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Friday, October 18, 2013

(78) कनियाँ-पुतरा

कनियाँ-पुतरा


कमला-कमलक जन्मक उनैसम दिन। उनैसमासी कर्म केला पछाति जहि‍ना कर्ता चैनक साँस लेबो करैत आ छोड़बो करैत तहिना सुधनी दादी पोती (कमला) पोता (कमल) केँ जाँति-पीचि, पछबरिया ओसारपर कजरौटी दऽ पूब सिरहौने सुता बेटा-पुतोहुकेँ कहलखिन-
आब अपन करमकेँ करम-धरम करह, वाड़ी-झाड़ी बिरहा गेल हएत ओकरो तकतियान नै करब तँ जीब केना?”
कहि सुधनी दादी आँगनसँ निकलि वाड़ी दिस वि‍दा भेली आकि दछिनवरिया घरक कोनचर लगपहुँचिते मनमे ठहकलनि। ठहकिते ठाढ़ भऽ गेली। ठहकलनि ई जे कहुना तँ घरमे हमहीं बूढ़ छी, मुदा सुनैत तँ यएह एलिऐ जे जँ बेटा-बेटीक जौंआ संतान हुअए तँ पहिने बेटाक जनम होइ छै पछाति बेटीक। मुदा से भेल कहाँ। पहिने बेटीक जनम भेल? मुदा पुछबो केकरा करबै? बेटा-बेटे भेल, पुतोहु कनियेँ छथि, तखनि? समाजमे जँ केकरो पुछबै तँ कहत जे बुढ़िया बताह भऽ बड़बड़ाइए। गुनधुनमे सुधनी कोनचर लग ठाढ़ भेल ने आगू बढ़ैत आ ने पाछू ससरैत। अपन दतारी दोसरो-तेसरो तँ पुछैवाली छथिए। मुहाँ-मुहीं नै पूछि हएत, मुदा पुछबा तँ सकै छियनि। चोटे आँगन दिस घूमि पुतोहुकेँ हाथक इशारा दैत कहलखिन-
कनियाँ, कनी एम्‍हर आउ।
ओसारपर बैसल धीरजकेँ मिसिओ भरि शंका नै भेलनि जे एहेन कोन गप छी जे सोझहामे नै बाजि माए कातमे कहै छथिन। शंको केना होएत चुल्हि-चौकाक बात तँ सासु पुतोहुएकेँ ने कहथिन, तइले बेटाकेँ किए कोनो तरहक कुवाथ हेतनि। लगमे अबिते सुधनी बुधनीकेँ कान लग फुसफुसा कऽ बजली-
कनियाँ, अहाँ तँ अखनि नव-नौताड़ि छी, अखनि ओते नै बुझबै मुदा माए तँ छथि। चुपचाप हुनकासँ बूझि लिअ जे जौंआ संतानमे पहिने बेटीओक जनम होइ छै?”
सासुक बात सुनि बुधनी मानि तँ गेली, मुदा तैयो बजली-
ओना काल्हिए हम पूछि लेबनि, मुदा कहियो बाजल छेली जे पहिने बेटेक जनम होइ छै।
पुतोहुक बात सुनि सुधनी ठमकि गेली। मुदा तैयो बजली-
कनियाँ, आँखिक देखल अहूँकेँ अछि आ हमरो तखनि सुनलेहे बात मानब उचित हएत?”
