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Friday, October 18, 2013

(75) केलवाड़ी

केलवाड़ी


पूर्णिमा हिसाबे अदहा कातिक टपि गेल मुदा सकराँइतिक हिसाबे पचीस दि‍न पछुआएल अछि। रातिए दिवाली भेल, परीवक पखेबो आ धनमनतरि सेहो छी। काल्हि भरदुतीओ आ चित्रगुप्‍तो छी। साठि बर्ख पार केला पछाति‍ जीवन काका नव जिनगी पाबि केलवाड़ी पहुँचला।
चारि कट्ठा चौमासा (पानि भेटने) वाड़ी-फुलवाड़ी केलवाड़ी बनि हँसैत देखि‍ बीच केलवाड़ीमे बैसि‍, वृन्‍दावन जकाँ कखनो नजरि उठा कोनो घौरपर दैत तँ कखनो पूर्बाक लहकीमे लट-पट सट-पट करैत भालरि‍ सभकेँ सेहो देखैत रहथि‍। लहकीमे लहकि जीवन काका अपन संगी-केलवाड़ीक परि‍चए-पात करए लगला। बाबाक लगौल आमक गाछीकेँ अदहा उपटा केलवाड़ीमे जि‍नगी देखि‍ रहल छी। आमक गाछीमे बबो अहिना ने देखै छल हेता यएह धड़-धरती ने कुलो-खनदान, उपजो-वाड़ी, खेनाइओ-पीनाइकेँ अपना पेटमे समेटि‍ कऽ रखने अछि। बाबाक बराबरी कहाँ कऽ पाबि‍ रहल छी। पछिला सर्वेमे जेते हुनका खेत छेलनि‍ तेते तँ हमरो अछिए। मुदा सबहक अपन समए होइ छै, तहीक कर्तो-धर्ता ने छी। हुनका अमलदारीमे गाममे एकटा वैद्य छला। वैद्य की छला अखुनका करखन्ना जकाँ छला। अपने हाथे मंडूल बनबै छला, जे पौण्‍ड रोगक रामवाण छेलै। सीतामढ़ीसँ पूर्णिया, नेपालक झँपा जि‍लासँ लऽ कऽ वीरगंज होइत गंगाक उत्तरी छोर धरिक बजार छेलनि। रोगीक आवाजाही छेलनि‍। जहि‍ना इलाकाक लोक वैद्य जीकेँ जनैत तहि‍ना रहैक जगह बाबाकेँ सेहो जनैत रहनि‍। अनका अपेक्षा स्‍थि‍ति बहुत नीक नै रहनौं, दरबज्‍जाकेँ दरबज्‍जा बना रखने छला। अनठिया-बहरबैया लेल कोनो रोक-राक नै, मुदा तँए कि‍ गामो ओहने छल। नै। जातीय रंग-रूप नीक जकाँ गछाड़ने छेलै। बाबासँ आगू बढ़ि‍ अपनापर नजरि‍ पड़िते जीवन काका चौंकला, की अपने जकाँ पोतो मनमे रहबै, नै। अहि‍ना ऊहो सोले-साल बरखी आ पि‍तृपक्षमे मन पाड़त! मुदा एना भेल किए? अपना अछैत जुआन बेटा काज करै जोगर भेल, बाहर कमाए कहलिऐ। परि‍वारमे अन्न-पानिसँ लऽकऽ रूपैआ-पैसा धरि‍क काज पड़ि‍ते छै। कि‍सानी जि‍नगीमे नगदी खेती नै भेने पाइक समस्‍या छैहै। पढ़ौनाइ-लि‍खौनाइ, दबाइ-दारू, लत्ता-कपड़ा सभ तँ कीनै पड़ै छै।
अखनि धरि‍ जीवन काका अपनाकेँ अपन सीमानक भीतर बुझै छला तँए मनमे कोनो लहरि‍ नै उठै छेलनि‍। उठबो केना करि‍तनि‍? जाबे समुद्र आकि‍ मरूभूमि‍मे जुआरि नै उठैत ताबे केना लहरि‍-लहरि‍ लहराइत वायुमंडल दि‍स बढ़ैत। ओना खुशीलाल आज्ञाकारी बेटा छन्‍हि‍। तैबीच वैचारि‍क मनभेद केना बनल से बुझित जीवन कक्काक मन बगदि‍ गेलनि‍। जहि‍ना पोसो हाथी बगदि‍ जाइत तहि‍ना। भेल र्इ जे खुशीलालकेँ एते छूट तँ दाइए देने छेलखिन जे नीक काज बि‍ना केकरो पुछनौं करब अधला नै। आज्ञाकारी बेटा केतौ सीमाक उल्‍लंघन