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Friday, October 18, 2013

(74) मुसहनि

मुसहनि


भोरेसँ बेलबा घुसकीपट्टीवालीक हरिअर मन देखि तारतम करैत रहए जे की बात छिएे जे यएह छी, कहियोकाल जहिना खढ़ देखि लप दऽ आगि पकड़ि जरा दइत तहिना बुझि पड़ैत रहैए आ आइ की बात छिएे? मुदा चेहरा केतबो मेकअप किए ने करए हृदैक बात सोलहन्नी तँ नहियेँ बुझि सकैए। घुसकीपट्टीवालीक खुशीक कोनो अरथे ने बेलबाकेँ लगै, दिन बीति गेल मुदा भाँज नै लगल। भाँज लगलै रातिमेखाइकालजखनि मनोनुकूल खेसारी दालिक पाँचटा कचौड़ी थारीमे देखलक। सेहो भाँज सुपते कहाँ लगलै, पुछला पछाति लगलै। लगिते मनोहल्लुक भेलै। हल्लुक होइत मुँहसँ फुटलै-
ह-ह चेनसेसूतब किने। अनेरे, नान्हिटा गपमे भरिदिन मड़ियाइत रहलौं।
बेलबाकेँ अपन खेत-पथार नै,ने हरे-बरद, आ ने दोसर समांगे जे एक समांगक कमाइसँ गुजर चलैत आ दोसर बटाइ खेत करैत। सेहो नै रहै। मुदा भगवान जँ खाइले आ बजैले मुँह चीरलखिन तँ कमाइक चालि चलैले हाथो-पएर देलखिन। किछु होउ, ई पैरुख (पुरुखपना) तँ बेलबामे छइहे जे अपन बाँहुबलसँ गामक मुसहनिपर अधिकार केनिहार अछि। तहू भीर तँ दोसराकेँ नहियेँ आबए देने अछि। आबिओ केना सकै छै हल्लुक माटि ने बिलाइ तकैए भारी भीरमेकिए जाएत। की समुद्र मथन पछाति यएह ने बँटवारा भेल जे माटिक ऊपरका अनका दिस बँटा गेल आ नुका कऽ तरमे रखलाहा बेलबाक हिस्सा भेल। दोसरि साँझ। दिन भरिक टालाक काज उसारि, पोखरि-झाँखड़ि दिससँ आबि चीलमक चौरखीमे बेलबा बैसल। घुसकीपट्टीवाली तइसँ पहिने चौरखीकेँ बहारि, चटकुनी बीछा, एकटा गोइठाँ सुनगा रखि देने छलि। बेलबाकेँ बैसिते तेतरा, झिंगुरा, लेलहा सेहो पहुँचल चारू गोटेक बीच अजीव प्रेम। जेना प्रेमास्पद होइत, तहिना एक-दोसराले जान अरपनिहार। ओना चारूक जिनगीमे दूरिओ आ लगिचो, परिवार बनौनहि छै। अपन-अपन किछु चालिओ-परकीत तँ छइहे। तेतराक पहिलुकघरवालीकेँ जहिया बम्बैआ छौड़ा (बम्बइमे नोकरी केनिहार) उड़हाड़िकऽ लऽ गेलै तहिएसँजेना दुनियाँसँ विरक्‍ति भऽ गेलै। मनमे सदिकाल होइ जे बिनु इज्जतक जिनगी ओहने जेहने बिनु गमकक फूल। ओना निर्णए करैमे अगुता जरूर गेल तेतरा। ओ ई नै बुझि पेलक जे पति-पत्नीओक बीच बेक्‍तिगत चालि होइ छै। जे इज्जतक खाम्हीक काज करै छै। बुझबो केना करैत? ओ अर्द्धांगिनि बुझि सभ किछु अदहा-अदही बुझैत। ओना जइदिन स्त्री घरसँ पड़ेलै तइदिन ओते दुख नै भेलै मुदा मनमे सोग तँ समाएले छै। तैयो जिनगीमे हारि नहियेँ मानलक अछि। हारिओ केना मानैत एकटा गेलै दोसर आनि तीनटा बेटा-बेटीक संग परिवार तँ बनौनहि अछि।