सासुक बात सुनि बुधनी ठमकली। बल्ला आकि चूड़ी देखैले कोन ऐनाक जरूरी कोन स्‍त्रीगणकेँ होइ छै। ई तँ सद्य: आँखि देखैत अछि। जेकरा आँखि नै देखैत तइले ने ऐनाक जरूरति। कमसँ-कम एते तँ हेबे करत जे जहिना ऐ समाजमे (सासुरक) तहिना नैहरोक समाजमे अहिना लोक उनटा-पुनटा बुझबो करैए आ बजबो करैए। तैसंग ईहो हएत जे माइयो अपन बातमे मजगूती अनैले दोसरो-तेसरोकेँ पुछथिन वा निम्न बूझि नहियोँ पूछि सकै छथिन। मुदा जँ नै पूछि लेब आ झोंकमे कहियो बुढ़ही झोंकि देलनि तखनि तँ अनेरे आफतमे पड़ि जाएब। पुछैएमे की लगल अछि यएह ने आठ आना मोबाइलमे खर्च हएत, तइले अनेरे सासुक धौजनि बेसाहि कऽ रखब नीक नै। मने-मन बुधनी वि‍चारिते छेली आकि अंकुड़ित भगवान जकाँ मनमेअकुड़लनि। अकुड़लनि ई जे अपना जौंआ सन्‍तान भेल, किनको एक-दू-तीन संतान होइ छन्‍हि, हमर बेथा जहिना ओ नीक जकाँ नै बूझि सकै छथि तहिना तँ हमहूँ नहियेँ बूझि पएब। अपना दू संतानक बेथाक अनुभव अछि, दोसरकेँ तीनक अनुभव रहितो एक-एकक अनुभव छन्‍हि। डायविटीज आ ब्‍लडपेसर किनको एक संग छन्हि आ कि‍नको भेलनि दुनू मुदा बेरा-बेरी। अनुभव तँ दुनू गोटेकेँ दुनू बिमारीक भेलनि मुदा की दुनूक इलाजमे सोलहन्नी एके दबाइ कएल जाएत...।
पत्नीक ओझराएल मनक ओझरी चेहराकेँ रसे-रसे ओझरबैत चलि‍ जाइत। ओसारपर बैसल धीरज बेर-बेर चेहरा देखैत तँ टुटल फूल जकाँ बेसीए मलिन होइत चलि जाइत देखैत। मुदा सासु-पुतोहुक बीचक विवादमे पड़बो ओते नीक नै हएत जेते हेबा चाही। एकर माने ई नै जे परिवारमे कि‍यो चि‍न्तित हुअए आ केकरो लेल धैनसन, सेहो तँ नीक नहियेँ हएत? मुदा पुछबो केना करब? दुनूक बीचक सवाल जँ एक पक्षसँ पूछब तँ दोसर पक्ष पञ्छीए जकाँ ने बुझती, जँ एकठाम बात उठाएब आ ओ लिंग-वि‍शेषक होइ तखन ने माए बाजत आ ने माइयक डरे (सोझमे रहने) पत्नी बजती। तखनि? मुदा जे बदनामे चलि गेल ओ कहियो ने कहि‍यो नि‍कलबे करत, तहि‍ना जे परि‍वारक भीतर घूसि गेल ऊहो भुमहुर-आगि जकाँ धुँएबे करत, तइले अनेरे मन घोर-मट्ठा करब नीक नै, दुधे किए ने पीब लेब जे सभ संगे रहत। दूधक मोहनि जकाँ धीरजक मनमे चलि‍ते रहै आकि दोसर अकुड़ गेल। ओ ई अकुड़ल जे ऐ घरक अगि‍ला भार (चलबैक भार) तँ अपने दुनू बेकती (पति-पत्नी) पर पड़त, जाबे माए जीबैए ताबे गारजन बूझि‍ भार हटौने छी मुदा अखने जँ ओ बिमार पड़ए आ भार उठबै जोगर नै रहि जाए तखनि तँ एकाएक भार पड़बे करत। जँ कोनो काजक भार अबैसँ पहिने अदहो-छि‍दहो बूझल रहत तँ एते हल्‍लुक तँ बनिए जाइ छै जेते सोलहन्नी बिनु बूझलक होइ छै। समाजमे देखै छी जे कि‍नको सत-सतटा बेटी भेने डीह-डाबर दोसराक हाथ चलि‍ जाइ छन्‍हि, तँ कि‍नको सात बेटा भेने गामक अनको सभटा इनार-पोखरि‍ हाथ चलि‍ अबै छन्‍हि‍। धू: अनेरे मनकेँ छिछियबै छी। देखै छी जे एते-दिन बापे बेटाक भि‍नौजी होइ छेलै आब दुनू बेक्‍तीओमे देखै छी। तखनि‍ अनेरे मन किए बौआएब किए ने दुनू बेकती पति-पत्नी बनि‍ बुढ़ाड़ीओमे कोहवर घरक गप करब। पत्नी दिस नजरि उठा धीरज बाजल-
एम्हर कनी सुनू। अखनि भने माएओ अँगनामे नै अछि, एकटा बात पुछै छी?”
सासुसँ हटि बुधनीक जि‍ज्ञासा पति दिस बढ़ल। जहिना बाल-बोध बच्‍चा खिस्‍सा सुनि माल-जालक बच्‍चा जकाँ ‘घूटड़ू-घू’ सुनि मुँह बाँबि दइ छै तहि‍ना जिज्ञासा भरल बात सुनैले बुधनी मुँह उठा बजली-
की?”
