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Friday, October 18, 2013

भैंटक लावा (दोसर संस्‍करण)

पछिला बाढ़ि मोन पड़िते देह भुटैक जाइए। रूइयाँ-रूइयाँ ठाढ़ भऽ जाइए। बाढ़िक विकराल दृश्य आँखिक आगू नाचए लगैए। घोड़ोसँ तेज गतिसँ पानि दौगैत। बाढ़िओ छोटकी नै, जुअनकी नै, बुढ़िया। बुढ़िया रूप बना नृत्य करैत। केकरा कहूँ बड़की धार आ केकरा कहूँ छोटकी, सभ अपन-अपन चिन्ह-पहचिन्ह मेटा समुद्र जकाँ बनि गेल। जेम्हर देखू तेम्हर पाँक घोराएल पानि, निछोहे दछिन मुहेँ दौगल जाइत। केतेक गाम-घर पजेबाक नै रहने घर-विहिन भऽ गेल। इनार, पोखरि, बोरिंग, चापाकल पानिक तरमे डुबकुनियाँ काटए लगल। एहेन भयंकर दृश्य देखि लोककेँ डरे छने-छन पियास लगलोपर पीबैक पानि नै भेटैत। जीवन-मरण आगूमे ठाढ़ भऽ झिक्कम-झिक्का करैत। घर खसल, घरक कोठी खसल, कोठीक अन्न भँसल। जेहने दुरगति घरक तेहने गाएओ-महिंस, गाछो-बिरिछ आ खेतो-पथारक।
घरक नूआँ-बिस्तर आ आनो-आन समानक मोटरी बान्हि माथपर लऽ अपनो डाँड़मे दू भत्ता खरौआ डोरी बान्हि आ बेटोक डाँड़मे बान्हि आगू-आगू मुसना आ पाछू-पाछू घरवाली जीबछी, बेटी दुखनीकेँ कोरामे लऽ कन्हा लगौने पोखरिक ऊँचका महार दिस चलल। अखनि धरि ओ महार बोन-झाड़ आ पर-पैखानाक जगह छल। जइमे साँप-कीड़ा बसेरा बनौने, बाढ़ि ओकरा घराड़ी बना देलक। जहिना इजोतमे छाँह लोकक संग नै छोड़ैत, तहिना बर्खा बाढ़िक संग छोड़ैले तैयार नै। निच्चाँ पानिक तेज गति आ ऊपर सँ बर्खाक नम्‍हर बुन्न। महारपर मुसनाकेँ पहुँचैसँ पहिनइ बीस-पच्चीस गोटे अप्पन-अप्पन धिया-पुता, चीज-वस्‍तु आ माल-जालक संग पहुँच‍ चुकल छल। महारपर पहुँच‍ मुसना रहैक जगह हियाबए लगल। शौच करैक ढलान लग खाली जगह देखि मुसना मोटरी रखलक। मोटरी रखि‍ बिसनाइरिक डारि‍ तोड़ि खर्ड़ा बनौलक। ओइ खर्ड़ासँ खर्ड़ए लगल। एक बेर खरड़ि‍ कऽ देखलक तँ मनमे पड़पन नै भेलै।
फेर दोहरा कऽ खरड़ि चिक्कन बनौलक। चिक्कन जगह देखि दुनू बेकतीक मनमे चैन भेलै। मोटरी खोलि मुसना एकटा बोरा निकालि चारिटा बत्तीक खुट्टा गाड़ि, खरौआ जौरसँ चारू खूट बान्हि, बत्तीमे बान्हि कऽ घर बनौलक। दोसर बोरा निच्चाँमे ओछा धियो-पुतोकेँ बैसौलक आ मोटरीओक समान रखलक। चिन्तासँ दुनू परानीक मुँह सुखाएल रहए। एक दिस दुनू बच्चाकेँ मुसना देखए आ दोसर दिस गनगनाइत बाढ़िकेँ। माथपर दुनू हाथ दऽ जीबछी मोने-मन कोसी-कमला महरानीकेँ गरियेबो करैत आ जान बँचबैले निहोरो करैत। दुनू बच्चो कखनो कऽ बाढ़ि देखि हँसैत तँ कखनो जाड़े कनैत।
बाढ़िक वेगमे एकटा घर भँसियाएल अबैत देखि मुसना बाँसक टोन आ कुड़हरि लऽ दौगल। पानिमे पैसि हियाबे लगल जे कोन सोझे घर औत। ठेकना कऽ हाँइ-हाँइ पाँचटा खुट्टा ठोकलक। आस्ते-आस्ते घर आबि कऽ खुट्टामे अड़कल, खुट्टामे अड़ल घर देखि घरवालीकेँ हाक पाड़ि कहलक-
