Pages

Wednesday, October 23, 2013

असल बेटा

असल बेटा

ि‍नर्मली स्‍टेशनसँ पच्‍छि‍म एकटा गाम छै छजना। छजना मधुबनी जि‍लाक लौकही थानामे पड़ै छै। बेस झमटगर गाम। पढ़ल-लि‍खल लोकक गाम। इंजीनियर-डाक्‍टर आ आनो केतेक सरकारी नौकरी करैत गामक लोक। मास्‍टरक कमी नै। ि‍नर्मली बाजार लग रहबाक कारण, कि‍छु लोक बि‍जनैस-बेपार करैत। जेकरा कोनो नौकरी नै, ओ ि‍नर्मली बजारक सेठ-साहुकार ओइठाम नोकरी कऽ अपन गुजर-बसर करैत। कि‍छु लोक ि‍नर्मली बजारमे नि‍जि‍ स्‍कूल खोलि‍ अपन धंधा करैत। कि‍छु लोक बजारेमे चटि‍या सभकेँ ट्यूशन पढ़बैत आ ओइसँ जे आमद होइत तइसँ बेगरता शांन्‍त करैत।
  छजना गाममे एकगोटे छल जीतन मुखि‍या। जाति‍क मलाह, मुदा माछ मारैक कोनो लूरि नै। अपन जाति‍क पेशा छोड़ि‍ ि‍नर्मली टि‍शनक बगलमे एकटा चाह दोकान चला अपन परि‍वारक गुजर-बसर करैत। चाह पीबैले रेलबेक कर्मचारी सभ अबैत, चाहो पीबैत आ रंग-बि‍रंगक गपो करैत। टि‍शनक बगलमे चाहक दोकान हेबाक कारणे ट्रेन पकड़ैबला मोसाफि‍र सभ सेहो चाह पीबैत। जीतन नीक चाह बेचैए‍ तँए आनो गहिंकी सभ दोकानपर आबि‍-आबि‍ चाह पीबैत। जीतनकेँ धीरे-धीरे नीक आमदनी हुअ लगल। बजारमे रहैक कारण आ नीक-नीक लोकक गप सुनि‍ जीतनो बुधि‍यार भऽ गेल। चाहक संग ि‍बस्‍कुटो राखए लगल। जइसँ आमदनी आरो बढ़ि‍ गेल। जीतन सेन्‍ट्रल बैंक ि‍नर्मलीमे खाता खोला कि‍छु रूपैआ खातामे जमा करए लगल।
  ि‍नर्मली टि‍शनसँ दच्‍छि‍न ि‍नर्मली हाइ स्‍कूल। स्‍कूलक सटले चाउरक मि‍लक रमना। बि‍स-पच्‍चीस बरख पहि‍ने ओइ रमनापर धान सुखाएल जाइत छल। मुदा एम्‍हर आबि‍ कऽ मि‍ल बन्न भऽ गेल अछि‍। तँए आब रमनापर घास-पात जनमि‍ गेल अछि‍। जीतनकेँ मालूम भेल जे मि‍लक रमनाबला जमीन बीकि‍ रहल अछि‍ ई गप सुनि‍ जीतन मि‍लक मनेजर मि‍श्राजी लग गेल। मि‍श्राजी कखनो-कखनो जीतन दोकानपर चाह पीबै छल। जीतनकेँ देखैत बाजल-
आबह-आबह जीतन बैसह।
जीतन हाथ जोड़ि‍ मि‍श्रा जीकेँ प्रणाम करैत एक बगल ठाढ़ भऽ गेल, बैसल नै। मि‍श्राजी केतबो बैसैले जीतनकेँ कहलखि‍न मुदा जीतन नै बैस बाजल-
माि‍लक ठीके छै, हम तुरत्ते चलि‍ जाएब। कि‍छु गप करबाक अछि‍ तँए एलौं।
मि‍श्राजी लग तीन-चारि‍ गोटे पहि‍नेसँ बैसल छल। मि‍श्राजी पुछलखि‍न-
कोनो खास बात छह की?”
