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Friday, October 18, 2013

(70) सड़ल दारीम

सड़ल दारीम

नीन टुटिते कुमराकक्काक मन ओछइनेपर चनकलनि। भगवानकेँ हृदैसँ प्रणाम करिते मन रमकलनि। रमकल रमैत मन दिनक कर्माहार-सँ-फलाहार दिस बढ़लनि। बढ़िते ठमकि गेलनि। ठमकिते मनमे अपन जिनगी नाचए लगलनि। कृषक छी कृषि जीवन छी। करमेसँ फलागम होइए। गाड़ीक पहिया जकाँ जहिना दिन-रातिक धुरीमे समए चलैए तहिना ने काजोक धुरीमे जिनगी चलैए। चौबीसे घंटाक बीच जेतेटा दिन तेतेटा रातिओ अछि। मुदा से कहाँ होइए। सालक बँटवारामे भलहिं दुनू एक-समान भऽ जाए, मुदा मास आ दिनमे से कहाँ भऽ पबैए। जाड़क मास रातिक बढ़ती आ दिनक घटती जहिना होइए तहिना गरमी मास दिनक बढ़ती आ रातिक घटती भऽ जाइए। जँ कहियो बरबरि‍ होइतो अछि तँ टिक नै पबैए। पाहुन जकाँ दिन भरि रहल आ प्राते भने विदा भऽ जाइए। समैए संग ने जिनगीओ आ कृषि कार्यो चलैए। कृषिओ तँ भिन्न-भिन्न अछि। जहिना अन्न तहिना तीमनो-तरकारी आ फलो-फलहारी अछि। मुदा एक रहितो भिन्न-भिन्न चालि-ढालि आ गुणो-सुआदमे अछि। कहैले धान बारहो मास तीन सए साइठो दिन होइए मुदा तँए कि तीन मसुआ, छह मसुआ नै होइए। हेबे करत, जनम-सँ-मृत्यु धरिक जे दूरी छै ओकरा पार करैमे समए लगबे करत। मुदा सेहो एक रंग कहाँ अछि? कोनो धान तीन मासमे अपन जिनगी लीला समाप्त करैए तँ कोनो चारि‍ मास कोनो छह मासमे आ कोनो साल भरिमे। तहिना तीमनो-तरकारी आ फलो-फलहारीक अछि। जइसँ कोनो समैया तँ कोनो छहमसिया तँ कोनो बरहमसिया बनि जीबैए। तँ कोनो बरहबर्खा बनि हँसैत रहैए। जेहेन धरतीक गुण-स्वभाव रहत तेहने ने भोजनो-छाजन आ वस्त्रो-भूषण, साजो-सिगांर करत। मुदा धरतीओक खेल तँ अपना हाथमे नहियेँ छै ओहो तँ दोसरे हाथक खेलौना छी। जँ से नै रहैत तँ केतौ मरूभूमि आ केतौ गाछ-बि‍रीछ, फूल-पात, फल इत्यादि‍सँ लदल केना रहैए। चित्त असथिर होइते कुमराकक्काक मनमे एलनि, दारीमक समए आबि‍ गेल। दारीमपर नजरि‍ जाइते मनमे उठलनि‍, केना नान्हिटा फूल एते सुन्नर फल गढ़ि लइए। सुन्नर की सोझहे फलेटा गढ़ैए। ओकर रंग-रूप अभोज्य-भोज्यक, गुण-स्वभाव सेहो सभ ने गढ़ि लइए। मुदा जहिना फूल-फल गढ़ैए तहिना ने अपनो गाछ गढ़ै छै। यएह तँ जिनगीक खेल छी, लीला छी।