“हाँसू नेने आउ। घरक समचा सभ उघि-उघि लऽ जाउ।
घरक ऊपरमे एकटा कुकुर सेहो भँसैत आएल। लोकक सुन-गुन पाबि कुकुर कूदि कऽ महारपर चलि गेल। ठाठक बत्तीमे जहाँ मुसना हाँसू लगौलक आकि एकटा साँप लप दऽ हाथेमे हबक मारि देलकै। घरक भार थालमे गड़ल खुट्टा नै सम्हारि सकल। पाँचो खुट्टा पानिमे गिर पड़लै। घर भँसि‍ गेलै। खूब जोरसँ मुसना कनबो करैत आ हल्लो करैत जे हौ लोक सभ, दौड़ै जाइ जा हौ, हमरा साँप काटि लेलक। मुसनाक कानब सुनि घरवाली सेहो बपहारि काटए लागलि। बपहारि कटैत घरवालीकेँ मुसना कहलक-
“हे गए दुखनी माए, नाग डसि लेलकौ। छाती लग बिख आबि गेल। कनीए बाँकी अछि कंठ छुबैले। धिया-पुताकेँ हाक पाड़ि कनी मुँह देखा दे। आब नै बँचबौ।
जीबछी हल्लो करए आ घरबलाक बाँहि पकड़ि ऊपरो करैत। महारक किनछरिमे पहुँच‍ जहाँ ऊपर हुअ लगल आकि दुनू गोटे पिछड़ि कऽ तरे-ऊपरे निच्चाँमे खसल। दुनू परानी भीजल तँ रहबे करै, आरो नहा गेल। मुदा तैयो ओरिया-ओरिया कऽ ऊपर भेल। महारपर आबि जीबछी चुनक कोहीसँ चुन निकालि दाढ़मे लगौलक।  
साँपक बिख झाड़निहार गाममे एकोटा नै। मुदा रौदिया अही बेरक दशमीमे चनौरा गहबरमे चाटी सिखने छल। सभ कियो रौदियाक खोज करए लगल। रौदिया माछ मारैले सोहत लऽ कऽ बाध दिस गेल छल। एक गोटे ओकरा बजा अनलक। अबिते रौदिया सोहत कातमे रखि हाथ-पएर धोइ मुसना लग आबि बाजल-
“हौ भाय, हमर चाटी सिद्ध नै भेल अछि, किक तँ हम अखनि धरि गंगा स्नान नै केलौं हेन। मुदा तैयो बिसहाराकेँ सुमरि देखै छिऐ।
मुसनाकेँ आगूमे बैसा रौदिया हाथेसँ जगहकेँ झाड़ि चाटी रखलक। सभ रौदिया दिस देखैत। मुदा चाटी चलबे ने कएल। बाढ़ि दुआरे आन गामसँ झाड़निहार आ चट्टिबाहकेँ बजाएब महाग मोसकिल रहए। सभ निराश भऽ गेल। छाती पीटि-पीटि जीबछी कनबो करए आ देवी-देवताकेँ कबुलो करए। मुदा ढोढ़ साँप कटने छेलै तँए बिख लगबे ने केलै।
गोसाँइ लूक-झूक करए लगल। गामक ढेरबा, बूढ़ आ जुआन स्त्रीगण सभ चङेरीओ आ चङेरोमे काँच माटिक दियारी लऽ पोखरिक घाट लग जमा भऽ कमला महरानीकेँ साँझ दऽ गीत गाबए लागलि‍। बच्चा सभ जय-जयकार करैत। तैबीच लुखिया कमला महरानीकेँ पाठी कबुला केलक, सुबधी एक सेर मधुर। दोसरि साँझ धरि गीत-गाबि सभ घूमि कऽ आँगन आएल।
एक रफ्तारमे बाढ़ि पाँच दिन रहल। मुदा पोह फटिते छठम दिन पानि कमए लगल। बाढ़िक पानि जहिना हुहुआ कऽ अबैए, तहिना जाइए। बेर झुकैत-झुकैत घर-अँगनाक पानि निकलि गेलै। मुदा थाल-खिचार रहबे करए। सातम दिनसँ लोक घर ठाढ़ करए लगल। बाढ़ि सटकिते लोक परदेश दिस पड़ाए लगल। गाममे ने एक्कोटा धानक गब बँचल आ ने खेत रोपैले बिराड़। नारक टाल सभ केतए भँसि कऽ गेल तेकर ठेकान