जीतन बाजल-
हँ, माि‍लक। मुदा अखनि‍ अपने लग आरो लोक सभ छथि‍न तँए हम दोसर घड़ी आएब।
मि‍श्राजी कहलखि‍न-
ठीक छै। ठीक छै। तोरा बेसी नै रोकबह, तोहर चाहक दोकान बरदेतह। हम साँझमे बजार जाएब तँ तोरे दोकानपर चाहो पीअब आ गपो बूझि‍ लेब। जा।
जीतन बाजल-
बेस मालि‍क।
जीतन अपना दोकानपर आबि‍ गेल। साँझखि‍न मि‍श्राजी दोकानपर एला। जीतन एकटा स्‍पेशल चाह बना मि‍श्राजीक हाथमे देलक। मि‍श्राजी चाहक चुस्‍की लैत पुछलखि‍न-
कहए जीतन, कोन गपे हमरा डेरापर गेल छेलह?”
जीतन बाजल-
माि‍लक, सुनलि‍ऐ हेन जे रमनाबला जमीन बि‍करू छै। सएह बुझैले गेल रही।
मि‍श्राजी कहलखि‍न-
हँ, जमीन तँ बीकि‍ रहल अछि‍। अदहासँ बेसी जमीन बि‍कि‍ओ गेल। केकरा लेल तँू गप करै छह।
जीतन बाजल-
माि‍लक, एक कट्ठा जमीनक केते रूपैआ देबए पड़त।
मि‍श्राजी कहलखि‍न-
तूँ लेबह तँ तोरा एक्के लाखमे दि‍या देबह। दोसर लेल सबा लाख।
जीतन हाथ जोड़ैत बाजल-
हमहीं लेब मालि‍क। छजनासँ आबि‍ कऽ दोकान खोलैमे अबेर भऽ जाइए। लगमे रहब तँ सबेरे दोकान खोलब आ देरीसँ बन्न करब तँ आमदनीओ दोबर भऽ जाएत। जँ जमीन भऽ जाएत तँ एकटा खोपड़ी लटका देबै।
मि‍श्राजी कहलखि‍न-
ठीक छै। ठीक छै। काल्हि‍ भोरे आठ बजे आबह। जमीनो देखा देबह आ तोरा नामे बुको कऽ देबह। जेतेक रूपैआ हेतह से ताबए जमो कऽ दि‍अ। बाँकी मास भरि‍मे पूरा कऽ दि‍हक। महि‍ना दि‍न पछाति‍ सेठजी दि‍ल्‍लीसँ एता। सबहक रजि‍स्‍ट्री हेतै तहीमे तोरो हेतह।
जीतन हाथ जोड़ैत बाजल-
ठीक छै माि‍लक। हम आठ बजे आबि‍ जाएब।
मि‍श्राजी जखनि‍ चाहक दाम देबए लगला तँ जीतन कहलखि‍न-
नै मालि‍क, पाइ राखू।
मि‍श्राजी कहलखि‍न-
नै जीतन, अखनि‍ नै। जखनि‍ तोरा जमीन भऽ जेतह तखनि‍ चाहो पीअब आ बि‍स्‍कुटो खाएब। अखनि‍ पाइ रखि‍ लए। ई कहि‍ मि‍श्राजी जीतनक गल्‍लापर एकटा सि‍क्का रखि‍ बजार दि‍स बि‍दा भऽ गेला।
      अगि‍ला दि‍न भोरे जीतन मि‍श्राजीक डेरापर पहुँचल। मि‍श्राजी रमनेक बगलमे अपन घर बनेने छथि‍। जीतनकेँ देखते मि‍श्राजी पहि‍ने जमीन देखौलखि‍न। जीतनकेँ जमीन पसि‍न भऽ गेलै। गद्दीपर आबि‍ अपना नामे बुक करा लेलक। बैंकसँ रूपैआ नि‍कालि‍ मि‍श्राजी लग जमा कऽ आएल। पचासी हजार टाका खातामे छेलै। अस्‍सी हजार नि‍कालि‍ मि‍श्राजी लग जमा कऽ आएल। अगि‍ला महि‍नामे सेठजी दि‍ल्‍लीसँ आबि‍ सभकेँ जमीन लि‍खि‍ देलखि‍न। जीतन अपना जमीनमे माटि‍ भरा एकटा खोपड़ी बना ओइमे रहल लगल। आब ओ सबेरे चारि‍ए बजे दोकान खोलए आ राि‍तक दस बजे बन्न करए।
