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Friday, October 18, 2013

(79) वारंट

वारंट


बोरिंग-दमकलक कर्ज चुकौला पछातिओ हरिहर काकाकेँ केसक वारंट भऽ गेलनि‍। ओना वारंटसँ घबड़ेला नै मुदा एते शंका तँ आबिए गेलनि‍ जे रंग-बि‍रंगक चेहराक बीच जीनाइओ तँ असान नहियेँ छी।
सरसठिक रौदीक पछातिक समए। सरकारोक नजरि‍मे कनी पानि‍ आएल आ रौदि‍याएल कि‍सानोक मन ठेहियाएल। अखनि धरि‍ जे वि‍चार-सोलहन्नी भाग-तकदीरक बीच जीवैत चलि‍ आबि‍ रहल छल तइमे कनी धक्का लगलै। धक्काक कारणो भेल जे गामक-गाम सून भऽ भऽ मसान जकाँ बनए लगल छल, बनबो कएल। नम्‍हरो-नम्‍हरो गाछमे सूखनि‍याँ लगि‍ गेल केते रंगक फलो आ अन्नो गामसँ लोकेक संग पड़ा गेल। माल-जालक उजाड़ भऽ गेल। खेती-पथारीक चर्चे की, जे मिथिला दार्शनिक जगह रहल ओइ मि‍थि‍लाक दुर्दिनक बीच कुदि‍न सेहो आबि‍ गेल।
बी.डी.सी. मीटिंग बि‍हानपुरमे भेल। जेना छोट आँट-पेटक मीटिंग तेना खूब जमगर भेल। गामसँ जि‍ला धरि‍क अफसर-अफसरान एकठाम चारि‍ घंटा बैसला, कम नै भेल, मुदा तैबीच चाह-पान-जलखैमे जे समए लगल हुअए तइ लगा कऽ। कलक्‍टर साहैब सभसँ सि‍रगर रहथि‍। ओना अखुनका जकाँ नवतुरि‍या नै, उमेरगर सेहो। हुनके बातक प्रतीक्षामे सभ कि‍यो। उठि‍ कऽ तोहफा बाँटए लगला। श्रीमुखसँ व्‍याख्‍यान देलखि‍न जे सौनक मेघ जकाँ सरकार लटकि‍ कऽ निच्‍चाँ आबि‍ गेल, तँए मुँहमंगा बर्खाक झड़ी लगत। इच्‍छित वस्‍तु लोककेँ भेटत। कहि‍ चारि‍ श्रेणीमे गाम बाँटि‍ देलनि‍। तीन श्रेणीक कि‍सान आ चारि‍म बोनि‍हार। बोनि‍हार लेल गाए-महिंस, रि‍क्‍शा, टमटम इत्‍यादि‍ भेटतै जइमे तीन हीसमे एक हीस सरकार देत आ दू हीस अपन लगतै। तहि‍ना सीमांत कि‍सानकेँ बोरिंग दमकल ति‍हाइ छूटपर भेटत। आ जे अढ़ाइ बीघासँ पाँच बीघाक कि‍सान छथि‍ हुनका चौथाइ छूट भेटत। कहि‍ मुस्‍कीआइत बैसि गेला। धन बर्खा हुअ लगल। सौनक सतैहिया लादि देलक। खाद छूटपर, बीआ छूटपर, खेतीक औजार छूटपर, गाए-महिंसक संग रि‍क्‍शा, टमटम, लाेडस्‍पीकर, चूड़ी दोकान तक।
नाराक संग मीटिंग समाप्‍त भेल। भोजन-भात चलल ढेकार करैत जश देत सभ सीमान टपला।
