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Friday, October 18, 2013

(50) धोतीक मान

धोतीक मान

जहि‍ना तेहैया बोखार तरे-तर अबि‍तो आ जाइतो रहैत तहि‍ना लाल काकाकेँ तीन दि‍नसँ विचि‍त्र सोग गहि‍ कऽ पकड़ि‍ लेलकनि‍। ओना जखनि कोनो काजक अनमेनामे लगि‍ जाइ छथि‍ तखनि छोड़िओ दइ छन्‍हि‍। मुदा काज बदलिते पुन: आबि‍ जाइ छन्‍हि‍। मुदा कहबो केकरा करथि‍न, घरेलू सोग छियनि‍। सोगो तेहेन जे जहि‍ना ति‍आरि‍ जालमे माछ फँसि‍ जाइत। ने बंशी जकाँ जे बोरक सुगंधसँ फँसि‍ जान गमबैत आ ने सहतक ठनका जकाँ। मुदा तैयो तँ घाउ लगले छन्‍हि‍।
सोगक दोसरो कारण छन्‍हि‍। ओ ई छन्‍हि‍ जे दुनू परानीक बीच कहि‍यो वैचारि‍क संघर्ष, रक्का-टोकी नै भेल छेलनि, जे सद्य: सोझहामे देखि‍ पड़ैत अछि।
बात कि‍छु ने बुढ़ि‍या फूसि‍ मुदा सोग तेहेन जे रोगौने टा नै, सोगौने सेहो छन्‍हि‍। जइसँ कोनो काज करैमे मने ने लागए दइ छन्‍हि‍।
तीन दि‍न पहि‍ने जखनि सढ़ुआरेसँ भरपूरा नोत एलनि‍ तखनेसँ सोगक आक्रमण भेलनि‍ जे गहिया कऽ धेने छन्‍हि‍। ने छोड़ैत बनै छन्‍हि‍ आ ने पूरैत। साधारण जि‍नगी जीबैक अभ्‍यास तँए पाइ-पाइक हि‍साब जोड़ि‍ समुचि‍त काज करैत जिनगी चैनसँ चलैत छन्‍हि‍। गतिक अनुकूल आमद-खर्च रहने भातक उजड़ा आँकर जकाँ दाँत तर खटखटाइत रहनि‍। ऑकर संग भातो फेकए पड़तनि‍। नजरि‍ उठा कऽ देखथि‍ तँ सोझहेमे देखि‍ पड़नि‍ जे भारमे धोतीक खर्च वाह्ययात अछि‍, कि‍एक तँ धोतीक मान तँ ओइ समए सर्व सम्‍मति‍ छल जखनि एकाधि‍कार वेपार जकाँ छल, मुदा जैठाम दू सए रूपैआक धोती लऽ जाएब, तैठाम कि‍यो पहिरिनि‍हार नै अछि‍, मांगलि‍क काज छोड़ि‍ धोती म्‍यूजि‍यमक वस्‍तु बनि‍ गेल अछि‍। अपन तँ दू दि‍नक कमाइ दहा जाएत। मुदा पत्नी तँ मानती नै। अपना सीमामे सभ बताह होइए, भलहिं आन सीमामे नांगरि‍ पटपटबए आकि‍ दाँत चि‍आरए। मानबो उचि‍त नहि‍येँ। किएक तँ पत्नीक मान तँ परि‍वारमे दादीक छन्‍हि‍। बाबा-दादाक पकि‍या संगी। शुभ काजक शुरूहेमे खट-पट भेने कहीं अंत धरि‍ ने खटपटाइते रहि‍ जाए, तेकर डरो रहनि‍। वि‍चारि‍ लेब जरूरी बूझि‍ लाल काकीकेँ पुछलनि‍-
काल्हि‍ए ने नोत पूरए जाएब। आइए ने सभ ओरि‍यान-बात कऽ लेब?”
लाल काकी कहलखिन-
घरक ओरि‍यान ने हम करब आकि‍ हाटो-बजारक करब?”
लाल काकीक चढ़ल तर्क देखि‍ लाल काका दोहरौलखि‍न-
बजारक काज की सभ अछि‍?”
आर कि‍छु ने अछि‍। खाली जोड़ भरि‍ धोती आ अंगा आ गमछा कीनि‍ लेब।
लाल काकी आढ़ति‍ सुनि‍ लाल काका मने-मन जोड़थि‍ तँ देखि‍ पड़नि‍ जे कि‍यो धोती पहिरिनि‍हारे परि‍वारमे नै अछि‍, जखनि धोती नै तखनि कुर्ता आ गमछा तँ सूखल नून-चूड़ा भेल। केतबो हएत तँ जलखैइए। मुदा बेवस भेल रहथि। तैयो पुछलखि‍न-
आब कि‍ कोनो भार-दौर चलै छै जे ई सभ लऽ जाएब?”
लाल काकाकेँ चि‍लहोरि‍ जकाँ झपटैत लाल काकी कहलखि‍न-
चाउर दहीक बदला रूपैआ लऽ जाएब मुदा नव वस्‍त्र नै लऽ जाएब से केहेन हएत?”
कहैत नोर ढवढबा गेलनि‍। फटैत छातीक दर्द बाँसक झाँझन जकाँ झनझनाए लगली-
बहि‍न मरमा मरि‍ए गेल, मुदा अंतमे मुँह नै देखि‍ पेलौं। भगवानो तेहेन जे सभटा दुख ओकरे घरमे देलखि‍न। चढ़ल जुआनी दुनू परानी मरल, अरहाइ बरखक मइटुग्‍गर-बपटुग्‍गर बेटाक बि‍आह छि‍ऐ, तेकरा पाँच हाथ वस्‍त्र हम नै देबै, तँ दुनि‍याँमे के देतै?”

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