नै केलनि‍, मुदा सीमाक उल्‍लंघन तँ भाइए गेल। नव पद्धतिक पढ़ाइ एकभग्‍गू भऽ गेल अछि‍, जखनि‍ कि जीवन काका समग्रतामे बि‍सवास करै छथि। मुदा जीवन काकाकेँ अपनो मन उग-डूम तँ करि‍ते छन्‍हि‍ जे बेटा ई बात अखनि‍ धरि‍ किए ने बूझि‍ पौलक जे भँसि‍ गेल। माए-बाप जीबैतै दिशा ने बेटा-बेटीकेँ सि‍खौत-पढ़ौत आकि‍ जि‍नगी भरि‍ संगे-संग रहि‍ बेर-बेर सि‍खबैत रहत। जँ से हेतै तँ जि‍नगीओ आ कालखंडोक बँटवारा केना हेतै। की आब कि‍छु कहब उचि‍त हएत? उचि‍त तँ ओइ दि‍न तक होइत जइ दि‍न काज करैले डेग उठबए लगल, अन्‍तो-अंत धरि‍ जँ कहैत। मुदा आब?
गंभीर प्रश्न जीवन काकाकेँ गंभीर परि‍स्‍थिति पैदा कऽ देलकनि। जँ बताह जकाँ बड़बड़ा बेटोकेँ कहबै, पुतोहुओकेँ कहबै आ जँ कहीं टोकारा पाबि‍ खि‍सिया कऽ गाम दि‍स टहलि समाजोकेँ कहबै, से उचि‍त हएत? काजक तँ फले काजक पूर्णता छी। ऐठाम तँ ओहूसँ बेसी परिस्‍थिति चहकि गेल अछि। तेहेन पढ़ाइ-लि‍खाइ भऽ गेल अछि जे अखनि‍ ने मोटगर पाइ देखै छै, मुदा रि‍टायर करि‍ते अदहा भऽ जाएत, आ बेटा-बेटीक जि‍नगी तेते भारी भऽ जेतै, जे सम्‍हारि‍ नै पौत। एहेन परिस्‍थितिमे कि‍यो माए-बापकेँ देखत आकि‍ बेटा-बेटीकेँ। उगैत सुरुजक दर्शन ने शुभ होइ छै आकि‍ डुमैत सुरूजक। तखनि‍? जेकरा मूस जकाँ बि‍ल खुनैक लूरि‍ नै होइ छै तेकरा लेल दुनि‍याँ जे होउ मुदा जेकरा खुनैक लूरि‍ हेतै ओ सीमा किए टपत। बाढ़ि‍ औतै ऊँचकापर चलि‍ जाएत रौदी हेतै नीचका दि‍स बढ़ि‍ जाएत। यएह सोचि‍ जीवन काका चारू कट्ठा खेतकेँ, जे आमक गाछी तोड़ि‍, केलवाड़ीओ आ तीमनो-तरकारीक चौमास खेत बना लेलनि‍। खेतोक लीला की कृष्‍ण लीलासँ कम अछि‍, रौदी भेने जीरो, सुभ्‍यस्‍त समए भेने हीरो। केतौ तीनिओ बीघा बीघासँ कम गोबरबैए तँ केतौ बीघा पाँच बर गोबरबैए।
चारू कट्ठाक बीच एकटा कल गड़ा लेलनि, चारूकात निम्‍मन हाता कटा, माटि‍ ढहै दुआरे साबे आ आड़ि‍पर अनरनेबा, नेबो, दारीम, सरीफा इत्‍यादि‍ छोटका गाछबला फलक रोपि‍ देलखि‍न। डेगसँ नापि‍ एक-एक लग्‍गीक दूरीमे केरा गाछ सोहो रोपलनि। जे चालीस बीट भेल। जेठुआ रोप भेने काति‍कमे दू-दूटा पौंच गाछ देलक। मघारि आबि‍ फूटि गेल। कुहरि‍ कहारि‍ कऽ घौर भेल। खैर जे भेल, भेल तँ। वएह बीट तेसर सालमे पहुँच गेल। साठिटा घौर पनरहसँ पचीस हत्‍थाक भेलनि।
एक तँ ओहि‍ना मन तुरुछाइत रहए जे आइए झंझारपुरक हाटो छिऐ आ पखेब पावनिओ। हाटो तेहेन जे सुति‍ उठि‍ आँखि मीड़िते वि‍दा होउ। केना चौरीसँ करमी लत्ती आनब, सोनहौनक ओरि‍यान करब। जखनि‍ दुनू काज लोके हाथक छी तँ आगूओ पाछू कएल जा सकै छेलै। खैर जे होउ। गर अँटबैत झंझारपुर हाट गेलौं। केरोक सूर-पता लगबैक छल आ पावनिओक वस्‍तु-जात कीनैक रहए। हाटपर पहुँचलो ने रही आकि आढ़ति‍बला भेट गेल। पुछलिऐ-
कारोबारक की हाल-चाल अछि?”
