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Friday, October 18, 2013

(45) परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा

परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा

समाजमे सभकेँ छगुन्‍ता लगैत जे होइत भि‍नसर सौंसे गाम हड़-हड़-खट-खट शुरू भऽ जाइए मुदा कमलाकक्काक परि‍वारमे एको दि‍न नै सुनै छी, तेकर की कारण? जहि‍ना रंग-बि‍रंगक लोक समाजमे रहैए तहि‍ना ने रंग-बि‍रंगक रोगो-बियाधि‍ आ क्रि‍यो-कलाप रहैए। मुदा लंकाक वि‍भीषण जकाँ यमुनाकाकी आ कमलाकक्काक परि‍वार केहेन हलसैत-फुलसैत कलशैए‍!
बहुत आँट-पेटक परि‍वार कमलाकक्काक नै। आने परि‍वार जकाँ अपन दसे कट्ठा जमीन। मुदा पनरह कट्ठा बँटाइओ करै छथि‍। जइसँ सहि‍-मरि‍ कहुना साल लगि‍ जाइ छन्‍हि‍। ओना आन परि‍वार जकाँ धिया-पुता झमटगर नै, सि‍रि‍फ चारि‍ए गोटेक परि‍वार। दू परानी अपने आ बेटा-पुतोहु। डोरामे गाँथि‍ जहि‍ना फूलक माला बनैत तहि‍ना परि‍वारोक डोरा सक्कत। अपन-अपन सीमाक बीच चारू गोटे कोल्हुक बड़द जकाँ चौबीसो घंटा चलैत रहैत। ओना गामक अदहासँ बेसी परि‍वारक समांग गाम-सँ-बाहर धरि‍ रहि‍ परि‍वार चलबैत, मुदा कमलाकाक्काक परि‍वारमे के बाहर जाएत तेकर अँटाबेशे ने होइत। कक्काक मनमे रहनि‍ जे एक्केटा समांग अछि‍ जौं ओ बाहरे चलि‍ जाएत तँ बेर-कुबेरमे एक लोटा पानि‍ओ के देत? मौका-कुमौकामे कोटो-कचहरी के करत? तेतबे नै, जौं कहीं किष्‍कारक समए बेमारे भऽ जाएब तँ खेती-पथारी के सम्‍हारत? जनीजाति‍ तँ जनीजाति‍ए होइत, खेत केना जोताएत? जौं खेते नै जोताएत तँ खेती केना हएत? जौं खेतीए नै हएत तँ परि‍वार केना चलत? अपनो ि‍क आब ओ समरथाइ रहल जे बलधकेलो कि‍छु कऽ लेब।
जहि‍ना कमलाकक्काक मनमे अपन काजक ओझरी लगनि‍ तहि‍ना यमुनोकाकीक मन ओझराएल। मनमे उठनि‍ जे मुँह-झाड़ि‍ पति‍केँ कि‍छु तँ नहि‍येँ कहि‍ सकै छि‍यनि‍ मुदा पुतोहु लगा बेटाकेँ तँ कहि‍ सकै छी। जखने बेटाकेँ कहबै तखने ओहो ने सुनता। कोनो की कानमे ठेकी थोड़े रहतनि‍।
रधवाक मनमे तेसरे बात उठैत। गि‍रहस्‍ती काज बेसी वरसातमे होइए। मि‍रगि‍सरा-अद्राक पानि‍ तेहेन ने होइए जे हाथ-पएर सड़ा दइए। एक तँ हाथ-पएर घबाह भऽ जाइए तैपर सँ काजो बढ़ि‍ जाइए। तइसँ नीक जे परदेशे खटब। मुदा वि‍चार लगले रधवाक मनकेँ बदलि‍ दइ। बरहम स्‍थानक भागवत कथा मन पड़ि‍ जाइ। ओना पनरहो दि‍न सुनने रहए मुदा एक्केटा बात मन रहलै। ओ ई जे ‘माए-बापक सेवा करब बेटाक सभसँ पैघ धर्म छी।’
