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Friday, October 18, 2013

(62) इमानदार घूसखोर

इमानदार घूसखोर

चुनमुन बाबूकेँ सभ जनैत, चाहे ओ आम आदमी होथि‍ वा कचहरीक वकील, मुंशी, कि‍रानी, चाहे इनटेलि‍जेन्‍स वि‍भागक अफसर होथि‍ वा प्रशासनि‍क, जे ओहन घूसखोर जि‍ला भरि‍मे कि‍यो नै छथि‍ मुदा ईहो सभ जनै छथि‍ जे जि‍नगीमे कहि‍यो अपन इमान नै डि‍गौलनि‍।
जि‍ला सत्र न्‍यायालयक प्रथम श्रेणीक जज चुनमुन बाबू छथि‍। अोना हुनकर असल नाओं सुरेन्‍द्र प्रसाद छियनि‍ मुदा दादीक पहि‍ल पोता रहने उपहार देल नाओं चुनमुन छियनि‍ जे पछाति‍ बाबू जोड़ा गेलनि‍। उर्फ कए कऽ अपनो चुनमुन बाबू लि‍खते छथि‍ जे नेमप्‍लेटमे सेहो छन्‍हि‍। ओना बहुतो, प्रेमचंद आ दि‍नकरजी सन भेला जि‍नकर असली नाओंसँ बेसी लोक उपनामेकेँ जनै छन्‍हि‍।
बच्‍चेसँ चुनमुन बाबू इमानदारीक ि‍नर्वहन करैत आएल छथि‍ जेकर फलाफल सेहो जीवि‍तेमे भेट रहल छन्‍हि‍। पढ़ै-लि‍खैमे एते इमानदार रहला जे कहि‍यो मौलि‍क रचना छोड़ि‍ नोट-फोंटक सहारा नै लेलनि‍। जइसँ सभ दि‍न नीक रि‍जल्‍ट होइत रहलनि‍। ओना सुभ्‍यस्‍त परि‍वार रहने कहि‍यो अर्थक अभाव सेहो नहि‍येँ भेलनि‍। मुदा अपनो पढ़ैमे एते इमानदारी रखै छला जे शि‍क्षकसँ परि‍वार धरि‍क नजरि‍मे रहला। एम.ए; एल.एल.बी. कए प्रथम श्रेणी जि‍ला सत्र न्‍यायाधीश बनला।
चारि‍ भाँइक बीच सए बीघासँ ऊपरे जमीन छन्‍हि‍ जइमे तीन भाँइ नोकरी करै छथि‍ आ एक भाँइ देवेन्‍द्र प्रसाद गि‍रहस्‍थी करै छन्‍हि‍‍। गि‍रहस्‍थीक अर्थ खाली खेतीए करब नै, बल्‍की‍ परि‍वारकेँ संचालि‍त करब सेहो होइत, जे छेलनि‍। नोकरिहरो भाँइ सभकेँ नै बूझि‍ पड़नि‍ जे खनदानी परि‍वारमे कनियोँ केतौ घून-घान आकि‍ दि‍वार-गराड़ लगल अछि‍। परि‍वारक ऐ काजमे चुनमुन बाबूक वि‍चार काज केलकनि‍। ओहए कहलखि‍न जे जखनि हम सभ तीनू भाँइ नोकरी करै छी तखनि खेत आ परि‍वार देवेन्‍द्रक भेलनि‍, जइ दि‍न हमसभ रि‍टायर भेलापर‍ आएब तइ दि‍न अगि‍ला वि‍चार करब। मनमे ईहो रहनि‍ जे जखने हम सभ खेत बाँटि‍ लेब तखने ढेर तरहक बि‍‍हंगरा उठत। एक तँ ओहि‍ना जमीन जाल छी तैपर भैयारीक तँ आरो महाजाल। जे सम्‍पति‍ आइ धरि‍ मान-प्रति‍ष्‍ठा बनल रहल अछि‍ वहए गाड़ा-घेघ बनि‍ सभटाकेँ धोइ-पोछि‍ एकबट्ट कऽ देत। जखनि जि‍नगीमे माने-प्रति‍ष्‍ठा नै तखनि जि‍नगीओ तँ एक्‍सपाइर डेटक दबाइसँ बेसी कि‍छु नै।