चारूगोटे एकठाम होइते जेना आॅफिसमे टेबुल-टेबुलक काज अलग-अलग अंगक होइत तहिना चारूगोटे अपन-अपन काजमे जुटि गेल। झिंगुरा गाँजा, चीलम निकालि आगूमे रखलक। आमदनी परहक टीपगर जहिना गाँजा तहिना समस्तीपुरक बड़की तमाकुल। ओना बेसीकाल चारूगोटे भाँगे पीऐत अछि। बाड़ी-झाड़ीमे फूलक समए भांगक फूलो झाड़ि लइए, आ वसन्ती गाछ बीछि-बीछि सुखा कऽ रखिओ लइए, मुदा परसुका मुसहनि चारूक सुरखीए बदलि देलक, तँए जेहने टीपगर तमाकुल तेहने गाँजा। ओना चारूगोटेक परिवार एकरंगाहे कनीएकऽतल-बिचल छै।झिंगुराक दोसर आमदनी छै। जे दोसरकेँ नै रहै। ओ रहै जे घरवाली फुदनी गछ-चढ़नी, जे गाछपर चढ़ि जारनि तोड़ै, ओना लग्गीओ रखने अछि मुदा केहनो-केहनो घोड़नाह गाछपर चढ़ि कऽ जारनि तोड़ि लइए। तइले कोनो रोको-राक नहियेँ छै। सूखल जारनिक रोको किए हएत। गछचढ़नीए दुआरे सरही आमक गाछीक ओगरवाहि सेहो लोक दइते छै। आगूमे गाँजा अबिते लेलहा लटबए लगल। बेलबा कटकीसँ चीलम साफ करए लगल। तेतरा गोइठाकेँ तोड़ि घुर जकाँ लगा गूल बनाबए लगल। चीलम साफ कऽ बेलबा गिट्टी सेहो खोखरलक। गाँजा लटा, तमाकुल मिला चीलममे बोझि लेलहा तेतरा दिस बढ़ौलक। गूल चढ़ा तेतरा बेलबा दिस बढ़ौलक। चारूगोटेमे बेलबा सभसँ जेठ। बेलबामे सभसँ प्रमुख गुण छै जे केकरो बनहौटा जन नै छी। ने नीक-बेजएमे आ ने पावनि-तिहारमे केकरोसँ एको सेर आकि एको पाइ कर्ज लइए। कियो भैया तँ कियो गुरूकाका सेहो कहै छै। आगूमे चीलम रखि बेलबा भोग लगबैत फुस-फुसा कऽ मंत्र पढ़ए लगल,‘जेकर जे हक-हिस्सा छह से अपन-अपन लऽ जा।’ तीनबेर पढ़िदम मारि, तेतरा दिस बढ़ौलक। मुदा धुँआ मुहेँमे रखि शरबत जकाँ घोड़ए लगल। दम मारि तेतरा जखनि झिंगुरादिस बढ़ौलक तखनि बेलबा मुँहक धुँआ निकालि बाजल-
परसुका सगुन बढ़ियाँ रहल।
बेलबाक सगुन सुनि लेलहा खिसिया कऽ बाजल-
सगुन-तगुन किछु ने होइ छै।
लेलहाक तामस बेलबा बुझि गेल जे भुखाएल बिलाइ खौंझाइते छै। जखनि ओहो दम मारत तखनि ने मन असथिर हेतै। तँए किछु ने बाजल। ताबे लेलहा हाथ चीलम पहुँच गेल। जिराएल लेलहा रहबे करए तेते जोरसँ दम मारलक जे एकबित धधड़ा चीलमसँ धधकिगेलै। दम मारि जहिना हाथसँ चीलमक धधड़ा मिझेलक तहिना अपनो मनक धधड़ा मिझा गेलै। मुदा तेतरा लेलहाक बातकेँ पकड़ि लेलक। दोहरौनी भाँज जाबे चीलमक शुरू होइ तैबीचमे सवाल फँसि गेल। अपनेमे दू पाटी बनि गेल। दू गोटे कहै जे सगुन-तगुन किछु ने होइ छै आ दू गोटे कहै जे होइ छै। तेहल्ला कियो ने, जेकरा दुनू पंच मानि फड़िछबैत। रूकल चीलमकेँ धुँआइत देखि लेलहा बाजल-
झगड़ा ने दन चुन-तमाकुल किए बन्न हौ। गप्पो चलतै आ चीलमो चलए दहक।
जहिना एकघोंट चाह पीला पछाति आकि एक कौर खेला पछाति दोसर अपने अबै लगैत तहिना लुबलुबाइल लेलहा बाजल-
सगुन-तगुन किछु ने होइ छै।
दोहरा कऽ बेलबा दम मारि चीलम आगू बढ़बैत बाजल-
सगुन बड़ पैघ गुण छिएे, तँए एकरा दोखी बनाएब उचित नै हएत?”
बेलबा आ तेतराक विचार एक बटिया रहै तँए एकदिस भऽ गेल आ झिंगुरा, लेलहाक एक बटिया रहै तँए दोसरदिस भऽ गेल। दू-दू गोटेक पाटी चारूगोटेक बीच बनि गेल। बेलबा विचारकेँ रोकैत झिंगुरा बाजल-
सगुनकेँ दोखी कहाँ कहै छिएे, जँ गुण सगुन भऽ जाए तखनि तँ जरुर नीक भेल, मुदा जँ कोनो काजे केतौ विदा होइ आ माछ-दहीसँ सगुन बनाबी एकरा हम नीक नै कहबै?”
बेलबाक प्रश्नकेँ ठमकैत देखि सोंगर लगबैत तेतरा बाजल-
दुनियाँ बड़ीटा छै, रंग-बिरंगक खेल चलै छै तँए अनका छोड़ह। अपने बात लएह। परसू जे छह-छह पसेरी मुसहनि भेल तेकरा की कहबहक?”
तेतराक बातकेँ लेलहा लपकि कऽ पकड़ैत बाजल-
जँ माछे-दहीसँ सगुन बनिते तँ मछिबारे आ माले-जाल बलाकेँ सभ किछु भऽ गेल रहितै, दिन-राति ओकरे देखैत-सुनैत रहैए।
तैबीच पहिल चीलमक गाँजा जरि गेल। गुलाब तकथीपर लटाएल-काटल गाँजा रहबे करै, झिंगुरा चीलममे बोझि आगि चढ़ा बेलबा दिस बढ़ौलक। तइले अपना बीच कोनो मलिनता केकरोमे नै रहै। करणो रहै जे एक-एके दम ने कियो लगबैए। बरबरिक हिस्सा ने भेल।बड़ बेसी हएत तँ कियो दमगर अछि तँ कनी बेसी जोरसँ दम खींच लेत। तइसँ बेसी की करत? मुदा तैसंग ईहो तँ रहबे करै जे पेटगरोकेँ बेसी खेनो पेटे भरै छै आ कम खेनहारकेँ सेहो पेट भरिते छै। धुँआ फेकैत बेलबा बाजल-
परसू जे अपना सभकेँ ओते मुसहनि भेल ओकरा नीक सगुन नै कहबै तँ की कहबै?”
जेना लेलहाकेँ प्रश्नक उत्तर बुझले रहै तहिना बाजल-
तूँसभभलहिं जे कहक मुदा हमर मन नै मानैए। तीन सालक बाढ़िमे, धान तँ उपजि गेल मुदा मुसहनि किए निपत्ता भऽ गेल। जे चीजे निपत्ता अछि ओ सगुन केना भऽ पौत।
लेलहाक बातमे चोंगरा भरैत झिंगुरा बाजल-
दिल्ली गेल छहक, रेलबेटीशनमे जे मूस देखबहक तँबिसवासे ने हेतह जे मूस छी आकिबिलाइ। मुदा गाममे तँए देखि‍ते छहक रौदी होइ छै तैयो मूसकेँ पड़ाइन लगि जाइ छै आ बाढ़िमे तँ सहजे जँ नै भागत तँ डुबकुनियाँ काटि-काटि मरबे करत। ई तँ गुण भेल जे सुभितगर समए भेल तँए धानो उपजल आ मूसक बाढ़ि एने मुसहनिओ भेल।
तेसर चीलम चलैत-चलैत चारूक मन भरि गेल। कौल्हुका विचार करए लगल। तेतरा बाजल-
काल्हि दू ठाम काज अछि। एकठाम तीनगोरेक आ दोसरठाम दूगोरेक।
तेतराक बात सूनि झिंगुरा बाजल-
तीनगोटे तँ जोड़ियाएल छी मुदा पाँचम नै रहने दोसर केना हएत?”
