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Friday, October 18, 2013

बिसाँढ़ (दोसर संस्‍करण)

बिसाँढ़

पछिला चारि सालसँ रौदी भेने गामक सुर्खीए बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरिअर-हरिअर गाछ-बिरिछ, अन्नसँ लहलहाइत खेत, पानिसँ भरल इनार-पोखरि, सैकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंगसँ लऽ कऽ गाए-महिंस आ बकरीसँ भरल रहै छल ओ मरनासन्न भऽ गेल। सुन-मसान जकाँ। बीरान। सबहक मनमे एक्केटा विचार अबैत जे आब ई गाम नै रहत। जँ रहबो करत तँ खाली माटिएटा। किएक तँ जइ गाममे खाइले अन्न नै उपजत, पीबैले पानि नै रहत, तइ गामक लोक की हवा पीब कऽ रहत? जइ मातृभूमिक महिमा अदौसँ सभ गबैत एला ओ भूमि चारिए सालक रौदीमे पेटकान लाधि देलक। मुदा तैयो लोकक टुटैत आशाक वृक्षमे नव-नव फुलक कोढ़ी टुस्सा संग जरूर निकलि रहल अछि। किएक तँ आखिर जनकक राज मिथिला छिऐ कि‍ने। जइ राज्यमे बारह-बर्खक रौदीक फल सीता सन भेटल तइ राजमे, हो-ने-हो, जँ कहीं ओहने फल फेर भेटए। एक दिस रौदीक सघन मृत्युवाण चलैत तँ दोसर दिससँ आशाक प्रज्वलित वाण सेहो ओकर मुकाबला करैत। जेकर हँसेरीओ नम्‍हर। एहनो स्थितिमे दुनू परानी डोमनक मनमे जीबैक ओहने आशा बनल रहल, जेहने सुभ्यस्त समैमे। कान्हपर कोदारि नेने आगू-आगू डोमन आ माथपर सिंगही माछ आ बिसाँढ़सँ भरल पथिया नेने पाछू-पाछू सुगिया, बड़की पोखरिसँ आँगन, जिनगीक गप-सप्‍प करैत अबैत रहए। चानिक पसीना दहिना हाथसँ पोछि, मुस्‍कीआइत सुगिया बाजलि-
“जेकरा खाइ-पीबैक ओरियान करैक लूरि‍ बूझल छै ओ कथीक चिन्ता करत?”, पत्नीक बात सुनि डोमन पाछू घूमि सुगियाक चेहरा देखि बिनु किछु बजनइ नजरि निच्चाँ केने आगू डेग बढ़बए लगल। किएक तँ खाइक ओते चिन्ता मनमे नै, जेते पानि पीबैक।
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डोमनकेँ अपन खेत-पथार नै। मुदा दुनू बेकती तेहेन मेहनती जे नहियोँ किछु रहने नीक-नहाँति गुजर करैत। गिरहस्तीक सभ काजक लूरि‍ रहितो ओ कोनो गिरहस्तसँ बन्हाएल नै, ओना समए-कुसमए अपना काज नै रहने बोइनो कऽ लैत। अपना खेत नै रहने खेती तँ नहियेँ करैत मुदा दस कट्ठा मरूआ सभ साल बटाइ रोपि लैत, जइसँ पाँच मन अन्नो घर लऽ अबैत। मरूआ बीआ उपजबैमे बेसी मिहनत होइए। सभ दिन बीआ पटबए पड़ैए। शुरूहे रोहणिमे बड़की पोखरिक किनछरिमे डोमन बीआ पाड़ि लैत। लगमे पानि रहने पटबैओक सुविधा। आरू बीराड़ तँए बीओ नीक उमझैत। पनरहे दिनमे बीआ रोपाउ भऽ जाइत। मिरगिसिरामे पानि होइते अगते मरूआ रोपि लैत। मुदा ऐ बेर से नै भेलै। बर्खा नै भेने बीआ बीराड़ेमे बुड़हा गेलै। एक्को धूर मरूआक खेती गाममे नै भेलै। आ ने कियो अखनि‍ धरि धानक बीराड़क खेत जोतलक आ ने बीआ बागु केलक। रौदीक आगम सबहक मनमे हुअ लगल। मुदा तैयो केकरो मनमे अन्देशा नै! किएक तँ ढेनुआर नक्षत्र सभ पछुआइले रहए।
