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Friday, October 18, 2013

(56) परदेशी बेटी

परदेशी बेटी

उबानि‍ होइते घटक काका दाँत पीसैत काकीपर बि‍गड़ैत घर छोड़ि‍ वि‍दा भेला। मनमे उठलनि‍ जे एहेन पड़ाइन पड़ा जाइ जे दोहरा कऽ ने घरक मुँह देखी आ ने घरेवालीक। मुदा ओहन क्रोधे आकि‍ हँसऽबे कि‍ जे दोसरपर नै बि‍साए। घरक बात (पति‍-पत्नीक बीचक) तँए अनका कहबो उचि‍त नै। दुनि‍याँमे केकरो कोइ नै कहै छै। भलहिं बि‍नु कहनौं दुनि‍याँ किए ने बुझैत होउ। मने मन घटक काकाकेँ पकि‍या ि‍नर्णए भऽ गेलनि‍। लोकोकेँ कोन मतलब जे बताह जकाँ अनेरो अनका देखि‍ हँसि‍ देब अाकि‍ बि‍नु मतल्‍बोक घंटा भरि‍ सोखर पसारि‍ देब। आन जकाँ नै जे आँगनसँ नि‍कलि‍ डेढ़ि‍योपर सँ पाछू घूमि‍-घूमि‍ देखैत, देखबो केना करि‍तथि‍? कोनो कि‍ अदी-गुदी वि‍चारक चोट लागल छन्‍हि‍‍, पुरुखे छि‍आ जे अखनो धरि‍ बरदास केने छथि‍ नै तँ मूसक दबाइ पीब नेने रहि‍तथि‍।
एक तँ ओहुना अखनि घटक काकाकेँ टोकैक लग्‍न नै, कारण लगनक समए नै छी, लगनक समैमे ने पति‍यानी लागल काज रहै छन्‍हि‍ कुसमैमे तँ दुनि‍याँक नि‍अमे छै जे अपनो लोक पुछैले तैयार नै होइत अछि‍, घटक काका तँ सहजे‍ वि‍दाइ लेनि‍हार छथि‍। बि‍नु रेटक आमदनी। जेहेन मुँह तेहने आमद। नै टोकैक ईहो कारण रहनि‍ जे मध-असरेसक गि‍रहस्‍ती  चि‍रहस्‍ती   बि‍गड़ैत घर छोड़ि‍ लैत, जेते समए लोक केकरोसँ गप करत तेते काल जौं देहे कुरि‍या लेत तँ ओइसँ बेसी नीक। भगवान केकरो अधला बना पठबै छथि‍न, भलहिं‍ं रोगे-बियाधि किए ने होउ। जौं सभ अधले रहैत तँ किए कि‍यो देह कुरियबैले सोनाक सि‍क्का बना-बना आगूमे रखैत। ओहि‍ना पैघ शैरीकार कहै छथि‍-
हौहटि‍मे मजा है कि‍ कलकलि‍ में है,
खुदा ने दि‍या खुजली, कुरि‍याने में मजा है।
खैर जे होउ। ओना किष्‍कारक समए रहने देवीओ देवता अखनि छुट्टी लऽ लेने छथि‍, चौड़चनक पछाति‍ ज्‍वाइन करता। जहि‍ना फुलही थारीमे जेते काल दही रहैत ओते बेसी कसाइन होइत, तहि‍ना घटक कक्काक मन कसाइन होइत जाइत रहनि‍। जहि‍ना भरल पेटक प्रेम गीतक स्‍वर आ जरल पेटक प्रेम गीतक स्‍वरमे मात्राक भेद होइत तहि‍ना घटक कक्काक मनमे उठैत रहनि‍ जे आइ धरि‍ कहि‍यो नै उठल रहनि‍। केना नै उठि‍तनि‍? सभ दि‍न दस गोटेक बीच हँसि‍-बाजि‍ समए खटि‍यबैत रहला आब जखनि शि‍व लि‍ंग, फूल जकाँ वा नारि‍यल-ताड़ जकाँ, फड़ैबला भेला तँ आनक कोन गप जे जाँघतर बसैवाली पत्नीओ दुतकारि‍ देलकनि‍। ई तँ हुनके चाबस्‍सी होन्हि‍ जे जहर-माहुरक कोन गप जे केकरो लग बजौ नै चाहै छथि‍। कसाइन बीच बि‍साइन घटक कक्काक मनमे उठलनि‍। जि‍नगी भरि‍ घरे बसबैक काज करैत एलौं मुदा...?