धीरज-
अहाँक पीड़ा (उनैस दिनक) देखि मन महकि गेल जे आब संतान नै हुअए सएह नीक। दूटा भेबे कएल जँ दुनूकेँ दुनू बेकती सेवा कऽ मनुख बना ठाढ़ कऽ देबै तँ एकसँ दू परि‍वार तँ अवाद हेबे करत कि‍ने?”
हाल-बेहाल भेल बुधनी देहक मन मानि‍ गेल जे पति‍क वि‍चार सोलहन्नी नीक छन्‍हि। हूँहकारी भरैत बजली-
अहाँ विचारकेँ काटब से दरकार हमरा अछि। तखनि तँ पुरुख अपने खेतमे आड़िओ दइए आ तामस उठै छै तँ ढाहियो दइए। तँए अहाँ जानी। हम तँ संगीए ने भेलौं। बड़ हएत तँ एतबे ने, जे कानि-कानि लोककेँ कहबै, संगियाँ मरि गेल हम भुतियाइ छी।
जिनगीक सचाई जहिना धीरजकेँ तहिना बुधनीकेँ एक-दोसरा दिस खिंचए लगल। आगूक लेल दुनूक जिज्ञासा बढ़लनि। तही बीच सुधनी खोंइछामे झिंगुनी आ मुट्ठीमे सुखेलहा कड़ची नेने पहुँचली। अबिते चुल्हि लग कड़ची-जारनि रखि पुतोहुकेँ कहलखिन-
कनियाँ, बड़ीकाल भऽ गेल। बच्‍चा सभकेँ दूध पीएलौं?”
कड़ची रखि ओसारपर झिंगुनी खोंइछासँ उझलि बुधनीक लग बैसि सुधनी वाड़ीक खिस्‍सा पसारि देलनि। बाजए लगली-
उनैसे दिनमे वाड़ीक दशा बिगड़ि गेल। लत्ती सभ मचान छोड़ि-छोड़ि निच्‍चाँ उतरि कठुआ-कठुआ गेल। रामझिंमनी पँच-पँच, छह-छहटा जुआ कऽ गाछेकेँ कठुआ देलक। तेते ने खढ़-पात जनमि गेल जे वाड़ीक रुइखे खतम भऽ गेल अछि।
वाड़ी-झाड़ीक अपसोच सासुकेँ करैत देखि पुतोहु मलसारि दैत बजली-
वाड़ी गेल तँ गेल मुदा घरमे जे दूटा लाल आएल से?”
पुतोहुक बात जेना सुधनीकेँ हिलकोरि देलकनि। अगम पानि‍मे हेलए लगली-
से तँ अही दुनू लालले ने ओ सभ अछि। लालक पतिपाल हेतै तँ ओ सभ ढेर हेतइ।
पुतोहुक बात सुधनीकेँ धारक पानि जकाँ भँसौलकनि नै समुद्र जकाँ हि‍लकोरए लगलनि। परि‍वार तँ खाली मनुखे टाक नै होइ छै, घर-दुआर, खेत-पथार, माल-जाल इत्‍यादि अनेको मि‍ला कऽ बनै छै, जे मनुखसँ लऽ कऽ आनो-आनो वस्‍तुकेँ एक निश्चित सीमामे बान्हि‍ दइ छै। मुदा एक बान्‍हमे रहि‍तो तँ सबहक अपन-अपन महत्तो छै आ काजो छै। जइसँ एक दोसरकेँ जानो-पराण दइ छै आ जि‍नगीओ दइ छै। वाड़ी-झाड़ी, तीमन-तरकारी तँ मासे-मास दि‍ने-दि‍ने होइत-जाइत रहैए मुदा मनुख तँ से नै छी। तँए मनुखे ने मूल भेल। मूलक मूल्‍य तँ तखने ने बढ़ैत जाएत जखनि‍ मूलक सेवा हेतै। मूलेक पानि‍ ने छीप धरि‍ रस पहुँच हँसबै-खेलबैए। अनेरे मनमे धौजनि करै छी। जेना सुधनीक मन हल्‍लुक भेलनि। बजली-
कनियाँ, आब तँ दूध थीर भऽ गेल हएत, कहू जे दुनू बच्‍चाकेँ भरि पोख दूध होइ छै किने। जँ से नै हएत तँ बच्‍चाक पति‍पाल करब कठि‍न भऽ जाएत। जँ अखनेसँ दूधकट्ट भऽ जाएत तँ सभ दि‍न खि‍द-खि‍दाइते रहत। रंग-रंगक रोग सेहो दबतै, आ अगुओ-पछुओ पकड़तै।
सासुक बात सुनि बुधनी सकपका गेली। मुदा परि‍वारेक गार्जनेटा नै, बच्‍चाक दादीओ ने सुधनी छथि‍न तँए बाल-बोधक कोनो बात छि‍पाएब उचि‍त नै बूझि बजली-
माए, एकटा तँ बि‍सरिए गेल छेलौं, हि‍नका कहबो ने केने छेलियनि। ई तँ गपपर गप चलल तखनि मन पड़ल।
पुतोहुक बातमे सुधनीकेँ मि‍सि‍ओ भरि‍ अनुचि‍त नै बूझि‍ पड़लनि‍। बजली-
से की?”
