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Friday, October 18, 2013

(51) साझी

साझी

गामक पहि‍ल घटना तँए गाममे वि‍चि‍त्र हलचल भोरेसँ उठि‍ गेल। उठबो केना ने करैत, अखनि धरि‍ तँ इति‍हासो यएह कहलक आ समाजो सएह। मुदा घटना बदलने इति‍हासक रस्‍तो बदलि‍ जाइ छै आ वहि‍ला समाज सेहो वाह पकड़ै छै। वि‍चि‍त्र हलचलक कारण भेल वि‍चि‍त्र घटना। वि‍चि‍त्रक कारण भेल चि‍त्र वि‍चि‍त्र बनि‍ गेल। तँए गामक सबहक मनकेँ कुचि‍त्र-सुचि‍त्र बनबए लगल। जेते जेकर रंग-गाढ तेहेन तेकर चि‍त्र गढ़गर। तँए एक रंगाह नै भेने आरो बेसी हलचल। मनक प्रेम तँ तखनि ने बढ़ै छै जखनि अनुकूल प्रेमी भेटै छै। प्रेमीओ कि‍ कोनो एक्के रंगक होइए जे ओहीपर नजरि‍ पड़तै आ नजरि‍ पड़ि‍ते धारक पानि‍ जकाँ मोटाए लगतै। जौं से नै हेतै तँ जेहो छै तइमे सँ कि‍छु रौदमे उड़तै, कि‍छु धरती पीतै आ कि‍छु लोको घटौतै। जहि‍ना बि‍लंबसँ चलैवाली गाड़ी टीशने-टीशन वि‍लमैते चलै छै, भलहिं कुमेल भेने रस्‍ता-बाटमे छोड़ि‍ आन-आन दौगैत चलैए। ओना गामक वि‍चि‍त्र घटना देखि‍ सबहक मन उड़ैत मुदा जि‍नगीक काज पकड़ि‍-पकड़ि‍ हटबैत गेल। केतबो हटल तैयो तँ बाँकीए रहि‍ गेल। सोलहन्नी नहि‍येँ हटल। नहि‍येँ हटल तँ कि‍ हेतै? अदहासँ बेसी तँ रहि‍ए गेल, तँए बहुमते सँ ने समाज देश सभ चलै छै। तखनि गामेमे कोन उनटन भऽ गेलै जे गाम-समाज नै चलतै। लेकि‍न गामो तँ सोलहन्नी नहि‍येँ मरि‍ गेल जे कि‍यो नामो लइबला नै रहतै। से तँ अछि‍ए। सेहो तेहेन अछि‍ जे हजार कानकेँ एक्के बेर भरि‍ देत। जहि‍ना पूजा करब काज छी तइसँ कि‍ हल्‍लुक काज फूल तोड़ब छी। जखनि नै छी तखनि किए दुनू दू रंग हेतै।
चौबट्टी परहक इनारक चलती सभसँ बेसी भऽ गेल। नवकी पनि‍भरनी सभ थैर-गोबर छोड़ि‍-छोड़ि‍ पहि‍ने पानि‍ए भरए इनारपर पहुँच‍‍ गेली। मुदा तँए कि‍ पुनि‍यो दादी आ घुरनीओ दीदी ओहने अगुताएल जे पहि‍ने पानि‍ए भरए पहुँचती। एक तँ बेटा-पुतोहुकेँ डाकनि‍ देती जे ऐसँ नि‍पुत्रे नीक। ने तँ ऐ चौथापनमे अपने घैल उठाबी। तहूमे नवका आगि‍ गाममे पजड़ल। माघमे अनको धधगड़ घूर भेटए तँ ओकरा छोड़ि‍ देब बेवकुफीए छी, भलहिं अपनो धि‍या-पुता किए ने घरमे कठुआए जाए। ओना दुनू गोटेक घर इनारसँ बहुत हटल नै मुदा लग-दूर कोन बात भेल? लगोक बाटमे दसटा गप करैबला भेटल तँ बेसीए समए लगत आ नहि‍येँ भेटने दूरो लग भऽ जाइ छै। सएह दुनू गोरे, पुनि‍यो दादी आ घुरनीओ दीदीकेँ भेलनि‍। जवाबदेहीओ तँ कम नहि‍येँ छन्‍हि‍ अनकर बातसँ ऊपर उठा अपन बात नै रखती तँ पुनि‍या दादी आ घुरनी दीदी कथीक। तइसँ नीक तँ नवकी जे कम-सँ-कम अपनो हि‍त-अपेछि‍त लग रसगर बात बजै छथि‍।
संजोग तँ संजोगे छी। चाहै काज करैक संजोग हुअए आकि‍ भोज खाइक, नीके होइ छै। भलहिं ओ चालि‍ बदलि‍ कुसंजोगे किए ने भऽ जाए। पूबसँ पुनि‍या दादी आ दछि‍नसँ घुरनी दीदी पहुँचली। पुनि‍या दादी घुरनी दीदीसँ जेठ। तँए जेठक आदर करैत घुरनी दीदी इनारपर चढ़ैसँ पहि‍ने स्‍वागत करैत पुनि‍या दादीकेँ टूसि‍ देलखि‍न-
जहि‍ना पावनि‍ दि‍न परि‍वार हड़बड़ा जाइत तहि‍ना दादीकेँ देखै छि‍यनि‍?”
अपन स्‍वागत देखि‍ पुनि‍या दादीक मन खुशीसँ खुशि‍या गेलनि‍। टुटल दाँतक मुहसँ मुस्‍की दिअए लगलखि‍न। अखनि धरि‍ पुनि‍या दादीकेँ धेनहि‍ जे गामक बात हमरा छोड़ि‍ दोसर बुझबे ने करैए। भलहिं सात पुतोहु हाथे मारि‍-गारि‍ किए ने खाइत हेती‍। पहि‍ने तँ आँखि‍ उठा इनार दि‍स‍ तकली‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जि‍ज्ञासु बेसी अछि‍। घुरनी दीदी दि‍स देखैत बजली-
गै घुरनी, कहुना भेलेँ तँ बेटीए भेलेँ, आइ-काल्हि‍क नव-नौतुक हमर-तोहर बात सुनतौ। देह देखि‍ सभ अपने मोटाएल अछि‍। मुदा तोरा नै कहबो से केहेन हएत?”
जि‍ज्ञासा भरैत घुरनी दीदी मलसारि‍ दैत बजली‍-
कोनो तेहेन गप छन्‍हि‍ दादी?”
पुनि‍याकेँ सभ दादी कहैत आ घुरनीकेँ दीदी। ओना उमेरो हि‍साबसँ उचि‍ते छेलै। मुदा दुनू गामक पुतोहुए बनि‍ गाम आएल रहथि‍। दीदीक आदरसँ दादी आरो अह्लादि‍त होइत। जहि‍ना संज्ञाक संग सर्वनाम, वि‍शेषण आदि‍ सभ अगुआ-पछुआ बनि‍ रथकेँ खि‍ंचैत तहि‍ना दादीक मनमे सेहो उठलनि‍। सोझहे बजैसँ नीक बूझि‍ पड़लनि‍ जे अलंकार-छन्‍द बनबे किए कएल जखनि ओकर बेवहारे नै हेतै? अलंकार शैलीमे गामक चौहद्दी बान्‍हि‍ बाजए लगली-
एहेन अतहतह तँ एक गामक के कहए जे परोपट्टामे केतौ ने देखै छी, जे...?”
दादीकेँ ि‍वह्वल होइत देखि दीदीक जि‍ज्ञासा तेज भेलनि‍। लपकि‍ कऽ पुछलखि‍न-
से की, से की दादी?”
