Pages

Friday, October 18, 2013

(55) कर्ज

कर्ज

जमीन नि‍लामीक नोटि‍श पाबि‍ बरिसलालक सभ आशा ओहि‍ना झड़ए लगल जहि‍ना वसन्‍तसँ पूर्व गाछक पतझर होइत वा फलसँ पहि‍ने फूल झड़ए लगैत। हलसैत जि‍नगीक आशा देखि‍ बरिसलाल खेती लेल, बैंकसँ कर्ज लऽ बोरि‍ंग-दमकल करौलक। मुदा समैपर कर्ज अदा नै कए पाबि‍, जइले कर्ज लेलक सएह हाथसँ नि‍कलैत देखि‍ सोगसँ सोगाएल अखड़े चौकीपर पेटकान दऽ मने-मन सोचैत जे की करैत की भेल। साैनक मेघ जकाँ दुनू आँखि‍ नोरसँ ढबढबाएल।
बीसम शताब्‍दीक आठम दशकमे हरि‍त-क्रान्‍ति‍क हवा घुसकैत-घुसकैत गाम धरि‍ पहुँचल। नव हवाक सुगंध नाके-नाक खेत-खड़िहाँनमे पहुँचल। गामक कि‍सानक सीमांकन शुरू भेल। ओना सीमांक नाम-मात्रेक भेल मुदा भेल तँ। नाम-मात्र एे लेल जे सैद्धान्‍ति‍क रूपमे तँ सीमांकनक रूप रेखाा तैयार भेल मुदा जमीनक ओझरी कँटहा बाँस जकाँ ओझराएल। कड़चीसँ बेसी काँट। एक-एक कड़चीमे सएओ काँट। सोरगर-मोटगर पाकल देखि‍ भलहिं‍ं आरीसँ जड़ि‍ काटि‍ दि‍यौ मुदा झोझसँ नि‍कालब तँ असान नै। जइसँ बेवहारि‍क पक्ष कमजोर पड़ल।
चारि श्रेणीक अन्‍तर्गत कि‍सानकेँ रखल गेलनि‍। ढाइ एकड़सँ नि‍च्चाँ एक श्रेणी, चारि‍ एकड़सँ नि‍च्चाँ दोसर श्रेणी, दससँ नि‍च्चाँ तेसर आ तइसँ ऊपर चारि‍म। नि‍चला कि‍सान लेल सरकारी खजाना खूगल। रंग-रंगक प्रोत्‍साहनक घोषणा भेल। सरकारी घोषणा, तँए सभले भेल। मुदा बैंकक माध्‍यमसँ भेटत। जइ माध्‍यमसँ भेटत सएह नगण्‍य। एक दि‍स फौज जकाँ कि‍सान दोसर दि‍स जैठामसँ भेटत, सएह नै। मुदा तैयो गोटि‍ पंगरा तँ छेलैहे। सरकारी सुवि‍धा सब्‍सि‍डीक रूपमे भेटत। तेकर कार्यालय भि‍न्न बनल। कि‍सानक बीच प्रोत्‍साहनक घोषणासँ नव जागरणक संचार भेल। गाम-गाममे भी.एल. डब्‍लूक माध्‍यमसँ काजक सूत्र तैयार भेल। आने कि‍सान जकाँ पाँचम कि‍सान बरिसलालोक डेग बढ़ल। एक-ति‍हाइ सब्‍सि‍डी सुनि‍ केना ने बढ़ैत। जखने कि‍सानक हाथ पानि‍ आैत तखने चौमसि‍आ खेती बारहमसि‍आ बनि‍ जाएत। जखने बारहमसि‍आ बनत तखने ने कि‍सान डारि‍-डारि‍ झूला लगा बरहमासा गाैत। नै तँ छह मासे, चौमासे ने गाैत। जे चौमास कि‍सानक बखारी छी, तेहीमे ने भाँग-धुथुर उपजैए!
