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Friday, October 18, 2013

हारि-जीत (दोसर संस्‍करण)

हारि-जीत

चारिमे दिन दुनू परानी सोमन विचारलक, आब ऐ गाममे जीयब कठिन अछि तँए गामसँ चलिए जाएब नीक हएत। दुनियाँ बड़ीटा छै। जेतए जीबैक जोगार लागत तेतए रहब। सामान सभ बान्हि, करेजपर पाथर रखि गामसँ जाइले दुनू परानी तैयार भऽ गेल। भूखल पेट! सुखाएल मुँह! निराश मन! ओसारपर बैसल दुनू परानीक आँखिसँ दहो-बहो नोर टघरैत रहए! दुनियाँ अन्हार देखि, उठैक साहसे नै होइ छेलै। सोमनक मनमे होइत, की छेलौं आइ की भऽ गेलौं? रंग-बिरंगक विचार पानिक बुलबुला जकाँ दुनूक मनमे उठैत आ विलीन भऽ जाइत! आगूमे मोटरी राखल रहए। जहिना सीमा परहक सिपाही छातीमे गोली लगलासँ घाइल भऽ जमीनपर खसि छटपटाइत, तहिना दुनू परानी सोमन दुखक अथाह समुद्रमे डुमैत-उगैत। भिनसरसँ बारह बाजि गेलै।
सहरसा जिलाक गाम मैरचा। पूबसँ कोसी आबि गामक कटनियाँ करए लागल। गर लगा-लगा गामक लोक जेतए-तेतए पड़ाए लगला। ओना सरकार पुबरिया बान्हक बाहर पुनर्वासक बेवस्‍था सेहो करैत रहए मुदा ओइसँ बोनिहारकेँ की सुख हएत? ओकरा सबहक तँ रोजगारो छिना गेल रहए।
पत्नी, बेटा-पुतोहु संग फुलचनो पंडित गाम छोड़ि पच्‍छि‍म मुहेँ विदा भेला। घराड़ी छोड़ि अपना एक्को बीत जमीन-जत्‍था नै छेलनि। मुदा अपन बेवसायक सभ लूरि‍ छेलनि तँए मनमे चिन्तो ओतेक नै रहनि। चिन्ता मात्र रहनि ठौर भेटबाक। कखनो-कखनो मनमे होन्‍हि‍ जे अपन गाम तँ बूझल-गमल अछि, आन गाम केहेन हएत केहेन नै? मुदा उपाइए की? जीबैले तँ मनुख सभ किछु करैए। पछबरिया बान्हसँ मील भरि पाछुए रहथि आकि बान्हपर नजरि पड़लनि। बान्ह देखिते आशा जगलनि। किएक तँ बान्हक पच्‍छि‍म कोनो धार-धुर नै अछि। मुस्‍कीआइत फुलचन पत्नीसँ पुछलक-
“भगवान रामक खिस्सा बूझल अछि?”
फुलचनक मुँह दिस देखि मुनियाँ बजली-
“बहुत दिन पहिने सुनने छेलौं, आब ओते धियान नइए।
“जहिना अपना सभ गाम छोड़ि कऽ जा रहल छी तहिना ऊहो सभ गेल रहथि। अपना सभकेँ तँ बटखर्चो अछि, हुनका सभकेँ तँ सेहो नै रहनि।
तैबीच फुलचनक पुतोहु कपली सासुक बाँहि पकड़ि पाछू मुहेँ घुमा कहलक-
“एँड़ीकेँ डोका काटि देलक। खून बहैए। कनी केतौ बैसथु जे लत्ता बान्हि देबै।
एँड़ी देखि मुनियाँ कहलखि‍न-
“कनियाँ, केतौ गाछो ने देखै छिऐ जे कनी सुस्ताइओ लैतौं। हमरो पियासे कंठ सुखैए।
सासु-पुतोहुक बात सुनि फुलचन बजला-
“कनियाँ, जानिए कऽ तँ दैवक डाँग लागल अछि, तहन‍‍ तँ कहुना कऽ बान्ह धरि चलू। एक तँ रौदाएल छी तैपर सँ जेते काल अँटकब तेते रौदो बेसीए लागत।
बान्हपर पहुँचि‍ते सभ निसाँस छोड़लनि। बान्हक पच्‍छि‍मसँ एकटा आमक गाछ रहए। छाहरि देखि सभ कि‍यो गाछ तर पहुँच‍‍लथि‍। एकटा बटोही पहिनइसँ तौनी बिछा पड़ल छल। कनीकाल सुस्तेला पछाति‍ बटोहीकेँ फुलचन पुछलखिन-
“भाय, तमाकुल खाइ छह?”