हवा जकाँ समाजमे उठल। गाम-गामक लोक ब्‍लौक दि‍स मुड़ीआरी देलक। मुदा अनभुआर माल-जाल जहिना डोरी-खुट्टा तोड़ि लंक लऽ पड़ाइए, जे गोटे-गोटे पकड़ेबो करै छै आ गोटे-गोटे बौरौ जाइते छै। खैर जे होउ, भागल चोरक भगबे नफा। तैसंग ई बात सेहो, सभ नै बूझि‍ पौलक जे आम खाइले गाछ रोपए पड़ै छै। भलहिं गाछ रोपब असान किए ने होइ मुदा आमक चुनाव कऽ माटि‍-जगहक चुनाव सेहो करए पड़ै छै, जँ से नै तँ धनखेतीक कलम जेहने जुति‍गर होइ छै तेहने हएत। व्‍याख्‍यानक क्रममे उधि‍या कऽ एते लोक भाँसि गेल जे बुझैक होशे ने रहलै जे गीता जि‍नगी छिऐ ने कि पाठ। अध्‍यात्‍म दर्शने छिऐ आकि‍ जीवन दर्शन। तहि‍ना कलक्‍टर साहैब वि‍चारकेँ सभ बुझलक जे मीटिंग समाप्‍त हेतै आ काल्हि जखने आॅफिसक कुरसीपर बैसै जाइ जेता कि‍ धाँइ-धाँइ गाममे बोरिंग-दमकलक ट्रक संग पंजबिया गाएक पथार लगि जाएत। अकास-धरतीक जे मि‍लन स्‍थल क्षि‍ति‍ज होइ छै ओ हस्‍तांतरणक होइ छै। बोरिंग-दमकल बेपारीक घरसँ जहि‍ना औत तहि‍ना पशुपालकक घरसँ पशु औत। जइ दृष्‍टिएँ मिथि‍लांचल कौड़ीओ बरबरि नै। सोलहन्नी बहरबैयाक आशा।
ब्‍लौक दि‍स गामक लोक मुड़ी उठबैत पौलक जे पहि‍ने-ब्‍लौकक रजि‍ष्‍टरमे नाओं दर्ज करबए पड़त, ओ कागत आगू बढ़ि अगि‍ला आॅफिसमे दर्ज भेला पछाति रजिष्‍टरमे औत। ओइठामसँ बैंक पठौल जाएत, तेकर पछाति‍ काजक दौड़ शुरू हएत। काजोक दौड़ तँ हल्‍लुक नहियेँ। ब्‍लौकक चक्करक संग जि‍लाक चक्कर आ तैपरसँ बैंकक चक्कर धरि‍मे दू बर्ख समए आ बि‍नु हि‍साबक खर्च जहि‍ना सभ गमौलक तहि‍ना हरि‍हर काका सेहो गमौलनि‍। मुदा तेकर मिसिओ भरि‍ चि‍न्‍ता नै भेलनि‍। चि‍न्‍तो केना होइतनि‍, जहि‍ना हजार हाथक गाछक छि‍प्‍पीपर चढ़ला पछाति‍ जँ धरतीपर खसल वा पड़ल फलपर नजरि‍ पड़ै छै, जेकरा पबैले गाछपर सँ उतरैक समैओ आ भीरो कि‍छु ने बूझि‍ पड़ै छै तहि‍ना मनमे घमौड़ लैत रहनि‍। समए आ खर्चक फल एकटा टटके जरूर भेटलनि‍ जे जहि‍ना परि‍वारमे तहि‍ना समाजमे गप-सप्‍पक क्रम बदलल। रजनी-सजनीक खि‍स्‍सामे कमी आएल, खेती-पथारी, माल-जाल इत्‍यादिक बात समाजक मंचपर आएल। छोट-मोट मीटिंग भी.एल.डब्‍लू.क माध्‍यमसँ हुअ लगल। जइसँ लोकक आकर्षण बढ़ल। बैंकक माध्‍यमसँ कर्जमे भेटत आ बैंकेक माध्‍यमसँ असुलीओ हएत। मुदा तैबीचमे जि‍ला स्‍तरपर सब्‍सिडी-आॅफिस हएत। जाबे ओ आदेश बैंककेँ नै भेटतै ताबे कटौती नै हएत, लोनक सूदि चलैत रहत। तेतबे नै छह मासक बीच जँ अदा नै करब तँ सूदिओ मुइरे पकड़ि‍ लेत।