बेटा, प्रेमसँ चाहे बि‍गड़ि‍ कऽ आकि‍ पड़ा कऽ परदेश चलि‍ गेल तँ चलि‍ गेल। सबहक बेटी सासुर बास करैए, ओहो करह। मुदा पत्नी तँ पत्नी छी। जौं घरे नै तँ घरवाली की, आ घरेवाली नै तँ घर केहेन। भाड़ा घर जौं अपना घर सन होइतै तँ मूसे किए घरमे घर बनबैत। ओकरो तँ पानि‍ए पाथरसँ ने जान बँचबैक छै। मुदा किए? अपन घर कि‍यो अपन वि‍चार अपन आँट-पेट आ लम्‍बाइ-चौड़ाइ नापि‍ बनबैत तँए बेसी सुरक्षि‍त होइत। मुदा गणेशजी अपन वाहनकेँ ई बात ने किए बुझा देलखि‍न जे लोकक घरमे जे घर बनबै छेँ, से अपने जोकर बनबि‍हेँ। जइ भीतपर घर ठाढ़ अछि‍ ओकरे किए जंजल बना दइए। जखनि भीते-जंजल भऽ जाएत तखनि हथि‍याक झाँट केना बरदास करत। मुदा घर खसत घर बन्‍हनिहारकेँ मुदा ओ-मूस तँ बीलमे अन्नक ढेरीपर अरामसँ पड़ल रहत। अकाससँ धरतीपर घर खसत, मुदा ओ तँ पताल दि‍स बनौने अछि‍। किए ने ओकर जान बँचले रहतै। तैबीच घटक कक्काक मनमे एकटा घटकैती आबि‍ गेलनि‍। मन पड़ि‍ते मुस्‍की आबि‍ गेलनि‍। ठोर बरदास नै कऽ सकलनि‍। खापड़ि‍क तीसी जकाँ चनचना उठलनि‍। कहू जे बेंगबा सन छौड़ाकेँ इन्‍द्रक परी सन कनि‍याँ केकरा कि‍रतबे भेलै। मुदा कलयुगक उपकार हत्‍या बरबरि‍। जौं से नै तँ जौं ओकरा अपन उपकार मन पाड़ि‍ देबै तँ कि‍ ओ नै कहत जे पाँचो टूक कपड़ा आ दैछना कथीक लेने रहि‍ऐ। ओ खुशनामा देने रहए आकि‍ काज करैक बोइन। मन घूमि‍ पत्नीक ओइ बातपर आबि‍ अँटकि‍ गेलनि‍ जे कहू ई केहेन भेल जे मुँह फोड़ि दुसैत कहलनि‍ जे आगू-पाछू कि‍छु सोचै नै छी आ जहाँ कोसीकातक बकेनमा दूधक दही आ ति‍लकोरक तरुआ आगू पड़ैए आकि‍ बुधि‍ए बि‍गड़ि‍ जाइए। जइ परि‍वार लेल जि‍नगी भरि‍ झूठ-फूसि‍ बाजि‍, नीक-अधला काजक वि‍चार नै केलौं तइ परि‍वारमे एहेन गंजन हुअए तँ मनुख केना रहत? खौंझ आरो तेज भेलनि‍। ओ (पत्नी) रस्‍तामे रोड़ा अँटकौनि‍हार के? दस गाम घूमै छी, दस लोकमे रहै छी हम आ उपदेश देती ओ? जे सभ दि‍न जाँघक नि‍च्चाँ रहली, ओ छड़पि‍ कऽ छातीपर चढ़ि‍ मुक्का देखौती; एहेन पुरुष हम नै छी। जहि‍या जे हेतै से हेतै अखनि घरसँ नै पड़ाएब। भक्क खुगलनि‍ तँ देखलनि‍ जे कि‍लोमीटर हटि‍ दोसर टोल लग पहुँच‍‍ गेल छी। घूमि‍ कऽ आँगन केना जाएब? केतबो कि‍छु भेल तँ भेल मुदा पुरुष अपन पुरुखपाना केना छोड़ि‍ देत? नेरौल थूक केना चाटत? मुदा अपने फुरने घुमऽबो केहेन हएत? मरदक बात वाण समान होइए जे धनुषसँ नि‍कलि‍ गेल नि‍कलि‍ गेल। कहि‍ दुनू हाथक तरहत्थी माथपर लऽ बैस‍‍ रहला।
