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Friday, October 18, 2013

(80) गामक मुँह फेर देखब

गामक मुँह फेर देखब

दूटा टेन्टघराड़ीपर ठाढ़, एकटामे अपने दुनू परानी आ दोसर बेटा-पुतोहुक रहैक जोगार ठाकुर प्रसाद कल्हिए कऽ लेलनि। दूटा कुरसी टेन्टक भीतरो आ बाहरो अपना टेन्टमे लगा लेलनि। संगी साथीक संग बेटा-गौरीशंकर कारखाना देखए गेल। असकरे दुनू परानी ठाकुर प्रसाद बाहरक कुरसीपर बैसि, अपन भूत-भविसक गप-सप्प करै छला  तखने लंगोटिया संगी रूद्रानन्द लफड़ल उत्तरसँ दछिन मुहेँ पएरे बैंकपर जाइ छला। खेतमे दूटा टेन्टठाढ़देखि रूद्रानन्दक मनमे भेलनि जे भरिसक नट-मघैया सभ आएल हएत। दू-चारि दिन रहत फेर नांगरि ठाढ़ कऽ घसकत। मन तँ मानि गेलनि मुदा आँखि नै मानलकनि। ओम्हरे (टेन्ट दिस) लटकि गेलनि। लटकि ई गेलनि जे कहेनधिया-पुता छै, केहेन कुत्ता-बिलाइ पोसने अछिसेतँ तकनहि देखबै। चारिडेग आगू बढ़िते दुनू परानी ठाकुर प्रसादपर नजरि पड़लनि। चिन्हार लोक लग आँखि घुमा कियो अनचिन्हार बनैए मुदा अनचिन्हारोक नजरिपर पड़ने तँ कहाइए जाइ छै जे ‘केतए’ रहै छी? पैंतिस बर्ख पहिलुका ठाकुर प्रसादकेँ देखि रूद्रानन्द पुछि देलखिन-
“भाय, हाल-चाल ठीक अछि किने?”
अपन दायित्व निभाएबबूझि ठाकुर प्रसादक मनमे एलनि जे एकतँ पुरान लंगोटिया संगी रूद्रानन्द, तैपर आगूसँ हाल-चाल सेहो पुछलनि उत्तर दैत बजला-
सभ नीक अछि भाय, चाह पीब लिअ, तखनि जाएब।
धड़फड़ाएल रूद्रानन्द बजला-
“भाय, बैंक काजसँ जाइ छी। कनीको पछुआ जाएब तँ पाछु पड़ि जाएब। तहूमे बैंकक स्टाफ सभ तेहने अछि जे धोतीबला सभकेँ तेते खरिआइर-खरिआइर पुछै छै, जे अनेरे देरी लगा दइ छै। ओम्हरसँघूमब तखनि चाहो पीब आ गपो-सप्पो करब।
कहि आगू बढ़ैत सुनटे मुहेँ बजला-
“खेतकेँ घराड़ीओ बनाएब आकि खेते रखब।
बजैत-बजैत रूद्रानन्द एते आगू बढ़ि गेला जे ठाकुर प्रसाद जवाब देब उचित नै बुझलनि। जवाबो तँ तखनि ने जवाब जखनि सुनथि। मुदा एहेन प्रश्न मनमे रोपा गेलनि जे खट-खुट करब शुरू केलकनि। घराड़ीकी भेल आ खेत की भेल? बिनु घरक तँ वाड़ी भऽ सकैए। मुदा वाड़ीओतँझाड़े-झड़ लगौलापर होइए, सेहो नै भेल। चौमासो नहियेँ भेल, किए तँ जइमे चौमासा उपजा होइ। तखनि तँ ने घराड़ी भेल आ ने वाड़ी, आ ने चौमास, तखनि तँ ठीके खेत भेल। मुदा फेर दोसर प्रश्न मनकेँ लपकि लेलकनि। लपकलकनि ई जे खेत केना घराड़ी बनै छै, आ घराड़ी केना खेत बनै छै?