  एक तँ अोहुना समए ि‍नर्धारि‍त अछि‍ जे केते उमेरमे बेटाक बि‍आह आ केते उमेरमे बेटीक बि‍अाह करैक चाही, तहूमे देहक लक्षण आगूमे ढाढ़ भऽ जाइ छै। से सुरेन्‍द्रक पि‍ता गौड़ीनाथ सेहो केलनि‍। जखनि सुरेन्‍द्र प्रसाद बी.ए.मे पढ़ै छला तखने बि‍आह कऽ देलखि‍न। कहैले तँ ईहो अछि‍ जे जखनि पढ़ि‍-िलखि‍ अपना पएरपर ठाढ़ भऽ जाइ तखनि बि‍आह करैक चाही, मुदा जैठाम पएरपर ठाढ़ होइक बेवस्‍थे नै रहत तैठाम की‍ सभ अवि‍वाहि‍त बनि‍ बबाजीए भऽ जाए। कौलेजक अवस्‍थामे सुरेन्‍द्र प्रसाद रहथि‍ मुदा मि‍सि‍ओ भरि‍ मनमे नै उठलनि‍ जे अखनि बि‍आह अनुचि‍त हएत। साहि‍त्‍यसँ दि‍लचस्‍पी रहबे करनि‍ तहूमे मध्‍ययुगीन साहि‍त्‍यसँ बेसी रहलनि‍ तँए मनमे चप-चपि‍ए रहनि‍। पि‍तोक मनमे कहि‍यो दहेजक लोभ नै उठलनि‍ जे नीक शि‍क्षा पाबि‍ नीक नोकरी भेटलापर नीक दहेजो भेटै छै। सामान्‍य गि‍रहस्‍त परि‍वार जकाँ अपन दायि‍त्‍व बूझि‍ समैपर काज समेटि‍ लेलनि‍ किए मनमे उठि‍तनि‍ जे बेटाकेँ पढ़ैमे बाधा उपस्‍थि‍त हेतनि‍। तँए मन खुशीसँ खुशि‍आइते रहनि‍।
  एम.ए.क पहि‍ल सत्रमे जखनि सुरेन्‍द्र पढ़ै छल तखनि जौंआ बेटी भेल। नैहरेमे पत्नी रहथि‍न। ओना साले भरि‍पर दुरागमन भऽ गेल रहनि‍। जौंआ बेटी देखि‍ माएक मनमे तँ कनी सोगो पैसलनि‍ मुदा नानीक मनमे तेते खुशी रहनि‍ जे सोल्हो आना नाति‍ने पाछू बेहाल रहए लगली। खुशीक कारण रहनि‍ जे तेहेन जुग-जमाना भऽ गेल अछि‍ जे अनेरे लोक बेटाक आशा करैए, तइसँ नीक बेटीए। जौं बेटीकेँ नाति‍ नहि‍येँ देखत तैयो जौं दुनू बेटीक जि‍नगी-जान रहलै तँ कहि‍यो माएकेँ थोड़े दवाइ-दारू आकि‍ कपड़ा-लत्ताक दुख हुअ देत। अपनो पहि‍रन जौं दैत रहतै तैयो सभ दि‍न हराएले रहत। तहूमे तेहेन कपड़ा सभ बनि‍ रहल अछि‍ जे तीन साल तक नबे रहैए, आ चलत केते दि‍न तेकर कोनो ठीक छै। सुइटर बि‍नैक लूरि‍ सि‍खा देबै, भरि‍ बाँहि‍सँ लऽ कऽ अदहावाहिंक तेते दैत रहतै जे दस-दसटा साटि‍ कऽ पहि‍रत। की‍ करतै माघक जाड़। ओना सुरेन्‍द्रक माएक मनमे सेहो खुशीए रहनि‍ जे भगवान अपना कोखि‍मे बेटी नै देलनि‍ तँ की हेतै पोतीक कन्‍यादानक बाट तँ खुजि‍ए गेल। जे नारी एकोटा कन्‍यादान नै केलक ओ चाहे जे हुअए मुदा माएक एक सूत्रमे कम जरूर रहत।