देह-हाथ समेटि कुमराकाका बैसला। बैसिते मन पड़लनि बाबाक रोपल दारीम। मिथिलाक अमुल्य फल जनकक फुलवाड़ीक ओहन फल जे ॠृषि-मुनिसँ लऽ कऽ राजा-रानीक अतिथि-सत्कार्य करैबला फल। जहियासँ जनम भेल आ देखैत एलौं तहियेसँ बाबाक दारीमक गाछ देखैत एलौं। की ओ जनै छला जे आमक तँ गाछीए अछि, जे एकटा दारीमक, एकटा नेबोक, एकटा लतामक, एकटा सरीफाक दूटा अनरनेबा, एकटा लगौलासँ फलबला नै फुलेवाली भऽ जाएब। इत्यादि अपन घरक पछुआरमे लगौने छला। छोट परिवार रहने अपनासँ उगड़िए जाइ छेलनि। जे दरबज्जापर खुअबेबला रहल ओ बजा कऽ खुऔलनि जे दरबज्जा परहक नै ओ दइओ अबै छेलखिन आ रस्ता-पेरा भेँट भेने कहियो दइ छेलखिन। ई सभ तँ बच्चाक बात भेल जखनि स्कूलमे भगवानक प्राथर्ना सेवाक संकल्पित भक्त बनैले करै छेलौं।
जहिना बाबाकेँ अपन जिनगी अपने हाथे चलै छेलनि तहिना श्रवण कुमार बेटाकेँ सभ सीख-लीख सिखा देने छेलखिन। सिखा कहाँ देलखिन बच्चेसँ संग रहने एका-एकी सिखैत गेल। फलसँ लऽ कऽ अन्न धरिक खेती करै छला, अपन हर-बड़द अपन समांग। छोट खेती-बाड़ी अपने सम्हारि लइ छला। सम्हारि कि लइ छला जे छोट परिवारमे जँ काज केनिहार कम रहत तँ खेनिहारो ने कमे रहत। मुदा तँए कि कम श्रमक परिवार जिनगी पूरा नै चलैत। मुदा पिताक परोछ भेला पछाति समैओमे मोड़ आएल। किसान परिवारमे करखन्नादारक बेटी आबए लगल। खेतमे काज करैबला बेटी करखन्नादारक घर पहुँचए लगल। श्रम शक्तिक हाथसँ काज लूटा गेल। सभ परिवार बसबए चाहैए मुदा टूट-फाटक एहेन स्थिति किए बनि गेल छै। जे सभ डीह छोड़ि पड़ा गेल वएह सभ अपनाकेँ डीही कहि कामत पुजबए चाहैए।
दारीमक समए आबि गेल। सभ फलक अपन समए छै। अपना समैमे सभकेँ बेसी चलती रहबे करै छै। रहनाइओ उचित छै। रौद-बसात सहलक ओ आ गिरथानि बनइ कोइ, सेहो उचित नै। केकरो कि समए बान्हल छै। जेकरा जेहेन मन होइ से तेहेन करह। ओना तँ सभ दिन बाड़ी जाइते छी मुदा ओगरबाहि‍ हिसाबसँ। काजक हिसाब काजसँ जोड़ल छै। कुमराकक्काक मनमे फेर उठलनि‍, ओह! काजमे ढिलाइ भेल अछि। जइ समए दारीमक फलमे गोबरसँ लेबा लगबैक छल तइ समए तेहेन ने लगन जोर मारि देलक जे नते-पिहानीमे बौआ गेलौं। चुक भेल। अखनि ने रंग-रंगक दवाइओ आ नव-नव तकनीको आबि गेल अछि मुदा हम तँ अखनि धरि‍ गोबरेक लेबापर खेती करैत एलौं...। सोझहामे काज अबिते कुमराकाका फुड़फुड़ा कऽ ओछाइन समेटि उठला।
चाह पीब‍ कुमराकाका दारीमक बाड़ी विदा भेला। मन ततमत करए लगलनि‍ जे दस गोटेक परिवारमे जँ अदहो-अदहो फल देब तैयो पाँचटा चाही। तहूमे धिया-पुता सेहो औत आ जँ कियो हित-अपेछित आबि जाथि तँ की हुनका नै आग्रह करबनि। फेर प्रश्न उठलनि जे आठटा गाछ अछि। करीब दू सए फल हेबे करत। बेरा-बेरी गाछमे सँ तोड़ी आकि सभमे हाथ लगा दिऐ। ओना किसिमक हिसाबे समैओ आगू-पाछू अछि मुदा सभटा रोहनिए अछि‍। नीक हएत जे सभ गाछमे हाथ लगा देब।
