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Friday, October 18, 2013

पीराड़क फड़ (दोसर संस्‍करण)

पीराड़क फड़

गोल-गोल हरिअर-हरिअर भुआ जकाँ सोहरी लागल डारिमे जेहने हरिअर पात तेहने फड़, छी पीराड़क फड़। पाँचेटा पुरान गाछ गाममे, बड़का-बड़का आम, जामुन शि‍शो गाछक जनम ओ पाँचो पीराड़क गाछ देखने। सए बर्खक करियाबाबा कहैत जे जहियासँ मोन अछि ओ पाँचो गाछ ओहिना बूझि पड़ैए। एते ठनका खसल, बिहाड़ि आएल मुदा ओइ पाँचो गाछक रूइयाँ भगन नै भेलै। दस गजसँ नम्‍हर नै, ने मेघडम्मर जकाँ बहुत पसरल आ ने छिड़ियाएल। छोट-छीन बर्खाकेँ रोकि पानिक बुन्नकेँ माटिक मुँह नै देखए दैत घनगर पात सजा-सजा पाँचो गाछ सजल। सोहत-कोथी सन चोखगर काँट सभ डारि रूपी पहरुदारकेँ सजौने। छड़गर-छड़गर डारिमे चौरगर-चौरगर पात जेना इन्द्रकमल वा तगड़ फूलक होइत। तहिना फूलो।
पाँचो पीराड़क गाछ सएओ बिहाड़ि, हजारो बर्खा, नम्‍हरसँ छोट धरि सएओ बेर पाथरक चोट खेलक, बाढ़ि रौदीकेँ हँसैत-हँसैत सहलक। जहिना गामक उत्तरबरिया बाधमे एक्के आड़िपर पतिआनी लगा पाँचो गाछ ठाढ़ तहि‍ना देखैओमे पाँचो एक्के रंग। ने नम्‍हर ने छोट डारि जे एक-दोसरसँ हक-हिस्सा लेल झगड़ैत। पाँचोमे अटुट प्रेम। जहन‍‍ पाँचो फूलसँ सजैत तहन‍‍ बूझि पड़ैत जे एक-दोसरक जुआनीक रंग देखि हृदैसँ खिलखिला-खिलखिला हँसैत हुअए। एतेक नम्‍हर जिनगीमे ने कियो जड़िकेँ तामि-कोड़ि पानि देलक आ ने ठारिकेँ छकड़ि-छुकड़ि गाछकेँ सुन्दर बनौलक। सोलहो आना देखभाल भगवानेक ऊपर। तँए पाँचो गाछ स्वाभिमानसँ भरल जे केकरो एहसान रूपी कर्ज जिनगीमे नै लेलौं। हरिदम पाँचो हँसैत-इठलाइत मन्द हवामे झुमैत।
पहिने पाँचो गाछक फूल फुला फड़ बनि झड़ि जाइत। बादमे फड़
पूर्ण जिनगीक सुख भोगि अंतिम अवस्थामे पकलापर पवन रूपी न्योतहारीकेँ पठा चिड़ै-चुनमुनीकेँ बजा-बजा अपन शरीर दान करैत, यएह पाँचो गाछक जिनगी भरिक धरम रहल।
ओइ गाछसँ हटिए कऽ लोक सभ खेतक जोत-कोर कऽ उपजबैत जे ओइ गाछपर सुगबा साँप रहैए। सुगबा साँप लोककेँ देखैमे अबिते ने छै ओ हरिअर-लत्ती जकाँ रहैए। जेकरा कटलासँ स्वर्ग-नरकक द्वार अनेरे खुजि जाइ छै। बीचमे केतौ कोनो रूकाबटि‍ नै होइए।
उत्तरबारि बाधक रखबारि रतना करै छल। दू साल पहिनइ दुनू परानी रतना मरि गेल। दू सालसँ कि‍यो बाधक रखबारि करैले तैयारे ने होइत। डर होइत जे पीराड़क गाछपर सुगबा साँप रहैए तँए के अपन जान गमाैत, दू-चारि सेर अन्न सालमे हेतै आकि‍ नै।