बेलबा बाजल-
किए ने हएत? दुनू काजकेँ मिलानी करिकऽ देखहक। टुकड़ी बनै जोकर जँ हेतै ओकरा टुकड़ी बना लेब आ जँ नै बनैबला हेतै ओकरा पूरा कऽ करब।
बेलबाक बात सुनिते लेलहाक मन मानि गेलइ। बाजल-
बेस तँ भैया कहलहक। दुइएटा ने भऽ सकै छै, या तँ पाँचम केनिहार भाँजऽया तँ काजेकेँ टुकड़ी कऽ दहक।
तेतराक मन सीकपर टाँगल, तँए खोलिकऽ तँ नै बजैतमुदा मुड़ी डोला-डोला हूँ-हूँकारी भरैत रहए। सीकपर टाँगल ई रहै जे परसू जे मुसहनि खुनलक तइसँ नमहर दोसर रहै। ओना ईहो मनमे उठै जे ऊपरका काज ने हूसि सकै छै, तरका काजपर तँ एकाधिकार अछिए, दोसर कइएकी सकैए। मुदा तँए कि, काज करए जाएब तइसँ दोबर-तेबर बेसी ओइमे हएत, तेकरा पहिने करब आकि जइमे कम हएत, तेकरा करब।
गाममे खेती छोड़ि दोसर काज नै। जे छोट-छोट टुकड़ीमे विभाजित रहैए। छोट-छोट काज रहने कम केनिहारक जरूरति पड़ै छै तँए, बोनिहार-मजदूरक बीच संगठन नै। मुदा शहर-बजारक बीच तँ से नै अछि। पैघ-पैघ कारखाना रहने बेसी मजदूरक जरूरति पड़ैए। तहूमे खेती काज दिने भरिक होइ छै जखनि कि कारखाना चौबीसो घंटा बारहो मास चलै छै। तैसंग ईहो होइ छै जे कारखाना घरमे बनल रहैए जइसँ हवा-बिहाड़िक संग झाँटो-पानिमे चलिते रहैए मुदा से खेतीमे तँ नै होइए। ओना शहरो-बजारमे कारखाना सभ रंग भेने मजदूरक कमी-बेसी होइ छै मुदा जेना-जेना बजार बढ़ैत जाइए तेना-तेना कारखानोक रूप बढ़ल जाइ छै, जइसँ खुदरा मजदूर थौकक रूपमे थकिआइत जाइ छै। जेकर विपरीत गतिए किसानी अछि। जेना-जेना समए आगू बढ़ैए तेना-तेना परिवारो बढ़ै छै आ परिवार बढ़ने खेत विभाजित होइत जाइ छै। विभाजित भेने काजक रूप सेहो छोट होइत जाइ छै। दोसर ईहो होइ छै जे जेकरा बेसी खेत रहल ओ मशीनक सहारासँ काज लइए जइसँ मजदूरक(बोनिहारक) संख्यामे कमी अबै छै। तँए जहिना शहर-बजारक श्रमिक संगठित होइत जाइए तहिना गामक मजदूर अंसगठित होइत जाइए। तैसंग दोसर ईहो छै जे गाम-घरक अधिकतर बोनिहार बन्हुआ बनल अछि जखनि कि शहर-बजारमे से नै छै। ओना शहरो-बजारक रूप बदलि रहल अछि, लोकक (श्रमिकक) काज लोहाक मशीन हथियौने जा रहल छै जइसँ हजारक-हजार हाथ निकम्मा भेल जा रहल छै। जहिना सभ गामक काज तहिना अँहू गामक काज रहने ने काजमे एकरूपता आ ने श्रमिकक बीच एकरूपता। रहबो केना करत, कियो पजेबा घर बनबैए तँए ओकरा सीमेंट-बालु लोहा आ राज मिस्त्रिक जरूरति पड़ै छै आ कियो फूसिक घर बनाबैए तँए ओकरा लकड़ी, बाँस खढ़क जरूरति संगे घरहटि‍याक जरूरति‍ पड़ै छै। जइसँ जहिना काजक एकरूपता नै रहै छै तहिना हाथ आ हाथक ओजारोक एकरूपता नै रहै छै। मुदा छोटो-छोटो काज रहने किछु-ने-किछु एकरूपता तँ रहिते छै। तीन गोरेक काज खढ़ अँटियेनाइ रहै आ दू गोरेक मटिकटियाक। दुनू काजकेँ टुकड़ी बनौल जा सकै छै। खढ़ अँटियेला पछाति चारिदिन खढ़ सोझ होइले जँकियाएल जाइ छै, तहिना खाधि भरैक सेहो अछि। मुदा एकरंग बोइन रहितो कनी हल्लुक-भारी तँ अछिए। एकटा जहिना बैसारी काज अछि तहिना दोसर ठढ़का काज अछि। तहूमे माटिक फेकब भारी भेल, जखनि कि खढ़ अँटियाएब मात्र खढ़केँ सेरिया कऽ छोट-छोट आँटी बनाएब अछि। कोल्हका काज सुनि बेलबा बाजल-
दुनूठाम एके काज अछि आकि दू रंगक?
