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Friday, October 18, 2013

(67) बेटी हम अपराधी छी

बेटी हम अपराधी छी

सही समैसँ सालभरि‍ पहि‍ने मनोहरकेँ सेवा मुक्‍ति‍क चि‍ट्ठी ऑफि‍समे थम्‍हा देलकनि‍। थम्‍हबैक कारण रहनि‍ काजक गजपटी। काजक गजपटीक कारण रहनि‍ मनक संताप। आॅफि‍सक सभ मानि‍ लेलकनि‍ जे मनोहरक मन चढ़ि‍ गेलनि‍ तँए समुचि‍त काज करए जोग नै रहला। आॅफि‍सेक कुरसीपर बैसल रहथि‍ आकि‍ चपरासी आबि‍ हाथमे चि‍ट्ठी थम्‍हेलकनि। पहि‍ने तँ नै बूझि‍ सकला जे सेवामुक्‍त भऽ रहल छी मुदा पढ़ला पछाति‍ केकरोसँ पुछौक जरूरति‍ नै रहलनि‍। कोनो लेन-देनक कारण नै बतहपनीक कारण स्‍पष्‍ट लि‍खल रहनि‍। जहि‍ना बर्खा होइकाल अनासुरती मेघ ढनढ़नाए उठैत तहि‍ना एकाएक मनोहरक मनमे भेलनि‍। जेकरो कहबै सेहो बताहे बूझि‍ सुनबो ने करत। तखनि कहबे किए करबै। अनेरे मुहोँ दूरि‍ करब। मनोहरक मन जेना बेर-बेर चनकए लगलनि‍। टुकड़ी-टुकड़ी भेल मनमे उठलनि‍ जे सभटा कागत-पत्तरकेँ छीट-छाटि‍ दि‍ऐ, टेबुल-कुरसीकेँ उनटा-पुनटा दि‍ऐ आ नि‍कलि‍ जाइ। मुदा मनक लगामकेँ बुधि‍ पाछू खिंचलकनि‍। बदलैत सोच वि‍चार केलकनि‍ जे एक तँ लि‍खतन बताह बनाइए देलक तैपर एहेन काज जौं करब तँ थि‍योरी-प्रेक्‍टीकल संग भऽ जाएत, तखनि बतहपनीक सजाक हकदार बनैमे केते देरी लगत। कुरसीसँ उठि‍ सोझहे घरमुहाँ रस्‍ता पकड़लनि‍। डेराक सुधि‍ए ने रहलनि‍ जे भड़ो-कि‍राया फड़ि‍छा लि‍तथि। बेसुधि‍ मनमे बेठेकान सोच उठनि‍ आ पानि‍क बुलबुला जकाँ फूटि‍ जान्‍हि‍।
  गामक सीमा परहक बड़क गाछ देखिते भकइजोत जकाँ भेलनि‍। भकइजोतेमे देखलनि‍ जे इएह गाम अपन छी। मनमे अप्‍पन अबि‍ते पएर जवाब देलकनि-
आगू नै बढ़ब। गाममे मुँह देखबैबला नै छी।
मुदा तपाएल मुँह लगले पएरकेँ कहलकै-
ईह बूड़ि‍ रे, मुँह देखबैबला नै छी! ई समाज मुँह देखबैबला नइए! हरिदम वि‍वेक-वि‍वेकक भाँग घोड़ि‍-घोड़ि‍ इनारेक निशाँएल पानि‍ बना देने अछि‍ आ ि‍नर्लज जकाँ बजैमे लाजे ने होइ छै, सुझबे ने करै छै जे जखनि पाइक हाथे शि‍क्षा वि‍काइए ओ शि‍क्षा पाइबलाक हएत आकि‍ बि‍नु पाइबलाक। जइ समाजमे रोग-वियाधि‍ पाइक हाथे छोड़ौल जाइ छै तइ समाजमे बि‍नु पाइबलाक गति‍-मति‍ की हेतै। रौद-बसात, जाड़, पानि‍-पाथरक रक्‍छा केना करत। अदौसँ अबैत नर-नारीक सम्‍बन्‍धक बीच जखनि दान-दहेज एहेन बड़का मोनि‍ घारक पेटमे फोड़ि‍ देने अछि‍, जइ टपानमे केते हाथीओ-घोड़ा फँसि‍ जान गामा रहल अछि‍। तइ मोनि‍मे अदना-अदनीक अह्लादे केतै कएल जा सकैए। महिंसक आगू वीणक कोन मोल छै।
मोने-मन मनोहर घर दि‍स बढ़बाक हूबा करथि‍ मुदा पएर उठैले तैयार नै होन्‍हि‍। जौं पएर थोड़े तैयारो होन्‍हि‍ तँ आँखि साफे नै। धरतीपर ओंघराएल मनोहरक सभ सुधि‍-बुधि‍ हरा कऽ छि‍ड़ि‍या गेलनि‍।