जहिना रोहणि-मिरगिसि‍रा फांेक गेल तहिना अद्रो। समए सेहो खूब तबि गेलै। दस बजेसँ पहिनइ सभ बाधसँ आँगन आबि जाइत। किएक तँ लू लगैक डर सबहक मनमे। मरूआ खेती नै भेने दुनू परानी डोमनक मनमे चिन्ता पैसए लगलै।
बड़की पोखरिसँ दुनू परानी पुरैनिक पातक बोझ माथपर नेने अँगना अबैत। बाटमे सुगिया बाजलि-
“ऐ बेर एक्को कनमा मरूआ नै भेल। बटाइओ केने आन साल ओते भऽ जाइ छल जे सालो भरि जलखै चलि जाइ छेलए। ऐ बेर तँ जलखैओ बेसाहिए कऽ चलत।
माथ परक पुरैनिक पातक बोझसँ पानि चुबैत। जे डोमनो आ सुगियोकेँ अधभिज्जु कऽ देने। नाक परक पानि पोछैत डोमन उत्तर देलक-
“कोनो कि अपनेटा नै भेल आकि गामेमे केकरो नै भेलै। अनका होइतै आ अपना नै होइत तहन‍‍ ने दुख होइतए। मुदा जब केकरो नै भेलै तँ हमरे किए दुख हएत। जे दसक गति हेतै से अपनो हएत। अपना तँ पुरैन-पातक रोजगारो अछि आ जेकरा ईहो ने छै?”
डोमनक उत्तर सुनि मिरमिरा कऽ सुगिया बाजलि-
“हँ, से तँ ठीके। मुदा ठनका ठनकै छै तँ कियो अपने माथपर ने हाथ दइए। तहन‍‍ तँ ई रौदी इसरक डाँग छी, लोकक कोन साध।
अखनि धरिक समैकेँ कियो रौदी नै बुझलक। सबहक मनमे यएह होइत जे ई तँ भगवानक लीले छियनि। कोनो साल अगतेसँ पानि हुअ लगैत तँ कोनो साल अंतमे होइत। कोनो साल बेसीओ होइत तँ कोनो साल कम्मो। कोनो-कोनो साल नहियेँ होइत। जइ साल अगते बिहरिया हाल भऽ जाइत ओइ साल समैपर गिरहस्ती चलैत मुदा जइ साल पचता बर्खा होइत तइ साल अधखड़ू खेती भऽ जाइत। मुदा जहन‍‍ हथिया नक्षत्र धरिमे बर्खा नै भेलै तहन‍‍ सबहक मनमे अाबए लगल जे ऐ बेर रौदी भऽ गेल! ओहि‍ना जोतल-बिनु-जोतल खेतसँ गरदा उड़ैत। घास-पातक केतौ दरस नै। मुदा तँए कि लोक हारि मानि लेत? कथमपि नै! सभ दिनसँ गामक लोकमे सीना तानि कऽ जीबैक जे अभि‍यास बनल अछि ओ पीठ केना देखौत? भऽ सकैए जे इन्द्र भगवानकेँ कोनो चीजक दुख भऽ गेल हेतनि। जइसँ बिगड़ि कऽ एना केलनि। तँए हुनका बौसब जरूरी अछि। जखने फेर सुधरि जेता तखनेसँ सभ काज सुढ़िया जाएत। यएह सोचि कियो भूखल-दुखलकेँ अन्न दान तँ कियो कीर्तन-अष्टयाम-नवाह तँ कियो चंडी, विष्णु यज्ञ-जप तँ कियो महादेव पूजा इत्यादि अनेको रंगक बौसैक ओरियान शुरू केलक। जनिजाति सभ कमला-कोसीकेँ छागर-पाठी कबुला सेहो करए लगली। किएक तँ जँ हुनकर महिमा जगतनि तँ बिनु बर्खोक बाढ़ि अनती। बाढ़ि औत पोखरि-झाखड़िसँ लऽ कऽ चर-चौरी, डीह-डाबर सभ भरत। रौदी कमत। अदहा-छि‍दहा उपजो हेबे करत।