बाड़ी पहुँचि‍ते फल देखि कऽ मन खुशी भेलनि। आन फल जकाँ दारीमकेँ नै होइ छै। ऊपर नान्हिटा छेद रहै छै, छिलका वृद्धि होइते रहै छै मुदा दाना नष्ट भऽ गेल रहै छै। मनमे खुशी अबिते बेलक गाछपर नजरि गेलनि। जहिना घटक रंग-रंगक बर-कनियाँक जोड़ाक हिसाब लगबैए तहिना कुमराकाका दारीमक भजार बेलपर गेलनि। नजरि जाइक कारण छेलनि खोंइचाक शक्ति। आम केरा जकाँ नै जे पहिने गुद्दा सड़त आकि खोंइचा। जेना बेलक खोंइचा मोटो आ सक्कतो होइ छै तेना दारीमक नै होइ छै। मोटाइमे भलहिं कनी बेसीओ भऽ जाउ मुदा सक्कत कम होइ छै। भगवानोक खेल अजीव छन्‍हि‍। नीक गुणक रच्छा करैले हाथियारो संगे दऽ दइ छथिन। नै तँ कहू जे आम-जामुनक गाछमे जे ओते फड़ैए तइमे काँट देबे ने केलखिन आ बेलमे किए दऽ देलखिन? काँटेटा कहाँ देलखिन, सभटा गहनो-जेवर ओकरे दऽ देलखिन। कहू जे ई उचित भेल? बेलपात देलखिन, जइमे श्रद्धा-प्रेमक सीरप बनबैक गुण छै। तेहेन पातो देलखिन तँए ने महादेवो बाबा अगिला आसन दइ छथिन। नै तँ फूलक डालीमे पात केना चलि आएल। भेड़ी जेरमे हूरार केना आबि गेल। जहिना सुगन्धित फूल देलखिन तहिना बनल-बनाएल भोज्यकेँ महि‍नो दिन रखैक कोठी देलखिन। तेतबेटा केने रहितथि तँ पनचैतीमे सोलहो-सलूकत होइत मुदा तहूसँ बेसी अन्याय केने छथिन जे तेहेन सुगंध भरि हाड़-काठ देने छथिन जे चानन बनि चानिपर चमकैत रहै छै। सभ फल लेल रोग वियाधि देलखिन आ ओकरा भगबैक गुण दऽ देलखिन। बेसी फड़ने टिकुलामे जे झड़ि-झूड़ि जाए मुदा आन्ही-झाँटसँ मुकाबला करैले दम रखैए। दारीम जकाँ भलहिं ओकर रक्षक नै होउ दारीमक काँट बहुत नम्‍हर होइ छै मुदा जेतबेटा होइ छै ओ दारिमकेँ के कहए जे बगुरोक काँट निकलि सकै छै।
कट्ठा पाँचेक बाड़ी कुमराकाकाकेँ, जेकरा ओ पुश्‍तैनी बुझै छथि। पुश्‍तैनीक कारण अछि तीमन-तरकारी आ फल फलहरीक वि‍द्यालय छी। उत्तरवड़िया-पछवड़िया कोनपर दारीमक आठटा गाछ लगौने छथि, मनमे उठलनि दारीम तोड़ए एलौं हेन। काज छी तँए पहिने कइए ली। मुदा जँ पहिने दारीम तोड़ि कऽ रखि दोसर दिस जाएब आ गाछक जड़िमेसँ टुटलाहा फल हल्ला करए लगए जे जखनि गाछसँ उतारलह तँ देवस्थान पहुँचाबह, आकि गाछक जड़िमे रखि देलह हेन जे परिवारक संग टूटि-टूटि कानह! से नै तँ नीक हएत जे जेकर समए समाप्त भऽ गेल आ जे दारिम पछाति‍ औत दुनूक विचार तँ करनाइए अछि।