तेतराकेँ दुनू काज बुझले रहै, बाजल-
काज तँ दू रंग अछिए एकठाम खाधि भरैक छै दोसरठाम खढ़ अँटियबैक।
बीच-बचाउ करैत झिंगुरा बाजल-
अपना सबहक बीच बेलबा भैया बुढ़े भेल, आ हमरा देखनहि रहऽ जे सातमे दिन बोखारक पथ पड़ल, अखनो तक नीक जकाँ देहमे तागतिनहियेँ आएल हेन परसुए मुसहनि खुनैकाल देखलहक ने जे केते बेर बैसलौं। तँए हम दुनूगोरे खढ़ अँटियाबए जाएब आ तूँ दुनूगोरे खाधि भरए चलि जइहऽ। जुआन-जवान तँ छहे।
उठैत-उठैत लेलहा बाजल-
भैया, एहेन प्रेम रहतह तँए सभ दिन आनन्‍दे-आनन्‍द रहतह। नै तँए देखिते छहक?”
देखिते कहैत लेलहा चुप भऽ गेल।बात खुजबे ने कएल? मुदा चीलमक भरल मन छोड़िओ तँ नहियेँ सकैए। झिंगुरा पुछलक-
की कहलहक?”
लेलहा-
यएह ने कहलियऽ जे दुनियाँमे केना उनटा-पुनटा होइ छै, जे महिला शरीरसँ पुरुखक अपेछा निरबल होइए ओकरा कारखानाक इंजन आ पुलिसक लाठी हाथमे थम्हा दइ छै आ जे पुरुख सबल होइए ओकरा हाथमे कागत-कलम थम्हा दइ छै। एहने रीतकेँ ने वसन्‍त रीत कहै छै।
तेतराक आँखिपर निशाँ लटकि गेल, बातक चिड़ौड़ी देखि बाजल-
अनेरे समुद्र उपछैक कोन चिड़ौड़ीमे लागल छह, ठनका जेकरा माथपर खसै छै से बुझै छै ठनकाक गुण। चलह, अनेरे मनमे खुट-खुटी रखने छह। कौल्हका काज कल्हि देखल जेतै। चेनसँ खाएब, भगवानक नाओं लऽ निचेनसँसुतनाइ छोड़ि अनेरे कौल्हुका चिन्तामे किए माथ धूनब?”