मोबाइलक जुग रहने समाचार पसरैमे देरीए किए लगत। गाम-समाजक बच्‍चा-बच्‍चा बूझि‍ गेल जे मनोहर बताह भऽ गेला, नोकरीसँ नि‍कालि‍ देलकनि‍। पेन्‍शनो आने-आन लूटतनि‍।
पत्नी-सुनैनाकेँ पहि‍ने बि‍सवास नै भेलनि‍। आइ धरि‍क जे पति‍-प्रेम मनोहरसँ भेटल छेलनि‍ ओ अनकासँ बहुत बेसी छेलनि‍। मुदा जानकीक काँच बुधि‍ मानि‍ गेल रहै जे पि‍ता पागल भऽ गेला, नोकरीसँ भगा देलकनि‍।
गामे लोकक जेर संगे दुनू मायधी अर्थात् सुनैना आ जानकी, वि‍दा भेली। लोकक बीच रंग-रंगक घौचाल चलैत। कोनो निको मुदा बेसी अधले। घौचाल सुनि‍ दुनू मायधीक मन वि‍चलि‍त हुअ लगलनि‍। बेटीक मुँह सुनैना नि‍हारैत आ माएक मुँह जानकी। पोखरि‍ घाटपर जहि‍ना रंग-रंगक चालि‍ रंग-रंगक भुरही-माछ चाल दैत तहि‍ना रंग-रंगक चालि‍क बात दुनू गोटे सुनैत। कचकूह मन जानकीक तँए बेसी वि‍चलि‍ते होइत गेलै। बताह भऽ बाबू छोड़ि‍ पड़ाए जेता, समाज सहजे‍ हमरा सन-सनकेँ भगाइए रहल अछि‍। तखनि माएक की गति‍ हेतै।
अधबटि‍या पछाति‍ सुनैनोक मन मानि‍ गेलनि‍ जे पति‍ पगला गेला। जानकीपर नजरि‍ अँटका मोने-मन सोचए लगली जे बाइस बरखक कुमारि‍ बेटीक मुँह सिंह दुआरि‍पर केना देखब। की‍ दुनि‍येँ उजड़ि‍ रहल छै आकि‍ उजाड़ि‍ चढ़ा देलक अछि‍? एको बीत धरती नै बँचल अछि‍ जेतए नोरक धार सुखौल जाएत।
जहि‍ना दंगलक खलीफा पटका चारू नाल चीत खसैए तहि‍ना मनोहर बड़का गाछक नि‍च्चाँ जि‍नगीक अखड़ाहापर चारूनाल चीत भेल पड़ल मोने-मन सोचथि‍, अपन जि‍नगीक हारि‍क कारण अपने छी तँए पत्नीओ‍ आ बेटीओ लेल अपराधी छी। मुदा फेर मन कहनि‍ जे अपराध कथी केलौं जे अपराधी भेलौं। भवसागरमे डुमल मनोहरक शरीर चेतनशून्‍य भेल रहनि‍। तखने पत्नीओ आ बेटीओ लग पहुँच मुँह नि‍हारए लगलनि‍। दुनूक मन कहलकनि‍ मुँहक रूखि‍ कहाँ कहै छन्‍हि‍ जे कोनो रोग छन्‍हि‍। रणभूमि‍क हारि‍क रोग आ बिमारीक रोग अपन बात अपने चि‍कड़ि‍-चि‍कड़ि कहै छै जे की छी। मुदा बन्न मुँह देखि मनोहरक छातीपर दुनू गोरे अपन-अपन सती हाथ रखलनि‍। छातीक धुकधुकी समतूले बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा आखि‍र कि‍छु छथि‍ तँ एकक पि‍ता दोसराक पति छथि‍ ने। दुनूकेँ अपना-अपना बि‍सवासमे शंका भेलनि‍। शंका होइते एक-दोसराक मुँह दि‍स तकलनि‍। आँखि‍-आँखि‍क बीच पुल-सड़क बनल। सुनैनाकेँ सान्‍त्वना दैत जानकी बाजलि‍-
माए, हृदए तँ ओहि‍ना पवि‍त्र देखै छियनि‍।
कदमक गाछक झूला जकाँ आस मारि‍ सुनैना कहलखि‍न-
बेटी, पुरुखक छातीपर बहुत भार छै। जेकरा माथपर जारनिक बोझ आकि‍ अन्न-पानि‍क बोझ पड़बे ने कएल ओ ओइ बोझ उठबैबला छातीक धुकधुकी गनि‍ केना सकैए। से नै तँ छातीए डोला कऽ देखहुन जे मुँहसँ केहेन बकार नि‍कलै छन्‍हि‍।