अखनि धरि ठाकुर प्रसाद लोहाक इंजनेक बात बुझै छला, खेत-पथारक नै। मुदा प्रश्न उठि गेलनि खेत-पथारक। दोसर कियो तेहेन लगमे नै जे प्रश्न उठा डारि-पात छोड़ैत फूल-फड़ धरि पहुँचितथि। लगमे पत्नीटा बैसल। जिनकर दुनियाँ जारनि-काठीसँ बाढ़िन धरि। मुदा असकरे जँ कोनो प्रश्नकेँ खोदहऽ चाहब तँ आगूमे बैसल पत्नी बीचमे किछु-ने-किछु टपकिए जेती।तँए नीक हएत जे हिनका ऐठामसँ टारि किछु विचार करी। सुपते मुहेँ कहबनि जे किछु विचारए चाहै छी,तँए अहाँ ऐठामसँ चलि जाउ। सेहो उचित नहियेँ हएत। लूरि-भासमे भलहिं दुनू गोटे दूरंग किए ने छी, मुदा किछु भेली तँ अर्द्धांगिनी भेली। जँ कहि दथि जे अहाँसँ हम कम बुझै छिऐ, तखनि तँ भरी पहपटि (पहपेट) हएत। मुदा ओ तँ सुपते कहती। जखनि डाक्टरक पत्नी बिनु जानकारीओक डाक्टरनी, गुरुक पत्नी गुरुआइन कहबैक अधिकारी छथि तखनि तँ हुनको अधिकार बनिते छन्हि। मुदासे नै, प्रश्नकेँ उधार बनबैत पत्नीकेँ कहलखिन-
“मन किछु भरियाएल बूझि पड़ैए, एकटा बात विचारब अछितँए कनी चाह पीबू, पछाति दुनू गोटे हल्लूक मने विचार करब?”
ओना चाह पीबैले रमदुलारीक मन पहिनेसँचटपटाइतरहनि, मुदा अपन घटैत जिनगी देखि मनकेँ मनेक मोटा तर दबनेरहथि। घटैत जिनगी ई जे जिनका महिनाक तीसोदिनक रोजी भेटै छेलनि आ रोटी चलै छेलनितिनका पनरहे दिनक ने आब भेटतनि। तखनि जँ रोटीकेँ टुकड़ी नै बनाएब तँ पार केना लगल। पतिक आदेशकेँ हृदैसँ सुहकारिलेलनि। किएक तँ हृदैओमेतँ चाहे रानी ने बैसल छेलखिन। बजली-
“ई केहेन भैयारी छथि जे ओहो भाय कहलनि आ अहूँ भाइए कहलियनि?”
पत्नीक ओझाराएल प्रश्न सुनि आरो ओझराएब नीक नै बूझि ठाकुर प्रसाद बजला-
“अही सभ बातक ने विचार करब। पहिने चाह तँ पीआउ?”
जहिना ठाकुर प्रसाद प्रश्नकेँ एकरस्ता धड़बए चाहै छला तहिना पत्नी खुड़पेरिया बना-बना आरो-रस्ता ठाढ़ करै छेली। बजली-
“जखनि भैयारीक सम्बन्ध अछि तखनि छुच्छे चाह पिआएब उचित हएत। अहाँ तँ मरदा-मरदी छँटि जाएब, मुदा जँ ओ मुहेँपर बाजि दथि जे बम्बइओ-बम्बै किछु नै, तखनि हमर मुँह केहेन हएत।
बम्बैक-बम्बै सुनि ठाकुर प्रसादक मनमे जेना पछुआक सिहकी बहलनि। हफुआइत मने बजला-
“जाउ ने,जे मन फुड़एसे ओरियान करि कऽ रखि लेब।
पतिक टारैक बात रमदुलारी नै बूझि समटैक बात बूझि गेली। दड़बड़ प्रश्न ठोकलनि-
“अहूँ भाय कहलियनि ओहो भाइए कहलनि तखनि हमर दिअर भेला आकि भैंसुर?”