मनमे एक्को मि‍सि‍या नै रहए जे अधला नजरि‍सँ पूछि रहल छि‍ऐ। तीन माससँ झंझारपुर गेलो नै छेलौं। हाल-चाल सुनि‍ते गुम्‍हरि‍ कऽ बाजल-
सभ बूडि गेला गंगा नहए आ ई रहि गेला गामेमे।
परि‍चि‍त लोकक मुहेँ कठानि बात सुनि‍ अवाक् भऽ गेलौं। आगू बढ़ि भाँज लगल जे हाजीपुरसँ लऽ कऽ भागलपुर धरिक बीचक जेते अछि‍ सभ लगा कऽ केरा दहा गेल। जे केरा खुदरा-खुदरी गाम धरि‍ पकड़ि‍ नेने छल। की गाममे केरा सन फलक जेकर खेतीओ असान, तेकर कीनिनिहार कि‍सान बनि‍ गेल छथि! झंझारपुरसँ वि‍दा होइते मनमे उठल जे केरा घौर छौड़ाक कबुला छै, जँ से नै भेलै तँ छौड़ाक माए घरोमे ने रहए देत। मन ठमकल, एहेन कबुले की जे सौंसे घौर कबुला कऽ लेलनि‍। जे कीनि‍ कऽ खाइए ओ दर्जनक हि‍साबसँ कीनत आकि‍ घौरे कीनि‍ लेत। आइसँ पाँचे दि‍न छठि‍क रहल तहूमे तीन दि‍न पहि‍नेसँ शुरूहे भऽ जाइए। जखनि‍ चीजो ने हाट-बजारमे छै तखनि‍ एहेन की हमहींटा छी आकि‍ अपन अड़ोसीओ-पड़ोसीओक गति‍ सएह हेतनि‍। पत्नी बड़ खिसिएती तँ पाइ आगूमे फेक देबनि‍। पाइ देखि‍ जखनि‍ दोसर-तेसरसँ भाँज लगतनि‍, अनेरे ने उचि‍ती-वि‍नती कऽ छठि‍क वि‍सर्जन करती। दलदलसँ सक्कत माटि‍पर पएर पड़ल। मन थीर भेल। मुदा ई तँ अपना मनमे छल। झंझारपुरसँ अबि‍ते पत्नी झपटि‍ कऽ बजली-
जेकरा काज करैक छिछा रहै छै से ने काज करैए आ जे सदि‍काल जेबीए टोबत ओकरा बुते देवता-पित्तर राखल हेतै।
अपन हारल की बाजब। अनधुन बि‍ना कौमा-फुलस्‍टोपक बजैत-बजैत बजा गेलनि-
गामेमे जीवन काका केराक वोन लगौने छथि।
हारल मन घूमि तकलक। बजलौं-
एना किए छान-पगहा तोड़ने जाइ छी। अखनि पाँच दि‍न पावनि‍मे बाँकी छै। तैबीच की कोनो ओछाइन धऽ लेब। आकि‍ छुटल-बढ़ल जे काज अछि तेकरे जोड़ियाएब।
मुदा मानि‍ गेली। खेला-पीला पछाति नीनो किए हएत बड़दकेँ सोनहौन पिऔनाइ रहए, गरदामी देनाइ रहए, तैसंग धानो काटि कऽ नै अनने रही, ऊहो आनए पड़त। पान ओ (पत्नी) पीसि देती मुदा लगा कऽ तँ अपने दिअ पड़त। जेते काल नीन घेराएल रहल तेते काल टटका गपो सभ गपकेँ ठेलने रहल। तँए कखनो मन हुअए जे एहेन कबुला केनि‍हारि‍केँ चारि‍ थापर लगा दियनि। कहू जे एहनो हाड़-काठबलाकेँ कबुला-पाती केने धिया-पुता हएत।