  जीतन जे चारि‍ बजे भाेरे दोकान खोलि‍ चाह बनाबए तँ सभसँ पहि‍ने एक कप चाह स्‍टेशन मास्‍टर अनील चटर्जीकेँ दऽ अबनि‍। तेकर पछाति‍ ओ अपनो चाह पीबए आ बेचबो करए। ि‍नर्मली स्‍टेशनक स्‍टेशन मास्‍टर अनील चटर्जी लगधग पचपन-छप्‍पन बर्खक बेकती। पत्नी शांति‍नि‍केतनमे प्रोफेसर। एकटा बेटा आसनसोलमे इंजी‍नियर दोसर बेटा अमेरि‍कामे इंजीनियर। बेटी कलकत्तामे बैंक मनेजर। तँए अनील चटर्जी असगरे ि‍नर्मलीमे रहि‍ नोकरी करै छथि‍। चटर्जीक वि‍चार रहनि‍ जे पत्नी नोकरी छोड़ि‍ हमरा संग रहथि‍। मुदा पत्नीक वि‍चार ओइसँ भि‍न्न रहनि‍। हुनकर वि‍चार रहनि‍ जे एम.ए.-पी.एच.डी. केलौं तँ ओकरा बेकार किए जाए देब। पचास हजार टाका महि‍ना दरमाहा भेटैए। जखनि‍ कि‍ चटर्जी साहैबकेँ पचीसे हजार भेटै छन्हि‍। तँए चटर्जी साहैब असगरे रहै छथि‍। एकटा होटलबला दि‍नक खेनाइ डेरापर पहुँचा दइ छन्‍हि‍। रतुका खेनाइ होटलेमे जा कऽ खाए पड़ै छन्‍हि‍।
जीतन ि‍दनमे चारि‍ बेर हुनका टेबूलपर चाह पहुँचा अबै छन्‍हि‍।
रवि‍ दि‍न दस बजे दि‍नमे जखनि‍ जीतन चाह लऽ कऽ चटर्जी साहैब लग गेल तँ चटर्जी साहैब जीतनकेँ पुछलखि‍न-
कहऽ जीतन की‍ हाल-चाल छै।
जीतन जवाब देलकनि‍-
सर, सभ ठीक छै।
आछा जीतन, ई बताबह तोरा केते बाल-बच्‍चा छह।
सर, हमरा दूटा बेटा आ एकटा बेटी अछि‍। जेठकाक नाओं सुकल आ छोटकाक बिकल। सभसँ छोट बेटी अछि‍ जेकर नाओं सुकनी रखने छी। कि‍एक तँ ओ शुक्कर दि‍न जनमल छेलए।
चटर्जी साहैब तीन बर्खसँ ि‍नर्मलीमे स्‍टेशन मास्‍टर छथि‍। तँए थोड़-बहुत मैथि‍ली बजै छला। चटर्जी साहैब जीतनकेँ फेर पुछलखि‍न-
आछा, ई बताबह। बाल-बच्‍चा सभकेँ पढ़बै छहक की नै।
जीतन बाजल-
कहाँ पढ़ाबै छि‍ऐ सर। दुनू बेटा दोकानेपर रहैए। बेटी गाममे रहैए। एकटा बकरी रखने अछि‍।
चटर्जी साहैब कहलखि‍न-