जहि‍ना कि‍सान, बि‍नु खुरपीओक गाछक जड़ि‍ लग बैस‍‍ चुटकीएसँ खढ़ उखाड़ि कमठौन करए लगैत, तहि‍ना घटक काका घुमैक ओरि‍यान सोचए लगला। मुदा लगले मन तुरुछए लगलनि‍। ई तँ धोबियो कुकुरसँ टपब हएत, जे ने घरक आ ने घाटक। जौं बलजोरी घरमे रहौ चाहब तँ पत्नी केते मोजर देती। मन घुमलनि‍। हमरो एते नै अगुतेबाक चाही छल। गल्‍ती अपनो भेल। एना जे लोक छोट-छोट बातपर घरसँ पड़ाएत तँ कहि‍यो कुकुर-बि‍लाइ जकाँ अपन घर हेतै। साँझू पहर, जखनि लोक बाध-बोनसँ अबैए तखनि केकरा घरमे ने हर-हर-खट-खट होइ छै, मुदा कहाँ कि‍यो हमरे जकाँ फूलि‍ कऽ पड़ा जाइए। जौं एक रत्ती दब-उनार बात पत्नी कहबे केलनि‍ तँ की‍ हेतै। कोनो कि‍ जड़ि‍ भीरा कऽ टि‍क काटि‍‍ लेलनि‍। अर्द्धांगि‍नी छथि‍, बाल-बच्‍चा आ परि‍वारपर जेते अधि‍कार पति‍क होइत तइसँ कम की पत्नीओक होइत अछि‍। बेटा-बेटी तँ दुनूक छी। ई तँ समैक दोख छी जे कखनो गरमी रौदमे गरमा दैत अछि‍ तँ कखनो ठंढाए दैत अछि‍। सौझुका झगड़ा राति‍ खसैत-खसैत मेटाइए जाइए कि‍ने। आकि‍ हमरे जकाँ दि‍न-राति‍ धेने रहत। भोर होइते दुनू परानी घर-अँगनाक काजमे लगि‍ जाइए। कहाँ एको मि‍सि‍आ मान-दोख मनमे रखैए। जहि‍ना डि‍क्‍शनरीमे नवका शब्‍द अबि‍तो अछि‍ आ जाइतो अछि‍ तहि‍ना ने घरोमे कि‍छु-ने-कि‍छु अबैत रहैए आ कि‍छु-ने-कि‍छु जाइत रहैए। मन आगू घुसकलनि‍। मन पड़लनि‍ बि‍आहक दि‍न? समाजक बीच सरियाती-बरियाती, तँ हमहीं ने हाथ पकड़ि‍ जि‍नगी भरि‍ संगे रहैक वादा केने रही, से की‍ भेल? जहि‍ना कटही गाड़ी कुगरक रस्‍तामे कनी दब-उनार भऽ उनैटि‍ए जाइए तँए कि‍ गाड़ीवान गाड़ी रखनाइए छोड़ि‍ देत। जौं छोड़ि‍ देत तँ आगू केना घुसकत? औगुताइमे एहेन भारी गल्‍ती नै करक चाही। कोन दुर्मति‍या चढ़ि‍ गेल जे एना केलौं। एको रत्ती उम्रोक लेहाज-वि‍चार केलौं? जुआन लोक जकाँ ि‍नर्णए केलौं। कहू जे आब हमर उमेर अछि‍ जे संगी छोड़ि‍ असगरे रहब। कोनो कि‍ संयासी छी जे दोसर नै सोहाएत। अपने दि‍न-राति‍ घीमे डूमल रहब मुदा दोसरकेँ कुत्ता जकाँ पचैए ने देब। भरि‍ दि‍न शनि‍याही गुड़-चाउर चि‍बबैत रहब आ अनका देखबे ने करब। मुदा केतौ जाएब तँ पेट संगे जाएत। पेटक आगि‍ जेहने परि‍वारमे तेहने तीर्थ-स्‍थानोमे जगि‍तै अछि‍। ओकरा तृप्‍ति‍ करब आवश्‍यक होइत। जौं से नै तँ भूखे भजन किए ने होइत। खाइले के देत? जौं देबो करत तँ एक मुट्ठी देत? एक दि‍न खेलासँ जि‍नगीक भूख मेटाएत? जौं से होइत तँ डि‍बि‍यो लऽ कऽ तकलापर एकोटा भि‍खमंगा नै भेटैत। मन घुमलनि‍। हारि‍ मानी झगड़ा फड़ियाए।
जहि‍ना बाढ़ि‍क तेसरा दि‍न पानि‍ ठाढ़ भऽ उनटा-पुनटा दि‍शा पकड़ए लगैत तहि‍ना घटक कक्काक मनमे सेहो भेलनि‍। अपन वि‍चारक अनुकूल बात केकरा अधला लगै छै। संयोगो नीक रहलनि‍। मुदा मनमे खरोँच लगलनि‍। समाजो तेहेन भऽ गेल अछि‍ जे केकरा के पूछत? जहि‍ना भोजक जएह बारीक मि‍ठाइ पड़सैए सएह माछो-मासु। कहू ई केहेन भेल? सभ तरहक पनचैती बड़के काका करता। जमीनोक पनचैती आ दुनू परानीओक झगड़ा हुनके चाही। जौं जमीनक पनचैती अमीन नै करत, अहि‍ना सभ गुणक आधारक से आदमी नै करत तँ खीर-खि‍चड़ीमे कोनो भेद नै रहत? ई सभ गप मनमे नचि‍ते रहनि‍, तखने सुनरलाल टोकलकनि‍-
भाय साहैब, अहीं ऐठाम जाइ छी?”
अहीं ऐठाम जाइ छी सुनि‍ घटक काका औना गेला। अपन ठर केतए अछि‍ जे जाएत। कि‍ कहबै, भरमे-सरम आँखि‍ मूिन लइ छी जे बूझत हवामे अलि‍सा गेल छथि‍। उत्तर नै पाबि‍ सुनरलाल दोहरा देलकनि‍-
भाय साहैब झखाएल छी, भक्क खोलू।
अकचकाइत घटक काका बजला-
नै, नै! कनी आँखि‍ लागि गेल। की‍ कहलह?”
सुनरलाल कहलकनि-
घरपर चलू। नि‍चेनसँ बुझा देब। रस्‍ता-पेराक गप नै छी।
एक तँ राकश दोसर नतल। घटक काका हरे-हरे कऽ घर दि‍स वि‍दा भेला। मनमे उठलनि‍ जे कोनो वि‍चार दोहराइओ कऽ होइत अछि‍, किए ने दुनू परानी मि‍लि‍ फेरसँ वि‍चारि‍ लेब। घर दि‍स वि‍दा होइते घटक काका सुन्‍दरलालकेँ कहलखिन-
गपो शुरू करह। जेते भेल रहत ओते तँ काजे ने भेल रहत?”
छुब्‍ध होइत सुनरलाल कहलकनि-
देखि‍औ भाय, बि‍अाह भेल केकरो आ जहलमे अछि‍ हमर बेटा।
अकचकाइत घटक भाय पुछलखिन-
से की, से केना?”
