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Friday, October 18, 2013

(48) ति‍लकोरक तरुआ

ति‍लकोरक तरुआ

जहि‍ना नम्‍हर दोकानमे प्रवेश करि‍ते जीवनोपयोगी वस्‍तु देखि‍ मन उबियाए लगैत जे ईहो कीनि‍ लेब, आेहो कीनि‍ लेब। मुदा पाइयो आ वि‍चारो तँ ओतै रहैए जेतए पहि‍नेसँ वि‍चार भेल अबैए। इच्‍छा रहि‍तो कि‍सुनलाल डेरामे डाइनिंग टेबुल नै लगा ओसारेपर अपनो दुनू परानी आ अति‍थि‍ओ-अभ्‍यागतकेँ खुअबैत। कम दरमाहा साधारण जि‍नगी। शहरमे रहि‍तो गामक चालि‍-ढालि‍ बेसी, कारणो स्‍पष्‍ट जे शहरी बनैले शहरी जि‍नगी बनबए पड़ैत। जे ओहि‍ना नै पाइक हाथे बनैत। पाइयक काज मुहसँ थोड़े होइ छै। भलहिं मुँहक आगू पाइक मोल जेहेन होइ। खास्‍ता कचौड़ी मुँहमे लाड़ैत-चाड़ैत गर लगबैत देवकान्‍त बजला-
आह, बुझलह कि‍ने कि‍सुनलाल कि‍छु होउ, दुनि‍याँ सात बेर किए ने उनटै-पुनटै मुदा अपना ऐठाम गामक जे ति‍लकाेरक तरुआ अछि‍, ओकर तुलना केतए हएत?”
देवकान्‍त भायक बात सुनि‍ कि‍सुनलालक मनमे कनीओ हि‍लकोर नै उठलै। कि‍एक तँ मनमे यएह नाच होइत रहै जे डेरामे गौआँ एलाहेँ तँए ई नै अजश हुअए जे खेनाइओमे ठकि‍ लेलक। नीक कि‍ दब भरि‍ पेट कहुना खाथि‍। जौं से नै हेतनि‍ तँ दसठाम बजता जे खाइओ लेल भरि‍ पेट नै देलक। तही बीच मनमे उठलै जे पूछि‍-पूछि‍ खुआएब नीक। जे कम-सँ-कम पहि‍ल बेर तँ कहता जे हँ इच्‍छापूर्ण खेलौं आब कनी अराम करैक ओरि‍यान करह आ तोहूँ सभ खा-पीअह, काज-उदम देखहक। दैन्‍य दृष्‍टि‍ए देखि‍ कि‍सुनलाल बाजल-
भाय साहैब, खाइ जोकर बनल छै की नै। कहाँ खाइ छि‍ऐ चारि‍टा आरो नेने आबी?”
पहि‍लक ढकार ढेकड़ैत देवकान्‍त उत्तर देलखिन-
अँए हौ, तँू हमरा राक्षस बुझै छह जे आगूमे एते वस्‍तु ढेरि‍या देलह हेन आ तैपर सँ परसन लइले कहै छह?”
जहि‍ना डारि‍मे लागल मचकीक पहि‍ल आस होइत तहि‍ना, मनमे आस जगि‍ते किसुनलाल बाजल-
भाय साहैब, कनि‍येँ-कनि‍येँ समान सभ परसै लेल घरवालीकेँ कहने छेलि‍ऐ। जेना-जेना भोजन करैत जेता तेना-तेना परसि‍-परसि‍ दैत जेबनि‍।
तहसाना जकाँ तहि‍आएल भोजन पाबि‍ देवकान्‍त भायक मन गदगदाएल। कि‍सुनलालक बात अंतो ने भेल छेलै आकि‍ बि‍च्‍चेमे देवकान्‍त बाजि‍ उठला-
अँए हौ कि‍सुनलाल, तँू अनठि‍या बुझै छह। अपन घर छी जे खगत आकि‍ बेसी खाइक मन हएत ओ मांगि‍ कऽ लेब। तइले तोरा मनमे किए होइ छह जे भुखले उठि‍ जाएब। हम ओहन लोक नै ने छी जे खाइओ लेब आ दुसि‍ओ देब।
तखने कि‍सुनलालकेँ पत्नी -सिंहेश्वरी- हाथक इशारासँ शोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
ति‍लकोरक तरुआ दे भैया की कहलखि‍न?”