पुतोहु लेल धैनसन। ‘कोउ नृप होउ हमे का हानी।’ एकटा गारजनकेँ के कहए जे तीन-तीनटा गारजनक तरमे छी। जेहने दि‍न तेहने राति‍।
पि‍ताक पीठपोहू बनि‍ रधवा कमलाकक्काक संग खेती- वाड़ीमे पूरैत। एते बात रधवा बूझि‍ गेल रहए जे खेतीक भरि‍गर काजमे हरबाहि‍, कोदरबाहि‍ आ करीनबाहि‍ अछि‍। ओना धनरोपनीमे सेहो डाँड़ दुखाइ छै। तँए पि‍ताकेँ ऐ सभ काजसँ फारकती दऽ देने रहनि‍। गि‍रहस्‍तीओ तँ अमरलत्ती जकाँ सघन होइए। काजक इत्ता नै। कलमसँ कोदारि‍ धरि‍क काज। जेते समए तेते काज पसारि‍ लिअ। तेतबे नै, कि‍छु काज एहनो हाेइए जइमे कम तरद्दुत होइत आ कि‍छु एहनो होइत जे तीन-तीन बेर केलोपर गड़बड़ाएले रहैत। तैपर सँ मेठनि‍ओ बेसी। भरि‍गरकाज रधवा सम्‍हारि‍ओ लन्‍हि‍ तैयो कमलाकाकाकेँ सोहरी लागल काज रहबे करनि‍। जेते हाथ-पएरसँ करथि‍ तइसँ कम बुधि‍ओक नै। महि‍ना, ग्रह, नक्षत्रक काज सेहो रहबे करनि‍। कोन नक्षत्रक धानक बीआ नि‍रोग होइए आ कोनमे पाड़ने कललग्‍गू भऽ जाएत। कोन नक्षत्रमे कोन चीजक बीआ पाड़ल जाएत आ कोन चीज रोपल जाएत। बारहो मासक हि‍साब कंठस्‍थ रखने छथि‍। जेकर खगता अखनि धरि‍ रधवाकेँ भेबे ने कएल। जेते काल काजमे लगल रहैत तेतबे बुझैत। बाँकी समए ने मारी माछ ने उपछी खत्ता। बि‍ना धैन-फि‍कि‍रक बितरागी जकाँ चैनसँ रहैत। कमेनाइ-खेनाइ आ सुतनाइक जि‍नगी। तीनूक गति‍ओ एकरंगाहे!
आँगनसँ बहराक काज जहि‍ना दुनू बापूत कमलाकक्काक बीच अड़ियाएल चलैत रहनि‍ तहि‍ना अँगनाक भीतरक काज दुनू सासु-पुतोहुक बीच। चूल्हि‍-चीनमार बाहरब-नीपब, घर-अँगना बहारबसँ लऽ कऽ थारी-लोटा धूअब, भनसा-भात करब धरि‍क भार पुतोहुक ऊपर। जे पुतोहुओ आ सासुओ बुझैत, तँए ने केकरो चड़ियबैक जरूरति‍ आ ने कि‍यो अढ़बैक आशा करैत। तहि‍ना यमुनोकाकीक काज रहनि‍। कोठीक अन्न केना सुरक्षि‍त रहत, तैठामसँ लऽ कऽ माल-जालक थैर-गोबर केनाइ घास लौनाइ धरि‍क। ओना कि‍सकारोक समैमे आ कटनि‍ओक समैमे गि‍रहस्‍तीमे हाथ-बटबैत। चीनी मि‍लमे जहि‍ना एकठाम कुशि‍यार बोझि‍ते, रेलबे टि‍कट लेनि‍हारक धाड़ी जेना रसे-रसे आगू बढ़ैत, तहि‍ना कमलाकक्काक परि‍वार। ने मुहाँ-ठुठी करैक कोनो जगह आ ने होइत।
ओना गाम नीचरस जमीनमे बसल तँए ऊँचरस जमीनक बारहो-बि‍‍रहि‍णीक खेती नै होइत। भीठ जमीन नै रहने भीठक उपजो नहि‍येँ! जइसँ गाममे बेख-बुनि‍यादि‍ सेहो कम आ गाछि‍ओ-खरहोरि‍। तीन हीसमे बास आ एक हीसमे वाड़ीओ-झाड़ी। ओना तँ छह ऋृतु होइ छै‍ मुदा गि‍रहस्‍ती लेल मूलत: तीन मौसम होइत। ऋृतु दुइए मासपर बदलैत, जखनि कि‍ फसि‍ल तीन मासक उपरान्‍ते बदलैत। कि‍छु-कि‍छु तीन माससँ कम्मो समैमे होइत मुदा बेसी तीन माससँ बेसीएमे। तँए मोटा-मोटी जाड़, गड़मी वरसाती फसि‍ल होइत। तहूमे डंडी-तराजू जकाँ वरसात डंडी पकड़ने अछि‍। तराजूक पलड़ा जकाँ जाड़-गरमी। एक-दोसराक दुश्‍मनो। रहत कोनो एक्केटा रहत। सन्‍यासी जकाँ दोसर नै सोहाइत। मुदा बीचमे जौं पंच नै रहत तँ झगड़ेमे दुनू लगि‍ जाएत, आगू की बढ़त। सालक वरसाते मौसम एहेन होइत जे सालो-भरि‍क भाग-तकदीर ि‍नर्धारि‍त करैत। जहि‍ना बेसी बर्खा भेने दहार होइए तहि‍ना नै भेने रौदी! जे दुनू गि‍रहस्‍तीकेँ जान मारैए। हँ एहनो होइए जे, जइ साल समगम बर्खा भेल तइ साल सुभ्‍यस्‍त समए भेल। जइसँ नि‍च्चाँ-ऊपर एक रंग फसि‍ल उपजल। जहि‍ना कृष्‍ण अर्जुनकेँ कहने रहथि‍न तहि‍ना मौसमो होइए।
जइ धरतीपर गंगा, सरस्‍वती, यमुना सन धार एकठाम मि‍लि‍ कुम्‍भ सजबैए‍ तैठाम दि‍न-दहार हत्‍या, बलात्‍कार अपहरण हुअए, बि‍नु बुधिक लोकक भरमार लगल रहए, मनुखकेँ मनुख नै बूझल जाए, तैठाम तीनू संगमक कोन उपकार? नमगर-चौड़गर आँट-पेटक तीनू धार जे हँसैत-झि‍लहोरि‍ खेलैत समुद्रमे समाहि‍त होइत, तैठाम...?
हमरा सभकेँ ईहो नै ओझल रखक चाही जे एकैसम सदीक स्‍वतंत्र प्रजातंत्रक बीच बास करै छी। अखनि धरि‍क इति‍हासमे एते सक्षम मनुख ऐ धरतीपर नै भेल छल। तखनि दायि‍त्‍व बनैए जे युगक संग पकड़ि‍ युग-युगान्‍तरक धाराकेँ स्‍वच्‍छ बना चलए दि‍ऐ। काल मनुक्‍खेटा केँ नै सभ कि‍छुकेँ प्रभावि‍त करै छै‍। जखने सभ कि‍छु प्रभावि‍त हएत तखने जीवन-पद्धति‍मे धक्का लगत। ओइ धक्काकेँ ि‍नष्‍क्रि‍य करैले जीवन-शैलीमे बदलाव आनए पड़त! बितल युग तहि‍ना बदलल। सत्‍युगमे जे क्रि‍या-कलाप छल ओ त्रेतामे आबि‍ सुधरल, जइसँ बदलाव आएल। युग-परि‍वर्त्तन भेल। तहि‍ना त्रेतासँ द्वापर भेल। तँए जरूरी भऽ गेल अछि‍ जे समयांकन इमानदारीसँ हुअए।
कहैले तँ कमलाकाका परि‍वारक गारजन छथि‍ मुदा अँगनाक सीमासँ अपनाकेँ बाहरे रखने छथि‍। खेतक उपजावारी बाधसँ आनि‍ पत्नीकेँ सुमझा दइ छथि‍‍न। यमुनोकाकी कि आब नव-नौताड़ि‍ छथि‍ जे परि‍वारक धक्का-पंजा नै बुझथि‍न। जि‍नगीक धक्का-पंजा जीबैक बहुत कि‍छु लूरि‍ सि‍खा देने छन्‍हि‍। सुभ्‍यस्‍त समए भेने काकीक मनमे खुशीक कोढ़ी शुरूहे अाद्रा नक्षत्रमे जे पकड़लकनि‍ से बढ़ैत-बढ़ैत अगहनमे भकरार भऽ फुला गेलनि‍।
धान दौन होइते, आने साल जकाँ यमुनाकाकी उसनि‍याँ करैसँ पहिने‍ उपजाक हि‍साब बेटो-पुतोहु आ पति‍ओक कानमे दऽ देब, आने साल जकाँ नीक बुझलनि‍। मने-मन बुदबुदेली-
केते धान भेल, तेकर केते चाउर हएत आ केते दि‍न चलत?”