पुरनी (पल्हनि) एकहक घोंट कऽ दुनू बच्‍चाकेँ सेहो दूध पीआ दइ छै।
बुधनीक अधखरूए बात सुधनी बूझि गेली। ओ बूझि गेली जे परसौतीक पहिल पूरक तँ पल्‍हनिए ने होइ छथि। ओना धि‍यान अपनो दिअए पड़त। पल्हनि दस दुआरी होइए। समाजक काज तँ सबहक बरबैरे होइ छै मुदा काजे छोट-पैघ होइए जेकरा लोक पकड़ि‍ चलैए। मुदा खतराक तँ घड़ी अछिए। जँ केतौ (पल्हनिक) हमरा (अपना) काजसँ पैघ काज दोसर ठाम भऽ जाए तखनि जँ ओकरा छोड़ि दिअए ईहो तँ नीक नहियेँ भेल। मुदा जे होउ, एते तँ वेचारी (पल्हनि) चेताइओ देलक जे बच्‍चाकेँ भरि‍ पोख दूध नै होइ छै। खैर अखनि‍ तक जँ बच्‍चा नीक जकाँ जीब गेल तँ आइएसँ दोसर जोगार कऽ लेब, जरूरी अछि। बजली-
अच्‍छा कनियाँ एकटा बात कहू जे वेचारीकेँ खुआ-पीआ दइ छि‍ऐ कि‍ने? वेचारी एहेन पीतमरू अछि जे आइ उनैसम दि‍न बीति रहल अछि अखनि तक अपन सिदहो-बोइननै मंगलक हेन। जखने बच्‍चा जनमैत अछि तखन माइए-बापटा केँ कि परिवारो-समाजोकेँ आशा जगि‍ते छै। मुदा ईहो नीक नै जे जे मुँह खोलि नै बाजए ओकरा सुपतो नै भेटै। आइ पल्हनि‍ जखने औत, तखने मन पाड़ि देब, जेना जे हेतै से दाइए देबै।
एकटा बच्‍चाकेँ दूध पीआ बुधनी सासुक कोरामे देलक। दोसर बच्‍चाकेँ ओछाइनसँ उठा कोरामे लइते छल आकि हकोपरास भेल पल्हनि पहुँचली। जेना समैपर नै एने कि‍यो अपनाकेँ दोखी बुझैत तहि‍ना पुरनीओ बुझलक। अबि‍ते बाजलि‍-
काकी, अबेर भऽ गेल।
पुरनीक बात सुनि‍ सुधनी गुमे रहली। मुदा सुधनीक गुमी पुरनीकेँ आरो झकझोड़ि देलकै। झकझोड़ि ई देलकै जे भरि‍सक मने-मन सुधनीकाकी गुम्‍हरि रहली अछि। मुदा से नै भेल, भेल ई जे पुरनीक बोली-वाणी, चालि‍-ढालि, चेहरा-मोहरा जोर-जोरसँ बाजि रहल छल जे पुरनी तेहेन उकड़ू काजमे फँसि गेल छेली जे तन-मन दुनू फ्रीसान भऽ गेल छेलनि। मुँहसँ फुफड़ी उड़ैत थाकल-मारल बटोही जकाँ देखि सुधनी बजली-
पुरनि, पहिने हाथ-पएर धो कऽ कि‍छु खा लिअ। जखनि आबि गेलौं तखनि काज हेबे करतै। किए एते परेशान बूझि पड़ै छी?”