नै। गहुमक भुस्सी भुसकाँरेमे सड़ि-सड़ि गोबर बनि गेल। मनुखसँ बेसी दिक्कत माल-जालकेँ भऽ गेलै। आमक पात, बाँसक पात आन-आन गाछ सबहक पात काटि-काटि माल-जालकेँ लोक खुआबए लगल। आन-आन गामसँ नार, भुस्सी कीनि-कीनि अानए लगल। मुदा माल-जाल तैयो अनधुन मुइलै। जे बँचल रहै, ऊहो सुखा कऽ संठी जकाँ भऽ गेलै। तैपर सँ रंग-बिरंगक बि‍मारी सभ सेहो आबि गेलै। केकरो खुरहा तँ केकरो पेटझड़ी। किछु गोटे अपन सभ मालकेँ कुटमैती सभमे दऽ आएल।  
चारिक अमल। पिसुआ भांग पीब श्रीकान्त मैदान दिससँ आबि दलानपर बैसि चाह पीबैत रहथि। सोगसँ अधमरु जकाँ भेल। मोने-मन सोचथि जे महाजनी तँ चलिए गेल जे आब अपनो साल भरि की खाएब? अगते धान सबाइ लगा देलौं। बड़ पैघ गलती भेल जे एक्को बखाड़ी पछुआ कऽ नै रखलौं। मुदा एक बखाड़ी रखनइ की होइत। के केकरा मदति करत। ठीके कहब छै जे सभकेँ अपना भरोसे जीबाक चाही। भने दुआर परक बखाड़ीक धान सठि गेल। कियो दरबज्जापर औत तँ देखा देबै। मुदा अपनो तँ जरूरत अछि, से केतएसँ आनब? लऽ दऽ कऽ घरक कोठीमे जे चाउर अछि, ओतबे अछि। एक्को धूर धान नै बँचल अछि जे अगहनोक आशा हएत। आब अवाद कएल नै हएत। आगू रब्बीएक आशा। जे सभ दिन कीनि-बेसाहि कऽ खाइए ओकरा तँ कोनो नै, मुदा हमरा लोक की कहत...?  
चाह पीबिते-पीबिते श्रीकान्तकेँ चौन्ह अाबए लगलनि। मन पड़लनि जे बाबा कहने रहथि जे दरबज्जापर जँ कि‍यो दू-सेर वा दू-टका मांगैले आबए तँ ओकरा ओहिना नै घुमबिहक। ओइसँ लछमी पड़ाइ छथिन। जीबछीकेँ अबैत देखि श्रीकान्त हाक पाड़लखिन। सालो भरि जीबछी हुनके कुटाउन कऽ गुजर करै छलि। चाउर-चूड़ा कुटैमे जीबछी गाममे सभसँ बेसी लूरिगर। श्रीकान्तक लग आबि जीबछी हँसैत कहलकनि-
“एते किए सोगाएल छथि काका, हिनका एते छन्‍हि‍ तहन‍ एते दुख होइ छन्‍हि‍, हमरा तँ किछु ने अछि तँए कि मरि जाएब।
जीबछीक बात सुनि भखरल स्वरमे श्रीकान्त कहलखिन-
“जहिना सभ किछु बाढ़िमे दहा गेल तहिना जौं अपनो सभ तूर भँसि जैतौं, से नीक होइत। जाबे पराण छुटैत, तेतबे काल ने दुख होइत। आगू तँ दुख नै काटए पड़ैत। 
मुस्की दैत जीबछी बाजलि-  
“एक्केटा बाढ़िमे एते चिन्ता करै छथि काका, कनी नीक की कनी अधला, दिन तँ बितबे करतनि।
चीलम पीबैत मुसना ओसारपर बैसल। कसि कऽ सोँठ मारि‍ मोने-मन सोचए लगल, दू मास अगहन-पूस मुसहनि खुनि-खुनि गुजर करै छेलौं। दस सेर जमो भऽ जाइ छल आ गुजरो कऽ लइ छेलौं। ऊहो चलि गेल। ने एक्को गब केतौ धान बँचल आ ने गाममे एकोटा मूस। दोसर दम घीच धूँआकेँ घोटिते मनमे एलै, मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भात जँ जाड़क मासमे भेटए तँ ऐसँ नीक दोसर की हएत। एहेन खेनाइ तँ रजो-महरजोकेँ सिहिन्ते लागल रहतनि। ओ-हो-हो, भगवान गरीबेक सुख छीनि लेलनि!