मने-मन महावीरजी केँ गोड़ लगलनि‍। नि‍साँस छोड़ैत, सोचए लगला जे बाप रे एकटा काजमे जौं एना भेल, हम तँ जि‍नगी भरि‍ इएह केलौं। खुनी केसमे बेसी दि‍नक सजा होइ छै। मुदा खुदरो-खुदरी केश मि‍ला तँ ओहूसँ बेसियाइए जाइ छै। हे भगवान रच्‍छ रखलह। आबो छोड़ि‍ देबाक चाही। मुदा जइ इंजीनि‍यरकेँ जइ मशीनक बोध भऽ गेल अछि‍, जौं मशीनक तकनीक बदलि‍ जाएत तखनि की हएत? दोसर काजक लूरि कहि‍या भेल जे करब। हे भगवान जनि‍हऽ तूँ।
सुनरलाल कहए लगलनि‍-
भैया देखि‍यौ, हमरे बेटा फुलबाक बि‍आह बंगलोरमे करा देलकै। ओहन-ओहनकेँ गाममे के पुछै छै। मुदा ट्रन्‍सपोर्टमे नोकरी भेने दि‍न-दुनि‍याँ बदलि‍ गेलै। भषो सीखि‍ लेलक। अलगर्जा कमाइ हुअ लगलै। बी.ए. पास लड़की संग बि‍आह करा देलकै।
घटक काका पुछलखिन-
बी.ए. पास लड़की गछलकै केना?”
सुनरलाल कहलकनि-
केहेन गप करै छी। जखने लोक कमाए-खटाए लगैए तखने ने सर्टिफि‍केटक ओरि‍यान करए लगैए। एम.ए. पासक सर्टिफि‍केट कीनि‍ लेने अछि‍।
घटक काका पुछलखिन-
लड़कीबला केतए कए छि‍ऐ?”
सुनरलाल कहलकनि-
नवटोलीक छि‍ऐ। तीस-पैंतीस बरख पहि‍ने गामसँ पड़ा कऽ गेल। नोकरी करए लगल। ओतै परि‍वारो रखैए, घरो-दुआर बना लेलक। अपन इलाकाक जाति‍ बूझि‍ कुटुमैती कऽ लेलक।
घटक काका पुछलखिन-
आब की भेल?”
सुनरलाल कहलकनि-
बि‍आहक बाद लड़की जोर केलक जे गाम जाएब। एबो कएल। मुदा जहि‍ना पढ़ल सुग्‍गा बौक होइत तहि‍ना वेचारीकेँ भऽ गेलै। पनरहे दि‍नमे नाकोदम भऽ गेलै। जहि‍ना सासु अल्हरि‍ कहए लगलै तहि‍ना ससुरो माथा पीटए लगलै। सर-समाजक तँ चर्चे कोन? ने भाषाक ताल-मेल बैसै आ ने खाइ-पि‍ऐक वस्‍तुक।
घटक काका टोकलखिन-
जा, ई तँ भारी जुलुम भेल! तखनि की भेलै?”
सुनरलाल कहलकनि-
लड़की पड़ा कऽ दरभंगामे गाड़ी पकड़ि‍ बंगलोर चलि‍ गेल। हमरा बेटापर केश कऽ देलक। जेलमे पड़ल अछि‍।
डेढ़ि‍यापर अबि‍ते घटक काका बजला-
एहेन खच्‍चरपन्नी गाममे चलतै। अच्‍छा कनी ओहू पार्टीक बात बूझि‍ लेब तखनि कहबह। अखैन जाह, कनी हमहूँ औगुताएले छी।
दरबज्‍जापर गल-गूल सुनि‍ रेखा आँगनसँ आबि‍, खड़िहाँनक मेह जकाँ बीचमे ठाढ़ भऽ सोचए लगली जे केहेन पुरुख छथि‍ जे थूक फेक‍ पड़ाएल रहथि‍ जे घूमि‍ कऽ ऐ घरक मुँह नै देखब, से सालक कोन गप जे दि‍नो भरि‍ नै नि‍माहि‍ सकला। मुदा मन ठमकलनि‍। सप्‍पत-कि‍रि‍या लोककेँ थोड़े टि‍क पकड़ि‍ उखाड़ै छै, जौं से उखाड़ि‍तै तँ भरि‍ दि‍न लोक किए सभ बातमे जय गंगाजी आकि‍ माटि‍ उठा-उठा बजैए‍। जहि‍ना लोक भात-रोटी