दिअर-भैंसुर सुनि ठाकुर प्रसादक मन चौंकलनि। मन पड़लनि अपन पैंतीस बर्खक जिनगी। पैंतीस बर्ख पूर्बक परिवारक (पिताक अमरदारी) ने जिनगी छल जगह तँ वएह छी। मुदा पैंतीस बर्खक बीच गाम-घर नै देखि पेलौं, शहर-बजार तँ देखबे केलौं। की सभ महानगरक जिनगी एकरंगाहे छै। से तँ नै छै। सबहक अपन-अपन क्षेत्रक साहित्य, कला, रीती-रिवाज, खान-पान सभ किछु छै। तहिना ने अपनो गाम-घरक हेबा चाही। प्रश्नकेँ टारैत ठाकुर प्रसाद बजला-
“एतेदिनबम्बैसनशहरमेरहलौंजैठामपोरो-पटुआसँ लऽ कऽ पालक-गेनहारी-मेथी सागकेँ लोक सागे बूझि कियो, कम पाइ रहने कीनि खाइए तँ कियो बजारक महग सौदा (अधिक पाइबला) बूझि कीनि खाइए। लूटमे चरखामे नफा जहिना होइ छै तहिना पोरो-पटुआ सेहो पालक-गेनहारी-मेथीक कान काटि लइए।तँएकी एकरा नीक कहबै। खैर ई बम्बैक बात भेल।
बम्बैक बात सुनि रमदुलारीक मन पघिल गेलनि। बजली-
“मन अछिआकि बिसरि गेलौं जे ओ सभ (ब्रिटिस इंजीनियर) दुनू पराणी केना हाथ जोड़ि नमस्ते करै छेलि।
नमस्ते सुनि,जेना चौराहापर अबिते भक्क खुजै छै, तहिना ठाकुर प्रसादकेँ खुजलनि।बजला-
“ओ हमर अहाँक करै छलाआकि ओ अपना धरतीकेँ करै छला जइ धरतीकेँ अपन जीवन सूत्र छै। जखनि ओ सभ अबै छला आ चाह पीयबै छेलियनि तखनि ओ अपन तरीकासँ मिलबै छला। अपना सबहक तरीका दोसररंग अछिए, मुदा ओ अपन ढंगसँ भिन्न तरीका बूझिओ कऽहँसै कहाँ छल। आँखि गड़ा अपनतरीका देखै छलआ देखै छल अपना सबहक अचार-विचार। तेकरा ओ नमस्कर करै छल।
पतिक बात सुनि रमदुलारी विह्वल होइत बजली-
“ओकर रीती-रिवाज हमरा मिसिओ भरि नीक नै लगै छल। भने अहूँ संगबेसँ छुट्टी दऽ देलौं। नैतँ ओकरा जकाँ हमरा कूद-फान करल होइत। तइसँ नीक भेल जे जेतेकाल असकरे डेरामे रहै छेलौं तेतेकाल अपन नैहर-सासुरक गीतो-नादक रियाज असगरेमे करै छेलौं आ अपन दादीक सिखौल जे कढ़ाइ-पढ़ाइ छल तेकरो लिखै छेलौं।एह! आब मन पड़ैए ओ दिन जैदिन हाथसँ जनकपुरक कोहबरो लिखै छेलौं आ घुन-घुना, घुन-घुना डहकनो गबै छेलौं। केना कृष्ण कदमक गाछक मचकीपर बैसि बरहमासा गबै छला।
बजैत-बजैत रमदुलारी पघिल कऽ पनि भऽ गेली। जहिना नवतुरिया संगी-बहिनपा कऽ सुख-दुख सुनि नोराइत तँ संगे मुदा नोर कातमे जा झाड़ैत तहिना रमदुलारीओ आँखि मीड़ैत चाह बनबऽ बढ़ली।