सरसठिक सरकारक मालगुजारी माफक जबरदस असरि‍ भेल। लोकमे नव बि‍सवास जगल जे जइ मालगुजारीक चलैत खेत सभ नि‍लाम होइ छल आब नै हएत। जहि‍ना मालगुजारी देनिहार बि‍सरि‍ गेल तहि‍ना सरकारो अपन कर्मचारीकेँ समेटि दोसर फाइल दि‍स लगा लेलक। ने मालगुजारी देनिहार आ ने लेनिहार रहल। मुदा बैंकमे टटका रसीदक जरूरति‍ भेल। मालगुजारी माफ मुदा केते माफ तेकर चि‍ट्ठी आॅफिसेमे लटकि‍ गेल। जहि‍ना सबहक तहि‍ना हरि‍हरो कक्काक साल भरि‍ टहलैएमे चलि‍ गेलनि।
हरिहरो काका तँ जिद्दी, तहीले समाजमे जश-अजश सदिकाल होइते रहै छन्‍हि। जश ई होइ छन्‍हि जे काजक प्रति‍ जि‍द्दी छथि, मुदा काजे तँ उनटा-पुनटा अछि नीको आ अधलो, दुनू तँ काजे छी। जे वि‍परीतो दि‍शामे काज करबे करत। जि‍द्दी तेहेन जे रगड़ि कऽ टटका रसीद कटा बैंकसँ रूपैआक नि‍कासी कराइए लेलनि‍। पहि‍ल खेप दू सए रूपैआक चेक माइनर एरीगेशनक नाओंसँ देलकनि‍। जि‍नगीक पहि‍ल चेक देखि‍ हरि‍हर काकाकेँ नीक खुशी भेलनि‍। खुशीओ केना ने होइतनि‍, छोटके चेक ने बड़का चेक बनैए।
बैंकसँ नि‍कलि हरि‍हर काका माइनर एरीगेशनक भाँजमे वि‍दा भेला। भँजियबैत-भँजियबैत भाँज लगलनि‍। मात्र दू गोटेक आॅफिस। बोरिंग गाड़ैक ठीकेदारी। चेक जमा करि‍ते रजिष्‍टरमे दर्ज भेला पछाति ठीकेदारक नाओं कहलकनि‍ ठीकेदार तँ ठीकेदारे छी। चाहे-सरकारी हो आकि‍ गैर सरकारी ओ तँ सबहक ठीकेदार भेल। एक संग पचासो ठीकेदारी चलि‍ सकै छै, तँए ओहन लोकक भेँट तँ थोड़े कठि‍न अछि‍। ठीकेदार भेटलनि‍। भेटि‍ते पुछलखि‍न-
ठीकेदार साहैब, कहि‍या तक काजमे हाथ लगत।
ठीकेदारी शैलीमे ठीकेदार बजला-
काल्हि नै परसू आउ?”
ऐ दौग-बरहामे पाँच दिन पछाति फेर भेँट भेलनि। भेँट होइते पुछलखिन-
अहाँक भेँटो हएब कठि‍न होइए तँए एकटा निठाही दिनक नाओं कहू।
ठीकेदार स्‍पष्‍ट कहलखि‍न-
मात्र दूटा पलान्‍ट छै। अहाँक नम्‍बर आठम भेल। बीचक काज भेला पछाति हएत।
हरिहरो कक्काक तीन गोटेक बैच रहनि। तीनू गोटे वि‍चारलनि‍। काज जहि‍ना अपन तहि‍ना दोसरोक। प्रतीक्षा तँ करए पड़त। पुछलखि‍न-
केते समए लगत?”
