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Friday, October 18, 2013

(41) मायराम

मायराम

अमावास्‍याक राति‍, बारहसँ ऊपर भऽ गेल मुदा एक नै बाजल। डंडी-तराजू माथसँ नि‍च्‍चाँ उतरि‍‍ गेल। सन-सन करैत अन्‍हार। नअ बजेमे नि‍न्न पड़ैवाली मायरामकेँ आँखि‍क नीन नि‍पत्ता! कछमछ करैत ओछाइनपर एक करसँ दोसर कर उनटैत-पुनटैत, अकछि‍ केबाड़ खोलि‍ बाहर नि‍कलली तँ काजर घोराएल राति‍मे अपनो हाथ-पएर नै सुझन्‍हि‍। जहि‍ना करि‍छौंह दुनि‍याँ आँखि‍सँ नै देखथि‍ तहि‍ना दसो दुआरि‍ बन्न मन खलियाएल बूझि‍ पड़लनि‍। पुन: घूमि कऽ ओछाइनपर आबि‍ आेंघरा गेली! दि‍न-राति‍क बोध-विहिन मन तड़पि‍ उठलनि‍-
नैहर!”
पहि‍ल सन्‍तान भेलोपरान्‍त सुदामा (मायराम) बाइसे बरखमे वि‍धवा भऽ गेली। गत्र-गत्रसँ जुआनी, फुलझड़ीक लुत्ती जकाँ छि‍टकैत! ओना सरकारी रजि‍ष्टरमे जुआन भऽ गेल छेली मुदा बत्तीसीक अंति‍म दाना नै उगल रहनि‍। साँपक बीखसँ करियाएल देह देखि‍ अपनो मरनासन भऽ गेली। पथराएल आँखि‍ टक-टक टकैत मुदा अन्‍हारसँ अन्‍हराएल। बगलमे डेढ़ बरखक बेटा उठैत-खसैत अँगना-घर घुमैत-फि‍ड़ैत। तैबीच हहाएल-फुहाएल शंकरदेव (भाय) आँखि‍मे यमुनाक धार नेने पहुँचला। बहि‍न-बहनोइक रूप देखि‍ अपन आँखि‍क नोर पोछि‍ भागि‍नकेँ उठा छाती सटा, बहि‍न (सुदामा)केँ कहलखि‍न-
बुच्‍ची होश करू। दुनि‍याँक यएह खेल छि‍ऐ। अहीं जकाँ नानि‍योँकेँ भेल रहनि‍। मुदा आइ केहेन भरल-पूरल्‍ा परि‍वार छन्‍हि‍। एक ने एक दि‍न, ओहि‍ना अहूँक परि‍वार दुनि‍याँक फुलवाड़ीमे फुलाएत।
शंकरदेवक बात सुनि‍ सुदामाक आँखि‍ खूगल मुदा बकार नै फुटलनि‍। नर-नारीक करेजो तँ दू धारक दू माटि सदृश होइत बहनोइक जरबैक ओरि‍यानमे आँगनसँ नि‍कलि‍ शंकर समाज दि‍स बढ़ला।
पनरहम दि‍न बहि‍नकेँ संग नेने अपना गाम वि‍दा भेला। गामक सीमानपर अबि‍ते गाममे कन्नारोहट शुरू भेल। बच्‍चासँ बूढ़‍ धरि‍ सुदामाकेँ छाती लगबए आगू बढ़ल। वेचारी नि‍सहाय भेल पड़ल। जहि‍ना चोंगरा परहक घर खसैत, तहि‍ना। मुदा ताधरि‍ गामक धरोहि‍क अगि‍ला अंक पहुँच‍‍ गेल। एक्के-दुइए ढेरो छाती सुदामाक छातीमे सटि‍, चारू दि‍ससँ पकड़ि‍ टोल दि‍स बढ़ल। सुदामाक मनमे उठलनि‍ जौं अपने कानब तँ समाजक कानब केना सुनबै। से नै तँ समाजेक कानब सुनी‍‍ जे आगूक जि‍नगी केना जीब। बीच आँगनमे माय ओंघरनि‍या दैत आ दरबज्‍जापर पि‍ता भुइयेँमे पेटकान देने! अपन-अपन अथाह समुद्रमे सभ डूमल। के केकर नोर पोछत! दुनू पएर धोइ भतीजी गाराजोरी केने आँगन बढ़ली। दुरखापर पएर दैतै सुदामाक रूदनसँ बहराएल-
हे मइया...।
जहि‍ना धड़सँ कटल अंग छटपटाइत तहि‍ना कामि‍नीक (माए) मन छटपटाइत-छटपटाइत मनमे प्रश्न-पर-प्रश्न उठए लगलनि‍। मुदा कोनो प्रश्नक सोझ रस्‍ता नै देखि‍ काँटक ओझरी जकाँ मन ओझराए लगलनि‍। एक ओझरी छोड़बथि‍ आकि बि‍च्‍चेमे दोसर लगि‍ जाइन।
...की‍‍ आगूक जि‍नगी लेल बेटीकेँ दोसर बि‍आह कऽ देब? फेर मन उनटि‍ जान्‍हि, जि‍नगी लेल सहचर तँ आवश्यक अछि‍?