   ठाकुर प्रसादकेँ मन पड़लनि गामक स्कूल। संगे-संग दुनूगोरे भट्ठो धेलौं आ गामेक मिड्ल स्कूल होइत आगुओ बढ़लौं। स्कूलक पछुआरमे जे जामुनक गाछ छल ओही गाछक निच्चाँ छाहरिमे दुनूगोरे गुल्लीओ-डन्टा खेलै छेलौं। पढ़ैओमे दुनूगोरे एकेरंग रही। ओहो अपन सबक यादिकरि कऽ आ खांत लिखि कऽ लऽ स्कूल अबै छला आ हमहूँ लिखि कऽ लऽ जाइ छेलौं। सभदिन पढ़ाइ सभदिन परीक्षा होइ छल। हाइस्कूलमे हमफस्ट करए लगलौं आ रूद्रा भायपोजीशनसँनिच्चाँउतरि गेला। तेकर कारण भेल जे आर्ट विषयसँ हुनका बेसी सिनेह छेलनि आ हम सांइस पढ़ै छेलौं। आर्ट विषयमे कम नम्बर अबै छेलै, सांइस विषयमे बेसी। जइसँ कलासमे पहिल सँ लऽ कऽ दसम-बारहम पोजीशनधरि सांइसेक विद्यार्थी रहैत छल। एके हाइस्कूलसँ दुनूगोटे मैट्रीको पास केलौं। आइ.एससी.क पछाति हम इंजीनियरिंग कौलेजसँग्रेजुएशन केलौं आ ओ अंग्रेजी आनर्स केलनि। हुनका गामसँ दूकोस हटि हाइस्कूलमे नोकरी भेट गलनि आ हमरा बाहर जाए पड़ल। बाहर मनमे अबिते ठमकि गेला। बाहर किए? मन पड़लनि अपन पढ़ाइ, अपन शिक्षा मैकेनीक इंजीनियर बनलौं। ई नै बूझि पेलौं जे काज केतए करए जाए पड़त। ग्रेड नीकतँए नीक बूझि पढ़लौं। रिजल्टो नीकतँए मन काज करैले तन-फन करए लगल। जखनि मन तनफनाएल तखनि खोज-भाँज केला पछाति पता चलल जे हमरा लिए महानगर छोड़ि दोसर जगह नै अछि। क्षेत्रक कोन बात जे राज्योमे तेहेन कारखाना नै। दछिन बिहार (अखुनका झारखंड) मे किछु छइहो तँ काजसँ बेसी काज केनिहार अछि। आशामे नोकरीक ओरूदे खतम भऽ जाइ छै। काजक ओरूदा खतम होइते मनुखोक ओरूदा खतम भऽ जाए छै जइसँजिनगीए फुलहरि जाइ छै। इलाकामे जे किछु कारोबार (कारखाना) छलो तँ कुसियार चाउर-दाइल सेरसो, तोरी, पटुआक छल जइमे हमर काजे ने छेलै। जखनि बाहर जाएब छोड़ि दोसर उपाइएकी छल। मुदा तैयो गामसँ अलग अपनाकेँ कहाँ बुझैछेलौं। बुझै छेलौं जे जहिना बिराटनगर कलकत्तामे नोकरी केनिहारक परिवार गाममे रहै छन्हि आ अपने परदेशमे कमाइ छथि तहिना करब। सालभरिपर तँ एबे करै छेलौं जे कोनो विशेष उत्सव आकि परिवारक विशेष काज होइ छलतँबिच्चोमे अबिते छेलौं। जहिना कोनो दोस-महीम छहमास या सालभरि आकि पानसालपर भेँट भेने भूमिका रूपमे अपन पूर्ब जिनगीक चर्च करैत पाँचेमिनटमे अपन पानसालक गाथा गाबि, अलिसाएल पानजकाँपानिमे डुमकुनियाँ कटिते ताना-उतार भऽ जाइए तहिना ने होइ छथि। मुदासे छूटि गेल। ब्रिटिश कम्पनीमे नोकरी भेटल। जुआइन केला पछाति बूझि पड़ल जे दुनियाँ बदलि गेल। तैबीच रमदुलारी चाह आगूमे रखैत बजली-
“चाहमे तुलसी पात दऽ देने छी। देखलौं जे मन ठेहियाएल जकाँ अछि।”