खाइए तहि‍ना ने सप्‍पतो-कि‍रि‍या खाइक वस्‍तु भेल। खेलक पचलै, फेर खेलक फेर पचलै। रसे-रसे एहेन पचान पचि‍ जाइ छै जेहेन झूठ-सच्‍चमे पचल अछि‍ सच्‍च–झूठमे। जौं तुकबन्‍दी करैक लूरि‍ भऽ जाए तँ कवि‍, शायर बनबे करब आ जौं झूठ-सच्‍च पचबैक लूरि‍ भऽ गेल तँ वक्‍ताकेँ के कहए सेसर अनुभवी वक्‍ता बनबे करब। तहि‍ना तँ हि‍नको (पति‍क) जि‍नगी तेहने रहल छन्‍हि‍। तहूमे समाज तेहेन लाइसेंस दऽ देने छन्‍हि‍ जे साले-साल थोड़े रि‍नुअल करबए पड़तनि‍, ता-जि‍नगी लेल बनि‍ गेल छन्‍हि‍। आँखि‍ उठा घटक काकापर देलनि‍ तँ देखलनि‍ जे मुँह धुआँ केने लटकौने छथि‍ आ जहि‍ना कोयलाक धुआँमे चमकैत बि‍जली बनैत तहि‍ना उपदेश झाड़ि‍ रहल छथि‍। मन रोषा गेलनि‍। घरे परि‍वारक लोक किए ने होथि‍ मुदा गलत गलत छी तहि‍ना सहीओ तँ सही छीहे। गल्‍तीक कोनो पारावार छै? रावण जकाँ लाख-सबा लाख धि‍या-पुता जहि‍ना त्रेतामे छेलै, जे घटि‍ कऽ द्वापरमे सए-सैंकड़ापर चलि‍ एलै, तहि‍ना ने अखनो अछि‍। तहूमे कलयुग छी। पापेक युग। देवतो सभ पड़ा कऽ उनीकुटी चलि‍ गेल छथि‍। जाए तँ चाहलनि‍ समुद्र दि‍स मुदा भोर होइते लाजे सभ रस्‍तेमे रहि‍ गेला। रोषाएल रेखा झपटि‍ कऽ बजली-
बौआ, अहीं सभ ने सर-समाज छी। जेहने समाज रहैए तेहने लोक काजो-उदेम करैए।
रेखाक बात सुनि‍ सुनरलालक मनमे पंचक एहसास भेलै। पंचक एहसास होइते अपन बात बि‍सरि‍ गेल। बि‍सरि‍ गेल बेटाक जहलक उपए। दमकलक चक्का जकाँ पहि‍याक रूप बदलि‍ एक सुरे मुड़ी डोलबैत बाजल-
हँ, से तँ छीहे। केकरो कटने समाज कटै छै। तेहेन लस्‍सा बनल छै जे केतबो कटतै तैयो सटि‍ते रहतै।
नइ बुझलौं अहाँक बात?” रेखा पुछलखिन।
जहि‍ना नम्‍हर नागड़ि नम्‍हर जानवरक पहि‍चान छी तहि‍ना ने काजक नागड़ि‍ मनुखोक होइ छै। जौं से नै तँ रावणसँ पैघ आसन हनुमान कथीक बनौलनि‍। ओही नागड़ि‍क बले ने सौंसे लंका जरा देलनि‍ आ अपना कि‍छु ने भेलनि‍। बूझल-बि‍नु-बूझल दुनि‍याँमे केहेन हएत जे नै हएत। कोनो प्रश्नक उत्तर दुनूक एक भऽ सकैए। मुदा होइ छै। बुझि‍नि‍हार संग बुझि‍नि‍हार रहैत तँ बि‍नु बुझि‍नि‍हारोक संग तँ बि‍नु बुझि‍नि‍हार हेबे करतै। जइ काजमे सुनरलाल अपने ओझराएल छल तही काजक ओझरी छोड़बैक भार लैत बाजल-
भौजी, अहाँ-हमरामे कोन भेद अछि‍। नीक-अधला सभ गप तँ दिअर-भौजाइमे होइते अछि‍। से कि‍ कोनो आइए अछि‍ आकि‍ अदौसँ आबि‍ रहल अछि‍। देखि‍यौ, जहि‍ना करोटन फूलक पत्ता-पत्तामे गाछ पैदा करैक शक्‍ति‍ अछि‍, तहि‍ना ने समाजोकेँ बनबै-मेटबैक दुनू शक्‍ति‍ छै।