बर्खाक मकमकी देखि नेङराकाका महाजनी बन्न कऽ लेलनि। ओ बूझि गेलखिन जे ऐ बेरक रौदी अगिला साल बिसाएत। मुदा सोझमतिया बौकीकाकी सभटा चाउर लगा लेलनि जइसँ सठि‍ गेलनि‍। ओना बौकीकाकीक लहनो छोट। खाली चाउरेक। सेहो पावनिए-तिहार धरि समटल। हुनकर महाजनी मातृ-नवमी, पितृपक्षसँ शुरू होइत। पाहुन-परक लेल दुर्गापूजा, कोजगरा होइत दिवाली परेब, गोवर्धनपूजा, भरदुतिया, छठि होइत सामा धरि अबैत-अबैत सम्पन्न भऽ जाइ छेलनि। किएक तँ सामाकेँ सभ नवका चूड़ा खुअबैत। खुएबेटा नै करैत संग भारो दैत। ताधरि कोला-कोली धानो पकि जाइत। मुदा से बात बौकीकाकी बुझबे ने केलखिन जे ऐ बेर रौदी भऽ गेल। तँए अपनो खाइले नै रखलथि। जहिना बोनिहार-किसान तहिना महाजन बौकीओकाकी भऽ गेली।
अगहन अबैत-अबैत सभकेँ चि‍न्‍ता हुअ लगलै जे अपने की खाएब आ माल-जालकेँ की खुआएब। किएक तँ कातिक धरिक ओरियान -अपनो आ मालो-जाल लेल- तँ अधिकांश लोक पहिनइ सँ करि कऽ रखैत। जे नेङराकाका छोड़ि सबहक सठि गेलनि। धानोक बीआ सभ कुटि-छाँटि कऽ खा गेल। धानक कोन गप जे हाल दुआरे रब्बीओ-राइ हएब कठिन। सबहक भक्क खुजल! भक्क खुजिते मनमे चिन्ता समाए लगल। जेना-जेना समए बीतैत तेना-तेना चिन्तो फौदाइत। एक तँ ओहिना चुल्हि सभ बन्न हुअ लगल तैपर सँ सुरसा जकाँ समए मुँह बाबि आगूमे ठाढ़। चिन्तासँ लोक रोगाए लगल। भोर होइते धिया-पुताक बाजा सौंसे गाम बाजए लगैत। मौगी पुरुखकेँ करमघट्टू तँ पुरुख मौगीकेँ राक्षसनी कहए लगल। जइसँ धिया-पुताक बाजा संग दुनू परानीक नाच शुरू भऽ जाइत। मुदा एहेन समए भेलोपर दुनू परानी डोमनक मनमे एक्को मिसिआ चिन्ता नै। किएक तँ जुड़ेशीतलसँ पुरैनिक पातक कारोबार शुरू केलक। कारोबार नम्‍हर। बावन बीघाक बड़की पोखरि। जइमे सापर-पिट्टा पुरैनिक गाछ। बजारो नम्‍हर। निर्मली, घोघरडीहा, झंझारपुर स्टेशनो आ पुरनो बजार। असगरे सुगिया केते बेचत। पुरैनिक पात किनिनिहार हलुआइसँ लऽ कऽ मुरही-कचड़ीवाली धरि। तैपर सँ भोज-काजमे सेहो बिकाइत। तँए आठ दिनपर पार लगौने रहए। भरि दिन डोमन पत्ता तोड़ि-तोड़ि जमा करैत। एक दि‍न सुगि‍या पात तोड़ैत, दोसर दि‍न सेरियबैत आ तेसरा दि‍नपर भोरुके गाड़ीसँ बेचैले जाइत। जे पात उगरि‍ जाए ओकरा डोमन सुखा-सुखा रखैत। किएक तँ सुखेलहो पातक बिकरी होइए।
आइ निर्मलीसँ पात बेचि कऽ सुगिया आबि पतिकेँ कहलक-
“रौदी भेने अपन चलती आबि गेल।
चलतीक नाओं सुनि मुस्की दैत डोमन पुछलक-
“से की?”