किए?” कि‍सुनलाल पुछलक।
ति‍लकोरक साग आ चटनी तँ खाइ छी, बनबैओक लूरि‍ अछि, मुदा तरुआ नै खेने छी।
ओना सिंहेश्वरी देवकान्‍तसँ अढ़ भऽ कहैत मुदा बोलीमे एहेन टाँस देने जे देवकान्‍तो बुझथि‍न। साग आ चटनी सुनि‍ते मनमे उठलनि‍ जे साग तँ केते दि‍न खेने छी। तहूमे जखनि पेशाबक गड़बड़ी रहए तँ पथ्‍यमे यएह चलैए। मुदा चटनी तँ नै खेने छी। लाज-संकोच तँ ओकरा ने होइ छै जेकरा बूझि‍ पड़ै छै जे भारी छी। मुदा हम कोन भारी छी जौं भारी रहि‍तौं तँ बुझले रहैत। नै बूझल अछि‍ तँ बूझि‍ लेब कोन अधला हएत। जौं कहि‍यो खाइएक मन हएत, बुझलेहे ने काज देत। अचार मुँहमे लैत मुँहक कर समेटि‍ कऽ घोटैत बजला-
कि‍सुन, ई की कोनो गाम-घर छी जे कनि‍याँ एते संकोच करै छथि‍। एतै आबह कनी एकटा बातो बुझैक अछि‍।
देवकान्‍तक बात सुनि‍ कि‍सुनलाल तँ ससरि‍ कऽ लगमे आबि‍ गेल। मुदा सिंहेश्वरी कि‍छु आगू बढ़ि‍, कि‍छु पाछू दि‍स आबि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेली। जहि‍ना कोनो बच्‍चोसँ कोनो गप बुझै बेरमे रंग-रंगक प्रश्न, पूरक प्रश्न पूछि संतुष्‍ट होइत अछि‍। तहि‍ना देवकान्‍तोक मनमे होन्‍हि‍ जे कोनो बात‍ बुझैले सोझहा-सोझही नीक होइ छै लजकोटर तँ बहुत बात छोड़ि‍ए दैत अछि‍ आ बहुत बि‍सरि‍ओ जाइत अछि‍। दोखाह तँ दुनू भेल। अपनाकेँ नि‍च्चाँ उतरि‍ सिंहेश्वरीकेँ ऊपर चढ़बैत देवकान्‍त कहलखि‍न-
कनि‍याँ, आइ ने कि‍सुनलाल दू-पाइ कमाएल हेन तँ फुलपेंटो पहि‍रने देखै छि‍ऐ, मुदा जखनि गाममे छल तखनि तँ वएह एकटा चरि‍हत्थी गामछा छेलै। डाँड़मे लपेटने रहै छल। गप-सप्‍प करैमे कोनो लाज-धाक नै हेबाक चाही। हम जे बुझै छि‍ऐ से अहूँ पूछू आ जे नै बुझै छि‍ऐ से हमहूँ किए ने पूछब। तइले लाज-संकोचक कोन काज छै।
पत्नीकेँ चुप देखि कि‍सुनलाल-
भाय साहैब, कहैले तँ गाममे नै छी मुदा गामे जकाँ एतौ छी। ने ओते कमाइ होइए जे होटल घुमब, ज्‍वेलरी घुमब। बस, डेरासँ कारखाना आ कारखानासँ डेरा अबै-जाइ छी। अठबारे -छुट्टी दि‍न- कनी-मनी घूमि‍ लइ छी सेहो पएरे।
पति‍क बात सुनि‍ सिंहेश्वरी पाछूसँ ससरि‍ कनी आगू बढ़ि‍ ति‍रछि‍या कऽ ठाढ़ भऽ बजली-
की कहलखि‍न?”
देवकान्‍त-
कहलौं यएह जे ति‍लकोरक चटनी केना बनबै छि‍ऐ?”
देवकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ सिंहेश्वरी बजली-
भैया, हि‍नका कि‍ कोनो नै बूझल हेतनि‍?”