माएक वि‍चार सुनि‍ जानकी आरो जाँच-पड़ताल करब नीक बुझलक। जहि‍ना कलि‍याएल अड़हूल फुलाएल रहैए आकि‍ कलीक अवस्‍थामे रहैए तहि‍ना जानकीक मन छातीसँ ससरि‍ हाथ दि‍स बढ़ल। केना नै बढ़ैत कहुना अछि‍ तँ छातीक ऊपरेसँ ने लटकल अछि‍। बाजलि‍-
माए, से नै तँ छातीक धुकधुकीसँ अपनो मन धुकधुकाइते अछि‍। हाथक नारी पहि‍ने देखि लहुन।
  नारी तँ नारी छी। एक पुरखि‍याह। छाती जकाँ दुनू गोटे एक्केबेर थोड़े पकड़ि‍ सकै छथि‍। मुदा पहि‍ने के देखत, दुनूक बीच ओझरी लगि‍ गेलनि‍। एक पुरुष हजार रूप। की मनोहर जानकीओ लेल वएह छथि‍ जे सुनैना लेल? मुदा की मनोहर सुनैनाक छियनि‍ आ जानकीक नै? तखनि? जानकी सुनैनाकेँ कहलक-
माए, छातीक धुकधुकी तँ जोरसँ चलै छै, गनल भऽ जाइए मुदा हाथक नारी आइ धरि‍ कहाँ गनलौं हेन।
  बेटीक बात सुनैनाकेँ सोहनगर लगलनि‍। ऐठाम कि‍यो आन अछि‍ जे अछि‍ओ ओ तमसगीरे अछि‍, उकटा-चाल करत। बामा हाथसँ तरहत्‍थी पकड़ि‍ दहि‍ना हाथ सुनैना मनोहरक बाजूपर देलनि‍। आँगुरसँ नारी पकड़ि‍ते कानमे झड़झड़ाए लगलनि‍-
सुनैना, बहुत आशा जि‍नगीसँ केने छेलौं। मुदा, टूटि‍ कऽ सभटा छि‍ड़ि‍या गेल। समाजक डर हमरा नै होइए मुदा अहाँ पत्नी छी तँए कहै छी। बताह बना बतहपनीक फड़मान हाथमे धरा देलक। कमेलहो खेलक आ अगि‍लो कमाइ मारलक। जखने घरसँ नि‍कलब धि‍या-पुता जानि‍-जानि‍ देहपर कि‍यो गोला फेकत, कि‍यो काँट फेकत, कि‍यो गोबर माि‍ट फेकत। केकरा की कहबै, हमरा बातकेँ कि‍यो कान धड़त। आइ दस बरखसँ जानकीक बि‍आहक पाछू पड़ल छेलौं, मास दि‍न पूर्व जवाब भेटल जे वैवाहि‍क सम्‍बन्‍ध भंग भऽ गेल!
आरो कान लगमे आनि‍ सुनैना मनोहरक हाथ उठा कानमे सटौलनि‍। धड़धड़ाइत सुनए लगली-
हम ओइ जुगलासँ पुछै छि‍ऐ जे कोन बुधि‍ए जमाए बना एते सेवा करौलक। बाइस बरखक बेटीक मुँह देखल जाएत। जखनि‍ घरक भार उठबैमे अक्षम भऽ गेलौं अनेरे जीविए कऽ की करब। मुदा परि‍वार? सेहो कहाँ रखि‍ पौलौं। दस बरखक अवस्‍थामे बेटी कन्‍यासँ कनि‍याँक रूप धारण करए लगैए तैठाम जानकीक बि‍आहक चर्च पत्नी दस बरख पूर्व बारह बरखक अवस्‍थामे केलनि‍। अपनो ओइ पाछू पड़लौं। काजोक अगुताहत नहि‍येँ बूझि‍ पड़ल कि‍एक तँ समयानुसार परि‍वर्त्तन हेबेक चाही। बीस-बाइस बरखक बच्‍चि‍या समाजक कुमारि‍ बच्‍चि‍या छी तँए समाजमे केकराे चहु अलगबैक अधि‍कार नै छै जे ओकरा अलग बुझए। जौं जमीनो बेचि‍ जानकीक बि‍आह कऽ लइ छी, तँ की समाज भार उठौत जे एहेन काज आगू नै हएत?”
वि‍स्‍मि‍त भेल सुनैनाकेँ देखि‍ जानकी बाजलि‍-
माए, कनी हमरो बाबूक नारी देखए दे।
जानकीक बोल सुनि‍ सुग्‍गाक लोल सुनैना नि‍हारए लगली। यएह अवस्‍था छी, लोक सती बनैए। यएह अवस्‍था छी, लोक वेश्‍या बनैए। यएह अवस्‍था छी, जइमे लोक मातृ-पि‍तृ भक्‍त बनि‍ भगवत भजन करैए। मुदा जानकी...?