सौंसे बाड़ी टहलि-बूलि कुमराकाका दारिमक आड़िपर पहुँचला। आड़िपर बैसिते मनमे सुमारक भेलनि। यएह छी जिनगी। फुलाएल-फड़ल आ पकि कऽ टूटि रहल अछि। चौकोर बगानक कोनपर मचान-खोपड़ीक जगह। साले-साल मरम्मति‍ होइत नव सिरासँ बनि अखनो धरि‍ अछि। कोण दिसक गाछ हियबैत विचारए लगला जे ई बाबेक अमलदारीक छी। पुरना सिरो आ गाछो सुखाएल जाइ छै आ नव-नव सिरो आ गाछो होइत जाइ छै। पचास बरखसँ ऊपरेक गाछ। बाबू तँ दोसर नै लगौलनि मुदा ओकरे ताम-कोर, छाँट-छुट करैत रहला। मुदा जखनि फलक महत बुझलौं तखनि आगु बढ़ि दारिमक बगान लगबैक विचार भेल।
दोसर गाछपर नजरि‍ पड़िते मन पड़लनि। ओही पुरना गाछक एकटा नै दुटा गाछ अछि। एक गाछसँ दोसर गाछ बनबैमे कहाँ कोनो बेसी तरद्दुत करए पड़ल। हुनके कहल बात मन रहबे करए, अदरा नक्षत्रमे डारि माटिमे गाड़ि देलि‍ऐ, भरिए बरसातमे अपने सिर एते भेलै जे गाछक भार उठबैक शक्ति भऽ गेलै। कोजगरा परात गाछसँ जुड़ल डारि काटि देलि‍ऐ, जइसँ पुरना गाछसँ सम्‍बन्‍ध समाप्त भऽ नव गाछ बनि कऽ ठाढ़ भऽ गेल। अहि‍ना ने सनातन वैदिक पद्धति चलैत आएल अछि। जन-जनक फुलवाड़ीक अमूल्य फल दारिम। मुदा जहिना-जहिना तेज गतिए देशक विकास होइत जा रहल अछि तहिना-तहिना जनकक फुलवाड़ी सेहो उजड़ि रहल अछि। उजड़ि कि रहल अछि जे उजड़ि गेल अछि। जँ से नै तँ केतए गेल मिथिलाक अध्यात्म-चिन्तन। केतए गेल संयुक्त परिवार आ केतए गेल स्वयंवर पद्धति। जइ मिथिलामे देश-देशक राजा-रजबारक राजकुमार आबि, सीताक बामा हाथक उठौल धनुष तोड़ेक कोन बात जे हिलाइओ नै सकल, धरतीमे जेते ऋृषि, मुनि, महात्माक आगमन भेल ओ कोनो-ने-कोनो रूपमे मिथिला आबि मिथिलाक दर्शन केलनि आ दर्शन पछाति‍ जनकक दरबारमे अपन उपस्थिति दर्ज करौलनि, एकरा धिया-पुताक गुल्ली डंडा खेल बूझब नेनमतिक सिवा आरो की भऽ सकैए। राम लक्ष्‍मण सन युवराजकेँ विश्वामित्र सन पारखी जनकपुर आबि‍ अपनाकेँ धन्य बुझलनि।
  पनरह दि‍न पछाति‍ दि‍वाली दि‍न कुमराकाका दारीमक गाछ रोपैक वि‍चार केलनि‍। भने दि‍वाली सन पावनि‍ अमवसि‍या दि‍न होइए। अही पनरह दि‍नमे दुनू गाछो अपन जगह बना ठमा गेल। जेते दूरमे ओकर सि‍र पसरल छै तइसँ कनी आगूएसँ माटि‍क स्‍थल उखाड़ि‍ दोसरठाम रोपलासँ किए गाछ बूझत जे हमरा कुभेला भेल, सेवामे दू लोटा पानि‍ जड़ि‍मे ढारि‍ देब, सएह ने। दि‍वाली दि‍न, सूखल माटि‍केँ मेहीसँ फोड़ि‍, पानि‍मे सानि‍, दुनू हाथक आँगुरसँ गढ़ि‍, एकटा मुँह बना, करुतेल आकि‍ घीमे वस्‍त्रक सूतक बनल बत्तीकेँ भीजा, पेटमे भोजन दऽ ताधरि‍ जरैले छोड़ि‍ देल जाइ छै जाधरि‍ तेलक संग बत्ती नै जड़ि‍ जाइत अछि‍। जहि‍ना