मुसनाक पहुलका नाओं मकसूदन छल। मुदा मूस आ मुसहनिसँ बेसी सिनेह रहने लोक ओकरा मुसना कहए लगल। जीबछी आँगनक चुल्हिपर रोटी पकबैत। इनारपर हाथ-पएर धोय मुसना लोटामे पानि नेने आँगन आबि जलखै करैले बैसल। टिनही छिपलीमे रोटी-नून जीबछी घरबलाक आगूमे देलक। अँगनामे दुखबाकेँ नै देखि मुसना जोरसँ शोर पाड़लक। पिताक अवाज सुनिते दुखबा दौगल आबि धुराइले हाथे-पएरे खाइले बैसि रहल। दुनू बापूत खाए लगल। चुल्हिए लगसँ मुस्की दैत जीबछी बाजलि-  
“केकरो किछु होउ, जेकरा लूरि‍ रहतै ओ जीबे करत। ऐठाम तँ देखै छिऐ जे एक्के दहारमे किदनि बहारक खिस्सा अछि। सभ हाकरोस करैए। 
मुँहक रोटी मुसना हाँइ-हाँइ चिबा जीबछी दिस देखि कऽ बाजल-  
“तेते ने माछ भँसि-भँसि आएल अछि जे खत्ता-खुत्तीमे सह-सह करैए। कनी पानि तँ कम होउ। जखने पानि कम भऽ उपछै जोकर भेल आकि मछबारि शुरू कऽ देब। खेबो करब आ बेचबो करब। हरिदम दू पाइ हाथेमे रहत।
अपन नहिराक बात मन पड़िते जीबछी कहए लागलि-
“हमरा नैहरमे पूबसँ कोसी आ पच्‍छि‍मसँ गंडकक बाढ़ि सभ साल अबै छेलै। तैबीच जे धार अछि ओकर पानि तँ घुमैत-फिरैत रहिते छल। सगरे गाम साउनेसँ जलोदीप भऽ जाइ छेलै। टापू जकाँ एकटा परती टा सूखल रहै छेलै। ओइपर सौंसे गामक लोक बरसाती घर बना कऽ रहै छल। कातिक अबैत-अबैत खेत सभ जागए लगै छेलै। तेकर पछाति‍ लोक खेती करै छल। गहिंरका खेत आ खाधि-खुधिमे भैंटक गाछ सोहरी लागल जनमै छल। अगहन बीतैत-बीतैत ओ तोड़ैबला हुअ लगै छेलै। हम सभ ओइ भैंटकेँ तोड़ि-तोड़ि आनी, ओकरे दाना निकालि सुखा कऽ लावा भूजी। तेते लावा हुअए जे अपनो खाइ आ बेचबो करी। काल्हि गिरहतकाका ओइठाम जाएब आ कहबनि जे चौरीमे मनसम्फे भैंट जनमल अछि, ओ हमरा दऽ दिअ।
अखनि धरि दुनू परानी मुसना, चाउर आ चूड़ा कुट्टी करै छल, सेहो ढेकीमे। किएक तँ गाममे एक्कोटा छोटको मशीन धनकुटियाक नै छल। अधिकतर परिवार अपन-अपन ढेकी-उक्खड़ि रखै छल। मुसना सेहो कुट्टी दुआरे अपन ढेकी-उक्खड़ि रखने अछि। नीक चाउर बनबैमे जीबछीकेँ सभ लोहा मानैए। ऐ बेर तँ धनकुट्टी चलत नै। मुदा बाढ़िमे आन गामसँ तेते भैंट दहा कऽ चौरीमे आएल जे सापरपिट्टा गाछ सौंसे चौरीमे जनमि गेल अछि। तँए जीबछी मोने-मन चपचपाइत। दोसरकेँ भैंटक भाँज बुझले नै छेलै।