  जि‍ला सत्र न्‍यायालयक न्‍यायाधीश बनि‍ जुआइन करए सुरेन्‍द्र प्रसाद आइ जेता। असीरवाद दैत माएओ आ पि‍तो कहलखि‍न-
बौआ, नम्‍हर काजक भार उठबए जेबह तँए नम्‍हर बनि‍ काज करिहऽ।
माता पि‍ताक असीरवाद सुनि‍ सुरेन्‍द्र कि‍छु नै बाजल मुदा मनमे एकटा प्रश्न घुरियाए लगलनि‍, जे माए बूझि‍ गेलखि‍न। तोसैत कहलखि‍न-
बौआ, सभ दि‍न एकार बनि‍ पढ़लह-लि‍खलह मुदा अपन परि‍वार अपने आगू नीक होइ छै तँए पत्नीओ आ चारू कनटि‍रबीओकेँ संगे नेने जाह।
  सोझहामे गौड़ीनाथकेँ देखैत तँए सुरेन्‍द्र कि‍छु बाजए नै चाहैत मुदा मन गुनगुनाइत जे माए बूझि‍ गेलखि‍न। बजली-
बौआ, अपन बच्‍चाकेँ अपने देख-रेखमे पढ़ाएब बेसी नीक होइ छै, सेहो हेतह, आइ-काल्हि‍ देखै छि‍ऐ दूधे लगसँ बच्‍चा हटि‍ जाइ छै। दोसर हमरा सबहक आशा केते दि‍न करै छह, सेहो सीखल नै रहतह तँ अगि‍लाकेँ कथी सि‍खेबहक। मनमे होइत हेतह जे पि‍ता की कहता मुदा नोकरीक अर्थ तँ ई नै ने होइ छै जे गामे छोड़ि‍ देब, परि‍वारे छोड़ि‍ देब। मौका-मुनासि‍ब अबैत-जाइत रहि‍हऽ। बेटा धन छिअ, तोरा माल-जाल जकाँ थोड़े डोरी बान्‍हि‍ रखल जाएत। ई होइत हेतह जे परि‍वार टूटि‍ जाएत, से भ्रम हेतह। भदवारि‍ मासमे हि‍मालयक पानि‍क मि‍लान समुद्रसँ भऽ जाइत अछि‍ जे अनदि‍ना माने आन मौसिममे धार कमजोर वा सुखने छूटि जाइत अछि‍ मुदा फेर भदवारि‍मे की देखै छहक। परि‍वार एक धार छी जेकर प्रवाह स्‍वच्‍छ पवि‍त्र बनि‍ अनवरत सामाजि‍क दि‍शामे बहैत रहए यएह ने भेल। छाती सक्कत कए कऽ घरसँ जाह।
  अखनि धरि‍ सुरेन्‍द्र प्रसाद छाती सक्कत करैक अर्थ खाली कहावते धरि‍ बुझै छल मुदा माएक असीरवादक शब्‍द मनमे औंढ़ मारलकै‍। छाती सक्कत करब बाता-बातीमे सक्कत करब आकि‍ काजमे सक्कत करब, वि‍चार सक्कत करब आकि‍ पवि‍त्र वि‍चार सक्कत करब, पवि‍त्र वि‍चार संग पवि‍त्र जि‍नगी सक्कत बना चलब आकि‍ सक्कत मनुख बनब। समुद्रक पानि‍ जकाँ जेते डुबकुनि‍याँ मारैत तेते अथाह दि‍स डुमल जाइत। अनासुरती मनमे उठलै‍, आएल शुभक लगनमा शुभे हे शुभे...। माएक शुभ बात सुनि‍ शुभेक्‍क्षु नजरि‍सँ दलदलाइत सुरेन्‍द्र बाजल-