“सभ पात बेचिनिहार वेपारी थस लऽ लेलक। सभ गामक पोखरि सूखि गेलै जइसँ सबहक कारबार बन्न भऽ गेलै। अपनेटा पात बजार पहुँचैए। आइ तँ जहाँ गाड़ीसँ उतरलौं आकि दोकानदार आबि‍-आबि‍ बुझू जे झपटि‍ लेलक। टीशनेपर छुहुक्का उड़ि गेल।
डोमन-
“अहाँकेँ लूरि‍ नै छेलए जे दाम बढ़ा दैतिऐ, एकक दू होइत।
सुगिया-
“अगिला खेपसँ सएह करब। आब तँ बर्ड़ी सेहो जुआइत हएत कि‍ने?”
डोमन-
“गोटे-गोटे जुआएल अछि‍। मुदा बीछि-बीछि तोड़ए पड़त। तँए पाँच दिन आरो छोड़ि दइ छिऐ।
तेसर साल चढ़ैत-चढ़ैत गामक एकटा बड़की पोखरि आ पाँचटा इनार छोड़ि सभ सूखि गेल। नम्‍हर आँट-पेटक बड़की पोखरि। किएक तँ दाँइत खुनने अछि‍ कि‍ने? लोकक खूनल थोड़े छिऐ। देव अंश अछि। तँए ने गामक सभ अपन बेटाकेँ उपनयनो आ बिआहोमे ओही पोखरि जा पहि‍ने नहबैए। तेतबे नै छठिमे हाथो उठबैए। हमरा इलाकाक पृथ्‍वीओक बनाबटि अजीब अछि। बुझू तँ माटिक पहाड़। पाँच सए फुटसँ निच्चाँ धरि ने बालु अछि आ ने पानि। शुद्ध माटि। जइसँ ने एक्कोटा चापाकल आ ने बोरिंग गाममे। पानि दुआरे गामक-गाम लोककेँ पड़ाइन लागि‍ गेल। माल-जाल उपटि गेल। सभटा गाए-माल चाहे तँ लोक बेचि लेलक वा खढ़ पानि दुआरे मरि गेलै। अदहासँ बेसी गाछो-बिरिछ सूखि गेल। चिड़ै-चुनमुनी इलाका छोड़ि देलक। जे मूस अगहनमे अंग्रेजी बाजा बजा-बजा सत-सतटा बि‍आह करै छल ओ या तँ बिलेमे मरि गेल वा केतए पड़ा गेल तेकर ठेकान नै। हमरो गामक अदहासँ बेसीए लोक पड़ा गेल। मुदा तैयो जिबठगर लोक गाम छोड़ैले तैयार नै। पुरुख सभ गाम छोड़ि परदेश खटैले चलि गेल। मुदा बाल-बच्चा आ जनि-जाति गामेमे रहल। पोखरि-इनारकेँ सुखैत देखि लोक पानि पीबैलै बड़कीए पोखरिक कतबाहिमे कूप खुनि-खुनि लेलक। अपन-अपन कूप सभकेँ। पानिक कमी नै। तीन सालक जे रौदी, परोपट्टा लेल बाम भऽ गेल रहए, वएह डोमन लेल दहीन भऽ गेल। काज तँ आने साल जकाँ मुदा आमदनी दोबर-तेबर भऽ गेलै। गामक जमीनोक दर घटल। जइसँ डोमन खेत किनए लगल। ओना सुगियाक इच्छा खेत किनैक नै। किएक तँ मनमे होइ जे अहि‍ना रौदी रहत आ खेत सभ पड़ता रहत। तँए अनेरे खेत लऽ कऽ की करब। मालो-जाल तँ घास-पानि दुआरे नहियेँ लेब नीक हएत। डोमनक मनमे आशा रहै जे जहिना लूल्हीओ कनियाँ बेटा जनमा कऽ गिरथाइन बनि जाइए, तहिना तँ पानि भेने परतीओ खेत हएत कि‍ने।