सभ दिन नहाइ बेरमे जीबछी चौरी जा भैंट देखि-देखि अबै छलि। चौरगर-चकरगर पात सौंसे चौरीकेँ छेकने। गोटि-पङरा फूल हुअ लगलै। फूल देखि जीबछीक मनमे होइ जे एतेटा फुलवाड़ी इन्द्रो भगवानकेँ हेतनि की नै। पाँचे दिनमे सौंसे चौरी फूल फुला गेल। अगता फूलक पत्ती झड़ि-झड़ि खसए लगल, फूलमे नुकाएल फड़ निकलए लगल। गोल-गोल, हरि‍अर-हरि‍अर। फड़ देखि जीबछी आमदनी बूझि, चौरी कातमे बैस, नव-नव योजना मोने-मन बनबए लागलि, ऐ बेर एकटा खूब निम्मन महिंस किनब। जौं महिंस जोकर आमदनी नै हएत तँ दूटा गाइए कीनि लेब। अप्पन तँ सम्पति भऽ जाएत। ओकरे खूब चराएब-बझाएब। ओहीसँ तँ चारू परानीक गुजर चलत। जिनगी भरि तँ कुटाओने करैत रहलौं मुदा ऐ बेर कमलो महरानी आ कोसीओ महरानी दुख हेरि लेलथि। मोने-मन जीबछी दुनूकेँ गोड़ लगलकनि। अपन धन हएत, तैपर सँ मेहनति‍ करब तँ कोन दरिदराहा दुख आबि कऽ हम्मर सुख छीनि लेत? मजगूत घर बान्हब, बेटा-बेटीक बिआह करब। नाति-पोता हएत, बाबा-दादी बनि कऽ जेते दिन जीबी ओ कि देवलोकसँ कम भेलै। अहीले ने सभ हरान अछि। केलासँ सभ किछु होइ छै, बिनु केने पतरो फूसि।
घनगर गाछ देखि जीबछीक मनमे एलै, बीच-बीचमे सँ जँ गाछ उखारि देबै तँ सौरखीओ करहर भऽ जाएत आ छेहर गाछ रहने फड़ो नम्‍हर हएत। जइसँ दानो नीक हएत। अखनेसँ आमदनी शुरू भऽ जाएत। उत्साहित भऽ जीबछी भैंटक कमठौन शुरू केलक। मुदा करहर उखाड़ैमे तेते डाँड़ दुखाइ जे हूबा कमि गेलै। कमठौन छोड़ि देलक। देखते-देखते फड़मे लाली पकड़ए लगलै।
अगता फूल अगता फड़ भेल। नम्‍हर-नम्‍हर, पोछल-पोछल, गोल-गोल पुष्ट, रंगल फड़ देखि जीबछी बूझि गेलि‍ जे आब ई तोड़ैबला भऽ गेल। दोसर दिनसँ फड़ तोड़ैक विचार जीबछी मोने-मन कऽ लेलक।
दोसर दिन भोरे जीबछी रोटी पका, दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी
खेनाइ खा प्लास्टिकक बोरा लऽ फड़ तोड़ैले विदा हुअ लगल आकि धक दऽ मन पड़लै, बोरामे तँ फड़ राखब मुदा पानिमे तोड़ि-तोड़ि केतए राखब। फड़ तोड़ैले तँ झोराक जरूरत हएत। झोरा तँ अपना अछि नै! आब की करब? लगले जीबछी पुरना साड़ीकेँ फाड़ि दूटा झोरा सीलक। झोरा सीबि बोरो झोरोकेँ चौपेत एकटा झोरामे रखि, दुनू बच्चो दुनू गोटे अपनो चौर दिस विदा भेल।
फड़क रूप-रंगसँ जीबछीक मन गद-गद। मुदा अनभुआर काज बूझि मुसना तर्क-वितर्क करैत। चौरक कात पहुँच‍ ऊपरका खेत जे सुखाएल छल तइमे दुनू बच्चो, बोरो आ रोटी-पानिकेँ रखि‍ दुनू परानी भैंट तोडै़ले पानिमे पैसल। पानिमे पैसिते जीबछीक नजरि भैंटक फड़क ऊपरे-ऊपर नाच लगल। जहिना केकरो रूपैआक थैली भेटलासँ खुशी होइ छै, तहिना जीबछीक मनमे भेलै। एक टकसँ देखि जीबछी दुनू हाथे हाँइ-हाँइ फड़ तोड़ए लागलि। खिच्चा फड़ देखि जीबछी पतिकेँ कहलक-  