केते दि‍न चलतमे ओझरी लगि‍ गेलनि‍। लोकक पेटक कोनो हि‍साब अछि‍। देखैमे ने बीत भरि‍क बूझि‍ पड़ैए मुदा हाथीओ खा-पी कऽ पचा लइए‍। फेर मन घुमलनि‍। जखनि अपने परि‍वारक बात अछि‍ तखनि एना अग्‍गह-वि‍ग्‍गह किए सोचै छी। देखले परि‍वार नपले सि‍दहा। मुदा लगले मन आगू घुसुकि‍ गेलनि‍। आन-आन परि‍वार जकाँ तँ अपन परि‍वार नै अछि‍। आन-आनमे आनो-आनो उपए छै अपना तँ से नै अछि‍। लऽ दऽ कऽ खेतीएक आशा अछि‍। तहूमे एते दि‍न घटबी पुड़बैले गाम-गाम महाजनो छेलए मुदा आब तँ ओहो ने अछि‍। ने ओ देवी आ ने ओ कराह। महाजनी मरैक कारणो भेल। राजे रोग जकाँ ने बाढ़ि‍ओ-रौदी छी। जे जेहेन तेकरा तही रूपे पकड़ै छै‍। जे जेते कम आँट-पेटक ओकरा ओते कम आ जे जेते नम्‍हर ओकरा ओते बेसी नोकसान करैत। तइ संग ईहो भेल जे गामक लोक बाहरसँ सेहो कमा-कमा आनए लगल। जइसँ महाजनीक बीच रोड़ा अँटकल।
ओना बहरबैओ बाहरक बहुत बात तँ नहि‍येँ बुझैत मुदा जि‍नगीक कि‍छु बात तँ जरूर बुझए लगल। नै बुझैक कारण रहए जे पढ़ल-लि‍खल नै रहने एको गोटेकेँ ने बैंकक नोकरी रहै आ ने करखन्नाक ऑडि‍टरी। जैठाम धनक कँकोड़बा बि‍आन होइत से कि‍यो ने बुझैत! मुदा रि‍क्‍शा चलौनि‍हार, ठेला ठेलि‍नि‍हार, गोदाममे बोरा उठौनि‍हारकेँ लगक महाजनसँ भेँट जरूर भेलै। जहि‍ना छोट बच्‍चा हाथक ओंगरी मुँहमे लैत-लैत बाँहि‍ओ पकड़ए लगैत, तहि‍ना खुदरा महाजन लग एने भेल। ओना छोट महाजनी रहने साले भरि‍क लेन-देन चलैत मुदा पच्‍चीस हजारक सहयोगी तँ भेटल। बेटा-बेटीक बि‍आह, घर-घरहट आ बर-बिमारीक आशा तँ भेटल। गामक महाजनीसँ सूदि‍ओ छोट। जेतए आसि‍न-काति‍कक कर्ज एक्के-दुइए मासमे सवैया-डेढ़ि‍या वृद्धि‍ करैत तैठाम दस प्रति‍शत बियाजक बदला पच्‍चीस प्रति‍शत दि‍अए पड़त, तेतबे ने। मुदा तैयो तँ असाने भेल। दोसर ईहो भेल जे आध-मन, एक-मन कर्ज लेल जे भरि‍-भरि‍ दि‍न साबेक जौरी खर्ड़ए पड़ैत छल सेहो बन्न भेल।
दुनू बापूत -कमलोकाका, रधवो- केँ यमुनाकाकी बुझबैत कहलखि‍न-
एते धान भेल। एकर एते चाउर हएत। एते दि‍नक पछाति‍ फेर अगि‍ला अन्न हएत। एते दि‍नमे एते साँझ भेल, एतेटा आश्रम अछि‍। दि‍नमे एते सि‍दहा लगैए।