पति‍क हाथ सुनैना जानकीक हाथमे दैत कान ठाढ़ कऽ मुँह नि‍च्‍चाँ गोड़ि‍ लेलनि‍। पि‍ताक कब्‍ज पकड़ि‍ते जानकीक कानमे घनघनाइत आएल-
बेटी जानकी! हम अपराधी छी। हमरासँ अपराध भेल।
नै बाबूजी नै, सौंसे दुनि‍याँ भलहिं कहए मुदा अपन जुआन नै नि‍कलि‍ सकैए। चौथारि‍ सीमा धरि‍ आबि‍ अहाँ परि‍वारक सेवा करैत रहलि‍ऐ। दुनि‍याँ बौक कहए आकि‍ बताह कहए, कहऽ दियौ। मुदा अपन इमान कखनो धरमसँ वि‍चलि‍त नै हएत। हम मि‍थि‍वाला छी, हमरा वाजूमे शक्‍ति‍ अछि‍। जहि‍ना अपन कालखंड इमानदारीसँ टपलौं तहि‍ना अगि‍ला खंड हमरो छी। अपना दरबज्‍जापर बैस भगवत भजन करैत रहब, देहक चि‍न्‍ता नै करब। हमहूँ तँ सन्‍ताने छी कि‍ने। बेटा रहैत तँ बहि‍न बनि‍ भार दैति‍यनि‍। मुदा जखनि भाए नै अछि‍ तखनि तँ हमहीं ने बेटा-बेटी भेलौं। ई प्रश्न हमरो भेल कि‍ने? बि‍आह हएत, सासुर बसब मुदा अहाँकेँ ऐ अवस्‍थामे छोड़ब केते उचि‍त हएत। नीक-बेजाएक भार के उठौत। अपना जीबैत अपन माए-बापक एहेन गति‍ भऽ जान्‍हि‍ जे अनसोहाँतो-सँ-अनसोहाँत भऽ जाए, ई दोख केकरा सि‍र सवार हएत। मुदा समाजो तँ तेहेन अछि‍ जे छातीक कोन बात कोढ़-करेज धरि‍ खोखड़ि‍-खोखड़ि‍ खाइते आएल आ रहत। हे शि‍व, एहेन धनुष उठबैक भार जौं अपने नै लेब तँ की ई समाज उठा सकैए? की मि‍थि‍लांगना अखनो धरि‍ ई नै बूझि‍ सकली जे माए-बाप जनमदाते टा नै छथि‍ जि‍नगीक हारि‍-जीतक सूत्रधार सेहो छथि‍, जौं से नै तँ सासु पुतोहुकेँ भि‍खमंगनी बेटी कहि‍ किए मुड़ी गोंतबै छथि‍न। जरूरति अछि‍ समायानुसार शक्‍ति‍ उपका संचय करैक। जाबे तक से नै हएत ताबे तक पुरुखक नजरि‍ नि‍च्‍चाँ केना कऽ पाबि‍ सकै छी। देखए पड़त अपन भूत आ भवि‍स। जाधरि‍ अपन भूत-भवि‍स देखि नै लेब, अपन-अपन बीर्तमानक लक्ष्‍मण रेखा खींच रक्षाक भार स्‍वयं नै उठा लेब ताधरि‍ ऋृषि‍का, सती-सध्‍वी, पति‍व्रता आदि‍-इत्‍यादि‍ शब्‍दक साकार जि‍नगी केना बनि‍ सकत?”
  जहि‍ना नट-नटीनक नाचमे दर्शक चारू दि‍स घेरि‍ बैसैत आ बीचमे दुनू अपन जि‍नगीक राग अलापति‍ तहि‍ना समाजक लोकक बीच मनोहर, सुनैना आ जानकी, जि‍नगीक राग अलापि‍ घर दि‍स वि‍दा भेली। आगू-आगू सुनैना-जानकी मनोहरक दुनू हाथ पकड़ने आ पाछू-पाछू धि‍या-पुतासँ चेतन धरि‍।
घरक मुड़ेरा देखि‍ते मनोहर दुनूक हाथ झमाड़ि‍ बाँहि‍ छोड़ा बमकि‍ बजला-
बि‍सवासघात..., बि‍सवास घाती छी...। समाजमे जेहने मनुख रहत तेहने ने बनत। यएह बि‍सवास देने छल जे बुढ़ाड़ीमे अहाँ गर्त्तमे खसब। ओ सभ पागल बना देलक।
पुन: झोंकमे-
नै सुनत दुनि‍याँ नै सुनह मुदा जाबे घटमे प्राण-घटवार रहत ताबे यात्रीकेँ कहबे करबै। कहि‍ते रहबै।
  सातम दसकमे मनोहर जि‍ला-कार्यलयमे कि‍रानीक नोकरी शुरू केलनि‍। समाजक पहि‍ल वि‍द्यार्थी जे पहि‍ल श्रेणीसँ मैट्रि‍क पास केलनि‍। कौलेज लगमे नै रहने आगू पढ़ैक आशा तोड़ि‍ जि‍नगीक मैदानमे उतरल। मुदा रि‍जल्‍टक कागत आँखि‍क सोझ अबि‍ते मनमे उपकि‍ गेलै जे जहि‍ना प्रथम श्रेणीक फल भेटल तेहने फलक गाछ रोपि‍ ओकर सेवा टहल जि‍नगी भरि‍ करैत अपनो आ समाजोकेँ नीक फल खुएबनि‍।