वस्‍तुगत काज तँ नै मुदा चौरीसँ चौमास धरि‍क, चारि‍ गुणा उपजाक नक्‍शा तँ कि‍सानक मनमे बनबे कएल। बीघा-एकड़क हि‍साब भलहिं‍ं अखनो धरि‍ नै फड़ियाएल मुदा-एकड़-हेक्‍टेयर तँ आबि‍ए गेल। कि‍छु एनए कि‍छु ओनए कऽ कि‍सान हि‍साब तँ बैसाइए लेलक।
अखनि धरि‍क जे छोट आ मध्‍यम कि‍सान महाजनीक कर्जमे डूमल छल ओइमे पूजीपति‍क प्रवेशक दुआर खूगल। कम सूदि‍क बात तँ आएल मुदा छह मास पछाति‍ सूदि‍-मूरि‍ बनि‍ जाइत से एबे ने कएल। अखनि धरि‍ सूदि‍क-सूदि‍ प्रथा नै छल से आएल। भलहिं‍ं केतौ महाजन सप्पत खा केकरो घराड़ी लऽ लेने होइ आकि‍ केतौ सप्‍पत खा कर्जा डूमल होइ, ई अलग बात। आजुक दहेज ओते भारी नै छल जेते माए-बापक सराध। ओना दहेजोक जड़ि‍ मजगूत बनि‍ रहल छल, कि‍एक तँ शहरक आमदनी गाम दि‍स आबए लगल छल।
गाममे छोट -सीमान्‍त-माध्‍यम- पैघ लगा कि‍सानोक संख्‍या बेसी मुदा बोनि‍हारक संख्‍यासँ कम अछि‍। ओना सभ गामक रूपो-रेखा एक रंग नहि‍येँ अछि‍। कोनो गाम एहेन जइमे पाँच प्रति‍शतसँ कम जनसंख्‍या नवे-पनचानबे प्रति‍शत जमीन पकड़ने, तँ कोनो गाम एहेन जइमे दस पनरह-प्रति‍शतक अंतर। एहनो कि‍सान जि‍नका अपन जमीनक अता-पता नै बूझल तँ एहनो कि‍सान जे अपने सबतूर मि‍लि‍ खेती करैत। तइ संग एहनो जे खेतक आड़ि‍पर पहुँच‍‍ जूति‍-भाँति‍ तँ लगबैत मुदा अपने हाथे कि‍छु नै करैत। गाछी-खरहोरि‍, बँसवाड़ि‍, घराड़ी लगा बरिसलालकेँ पाँच बीघा जमीन। दू बीघा बेख-बुनि‍यादि‍मे फँसल बाँकी तीन बीघा जोतसीम। एकटा बड़द रखने। सफटैती कऽ खेती करैत। ओहू तीन बीघा जोतसीम जमीनमे तीन मेल। पनरह कट्ठा चौरीमे मलगुजारीक संग लगतो साले-साल डुमैत। मुदा छोड़िओ केना देत, आखि‍र खेत तँ खेत छी। रौदी भेने ओहीमे ने उपजा होइ छै। बाँकी सवा दू बीघा मध्‍यमसँ भीठ धरि‍। दसो कट्ठा भीठमे मरूआ, भदै-गदैरक संग कुरथी-तेबखा होइत। गहुमक खेती तँ आबि‍ गेल मुदा खेती लेल पानि‍ चाही। पटबैक साधन पोखरि‍, जइसँ करीनसँ कि‍छु अगल-बगलक खेती होइत। लोकक बीच ने पढ़बै-लि‍खबैक जि‍ज्ञासा रहै आ ने सुवि‍धा। गनल-गूथल वि‍द्यालय-महावि‍द्यालय। बरिसलालो दुनू बेटाकेँ गामक स्‍कूल धरि‍ पढ़ा‍ खेतीए काजमे लगौने। मि‍थि‍लाक कि‍सान खेतक ओहन प्रेमी बनल रहला जेहेन पति‍व्रता नारी जे बाल वि‍धव होइतो प्रति‍ष्‍ठाकेँ कमलक माला बना गरदनि‍मे लटका हँसि‍ रहली अछि! तहि‍ना कि‍सानो! जौं से नै रहल छथि‍ तँ भागि‍-पड़ा अर्थशास्‍त्री बनि‍ किए अपन खेत-पथारकेँ सम्‍पति‍ नै बूझि‍ प्रति‍ष्‍ठाक वस्‍तु बूझि‍ रहल छथि‍? की ओहि‍ना खेतीकेँ उत्तम आ नोकरीकेँ मध्‍यमक वि‍चार देलनि‍। जौं