जेबीसँ चुनौटी निकालि फुलचनक आगूमे फेकैत ओ बटोही बाजल-
“कोन गाम जेबह?”
कोन गामक नाओं सुनिते फुलचनक हृदए सिहरि गेलनि। मिरमिरा कऽ कहलखि‍न-
“भाय, कोन गाम जाएब तेकर तँ ठेकान नै अछि। मुदा मैरचासँ एलौं हेन। धारमे गाम कटि रहल अछि। तँए गाम छोड़ि जा रहल छी। जइ गाममे कुम्हार नै हएत तइ गाममे बसि जाएब।
कुम्हारक नाओं सुनिते बटोही उठि कऽ बैसैत कहलकनि‍-
“हमरो गाममे कुम्हार नै अछि। चलह, हमरे गाममे रहि जइहऽ।
आशा देखि सोमन पुछलखि‍न-
“ऐठामसँ केते दूर अहाँक गाम अछि?”
“अढ़ाइ कोस। हमहूँ बहि‍नि‍ए ओठीमसँ अबै छी। गामे जाएब।
बेर झुकैत पाँचो गोटे विदा भेला। लछमीपुर पहुँचि‍ते बटोही रतीलाल फुलचनकेँ कहलकनि‍-
“भाइ, यएह हमर गाम छी।
गाछी बँसबाड़ि देखि फुलचन पंडित मोने-मन खुश! मोने-मन आकलन केलनि जे जारनिक अभाव कहियो नै हएत। गाममे प्रवेश करिते बीघा दुइएक पोखरि देखि‍ फुलचन मोने-मन तँए ई केलनि जे नै कतौं रहैक ठौर भेटत तँ पोखरि महार तँ अछि। पोखरि बगलेमे सभ कि‍यो रूकि‍ जाइ गेला। रत्तीलाल आगू बढ़ि गेल।
जहिना गाममे नट-किच्चककेँ अबिते धिया-पुता देखए अबैत तहिना फुलचनो सभ तूरकेँ देखए गामक धिया-पुता आबए लागल। गाममे कुम्हार एबाक समाचार पसरल। थोड़े काल पछाति‍ फुलचन पंडित बेटा सोमनकेँ हाथ पकड़ि कहलखि‍न-
“बौआ, तूँ सभ एतै बैसह। हम कनी गामक बाबू-भैया सभसँ भेँट केने अबै छी।
कहि फुलचन गाम दिस विदा भेला। इजोरिया पख रहै तँए सूर्यास्त भेलोपर दिने जकाँ लगै। जाधरि फुलचन घूमि कऽ एबो ने केला तइसँ पहिनइ गामक पनरह-बीसटा नवयुवक पहुँच‍‍ गेल। सबहक मनमे नव उत्साह रहए। किएक तँ अखनि धरि जे अभाव कुम्हारक गाममे रहल ओ पूर्ति भऽ रहल अछि। जहिना आवश्यकताक वस्तु पूर्ति भेलासँ किनको मनमे खुशी होइ छै, तहिना फुलचनक एलासँ गामक लोकक मनमे खुशी रहए। पोखरिसँ थोड़े हटि कट्ठा तीनिएक परती छेलै। सभ युवक विचारलक जे ओही परतीपर बसाैल जाए। ताधरि गाम घूमि‍ कऽ फुलचनो एला। फुलचन दुनू बापूत परती देखलनि। परती देखि सोमन पिता दिस घूमि बाजल-
“कुम्हारक बसै जोकर परती अछि, मात्र पिऐबला पानिक दिक्कत अछि।
तैपर पिता फुलचन पंडित जवाब देलनि-
“अखनि ने पानिक दिक्कत अछि मुदा जहन‍‍ अपने इनार खुनैओक आ पाटो बनबैक लूरि‍ अछि तहन‍‍ दिक्कत किए रहत?”