महिना दि‍नमे भऽ जाएत।
मास दि‍न पछाति तीनू गोटेक संग हरि‍हरो काका ठीकेदारक खोजमे नि‍कलला तँ पता लगलनि‍ ओ वि‍धान सभा एलेक्‍शनक भाँजमे चलि‍ गेल छथि‍, छह मास पछाति‍ औता। पछुआइत काज देखि‍ सबहक धैर्जक सीमा डगमगाइत तँ रहबे करनि‍। समए बीति रहल अछि कर्जक सूदि बढ़ि‍ रहल अछि। जहि‍ना समए बेठेकान भऽ गेल तहि‍ना परि‍वारक काज सेहो बेठेकान भेने आमदनी टूटि रहल अछि। ऐसँ नीक तँ अपन खेत बेचि‍ बोरिंग करबितौं। कोन फेरामे पड़ि‍ गेल छी। अधमड़ू साँप जकाँ बनि गेल छी।
साल बीति गेल। आॅफिसक उनटा फेरि‍ भऽ गेल। जहि‍ना दुनू स्‍टाफ (अफसर-कि‍रानी) बदलि‍ गेला तहि‍ना ठीकेदारो छोड़ि‍ कऽ पुलक ठीकेदारीमे चलि‍ गेल। भाँज-भुँज लगबैत मास दि‍नक पछाति‍ फेर काजकेँ पटरीपर अनलनि‍। कारगर अफसर। काज करैक उग्र जि‍ज्ञासा। दुनू प्‍लान्‍टक भाँज लगौलनि‍। एकटा काजमे लगल दोसर माटि‍क तरमे चलि‍ गेल। भेल ई जे अंधराठाढ़ी इलाकामे लेअर बहुत नि‍च्‍चाँमे छै। साढ़े चारि‍ सए फुट बोर भेला पछाति‍ लेअर भेटलै। बोरिंग लोड भेल। लोड भेला पछाति‍ जखनि‍ क्रेसिंग पाइप उखाड़ब शुरू भेल तँ पचास फीट तरेमे सौकेट फेल कऽ गेलै। पचास फीट नि‍कलल बाँकी माटिएमे रहि‍ गेल। तहूमे तेहेन जगहपर गेल जे अफसरो बेवस भऽ गेला। कोनो सस-बस नै चललनि‍। अंतमे बेवस होइत हरि‍हर काकाकेँ कहलखि‍न-
जँ रहि‍ गेलौं तँ जरूर बोरिंग हएत नै तँ देखि‍ते छि‍ऐ, आॅफिसक काज आइ एतए छी काल्हि‍ केतौ रहब।
जि‍ज्ञासु हरि‍हर काका, अपन काज बि‍सरि‍ पुछलखि‍न-
सर, एना किए अनि‍यमि‍त छै?”
अफसर-
किए छै तेकर कोनो एक्केटा कारण छै। रंग-बिरंगक कारण छै। अनेरे कोन समुद्र उपछै भाँजमे जाएब, ओकरा छोड़ू। हेबा की‍ चाहै छेलै से कहै छी।
ओझरीमे जहि‍ना अमती काँट, पेरासूत ओझराइ छै तहि‍ना ने मनो ओझराइ छै। तइसँ नीक हरि‍हर काका बुझलनि‍ जे जएह कहै छथि सएह नीक। पुछलखि‍न-
की हेबा चाहै छेलै?”
होइओक बहुत रस्‍ता छै, तँए एकटा कहब उचि‍त नै हएत मुदा सही रहने, नै सोलहन्नी तैयो उचि‍त तँ भेबे कएल।
मानब मुड़ी डोलबैत हरि‍हर काका कहलखि‍न-
एकरा के टोनत?”