योगी-तपस्वीक भूमि मिथिला अदौसँ रहल। जे अपन देह जीव-जन्तुक कल्याण लेल गला लेलनि। ओ कि ऐ बातकेँ नै जनै छेलखि‍न? जनै छेलखि‍न! तँए ने गाममे अट्ठारह गण्डा (माने ७२ टा) पोखरि, सत्ताइस गण्डा (माने १०८ टा) इनार संग-संग चौरीमे सैकड़ो कोचाढ़ि-बि‍रै खुनि पानिक बखाड़ी बनौने छला। सोलहो आना बरखे भरोसे नै, अपनो जोगार केने छला।
तीन साल तँ दुनू परानी डोमन चैनसँ बितौलक। मुदा चारिम साल अबैत-अबैत बेचैन हुअ लगल। गामक सभ पोखरि-इनार तँ पहिनइ सूखि गेल छल। लऽ दऽ कऽ बड़की पोखरिटा बँचल। तहूमे सुखैत-सुखैत मात्र कठ्ठा पाँचेमे पानि बँचल। सूखल दिस पुरैनिओ उपटि गेल। बीचमे जे पानि रहए मात्र ओहीमे पुरैनिक गाछ बँचल, मुदा तइमे जाँघ भरिसँ ऊपरे गादि। पैसब महाग मोसकिल रहए। पएर दैते सरसड़ा कऽ जाँघ भरि गड़ि जाइत। के जान गमबए पैसत। निराशाक जंगलमे डोमन बौआ गेल। मनमे हुअ लगलै, जहिना गामक लोक चलि गेल तहिना हमहूँ चलि जाएब। जानि कऽ परानो गमाएब नीक नै। जिनगी बँचत, समए-साल बदलतै तँ फेर घूमि कऽ आएब नै तँ केतौ मरि जाएब। जहिना गामक सभ कि‍छु बिलटि गेल, समाजक लोक बिलटि गेल, तहिना हमहूँ बिलटि जाएब...।
पतिकेँ चिन्तित देखि सुगिया पुछलक-
“किछु होइए की? एना किए मन खसल अछि?”
पत्नीक प्रश्न सुनि डोमन आँखि उठा कऽ देखि पुनः आँखि निच्चाँ कऽ लेलक। आँखि निच्चाँ करिते सुगिया दोहरा कऽ पुछलक-
“मन-तन खराप अछि?”
नजरि उठा डोमन उत्तर देलक-
“तन तँ नै खराब अछि मुदा तनेक दुख देखि मन सोगाएल अछि। जइ आशापर अखनि धरि खेपलौं ओ तँ चलिए गेल। जे अगिलोक कोनो आशा नै देखै छी। की करब आब?”
सुगिया-
“अपना केने किछु ने होइ छै। जे भगवान जनम देलनि, मुँह चीड़ने छथि, अहारो तँ वहए ने देता। तइले एते चिन्ता किए करै छी?”
डोमन-
“गामक सभ कि‍छु बिलटि गेल। एहेन सुन्दर गाम छल, सेहो उपटि रहल अछि। खाली माटिटा बँचल अछि। की माटि खुनि-खुनि खाएब? बिनु अन्न-पानिक काए दिन ठाढ़ रहब?”