साल भरि पहिने पिचकुन नोकरी करैले मोरंग गेल। रौदियाह समए भेने जहन‍‍ किसानो सबहक दशा नीक नै तहन‍‍ जन-बोनिहारक चर्चे की। साँझक-साँझ चुल्हि नै पजरैत। गरीब-गुरबा गाए-बकरी बेचि-बेचि मोरंग, सिलीगुड़ी, आसाम नोकरी करए गेल। पिचकुन सेहो रखबारीवाली नवकी कनियाँसँ पनरह रूपैआ कर्जा लऽ गेल रहए। अखनि‍ धरि गाममे पिचकुनकेँ बकलेले-ढहलेेले बुझै छल। जेते गोटेक मेड़िया नोकरी करए गेल छल ओइमे सँ किछु गोटे विराटनगर, किछु गोटे रंगैली, किछु गोटे सिलीगुड़ी आ किछु गोटे आसाम गेल। पिचकुनमाकेँ बकलेल बूझि सभ छोड़ि अपन-अपन गर लगबए लगल। असगरे पिचकुनमा इटहरी चौकसँ थोड़े आगू जा एकटा गाछक निच्चाँमे बैसि चूड़ा आ घुघनी खाए लगल। खाइते छल आकि दू गोटेकेँ उत्तर मुहेँ जाइत देखि चूड़ा-घुघनीकेँ गमछाक खोंचड़ि बना खाइते संगे विदा भेल। खेबो करए आ गप्पो-सप्प करए।
जाइत-जाइत धनकुटासँ कोस भरि पाछुए पहुँचल। जइ दुनू गोटे संग रहए ओ दुनू किसान। ओहीमे सँ एक गोटे मंगतराम जे पिचकुनकेँ नोकरी रखि लेलक। मरद-मौगी मिला पचासोटा जन मंगतराम खटबैत। मंगतराम सखुआ लकड़ीक तीन महला घर बनौने। किछु खेत पहाड़ोपर रहए। जइमे मरूआ, सामी-कौनी उपजैत। नेबो समतोला सबहक गाछ सेहो रोपने छल। पहाड़क ऊपरमे रौद देखि पिचकुन उजड़ा पहाड़ बुझैत। छोट-छोट गाछसँ लऽ कऽ पैघ-पैघ गाछक जंगल। छोट-छोट पहाड़सँ लऽ कऽ नम्‍हर-नम्‍हर पहाड़ देखि पिचकुन मोने-मन सोचए जे दोसर दुनियाँमे चलि एलौं। मुदा रस्ताक ठेकान रहने भरोस रहै जे तीन दिनमे अपन गाम चलि जाएब। बड़का-बड़का बखाड़ी, नारक बड़का-बड़का टाल देखि पिचकुन मोने-मन खुशी होइत जे मालिक खूब धनिक अछि। कहियो नोकरीसँ हटाैत नै। जब गाम जाइक मन हएत छुट्टी लऽ कऽ चलि जाएब आ फेरो चलि आएब। रस्तो तँ देखले अछि।
साल भरि नोकरी केला पछाति‍ पिचकुनकेँ गाम अबैक मन भेलै। जहियासँ पिचकुन नोकरी कऽ रहल छल तैबीच एक्को पाइ घर नै पठौलक। पठैबतए केना? ने डाकघरक ज्ञान रहै आ ने केकरो अबैत-जाइत देखै। एकटा थारूनसँ पिचकुनकेँ लाट-घाट भऽ गेलै। अठारह-उन्नैस बर्खक ओ थारून। मंगते रामक जन। ओकर नाओं छल धनियाँ। पिचकुन संग अबैले धनियाँ राजी भऽ गेलि। साल भरिक पछाति‍ पिचकुन गाम औत तँए माए लेल ऊनी स्वीटर, चद्दरि आ अपनाे लेल फुलपेंट, भरि बाँहिक स्वीटर, चद्दरि सेहो