अफसर बजला-
सुनू, नीक होइतै, जे आॅफिसेमे कागत-कलमक करै छथि हुनका निश्चित समए, नि‍श्चित काजक भार देल जान्हि। तइ काजमे की बाधा उपस्‍थित भऽ रहलनि तेकर निश्चित समैपर देखल जान्हि।
मुड़ी डोलबैत हरि‍हर काका बजला-
हँ, से तँ देखिते छिऐ जे काज जेहेन होउ मुदा आॅफिसक कागत टन्‍च रहैक चाही। नै तँ दुनियाँ देखै छै जे काेसी योजना सन योजना अरबोक योजना, मुदा राज रौदि‍याएल अछि। एना जँ सराध-बि‍आह दुनू दि‍स योजना चलत तँ केते आशा।
माइनर एरीगेशनक दौग-बरहा करैत सालक सिजिन समाप्‍त भऽ गेल। सिजिनक अर्थ भेल, जे काज माटिक छै ओ सुखारमे हएत। बरसातक समए बोरिंग गाड़ैमे असुवि‍धा होइ छै धसना खसैक डर रहै छै, नव तकनीकसँ गाड़ल जा सकैए। मुदा दुनूक बीच सामंजस केना हएत से मूल भेल। एक पक्ष बुझैए जे पाइ सरकारक छि‍ऐ, तँ दोसर पक्ष बुझैए पाइ जनताक छि‍ऐ, जेकर गेलै तेकर, हमर की। मुदा की तइसँ काज चलतै???
अगिला साल बिहानपुर, तीन बोरिंग-दमकलक संग काजक केंचुआ छोड़लक। कि‍छु गाएओ-महिंस गाम आएल। कि‍छु रि‍क्‍शा टम-टम बढ़ने सवारीक सुवि‍धा भेल। मुदा जहि‍ना कि‍छु नव उत्‍पादित हथि‍यार गाम आएल तइसँ बेसी लूटैक भूत पछुआ बनि पकड़लक। भोज-भात, बि‍आह-सराध जोर पकड़लक। बैंक कर्ज तर पड़लै। जेकरा असुलैमे शख्‍तीसँ बैंक पेश भेल जइसँ दि‍शाहीन समाज डरा गेल! कारोबार कमैत गेलै...।
बोरिंग गड़ौला पछाति सब्‍सिडी आॅफिसक काज एलनि। जि‍ला भरि‍मे एकटा आॅफिस। जेते काजक भीड़ तइसँ बेसी खेनिहारक भीड़! पहि‍ल दि‍न तीनू गोटे हरि‍हर काका हँसीए-ठठ्ठामे ओझरा, घूमि एला। दोसर दि‍न टेबुलपर जा कहलखिन-
तीन गोटे बोरिंग-दमकल नेने छी, बाजाप्‍ता बैंकक कागत अछि‍, से सब्‍सिडीक आदेश देल जाए।
जेना कि‍यो सुनिनिहारे नै! रंग-बिरंगक गप-सप्‍प चलैत! जहि‍ना स्‍कूलमे गल्‍ती केला पछाति वि‍द्यार्थीकेँ ब्रेंचपर ठाढ़ कऽ देल जाइ छै तहि‍ना टेबुलक आगूमे ठाढ़ कऽ देलकनि। घंटा भरिक पछाति कहलकनि-
परसो आना।
परसू गेला पछाति फेर परसू। ऊहो भाँज लगबैत जे कि‍नका सम्‍पर्कमे अबैए, मुदा परसू अंत नै भेल। ने आॅफिसमे दैछना देलखि‍न आ ने सब्‍सिडीक कागज आॅफिस छोड़लक।
सतासी-अठासीक भुमकम-बाढ़ि राज्‍यकेँ हि‍ला देलक। दस हजार रूपैआ बैंक लोन माफक अवाज उठल। नव सरकार बनल। लोन माफ भेल।
बैंकक अंतिम चिट्ठी जखनि हरिहर काकाकेँ पहुँचलनि तखनि केस खर्च सहित जमा कऽ देलखिन।
ओही केसक वारंट हरिहर काकाकेँ भेल छन्‍हि।

mmm

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