“चिन्ता छोड़ू। जहिया जे हेबाक हेतै से हेतै। अखनि‍ तँ पाइनो अइछै आ अन्नो अछिए। जाधरि ऐ धरतीपर दाना-पानी लिखल हएत ताधरि भेटबे करत। जहिया उठि जाएत तहिया केकरो रोकने रोकेबै! तइले एते चिन्ता किए करै छी?
कहि सुगिया भानसक ओरियान करए लागलि। पत्नीक बात सुनि डोमन मोने-मन सोचए लगल जे हमरा तँ मरैओक डर होइए मुदा एकरा कहाँ होइ छै। ई तँ मरैओले तैयारे अछि। फेर मनमे उठलै, जीवन-मृत्युक बीच सदासँ संघर्ष होइत आएल अछि आ होइत रहत। तइसँ पाछू हटब कायरता छी। जे मनुख कायर अछि ओ कोन जिनगीक आशामे अनेरे दुनियाँकेँ अजबारने अछि। पुनः अपना दि‍स तकलक। अपना दि‍स तकिते मनमे एलै, जीबैक बाट हरा गेल अछि। तँए एते चिन्ता दबने अछि। तमाकुल चुना कऽ मुँहमे लेलक। तमाकुल मुँहमे लइते डोमनकेँ अपन माए-बापसँ लऽ कऽ पछिला पुरखा दिस घोड़ा जकाँ नजरि दौगलै। मुदा केतौ रूकलै नै। जाइत-जाइत मनुक्‍खक जड़ि धरि पहुँच‍ गेलै। पुनः घूमि कऽ आबि नजरि माए लग अँटकि गेलै। मन पड़लै माए संग बितौलहा जिनगी। मन पड़लै माएक ओ बात जे दस बर्खक अवस्थामे रौदी बितौने छल। रौदी मन पड़िते बड़की पोखरिक बिसाँढ़ आ अन्है माँछ आँखिक सोझमे आबि गेलै। कनीकाल गुम्म भऽ मन पाड़ए लगल।
मन पड़लै, अही पुरैनिक जड़िमे तँ बिसाँढ़ो फड़ैए। अल्हुए जकाँ। जहिना माटिक तरमे अल्हुआक सिरो आ अल्हुओ रहै छै तहिना पुरैनिक जड़िमे सिरो आ बिसाँढ़ो रहैए। अनासुरती मुहसँ निकललै-
“बाप रे! बाबन बीघाक पोखरिमे तँ केते-ने-केते बिसाँढ़ हेतै। ओकरे खुनैमे माछो भेटत। खाधि बना-बना सिंही-माङुर रहैए।
एक पंथ दू काज। मनमे खुशी अबिते पत्नीकेँ हाक पाड़ि कहलक-
“भगवान बड़ीटा छथिन। जहिना अरबो-खरबो जीव-जंतुकेँ जनम देने छथिन तहिना ओकर अहारोक जोगार केने छथिन।
पतिक बात सुनि सुगिया अकबका गेलि‍। बुझबे ने केलक। मुँह बाबि पति दिस देखैत रहल। जीबछीकेँ टकटक तकैत देखि‍ डोमन बाजल-
“चुल्हि मिझा दियौ। घूमि कऽ आएब तहन‍‍ भानस करब।
पतिक उत्साह देखि सुगिया मोने-मन सोचए लगली जे मन ने तँ सनकि गेलनि हेन। अखने मुर्दा जकाँ पनिमरु छला। आ लगले की भऽ गेलनि। दोसर बात परखैक खियालसँ चुप-चाप ठाढ़ रहली।
डोमन फेर बाजल-
“की कहलौं? पहिने आँच मिझा दियौ। फट्टक लगा छिट्टा लऽ कऽ संगे चलू।
सुगिया पुछलक-
“केतए।
“बड़की पोखरि।
“किए?”