पत्नीक बात सुनि ठाकुर प्रसादक मनमे उठलनि जे हारलकेँ हरिनाम नै कहि रोगक दबाइ कहै छथि। दबाइ तँ तीत-मीठ दुनू होइ छै। जहिना रोग मेटबैमे तीत-मीठक विचार बिना केने लोक खाइए तहिना रोग अनबोमे तीत-मीठ थोड़े बुझै छै। डारि छोड़ि कूदब नीक नै बूझि डारिएमे मचकी लगा झूलब नीक बुझलनि। मुदा जाधरि पत्नी लगमे बैसल रहती ताबे घाटपरहक छबड़ा जकाँ चाल-चूल करिते रहती। कखनो सोझ बाट धड़ैए ने देती।तँए नीक तखने हएत। बजला-
“पुरना संगी रूद्रा भाय छथितँएतेहेन सुआगत होन्हि जे मनमे जगह बनाबथि।”
पतिक बात रमदुलारीओकेँ नीक लगलनि। बजली-
“होउ, झब दे चाह पीबू। काजमे लगि जाएब तँ कप एत्तै रहि जाएत। आँटा सानि कऽ कचौड़ी बनबैले फ्रिजमे रखि लइ छी। वएह काज ने मेठनगर अछि, बाँकीतँ हल्लुके अछि। नमकीन-अँचार मिठाइ सभ तँए अछिए।”
जान छुटैत देखि ठाकुर प्रसद हाँइ-हाँइ चाह पीब कप हाथमे धड़ा देलखिन। रमदुलारी टेन्टक भीतर आबि जलखैक जोगार करए लगली। अखनि धरिक मनक खुटका रूद्रानन्दकेँ अनायासे मेटा गेलनि। मेटा ई गेलनि जे छहमास पछाति बैंक गेल रहथि। अपन विद्यार्थी कैशियर बनि आबि गेलनि। देखिते पहिने काजो कऽ देलकनि आ खातीरो-बात केलकनि। खातीर-बात देखि रूद्रानन्दक मुँहसँ निकलि गेलनि-
“बौआ, बड़ बेरपर केलह। दबाइ कीनैक अछि। पोती दुखित अछि।”
बजै काल तँ रूद्रानन्द बाजि गेला मुदा अपने मन धिक्कारए लगलनि। कोन जरूरी छल जे बच्चाक बिमारीक बात बजलौं। अपन मन तँ रूद्रानन्दक कसाइन होइते रहनि मुदा कैशियरक बात,`मास्सैब हमहूँ कियो आन छी?' सुनि आरोमन खट-मिठेलनि। अनेरे केकरो काजमे बाधा देब उचित नै बूझि बैंकसँ निकलि गेला। दोकान जा दबाइ कीनलनि। घरपरहक रस्ता हियौलनि। रस्ता बदलए पड़त जँ से नै करब तँ समैपरदबाइ केना दऽ पेबै। जखने ठाकुर प्रसाद देखता आकि नहियोँ देखता, अपनो तँ कहिए कऽ आएल छेलियनि, तखने ओझरा जाएब। कोन जुग-जमानाक पछाति भेँट भेला अछि। हुनको केस पाकि गेलनि, हमरो पाकि गेल। एते दिनक जे गप पसरत ओकरा लगले केना समेटि पाएब। तइसँ नीक जे दोसर रस्ते पहिने घरपर जा बच्चाकेँ दबाइ खुएला पछाति आएब, सएह केलनि।
रूद्रानन्दकेँ देखिते ठाकुर प्रसादक मनमे अन्हारमे डिबियाक इजोत जकाँ बूझि पड़लनि। शहर-बजारक रमदुलारी रूद्रानन्दकेँ बैसिते पानि-चाह आगूमे रखि देलखिन। मनाही करैत रूद्रानन्द बजला-
“अइसँ आगू किछु ने करू। चाह भऽ गेल, भऽ गेल।”
रूद्रानन्दक मनाहीकेँ टारैत ठाकुर प्रसाद बजला-
“भाय, जाइकाल बाजल छेलौं, जे `घराड़ी खेत आ खेत घराड़ी'सेनीक जकाँ नै बूझि पेलौं?
ठाकुर प्रसादक बातकेँ तहियबैत रूद्रानन्द बजला-
“सभ गप हेतै। पहिने ई कहू जे बम्बैमेतँ रहैक अपन सभ बेवस्था कऽ नेने हएब किने?
“हँ।”
“तखनि गाम किए एलौं?
“किए हमर गाम नै छी जेनै आएब।”
“ई मजाक भेल?