नै जीतन, ई नीक बात नै छी। तँू अपना बच्‍चाकेँ स्‍कूल नै भेजै छह। पढ़बै-लि‍खबै नै छहक। ऐसँ हमरा तोरा प्रति‍ बड़ दुख छह। देखह हमर एकटा बेटा अमेरि‍कामे इंजी‍नियर अछि‍। दोसर आसनसोलमे इंजीनियर अछि‍ आ वाइफ शांति‍ नि‍केतनमे प्रोफेसर आ बेटी बैंक मनेजर अछि‍। हम असगरे एतए रहै छी। दुख सहै छी। सभ अपन-अपन रूपैआ कमाइए। देखह जीतन, काल्हि‍सँ तोहूँ अपन बेटी-बेटीकेँ पढ़ेनाइ शुरू करह। नीकसँ पढ़ाबह। इंजीनि‍यर-डाक्‍टर बनाबह। हमर फादर कलकत्तामे मोटि‍याक काज करैत रहथि‍। बुझहकल जीतन? हमरा बातपर धि‍यान दहक। काल्हि‍ एगारह बजे हम तोरा दोकानपर आएब। जँ तोरा दुनू बेटाकेँ चाहक दोकानपर देखबह तँ तोरा हाथक चाह पीअब छोड़ि‍ देब।
जीतन हाथ जोड़ैत बाजल-
सर, काल्हि‍सँ बच्‍चा सभकेँ इसकुल पठेबै।
चटर्जी साहैब बजला-
सुनह जीतन, सरकारी स्‍कूलमे पढ़ाइ नै होइ छै। तूँ अपना बेटा-बेटीकेँ कन्‍भेन्‍टमे पढ़ाबह। आ डेरापर ट्यूशन सेहो पढ़ाबह।
जीतन हाथ जोड़ैत बाजल-
ठीक छै सर। ज्ञान भारती इस्‍कूलमे नाओं लि‍खा देबै। ओइ इसकुलक हेड मास्‍टर हमरे गामक गोपाल साहु छी। हमरा दोकानपर सभ दि‍न साँझमे चाह पीबैले अबै छथिन। आइ साँझमे हुनकासँ गप करब।
चटर्जी साहैब बजला-
आछा जीतन, आब जाह। हमरा गपक खि‍याल रखि‍हऽ।
जी सर, एकदम खि‍याल रखब। कहि‍ जीतन अपना दोकानपर आबि‍ गेल।
  साँझमे जखनि‍ गोपाल साहु चाह पीबैले दोकानपर एला तँ जीतन हुनकासँ दुनू बेटा आ बेटीक पढ़ाइ लेल गप केलक।
पचास टाका महि‍नामे तीनू बच्‍चाकेँ पढ़ा देब। ई बात गोपाल साहु कहलखि‍न।
जीतन गोपालजीसँ एकटा ट्यूशनि‍याँ मास्‍टरक सेहो बेवस्‍था करए कहलकनि‍। गोपालजी कहलखि‍न-
हमहीं पढ़ा देब अहाँ चि‍न्‍ता नै करू। महि‍नामे सए टाका देबए पड़त। पहि‍ने काल्हि‍ दस बजे कन्‍भेन्‍टपर आबि‍ तीनूक नाम लि‍खाउ।
जीतन हाथ जोड़ैत गोपालजीकेँ कलकनि‍-
बहुत-बहुत धैनवाद।
गोपाल साहु चाह पीब चलि‍ गेला। दोसर दि‍न जीतन दुनू बेटा आ बेटीकेँ लऽ स्‍कूलपर पहुँच नाओं लि‍खा देलक। साँझमे गाम जा पत्नीओकेँ ि‍नर्मलीए आनि‍ लेलक। पूरा परि‍वारक संग जीतन आब ि‍नर्मलीएमे रहए लगल। एकटा घर रहबै करै एकटा ओरो एकचारी टांगि‍ लेलक। तीनू धि‍या-पुता सभ दि‍न स्‍कूल जाए-अबए लगलै। साँझे-साँझ गोपालजी ट्यूशन पढ़बए जीतनक डेरापर आबए लगलखि‍न।
  समए बि‍तैत देरी नै होइ छै। आइ जीतन ि‍नर्मली हाइ स्‍कूलक बगलमे रमनाबला जमीनपर तीन मंजि‍ला मकान बना लेलक। आब जीतन चाहक दोकान छोड़ि‍ देलक। कि‍एक ने छोड़त दुनू सुकल आ बि‍कल इंजीनियर भऽ गेल। बेटी-सुकनी ि‍नर्मली कन्‍याँ उच्‍च वि‍द्यालयमे शि‍क्षि‍का पदपर कार्यरत भेली। जखैन कि‍‍ जेठका बेटा-सुकल मुम्‍बइमे इंजीनियर आ छोटका बेटा-बि‍कल दि‍ल्‍लीमे इंजीनियर।