जहि‍ना आमक गाछक डारि‍मे पाकल आम देखि‍ झमाड़ि‍-झमाड़ि‍ डोला पाकल आम खसबए चाहैत, मुदा डोलौनि‍हार ई नै बूझि‍ पबैत जे पाकले खसत आ काँच नै खसत। हँ एहनो होइ छै जे बेसी पाकलक डंटीक रस सूखने असानीसँ खसैत मुदा जे डमहा पाकल छै ओ तँ ओहि‍ना छै जहि‍ना डमहा काँच होइ छै। तहि‍ना दादीक मन छगुन्‍तासँ छनकैत जे एहेन तँ केतौ ने भेल से गाममे केना हएत। मुदा भऽ तँ गेल!
भेल ई जे ज्ञानचन काकाकेँ तीन बेटा आ दू बेटी छन्‍हि‍। तीनू बेटा पढ़ि‍-लि‍खि‍ कऽ आने जकाँ नोकरी करए गाम छोड़ि‍ देलनि‍। भीन भऽ गेलखि‍न कि‍ साझीएमे से नै कहि‍। मुदा ज्ञानचन काकाकेँ एको पाइ मदति‍ नै केलखि‍न। ओना तीनू भाँइ उपरा-उपरी पढ़लो-लि‍खल आ नीक नोकरीओमे। पहि‍ल बेटी डाक्‍टर पति‍क संग सेहो बाहरे रहै छथि‍न। छोट बेटी वैधव्‍य भऽ गेलनि। असमए बेटीकेँ वि‍धवा भेने ज्ञानचन काकाकेँ जबरदस धक्का मनमे लगलनि‍। अपनोसँ बेसी काकीकेँ लगलनि‍। एहेन कोन माइक छाती हएत जे अपने सुहागि‍न आ बेटीकेँ वैधव्‍य देखए चाहत। मुदा उपाइए की? दुखक तँ सभसँ पैघ दबाइ नोर छी। जेते नोर झड़त तेते भारी दुख मेटाएत।
जहि‍ना रेहीक संग मक्‍खन, छाहली मोहि‍ आगि‍पर लोहि‍यामे चढ़ा घी बड़कौल जाइत से दादीकेँ बड़कौले ने होन्‍हि‍ तँए क्षुब्‍ध रहथि‍। बजली-  
आब तँ अपनो उमेर ढेरी भेल तैपर नाना जनम एहेन काज नै देखने छेलौं से गाममे देखै छी।
दादीक बात सुनि‍नि‍हारकेँ आरो जिज्ञासा बढ़ा देलकनि‍। एक्के-दुइए सभ पनि‍भरनी एक्के बेर दादीपर जोर देलकनि‍। थकथकाइत दादी बाजए लगली-
ज्ञानचनक तीनू बेटा रूपचन, गुनचन वि‍चारचनकेँ जखनि नोकरी छुटलनि‍ तखनि गाम आबि‍ साझी भऽ गेलखि‍न।
दादीक उत्तरसँ संतुष्‍ट नै भऽ दादीक जवाबसँ दीदीकेँ संतोष नै भेलनि‍। पूरक प्रश्न केलखि‍न-
तइसँ पहि‍ने भीन भेल छेलखि‍न?”
दीदीक प्रश्नसँ दादीकेँ क्रोध उठलनि‍, बजली-
जेना लोक केबाड़ चौकी काटि‍-काटि‍ बँटबारा करैए तेना होइतै, तखनि ने बुझि‍तहक। आकि‍ मनुखकेँ इशारा होइ छै। मझि‍ला बेटा अपन बेटीक बि‍आहमे चालीस लाख रूपैआ खर्च केलकै, मुदा छोटका भाएकेँ पाइ नै देलकै तँ नून-तेल लगा केलक। की यएह सझि‍या भैयारी छि‍ऐ?”
दीदी बजली-
तखनि तँ कमाइओ ने सबहक सभ रंग हेतै। ओ केना मि‍लाैत?”
दादी कहलखिन-
सएह ने देखहक। जेकरे बेसी छै सएह पहि‍ने कहलकै जे हमरा एते अछि‍। सभ मि‍ला कऽ परि‍वार चलौ।
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