माए, तोहर असीरवाद शि‍रोधार्य अछि‍। मुदा समस्‍यो तँ जि‍नगीक बाधक बनि‍ दानव जकाँ अबैत रहै छै।
  आेना सुरेन्‍द्र खुशीमे दहैल‍ गेल छल जइसँ ऐ वि‍चारपर नजरि‍ नै गेलै जे बड़का जंगलक कातमे पहि‍ने झाड़े-झूड़ रहै छै जइमे छोट-छोट जानवर बास करैए। तहि‍ना ने मनुक्‍खोक बोन छै जइमे पहि‍ने छोटका जीव-जन्‍तु रहै छै।
  चुपचाप भेल पि‍ताक मनमे नचैत जे जुड़शीतलक अछींजल जकाँ, घरसँ नि‍कलि‍ दोसराक सेवामे जा रहल अछि‍ की‍ ओकरा बसाैत आकि‍ उजाड़त। मुदा बि‍नु गहन लगने अनुमाने ने हएत।
  जहि‍ना कौलेजक पहि‍ल दि‍न, सासुरक पहि‍ल भेँट, दोस्‍तीक पहि‍ल मि‍लन भेने स्‍वत: हृदए डगमगाए लगैत, तहि‍ना सुरेन्‍द्रो प्रसादकेँ कार्यालय पहुँचि‍ते हुअ लगलनि‍। नव-नव संगी सभ आबि‍-आबि‍ भेँट करए लगलनि‍। संगीओ बेसी ओहन नै, जे समतूल हुअए। मुदा सुरेन्‍द्र अवाक। सोझहे नमस्‍कारक उत्तर नमस्‍कारमे दैत रहला। मात्र हाजरी बनाएब छेलनि‍ तँए काजक भारो बेसी नहि‍येँ। संगी सभ कमि‍ते असकरे रहि‍ गेला। मनमे परि‍वार आ दरमाहा, सोझहा-सोझही संगे उठलनि‍। दरमाहा तँ सीमि‍त परि‍वारक स्‍तरक हि‍साबसँ बनै छै, तहूमे जे देश जेहेन रहल ओकर ओइ तरहक बनै छै। पाँच गोटेक परि‍वारमे छह गोटे अखने छी। तहूमे चारि‍टा बेटीए अछि‍। समाजो तेहेन अछि‍ जे दहेजक सवारी कसबे करत। घर भाड़ा, बि‍जली-पानि‍, इन्‍कम टेक्‍स इत्‍यादि‍ कटि‍ए जाएत तखनि हाथमे केते आैत? महगी अपना चालि‍ए चलबे करै छै। तहूमे तेहेन लफड़ल डेग पकड़ि‍ नेने अछि‍ जे मध्‍यवर्गीय जीवन धारक मोनि‍ जकाँ चकभौंर लऽ रहल अछि‍। मन वि‍षसँ बि‍साइन हुअ लगलनि‍। ओना काज नै रहने कार्यालय समैसँ पहि‍ने छोड़ब पहि‍ल दि‍न उचि‍त नै हएत। कुरसीक मुरेड़ापर मुड़ी अँटकौने अकास दि‍स देखैक कोशि‍श करैत रहथि‍ मुदा कार्यालयक छतमे रोकाएल रहनि‍।
  चारि‍ बजे कार्यालयसँ नि‍कलि‍ सुरेन्‍द्र प्रसाद सोझहे डेरा दि‍स वि‍दा भेला। रंग-बि‍रंगक टीका-टि‍प्‍पणी रस्‍तामे होइत। कि‍छु निको कि‍छु अधलो। परदेशमे पति‍ कमाए एला, से खुशी पत्नी सुनैनाकेँ रहबे करनि‍। चारू बेटीक बीच सुनैना यक्षि‍णी जकाँ पति‍क आगमनक प्रति‍क्षा बेर-बेर नजरि‍ उठा-उठा करैत। ओसारपर पति‍केँ पहुँचि‍ते