  जीतनक इच्‍छा नै रहए जे चाहक दोकान छोड़ी मुदा बेटा-बेटीक जि‍द्दक कारण दोकान छोड़ए पड़लै। बेटीक जि‍द्द बेसी रहनि‍ कि‍एक तँ ि‍नर्मलीएमे नौकरी करै छथि‍न। मुदा जीतनक इच्‍छा रहै जे एही चाहक दोकानसँ हम एते केलौं तँए एकरा बन्न केनाइ ठीक नै हएत।
  तीनू सन्‍तानक बि‍आह-दुरागमन भऽ गेलै। जेठका बेटा सुक्कल मुम्‍बइमे मकान खरीद ओतइ बसि‍ गेल। छोटका बेटा दि‍ल्‍लीमे जमीन कीनि‍ आलीसान मकान बनेलक। मुदा जीतनक ऊपर दुखक पहाड़ टूटि‍ पड़ल। पत्नी-जीतनी जीतनकेँ छोड़ि‍ दुनि‍याँसँ चलि‍ गेली। माएक कि‍रि‍याक्रममे दुनू भाँइ गाम आएल छल। माएक मरला पछाति‍ सुकनी बापे संग रहल लगली। सुकनीक दुलहा शंकरजी इलाहाबाद बैंक दरभंगामे नोकरी करै छथि‍। शनि‍ए-शनि‍ राति‍मे ि‍नर्मली अबै छथि‍ आ सोमे-सोम भोरे दरभंगा चलि‍ जाइ छथि‍। सुकनी अपना पि‍ता लग रहि‍ हुनक सेवा-टहल करैत नोकरी करैए।
  पत्नीक मुइला तीि‍नए मास पछाति‍ जीतनकेँ लकबा लपकि‍ लेलक। सुकनी पि‍ताकेँ लेने आर.बी.मेमोरियल नि‍जि‍ अस्‍पतालमे भर्ती करौलक कि‍एक तँ सरकारीमे इलाज बढ़ि‍या जकाँ सभकेँ नै होइ छै। पि‍ताक बि‍मारीक खबरि‍ दुनू भैयाकेँ सुकनी मोबाइलपर देलक। दुनू भाँइक बेस्‍तता तंगी आबए तँ नै देलकै मुदा रूपैआ पठा देलकै आ कहलकै जे बढ़ि‍याँ जकाँ इलाज कराही। सुकनी आ हुनकर दुल्हा शंकरजी छुट्टी लऽ जीतनक देख-रेख करए लगलखि‍न। एक हप्‍ता बाद आरबी मेमोरि‍यलक डाक्‍टर सुकनी आ शंकरजीकेँ कहलखि‍न-
रोगीकेँ आब घरे लऽ जाउ। ई आब कि‍छुए दि‍नक मेहमान छथि‍। घरेपर जेतेक सेवा-टहल हएत करै जेबनि‍।
डाक्‍टर साहैबक बात सुनि‍ सुकनी कानए लगल। शंकरजी अस्‍पतालक बकाया चुक्‍ता कऽ एकटा गाड़ी आनलनि‍। ओइ गाड़ीसँ सभ कि‍यो ि‍नर्मली एला। ि‍नर्मली आबि सुकनी भैया सभकेँ सभ समाचार बता देलक। दरभंगासँ एलाक तेसरे दि‍न भने जीतन दम तोड़ि‍ देलक। सुकनीक कनैत-कनैत आँखि‍ लाल भऽ गेलै। गोपालजी मास्‍टर साहैबकेँ पता लगलनि‍ तँ जि‍गेसामे एलखि‍न। सुकनीकेँ असगरे देखि‍ गोपालजी फोनपर दुनू भाँइकेँ जनतब देलखि‍न। गोपालजी सुक्कलकेँ मोबाइलपर पुछलखि‍न-
लहाशकेँ दाहसंस्‍कार कएल जाए आकि‍ अहाँक एला पछाति‍ कएल जेतै?”