सुधनीक बात सुनि‍ पुरनी पोखरि‍क पानि‍ जकाँ थीर होइत बजली-
काकी, की कहबनि‍। दछिनवारि टोल प्रसव करबए गेल छेलौं। उनटा बच्‍चा छेलै। दरदे कनि‍याँ छटपटाइ छेली, बच्‍चा जनमिते ने छेलनि। मुदा कहुना-कहुना कऽ सम्‍हरल। ओही काजमे एते अबेर भऽ गेल।
पुरनीक बात सुनि सुधनी बजली-
अहिना होइ छै। ने एकेटा मनुख अछि आ ने एके रंग काज हेतै। मुदा मनुखो तँ कम भेदि‍या नै ने अछि‍, देखिओ-सुनि आ गरो अँटका कऽ भेद तँ बूझिए जाइए।
हाथ-पएर धोइ पुरनी खाए लगली। खाइते-खाइते बजली-
काकी, अपना बच्‍चाकेँ भरिपोख दूध नै होइ छै, हमरो कोनो ठेकान नै अछि। से कोनो ओरियान कऽ लोथु। अखनि अन्न चटबैबला थोड़े भेलनि जे अन्न चटौथिन।
पुरनीक बात सुनि‍ सुधनी बजली-
बौआकेँ कहलिऐ हेन जे ओना गाएओ-महिंसक दूधसँ काज चलि‍ सकैए मुदा नीक हएत जे बकरीए दूध दि‍ऐ।
पुरनी-
हँ-हँ काकी बेस वि‍चार छन्‍हि। एना तँ बजारोक दूध एकपर एक छै मुदा ओकर कोन बिसवास। अपना हाथक जे अछि तेकरे ने बिसवास।
दुनू गोटेक (माएओ आ पल्हनिओ) बात सुनि धीरजकेँ भेल जे जखनि‍ दूध लेल बकरीक ओरि‍यान करैएक अछि तखनि‍ समए गमाएब नीक नै। जरूरीक जे काज अछि जँ ओकरा पछुआएब आकि अनठाएब ओ परि‍वारकेँ पाछू धकेलब भेल। जखनि‍ बुझै छि‍ऐ जे एक परि‍वार रहि‍तो, सभ काज परि‍वारेक रहि‍तो करैक तँ कि‍छु सीमा अछिए। उठि‍ कऽ आँगनसँ नि‍कलि‍ दूधारू बकरी भँजियबैले वि‍दा भेल। समाजो तँ समाज छी। जहि‍ना रंग-रंगक मनुख तहि‍ना रंग-रंगक धनक खाड़ी सेहो बनले अछि‍। काेनो दरबाजा एहनो अछि जैठाम हाथी-घोड़ा रहैए आ कोनो एहनो अछि जैठाम कि‍छु ने रहैए। मुदा तँए कि गाममे गाए-महिंस बकरी नै अछि से तँ अछिए।
धीरजकेँ आँगनसँ नि‍कलिते बुधनीकेँ अपन बात बजैक गर भेटल। गर ई जे एक परि‍वार रहितो, सभ बात बुझला पछातिओ सभ लग सभ बात सभ नै बाजि‍ पबैए। बजली-
भने माएओ छथि आ अहूँ छी, जि‍नगीमे एहेन दुख कहि‍यो ने भेल छल, जे भेल तँए...?”