एकरा मुहावरा-कहावत बना देखब तँ मिथि‍लाक चि‍न्‍तनधारा धरि‍ नै पहुँच‍‍ पाएब! जैठाम खेतकेँ अपन अधि‍कारक वस्‍तु बूझि‍ अपना हाथक हथि‍हार बना अपन स्‍वतंत्रताकेँ अक्षुण्‍य रखैक वि‍चार सेहो देलनि‍। ई तँ अपन-अपन वि‍चार होइ छै जे कि‍यो हथि‍यारकेँ बम-बारूद बुझैत तँ कि‍यो हाथक यार माने प्रेमी बूझि‍ वि‍चारक बाट बनबैक वि‍चार बेक्‍त करैत। तहि‍ना अस्‍त्र–शस्‍त्र सेहो अछि‍।
मध्‍यम कि‍सान वा लघु कि‍सानक जीबैक जि‍नगी ब्‍लौटि‍ंग पेपर सदृश बनि‍ गेल छन्‍हि‍ जेकरामे लालो रोशनाइ सोंखैक शक्‍ति‍ छै आ करि‍यो रोशनाइक। बाढ़ि‍-रौदी एकैसम शताब्‍दीक ऊपज नै अदौसँ रहल अछि‍। भलहिं‍ं कहि‍ सकै छी जे धार-धूड़क बान्‍ह-छान्‍ह दुआरे हुअ लगल अछि‍, भऽ सकै छै केतौ-होइत हेतै, मुदा प्रश्न धारेक पानि‍क नै अछि‍। तहि‍ना रौदीओ रहल अछि‍। धारोक कटनी-खोंटनी कम नै अछि। मि‍थि‍लांचलमे कोसी-कमला तेखार कऽ दुब्‍बरसँ धोधि‍गर धरि‍ अछि‍। पानि‍क एक साधन भेल, दोसर बर्खा भेल। ओहन-ओहन बर्खा होइत रहल अछि‍ जे पनरह दि‍न हथि‍याक बर्खाक ओरि‍यान कऽ कऽ पूर्वज रखै छला। हथि‍या मात्र एक नै जेकरा बर्खा ऋृतुक अंति‍म नक्षत्र कहि‍ टारि‍ देब। ओना पानि‍क कोनो ठेकान नै, माघोमे पाथर खसि‍ उपजल उपजाकेँ नाश करैत रहल अछि‍। अंति‍मक जनम ताधरि‍ नै होइत जाधरि‍ आदि‍ नै होइत बर्खा ऋृतुक आदि‍ आद्रा छी। तँए आदि‍ आद्रा अंत हस्‍त ई भेल बर्खाक आँट-पेट। पूर्वज सभ स्‍पष्‍ट वि‍चार देने छथि‍ जे बर्खाक कोनो बि‍सवास नै, केते हएत। १९७१ ई.मे बंगला देशक लड़ाइक लगभग सालो भरि‍ बर्खा होइते रहल, ओहन-ओहन बर्खा होइत रहल अछि‍ जइमे सएक-सए घर खसैत रहल अछि‍। घरमे दबल-बाल-वृद्ध, धन-सम्‍पति‍ नष्‍ट होइत रहल अछि‍ मुदा तैयो ब्‍लौटि‍ंग पेपर जकाँ सोंखि किए जीबैक बाट धेने आबि‍ रहल अछि‍। दुनि‍याँमे ने साधकक कमी आ ने साधना भूमि‍क, मुदा मि‍थि‍लांचल श्रेष्‍ठ किए? केतौक जाड़क साधना तँ केतौक तापक तप, जइमे तपि‍ तपस्‍या करैत, तँ केतौ पानि‍क सौभरी ऋृषि‍ बनि‍ करैत। मुदा मि‍थि‍लांचल साधनाक फुलवाड़ी लगा रखने अछि‍। ओइ फुलवाड़ीक फूल सजबै छेली सीता।
ने मि‍थि‍लाक भूमि‍ बदलल, आ ने बदलल ऋृतु ऋृतुराज, बदलि‍ रहल अछि‍ खाली बोतलक रस। घरक समस्‍या कहाँ? समस्‍या तँ तखनि उठैत जखनि रहैक घरसँ घरभाड़ा असुलैक ि‍वचार जगैत। गाछक नि‍च्चाँ सात-हाथ नौ हाथक घरमे जीवन-यापन कऽ वेद-पुराण सि‍रजलनि‍। की दुनि‍याँक देखि‍नि‍हार मि‍ि‍थलांचल छोड़ि‍ देखि‍ रहला अछि‍, जौं से नै तँ समस्‍याकेँ कोन रूपे देखलनि‍। यएह ने सरकारी योजना जहि‍ना कागतपर