कीनि लेलक। समाज सभ लेल समतोला किनलक। कपड़ा, समतोला आदि‍क मोटरी बान्हि, रूपैआकेँ फुलपेंटक जेबीमे लऽ मोटरीमे रखि‍ बन्हलक। बटखर्चा लेल मुरही लऽ लेलक। धनियाँ अपन धएल-धरल रूपैआ कपड़ा सभ बान्हि रातिएमे तैयार भऽ गेलि। जंगल-झार दुआरे रातिमे नै निकलल। भुरूकबा उगिते दुनू गोटे अपन-अपन मोटरी लऽ चुपचाप विदा भऽ गेल। जही रस्तासँ पिचकुन गेल रहए ओही रस्तासँ विदा भेल। इटहरी आबि दुनू गोटे बस पकड़लक। बससँ बथनाहा आबि पएरे विदा भेल। कोसीमे नावपर पार भऽ निर्मली तक पएरे आएल। निर्मलीमे ट्रेन-गाड़ी पकड़ि गाम आएल।
फुलपेंट कमीज आ पएरमे चप्पल पहिरने बाबड़ी उनटौने, कान्हपर मोटरी लेने आगू-आगू पिचकुन आ पाछू-पाछू धनियाँ आबि माएकेँ गोड़ लगलक। टोल-पड़ोसक लोक पिचकुनकेँ चिन्हबे ने करैत। पिचकुन माएकेँ गोड़ लागि ओलतीमे चप्पल खोलि‍‍ माएकेँ घर लऽ जा मोटरी खोलि रूपैआक गड्डी चुपचाप देखौलक। देखि‍ते बुझू ऊसरमे दूबि जनमि गेल। रूपैआक गड्डी देखि माएक मोन उड़ि गेलै। हसोथि-पसोथि कऽ सभ कपड़ा समेटि, रूपैआ तरमे घोंसिआ मोटरी बान्हि धरैनपर रखलक। धनियाँ ओसारपर बैसलि। धनियाँक सम्बन्धमे माए पिचकुनकेँ पुछलक-
“ई कनियाँ के छेथि‍न?”
मुसकी दैत पिचकुन कहलक-
“तोरे पुतोहु। ओत्तै बिआह कऽ लेलौं।
एक्के-दुइए टोलक जनिजाति आबए लागलि। पिचकुनक माए सभकेँ एक-एकटा समतोला देलक। एकटा दसटकही जेबीसँ निकालि पिचकुन माएकेँ दैत कहलक-
“माए, भूख लागल अछि। जो दोकानसँ बेसाहि सभ कि‍छु लऽ आन। पहिने भानस कर। ताबे हम नहा लइ छी। तीन दिनक रस्ताक झमारल छी, ओंघीसँ देह भँसिआइए।
पुतोहु देखि पिचकुनक माए मुनेसरी सौंसे टोल पुतोहु देखैले हकार देलक। जातिकेँ भोजो गछलक।
सातम दिन पिचकुन दुनू परानी साँझमे सोमनीदादी ऐठाम गेल, आँगनमे बिछान बिछा सोमनीदादी पोता-पोती सभकेँ खेलबैत रहथि। दादीकेँ पिचकुन गोड़ लागि इशारासँ धनियाँकेँ सेहो गोड़ लगै लऽ कहलक। धनि‍याँ सेहो दादीकेँ गोड़ लगलक। ओछाइनिक कोनपर बैसि पिचकुन आँखिक इशारासँ दादीकेँ जाँतैले कहलक। धनियाँ सोमनीदादीकेँ जाँतब शुरू केलक तखने पिचकुन सोमनीदादीकेँ कहए लगल-
“दादी, गाममे तँ सभ बकलेले-ढहलेल बुझै छेलए। साल भरि पहिनइ मोरंग गेलौं। कमेबो केलौं आ ओत्तै बिआहो कऽ लेलौं। आब गामेमे रहब। गाममे अहाँ, सभसँ पैघ छी दुनू परानीकेँ असिरबाद दिअ।