बरदकेँ सोनहौन-तेल पीअबैत गरदामी पहि‍रबैत, सींगमे तेल लगबैत, मुँहमे पान खुआ दूधाएल धान, आगूमे दैत केराक भाँजमे जीवन काका ऐठाम वि‍दा भेलौं। दरबज्‍जा खाली देखि‍ मनमे उठल, लोक या राजधानीएमे रहैए आकि वोनेमे। जखनि दरबज्‍जा सून छन्‍हि तखनि‍ केदलीए वोनमे हेता। तहूमे एक तँ छठि‍क लहकी दोसर तेहेन इलाकाक केरा वोन दहाएल जे अनेरे एकक तीन हेतनि। चारूकात चकोनो होइत करजान पहुँचिते जेना मने हरा गेल। कहू जे एकटा घौर लेल एक दुपहरि‍या हरान भेनौं, नै भेल। जेकर वोने देखै छी। जइसँ तरपट्टीओ सुनए पड़ल। मुदा परि‍वार तँ परि‍वार होइ छै, एहेन-एहेन बातक जँ मद्दी हएत तखनि‍ परि‍वार ठाढ़ रहत। भूतलग्‍गू घर जकाँ अनेरे ढनमना कऽ खसि पड़त। केलवाड़ीक हत्तापर ठाढ़ होइतै भेल जे बिना चीजबलाकेँ पुछने आगू डेग उठाएब उचि‍त नै। मुदा देखबो तँ नहियेँ करै छियनि। गर लागल। बजलौं-
काका छी यौ, काका?”
जहिना राति‍मे ओछाइनपर पड़ल अनभुआर बोली सुनि‍ अकानए लगैए मुदा उत्तर दोहरेला पछाति‍ तेहरेलोत्तर दइए। जीवनो काका बोली अकानए लगला। बुझलेहे जकाँ दोहरी अवाज दैत डेग आगू बढ़ेलौं एक तँ केराक वोन, गाछो अवाज रोकैत आ पातो। तैसंग शर्बतक गि‍लास जकाँ अवाजोकेँ दुनू घोड़िते अछि। एक तँ निशाँएल जकाँ जीवन काका बैसल रहथि‍। बहरबैया अवाजकेँ नीक जकाँ नै अकानि‍ सकला, सहरगन्‍जे बजला-
के छिअ, आबह।
आबह सुनि‍ मनमे हूबा भेल जे हाजि‍री दर्ज भाइए गेल। जीवन काका बि‍सरि‍ गेलौं। बिच्‍चेमे केरा घौर वि‍चारकेँ बोहि‍या देलक। साठि-सत्तरिटा कटैबला केराक घौर। कि‍छु तरकारीबला आ कि‍छु फुल्‍लीओ छइहे। जइमे कोशा लगले छै। देखैत दोसर कोन दि‍स पहुँचलौं आकि‍ काका बोली देलनि‍-
के छियऽ केम्‍हर गेलऽ।
बाढ़िक इलाकामे जहि‍ना लोक पुक्की-पाड़ि‍-पाड़ि जि‍नगीक उपस्‍थिति दर्ज करबै छथि, तहि‍ना हमहूँ बीटे-बीटे, दोगे-दोग देखैत पूबरिया-उत्तरबरिया कोण दि‍स बढ़ि‍ गेलौं। बढ़ि‍ की गेलौं, केरा अपन जिनगीक कथा देखबए-सुनबए लगल। कि‍छु उत्तर नै देब उचि‍त नै बूझि बजलौं-
काका, तेहेन वोन अहाँ लगा देने छि‍ऐ जे बौआइ छी।
अच्‍छा बोली अकानैत चलि‍ आबह।
लग अबि‍ते जेना बूझि‍ पड़ल जे जीवन काका जेना सोनाक घैल पौने होथि तेहने खुशी देखलियनि। खुशीओ केना ने हेता, घोंग्‍हीसँ मोती, कोयलासँ हीरा होइते अछि तखनि‍ महि किए ने अकास उड़ए। जे केहेन सोंगर लगौलासँ काज चलत। जँ से नै भेल तखनि‍ तँ अनेरे बनलो काज बिगड़ि जाएत। मुस्‍कीआइत तीर फेकलौं-
काका, बुढ़ाड़ीओमे जेना केंचुआ छोड़ने होइ तेहने चकचकी बूझि पड़ैए।