औषधालय बना साले-साल मरम्‍मतक नामपर योजना लूटाइत रहैत आ पान सालक बाद माटि‍पर खसा मलबा हटबैक खर्च होइत। खेतसँ उपजल खढ़, बाँस साबेक घर बना समस्‍याक समाधान करै छला। ओ सभ अपन वि‍चारकेँ स्‍वतंत्र रखि‍ स्‍वतंत्र जीवन बेतीत करै छला। पढ़ै-लि‍खैक ओते समस्‍या नै, जेहेन जि‍नगी रहत तेतबे बुधि‍क ने जरूरति। बेसी भेलासँ तँ लोक छड़पि‍-छड़पि‍ अनको गाछक आम तोड़ए लगैए। भलहिं‍ं अपन पूर्वजक घराड़ीपर नढ़ि‍या किए ने भुकए, मुदा दुनि‍याँकेँ मातृभूमि‍ कहि‍ सेवारत् रहै छी। ओही रूपक फूसिघर बना जि‍नगीक गारंटी केने छला। अखुनका जकाँ नै जे एक दि‍स लग्‍गी लगा भाँटा तोड़ैक बाट धेने छी आ दोसर दि‍स हजार-दस हजार जीबैबला ऋृषि‍-मुनि‍क दुहाइ दइ छी। एकैसम सदीमे कि‍यो अपनाकेँ अगि‍ला पीढ़ीक नजरि‍क पुतली बना रहल छी। जहि‍ना बर्खा, तहि‍ना जाड़ तहि‍ना रौद-ताप, बाल जीवनसँ लऽ कऽ वृद्ध तकक अनुभव कऽ अपन जि‍नगीकेँ असथि‍र बना नीक-नीक उमेर पबैत रहला अछि‍।
पश्न उठैत जे की एहेन वि‍चार मरि‍ गेल आकि‍ जीवि‍त अछि‍? ने मरल आ ने स्‍वस्‍थ भऽ जीवि‍त अछि‍। गाम-समाजमे लटपटाइत जीवि‍त जरूर अछि‍ मुदा...। जीवि‍त ऐ रूपे अछि‍ जे अखनो खेतीकेँ उत्तम मानल जाइत अछि‍। कृषि‍ जि‍नगीकेँ थाहि‍ चलबैए‍। तहूमे सामाजि‍क स्‍तरपर तँ आरो थाहल अछि‍। जौं जि‍नगीमे दोसराक जरूरति नै हुअए तँ ऐ सँ नीक जीवन केकरा कहबै? आजुक हवा भलहिं‍ं जेते जोर मारए मुदा हवा असथि‍र वस्‍तुकेँ कहाँ कि‍छु बिगाड़ि‍ पबैए‍। अनभुआर धारमे ने नम्‍हर-नम्‍हर जलचरक भय रहै छै कि‍एक तँ धुमैत धारमे जे गहींर-गहींर मोइन खुना जाइ छै तइमे ने डुमैक डर, जौं से नै तँ डुमैक डर केतए। तहि‍ना ने धरतीओक बीच अछि‍। जहि‍ना पानि‍मे गोहि‍, नकार आदि‍ रहैए तहि‍ना ने धरतीओपर बाघ सि‍ंह, नाग बास करैए। थाहल जि‍नगीक अर्थ ई जे जौं तीन बीघा वा दू बीघा जमीनमे समुचि‍त बेवस्‍था कऽ खेती कएल जाए तँ युगानुकूल मनुख बनब बड़ भारी नै। जि‍नगी तखनि भारी बनैए‍ जखनि गरथाहमे जि‍नगी पड़ि‍ जाइत अछि‍। कि‍सानक जि‍नगीकेँ पंगु बना देल गेल अछि‍। जौं से नै तँ सरकारी बेवस्‍था कोन -कि‍सान हि‍तैषी- जि‍नगीक कोन जरूरति‍केँ पूरा नै कऽ पाबि‍ सकैए, मुदा नीको-नीको -दस बीघासँ ऊपरबला कि‍सान- परि‍वार ने अपना बेटाकेँ नीक शि‍क्षा दऽ पाबि‍ रहल अछि‍ आ ने जनमारा बिमारीक इलाज कऽ पाबि‍ रहल अछि‍। जहि‍ना सुति‍ उठि‍ सीता-राम, राधा-कृष्‍ण वा सतनामक नाम लेल जाइत तहि‍ना ने आब टाटा-पापा लैत उठै छी। मुदा, की‍ हम सभ नढ़रा मकै सदृश जि‍नगी नै जीबै छी जे भोगार गाछ रहि‍तो अन्नक