उत्तरबारि बाधमे, सभसँ बेसी खेत सोमनीदादीक। जइ बाधमे दू सालसँ रखबार नै। पिचकुनकेँ दादी उत्तरबारि बाध रखबारि करैले कहलक। संगे पाँच कट्ठा खेत बटाइओ करैले कहलक। रोजी देखि पिचकुन गछि लेलक। पिचकुनकेँ खोपड़ी बन्हैले दादी दूटा बाँस, एक बोझ खढ़ आ एक मुट्ठी साबे गछलक।
दोसर दिन पिचकुन दुनू परानी उत्तरबारि बाध जा कऽ खोपड़ी बन्हैक जगह टेबलक। एकटा ऊँचगर परती छल जैपर बरसातोमे पानि नै अँटकै। धनियाँक नजरि पीराड़क गाछपर पड़लै, गाछ लग जा धनियाँ गाछमे फड़ तजबीज करए लागलि। फड़ देखि धनियाँ साड़ीक फाँड़ बान्हि गाछपर चढ़ि गेलि। गाछमे लुबधल पीराड़क फड़ देखि धनियाँक मोन चपचपा गेलै। तीमन करैले दसटा तोड़िओ लेलक। जेना केकरो माटिमे गड़ल रूपैआक तमघैल भेटलासँ खुशी होइत तहिना धनियाँक मोन खुशीसँ चपचपा गेलै। पिचकुन कोदारिसँ परतीकेँ छिलए-बनबए लगल। मोने-मन धनियाँ एक मनसँ ऊपरे फड़ एक-एकटा गाछमे ठेकलक। खुशीसँ धनियाँक मुहसँ गीत निकलए लगल। गीत गुनगुनाइत पिचकुनकेँ हाक पाड़ि धनियाँ कहलक-
“तकदीर जागि गेल। देखै छिऐ गाछमे कोंकची लागल फड़ छै। काल्हिसँ तोड़ि हाट लऽ जाएब। खूब महग बिकाएत।
पिचकुनकेँ बुझले ने। धनियाँक बातपर बिसबासे ने करए। खिसिआ कऽ पिचकुन पुछलक-
“अहाँ चिन्है छिऐ जे की छिऐ? जँ लोक खइतै तँ अहि‍ना लुधकी लगल रहितै?”
पीराड़ देखि मोने-मन धनियाँ अपन गरीबीकेँ खुशहाली दिस‍ बढ़ैत देखए‍। गरीबीक मनमे अमीरीक ज्योति अबैत देखए। धनियाँसँ रक्का-टोकी नै कऽ पिचकुन बाजल-
“हमरा हाट-बजार करैक लूरि‍ नै अछि। केना बेचब?”
धनियाँ नैहरमे हाटो-बाजार करै छलि। खेतीक सभ काजक लूरि‍ सेहो छेलै। ओतबे नै, हाँस-बत्तक पोसबो करए आ हाट जा बेचबो करए। निर्भीक भऽ धनियाँ कहलक-
“कड़चीक लग्गी बना कऽ सभ दिन तोड़बो करब आ बेचबो करब। अहाँ संगमे रहब आ देखबै।
आसिन आबि गेल। बर्खा ठमकल। सबारी समए। अधिक बर्खा भेने खेत सभमे धान ऊपरा-ऊपरी। जेतए धरि नजरि जाइत तेतए धरि एकरंग हरिअर धान बूझि पड़ैत। बेर टगिते धानक पातपर ओसक बुन्न चमकए लगैत। जहिना कोनो बाला हरिअर साड़ी, हरिअर आङी पहिर माथमे मङटि‍का पहिर देखैमे लगैत तहिना खेत रूपी बाला देखैमे लगैत। पुर्बाक मन्द-मन्द हवा चलए लगल। जेत्तै बैसू तेत्तै आलस आबि जाएत। बाधमे तीनठाम पानि बोहैक कटारि। जइसँ ऊपरका खेतक पानि निचला खेत दिस‍ बोहैत। पिचकुन तीनू कटारिकेँ दुनू भागसँ बान्हि अपियारी बनौलक। अपियारीक पानि उपछिते अनेरूआ माछ कूदि-कूदि फँसए लगल। धनियाँ अपियारीओ ओगरै आ माछो बिछैत। पिचकुन छिट्टामे लऽ हाटो जा बेचै आ गामोमे घूमि-घूमि बेचए लगल। दोसर-दोसर माछ बेचनिहार पिचकुनकेँ एकटा साइकिल कीनि लइले कहलक। माथपर माछक छिट्टा लऽ घुमने देहो महकै। साइकिलक नाओं सुनि पिचकुनक सूतल मन फुड़फुड़ा कऽ उठल। मुदा साइकिल चढ़ब नै एने पिचकुन थतमतमे पड़ि गेल। मोने-मन पिचकुन सोचलक, जहन‍‍ साइकिल भऽ जाएत तहन‍‍ चढ़ब सिखबो करब आ जाबे सीखल नै हएत ताबे पछि‍ला सीटपर छिट्टा रखि गुड़काइए कऽ घूमि-घूमि बेचब। हाटसँ घुमैत काल पिचकुन धनियाँकेँ कहलक-
“अधपुराने एकटा साइकिल कीनि लेब।
आमदनीक खुशी धनियाँकेँ रहबे करए। मुस्‍कीआइत बाजलि‍-
“जहन‍‍ साइकिले किनब तँ अधपुरान किए किनब? लबके कीनि लिअ।
जितिआ पावनि। मरूआ रोटी माछक पावनि। एक दिन पहिने पिचकुनकेँ माछक बेना लोक सभ दऽ गेल। सुतली रातिमे पिचकुन चहा-चहा कऽ उठै आ घरवाली धनियाँकेँ कहै-
“अपियारीक सभ माछ बीछि लेलक।
सपना बूझि फेर सूति रहए। अन्हरोखे दुनू परानी पिचकुन टौहकी-छिट्टा लऽ अपियारी लग गेल। अन्हार रहने माछ देखबे ने करए। एकटा अपियारी लग पिचकुन बैसल। दोसर लग धनि‍याँ। बीड़ी लगा-लगा पिचकुन पीबैत। फरिच्छ होइते एकटा अपि‍यारीमे पिचकुन आ दोसरमे धनियाँ माछ बिछए लागलि। माछ हएत की नै तइ दुआरे लोक-सभ अपियारीए लग पहुँचए लगल। तरजू-बटिखाड़ा नै रहने पिचकुन अन्दाजेसँ बेचए लागल। छिट्टासँ ऊपरे माछ बीकि‍ गेलै। बँचलाहा माछ दुनू परानी आँगन नेने आएल। अदहासँ बेसीए अँगनोमे बीकल। पावनिक दिन रहने हाटक भरोसे रहब पिचकुन नीक नै बूझि धनियाँकेँ कहलक-
“झब दे जलखै बनाउ। अखने माछ बेचए जाएब।
हाँइ-हाँइ कऽ धनियाँ रोटी पका माछक सन्ना बनौलक। साइकिलपर छिट्टा लादि पिचकुन अँगने-अँगने माछ बेचए लगल। बारह बजैत-बजैत सभटा माछ बीकि‍ गेलै।
रौदो तीखर। पिचकुन माछ बेचि पसि‍खाना पहुँच‍‍ गेल। पसि‍खाना ताड़ी पिआकसँ भरल। दुनू परानी पासी गहिंकी सम्हारैमे तंग-तंग रहए। बैसैक जगह नै देखि पिचकुन पासी लग जा एक बम्मा ताड़ी लऽ ठाढ़े-ठाढ़ पीब कैंचा दऽ साइकिलपर चढ़ि विदा भेल। धनियाँकेँ भाँज लगि‍ गेलै जे पिचकुन ताड़ी पीबैए। दूरेसँ पिचकुनकेँ साइकिलपर अबैत देखि धनियाँ ओसारपर ओछाइन ओछा सुजनी ओढ़ि कुहरए लागलि। आँगन अबिते पिचकुन धनियाँकेँ कुहरैत देखलक। धनियाँक लगमे जा पिचकुन पुछलक-
“की-इ-इ होइ-इ-इ अए-ए-ए?”