मजाकसुनितेसम्हरैतठाकुरप्रसादबाजल-
“ओतुका सभ किछु बेचि-बिकिन कऽ आबि गेल छी।”
सभ किछु बेचि-बिकिन सुनि रूद्रानन्दक मन ठमकलनि।मुदा गामसँ शहर लोक खुशीसँ जाइए आ हिनका...। बम्बै सन शहर छोड़ि गाम अबैक किछु खास कारण जरूर हेतनि। मुदा जेते खोद-बेद करब, भऽ सकैए ओते मने-मन बेथित होथि। तइसँ नीक जे दोसर पाशा फेकि उनटा बानिए बूझि लेब। बजला-
“भाय, घराड़ी केना खेत बनै छै आ खेत केना घराड़ी बनै छै? खेतमे अन्न-तीमन, फल-फूल उपजै छै जखनि कि घराड़ीक उपजा माल-जालक संग लोको होइए। तै संग ईहो होइ छै जे घर बन्हने खेते घराड़ी आ घर नै रहने घराड़ीओ खेते बनि जाइ छै।”
रूद्रानन्दक बात सुनि ठाकुर प्रसादकेँ पच्चीस बर्ख पछिला घटना मन पड़लनि, गाम आएल रही, एक तँ भुमकम, दोसर बरसाती भुमकम ओना भुमकम बारहोमास भऽ सकैए मुदा बारहो मासक मौसमक अनुकूल प्रभाव भिन्न-भिन्न पड़ै छै। अखनि धरि ठाकुर प्रसाद गाम नै बिसरल छला, साले-साल अबैत छला। पोथीओमे सौन-भादबक लहकी पढ़िते छला। ओही लहकीमे, बरसातेमे गाम एला। भुमकममे घरो खसलनि आ तैपर बरखो तेते नहौलकनि जे जड़ा कऽ जे भगला से गामे बिसरि गेला। ओना तइसँ पहिने मनमे रहनि जे गामोमे घर बनाएब जहिना आन सभ महिना दिनक छुट्टीमे पिकनिको मनबैए आ घुमबो-फिड़बो करैए। मुदा एक्के दहारमे ठाकुर प्रसादक सभ किछु बोहा गेलनि। ब्रिटिश कम्पनीकेँ गाम दिस एने ठाकुर प्रसाद बेटाक नोकरीक संग गाम तँ आबि गेला मुदा मनमे ठहकिते रहनि जे पाँचो सए बीघामे कम्पनीक अपन पढ़ाइ-लिखाइसँ लऽ कऽ कारखाना धरि रहतै। सबहक रहैक बेवस्था अपन केम्पसमे रहतै जहिना माॅरीशस समुद्रक बीच दोसर भारत अछि तहिना ने पाँचो सए बीघाक बीच, लाखो कर्मचारी आ श्रमिकक बीच अंग्रेजक अपन जुति-भाँति रहतै। कारबारकेँ शहरसँ गाम दिस एने ठाकुर प्रसाद गाम एला। बजला-
“भाय, गाम तँ आबि गेलौं मुदा ने घर अछि आ ने एकोटा गाममे चिन्हारए बूझि पड़ै छथि। पहिल-पहिल अहाँ भेटलौं। अहींपर सभ दार-मदार हएत?