केतौ पता नै। कृषि‍ तँ आमक बगीचा वा खीड़ाक लत्ती सदृश अछि‍। जहि‍ना गाछक पल्‍लवक मुहसँ गि‍रहे-गि‍रहे पल्‍लव नि‍कालि‍ डारि‍ बनैत रहैए, खीड़ा लत्तीक मुहसँ लत्ती बनि‍ फुलाइत-फड़ैत रहैए तहि‍ना ने जि‍नगीओ छी जे धरतीसँ जनमि‍ फुलाइत-फड़ैत वि‍सरजन करत। खेत तँ ओहन सम्‍पति‍‍ छी जे जि‍नगीकेँ आगू-बढ़बैक शक्‍ति‍ रखैए। केतबो शक्‍ति‍शाली किए ने आगि‍ हुअए मुदा जौं ओइमे नव ज्‍वलनशील वस्‍तुक समागम नै हेतै, तँ केते काल ओ जीवि‍त रहि‍ सकैए। जाधरि‍ धार टपनिहार वा सरोवरमे स्‍नान केनिहारकेँ पानि‍क थाह नै लगि‍ जाएत ताधरि‍ धार टपब वा स्‍नान करब तँ अथाहे अछि‍। जाधरि‍ अथाह रहत ताधरि‍ शंका रहबे करत। जाधरि‍ आशंका रहत ताधरि‍ वि‍चार प्रभावित हेबे करत। मुदा एतेकक बावजूद हम किए...? की हम नै जनै छी जे जाधरि‍ कृषि‍केँ सर्वांगि‍न वि‍कासक प्रक्रि‍या नै अपनौल जाएत ताधरि‍ नचारी-सोहर केते काल सोहनगर हएत। हर आदमी हर परि‍वारकेँ ठाढ़ भऽ चलैक प्रश्न अछि‍, नै कि‍ एक दोसराकेँ छि‍टकी मारि खसबैक।
पाँचटा कि‍सानक संग बरिसलाल सेहो बोरि‍ंग-दमकलक वि‍चारकेँ आगू बढ़ौलक। प्रखण्‍ड कार्यालयसँ फार्म लऽ बैंकमे आवेदन केलक। संगीक जरूरति‍ तँ पड़बे केलै कि‍एक तँ जि‍नगीमे पहि‍ल खेप प्रखण्‍ड कार्यालय आ बैंक पहुँचैक अवसर भेटलै। नव योजनाक काज बैंकमे आएल। ओना गामक आ गामक कि‍सानक हि‍साबे बैंकक संख्‍या दूधक डाढ़ि‍ए छल, मुदा छल तँ। बरिसलालक आवेदन स्‍वीकृति‍ करैत जमीनक बाैण्‍ड बना माइनर एरीगेशनकेँ काज करैक भार देलक। बैंक-कर्जक सूदि‍ शुरू भेल।
माइनर एरीगेशनक आँट-पेट छोट। एकाएक काजमे बढ़ोत्तरी भेल। ने काज करैक औजार अधि‍क आ ने करैबला। तँए ठीकेदारीक चलनि‍। तहूमे एक अनुमंडलक बीच एकटा कार्यालय। लेनि‍हार हजार हाथ देनि‍हार एक। मुदा तैयो बरिसलालक आदेश पत्रकेँ फाइलमे लगा देल गेल। एक-ति‍हाइ सब्‍सि‍‍डी लेल सब्‍सि‍डी कार्यालयक जरूरति। सब्‍सि‍डी कार्यालय जि‍लाक अन्‍तर्गत। दौड़-बरहा करैत बरिसलालकेँ खर्चक संग-संग साल बित गेल। वरसातमे एक तँ धसना धूँसैक डर दोसर लोक खेती कहि‍या करत। बोरि‍ंगक काज छोड़ि‍ बरिसलाल खेतीमे लगि‍ गेल। साल बितल दोसर साल शुरू भेल। ताधरि‍ बैंकक कर्जक चक्रवृद्धि‍ ब्‍याजक दरसँ एते मोटा गेल जे सब्‍सि‍डी उधि‍या गेलै।
दोसर साल शुरूहेसँ बरिसलाल काजक -वोरि‍ंग-दमकलक- पाछू पड़ि‍ गेल। आइ-काल्हि‍ करैत माइनरो-एरीगेशनक काज आ सब्‍सि‍डीओ ऑफि‍सक काज लटकले रहलै। चढ़ैत बैसाख -दोसर साल- बरिसलाल रघुनन्‍दनकेँ कहलक-
बौआ, छोड़ि‍ दहक। बोरि‍ंग नै भेल तँ करजो तँ नहि‍येँ भेल। बुझबै जे एते दि‍न घुमबे-फि‍रबे केलौं।