घराड़ी पसि‍न होइते हो-हा करैत युवक सभ बाँस काटए विदा भेल। जे जेहेन बाँसबला, तिनकामे तइ हिसाबसँ बाँस काटि पच्चीसटा बाँस जमा भेल। ईहो दुनू बापूत संग दैत रहथिन। हाथे-पाथे सभ घरक काजमे जुटि गेला। रातिक बारह बजैत-बजैत तेरह हाथक घर ठाढ़ भऽ गेलै।
प्रात भेने दुनू बापूत विचारलनि जे एक तँ नव गाम, तहूमे नव बाँस। काज तँ बहुत अछि। तँए काजकेँ सोझरा कऽ चलए परत। रहै जोकर घर भलहिं‍ं नै भेल मुदा दिन कटै जोकर तँ भइए गेल। घर-आँगन बनबैसँ लऽ कऽ कारोबार धरिक काजमे हाथ लगबए पड़त। फुलचन सोमनसँ पुछलखिन-
“बौआ, मैरचासँ कोन-कोन समान अनने छह?”
सोमन कहलक-
“बाबू, सोचलौं जे आन गाममे लगले सभ कि‍छु थोड़े भऽ जाएत। तँए चाक बनबैक शिला, तख्ता, फट्ठा, जौर, बेलक कील सभ किछु अनने छी।
खुशीसँ गद-गद होइत फुलचनक मुहसँ निकललनि‍-
“बाह-बाह। चाकक ओरियान तँ भइए गेलह। आरो की सभ अनने छह?”
“चकैठ, हथमैन, पिटना, पीरहुर, मजनी, छन्ना सेहो अनने छी।
मुस्‍कीआइत फुलचन बाजला-
“काजक तँ सभ किछु अछिए। आइए चाको बनबैमे हाथ लगा दहक। एक गोटे पात खरड़ि अनिहऽ। एक गोटे घरक लेबिया-मुनियाँमे हाथ लगा दहक। हमरा तँ समचे सभ ओड़ियबैमे समए बि‍त जेतह।
दस दिनक मेहनतिसँ रहै जोकर एकटा घर बनि गेलै। चाको सुखा गेलै। जारनोक ओरियान भऽ गेलै। चाक गाड़ि‍, माटि बना सोमन चाक लग बैसल। जहिना उद्योगपतिकेँ नव कारखानाक उद्घघाटन दिन मनमे खुशी रहै छै, तहिना आइ सभ परानी फुलचनोकेँ रहनि। हँसैत फुलचन पंडित बेटा दिस देखैत बजला-
“बौआ, जेते सामान बनबैक लूरि‍ अछि, सभ सामान बना, पका कऽ खड़ि‍हाँनमे पसारि, सौंसे गौआँकेँ हकार दऽ देखा देबनि। जिनगीक परीक्षा छी।
आबा उघारि चारू गोटे खल लगा-लगा सभ वस्तु- कूड़, हाथी, ढकना, कोशिया, दीप, पाण्डव, गणेश, लक्ष्मी, मटकूर, छाँछी, डाबा, घैल, सामा-चकेबा, पुरहर, अहिबात, कोहा, फुच्ची, सरबा, सीरी, भरहर, आहूत, धुपदानी, पातिल, तौला, मल्‍सी, बसनी, उन्नैसमासी, कोही, लाबनि, कलश, कराही, रोटिपक्का, अथरा, कसतारा, लग्जोरी, धिया-पुता खेलैक जात, नादि, लोइट, माँट, टाड़ा, टाड़ी, बधना इत्यादि चारि-चारि खल पावनिक, बिआहक, उपनयनक, श्राद्धक, पोखरिक यज्ञ-कीर्तनक आ घरैलू काजक वस्तु सभ अलग-अलग सजा कऽ पसारि‍। दुनू बापूत जा गौआँकेँ देखैक हकार देलनि।
चारू परानी फुलचनकेँ अपना लूरि‍क ठेकान नै छलन्हि ि‍कएक तँ सभ काज लेल एक बेर सभ समान कहियो नै बनौने छला। मुदा आइ सभटा बना सभकेँ ई विश्वास भऽ गेलनि जे जहिना बड़का वेपारीक दोकानमे अनेको कि‍सि‍मक सौदा रहै छै तहिना तँ हमरो अछि!