बेलबा बाजल-
दुनू काज सेरिया लएह, तखिन ओहू मुसहनिकेँ खुनिए लेब।
बेलबाक बात सुनि तेतरा बाजल-
भैया, भने खेतमे पड़ल छै। परसुके धान तँ घरे-अँगने छिड़ियाएल अछि ओकरा सदहऽदहक तखनि खुनब।
तीनू गोटेकेँ जाइते घुसकीपट्टीवाली बेलबा लग आबि बजली-
संगतिया सबहक भाँजमे पड़ि अहूँ दुइर भेल जाइ छी। कहू जे केतेखान पहिने ठकुरवारीमे घड़ी-घंटा बजलै असतुत भेलै आ अहाँले धैनसन।
पत्नीक खौंझसँ बेलबा मिसियो भरि डोलल-डालल नै। किएकतँए पत्नीक खौंझक कारण बिनु बुझने डोलि-डालि जाएब नीक नै। बाजल-
ठकुरवारी ठाकुर सबहक छिएे आकि हमर छी जे ओकर देखौंस करब। हमर तँ यएह संगतिया सभ ने छी जेकरा संगे जीबै-मरै छी।
निरुत्तर भेल घुसकीपट्टीवाली पाछू नै हटली, पाशा बदलि लेलनि। जहिना शिवजी पाशा बदलि शिवानी भऽ गेला, तहिना। पाशा बदलैत बजली-
अन्न तीमनक सुआद टटकेमे होइ छै, आकि सेराकऽ पानि भऽ जाइए तखनि होइ छै।
बेलबोक मन हल्लुक रहबे करै,तँए अवसरकेँ हाथसँ गमाएब नीक नै बुझलक। किएकतँ गमौनाइ ओहने होइ छै जेहने डारिक चुकल बानरक होइ छै। बाजल-
लोक सुआदले खाइ छै आकि पेट भरैले खाइ छै। सरेने जँ ओकर गुणो निकलि जाए तखनि ने?”
पतिक बात सुनि घुसकीपट्टीवालीक मनमे एलनि, एना जँ बात छिड़ियाएत तखनि तँ काजक गप बिसरिए जाएब। एक तँ ओहिना ओहन बिसराह छी जे आन तँ कनी मनो रहैए जे काजे बिसरि जाइ छी। काजे नै तँ राज की? हृदए खुशीसँ भरलतँए घुसकीपट्टीवाली सोचलनि जे जे बात पति बजता तेकरा जँ मुँह-नांगरि जोड़ब तखनि ने, जँ से नै जोड़ि सोझहे अपने मनमे दोसर काज आबि गेल तखनो तँ गड़बड़ाइए जाएत। घरो कि घर जकाँ रहए तखनि ने,सेतँ सतरहटा भुरकी हरिदम रहिते अछि। हाथमे पानिक लोटा बढ़बैत घुसकीपट्टीवाली बजली-
लिअ, अखने कलपर सँ अनलौं कुर्ड़ा कऽ लिअ।
आन दिनसँ दोसर रंग बात सुनि बेलबाक मन खुट-खुटाएल। आन दिन कहाँ पानिक बात बजै छेली, आइ किए बजली! जरूर किछु रहस्य हेतै! मुदा इशारोमे जँ रहस्यकेँ नै रखल जाएत, तखनि तँ ओ तेना तरेमे दबा जाएत जेना कोनो सीखे-लीखे ने रहत। आँखि तँ पत्निक आँखिपर रहै मुदा नजरि नजरि दिस बढ़ौलक। कुर्ड़ा कऽ ओसारपर बैसिते घुसकीपट्टीवाली घरसँ थारी निकालि आगूमे देलखिन। घरदेखिया थारी जकाँ साँठल थारी देखि बेलबाक मनमे भेलै जे बिनु कारणे टिटही थोड़े लगै छै, जरूर किछु बात छिऐ। लगले मन हुमरलै हम कि कोनो घटिया घरदेखिया थोड़े छी जे खेनाइयए-पीनाइमे केकरो गरदनि काटि लेबइ। भातक ऊपरमे पाँचो कचौड़ी तेना पसारल जे आगूमे सानैओक जगह नै। भात सानब छोड़ि बेलबा पहिल नम्बरक कचौड़ी उठा (पहिल नम्बर वएह ने जे आगूमे रहै) हिया-हिया देखए लगल। ई तँ पुड़ी जकाँ लगैए मुदा छी तँ कचौड़ीए। कचड़ी नै छी आ ने पकौड़ी छी, छी तँ सोलहन्नी कचौड़ीए। किएकतँ ओहिना खेसारीक सौंसका दालि, मिरचाइक टुकड़ी आ पिऔजक टुकड़ी टक-टक तकै छै। नून-तेल ने तरे-ऊपरे सटि गेल अछि आरो तँ तकिते छै।
कचौड़ीकेँ निहारि-निहारिदेखैत पतिकेँ देखि घुसकीपट्टीवालीक छाती चहकए लगलनि। बजली-
ई तँ ओही भगवानकेँ धैनवाद दियनि जे बेटाक पुसौठ हएत, नै तँ जहिना तीनसाल नै केलौं,हाथ-पएर फाटए लगलै तहिना अहूबेर फटितै।
तीनसाल पूर्वक पुसौठ बेलबा बिसरि गेल। बिसरिओ केना ने जाएत। एक तँ ओहिना गजेरी-भगेंरी गाँजा-भांगक प्रेममे दुनियाँ बिसरैले तैयार रहैए, तैपर बेलबा संगतिया छीहे। संगितियाक जिनगी तँ ओहन जिनगी होइ छै जइमे दस दिसक धार-नाशीक संग गंगा-जमुना सन धारक पानि मिलि समुद्र सिरजन करैए। बाजल-
पुसौठ केकरा कहै छै?”