...की‍ सहचर लेल पति‍ आवश्यक अछि‍?
मुदा जेते असानीसँ गुंथी खोलए चाहथि‍ ओते असानीसँ खुगबे ने करनि‍। तैबीच दोसर प्रश्न अकुँरि‍ जाइन।
...बेटीक संग नाति‍ओ अछि‍। जौं बेटी दोसर घरकेँ अपन घर बनाैत तँ नाति‍क...?
पुत्र हत्‍याक पाप केकर कपार चढ़त? की‍ कुत्ता जकाँ पछि‍लग्‍गू एहेन सुकुमार फूलकेँ बना देब। अखनि ओ दूधमुँह अछि‍, की‍ बूझत? अपन भूमि‍ आ आनक भूमि‍क मर्जादा एक्के रंग होइत। की दोसरो घरमे ओहने ममता माइक भेटतै? मनुक्‍खेक क्रि‍या-कलाप ने कुल-खनदानक जड़ि‍मे पानि‍ ढारैए‍। घुरि‍याएल मनकेँ राह भेटलनि‍। सुफल नारी जि‍नगी तँ वएह ने छी जेकरा आँचरक लाल मातृत्‍व प्रदान करैए‍। जइसँ वीणाक झंकृत मधुर स्‍वर हृदैकेँ कम्‍पि‍त करैए‍। से तँ भेटि‍ए गेल छै। मुदा जहि‍ना ठनकैत अकाससँ ठनका खसैत तहि‍ना मनमे खसलनि‍-
मुदा समाज?
की‍ मनुख-पोनगैक स्‍थि‍ति‍ समाजमे जीवि‍त अछि?
सुदामाक सम्‍पन्न पि‍तृ परि‍वार। अदौसँ श्रम-संस्‍कृति‍क बीच पुष्‍पि‍त-पल्‍लवि‍त परि‍वार। जइसँ रग-रगमे समाएल अपन संस्‍कृति‍। ओना सम्‍पन्नताक सीमा असीमि‍त अछि‍ मुदा अपन आँट-पेट देखि‍ अपन (परि‍वार) जि‍नगीक स्‍तर बना चलब सम्‍पन्नताक अनेको कारणमे एक प्रमुख छी। तँए सम्‍पन्न परि‍वार। ओना आर्थिक दृष्‍टि‍ए सुदामाक बि‍आह दब परि‍वारमे भेल छेलनि‍ मुदा बेवहारि‍क दृष्‍टि‍ए बरबरि‍मे छेलनि‍। कम रहि‍तो गोरहा खेत छेलनि‍ जइसँ खाइ-पि‍ऐक कोताही नै। कि‍छु आगूओ बढ़ि‍ ससरैत। सालक तेरहम मासमे घरक कोठी-भरली झाड़ि‍ इजोरि‍या दुति‍यासँ भागवत कथाक संग हरि‍वंश कथा सुनि‍, भोज-भनडारा कऽ सामा-चकेबा जकाँ आगू दि‍स बढ़ैत।
बेटाक पालन आ धर्मक काज देखि‍ अपनो गाम आ चौबगलीओ गामक लोक सुदामक नाओं मायराम रखि‍ देलकनि‍। बच्‍चासँ बूढ़ धरि‍ माइएराम कहए लगलनि‍।
सुदामाक पि‍ता रवि‍शंकरक परि‍वारमे चूल्हि‍ नै पजड़ल। जखनि सुदामा आएल तखनि जे कन्नारोहट शुरू भेल, से भरि‍ दि‍न होइते रहि‍ गेल। कखनो बेसी तँ कखनो कम। चूल्हि‍ नै पजड़ने टोल-पड़ोसक परि‍वारसँ थारी-थारी भात-दालि‍ एते आएल जे राति‍ धरि‍ चलैत रहल।