सुनैना मुस्‍की भरल नजरि‍क तीर छोड़लनि‍। बौड़ाएल मन सुरेन्‍द्र प्रसादक। जि‍नगीक समस्‍यासँ बौड़ाएल। ओना कि‍यो खुशीओसँ बौड़ाइत अछि‍ तँ कि‍यो दुखोसँ। मुदा सुरेन्‍द्र बौड़ाएल रहथि‍ अपन आगूक जि‍नगीक समस्‍यासँ। अपनाकेँ संयमि‍त करैत बेटीक हाथ पकड़ने कोठरी पहुँचला। पत्नी चाह अनलकनि। दुनू गोटे चाह पीऐत गप-सप्‍प शुरू केला। अपन आमदनी देखबैत सुरेन्‍द्र बजला-
अपन परि‍वार भेल जेकर आमदनी सत्तरि‍ हजार महि‍ना भेल, तइमे घर भाड़ा, इन्‍कम टैक्‍सक संग केतेको जमा करैक सूत्र लगल अछि‍। घर केना चलत से तँ अपने दुनू गोरे ने वि‍चारब?”
  जहि‍ना सुरेन्‍द्र प्रसाद अपन मोटा पत्नीपर पटकए चाहलनि‍ तहि‍ना पत्नी भोली-बौलक गेन जकाँ उनटबैत बजली-
देखू हमर कुल-खनदान एहेन नै रहल जे केकरो अधि‍कार छीनत। जे काज अहाँक छी ओ अहाँक भेल आ जे हमर छी ओ हमर भेल। छह मास पछाति‍ पेटक बच्‍चाक दुख माइए बुझैत अछि‍ बाप थोड़े बूझत। आकि‍ कहि‍यो कि‍छु कहबो केलौं।
दू-हत्‍थी बौल फेकैत सुरेन्‍द्र प्रसाद पुछलखिन-
कहलौं तँ बेस बात मुदा पढ़लौं-लि‍खलौं दुनू गोटे फुट-फुट इसकूलमे, सभ दि‍न रहलौं फुट-फुट मुदा धीया-पुता तँ सझि‍या भेल कि‍ने, तखनि देह छि‍पौने काज चलत?”
सुनैना अपनाकेँ कमजोर पबैत बजली-
अहाँक जे वि‍चार अछि‍ से बाजू जे अनुकूल हएत मानि‍ लेब जे नै हएत अोकरा तत्‍काल रखि‍ लेब।
एक गंभीर चि‍ंतक जकाँ सुरेन्‍द्र बजला-
जेते हमरा दरमाहा भेटत ओ अहाँ हाथमे दऽ देब। अपना वि‍चारे परि‍वार चलाएब।
  नोकरीकेँ जि‍नगीक धार बूझि‍ परि‍वारक सवारी नावपर चढ़ा भविस दि‍स बढ़ला। मनमे उठलनि‍ जे एक बेर पत्नीकेँ पूछि‍ लि‍यनि‍ जे केना घर चलाएब मुदा मनकेँ मोने रोकि‍ कहलकनि‍ जखनि कुल-खनदानक रक्षक छथि‍ तखनि कि‍छु बाजब उचि‍त नै हएत। अपना लेल सोचब नीक हएत। चलैत धारमे नावकेँ हवा-बि‍हाड़ि‍, पानि‍-पाथरसँ सामना करए पड़ै छै। जखने वेतनक भीतर परि‍वार चलत, तखने एक बान्‍हल परि‍वार जकाँ आगू बढ़ब। जहि‍ना समाज अपन रोग अपने अराधि‍ लेलक जइसँ सभ रोगा गेल तखनि अपन रोग के देखत। मुदा एहनो तँ रोग होइते अछि‍ जाधरि‍ दोसर नै बुझैत ताधरि‍ दोसरकेँ नै कहल जाइत। कमा कऽ परि‍वारमे आनब पत्नी देखबे करती, आमदपर आमद देखि‍ चस्‍कबे करती, जेते चस्‍कती तेते लोक देखबे करत। कोनो कि‍ केकरो आँखि‍ सीयल छै जे नै देखत। मुदा बेटा-बेटीक बि‍आह-दान -पढ़ा-लि‍खा सक्षम बना जि‍नगीमे उतारैक अवस्‍था धरि-‍ जौं नै कऽ लेब तखनि कोन मुहेँ समाजमे जीब। नीक हएत जे जहि‍ना होशि‍यार रोगी दबाइए दोकानपर दबाइ खा लइए आ घरपर अनबे नै करैए, तेहने जौं उपए होइ तँ नीक हएत। नजरि‍ काज दि‍स बढ़लनि‍। कोन एहेन कोर्ट-न्‍यायालय अछि‍ जइमे काजक बोझ नै पड़ल अछि‍। आनसँ भि‍न्न अपन पहिचान बनबैक प्रश्न अछि‍। मनक उत्साह जगलनि‍। कार्यालय संग डेरामे काज करब। काज बढ़ौने जौं कि‍छु हथियाइओ लेब तँ ओते अनुचि‍त नै हएत। जौं से नै करब तँ परि‍वार साधारण नै असाधारण रूपमे ठाढ़ भेल अछि‍। खेनाइ-पीनाइसँ लऽ कऽ पढ़ौनाइ-लि‍खौनाइ धरि‍ तँ बेटे-जकाँ हएत। पढ़ाइ समाप्‍त होइते वा होइपर रहि‍ते बि‍आहक भूत कपारपर चढ़ि‍ जाएत। ई काज केकर हेतै? तखनि? जाधरि‍ प्रति‍कूलकेँ अनुकूल बना नै चलल जाएत ताधरि‍ सड़क परहक गाड़ी जकाँ दुर्घटनाकेँ के रोकत। जहि‍ना ओकाइतसँ भारी ढेंगकेँ बाँसक जोगार लगा उनटा-पुनटा घुसकाैल जाइत अछि‍ तहि‍ना उनटबै-पुनटबैक जोगार करए पड़त। मुदा अनुचि‍त रूपमे? नहि‍! कदापि‍ नै!! तखनि? हँ तखनि अछि‍ जे अपन काज की अछि‍? यएह ने जे लोकक झगड़ाक मुकदमाक ि‍नर्णए करब। जेकर नोकरी करै छि‍ऐ ओकर काज अनकासँ बेसी करब। यएह जि‍नगीक पहि‍चान हएत कि‍ने। अनेरे किए एते मुकदमा कोर्टमे पड़ल अछि‍। महि‍नामे बीसटा मुकदमाक फैसला करब। जहि‍ना सभकेँ सभ ओझरबै पाछू लगल रहैत अछि‍ तहि‍ना ने कोटो-कचहरी भऽ गेल अछि‍। ओना काज करैक दि‍शा सभकेँ िनर्धारित अछि‍ तखनि किए ने अपन बाट पकड़ि‍ तेज गति‍‍ए चलब। संकल्‍पि‍त होइत मन ठमकलनि‍। केकर फैसला करैक अछि?‍ ओकरे ने जे अपन बात अपने नै बूझि‍ अनेरे ओझराइत आबि‍ गेल अछि‍। एकक ओझरीसँ दोसर ओझराएल अछि‍। जहि‍ना रग्‍गड़ करैत आबि‍ गेल अछि‍ तहि‍ना हमहूँ दू-चारि‍ रन्‍दा चला आरो चि‍क्कन कऽ देब। बीसटा केसक फैसला मासक काजक संग डेढ़ लाखक ऊपरी आमदनी सेहो करब अछि‍। दुनू पार्टीसँ पाइ लेबै। जेकरा पक्षमे हेतै ओ अपने भेल आ जेकरा वि‍पक्षमे हेतै ओकर घुमा देबै। केकरो संग अनुचि‍त नै करब। मुदा लोको तँ शेतानक चरखीए अछि‍, जे