समए बीतैत गेल। अधिक बएस भेने दुनू परानी फुलचन शरीरसँ कमजोर हुअ लगला। सोमनोकेँ एकटा बेटा, एकटा बेटी भेलै। परिवार बढ़लै। खरचो बढ़लै।
समए आगू मुहेँ ससरैत गेल। दुनू परानी फुलचन मरि गेला। ....बेटीक बिआह सेहो सोमन कऽ लेलक। सोमनक बेटा रामदत दुर्गापूजा देखए मात्रिक गेल। ओत्तैसँ बौर गेल। माटिक बरतनक जगह द्रव्यक बरतन सभ परिवारमे धीरे-धीरे बढ़ए लगलै। जइसँ माटिक बरतनक मांग कमए लगल। घटैत-घटैत माटिक बरतन परिवार छोड़ि देलक। रहि गेल मात्र पावनि, उपनयन, बि‍आह आ श्राद्ध।
अपन घटैत कारोबार आ टुटैत परिवारसँ दुनू परानी सोमन चिन्तित हुअए लागल। आगूक जिनगी अन्हार लागए लगलै। कोनो रस्ते नै देखाइ। सोचैत-वि‍चारैत सोमनक नजरि एकटा काजपर पड़लै। खपड़ा बनौनाइ। खपड़ापर नजरि पहुँचि‍ते मुस्‍कीआइत सोमन पत्नीकेँ कहलक-
“एकटा बड़ सुन्दर काज अछि। कमाइओ नीक आ काजो माटिएक।
अकचकाइत पत्नी-कपली पुछलकनि-
“कोन काज?”
सोमन-
“खपड़ा बनौनाइ।
कनीकाल गुम रहि कपली बाजलि-
“थोपुआ खपड़ा तँ हमहूँ बना सकै छी मुदा नड़िया नै हएत।
जोर दैत सोमन बाजल-
“हँ, हएत! चाक परक भलहिं‍ं नै हूअए मगर मुंगरी परक किए ने हएत।
“हँ, से तँ हएत।
दुनू परानी खपड़ा बनबए लगल। लोककेँ बूझल नै रहै तँए अगुुरबार कि‍यो खोज नै केलक। मुदा जहन‍‍ एकटा भट्ठा लगौलक तहन‍‍ गामक लोक देखलक। खपड़ो नीक, पाको बढ़ियाँ। गिनतीए हिसाबसँ खपड़ा बेचए लगल। बढ़ियाँ आमदनी हुअ लगलै।
बढ़ियाँ कारोबार चलल। मुदा सिमटीबला एस्बेस्टस अबिते खपड़ाक मांग कमए लगल। खपड़ा बनौनिहारकेँ मंदी आबि गेल। ओना सोमनक परिवारो छोट रहए। मात्र दुइए गोटेक परिवार। मुदा तैयो गुजरमे कटमटी हुअ लगलै। फेर जिनगी भारी हुअ लगलै।
हँसी-खुशीसँ जीवन-यापन करैबला परिवार एहेन स्थितिमे पहुँच‍ गेल जे साँझक-साँझ चुल्हि नै पजरैत। दोसर कोनो लूरि‍ नै। अपन खसैत जिनगी देखि कपली पतिक मुँह दिस तकैत बाजलि-
“एना केते दिन दुख काटब? जहन‍‍ हाथ-पएर तना-उतार अछि आ काज करए चाहै छी तहन‍‍ की अही गामकेँ सीमा-नाङरि छै? चलू ऐ गामसँ।
पत्नीक विचार सुनि सोमनक आँखि नोरा गेल। किछु बजैक हिम्मते नै
होइ। मोने-मन सोचए लगल जे जइ लूरि‍क चलते अखनि धरि जीलौं ओ लूरि‍
आब मरि रहल अछि। दोसर लूरि‍ तँ
अछि नै। की करब? असमंजसमे पड़ल पतिकेँ देखि कपली बजली-
“दुनियाँ बड़ीटा छै। जेत्तै पेट भरत तेत्तै रहब। जहिना मैरचासँ आबि लछमीपुरमे एते दिन रहलौं तहिना ई गाम छोड़ि दोसर गाममे रहब।
पत्नीक विचारसँ सहमत होइत सोमन बाजल-
“अहाँक विचार मानि लेलौं। ऐ गामसँ चारिम दिन चलि जाएब। बीचमे जे दू दिन बाँचल अछि तइमे अहूँ आ हमहूँ गाममे टहलि कऽ सभकेँ जना दियनु जे जहिना एक दिन हँसी-खुशीसँ छाती लगेलौं तहिना आब जा रहल छी। चुपचाप गामसँ चलि जाएब नीक नै हएत। गामसँ तँ चुपचाप ओ भगैए जे अधला काज केने रहैए।
दुआरिए-दुआरि दूनू परानी गाममे घूमि सभकेँ कहि देलकनि‍-