पिचकुनक बोली सुनि धनियाँ आरो जोर-जोरसँ कुहरए लागलि। धनियाँक मुँह उघारि पिचकुन फेर पुछलक। नकियाइत धनियाँ बाजलि-
“मरि जाएब। बड़का दुख पकड़ि लेलक। छाती दुखाइए। जाउ दोकानसँ करूतेल नेने आउ। सगरे देह मालिस करू, तखने छूटत।
लटपटाइते पिचकुन शीशी लऽ दोकानसँ तेल आनि धनियाँकेँ मालिस करए लगल। कर घूमि‍-घूमि‍ धनियाँ पिचकुनसँ भरि पोख मालिस करौलक। जहन‍‍ पिचकुनकेँ हाथ दुखा गेलै तहन‍‍ धनियाँ बाजलि-
“आब, कन्नी मन हल्लुक लगैए।
मन हल्लुक सुनि पिचकुनक मनमे आशा जगलै। पुनः मालिस करए लगल। धीरे-धीरे पिचकुनोक निशाँ उतरै आ धनियोक तामस कमै। पिचकुन खुशी जे घरवाली बँचि गेलै आ धनियाँ खुशी जे ताड़ी पीबैक नीक सजा देलियनि।
आसिन कातिकक आमदनीसँ पिचकुनक जिनगीक नींव पड़ल, पीराड़सँ लऽ कऽ माछ तकमे नीक कमेलक। जइ पिचकुनक जिनगी गरीबीसँ जर्जर छल जे जानवरोसँ बत्तर जिनगी जीबै छल। जहिना मनुख जानवरक विकसित रूप छी तहिना पिचकुनो जानवरक जिनगी टपि मनुखक जिनगीमे प्रवेश केलक। जहिना हमर पूर्वज खोपड़ी बना रहै छला आ धीरे-धीरे आइ नीक मकानमे रहै छथि तहिना पिचकुन माटिक भीतक देबालक घर बनबैक विचार केलक। ओना पानि पीबैक अपना कोनो उपए नै छै जेकरा लेल आगू साल जोगार करैक विचार दुनू परानी मिलि केलक। खाली घरे आ पानिएक दिक्कत पिचकुनकेँ नै। ने घरमे सुतैले चौकी आ ने भानस करैले बरतन छेलै जे सभ रसे-रसे जोगार करैक विचार केलक।
सौंसे बाधमे धान फूटि लबल। हरिअर-उज्जर-लाल-कारी शीशसँ बाध चमकए लगल। दुनू परानी पिचकुन घर-आँगन छोड़ि भरि-भरि दिन बाधेमे रहए लगल। जँ बाधमे नै रहैत तँ साँढ़-पाड़ाक उपद्रव, घसवहिनीक उपद्रवसँ गिरहस्तक मुहेँ फज्झति सुनैत।
साँझू पहरकेँ धनियाँ सोमनीदादी लग जा खेतमे लुबधल धानक प्रशंसा करैत। सोमनीदादी हृदैसँ धनियाँकेँ असिरवाद दैत। सामा पावनि भऽ गेल। गोटि‍-पङरा खेतक धान सेहो पाकए लगल। बैसारी देखि धनियाँ पिचकुनकेँ कहलक-
“पीराड़क गाछक जड़िकेँ तामि-कोड़ि कऽ सेरिया दियौ जे आगू नीक-नहाँति फड़त।
धनियाँक बात सुनि पिचकुन बढ़ियाँ जकाँ पीराड़क गाछक जड़िकेँ तामि बकरी भेराड़ी मिलल छाउर पाँचो गाछमे चारि-चारि पथिया दऽ दू-दू घैल पानि सेहो देलक। पनरहे दिनक पछाति‍ पाँचो गाछक रंग बदलि हरिअर-कचोर भऽ गेलै। सभ मुड़ीमे नवका कलश सेहो भेलै। जहिना मनुख अपन बच्चाकेँ सेवा करैत तहिना दुनू परानी पिचकुन पीराड़क गाछकेँ करए लगल। अपन सेवा देखि पाँचो पीराड़क गाछ हृदैसँ दुनू परानी पिचकुनकेँ असिरवाद देमए लगल।

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