सजमनि‍, कदीमा, घेड़ा-झुमनी रोपैले बुढ़ि‍या दादी अपन पोतीकेँ संग केने छोटका खुरपी नेने भोरे बाड़ी पहुँच जाइत जे कुमारि‍ कन्‍याक सेवा सीता मैयाक सेवा छि‍यनि‍। तँए बच्‍चा रोपल गाछ नि‍रोगो हएत आ समए पबि‍ते फड़बो करत। अपन रोपल रहतै साँझ-परात देखबो करत जे जनमल आकि नै जनमल। आब जे अपना हाथे रोपब तँ ओहो कहीं बुढ़ाड़ीया चालि‍ पकड़ि‍ बुढ़ाड़ीएमे फड़ैक वि‍चार कऽ लि‍अए। मुदा से नै बुढ़ाड़ीक रोग बि‍‍सरबो छी। जइ बीआकेँ माटि‍मे रोपि‍ ओकरा औंकरा माटि‍क ऊपर आनि‍ गाछ बना लत्तीकेँ साँगह दऽ दऽ फुलाइ-फड़ै जोकर बनौल जाइए, तेकरा जे समुचि‍त देखभाल नै हएत तँ जे नान्‍हि‍-नान्‍हि‍क कीड़ी-मकौड़ीक शि‍कार छी ओकर जि‍नगी केना बँचत।
  अगते अगि‍ला मौसिममे दुनू गाछक मुड़ी-मुड़ी नै, एक्के मुड़ीमे नि‍च्‍चाँ-ऊपर फुलाएल। मुदा कम आँट-पेटक रहने एक-एकटा फल पकड़लक। केना नै पकड़ैत? चुमौनि‍याँ कनि‍याँ ने रहए, कोनो कि‍ कुमारि‍ कन्‍या छेलए। हँ ओना बहुतो एहेन अछि‍, जेना अनरनेबा, जे डारि‍क गाछक रूपमे फड़ि‍ जाइत अछि‍। मनक जि‍ज्ञासा कुमराकक्काक बढ़लनि‍। दारीम केहेन माटि‍-पानि‍क छी ई तँ सोझहेमे अछि‍। कोनो अनाड़ी-धुनाड़ी खेती करब आ बकना जाए तइसँ नीक देखल-बूझल दारीमक खेती। ओना अपना ऐठाम -मि‍थि‍लांचल-क मौसमक जे खेल अछि‍ ओ बहुत कमे इलाकामे छै। जाड़-रौद-बरसातक बीच साधना स्‍थल छी। अहिना नै काति‍ककेँ धरम मास कहल जाइए। अनेको रंगक अन्न, अनेको रंगक तरकारी अनेको रंगक फल-फूल लगबैक मास काति‍क। अनुकूल समए रहने अंकुरन शक्‍ति‍ धरतीमे अधि‍क भऽ जाइए। मुदा से तँ तखनि‍ ने जखनि‍ ओकरा धर्म-स्‍थल जकाँ सजाएब। प्रकृति‍ अपन अनुकूलते ने परसारत आकि‍ ओकरा हाथ-पएर छै जे कएओ वएह देतै। बड़ करत तँ बोन-झार लगौत। छगुन्‍ताक बात ई नै भेल जे केतौ बीआसँ गाछ तँ केतौ लत्तीएसँ गाछ, केतौ लत्तीएमे फल तँ केतौ गाछेमे तरकारी, केतौ डारिएसँ गाछ तँ केतौ डारिएमे सि‍र। केतौ पत्तेमे गाछ तँ केतौ फुलेसँ गाछ।
  दारीमक गाछक दोसर पति‍यानीपर नजरि‍ पड़ि‍ते कुमराकाकाकेँ धक दऽ द्वारका मन पड़लनि‍। ओइ साल द्वारका गेल रही तँ आरो देश-कोस देखैक मन भेल, तँ नागपुर चलि‍ गेलौं। की‍ पहाड़ी इलाका, की‍ फलक खेती। कुमराकाकाकेँ अपना मनमे रहबे करनि‍ जे दारीमक गाछ लेब। ओना नर्सरीमे हलुआइए दोकान जकाँ रंग-बि‍रंगक गाछ मुदा पहि‍ने जीवैत जि‍नगीमे जान फूकब आकि‍ अनठि‍या भाँजमे पड़ि‍ अनठीए बनि‍ जाएब। गाछक रंग रूप देखि‍ नर्सरीबलाकेँ पुछलनि‍-
ई कथीक गाछ छी?”