“जुएलके फड़टा तोड़ब। अजोहा अखनि‍ छोड़ि दियौ। पछाति तोड़ब।
झोरा भरिते जीबछी ऊपर आबि-आबि बोरामे रखैत। मुसनो सएह करैत। दुनू बोरा भरि गेल। ऊपर आबि जीबछी पतिकेँ कहलक-
“कनी काल सुस्ता लिअ। पानिमे निहुड़ल-निहुड़ल डाँड़ो दुखा गेल हएत। अहाँ एत्तै रहू, हम एक बेर अँगनासँ रखने अबै छी।
जीबछी एकटा बोरा उठा आँगन विदा भेल‍। एक तँ पानिक भीजल, दोसर ओजनगर वस्‍तु। मुदा जीबछी भारी बुझबे ने करए। किएक तँ सम्पति‍क मोटरी रहै किने! आँगन आबि ओसारपर बोरा रखि‍ पुनः जीबछी चौर दिस रमकल विदा भेल। चौर पहुँच‍ पतिकेँ कहलक-
“हम बोरा लइ छी, अहाँ दुनू बच्चो आ डोलोकेँ सम्हारने चलू।
आगू-आगू मुसना बेटीकेँ एक कोरामे लेने दोसर हाथमे डोल आ बेटाकेँ लऽ चलल। पाछू-पाछू जीबछी माथपर बोरा लेने। थोड़े दूर बढ़लापर जीबछी पतिकेँ कहलक-
“भगवान दुःख हेरि लेलनि।
मुदा स्त्रीक बात सुनि मुसनाकेँ ओ खुशी नै एलै जे जीबछीकेँ रहए। आँगन आबि जीबछी पहिलुके बोरा लग दोसरो बोरा रखि‍ भानसक ओरियान करए लागलि।
चारिम दिन पहिलुके खेप भैंट तोड़ै काल मुसनाकेँ एकटा ठेङी बाँहिमे पकड़ि लेलकै। जे ओ देखबे ने केलक। मुदा जहन‍ ठेङी भरि पोख खून पीब भरिआ गेलै, तहन‍ मुसनाक नजरि पड़लै। ठेङीकेँ देखिते ओकर पराण उड़ि गेलै। थर-थर काँपए लगल। खूब जोरसँ घरवालीकेँ कहलक-  
“बाप रे बाप! देहक सभटा खून ठेङी पीब लेलक। कोन पाप लागल जे ऐ मौगीया भाँजमे पड़लौं। एक तँ बाढ़िक मारल छी जे भरि पोख अन्न नै होइए। सुखा कऽ संठी भेल छी। तैपर जेहो खून देहमे छेलए सेहो ठेङीए पीब गेल। झब दे आउ नै तँ हम पानिएमे खसि पड़ब।
मुसना बातकेँ अनठबैत जीबछी हाँइ-हाँइ फड़ो तोड़ैत आ मोने-मन बजबो करैत-  
“जेना नाग डसि नेने होइ, तहिना अर्ड़ाहैए। भभटपन ने देखू। एहने-एहने पुरुख बुते परिवार चलत?” 
दुन झोरा भरिते जीबछी मुसना लग आबि हाथेसँ ठेङी पकड़ि एकटा चिचोरमे बान्हि देलक। मुदा जैठाम ठेङी धेने रहै तैठामसँ छर्ड़-छर्ड़ खून बोहैत। अपन दहिना औंठासँ जीबछी दाबि देलक। कनीए खानक पछाति‍ खून बन्न भऽ गेलै। जीबछी फेर फड़ तोड़ैले पानिमे पैसल। तोड़ि कनीकाल पछाति‍ जीबछी कहलक-
“आउ ने, आब किछु ने हएत।
जीबछीक बात सुनि मुसना आँखि गुड़रि कऽ बाजल-  
“ई मौगीया, जान मारैपर लागल अछि। जे कहुना मरि जाए। एकरा की, दुनियाँमे सँएक कमी छै? दोसर कऽ लेत।”  
दुनू बच्चा दिस देखैत मुसना पुन: बाजल-  
“मुदा ऐ टेल्हुक सबहक की हेतै? बिलटि कऽ मरत की नै?”  