“गामसँ चलि जाएब।
प्रात होइते दुनू परानी घरक सभ सामानक मोटरी बान्हि ओसारपर रखलक। भूखल पेट! सुखाएल मँुह! निराश मन! तँए आगू बढ़ैक डेगे नै उठैत।
ओसारापर बैसल एक-दोसराक मुहोँ देखैत आ कनबो करैत। दुनूक करेज छहोँछीत भऽ गेल।
सबा बजैत। टहटहौआ रौद। हवा शान्त। साफ मेघ। घामसँ तर-बत्तर, माथपर मोटरी, हाथमे वी.आइ.पी. बैग नेने सोमनक बेटा रामदत आँगन पहुँचल। माए-बापक दशा देखि छाती काँपए लगलै। मेह जकाँ आगूमे ठाढ़। सोगे दुनूक आँॅखि बन्न। बन्न आँखिसँ नोर टघरैत! दुनू अधीर। करेजकेँ थीर करैत रामदत बाजल-
“बाबू।
बाबू शब्द कानमे पड़िते दुनू बेकतीक आँखि खुजलै। मुदा नोर टघरिते रहलै। किन्तु आब नोरक रूप बदलए लगल। अखनि‍ धरि जे नोर सोगसँ खसैत रहै ओ सि‍नेहमे बदलि गेलै। अकचकाइत सोमनक मुहसँ निकलल-
“बौआ।
बिच्‍चेमे झपटि कपली बाजलि-
“बे-ट-आ।
ओसारापर बैग-मोटरी रखि रामदत पिताकेँ गोड़ लगले झुकल आकि‍ तखने कपली उठि कऽ दुनू हाथे पँजिया कऽ पकड़ि चुम्मा लैत पुनः बाजलि-
“भाग नीक छेलौ बेटा, जे हम सभ भेँट भेलिऔ, नै तँ तूँ केतए रहितँ तँए आ हम सभ केतए रहितौं...!
माएकेँ गोड़ लगि रामदत मोटरी खोलि दू किलो भरिक रसगुल्लाक पलोथि‍न, किलो रि कटलेट, किलो भरिक बीकानेरी भुजियाबला झोरा निकालि, घुसुका कऽ रखलक। दुनू परानीक भुखसँ जरल मन। जहिना गाएक गौजुरा बच्चा माएक थन दिस आँखि गड़ा देखैत रहैत, तहिना रसगुल्ला, भुजिया दिस रामदत आ कपली नजरि एकाग्र केने छल। दुनू लेल नव वस्त्र निकालि फुटा-फुटा रखलक। चमकैत स्टीलक थारी, लोटा, गिलास, बाटी एक भागमे रखलक। चाह बनबैक केटली, कप, छन्ना, आयरन, नारियल तेलक डिब्बा आरो-आरो सामान निकालि चद्दरिकेँ झाड़लक। जहिना चुल्हिक आगिमे ऊपर सँ थोड़बो पानि पड़ला ऊपर ठंढ़ापन अाबए लगैत, तहिना दुनूक नजरि चीज-वस्तु देखि शीतल हुअ लगलै। एकदम स्नानोपरान्तक शीतलता जकाँ! सोमनक शीतल मनसँ मधुर शब्द निकललै-
“बच्चा गरमाएल छह। पहिने नहा लैह। तहन‍‍ मन चैन हेतह।
माए-बापक मँुह देखि रामदत बाजल-
“बाबू हमरो भूख लागल अछि। पहिने कनी-कनी खा लिअ। पछाति नहाएब।
कहि रसगुल्लाक पलोथि‍नक गिड़ह खोलि दू बाकुट सोमनक आगू स्टीलक थारीमे आ दू बाकुट कपलीक थारीमे दऽ कटलेट, भुजियाक गिड़ह खोलि बाजल-
“जेते मन हुअए तेते खाउ। नहाइक कोनो औगताइ थोड़े अछि?”
अपनो मँुहमे रसगुल्ला लैत, बैग खोलि, मनी बैग निकालि रामदत पि‍ता आगूमे रखलक। रूपैआ देखि कपलीक मन टुकली जकाँ पहाड़पर चढ़ि गेल। धरतीकेँ गोड़ लागलक।
खाइत-नहाइत बेेर टगि गेलै। पछबरिया घरक छाहरि अदहा आँगन पसरि गेल। घरक कोनमे जहिना मोथीक पुरना बिछान बिछौल छल तहिना बिछौले रहए। घरसँ बिछान निकालि कपली पछबरिया ओसार लगा बिछौलक। ऊपरसँ नवका जाजीम बिछौलक। नवका सिरमा रखलक। तीनू गोटे बैसि गप-सप्‍प करए लागल। सोमन-
“बौआ, तूँ बौर केना गेलहक?”