एक तँ सरकारी कार्यालयमे काज नै जे पढ़ल-लि‍खलक अँटाबेस होइत, दोसर स्‍कूलो-कौलेज कम रहने लोक पढ़ि‍ओ ने पबै छल। संयोग नीक बैसलै जि‍लाक कृषि वि‍भागमे कि‍रानीक नोकरी मनोहरकेँ भऽ गेल। जहि‍ना दशमीमे दुर्गास्‍थान साँझ दिअ जाइसँ पहि‍ने साँझ-देनि‍हार अपन-अपन घरक भगवतीक आगू साँझ दऽ लइए तखनि ने दसनामा देवालयमे जाइए, तहि‍ना मनोहर नोकरीपर जाइसँ पहि‍ने माता-ि‍पताक असीरवाद लऽ लेब जरूरी बुझलक। खुशी तीनू गोटेक मनमे। मुदा तीनूक तीन रंगक। किए ने तीन रंगक होइत। हजारो रंगक फूलमे सुगंध होइ छै, सभकेँ अपन-अपन सुगंध सि‍रजन कऽ पसारैक हक छै।
दलानक ओसारपर सतदेव कोदारि‍मे पच्‍चर लगबैत रहथि। मनोहरकेँ खुआ आँगनमे माए असीरवाद देलक। आँगन-दलानक बीच मनोहरक मनमे उठल ओह, माएकेँ तँ कहि‍ देलि‍यनि‍ जे नोकरीपर जाइ छी, ओ असीरवादो देलनि‍ जे आब तोंही सभ ने ऐ घरक खुट्टा भेलहक। हम सभ तँ पाकल आम भेलौं। मुदा से नै जौं माएक एक रूप छन्‍हि‍, पि‍ताक एक रूप छन्‍हि‍ तँ तैबीच एकटा संयुक्‍तो रूप तँ छन्‍हि‍हेँ। तँए दुनू गोटेक ओइ रूपकेँ प्रणाम कऽ असीरवाद लेब। डेढ़ि‍ए परसँ बाजल-
माए, कनी एम्‍हर आ।
शुभ काजमे वि‍लमैक दोख अपनापर माए केना लेती। अँइठे हाथे दरबज्‍जपर पहुँच बजली-
की कहलह
पि‍ता-सतदेवकेँ मनोहर गोड़ लागि‍ बाजल-
बाबू, नोकरी करए जाइ छी।
‘नोकरीपर’ कानमे पड़ि‍ते सतदेवक मन खुशि‍या गेलनि‍। सुगंधि‍त फूलक फुलवाड़ी आ बि‍नु सुगंधक फुलवाड़ीक हवा जहि‍ना दोरस रहैत तेना नै बूझि‍ पड़लनि‍। असीरवाद दैत सतदेव मनोहरकेँ कहलनि‍-
बौआ, डि‍क्‍शनरी जकाँ जौं तीनिए टा शब्‍दक कोष बना लेबह तँ मुइला पछातिओ बेर-बेर दर्शन होइते रहबह। भरल-पूरल देखि आत्‍मा जुड़ाइते रहत।
सि‍नेह सि‍क्‍त सतदेवक शब्‍द सुनि‍ मनोहर सहमि‍ स्‍वीकारैत पुछलकनि‍-
ओ तीन शब्‍द की छि‍ऐ?”
बौआ, झूठ नै बजि‍हऽ। दोसर, केकरोसँ एक्को पाइ डाँड़िहक नै। तेसर, दरबज्‍जापर जे मनुख-शक्‍लक आबथि‍ हुनका एक लोटा पानि‍क आग्रह जरूर करि‍हनु।
  पि‍ताक शब्‍दकेँ गुरु-पि‍त वचन बूझि‍ तत्काल तँ मनोहर गीरह बान्‍हि‍ रखि‍ लेलक, रखबो जरूरी छेलै। एगारह बजे आॅफि‍स पहुँचक छेलै। मुदा पि‍ताक वचनकेँ हास्‍य शब्‍दकोषमे नै हहासक डरसँ चाइलेंजकोषमे लऽ अंगीकार केलक।
  दुरगमनि‍याँ कनि‍याँ जकाँ मनोहर अपन उपस्‍थि‍ति‍ दर्ज करा, सभकेँ प्रणाम-पाती करैत, कोहवर जकाँ असकरे कुरसीपर बैस गेल। कोनो काज नै देखि‍ चुनौल तमाकुलक गीरह जकाँ गामक गीरह खोलए लगल तँ भक्क दऽ पि‍ताक असीरवाद मन पड़लै। होइतो अहि‍ना छै जे जखनि रॉकैट तैयार भऽ उड़ैक रूप धारण करैए तखनि धरती छोड़ैसँ पहि‍ने उनटा जाँच-पड़ताल होइ छै। मनोहरोकेँ जि‍नगीक पैछला कोनो बात मन नै पड़लै, पहि‍ने पि‍ताक वएह तीनू शब्‍द मन पड़लै जे तीन प्रश्न बनि‍ जि‍नगीक आगूमे ठाढ़ भेल। जौं अपन प्रश्नक जवाब दइ जोकर नै छी तँ कोनो लजेबाक बात नै जे अपन कमजोरी केना सुहकारी। जाबे तक कोनो खेतमे नव