लहकी देखि घुसकीपट्टीवाली अवसरकेँ हाथसँ नै छोड़ि बजली-
एहने मुनसा ने धिया-पुताक पावनि बिसरि धियो-पुताकेँ बिसरि जाइए।
तैबीच बेलबा पहिल कौर तँछुच्‍छे दालि-भातक खेलक मुदा दोसर करमे जे मिरचाइक टुकड़ी मुँहमे पड़लै से सुसुआते बाजल-
पावनिमे कि सभ होइ छै?”
धनलक्ष्‍मी जकाँ घुसकीपट्टीवाली बजली-
किच्‍छो ने होइ छै। जे होइ छै तइसँतँ घर भरल अछि, किच्‍छोकथीताकए पड़त।
पत्नीक धारक प्रवाहमे बेलबा बाजल-
शुभ काजमे अनेरे देरी करब कोन कबिलती भेल, तइले पुछैक कोन जरूरी अछि। अच्‍छा ई कहूँ जे पावनिमे की सभ हएत?”
जहिना छोट बच्चाकेँ माए-बाप सिखबै छथि तहिना बिकछा-बिकछा घुसकीपट्टीवाली बाजए लगली-
पावनिमे किछु ने होइ छै आ सभ किछु होइ छै।
उड़ैत चिड़ैक बोल जकाँ बेलबा किछु थाहि नै पबै छल। तँए जहिना धार थाहैक नाहक लग्गा होइ छै तहिना थाहैत पुछलक-
खेबा-पीबामे की सभ होइ छै?”
अगबे चाउरक चिक्कसक बगीया बनै छै, ओही लऽ कऽ बाल-बच्चाक हाथ-पएरक पुसौट होइ छै।
घीओ तेलक काज पड़ै छै?”
घी-तेल किए कहै छिऐ, नूनो-मिरचाइक काज नै पड़ै छै।
चिक्कसक मुँह-नांगरि बना,छतिया-पीठिया बनौल जाइ छै, टटका पानिमे नहा कऽ चुल्हिपर सिद्ध कएल जाइ छै। सिद्ध होइते भऽ गेल बगिया।
एके रंगक होइ छै, आकि दोसरो-तेसरो रंगक?”
एकटा सुच्चा भेल, दोसर कुरथीओ दालि दऽ कऽ आ तेसर गुरो दऽ कऽ बनौल जाइ छै।
तब तँ नामो सबहक हेतै।
छइहे कि‍, जहिना आमक गाछ भेल, आ दालि-दलिहन भेल ई जड़ि भेल। जड़िक पछाति अमुख आम आकि अमुख दालि बनैए। तहिना बगिया जड़ि भेल। दलिबगिया,गुरबगिया किसिम भेल।
एकदिन तँएके रंगक ने खाएब, दोसर-तेसर?”
एना अनाड़ी जकाँ किए बजै छी। पहिलदिन टटका खाएब, दोसर दिन बसिया खाएब, तेसरदिन दलिबगिया खाएब, चारिमदिन गुरबगिया खाएब।
गुर दालिए जकाँ केना रहत?”
खेबै तखनि देखबैतँ केहेन रसगर छै। एते पघिलल रहत जे छातीमे चुहुटि कऽ पकड़ि लेत।
जखनि चारिदिनक ओरियान एकेदिन केने भऽ जाएत तखनि अहाँकेँ चारिदिनक छुट्टी दऽ दइ छी। तैबीच कुशेसर आकि सिंहेसर आकि जनकपुरसँ घूमि आउ।
mmm

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