करए लगल। सबेरे आठ बजेमे जलखै खा मोटर साइकिलसँ चिमनीपर चलि अबैत। चिमनीपर आबि तीनू गोटे -महाकान्त, सरूप, बचनू- भरि मन गाँजा पीब महाकान्त चिमनीक कार्यालयमे सूति रहैत। बारह बजेमे बचनू उठा दैत। उठिते महाकान्त मुनसीसँ रूपैआ मांगि बचनूएकेँ ब्राण्डी किनैले बजार पठा दैत आ अपने मुँह-हाथ धोइ खाइले घरपर विदा होइत। घरपर पहुँच‍ धड़-फड़ कऽ खाइत आ चोट्टे घूमि कऽ चिमनीपर आबि सूति रहैत, जे चारि बजे उठैत। बचनूओ बजारसँ शराब खरीद महाकान्तक घरपर जा रागिनीकेँ दऽ दैत। कौलेजे जिनगीसँ दुनू गोटे -महाकान्तो आ रागिनीओ- शराब पीबैत। ओना रागिनी ब्राण्डीएटा पीबैत मुदा महाकान्त सभ कि‍छु खाइत-पीबैत। गाँजा, भाँग, इंग्लीस, पलोथि‍न, अफीम, ताड़ी सभ कि‍छु। जहन‍‍ जे भेटल तहन‍‍ सएह।
आइ जहन‍‍ बचनू ब्राण्डीक बोतल लऽ रागिनी लग पहुँचल तँ रागिनीक नजरिमे नव विचार उपकलै। आन दिन रागिनी बचनूसँ बोतल लऽ रखि‍ लैत। मुदा आइ आदरसँ बचनूकेँ हाथक इशारासँ पलंगपर बैसैक इशारा केलनि। दुनू गोटे, पलंगपर आमने-सामने बैसि गेल।
रागिनी बाजलि-
“बहुत दिनसँ मनमे छेलए जे अहाँसँ भरि मन गप करितौं। मुदा अहाँ तेते औगताएल अबै छी जे किछु कहैक मौके ने भेटैए।
बचनू-
“गिरहतनी, हम तँ मुरूख छी। अहाँ पढ़ल-लिखल छी। अहाँक गप्पक जवाब हमरा बुते थोड़े देल हएत।
रागिनी-
“कोनो की हम अहाँसँ शास्त्रार्थ करब जे जवाब देल नै हएत। अपन मनक बेथा कहब। जे सभकेँ होइ छै।
मनक बेथा सुनि बचनू मोने-मन सोचए लगल जे हम सभ गरीब छी, हरिदम एकटा-ने-एकटा भूर फूटले रहैए। मुदा रागिनी तँ सभ तरहे सम्पन्न छथि। नीक भोजन, दुनू परानी पढल-लिखल। तहन‍‍ की मनमे बेथा छन्‍हि‍ जे हमरा कहती। मुदा तैयो मनकेँ असथिर कऽ रागिनी दिस देखए लगल। मनमे उत्सुकता बढै़। मुदा रागिनीक चेहरामे, डुमैत सुरूज जकाँ, मलिनता बढ़ैत।
रागिनी-
“हमरासँ अहाँ बहुत नीक जिनगी जीबै छी।
अपन प्रशंसा सुनि बचनू गद-गद भऽ गेल। आँखि चौकन्ना हुअ लगलै। मनमे ओहेन-ओहेन विचार सेहो उपकए लगलै जेहेन आइ धरि मनमे नै आएल छेलै। मुदा किछु बाजै नै।
बचनूकेँ चौकन्ना होइत देखि रागिनी कहए लागलि-
“जहिना अकासमे चिड़ैकेँ उड़ैत देखै छिऐ, तहिना अहूँ छी। मुदा हम पिजरामे बन्न चिड़ै जकाँ छी। जहन‍‍ पढ़ै छेलौं तहन‍‍ यएह सोचै छेलौं जे कोनो कौलेजमे प्रोफेसर बनि जिनगी बिताएब। से सभ मोनेमे रहि गेल। भरि दिन अँगनामे घेराएल रहै छी। ने केकरोसँ कोनो गप-सप्‍प होइए आ ने अँगनासँ निकलि केतौ जा सकै छी। तहूमे असगरूआ परिवार अछि। लऽ दऽ कऽ एकटा सासु छथि। ने दोसर दियादनी आ ने कियो दोसर। भरि दिन पलंगपर पड़ल-पड़ल देह-हाथ दुखा जाइए। जाधरि पढ़ै छेलौं ताधरि दुनियाँ किछु आरो बुझाइ छल। मुदा आब किछु आर बुझाइए। कखनो मन होइए तँ किछु पढ़ै छी नै तँ टी.