पति दिस देखि जीबछी मुस्की दैत बाजलि-  
“नै तोड़ब तँ नै तोड़ू। ओत्तै बैसि बच्चा सभकेँ खेलाउ।
दुनू बोरा भरि कऽ जीबछी आँगन अनलक। सभकेँ सम्हारने मुसना सेहो आएल। आँगन आबि जीबछी चुल्हि पजारि भानस कऽ दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खेलक। खा कऽ जीबछी हाँसू लऽ भैंटक फड़ चीरि-चीरि दाना निकालए लागलि। लाल-लाल, गोल-गोल दाना। मुसना सेहो दाना निकालए लगल। दुनू बच्चा दुनू भाग बैसि दूटा फड़केँ गुड़कबैत। दानाकेँ एकटा चटकुन्नीपर थोपि-थोपि रखैत जाए। मुदा कनीए खान पछाति‍ मुसनाकेँ चीलम पीबैक मन भेलै। ओ उठि कऽ चुल्हि लग जा आगिओ तपए लगल आ चीलमो पीबए लगल। दानाक ढेरी देखि जीबछी गर अँटबए लागलि जे एते राखब केतए। गुनधुन करैत। एकाएक नैहरक बात मन पड़लै। मन पड़िते मुहसँ हँसी फुटलै। जीबछीकेँ हँसैत देखि मुसना अह्लादित भऽ पुछलक-  
“अँइ गै, कोन सोनाक तमघैल तोरा भेट गेलौहेँ जे एना खिखिआइ छेँ? 
मुदा पाशा बदलैत जीबछी बाजलि-  
“अखनि‍ तँ अन्हार भऽ गेलै, काल्हि भोरे एकटा खाधि टाटक कात अँगनेमे खुनि देबै।
भोरे मुसना ढक जकाँ गोल-मोल खाधि खुनलक। जीबछी दुलेब कऽ लेबि, सुखौलक। ओइमे भैंटक दाना सुखा-सुखा रखैत गेल। ऊपरसँ टाटक झँपना बना मुसना दऽ देलक।
मास दिनक मेहनतिसँ जीबछीक आँगन भैंटक दानासँ भरि गेल। अनभुआर चीज तँए चोरी-चपाटीक कोनो डरे नै। भरल आँगन देखि जीबछीक मनमे समुद्रक लहरि जकाँ खुशी हिलकोर मारए लगलै। कनडेरिए आँखिए मुसना दिस देखि जीबछी मुस्किया देलक। घरवालीक मुस्की देखि मुसना खिसिआ कऽ बाजल-  
“हमरा देखि-देखि तोरा हँसी लगै छौ। हँसि ले, जेते हँसमे से हँसि ले। जाबे जीबै छियौ ताबे। भगवान केलखुन आ मरलियौ तहन‍ तोहर हँसी नगरक लोक देखतौ।
मुदा जीबछी लेल धैनसन। किएक तँ खुशीसँ मन एते भरल रहै जे घरबलाक बात ओइमे पैसिबे ने केलै। मोने-मन जीबछी लावा भुजैक विचार करए लागलि। लावा भुजैले एकटा नम्हर खापड़ि चाही। बालु रखैले एकटा कोहा चाही। लाड़नि तँ अपनो खरहीसँ बना लेब। बालुओ नदी कातसँ लऽ आनब। जहन‍‍ कुम्हनि ओइठाम जाएब तँ कँचकूह ताकि कऽ एकटा नम्‍हर तौला लऽ आएब। ओकरे खापड़ि बना लेब। बालु धिपबैले मझोलको कोहासँ काज चलि जाएत। एकटा सरबा सेहो चाही। किएक तँ बालु जे देबै से तँ हाथसँ नै हएत। ओइमे एकटा बत्तीक डाँट लगबए पड़त। लगा लेब। मुसनाकेँ कहलक-  
“लावा भुजैले जारनिक ओरियान करए पड़त।
लावाक नाओं सुनि मुसनाक मनमे खुशी भेलै। मुस्‍कीआइत उत्तर देलक-  
“अखनि‍‍ टेंगारी सुढ़िया लइ छी। बेरू पहर गिरहतकक्काक गाछीसँ बाँझीओ आ सूखल ठौहरीओ सभ आनि देब।
भरि दिनमे दुनू परानी जीबछी सभ कथूक ओरियान कऽ लेलक।