बैंकक प्रक्रि‍या रघुनन्‍दनकेँ बूझल। बरिसलालक बात सुनि‍ अवाक् भऽ गेल। मन कलपि‍ उठलै बाप रे, सूदि‍-मूरि लदा गेलै, कोट-कचहरीक मुद्दा बनि‍ गेलै। दोख केकरा लगतै। कोन मुँह लऽ कऽ समाजमे रहब। ग्‍लानि‍सँ मन बि‍साइन भऽ गेलै। साहस बटोरि‍ रघुनन्‍दन बाजल-
काका, जँए एते दि‍न तँए दू मास आरो। बैसाख-जेठ बँचल अछि‍। काल्हि‍ चलू या तँ अपन काज आपस लेब वा हाथ पकड़ि‍ काज कराएब। तइले जे हेतै से देखल जेतै।
रघुनन्‍दनक बात सुनि बरिसलाल ठमकि‍ गेल। बाजल-
बौआ, हम तँ तोरेपर छी, आगि‍मे जाइले कहऽ आकि‍ पानि‍मे तोरासँ बाहर थोड़े हएब।
बरिसलालक वि‍चार सुनि‍ रघुनन्‍दनक मनमे उत्‍साह जगल। दोसर दि‍न दुनू गोटे -बरिसलाल, रघुनन्‍दन- माइनर एगरीगेशनक कार्यालयसँ बोरिंग गाड़ैक सामान नेने आएल। गाड़ैक दि‍न तकबए गेल तँ आगूमे भदबा पड़ैत रहए। जोड़-घटाउ करैत आठ दि‍न पछाति‍ बोर करब शुरू भेल। सि‍रि‍फ ठीकेदारे टा आएल बाँकी सभ काज गामेक मजदूर करत। ओना बोरि‍ंगक काजमे गामक मजदूर अनाड़ीए छल मुदा अनाड़ीओ तँ केते रंगक होइ छै। जेते काज तेते जीवनी तेते अनाड़ी। जखने काजक लूरि‍ भऽ गेल तखने जीवनी, जाधरि‍ नै भेल ताधरि‍ अनाड़ी। तेतबे नै, एक काजक जीवनी दोसर काजक अनाड़ी सेहो होइत। तँए जीवनी-अनाड़ीक भेद करब कठि‍न अछि‍। ओना काजक भीतरो जीवनी-अनाड़ी होइत। जहि‍ना एकपर सए खड़ा अछि‍। कहैले तँ एक पहि‍ल सीमा भेल आ सए दोसर सीमा मुदा दुनूक बीच अंतर ओते अछि‍ जेते एक प्रति‍शत आ सए प्रति‍शत। तहि‍ना काजोक अछि‍। एके काजक भीतर सएओ रंगक काजक अंश होएत। कि‍छु अंशक बादे जीवनी मानल जाए लगैत मुदा जीवनी -लूरि‍गर- होइतो पूर्ण लूरि‍गर नै मानल जाएत। पूर्ण लूरि‍गर तखनि मानल जाएत जखनि काज समए सीमाक भीतर होइत। ओना काजोक सीमाक निर्धारन व्‍यास पद्धति‍क अनुकूल होएत। जौं से नै होएत तँ कि‍छु एहनो काज केनि‍हार होइत जे समैओ-सीमासँ पहिने‍ कऽ लैत आ कि‍छु एहनो होइत जे काज तँ कऽ लैत मुदा समए सीमा टपि‍ कऽ करैत। तँए कि‍ ओकरा अनाड़ी कहल जेतइ।
मुलाइम माटि‍ रहने सबा साए फीट बोर आठे दि‍नमे भऽ गेल। लेयरो बढ़ि‍याँ। चालीस फीट लेयर। ओना जौं नीक लेयर होइत तँ पनरहो फीटमे पाँच हार्स पावरक इंजन पूर्ण पानि‍ दैत, मुदा लेयरोक तँ ठेकान नै। नीक-अधला संगे होइत। कोनो बालु -सौतबी- एहेन होइत जइमे पानि‍क मात्रा पनरह प्रति‍शतक आस-पास होइत आ कोनो एहेन होइत जइमे अस्‍सी प्रति‍शत धरि‍ पानि‍ रहैत। मुदा बरिसलालक बोरक लेयरक स्‍थि‍ति‍ कि‍छु भि‍न्न छल। नि‍च्चाँक तीस फीट लेयरमे अस्‍सी प्रति‍शत पानि‍ छल आ ऊपरकामे कम। तँए ठीकेदार बाजल-