सुकल आ बि‍कल दुनू भाँइ कहलखि‍न-
नै गुरुदेव, जाबे धरि‍ हम दुनू भाँइ नै आबि‍ ताबे धरि‍ हमरा बाबूजीकेँ बरफमे राखल जाए। हम सभ बाबू जीक दर्शन करब तेकर बाद दाह-संस्‍कार करब। हम सभ प्‍लेनसँ पटना आएब आ पटनासँ नि‍जि‍ गाड़ी भाड़ा कऽ ि‍नर्मली आएब।
जीतनक मरलाक तेसर दि‍न दुनू भाँइ अपन-अपन परि‍वारक संग बेलेरो गाड़ीसँ ि‍नर्मली पहुँचल। भैया सभकेँ देखि‍ सुकनी कनैत दुनूक पएरपर गि‍र पड़ल। सुकल-बि‍कल अपना बापक पएरपर माथ रगड़ैत-रगड़ैत कानि‍ कऽ आँखि‍ लाल कऽ लेलक। गोपाल बाबूकेँ खबरि‍ भेल तँ ओहो एला। गोपाल बाबूकेँ देखि‍ते दुनू भाँइ हुनका पएरपर गिर आरो जोर-जोरसँ कानए लगल। गोपाल बाबू दुनू भाँइकेँ चुप हुअ कहलखि‍न-
दाह-संस्‍कारक तैयारी करै जाह।
तुरत्ते लकड़ी-सरर-घी-कपड़ा इत्‍यादि‍ इंजाम भेल। तीलजुगा नदीक कछेरमे जीतनक दाह-संस्‍कार कएल गेल। जेठका बेटा सुकल पि‍ताक मुँहमे आगि‍ देलकनि‍। छोट भाए बि‍कल भोज-भातक इंजाममे लगि‍‍ गेल। सुकनी अपन स्‍कूलसँ छुट्टी लऽ कि‍रि‍याक्रमक सामग्रीक ओरि‍यान करए लगली। नह-केस दि‍न कठि‍यारीबला सबहक लेल सुकनी खीरक भोज केलक। श्राद्ध दि‍न पूरा छजना गामक लोक सभकेँ रसगुल्ला-लालमोहनक भोज ि‍खयाएल गेल।
  आइ संपीण्‍डन अछि‍। प्रात: आठ बजेसँ बारह बजे धरि‍ करम भेल। तेकर बाद पाँचटा ब्राह्मणक भोजन सेहो भेल। आइ ि‍नर्मलीक सेठ-साहुकार आ शि‍क्षक, नेता आ आनो-आन प्रति‍ष्ठि‍त बेकती सभ आमंत्रि‍त छथि‍। बढ़ि‍या जकाँ सभ भोजन केलनि‍ आ दुनू भाँइकेँ जश दइ गेलखि‍न।
जखनि‍ गोपालजी अपना सहयोगीक संग भोजन कऽ कुरसीपर बैसला तखनि‍ दुनू भाँइ सुकल-बि‍कल गोपालजीक पएर छूबि‍ प्रणाम केलकनि‍। गोपालजी असीरवाद दैत कहलखि‍न-
भगवान अहाँ दुनू गोटे जकाँ बेटा सभकेँ देथुन। जे माए-बापक कि‍रि‍या-करम, भोज-भात, सेवा-टहल अहि‍ना करतनि‍। अहाँ दुनू भाँइ जीतन जीक असल बेटा सावि‍त भेलौं।
गोपाल मास्‍टर साहैबक ई गप सुनि‍ सुकल बाजल-
नै गुरुदेव, हम दुनू भाँइ बाबूजीक असल बेटा नै छी। हम सभ बाबूजीक सेवा-टहल कहाँ केलि‍यनि‍। हमरा सबहक हाथक एक गि‍लास पानि‍योँ कहाँ भेटलनि‍ बाबूजीकेँ। असल बेटा तँ हमर बहि‍न सुकनी आ बहनोइ शंकरजी छथि‍न। जे बाबूजीकेँ सेवा-सुश्रुसा केलखि‍न।
बि‍च्‍चेमे बि‍कल बाजल-
हँ सर, भैया ठीके कहै छथि‍न...।
दुनू भाँइक आँखि‍सँ दहो-बहो नोर जाए लगल।

¦

No comments:

Post a Comment