बुधनीक बात सठलो ने छल आकि बिच्‍चेमे पुरनी बजली-
कनियाँ, हमर-अहाँक (नारीक) यएह अग्‍नि परीछा छी। राजासँ रंक तककेँ ई परीछा होइ छै। तइले दुख-बेकल मनमे रखब तँ दुनियाँ चलत।
पुरनीक विचारकेँ बुधनी सुनिते द्रवित भऽ गेली। एक संग मनमे अनेको प्रश्न उठि गेलनि। परि‍वार लेल बच्‍चा अनिवार्य ऐ दुआरे अछि जे वएह बच्‍चा बढ़ैत सि‍यान-चेतन होइए, जैपर कुले-खनदान नै परि‍वार, समाज, देश-दुनि‍याँ ठाढ़ अछि। एहेन जे मनुखक अनिवार्यता छै तैठाम संतानक अनि‍वार्यता तँ छइहे। मुदा जि‍नगीक तँ कोनो ठेकान नै अछि, बच्‍चासँ सियान आकि‍ बूढ़ धरि‍ कखनो-कहि‍यो कि‍यो मरि‍ जाइए, तखनि‍? एक बच्‍चापर आश्रितो तँ नहियेँ रहल जा सकैए। दोसर ई जे जँ बेटा-बेटीकेँ बरबरि‍ मानि‍ लेब, सेहो तँ सोलहन्नी उचि‍त नहि‍येँ। हँ कोखि‍क लेल संतान भेल मुदा सामाजिक जे ढाँचा अछि तइमे बराबरी केना औत। मुदा मनो तँ मने छी। देहमे दुख भेने जे वि‍चारमे अबै छै, सुख भेने बदलि जाइ छै। अपने दुनू परानी वि‍चार केलौं जे एहेन दर्द (बच्‍चा जन्‍मक) दोहरा कऽ नै उठाएब मुदा...? पीड़ाएल मन बुधनीक दृढ़तासँ मानि‍ गेल जे आगू सन्‍तान नहियेँ हएब नीक। बजली-
अखनि तँ सोझहामे ईहो दुनू गोरे छथिए, नीक-बेजए बुझबे करै छथिन।
बुधनीक बात सुनि‍ पुरनी बजली-
कनियाँ, अगुताएल किए छी, अखनि पहिने देह-हाथ सक्कत बना लिअ। ताबे बच्‍चो सकताइए। अबि‍ते-जाइते रहै छी जेहेन अपन परहेज करब, तेहेन जे चाहब से हेतै।
पुरनीक बातमे बुधनी जि‍नगीक बिसवास पौलक। आँखि उठा पुरनीक आँखिपर दैत अपन बेथा कहलक। बुधनीक बेथीत मन देखि पुरनी बजली-
कनियाँ, जहि‍ना कामि‍नी फूल महिनामे चारिए दि‍नक जि‍नगी पबैए तहि‍ना सन्‍तानक खेल सेहो अही चारि‍ दि‍नमे नि‍हीत अछि। पछाति बुझा देब।
गप-सप्‍पकेँ सीमा छुबैत देखि‍ सुधनी पुरनीकेँ पुछलखिन-
तोहर सि‍दहा केते हेतह। कहुना भेलह तँ तूँ दसारी भेलह, तँए तोहर रस्‍ता रोकब उचि‍त अपन रस्‍ता रोकब हएत। दाइए दइ छिअ। अपन नेने जइहऽ।
सिदहा सुनि अखनि धरि‍क कएल काजक फल देखि पुरनीक मन खुशीभेल, बाजलि-
काकी, हमर खेत-पथार, माल-जाल, राज-पाट सभ तँ यएह छी। दोसर कोन असरा अछि। आइ दि‍नसँ हि‍नका ऐठाम खेनि‍हार सभ आबए लगतनि‍। मुदा जे काज हम केलि‍यनि‍ सेहो कि‍यो करतनि‍।
पुरनीक बात सुनि‍ सुधनी सहमि‍ गेली। बजली-
कनियाँ, एक बेर अपना मुँहसँ बाजि‍ जाउ, केते हएत। काजक भीर हमरो नजरि‍मे अछि। अन्‍हार घर साँपे-साँप होइ छै। समाजमे जेते हमरो सन लोक दइए तइसँ कम नै देब।
सुधनीक वि‍चारमे आशा देखि‍ पुरनी बाजलि‍-
बेटाक अदहा बेटीक सि‍दहा भेल, तँए दोबर नै डेढ़िया भेल। अनका लिए जे होउ, मुदा हमरा लि‍ए तँ जेहने बेटा तेहने बेटीओ भेल।
मास दि‍नक कमला-कमल भऽ गेल। सुभ्‍यस्‍त समए भेने गामोक चुहचुही ऐ साल नीक अछि। धनमंडल भेल अछि। बच्‍चाक नि‍बि‍ते जहि‍ना पमरि‍या, बकूनि‍याँ, हिजरा-हिजरनीक ढबाहि लागत, तहि‍ना ठको-फुसियाहक ढबाहि लगबे करत कि‍ने?
दीपेक पमरि‍या, कहि‍यो बपहरक नाओंसँ तँ कहयो ममहरक नाओंसँ एबे करत। से कि कोनो एकेठामक औत नैहर-सासुर सबतरि‍ पसरत। जीवि‍काक तँ दोसर साधनो ओकरा छइहो नै ने।
दोसर मास चढ़िते चारि‍ गोटे पमरि‍या पहुँचल। बेटाक बधैया मांगए। मुदा बेटीक?
mmm

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