ठाकुर प्रसादक बात रूद्रानन्दकेँ ओते आकर्षित नै केलकनि जेहेन प्रश्न छेलनि। गाममे ब्रिटिश कम्पनी एने शहरक लोक गाम दिस औता। मुदा संगमे कथी सभ लऽ कऽ औता। ई बात रूद्रानन्दकेँ घेरि लेलकनि। नीलक खेतीक अनुभव तँ अछिए, वेपारीए बनि कऽ ने अंग्रेज आएल छल। अपन टेकनीकल कौलेज, मेडिकल कौलेज खोलत। शिक्षाक संग अपन उत्पादित वस्तु बेचत, इलाज बेचत। विचित्र प्रश्न रूद्रानन्दक मनकेँ पकड़ि लेलकनि। बजला-
“भाय, अखनि थाकल छी, गप करैक मन नै होइए। अखनि जाए दिअ। जखनि गाम आबि गेलौं, तखनि भेँट-घाँट होइते रहतै।”
रोगसँ जकड़ल रोगी जहिना बेसीसँ बेसी बात डाक्टरकेँ कहए चाहैए जे कहुना झब दऽ रोग छूटि जाइ। तहिना ठाकुर प्रसादकेँ सेहो होन्हि। मनमे नचैत रहनि जे पैंतीस बर्खपर गाम एलौं। पुरना लोक मरिए गेला। संगी-साथीमे दुइए गोटे छी। औरो गोटे खेती-गिरहस्तीसँ जुड़ल रहला, तिनकासँ तेहेन सम्बन्धे ने बनल। तैसंग जतियारे भोज आकि सामाजिक भोज सेहो छूटिए गेल। केना कऽ पबितौं। एमहुरका, पैंतीस बर्खक बीचक जे अछि, जेकर जनम पछाति भेल, ओ किए चिन्हत आकि हमहीं किए चिन्हबै। तखनि गाममे रहब केना? बजला-
“भाय साहैब, एक परिवारक आशा भाइए गेल अछि। भौजीओकेँ कहबनि जे कखनो काल आबथि। आब तँ अहीं सबहक ने आशा।”
पत्नीक नाओं सुनि रूद्रानन्द बजला किछु ने मुदा मने-मन विचारए लगला। ने दुनू गोटेक एक बोली रहलनि। पुरनाबोली बिसरिए गेल हेती, बजरूआ बोलीमे केना सुग्गा-मेनाक मिलान हएत। खानो-पान तेहेन जे एकटा कीड़ी-फतिंगी तकैए आ दोसर पाकल तिलकोर, पाकल लताम तकैए। मुदा बच्चाक बिमारी मनकेँ मथैत रहनि। बाल-बोध छी, रोगक कारण थोड़े बुझैए जे बरदास करत। दर्द हेतै, कानत। घरमे जे बच्चा कानत तँ सियानकेँ केना अन्न घोंटल जेतै। बजला-
“जाइछी?
ओना ठाकुर प्रसादक इच्छा रहनि जे अखनिधरिक जे खाली जिनगीरहल ओ तँ विचारेक माध्यमसँ भरत, मुदा रूद्रानन्दकेँ अगुताएब देखि चुपे रहला। चुपो केना नै रहितथि। बलजोरीक विचार तँ ओहिना रसविहिन होइ छै, तैपर दू जिनगीक प्रश्न अछि।
काजक झोंकमे रूद्रानन्द बाजि कऽ विदा भऽ गेला मुदा दसे डेग आगू बढ़लापर मन उबिऐ लगलनि जे भरि मन गप नै भेल। मुदा विदा भेला पछाति पुनः घूमि कऽ जाएबो तँ नीक नहिए हएत। फेर मनमे भेलनि जे जखनि शहर छोड़ि गामे एला आ बजबो केला जे गामेमे रहब। अखनि धरि जे मनमे छेलनि जे दोहरा कऽ गामक मुँह ने देखि पएब से तँ भेबे केलनि। मुदा गाममे करता की?