हमर बात सुनि‍ काका गुम भऽ गेला। अगुता कऽ ओहन जकाँ नै जे कहबै सासुरक सुपारी खुआबह। तँ कहत जे तीनटा सारिओ अछि। केचुआ छुटिते ने नव-जीवन भेटै छै। मुदा बातकेँ बदलैत बजला-
पहिने ई कहऽ जे अगुताएल तँ ने छह? तेहेन अखनि पावनिक लदान पड़ि गेल अछि जे दमो माड़ैक छुट्टी नइए।
काजो अपने रहए, काज तँ काजे छी। एकक पछातिओ दोसर हएत, तइले झंझारपुरक समए अछि आ ऐठाम नै अछि। बात बिहियबैत कहलियनि-
काका, हम तँ छेहा बेरोजगार छी। अनेरे भरि‍ दि‍न ढहनाएल घुमै छी।
हाथक इशारा दैत बैसबैत बजला-
बौआ, केचुआ छोड़ैक लूरि‍ जेकरा रहै छै वएह ऐ धरतीक सुख बुझै छै। अपना ऐठाम केराक खेती अदौसँ होइत आबि रहल अछि। जेहने गुणगर तेहने पेटभर। मुदा ऐठाम तँ पौष्‍टिक वस्‍तुक उत्‍पादन होइ वा नै होइ मुदा जन-जनकेँ पोष्‍टिक अहार भेटि‍ रहल छै। जइसँ स्‍वस्‍थ शरीरक ि‍नर्माण भऽ रहल छै।
साँस छोड़िते मन पड़लनि‍ जे किम्‍हर आएल से तँ पुछबे ने केलौं। आ अनेरे सासुरसँ भागल स्‍त्रीगण जकाँ भटभटाइ छी। मुदा लगले मन सम्‍हरलनि। दुआरपर आएल अभ्‍यागतकेँ चट दनि‍ पूछि‍ देब जे केम्‍हर एलौं, सेहो तँ नीक नहियेँ। भने चाससँ समार भऽ गेल। एक रस भेने ने अनुकूलता अबै छै, ओना जँ ओहन वस्‍तुक शर्बत बनाएब जेकरा छानए पड़ैत तखनि अनेरे किए एक बेर पानि‍ छानू दोसर बेर शर्बत। एक्के बेर किए ने छानि एक रस बना लेब। बजला-
बौआ, केम्‍हर एलह, से पहिने बाजह। ई काज भेल, काजकेँ कखनो टाड़ैक वा अँटकबैक काशिश नै करी। ई दीगर भेल जे कोन काज केहेन काज।
जहि‍ना तीन कोनियाँ तीर आकि‍ बंशीक कोण अपने दि‍स बैसला जकाँ रहै छै जे प्रवेश काल तँ पैसि गेल मुदा नि‍कलै काल खोखरनहि औत। जीवन काकाकेँ मचकीपर चढ़ल देखि आस मारलौं। मुदा केकरोसँ कि‍छु मंगैसँ पहि‍ने केकरो दोख अबै छै। मन घुड़ि‍या गेल जे जँ अपन दोख लगा कहबनि‍ तँ सोझहा-सोझही गप केना करब, जँ पत्नीक दोख लगाएब ऊहो नीक नै हएत, कि‍छु छथि‍ तँ अर्द्धांगिनी तँ वएह छथि। जँ समूहमे कबुलाक चर्च करब तँ मुहेँ छि‍ऐ जँ कहीं बजा गेलनि‍ जे एहेने पुरुख छह जे कबुला-पाती केने धिया-पुता होइ छह। असमनजसमे पड़ले रही आकि काका बजला-
समाजमे ने केकरोसँ लजाइ आ ने छिपाइ। आन किए बुझै छह। एते केरा जे लगौने छी से अपने खाइले, पाकल घौर पाँच दि‍न अँटकै छै। जँ चरि‍-चरि छीमी खाएब तँ बीस छीमी भेल। एहेन-एहेन हत्‍था सभ अछि‍ जइमे पचीस-पचीस छीमी छै। तोहीं कहऽ जे एको हत्‍था अपना बुते सठत।