कहलकनि‍-
अनारक।
  ओना अनार दरीमक बात मनमे उठलनि‍ मुदा गाछक हाड़-काठ आ डारि‍ आ पात देखि‍ बि‍सवास भऽ गेलनि‍ जे दारीमे छी। भऽ सकैए जे माटि‍-पानि‍-हवाक दुआरे कि‍छु अन्‍तर होउ मुदा छी दारीमे। ओना जहि‍ना नीक खाँढ़क गाएकेँ दब साँढ़सँ पाल खुऔला पछाति‍ बच्‍चाक खाँढ़ निच्‍चाँ मुहेँ उतरि‍ जाइए आ दबो खाँढ़क गाएकेँ नीक साँढ़सँ पाल खुऔलापर ऊपर मुहेँ खाँढ़ बढ़ि जाइए, तहुना भऽ सकैए वा एक कुल-खुटक रहि‍तो दोसरो-तेसरो कारणे कि‍छु अन्‍तर आबि‍ जाइ छै। खैर जे होउ। बेसी तँ नै एकटा गाछ कीनि लेब। गाछबलाकेँ पुछलखि‍न-
एकटा गाछक दाम कहू।
कुमराकाकाकेँ नर्सरीबला बहरबैया बूझि‍ परेखि‍ गेलनि‍। एकटा गाछ सुनि‍ बुझबैत कहलकनि‍-
देखू, नबे-पनचानबे प्रति‍शत गाछकेँ लगैक गारंटी करै छि‍ऐ। पाँच-दस प्रति‍शत सुखि‍ओ सकै छै। एकटा गाछ लेब आ जौं कहीं सुखि‍ गेल तँ अहूँक आशापर पानि‍ पड़ि‍ जाएत आ हमहूँ गारि‍ सुनब। तँए नीक हएत जे दूटा गाछ लिअ।
  नर्सरीबलाक बात कुमराकक्काक मनमे जँचलनि मुदा एकटा दोसर बात आबि‍ गेलनि‍। ओ ई एलनि‍ जे जखनि‍ एकटाक बि‍सवास दइए तँ दाम किए दूटाक लेत। पुछलखि‍न-
लगत एकटा आ दाम लेब दूटाक।
कुमराकक्काक प्रश्न सुनि‍ नर्सरीबला बि‍नु वि‍चारने बाजि‍ गेल-
गाछो तँ दूटा देब।
  मुदा कुमराकक्काक गुम्मी नर्सरीबलाक मनमे ठमकल। वि‍चारैत बाजल-
दूटाक दाम नै, देढ़गोक दाम लगत, दूटा गाछ देब।
  दुनू गोटे राजी भेलौं। वएह चारि‍म गाछ छी। आब तँ आने गाछ जकाँ ओहो फड़ै-फुलाइए। ओना मि‍थि‍लांचलमे दर्जनो कि‍सि‍मक अनार, दारीम, वेदाना, नारंगी इत्‍यादि‍ अछि‍ मुदा सबहक नाओं दारीमे छि‍ऐ। गाछक फल द्वारकाक फलमे बदलि‍ गेलनि‍। चारि‍म गाछसँ पाँचम गाछपर नजरि‍ पहुँचि‍ते इलाहाबाद-प्रयागक कुम्‍भ मेला मन पड़लनि‍। ई गाछ ओतुक्के छी। बहुत दि‍न पछाति कुम्‍भो लगल आ अपनो दारीम लगबैक वि‍चार मनमे रहबे करए, दुनू गाछ देखि‍ ओत्तैसँ अनने रही। मुदा ओ वेदाना कहि‍ कऽ अनने रही। ऐठाम तँ दारीमे‍ छी। ओना कि‍छु अन्‍तर होइते छै। से तँ आनो-आनोमे होइ छै। तँए कि‍ नामे बदलि‍ जाए। छठम