जहिना बिनु रोगक डाक्टर, बिनु मशीनक इंजीनियर एक साधारण मनुखक रूपमे रहैत, तहिना ने ठाकुरो प्रसाद गाममे रहता। जे गुण उपार्जित केलनि ओइ गुणक की जरूरति गामक लोककेँ छै, जे कियो किछु पूछतनि। मनुखक जिनगीक आधार काज होइ छै, काजक आधार लूरि होइ छै। से रहितो काज छीनेने वा काज ने रहने तँ ओहिना खाली-खाली जिनगी बनि जाइए। रूद्रानन्दक जीवैक आधार आ ठाकुर प्रसादकआधारअलग-अलग रहने एकमे वेकारी आबि गेलनि दोसरकेँ जिनगीक गाढ़ रस भैटै छेलनि।
घरपर रहि रूद्रानन्द नोकरीओ केलनि आ परिवारसँ लऽ कऽ गामो-समाजक काजसँ जुड़ल रहला। सेवा-निवृति भेला पछातिओ काजमे कमी नै एलनि। स्कूलक बान्हल काजसँ अलग भेला। मुदा अलग भेलो पछाति काज कहाँ छुटलनि। शुरुहेसँ जे जिनगीक काजक रूटिंग बनि गेल छेलनि ओइमे कनीए फेड़-फाड़ भेलनि। फेड़-फाड़ ई भेलनि जेजे समए स्कूलमे लगबै छला ओ दरबज्जापर समाजक बच्चाक बीच लगबए लगला। श्रमजीवी परिवारतँए श्रमजीवी संस्कृति परिवारक जन-जनमे समाएल। जइसँ जिनगीक प्रति अकाट्य बिसवास बनले छन्हि। बेकारीक अवस्थामे ने कियो किम्हरो भटकबो करैए आ तैसंग टहलबो करैए। मुदा नियमित जिनगीक ढंग तँ तइसँ भिन्न होइ छै। जेना-जेना समए चलैत रहल तेना-तेना किरियो-कलाप चलैत रहल।
दोसर दिन रूद्रानन्द मन बना कऽ ठाकुर प्रसाद ऐठाम पहुँचला। पहुँचिते ठाकुर प्रसादकेँ कहलखिन-
“भाय, अहाँ एलासँ एते जरूर भेल जे खाली समए आनन्दसँ कटत।”
ठाकुर प्रसाद रूद्रानन्दक बातक गंभीरताकेँ नै बूझि सकला। जहिना सभकेँ होइ छै तहिना भेलनि जे भरिसक खाइ-पीबै दुआरे बोली भरलनि। बजला-
“भाय, जिनगीमे एते संघर्ष जे केलौं, से कथीले। अही सबले ने?
ठाकुर प्रसादक बात रूद्रानन्द ताड़ि गेला। मनमे उठलनि यएह भेल संघर्ष जे जाबे शरीरमे काज करैक शक्ति छल ताबे ओकरा बेचि-बेचि जीवन-जापन केलौं आ संघर्ष कहै छी। मुदा सम्हरैत बजला-
“भाय, जहिना आमक आँठी टिकुलासँ जुआ-जुआ, सकताइत-सकताइत पकै दिन एते सकता जाइए जे नव गाछ (दोसर गाछ) पैदा करैक शक्ति पाबि जाइए। की ऐसँ भिन्न मनुखक जिनगीकेँ बुझै छी?
अखड़ाहापर जहिना कोनो खलीफा घंटो लड़ला पछाति माटिपर खसैए आ कोनो सलामी लइते धोबिया पाट खसैए तहिना ठाकुर प्रसादकेँ बूझि पड़लनि। मुदा जहिना प्रश्न नान्हिटा नै, तहिना जवाबो केना नान्हिटा भऽ सकैए। ई तँ विचारधारा छी। एक धार ओहन बोहैए जइमे मनुखक क्रिया कर्म बनि जिनगीक सार्थकता पबैए आ दोसर कर्मसँ हटि पाइक जिनगी बनि ठाढ़ होइए। रूद्रानन्दो आ ठाकुरो प्रसादक बीच यएह दूरी बनि गेल छन्हि। ठाकुर प्रसाद बजला-
“भाय, जिनगी लेल कोनो वस्तुक कमी नै अछि। सभ किछु बना नेने छी। तैसंग बेटो अपनासँ अन्नैस नै बीसे अछि।”
ठाकुर प्रसादक बात रूद्रानन्दकेँ एते बिसाइन बना देलकनि जे मन बेकाबू भऽ गेलनि। बजला-
“भाय, हाइ स्कूलक अठमा किलासक समाज अध्ययनमे पढ़ने रही, मनुख समाजिक प्राणी छी, जँ से ने तँ या तँ देवता छी या जानवर। ऐ कसौटीपर अपन समीक्षा करियौ।”
रूद्रानन्दक प्रश्न सुनि ठाकुर प्रसाद गुम भऽ गेला। तैबीच पत्नी-रमदुलारी चाह-बिस्कुट दुनू गोटेक आगूमे रखि देलकनि। बिस्कुट खा पानि पीब ठाकुर प्रसाद बजला-
“भाय, जिनगीक कोनो ओर-छोर छै। बेठेकान अछि।”
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