मन पाड़ैत रामदत बाजल-
“बाबू, हम बौरलौं कहाँ! मामा गाममे मुजफ्फरपुरक छलगोरिया दुर्गाक मुरती बनबैले आएल रहए। ऊहो कुम्हारे रहए। तीन गोटे रहए। ओकर छोटका बेटा हमरे एतेटा रहए। ओकरासँ हमरा दोस्ती भऽ गेल। ओकरे संगे चलि गेलिअ।
बिच्‍चेमे कपली टपकली-
“रौ डकूबा, तोरा चिट्ठीओ-पुरजी नै पठौल भेलौ।
अपनाकेँ स्मरण करैत रामदत बाजल-
“माए, काज सिखैमे सभ किछु बिसरि गेल रहिऔ। तोरो सबहक हालत तँ बँढ़िए रहौ। तहन‍‍ चिन्ते कथीक करितौं।
सामंजस्य करैत सोमन-
“जहिया जे दुख लिखल छल से भोगलौं। यएह तँ भगवानक लीला छि‍यनि‍। कखनो दुख तँ कखनो सुख।
रामदत-
“बाबू एहेन दशा भेलह केना?”
बेटाक बात सुनि सोमनक आँखि भरि गेल, उत्तर देलक-
“बौआ, अखनि‍ धरिक जेते लूरि‍-बुधि‍ छेलए से सभ पुरान भऽ गेल। नवका सिखलौं नै।
पिताक बात सुनि रामदत नम्‍हर साँस छोड़ि मुस्‍कीआइत कहलक-
“बाबू, हमरा तँ छुट्टिए नै दैत रहए। बीस-बीस हजार रूपैआ मासमे कमाइ छी। तैपर सँ मूर्ति बनबौनिहारक कतार लागल रहैए।
बिच्‍चेमे कपली बाजलि‍-
“बेटा, की सभ लूरि‍ छौ?”
मुस्‍कीआइत रामदत-
“माए, माटिसँ लऽ कऽ सिमटी धरिक मुरती, नाच-तमाशाक परदा, घर सभमे चित्र सभ बनबैक लूरि‍ अछि।
बेटाक बात सुनि सोमनक अहं जगलै। बाजल-
“बौआ, जहन एते कमाइक लूरि‍ छह, तहन नोकरी किए करै छह?”
मुस्‍कीआइत रामदत बाजल-
“एते दिन जे नोकरी केलौं ओ नोकरी नै भेल। साल भरि तँ माटिए सनैमे लगि गेल। साल भरि खढ़ बन्हैमे आ पहिल माटि लगबैमे चलि गेल। तेसर साल मुरती बनबैमे लागल। चारिम साल मुरतीक आँखि बनबैमे लागल। ऐ साल पाँचम बर्ख, गुरु दैछना चुका एलौं हेन। आब अपन कारोबार करब। जखने अपन कारोबार हएत तखने ने दू-चारि गोटे सिखबो करत!
अपन मजबूरी देखबैत सोमन-
“बौआ, अपन चिन्ता जेते शरीरकेँ नै खेलक तइसँ बेसी तोहर खेलक। किए तँ हरिदम मनमे नचैत रहए जे वंश अंत भऽ गेल। जाबे दुनू परानी छी ताबै धरि....। मुदा आइ सबुर भऽ गेल जे जाबे बीटमे बाँसक चढ़न्त रहै छै ताबे उन्नैससँ बीस होइत जाइ छै मुदा निच्चाँ मुहेँ होइते सरसरा कऽ कोँपरो सुखए लगै छै। आशा भऽ गेल जे हमरो वंश एक-सँ-एक्कैस हएत!
बेटाकेँ आधुनिक मुर्तिकार रूपमे पाबि सोमन गद्-गद् भऽ गेल। हृदए अह्लादसँ भरि गेलै! नजरि सहजहि बेटाक नजरिमे गड़ि गेलै। धि‍यान बढ़ैत बाँसक बीटमे बिचरण करए लगलै...! मनमे एलै, बेटासँ नव गुण सीखब। अखनो ई दुनू बेकती बहुतो काज कऽ सकै छी।

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