बी. देखै छी। पढ़िए कऽ की हएत। ने दोसरकेँ बुझा सकै छी आ ने अपना कोनो काज अछि, जइले सीखब। जानवरोसँ बत्तर जिनगी बनि गेल अछि। जहिना गाए-महिंस भरि पेट खेलक आ खुट्टापर बान्हल रहल तहिना भऽ गेल छी। मुदा मनुख तँ मनुख छी। जाधरि अपना मनक बात दोसरकेँ नै कहबै आ दोसरक पेटक बात नै सुनबै, ताधरि नीक लगत। अनेरे लोक किए पढ़ैए। जँ लकीरक फकीरे बनि जीबैक छै?”
सूखल मुस्की दैत बचनू बाजल-
“गिरहतनी, अहाँकेँ कोन चीजक कमी अछि जे कोनो तरहक दुख हएत?”
रागिनी-
“अहाँ जे कहलौं ओ ठीके कहलौं। किएक तँ एहनो बुझिनिहारक कमी नै अछि। एहनो बहुत लोक अछि जे धनेकेँ सभ कि‍छु बुझैए। मुदा धन तँ खाली शरीरक भरण-पोषण कऽ सकैए, मनक तँ नै। तीन सालसँ बेसी ऐठाम एला भऽ गेल मुदा ने एक्कोटा सिनेमा देखलौं आ ने एक्को दिन केतौ घुमै-फिरैले गेलौं। जाधरि बेटी माए-बाप लग रहैए ताधरि सभ कि‍छु -धन-सम्पति‍ कुटुम-परिवार- अपन बूझि पड़ै छै, मुदा सासुर पएर दैते सभ बीरान भऽ जाइ छै। तहिना माए-बापक बीच जे आजादी बेटीकेँ रहै छै ओ सासुर एलापर एकाएक बन्न भऽ जाइ छै।
बचनू-
“जँ केतौ जाइक मन होइए वा देखैक मन होइए तँ नैहर किए ने चलि जाइ छी?”
रागिनी-
“जहिना सासुर तहिना नैहरो भऽ गेल। जहिना सासुरमे पुतोहु बनि जीबै छी तहिना नैहरोमे पाहुन बनि जाइ छी। जेना हम्मर किछु ऐ घरमे अछिए नै। जे घर अप्पन नै रहत ओइ घरमे केकरा कहबै जे हम फल्लाँठीम जाएब। जनम देनिहारि माएओ आने बुझैए। तैपर सँ भाए-भौजाइक जुइत। ई तँ नैहरक गप कहलौं आ ऐठामक जे होइए से हमहीं बुझै छी। बुढ़हा ससुर जहन‍‍ आँगन औता तँ बूझि पड़त जे जेना अस्सी मन पानि पड़ल छन्‍हि‍। बुढ़ही-सासुसँ तँ कनी हँसिओ कऽ गप्प करता मुदा हमरा देखिए कऽ झड़कबाहि उठि जाइ छन्‍हि‍। जँ कहियो माथपर नुआ नै देखलनि तँ बुढ़हीकेँ अगुआ कऽ की कहता की नै, तेकर कोनो ठेकान नै। भरि-भरि दिन, पहाड़ी झरना जकाँ, आँखिसँ नोर झहरैत रहैए। कियो पोछनिहार नै।
बचनू-
“गिरहतनी, हमरा बड़ देरी भऽ गेल। महाकान्त भाय बिगड़ता।
रागिनी-
“अच्छा, चलि जाएब। कहै छेलौं जे हरिदम तरे-तर मन औंढ़ मारैत रहैए जे लछमी बाइ जकाँ तलवार उठा परदा-पौसकेँ तोड़ि दी, मुदा साहस नै होइए। केरा भालरि जकाँ करेज डोलए लगैए। आइ जहन‍‍ अपन मनक बात अहाँकेँ कहलौं तँ मन कनी हल्लुक बूझि पडै़ए।
बचनू-
“तहन‍‍ तँ गिरहतनी हमहीं नीक छी।
रागिनी-
“बहुत नीक। बहुत नीक। एते काल जे अहाँसँ गप केलौं से जेना बूझि पड़ैए जे जेना पाकल घाउक पीज निकललापर जे सुआस पड़ै छै तहिना भऽ रहल अछि। आब सभ दिन एक घंटा गप्प कएल करब। अहाँ कियो आन छी। घरेक लोक छी कि‍ने।
एक टकसँ बचनू रागिनीक आँखि-पर-आँखि दऽ हृदए देखए लगल। तहिना रागिनीओ बचनूक हृदए पढ़ैए लागलि।

¦¦¦

No comments:

Post a Comment