देवकान्‍त–
कनि‍याँ, कोनो कि‍ हमरा जँचैक अछि‍, धरमागती कहै छी नै बूझल अछि‍।
तैबीच सामंजस्‍य करैत ि‍कसुनलाल बाजल-
भाय साहैब, ओना हम तरूओ खेने छी, सागो खेने छी आ चटनीओ खेने छी। धिया-पुतामे पाकल ति‍लकोरक फड़ सेहो खेने छी। जाबे माए जीबैत रहए ताबे आन दि‍न तँ नहि‍येँ मुदा जुड़शीतल पावनिमे ति‍लकोरक तरुआ अबस्‍से तरए। बड़ खर्चाक चीज छी। ओते खर्च कऽ खाएब असान थोड़े छै।
पति‍क सह पबि‍ते सि‍ंहेश्वरी बजली-
भैया, हमर माए-बाप बड़ गरीब छला। भरि‍ पेट अन्नो नै भेटै छेलनि‍ तखनि जे तरुआ-बगहरुआक सेहन्‍ते करि‍तथि‍ से पार लगि‍तनि‍।
सि‍ंहेश्वरीक बात सुनि‍ मुड़ी डोलबैत देवकान्‍त बजला-
हँ, से तँ ठीके। हमहूँ की कोनो बेसी खेने छी। जहि‍या कहि‍यो घरदेखीमे केतौ जाइ छी तखनि खाइ छी। सेहो आब उठाबे भेल जाइए। आब तँ सहजे‍ लोक तेहेन चि‍कनि‍या भऽ गेल जे अल्‍लुऐक पाँचटा पूरा लइए। नवका तूर तँ खाइक कोन गप जे बुझबो ने करैत हएत। पात-पुत कहि थोड़े खाएत। अच्‍छा छोड़ू ऐ सभकेँ, असल बात तँ छुटले अछि‍।
वि‍चारक सामंजस्‍य पाबि‍ सि‍ंहेश्वरीक उत्‍साह जगलनि‍, बजली-
भैया, साग तँ बुझले हेतनि‍ जहि‍ना कदीमा पात, अड़ि‍कंचन पातकेँ कत्तासँ काटि‍ भुजल जाइ छै तहि‍ना ति‍लकोरो पातक होइ छै।
हूँहकारी भरैत सि‍ंहेश्वरीक बातकेँ मानि‍ देवकान्‍त बजला-
हँ-हँ, ति‍लकोरक साग तँ केत्ता दि‍न खेने छी। मुदा चटनी नै।
जहि‍ना नव काज केने, नव जगहपर पहुँचने वा नव लोकसँ दोस्‍ती भेने मनमे खुशी होइत तहि‍ना दस बरख पहुलका खेलहाक चरचा करैमे सि‍ंहेश्वरीकेँ मनमे खुशी उपकलनि‍। मुस्‍कीआइत बजली-
भैया, जहिना अड़िकंचन पातकेँ कदीमा पात वा आन पातक तरमे दऽ पतौड़ा बना आगि‍मे पकौल जाइ छै, तहि‍ना ति‍लकोरो पातकेँ पकौल जाइ छै। जखनि उपरका पात झड़कि‍ जाइ छै तखनि बूझि‍ जाइऔ जे ति‍लकोरोक पात सीझ गेल हएत। ओकरा चूल्हि‍सँ नि‍कालि‍ चाहे पानि‍क वर्तनमे दऽ दि‍औ नै तँ कनीकाल सराइले छोड़ि‍ दि‍औ। जखनि सरा जाएत तखनि ओकरा पतौड़ासँ नि‍कालि‍ सि‍लौटपर थकुचि‍ कऽ पीसि‍ लिअ। बहुत मसल्‍लाक काजो नै पड़ै छै। चसगरसँ नून मि‍रचाइ दऽ दि‍औ। बस भऽ गेल। ओना लोक भातोमे खाइए मुदा रोटीक तँ बुझि‍औ जे जहि‍ना भातक दालि‍ तहि‍ना रोटीक ति‍लकोरक चटनी छी।
सि‍ंहेश्वरीक बात सुनि‍ तेसर ढकार ढेकरैत देवकान्‍त लोटा उठा पानि‍ पीब‍‍ बजला-
कि‍सुनलाल, बहुत खेलिअ समानक आगू खेनि‍हार थोड़े ठठत। बड़ ओरि‍यान केने छेलह।
जहि‍ना नीक वि‍द्याथी बोर्ड वा युनि‍वर्सिटीमे टॉप केलोपर झुड़झुड़ाइत जे दुइयो प्रति‍शत नम्‍बर और रहैत तँ अस्‍सी प्रति‍शत पूरि‍ जइतए। तहि‍ना कि‍सुनलाल कहलकनि‍-
भाय साहैब, कनीओ आर खाइऔ।
आग्रह सुनि‍ देवकान्‍त बजला-
हम कि‍ कोनो राक्षस छी जे केतबो खाएब तँ पेटे ने भरत। मनुखक जे भोजन छि‍ऐ से तँ खेबे केलौं। तूँ नै अंदाज केलहक जे लोक केते खाइए। पेटेक कोन बात जे मनो भरि‍ गेल। अच्‍छा एकटा बात कहऽ जे अपन गौआँ के सभ ऐठाम, बम्‍बइमे रहै छथि‍?”
देकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ कि‍सुनलाल मने-मन सोचए लगल बम्‍बइ सनक शहरमे के केतए रहैए ई भाँज तँ मात्र दुइए गोटोकेँ रहै छै। पहि‍ल जे काज नै करैए, दोसर जे कोनो कम्‍पनीक एजेंसी करैए। बाँकीकेँ कोन जरूरति छै। अठबारे छुट्टी होइए तइमे कि‍ सभ करब केते करब, कपड़ा-लत्ता खींचब आकि‍‍ सप्‍ताह भरि‍क अधखरूआ नीन पुराएब, आकि‍ दुनू परानी मि‍लि‍ कोनो नव जगह देखि‍ लेब, आकि‍ भेँट-घाँट करब। तखनि तँ ओहुना कि‍यो-ने-कि‍यो दर्शनीय जगहपर भेँट-घाँट भइए जाइ छथि‍। गाम-घरक हालो-चाल बूझि‍ लइ छी आ संग मि‍लि‍ चाहो-पान कऽ लइ छी। अपन मजबूरीकेँ छि‍पबैत कि‍सुनलाल बाजल-
भाय साहैब, अहूँक जेठजन तँ परि‍वारे लऽ कऽ रहै छथि‍, हुनकासँ सभ भाँज लगि‍ जाएत। तखनि हम एते जरूर कहब जे जइ करखानामे काज करै छी‍ तइमे तीन गोटे छी। कहैले तँ उठे काज अछि‍ मुदा सभ दि‍न काजो लगैए आ एकेठाम सात दि‍नक पगारो भेटैए। तइमे रवि‍ दि‍नक सेहो भेटैए।
देवकान्‍त-
अझुका तँ छुट्टी लि‍अए पड़ल हेतह?”
किए छुट्टी लि‍अए पड़त। कोनो कि‍ ओकर दरमाहाबला नोकरी करै छि‍ऐ। अझुका बदला रवि‍ दि‍न काज कऽ देबै। कोनो की स्‍कूल-आँफि‍स छी जे सोलहन्नी बन्न होइए। करखाना छि‍ऐ ने। सभ दि‍न चलि‍ते रहै छै।
परि‍वार किए गामसँ लऽ अनलहक ऐठामसँ कमे खर्चमे गामक परि‍वार चलैए?”
भाय साहैब, अहूँ अनठा कऽ बजै छी। गाम-घरक लोकक कि‍रदानी नै देखै छिऐ जे ताड़ी-दारू पीब-पीब कि‍ सभ कि‍रदानी करैए। अपन इज्‍जत अपने सोझहामे नीको होइ छै आ लोक बँचाइओ सकैए। तखनि देखि‍यौ, मनमे तँ अछि‍ए जे जखने गाममे रहै जोकर, कोनो काज ठाढ़ करै जोकर पूजी भऽ जाएत चलि‍ जाएब।
केते महि‍ना बँचै छह?”
एते दि‍न तँ बूझू जे कहुना कऽ गुजर केलौं मुदा आब छह माससँ गोटे महि‍ना हजार रूपैआ आ गोटे पनरहो सौ बँचि जाइए।
बैंकमे जमा करैत जाइ छह कि‍ने?”