वि‍चारलौं से चलए देत कि‍ नै? किए ने चलए देत? चरखीकेँ चरखा बना घुमाएब तखनि अनेरे ने सभ सुधरि‍ जाएत। मुदा चरखीकेँ चरखा बनत केना? हँ किए ने बनत? जखने काजमे तेजी आनब तखने ने काज मुहथरि‍ लग पहुँचत। हँ मास-दू-मास फोंक जाएत मुदा तेसर मास अबैत-अबैत तँ गर पकड़ि‍ए लेत। जखने केसक बहस करा फैसला करैक स्‍थि‍ति‍मे आैत, तखने ने ससारैक गर भेटत। तीन-तीन दि‍नपर तारीख देबै अनेरे ने मासे ि‍दनमे ठहि‍या कऽ लि‍खाइ-फीस जमा करत।
  चुनमुन बाबूक दस बरख नोकरी पूरि‍‍ गेलनि‍। अनढड़न फुलवाड़ीक फूल जकाँ चारू बेटी खि‍लए लगलनि‍। तैपर अनढड़न भगवान तीनटा बेटी आ दूटा बेटा आरो देलकनि‍। मुदा पति‍-पत्नीक बीच सि‍नेहमे कमीक पेंपी पोनगए लगलनि‍। सुनैनाक मन कनैत जे भगवान तेते धीया-पुता दऽ देलनि‍ जे के केतए बौआएत तेकर ठीक नै। तेहेन जुग-जमाना भऽ गेल जे नि‍हत्‍था बाप-माए बेटीक पार-घाट केना लगौत। अपने (पति‍) कहि‍यो एक पाइ अनुचि‍त नै कमाइ छथि‍ की समाज हमरा छोड़ि‍ देत? बि‍नु दहेजक बि‍आह बेटी सबहक हएत? केतएसँ आैत? ओना पत्नीक मलि‍न चेहरा देखि चुनमुन बाबू परखैक परि‍यास करै छला मुदा लाख समस्‍याक बीच सुनैना पति‍ लग पत्नीए जकाँ रहै छेली। काजक भार पति‍पर छेलन्‍हि‍हेँ। बेसी समेओ ने भेटै छेलनि‍ जे बेसी बातो करि‍तथि‍।
  दोसर साँझ, चाह नेने सुनैना पति‍क हाथमे दैत आगूमे ठाढ़ भऽ गेली। जहि‍ना देवालयमे भक्‍त कि‍छु याचना करए ठाढ़ होइत तहि‍ना सुनैना भऽ गेली। सुरेन्‍द्रक मनमे मि‍सि‍ओ भरि‍ जि‍नगीमे प्रति‍कुलता नै। एक घोंट चाह पीब सुरेन्‍द्र पुछलखिन-
मन मन्‍हुआएल देखै छी?”
ढलान पाबि‍ जहि‍ना पानि‍ ढलकि‍ जाइत तहि‍ना ढलकैत सुनैना बजली-
एक तँ भगवान बेइमान भेला जे केकरो रोटीओपर ने नून केकरो बोरे-बोरे नून दइ छथि‍न। नअ-नअटा बाल-बच्‍चाक परि‍मार्जन करब नान्‍हि‍टा खेल छी।
सुनैनाक वि‍चार मुँहसँ नि‍कलबो नै कएल छेलनि‍ तइ बिच्‍चेमे सुरेन्‍द्र बजला-
खेल-खेल‍ खेलौं। कहि‍ चुप भऽ गेला। आँखि‍ उठा पत्नीक आँखि‍पर अँटकबए चाहै छला मुदा रोगाएल-सोगाएल-पीड़ाएल सुनैनाक आँखि‍मे सुखाइत जि‍नगीक बालुक बुरजा छोड़ि‍ आर कि‍छु ने देखि पड़ै छेलनि‍।
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