सि‍रासँ जोति‍ नव बीज नै देल जाइ छै ताबे नव फलक आशा केना हएत। कुरसीपर बैसल मनोहरक मनमे पि‍ताक असीरवादक तीनू शब्‍द तीन प्रश्नक गाछ रूपमे ठाढ़ भेल। कुशल माली जहि‍ना सभ फूलक अपन-अपन पतियानी हि‍यबैत तहि‍ना मनोहरो अपन तीनू शब्‍दक पाँति‍ हि‍याबए लगल। मुदा सतरंगा मकान बनौनि‍हार इंजीनि‍यर जकाँ गुनि‍याँ-परकालसँ नै गुनि,‍ संकल्‍प बूझि‍ वि‍चारए लगल। ओना वि‍चारक खण्‍डन-मण्‍डन जेते बेसी होइ छै ओकर बीज-स्‍वरूप दूधक मक्‍खन जकाँ ओते भेटै छै। मुदा मात्र दू घंटा ऑफि‍समे रहैक छै। डेरो-डंटा ठीक नहि‍येँ भेल छै, तीन घंटा रस्‍ता काटि‍ गामो जेनाइ छै। तँए जेते खण्‍डन-मण्‍डन हेबाक चाही तेते तँ नै मुदा तात्वि‍क वि‍चार जरूर केलक। ओना हनुमानजी जकाँ कखनो अकास मार्गपर नजरि‍ पड़ै तँ वि‍हाड़ि‍ जकाँ भऽ जाइ, मुदा लगले महावीर जकाँ बदलि‍ लि‍अए। ‘झूठ नै बाजब।’ कोन बड़का प्रश्न भेल। नान्‍हि‍टा प्रश्न अछि‍। ने हमरा एक सेलक जीवाणुक इति‍हास देखक अछि‍ आ ने सोनाक लंका। चौबीस घंटाक दि‍न-राति‍मे जे समए संग अबैत जाएत आ वि‍वेक कहैत जाएत तेतबे करबाक अछि‍। मनमे खुशी भेलै। जहि‍ना तीन प्रश्नक उत्तरमे एक प्रश्न हल भेने पास नम्‍बर चलि‍ अबैत तहि‍ना मनोहरक मनमे पासक आशा जगलै। पास बदलि‍ पासापर दोसर आस मारलक। ‘दोसरकेँ नै डाँड़ब।’ ईहो बड़ भारी प्रश्न कहाँ अछि‍? अपन खर्चमे कमी-बेसी भेने ने लोक करजदार होइए आकि‍ कर्जदाता। जौं सरपट चालि‍ पकड़ि‍ चलब तँ किए दुनूमे सँ कि‍यो भेँट हएत। मुदा समाजक बीच परि‍वारकेँ रहैक छै। सोल्हन्नी सरपट नै देखि‍ मनोहरक मन अँटकल मुदा लगले घोड़ा जकाँ मन हीहीएलै-
खगताकेँ जेते तक पचा सकब ओते पचाएब। आ बढ़ता लेल समाज अछि‍।
दू-ति‍हाइ अंकक आशा नहि‍योँ देखि मनोहरक मन मानि‍ गेलै जे कोनो बेसी ओझरी नहि‍येँ अछि‍। तेसर प्रश्न ‘दरबज्‍जापर एक लोटा पानि‍’ पर नजरि‍ पड़ि‍ते मन ठमकि‍ गेलै। अपने घरसँ तीन घंटाक रस्‍ता दूर रहब, दरबज्‍जापर बारह बजे दि‍न आकि‍ बारह बजे राति‍ जौं कि‍यो आबि‍ जाथि‍ तखनि अपना बुते की हएत। अखनि माता-पि‍ता जीबै छथि‍ तँ अपन दुआर-दरबज्‍जाक मुड़ेरा अकास ठेकेता मुदा परोछ भेला पछाति‍ की करबै? जौं अखनि नै वि‍चारि‍ बाट पकड़ि‍ लेब तँ बेर-वि‍पत्ति‍ पड़लापर तँ सहजे‍ लोकक बुधि‍ हरा जाइ छै, तखनि वि‍चारि‍ पएब? वस्‍त्रक एक-एक सूत वि‍लगा-वि‍लगा जखनि मनोहर देखए लगल तँ बूझि‍ पड़लै जे प्रश्न भारी कहाँ अछि‍। पीसक हले-हल बनबैक जन्‍मभूमि‍ मातृभूमि‍ भेल, सेवाभूमि‍ कर्मभूमि‍ भेल। मातृभूमि‍ कर्मभूमि‍ चलए तेतबे वि‍चारैक अछि‍।
  नोकरी भेलाक पनरह बरख पछाति‍ मनोहरक माता-पि‍ता मरि‍ गेल छेलनि‍। अखनि धरि‍ मनोहर अठवारे गाम-अबै जाइ छल। गामक तसवीर तँ तेना भऽ नै सुधरल मुदा अपना घरसँ खा-पी कऽ बच्‍चा बी.ए. तक पढ़ि‍ सकैए। घंटा बि‍तैत-बि‍तैत डाक्‍टर ओइठाम पहुँच सकैए। तखनि गाम छोड़ब-तोड़ब नीक नै। जहि‍ना माता-पि‍ताक समए अबै जाइ छेलैं तहि‍ना अगि‍लो परि‍वार सेने रहब। यएह सोचि‍ मनोहर अपन परि‍वारकेँ गाममे रखलनि‍।