बैक जाएब से छुट्टी होइए। एजेंट-फेजेंट तँ ढेरी अबैए मुदा ओकरा सबहक भाँजमे नै पड़ए चाहै छी।
कमो पूजीसँ तँ गाममे काज चलै छै। बि‍नु पूजीओक चलै छै।
हँ से तँ चलै छै। जेकरा अपन कारोबार नै छै ओ दोसराक काज करैए। मुदा देखते छि‍ऐ जे केते बोइन दइ छै। तहूमे आब कहुना-कहुना दुनू परानीमे आठ हजार महि‍ना उठबै छी, ऐठाम महगी अछि‍ तँए कम बँचैए। मुदा गाममे तँ कम-सँ-कम ओते कमाइ हुअए जे जहुना गुजर कटै छी तहुना पूरा सकी।
अपन की अन्‍दाज छह जे केते दि‍नमे पूरा लेबह?”
जौं भगवान नि‍केना रखलनि‍ तँ डेढ़-दू सालमे जरूर पूरि‍ जाएत। अहाँक भाय-साहैब सबहक दोसरे दि‍न-दुनि‍याँ छन्‍हि‍।
भाय साहैबक नाओं सुनि‍ते जहि‍ना भरल पेटक गरमी होइ छै तहि‍ना देवकान्‍तकेँ फूकि‍ देलकनि‍। मुदा अपनाकेँ सम्‍हारैत बजला-
सुथनी भाय-साहैब। मन भेल जे कनी बम्‍बै देखी, दरभंगामे टि‍कट कटेलौं चलि‍ एलौं। तोहर नाओं-ठेकान लऽ लेने रहि‍हऽ। तँए तोरा डेरापर चलि‍ एलौं। भाइए छि‍आ तँ कि‍ ओइसँ सतरह-बर नीक तँू छह। कम-सँ-कम समाज बूझि‍ तँ सुआगत केलह।
अपन प्रशंसा सुनि‍ कि‍सुनलाल वि‍ह्वल भऽ गेल। बाजल-
भाय साहैब, ओते तँ कमाइए ने अछि जे‍ अइल-फइलसँ खर्च करब मुदा समाजक जौं कि‍यो डेरापर औता तँ अनका जकाँ मुँह नै घुमा लेब।
कि‍सुनलालक सह पबैत देवकान्‍त बजला-
कि‍सुनलाल, परि‍वारे सभ कोकणि‍ गेल तँ समाज केहेन हएत। मुदा तँए सोलहो आना परि‍वार कोकणि‍ए गेल सेहो बात नइए। जाबे धरतीपर धर्म नै छै ताबे चलै केना छै।
कि‍सुनलाल-
भाय साहैबक भेँट करबनि‍ की नै?”
मन तँ एको पाइ नै अछि‍ मुदा जखनि ऐठाम आबि‍ गेलौं तखनि नहि‍योँ भेँट करब उचि‍त नहि‍येँ हएत। तोरा तँ हुनकर मोबाइल नम्‍बर बूझल हेतह कि‍ने?”
हँ से तँ लि‍खल अछि‍। मुदा मोबाइल अपना कहाँ अछि‍?”
बुथपर सँ तोहीं कहि‍ दहुन जे देवकान्‍त गामसँ ऐला अछि‍। जौं गप करए चाहता तँ अपने कहथुन नै तँ जानकारी तँ भेटि‍ए जेतनि‍।
भायपर बि‍गड़ल देखि‍ सि‍ंहेश्वरी देवकान्‍तकेँ पुछलकनि‍-
भैया, एना खि‍सि‍आएल किए छथि‍न?”
देवकान्‍त-
कनि‍याँ, की कहब कहैले तँ पाइ-कौड़ीबला कहबै छथि‍। तहि‍ना घरक घरोवाली छथि‍न। अपना तँ कनी-मनी कुल-खनदानक लाजो होइ छन्‍हि‍ मुदा घरवाली जे छथि‍न से तँ भगवाने देल छथि‍न।‍
सि‍ंहेश्वरी-
जखनि अपने नीक छथि‍ तखनि हुनका घरवालीसँ कोन मतलब छन्‍हि‍?”
देवकान्‍त-
मतलब पुछै छी। की कहब, बजि‍तो लाज होइए जे एके परि‍वारक छी तखनि एना किए बजै छी। मुदा नहि‍योँ बाजब सेहो तँ गलतीए हएत। अपने जे भाय साहैब छथि‍ से मरदे-ने-मौगीए, बलि‍गोबना छथि‍। जहाँ कि‍छु बाजए लगता आ पत्नीक आँखि‍पर नजरि‍ पड़तनि‍ आकि‍ बोलीए बदलि‍ जाइ छन्‍हि‍।

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