गाछपर नजरि‍ पड़ि‍ते कश्मीरक अमरनाथ मन पड़लनि‍। मन पड़ि‍ते छगुन्‍ता लगलनि‍। केते सुन्नर फल होइए। जहि‍ना रंग-रूप सुन्नर तहि‍ना मोती दाना जकाँ फलक भीतर मधुमाछी छत्ता जकाँ घौदि‍याएल, बसहा कागतक चद्दरि‍ ओढ़ि‍ संगे-संग रहि‍ अपन जि‍नगीक पूर्ण वि‍कास करैए। मुदा लगले मन बहटि‍ गेलनि‍। झंझटि‍या जगहक फल छी। अकबरेक समए जे झंझटि‍क जड़ि‍ रोपाएल से अखनो धरि‍ झंझटि‍या रहि‍ए गेल। कहि‍यो कम-कहि‍यो बेसी मुदा झंझटि‍ मेटाएल नै। तइसँ नीक अपने सभ -बि‍हारी- छी। मुदा जे होउ बागक बोन आ झीलक झि‍लहोरि‍ बेसी ओकरे सभकेँ छै। जेहने शालीमार, नि‍शातक बोन तेहने डल झील। ओना अपने सभ जकाँ धानक चूड़ा-चाउर-भात। गहुमक सोहारी मुदा ओ सभ कहि‍यो ने खेलक।
  मकइक भुजा, ओरहा खाइए मुदा मलड़ैए बेसी अपना सभसँ। किए ने मलड़त, अपना सभ पानि‍मे नहाइ छी ओ सभ बेसी बरफेमे नहाइए। ओना अकास गंगाक जलधार सेहो होइ छै मुदा अपना सभसँ कम। आरो जे होउ, ओकरा सभ जकाँ फल सड़ा कऽ नै टटका खाइ छी। सातम गाछपर नजरि‍ पड़ि‍ते मन पड़ि‍ गेलनि‍ हरि‍द्वार। पाथरक धारक पवि‍त्र जलधार। माटि‍सँ घोराएल नै। किए ने हरि‍क दुआर बनत। आठम गाछपर नजरि‍ पड़ि‍ते जगरनाथ मन पड़लनि‍। समुद्र-पहाड़ बीच बसल जगरनाथ। एक्के बगानमे दारीम, अनार, वेदाना, नारंगी सभ अपन-अपन जगह पाबि‍ जि‍नगीक फल लुटबैए। चढ़ैत सुरूज देखि‍ काजकेँ आगू बढ़ाएब बूझि‍ कुमराकाका आड़ि‍पर सँ उठि‍ दारीम तोड़ैक वि‍चार केलनि‍।
  पहि‍ल गाछ पहि‍ल फलपर हाथो बढ़लनि‍ आ नजरि‍ओ। फल तँ छेदाएल अछि‍! ऊपरेसँ भूर भेल अछि‍। जरूर फलमे कीड़ाक प्रवेश भऽ गेल अछि‍। पहि‍ल फल छोड़ि‍ दोसर देखलनि‍, ओहो तहि‍ना! छेदाएल फल देखि‍ मन कलपि‍ गेलनि‍। भरि‍सक गाछक सभ फल सड़ि‍ गेल अछि‍। मुदा हूबा करैत दोसर गाछ दि‍स बढ़ि‍ हाथसँ फल उठा देखलनि‍ तँ ओहो छेदाएल! दोसरो-तेसरो चारि‍मो ओहि‍ना। आठो गाछक फल देखि‍ हि‍या हारि‍ देलनि‍ जे सालक अमृत फल छि‍ना गेल। चूक अपनो भेल जे लगन-पाती भोज-भातक फेरि‍मे पड़ि‍ फल छि‍नबा लेलौं।
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