सुनरलालक वि‍चारमे सूर-मे-सूर मि‍लबैत रेखा बजली-
बौआ, पहि‍ने कनी भैयाकेँ बुझा दि‍अनु जे रूसि‍ कऽ जे भगला से कोन अनचि‍त बात कहलि‍यनि‍।
नम्‍हर झगड़ा देखि‍ सुनरलालकेँ नम्‍हर पंचक एहसास भेल। जहि‍ना नम्‍हर लीब‍ जाइत, तहि‍ना सुनरलाल लीबैत बाजल-
भौजी, केना कहबनि‍ हम। सँए-बहुक झगड़ामे लबड़े टा पड़ैए। अहाँकेँ कहलौं से तँ भाइओ-साहैब सुनबे केलनि‍।
जहि‍ना एक चुरुक जलसँ सौंसे घरक वस्‍तु पवि‍त्र बनि‍ जाइत तहि‍ना घटक काका अपन गनजन सम्‍हारैत बजला-
हौ सुनरलाल, जहि‍ना तूँ छोट भाए भेलह तहि‍ना ओहो घरेवाली भेली। तँए बजैमे थोड़े कोनो धड़ी-धोखा हएत। जुआनमे मौगी घरसँ पड़ाइत अछि‍ आ उमेर बढ़ने पुरुख। तँ तोहीं कहऽ जे कोन गल्‍ती केलौं।
मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
से के कहैए जे अहाँ अधला केलौं।
पाशा बदलैत देखि‍ रेखा बजली-
बौआ, नौंए-कौंए कऽ भगवान एकटा बेटा देलनि‍। अपने दुनू परानी ने सोचब जे केहेन पुतोहु एने घरक गाड़ी ससरत। सि‍नेमा-नाटक जकाँ थोड़े मनुखक जि‍नगी क्षणे-क्षण बदलि‍ सकैए आकि‍ क्षणे-क्षण आगू-पाछू भऽ सकैए।
रेखाक बात सुनि‍, मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
हँ, से तँ होइते छै। अहीं कहू भौजी, केकरा चलैत हमहीं एते तबाह छी। उहए छौड़ा माने हमरे बेटा एहेन कि‍रदानी किए केलक। जहि‍ना बि‍आह भेने अनेरे लोक घटक बनि‍ जाइए तहि‍ना किए बनल। नै बनल तँ जहलमे किए अछि‍?
रेखा टोकलखिन-
अहाँ अपनापर नै लि‍औ। बेटा केलहा काजक दोखी बाप नै होइए मुदा माए-बाप...। काल्हि‍ भऽ कऽ जे कोनो दोख लगा बेटाकेँ कहबै तँ ओ नै मुँह दुसैत कहत जे केकर केलहा छि‍ऐ। जहि‍ना अपन बेटीकेँ पोसि‍-पािल बि‍आह करै छि‍ऐ तहि‍ना ने सभ करैए। मुदा घरक मि‍लानी जौं नै करबै तखनि पढ़ल सुग्‍गा बौक नै हेतै।
पत्नीक बात सुनि‍ घटक काका सहमला। पाछू घूमि‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे केते घूर-बहूर काज भेल अछि‍। र्इहो हएत। यएह ने दस गोटेमे बजलौं। कोनो कि‍ इएह टा बात बजलौं। सदिकाल तँ एहेन-एहेन बात चलि‍ते रहैए। बड़ हएत तँ बाजब जे पत्नीक वि‍चार नै भेलनि‍। तहूमे के एहेन छथि‍ जे पत्नीक बात काटि‍ सकै छथि‍।
मन झि‍लहोरि‍ खेलाए लगलनि‍। जहि‍ना पघि‍लल कटहर गाछसँ खसि‍ते छँहोछि‍त भऽ छिड़िया जाइत तहि‍ना घटक कक्काक मन छँहोछि‍त भऽ छिड़िया गेलनि‍।
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