बरिसलालबाबू, अहाँक तकदीर नीक अछि‍। कहि‍यो बोरि‍ंग भथन नै हएत। कि‍एक तँ तेहेन नि‍चला बालु अछि‍ जे सभ दि‍न पानि‍ दनदनाइते रहत। तँए नीक हएत जे जहि‍ना भीत घरमे ठेमा-ठेमा रद्दा पड़ैए तहि‍ना कि‍छु दि‍न जे बोर ठेमा जाएत तँ धँसना धँसैक संभावना समाप्‍त भऽ जाएत। ओना क्रेसि‍ंग-पाइपसँ बोर कएल अछि‍, पाइप लोड करैमे कोनो दि‍क्कत हेबे ने करत, मुदा अहीं हि‍तमे कहै छी।
ठीकेदारक मुहसँ तकदीर सुनि‍ बरिसलालक मन उधि‍या गेल। ठीकेदारक अगि‍ला बात नीक नहाँति‍ सुनबो ने केलक। अंति‍म हि‍तक चर्च सुनि‍ बरिसलाल बाजल-
ठीकेदार साहैब, अहाँ कि‍ कि‍यो बीरान थोड़े छी जे अधला करब। अहाँ तँ सद्य: इन्‍द्र भगवान छी, जेम्‍हर ताकि‍ देबै तेम्‍हर ताड़ि‍ देबै। जेना-जेना अहाँ कहब तेना-तेना करैले तैयार छी।
ठीकेदार बाजल-
हमरो गाम गेना बहुत दि‍न भऽ गेल। अखनि ऑफि‍सक छुट्टीक काजो ने अछि‍। कि‍एक तँ बोर करैक सीमा जेते अछि‍ तइ पूरैमे एक बेर गामसँ घूमि‍ आएब। अहूँक काज नीक हएत आ अपनो काज भऽ जाएत। कहि‍ ठीकेदार गाम चलि‍ गेल।
पनरह दि‍न बित गेल। जेठ चलए लगल। रोहणि‍ नक्षत्रक आगमन भऽ गेल। संयोगो नीक रहल जे अगते वि‍हरि‍या हाल सेहो भऽ गेल। जहि‍ना भक्‍त भगवानक मि‍लन होइत तहि‍ना बरिसलालक मनमे भेल। अपनो हाथ पानि‍ आबि‍ गेल, ऊपरसँ भगवानो देता। पानि‍क धनि‍क बनि‍ जाएब। जहि‍ना टि‍कुली अपन पाँखि‍क होश केने बि‍ना हवामे उधियाइत ओतए पहुँचए लगल जेतए ओकर पाँखि‍ बेकाबू भऽ टूटि‍ जाइत। माि‍टक चुट्टी वा गाछक घोड़नकेँ पाँखि‍ होइते मरैक दि‍न लगि‍चा जाइत, मुदा बूझि‍ नै पबैत तहि‍ना बरिसलालोकेँ हुअ लगल।
रोहणि‍या हाल जहि‍ना धरतीक शक्‍ति‍मे नव उर्जा दैत तहि‍ना बरिसलालोक मनमे आएल। पत्नीओ आ दुनू बेटोकेँ शोर पाड़लक। तेल विहिन बच्‍चाक मुँह लाली धरैत अनरनेबा जकाँ हरि‍अरसँ लाल होइत जाइत देखलक। तहि‍ना पत्नीओक ओ दि‍न मन पड़लै जइ दि‍न हाथ पकड़ि‍ जि‍नगीक भार उठौने रहए। मुदा, किए ने लोक भार उठौत? एकटा नव शब्‍द -word- ताधरि‍ संग पूरैत जा धरि‍ ओकर मथन होइत। नै तँ किए रहत। बड़ीटा दुनि‍याँ छै केतौ बौरु जाएत। पत्नीक नव रूप देखि‍ बेटाकेँ सम्‍बोधि‍त करैत बरिसलाल बाजल-
बौआ, तोरा सभकेँ जहि‍ना कोरा-काँखमे खेलेलिअ तहि‍ना हँसी-खुशीसँ जीबैक ओरि‍यान सेहो कऽ देलिअ।
पति‍क बात सुनि‍ पत्नी सुशीलाक मन पहाड़क झरनासँ झड़ैत पानिक चमकैत रेत जकाँ चमकए लगलनि‍। बजली-
सोझहे दीक्षा देने नै हाएत। एक-एक दि‍न, एक-एक क्षणक काजक बात बुझा दि‍औ तखनि हएत?”