पराते भने जीबछी लावा भुजब शुरू केलक। दू चुल्हिया चुल्हि। एक मुँहमे खापड़ि, दोसरमे कोहा। खापड़िमे भैंटक दाना भुजैत आ कोहामे बालु धिपैत। पहिल घानी भूजि जीबछी एक चुटकी चुल्हिमे दऽ दोसर घानी भुजब शुरू केलक। दोसर घानीक लावा देखि जीबछीक मन तर-ऊपर हुअ लगलै। पहुलका घानीक लावा चङेरीमे लऽ दुनू बच्चो आ घरोबलाकेँ आगूमे देलक। आगूमे लावा देखि मुसना मोने-मन सोचए लगल, ई मौगीया बड़ लूरि‍गर अछि। एहेन स्त्री भगवान सभकेँ देथुन। कहूँ जे अखनि‍ तक हम जे बुझितो ने छेलौं से आइ खाइ छी। धिया-पुताकेँ पोसब कोन बड़का भारी बात छि, समाजो लेल लोक बहुत किछु कऽ सकैए।
लावाक गमक पुर्बा हवामे मिलि गामकेँ सुगंधित कऽ देलक। सुगंध पाबि टोलोक आ गामोक स्त्रीगण सभ लावा किनैले एक्के-दुइए जीबछीक आँगन अाबए लगल। मुदा एक्केटा जवाब जीबछी सभकेँ दैत-  
“पहिने गिरहतकाकाकेँ खुएबनि, तहन‍‍ केकरो देब।
भरि दुपहर जीबछी लावा भुजलक। दू छिट्टा। दुनू छिट्टा लावा घरमे रखि‍ ओइमे सँ एक मुजेला लऽ साड़ीसँ झाँपि जीबछी मुसनाकेँ कहलक-  
“हम गिरहतकाका ओइठाम जाइ छी। अहाँ अँगनेमे रहब।
कहि जीबछी माथपर मुजेला लेने श्रीकान्त ऐठाम विदा भेल। जीबछीक माथपर मुजेला देखि‍ श्रीकान्त गौरसँ मुस्‍कीआइत पुछलखिन-  
“बड़ खुशी देखै छी लछमी महरानी। मुजेलामे की चोराकऽ अनलौं हेन। कनी हमरो देखए दिअ?” 
अनसुनी करैत जीबछी मुस्की दैत आँगन जा गिरहतनीक आगूमे मुजेला रखि‍ कहलकनि-  
“काकी, थोड़ेकेँ लाइ बना लिहथि आ अखनि‍ कनीमे नोन-मरीच-तेल मिला कऽ दथु। जे काकाकेँ दऽ अबै छियनि।
छिपलीमे लावा नेने जीबछी दरबज्जापर जा श्रीकान्तक आगूमे देलकनि। ओ छिपलीमे उज्जर-उज्जर रमदाना-लावा जकाँ लावाकेँ निहारि-निहारि देखए लगला। जीबछी कहलकनि-  
“काका, की निङहारै छथिन, पहिने एक मुट्ठी मुँहमे दऽ कऽ देखथुन ने। भैंटक लावा छिऐ।
एक मुट्ठी उठा श्रीकान्त मुँहमे लेलखिन। लावाक कोमलता आ सुआद पाबि‍ श्रीकान्त  खुशीसँ पत्नीकेँ हाक पाड़ि कहलखि‍न-  
“एते सुन्नर वस्तुकेँ अखनि‍ धरि जनितौं ने छेलौं। धन्य अछि जीबछीक ज्ञान आ लूरि‍ जे एहेन सुन्नर हराएल वस्‍तुकेँ ऊपर केलक। साक्षात् देवी छी जीबछी। जाउ, सन्दूकसँ एकजोड़ साड़ी आ आङी निकालने आउ। जीबछीकेँ अपना ऐठामसँ पहिरा कऽ विदा करब। गरीब-दुखियाक देवी छी जीबछी।
सभ दिन जीबछी लावा भुजै छलि आ अँगनेसँ लोक सभ कीनि-कीनि लऽ जाइत। पनरह दिनक जमा कएल रूपैओ आ फुटकुरीओ जीबछी मुसनाकेँ गनैले आगूमे देलक। पाइ देखि मुसनाक मन उड़ि गेल। मुहसँ ठहाका निकलल। एक टकसँ मुसना जीबछी दिस देखि कैंचा गीनए लगल।

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