“एहेन-एहेन सएओ रौदी कटैक खेनाइ पोखरिमे दाबल अछि। आनैले चलू।
सबाल-जवाब नै कऽ सुगिया आगि पझा, फट्टक लगा छिट्टा लऽ तैयार
भेल। घरसँ कोदारि निकालि डोमन विदा भेल। आगू-आगू डोमन आ पाछू-पाछू सुगिया। बड़की पोखरिक महारपर पहुँच‍ डोमन हाथक इशारासँ पत्नीकेँ देखबैत बाजल-
“जेते पोखरिक पेट सूखल अछि ओइमे तेते खाइक वस्तु गड़ाएल अछि जे ने खाइक कमी रहत आ ने पीबैक पानिक। जेना-जेना पानि सुखैत जेत्तै तेना-तेना कूपकेँ गहींर करैत जाएब। जेते पुरैनिक गाछ सुखाएल अछि ओइमे घौर्छा जकाँ बिसाँढ़ फड़ल हएत।
पोखरि धँसि डोमन तीन डेग उत्तरे-दछिने आ तीन डेग पूबे पछिमे नापि कोदारिसँ चेन्ह देलक। एक धूर। उत्तरबरिया-पुबरिया कोनपर कोदारि मारलक। माटि तेते सक्कत जे कोदारि धँसबे ने कएल। दोहरा कऽ फेर जोरसँ कोदारि मारलक। कोदारि फेर नै धँसल। आगू दिस देखि हियाबए लगल जे किछु दूर आगूक माटि नरम हएत। खुनैमे असान हएत। मनक खुशी उफनि कऽ आगू बढ़ल-
“अँइ यइ ढोरबा माए, हम पुरुख नै छी? देखियौ हमरा माटि गुदानबे ने करैए! अहाँ हमरासँ पनिगर छी, दू छअ मारि कऽ देखियौ।
सुगिया-
“हमर चूड़ी-साड़ी पहिरि लिअ आ हमरा धोती दिअ। तहन‍‍ कोदारि पाड़ि कऽ देखा दइ छी।
मुस्की दैत दुनू आगू मुहेँ ससरल। एक लग्गा आगू बढ़लापर माटि नरम बूझि पड़लै। कोदारि मारि कऽ देखलक तँ माटि सहगर लगलै। एक धूर नापि डोमन खुनए लगल। पहिले छअमे एकटा बिसाँढ़क लोली जगलै। लोल देखिते उछलि कऽ बाजल-
“हे देखियौ। यएह छी बिसाँढ़।
सुगिया-
“लोल देखने नै बूझब। सौंसे खुनि कऽ देखा दिअ?
पत्नीक बात सुनि डोमनकेँ हुअ लगल जे हो-ने-हो कहीं अधेपर सँ ने कटि जाए। से नै तँ लोल पकड़ि डोला कऽ उखाड़ि लइ छी। मुदा नै उखड़ल। कनी हटि दमसा कऽ दोसर छअ मारलक। छअ मारिते एक बीतक देखलाहा आ चारि-चारि ओंगरीक दूटा आरो देखलक। तीनूकेँ खुनि दुनू परानी निङहारि-निङहारि देखए लगल।
उज्जर-उज्जर। नाम-नाम। लठिआहा बाँस जकाँ गोल-गोल। मोट। हाथी दाँत जकाँ चिक्कन। बीत भरिसँ हाथ भरिक। पाव भरिसँ आध सेर धरिक।
सुगिया दिस नजरि उठा कऽ डोमन देखलक तँ पचास वर्षक आगूक जिनगी बूझि पड़लै। पति दिस नजरि उठा कऽ सुगिया देखलक तँ चूड़ीक मधुर स्वर आ चमकैत मांगक सिनुर देखलक।
छिट्टा भरि बि‍साँढ़ आ सेर चारिएक सिंही माछ नेने दुनू परानी डोमन-जीबछी खुशीसँ हलसैत विदा भेल।
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