यमुनाकाकीक हि‍साव सुनि‍ कमलाकाका वि‍चारक दुनि‍याँमे बौआ गेला। जेहो सुनलनि‍ सेहो रसे-रसे बि‍सरए लगला आ जे नै सुनलनि‍ से तँ नहि‍येँ सुनलनि‍। अपन प्रस्‍तावक अनुमोदन लेल यमुनाकाकी आँखि‍ नचबए लगली। कखनो पति‍पर तँ कखनो बेटापर देथि‍। उनटि‍ कऽ पाछू तकथि‍ तँ टाटक अढ़मे बैसल पुतोहुकेँ देखथि‍। सभ अपने-अपने दुनि‍याँमे बौआइत। अपन प्रस्‍तावक उत्तर नै पाबि‍ यमुनाकाकी पुन: दोहरौलनि‍-
अखनि सोचै-वि‍चारैक समए अछि‍ तँ कि‍यो कान-बात नै दइ छि‍ऐ आ जखनि बेर पड़त तखनि थुक्कम-थुक्का करैत घि‍नमा-घीन करब?”
यमुनाकाकीक करुआएल बात सुनि‍ कमलाकक्काक भक्क खुगलनि‍। मनमे उठलनि‍ जे मुहोँ चोरौनाइ नीक नै। कि‍छु तँ बजबे उचि‍त। बजला-
खेतसँ खड़िहाँन आनि‍ तैयार कऽ आँगन पहुँचा देलौं आबो हमरे काज अछि‍। आकि‍ ओकरा उसनब, रौद लगा कोठीमे राखब, की सेहो पुरुखे भरोसे छी।
कक्काक उत्तरसँ यमुनाकाकीकेँ घरक लक्ष्‍मी मन पड़लनि‍। खुशीसँ मन नाचि‍ उठलनि‍। मुदा लगले, जेना घुरमी लगैए तहि‍ना लगि‍ गेलनि‍। बजली-
जोड़ भरि‍ धोती आकि‍ जोड़ भरि‍ साड़ी तँ कि‍यो साले भरि‍ ने पहि‍रत। साल भरि‍क पछाति‍ ओ थोड़े पहि‍रै जोकर रहै छै। एकर अर्थ ई नै ने भेल जे वस्‍त्रक जरूरति‍ मेटा गेल, साल भरि लेल मेटाएल, तोहूमे केते बि‍हंगरा अछि‍। कहीं चोरि‍ए भऽ जाए की हराइए जाए, की कुत्ते बि‍लाइ दकरि‍‍ दइ आकि‍ आगि‍ए-छाइक प्रकोप भऽ जाए।
यमुनाकाकीक बात सुनिओ कऽ कमलाकाका अनठा देलनि‍। चुपे रहला! मुदा मनमे ओंढ़ मारए लगलनि‍ जे माए-बाप अछैत बेटा-पुतोहुकेँ परि‍वारक चि‍न्‍ताक उत्तरी पहि‍राएब उचित नै। ओना काजक ढंग ओहन सि‍खा देब नीक, जइसँ जि‍नगीमे कहि‍यो चि‍न्‍ता नै सतबै। आगूमे बैसल रधवा, जेना संस्‍कृत आकि‍ अंग्रेजी सुनि‍ कोनो बच्‍चाकेँ होइत, तहि‍ना सुनबे ने केलक। मुदा तैयो मनमे घुरिआइ जे जे-गति‍ सबहक हेतै से हमरो हएत। तइले अनेरे माथ-कपार पीटब आकि‍ धूनब नीक नै। रमरटि‍यासँ खढ़कटि‍ए नीक! भरमे-सरम चुपे रहल।