  जोडा बड़दक जोत परि‍वार सतदेवक छेलनि‍। ओना जोड़ा बड़दक जोतक अर्थ वि‍कृत भऽ गेल अछि‍। वि‍कृत ई भऽ गेल अछि‍ जे सए-सए बीघा जमीनबला खुट्टा उसरन कऽ लेलनि‍! तर्क देता ट्रेक्‍टर-थ्रेसरक मुदा अपने परदेशसँ अगहने-अगहन गाम पहुँचता। से नै, सतदेव मेहनती गि‍रहस्‍त छला। गि‍रहस्‍तीकेँ सभ रूप सजौने छला। कलमी-सरही आमक गाछी पाँच कट्ठा छन्‍हि‍हेँ। दू कट्ठा बँसवाड़ि‍, एक कट्ठा करजान, पाँच कट्ठा घराड़ीओ छन्‍हि‍हेँ। तीमन-तरकारीसँ लऽ कऽ वाड़ी-झाड़ी छन्‍हि‍हेँ। पानि‍क अपन बेवस्‍था केनहि छथि‍। जेहने सासुक चालि‍-चलनि‍ तेहने पुतोहु-सुनैनोक भऽ गेलनि‍। गि‍रहस्‍तीओ काज सतदेवकेँ बँटाएले जकाँ रहनि‍। अढ़ाइ बीघा बाधक खेती अपन रहनि‍। तीमन-तरकारी, वाड़ी-झाड़ी-फुलवाड़ीक भार पत्नीक रहनि‍। जे सुनैनाक हृदैक रूप बनि‍ गेलनि‍। मुदा सासु-ससुरकेँ परोछ भेने घरक सोल्हनी भार सुनैने उठा नेने छेली। सुनैनाक अभ्‍यन्‍तर कहनि‍ जे ऐ घरक सोल्‍हन्नी कर्ता-धर्ता अपने छी। तेकरा जौं अपना जकाँ नै रखि‍ बि‍नु आड़ि‍-मेड़क घर बना लेब तखनि किए कहै छि‍ऐ जे नारी शोषण होइए। की‍ एहेन नारी नै छथि‍ जे पुरुखसँ मालि‍स करबै छथि‍। मुदा से नै ई भेल गप-सप्‍प।
  जि‍ला कार्यालयमे की खाली सरकारीए काम-काज होइए आकि‍ जि‍ला भरि‍क कथा-कुटुमैती, गाए-बड़द महिंसक खरीद-बिकरी, राजनीति‍ कूटनीति‍, छलनीति‍, दुर्नित सभ कथुक जि‍ला छी। भलहिं कामकाजी लोक काजक औगताइमे तारि‍कोपर जेता मुदा पाछूसँ वारंट नेने औता। मुदा तेतबे तँ नै अछि‍, कचहरी जाइ छी, भरि‍ दि‍न केतए बैस समए गमाएब। तइसँ नीक किए ने पूर्बा हवाक गरपर बैस गाँजाक गंध पसारि‍ सभ गजेरीकेँ एकठाम समेटब नीक। एक चेहरा अनेक रूप दुनि‍याँक नव हाल भऽ गेल अछि‍। के अपराधी आ के अपराध रोकि‍नि‍हार। वि‍चि‍त्र स्‍थि‍ति‍ अछि‍। जौं दू-तीन-चारि‍क जोगकेँ खि‍चड़ी कहब तँ चाउर, दूध, चीनी, मसालाक जोग खीर केना भऽ गेल। जौं से नै चाउर-दालि‍-अल्‍लू-पानि‍क बीच चीनीओ दऽ दि‍ऐ तखनि की भेल। तँए सोझहे नून-चीनीक बात नै अछि‍।
  सिंचाइ वि‍भागक बड़ाबाबू छला जुगल कि‍शोर। आब सेवा ि‍नवृत्ति‍ भऽ गेला। इलाकाक एक्के जाति‍क नै अधि‍कांश जाति‍क पजि‍यारीक पेशा सेहो अपनौने। कार्यालय सभमे अहि‍ना होइ छै एक चि‍न्‍हारे भेने तीन दि‍नमे हजार चि‍न्‍हरबा भऽ जाइ छै। सरकारीए काजक भाषामे जुगल कि‍शोर नि‍पुण नै, घटकैतीक भाषाक सेहो पाकल पड़ोर छला। हुनके भाँजमे मनोहर पड़ि‍ गेला।
  जखने जानकी एगारहम बरख टपि‍ बारहममे पएर रखलक तखने सुनैना मनोहरकेँ जानकीक बि‍आहक भार सुमझा देलखि‍न। अखनि धरि‍ मनोहरकेँ कथा-कुटुमैतीक बोध नै। भाँज लगलनि‍ जे जुगल-कि‍शोरक हाथमे छपड़ि‍या पैकार जकाँ सएओ जोड़ा बड़द-गाए रहि‍ते अछि‍। जि‍ला कार्यालयमे मनोहरकेँ अपन पहि‍चान छेलनि‍। जइसँ काजक बोझो कम रहै छेलनि‍। एक दि‍न चारि‍ बजे छुट्टी होइते जुगल कि‍शोरसँ भेँट करैत अपन बात जानकी बि‍आहक रखलनि‍। जेना जुगल कि‍शोरकेँ जीएपर रखल रहनि‍ तहि‍ना मनोहरकेँ कहलखि‍न जे कृष्‍णकान्‍त बी.