रसगुल्‍ला रसक बोरमे डुमल कक्काक बात सुनि‍ जेना अपने हँसी फुटि गेल। कहलियनि-
काका, छठि पावनि छिऐ, एक घौर केरा लेब। आन साल तँ दू-तीन हत्‍थाक घौर लऽ कबुला पूरा लइ छेलौं, जइमे बारह-चौदहटा छीमी रहै छेलै, मुदा ऐठाम तँ ओहन घौरे ने देखै छिऐ?”
हम तँ अपना मने कहलियनि। ओ की बुझलनि‍ से तँ वएह जानथि। मुदा अपनोसँ नम्‍हर हँसी हँसि‍ बजला-
जा जे घौर मन हुअ ओ काटि लिहऽ।
सुनि तँ लेलौं मुदा मनमे भेल जे कहीं काका भक्की मारलनि तखनि तँ जेतेमे पावनि हएत, तेते केरेमे चलि जाएत। मुदा मन पड़ल जे अपनासँ श्रेष्‍ट लग चुपे रहब नीक। जे कहता ओकरे सरि‍-सुर करैत अपना अनुकूल बनाएब नीक रहत। चुप देखि जीवन काका बजला-
सुनह, टटका केरामे पानि‍ नि‍कलै छै जे देहो-हाथकेँ आ कपड़ो-लत्ताकेँ दगा दइ छै। तँए पहि‍ने केरे काटि‍ लए जाबे दूध सुखतै ताबे गपो उसरि‍ जाएत।
कक्काक बात सुनि भरोस भेल जे केरा तँ भाइए गेल, दाम केना पुछबनि‍। जँ दाम लेबाक रहितनि तँ गनि नेने रहितथि, से गनबे ने केलनि। गर भेटल, पुछलियनि-
छीमी-हत्‍था कहाँ गनलिऐ?”
जेना ठोरेपर रहनि बजला-
जँ एक साँसमे गामपर लऽ जेबह तँ ओहि‍ना भेलह। नै तँ जेते पावनिक फीरिस्‍तमे जे हुअ ओते दऽ दिहऽ।
केराक घौर छोड़ि दुनू गोटे बैसलौं। नफगर काज देखि‍ धैनवाद नै देबनि‍ सेहो नीक नै। बजलौं-
काका, गामक टेक रखि लेलिऐ।
टेक सुनि काका गुम भेला। की टेक? पाशा बदलैत बजला-
बौआ, अपन धरती एकसँ एक अन्न, फल, फूल उपजबैक शक्‍ति अपना गर्भमे रखने अछि। तखनि तँ जेहने दुहनिहार तेहने ने कामधेनु। चालिस बर्ख पूर्ब केरा खेती करै छेलौं, मुदा खोप सहित कबुतरो चलि गेल छल जेकरा घुमा कऽ लाबलौं।
जिज्ञासा भेल। पुछलियनि-
से की?”
विह्वल होइत काका बाजए लगला-
जहिना देखबहक जे जामुनक मासमे लोक जामुनक बीआ रोपैए, आम रौपैए, अनारसक मासमे अनारस रौपैए तहि‍ना अपना ऐठाम सरसठिक रौदीक पछाति‍ जे उथल-पुथल भेल तइमे करो खेती आएल। बाहरी किस्‍मक केरा, एकमौसमी। जहपटार लोक अपन पुरना करजान सभ उपटा-उपटा लगा लेलक। जे केरा अपना ऐठाम बहुत पहिनेसँ होइत चलि आबि रहल छल, ओ उपटि गेल। रोपाएल ओ जे समायानुकूल नै छल, अपनो गेल आ जेहो आएल सेहो गेल। मिथिलांचलक केदली वन महराइ गाबए लगल।
जीवन कक्काक वि‍चारमे रस भेटल। पुछलियनि-
हेबा की चाहै छेलै, काका?”