अढ़मे बैसल पुतोहुक मन बजैले लुस-फुस करैत। लुस-फुस करैक कारण जे के नै घर आकि‍ गामक मुख्‍यि‍यारी चाहैए? मुदा वेचारीकेँ कोनो एहेन गरे ने भेटैत जे कि‍छु बजैत। एक तँ नव-नौतुक कनि‍याँ, दोसर नैहरोमे माए भानसे-भात करैक लूरि‍टा सि‍खौने। घरक जुति‍-भाँति‍क कोनो लूरि‍‍ सिखेनैइ‍ नै। केना सि‍खेबो करि‍तथि‍? सभ गाम आ सभ परि‍वारमे कि‍छु-ने-कि‍छु भि‍न्नता होइते छै। जहि‍ना कोनो नट ओहने बोल्‍टमे नीकसँ लगैत जे समतुल्‍य होइत। तहि‍ना तँ परि‍वारो ने होइ छै‍। माइए-बापक परि‍वार जकाँ सासुओ-ससुरक परि‍वार हएत, से कोनो जरूरी नै। चाहि‍ओ कऽ वेचारी कि‍छु ने बाजि‍ सकल।
ओना धानक ढेरी देखि‍ कमलाकक्काक मन उमड़ैत रहनि‍। जहि‍ना पानि‍मे भीजने कि‍ताबक पन्ना एक-दोसरमे सटि‍ जाइत तहि‍ना कमलोकाकाकेँ भेलनि। परि‍वारक सभ हृदैमे सटि‍ गेलनि‍। मन उमड़ि‍ आगू बढ़लनि‍। पति‍केँ रहैत जौं पत्नीकेँ वा बाप-माएक रहैत बाल-बच्‍चाकेँ कोनो तरहक चि‍न्‍ता-फि‍कि‍र हुअए तँ जरूर केतौ-ने-केतौ माए-बापक दोख छि‍पल अछि‍। दोखक कारण मनमे एबे ने करनि‍। ओछाइनपर जहि‍ना नीन नै एने कछमछी लगैत तहि‍ना मन कछमछाइत रहनि‍। मुदा लगले, जहि‍ना सुतली राति‍मे ओछाइनपर सूतल माएकेँ देखि‍ जागल बच्‍चा सूति‍ रहैत तहि‍ना कमलोकाका केलनि‍।
काकाकेँ शान्‍त देखि‍ यमुनोकाकी असथि‍र भऽ गेली। मनमे उठलनि‍ जे चारि‍ गोटेक आश्रममे तीन गोटे तँ एक्के परि‍वारक छी, खाली कनि‍येँटा ने अखनि दस-आना छह-आनामे छथि‍। ओहो दू-चारि‍ सालमे रि‍ताइत-रि‍ताइत रि‍ता जेती। मुदा अखनि तँ नैहरेक चाि‍ल-ढालि‍ छन्‍हि‍। अखनि थोड़े ऐ घरक तीत-मीठ पचाैती। नैहर गेलापर जखनि सखी-बहिनपा वा माए-पि‍तियाइन पुछतनि‍ जे बुच्‍ची अन्न-वस्‍त्रक ने तँ दुख-तकलीफ होइ छह, तखनि ओ थोड़े आगू-पाछू ताकि‍ बजती। ओ तँ परि‍वारेक बँचौने बँचत। वएह ने परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा छी। जानि‍येँ कऽ तँ हमरा सबहक घरक छप्‍पर भगवानक डंगेलहा छी, तेहीमे ने बॅचि‍-खुचि‍ कऽ घरक मर्यादाकेँ संगे लऽ कऽ चलैक अछि‍। अहीमे ने अपन इमान-धर्म बँचबैत परि‍वार चलाएब तखनि ने समाजक संग कुटुमो-परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा ठाढ़ रहत।

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