ए. पास कऽ नोकरी लेल बौआइए मुदा लेन-देन दुआरे काज नै भऽ पबै छै। से जौं अहाँ अपनेसँ जा कऽ कहि‍यनि‍ तँ ओहि‍ना माने बि‍नु लेन-देनेक काज भऽ जेतनि‍ आ अहूँकेँ बि‍आहमे लेन-देनक भार नै पड़त। मनोहरक मन मानि‍ गेलनि‍ जे एक परि‍वारकेँ ठाढ़ होइक प्रश्न छै से जौं कहलासँ भऽ जेतै तँ उचि‍त-उपकार दुनू भेल। अपनो काज ससरि‍ जाएत।
  बीचमे एकटा बाधा ठाढ़ भेल, ओ ई जे पहि‍ने नोकरी होइ आकि‍ बि‍आह। घटकैती भाषमे जुगल कि‍शोर कहलखि‍न-
मनोहर बाबू, अहूँ सभ दि‍न कागतेमे ओझराएल रहलौं, एतबो ने बुझै छि‍ऐ जे जइ घर बेटी जाएत तेकरा घरो ने छै। दू-चारि‍ मास कमा कऽ घर बनौत तखनि नि‍चेनसँ बि‍आह हेतै। अखनि एगारहे-बारहे बरखक बेटी अछि‍, आब कि‍ कोनो उ जुग-जमाना रहलै, आब तँ बीस-बाइसक चलनि‍ भऽ गेल अछि‍। निको अछि‍।
सोझमति‍या मनोहर जुगल कि‍शोरपर सोल्हनी बि‍सवास कऽ लेलनि‍। समए बि‍तैत रहल बि‍तैत रहल मनोहर नि‍चेन जे बीस-बाइस बरखक बीचक काज टरि‍ गेल।
  स्‍थायी रूपे जखनि कृष्‍णकान्‍त बेवस्‍थि‍त भेल तखनि जुगल कि‍शोर अपन बेटीक बि‍आह कृष्‍णकान्‍तसँ पाँच लाख नगद गनि‍ करा लेलनि‍। कृष्‍णकान्‍तो अपन पूर्व जन्‍मक कमाइ बुझलक। एक पट्टीमे नोकरी, दोसर पट्टीमे पाँच लाख संग कनि‍याँ। के हमरा सन भागमन्‍त हएत।
  जानकी जखनि बाइसम बरखमे पहुँचल, तखनि सुनैना अंति‍म वारनिंग मनोहरकेँ देलखि‍न। तखनि मनोहरकेँ चाँकि‍ जगलनि‍। धर्म-कर्म बूझि‍ मनोहर जुगल कि‍शोरक गाम पहुँचला। तीन साल पहि‍ने जुगल िकशोर सेवा-ि‍नवृत्त भेल रहथि‍। दरबज्‍जापर बैसल जुगल कि‍शोरक मन मनोहरकेँ कि‍छु मोट बुझहेलनि‍। मुदा अपन काज तँ पहाड़ी इलाकामे लोक गदहो चढ़ि‍ कऽ लइए। खैर, हमहूँ कोनो कुटुमैती करए थोड़े एलौं जे मान-रोख रखब। काजे एलौं काज करब जाएब तैबीच समैए कखनि बँचत जे पहुनाइ करब। बुढ़िओ बाघीन तँ फेर बाघीन छि‍ऐ कि‍ने। मनोहरकेँ देखि‍ते जुगल कि‍शोर चपाड़ा दैत अभि‍वादन केलकनि‍-
आउ-आउ मनोहरबाबू, आब तँ भेँटो दुर्लव। केम्‍हर-केम्‍हर...?”
मनोहर कहलकनि‍-
जानकी बाइस बरखक भऽ गेल, सएह काजे आएल छी।
अखनि धरि‍ मनोहरकेँ नै बूझल जे कृष्‍ण कान्‍तक बि‍आह जुगल कि‍शोरेक बेटीसँ भऽ गेलनि‍। मुदा ई दुनि‍याँक खेल छी जे दुनि‍याँमे रहि‍तो लोक दुनि‍याँकेँ नै जानि‍ पबैत अछि‍। जुगल कि‍शोरक मनमे भेलनि‍ जे मास दि‍न पहि‍ने काज भेल आ आइ ई ताना-मारए दरबज्‍जापर चलि‍ आएल। अपना सीमा कुकुरो बताह। जुगल कि‍शोर सोझहे कहलखि‍न-
ऐठामसँ चलि‍ जाउ, नै तँ पुलि‍सकेँ बजाएब!!”
  ओना जुगल कि‍शोरक बात मनोहरकेँ तेते कठानि‍ नै लगलनि‍ जेते लागक चाही। कि‍एक तँ अपन दरबज्‍जापर उचि‍त-अभ्‍यागत लेल पुलि‍स आनी, सएह तँ मि‍थि‍लाक दरबज्‍जा छी। मुदा पुलि‍स नाओं सुनि‍ मनोहर भरमे-सरमे घरमुहाँ भेला।
तही दि‍नसँ आॅफि‍सक काजमे उन्‍टा-फेड़‍ हुअ लगलनि‍। जइसँ पागल घोषि‍त कऽ देल गेला।
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