प्रश्न सुनि गुम भऽ गेला। कि‍छु काल पछाति गुम्मी तोड़ैत बजला-
दिनो, उनहल जाइए, केराक दूधो सुखि‍ गेल हेतह।
प्रश्नकेँ टाड़ैत देखि दोहरबैत पुछलियनि-
काका, जखनि एते गप भाइए गेल, तखनि कनीक्के पुछड़ी किए छोड़ि देलिऐ?”
ई बुझले ने रहए जे बि‍लमे चलि गेला पछाति जँ साँपक नांगरि पकड़ि खींचौ चाहब तँ नांगरि टूटि जाइ छै मुदा साँपक मुँह नै नि‍कलै छै। विस्‍मित होइत बजला-
बौआ, जे कहबह, ओ तँ काइए नेने छी, देखिते छहक। मुदा एकटा बात तैयो रहि जाइए। अपन जे पुश्‍तैनी, जुग-जुगसँ अबैत वस्‍तु छल आकि‍ अछि ओकरा अनुकूल समए नै भेटलै, जइसँ आगू बढ़ैत। जे एहेन बाधा उपस्‍थित कऽ देल गेलै जे धात्री गाछ तर भोजन केरा पातक जगह बजरूआ थारीमे होइए।
उठि कऽ वि‍दा होइत पुछलियनि-
काका, केराक किस्‍मक नाओं की भेल?”
ओना केते गोटे मर्तमान कहै छथि, मुदा सहरगंजा नाओं छिऐ मरीचमान।
दोहरबैत पुछलियनि-
बजारसँ तँ पकले घौर लऽ अबै छी, एकरा तँ पकबऽ पड़त।
अदहा बात मुहेँमे छल आकि बड़बड़ए लगला-
देखह, अपना ऐठाम माटिक तरमे गोरि धानक भूसा, डाबामे दऽ धूकि कऽ पकौल जाइ छै, जे नीक होइ छै। बजारक केरा, तरकारी (टमाटर) आ आम सभकेँ कारबेटसँ पकौल जाइ छै, जे नीक नै होइ छै। अखनि पाँच दि‍न बाँकीए अछि, काल्हि गोरि देबहक तँ समैपर पकि जेतह।
केरा घौर उठा आँगन अनलौं। जेते गोरे झंझारपुर हाटसँ घूमि-घूमि आएल रहथि, एक्के-दुइए सभ पुछए लगला। मुदा एकटा धोखा भऽ गेल रहए जे पत्नी मन पाड़लनि। मन ई पाड़लनि जे छीमीमे चुन कहाँ लगौलिऐ, कि‍यो देखि नेने हएत तँ पाकत?
पत्नीक बातक कोनो मानियेँ ने लागल। एक तँ कोनो माससँ अनुकूल, केरा पकबैक समए काति‍क होइ छै। मौसम परिवर्त्तनक समए रहै छै। तैठाम चुन की करत?
मुदा अपन अनुकूल बनबैले तँ कि‍छु भकमोड़ अबिते छै, बजलौं-
ऐ बेर छठि परमेसरी खुशी छथि, देखै छि‍ऐ शुरुहेसँ केहेन बाट धड़ा देलनि।
अपना जनैत तँ अनुकूल हुअ चाहलौं मुदा से भेल नै। बजली-
लोकक नजरि नीको होइ छै, अधलो होइ छै। मुदा यएह दुनू नीक अधला तेते वि‍आन करैए जे नीक तँ केते नीक आ अधला तँ केते अधला। पावनिक नाओंपर एक दि‍न केरा खेनहि की। एक दि‍नक भोजे आ राजेक की महत छै।
पत्नीक बात सुनि अनुकूल नै देखि, पाशा पलटैत बजलौं-
आब कथी सभ बाँकी रहल, से मन पाड़ि दिअ।
mmm

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