अखनि धरि‍ बरिसलाल कोट-कचहरी करैत बहुत कि‍छु सीख नेने छल। गाम-गामक खेती-पथारी, गाम-गामक माल-जाल पोसब, गाम-गामक फल-फलहरी, तीमन-तरकारीक खेती, माछ पोसब इत्‍यादि‍ सुनि‍ चुकल छल। जहि‍ना मि‍ड्ल स्‍कूलक बच्‍चा हाइ स्‍कूलमे प्रवेश करैत नव-नव पोथी देखि‍ ललाए लगैत तहि‍ना बरिसलालक दुनू बेटाक जि‍ज्ञासा जगल। जि‍ज्ञासा देखि‍ बरिसलाल बाजल-
बौआ, माटि‍मे धन छि‍ड़ियाएल छै, बीछि‍नि‍हार चाही।
अखनि धरि‍ दुनू भाँइ आमक टुकलासँ लऽ कऽ पाकल आम धरि‍ बीछि‍ चुकल छल तँए बीछैक बात सुनि‍ जेठका बेटा महावीर पुछलक-
केना बि‍छबै बाबू?”
बरिसलाल बेटाक प्रश्न सुनि‍ खुशि‍या गेल। आजुक बेटा जकाँ नै जे नोकरीओ करैत आ नोकरो रखैत। जखनि अपने काज अछि‍ तखनि अपनासँ जे समए बँचत सहए ने दोसरकेँ देब। बाजल-
बौआ, अखनि तँू सभ भारी काज करै जेकर नै भेलह हेन। ओना कनी-कनी कऽ हेन्‍डि‍ल मारब सीख लेबह तँ दमकलो चलाएल भइए जेतह। मुदा जौं दस कट्ठामे सालो भरि‍ तरकारीक खेती करबह तँ ओते कोन परदेशि‍या कमाएत। हँ समए बदलने लोक रंग-बि‍रंगक वृत्तिओ बदलि‍ लेलक हेन। जइसँ कि‍छु अनाप-सनाप सेहो भऽ रहल छै। मुदा बुधि‍क संग पूजी आ पूजीक संग बुधि नै चलत तँ अनेरे दब-उनाड़ होइत रहत।
जेठक पूर्णिमा दि‍न बोरि‍ंग लोड भेल। लोड होइसँ तीन दि‍न पहि‍ने अपन ऊषा मशीन आबि‍ गेल रहै। बो‍रि‍ंग लोड कऽ ठीकेदार-मजदूर मि‍लि‍ माछक भोज खा, सोलह घंटा पानि‍ चला काज सम्पन्न केलक।
अखाढ़ चढ़ि‍ते मानसून उतरि गेल। पहुलके दि‍न एहेन बर्खा भेल जे खेत-पथारमे पानि‍ लगि‍ गेल। नीचला खेती बुड़ैक लक्षण धऽ लेलक। तेसरे दि‍न बाढ़ि‍ चल आएल। पोखरि‍-झाखड़ि, चर-चांचर भरि‍ गेल। पानि‍पर पानि‍ आ बाढ़ि‍पर बाढ़ि‍ केते बेर आबि‍ गेल। दहार भऽ गेल। एहेन दहार भेल जे नवान पावनि‍ओ लोक बि‍सरि‍ गेल। मुदा काति‍क अबैत-अबैत रब्‍बी-राय छीटब शुरू भेल। गहुमक खोती नै भऽ सकल। अन्नमे गहुमक खेती सभसँ महग खेती होइत। मुदा धान नै भेने कि‍सानक स्‍थि‍ति‍ बि‍गड़ि‍ गेल। एक तँ आेहि‍ना बरिसलालक स्‍थि‍ति‍ दू सालक दौड़-बरहामे बिगड़ि‍ गेल तैपर दाही आरो बि‍गाड़ि‍ देलक। सालो भरि‍ बोरि‍ंग-दमकल बैसल रहि‍ गेल।
तरकारी खेतीक ओहन दशा बनि‍ गेल जे बजार नै! कच्‍चा सौदा, नष्‍ट होएत।
देखैत-देखैत सतासीक बाढ़ि‍ आ अठासीक भुमकम आबि‍ गेल। जर-जर बसीसलाल फड़-फड़ करैत फड़फड़ा गेल। तही बीच बैंकक पक्षसँ जमीनक नि‍लामीक नोटि‍श भेटलै।

m m m

No comments:

Post a Comment