सायंकाल रवि‍शंकर आँगनक ओसरपर बैस, सुदामाक भावी जि‍नगी लेल पत्नीओ आ बेटो-पुतोहुकेँ बैसाए वि‍चार करए लगला। वि‍चारोत्तर ि‍नर्णए भेल जे काल्हि‍ए शंकरदेव ओइठाम -सुदामाक सासुर- जा खेती-गि‍रहस्‍ती ताधरि‍ सम्‍हारथि‍ जाधरि‍ बच्‍चा-सुदामाक बेटा जुआन नै भऽ जाए। संग-ईहो भेल जे छह मास सुदामा सासुर आ छह मास नैहरमे रहत।
अठारह बरख पुरि‍ते राहुलक बि‍आह भऽ गेल। नव परि‍वार बनि‍ ठाढ़ भेल। शंकरदेव अपना ऐठाम चलि‍ एला।
तीन साल पछाति पि‍ता रवि‍शंकर आ पाँच साल पछाति माए शंकरदेवक मरि‍ गेलनि‍। मुदा दुनूठामक परि‍वारमे कोनो कमी नै रहल। हवाइ-जहाज जकाँ तेज गति‍ए तँ नै मुदा असथि‍र सवारी -टायरगाड़ी- जकाँ परि‍वार आगू मुहेँ ससरए लगल।
मायरामक प्रति‍ समाजक नजरि‍या सेहो बदलल। समाजक आन वि‍धवा जकाँ नै, जे कि‍यो अशुभ बूझि‍ कनछी कटैत तँ कि‍यो पशुवत बेवहार लेल मरड़ाइत।
तीर्थस्‍थान जकाँ मायरामक परि‍वार बनि‍ गेलनि‍। साले-साल भागवत कथाक संग हरि‍वंश कथा आ भोज-भनडारा कऽ समाजकेँ खुआ सालक वि‍सर्जन मायराम करए लगली।
पाँच बरख पछाति‍ मायरामक भरल-पुरल नैहर-शंकरदेवक परि‍वार- कोसीक कटनि‍यासँ धार बनि‍ गेल। गामक बीचो-बीच सनमुख धार बहए लगल।
घटनो अजीब घटल। चारि‍ बजे करीब बाढ़ि‍क हल्‍ला गाममे भेल। कि‍रि‍ण डुमैत-डुमैत धारक कटनि‍या शुरू भेल। गामक सभ बाध नदि‍या गेल। उत्तरसँ दछि‍न मुहेँ बहए लगल। बाढ़ि‍क बि‍कराल रूप देखि‍ गामक लोक माल-जाल, बक्‍सा-पेटीक संग ऊँचगर-ऊँचगर जमीनपर पहुँचल। नट-बक्‍खो जकाँ नव बास बनि‍ गेल।

लोकसभ बाढ़िक गूंगूआहटि सुनि‍-सुनि‍ सभ कि‍छु बि‍सरि‍ परान बँचबैक बात सोचए लगल। चारू कात बाढ़ि‍ पसरल। जइसँ ईहो डर होइत जे जौं कहीं अहूपर पानि‍ चढ़त तखनि की‍ हएत? अन्‍हरि‍या राति‍, हाथ-हाथ नै सुझैत। जीवन-मरनक मचकीपर सभ झुलए लगल। भूख-पि‍यास मेटा गेल। जहि‍ना दुखि‍त नव बि‍‍आएल गाए-महिंस बेथि‍त आँखि‍ए बच्‍चाकेँ देखैत तहि‍ना सभ माए-बापक आँखि‍ बाल-बच्‍चापर। मुदा मनुख तँ मनुख छी नै कि‍ जानवर। जेना जानवर हरि‍अर घास देखि‍ बच्‍चो आगूक लूझि कऽ खा लइए‍ तेना मनुखो करत? बाल-बच्‍चा लेल तँ मनुख अपन खूनकेँ पानि‍ बनबैत, अपन सुआदकेँ छोलनी धि‍पा दगैत, अपन मनोरथ बच्‍चामे देखैए‍। अपन जि‍नगीकेँ बलि‍वेदीमे आहूत दइए‍।
भोरहरबामे हल्‍ला भेल जे बीस नमरी पुल कटि‍ कऽ दहा गेल। पुलक समाचार सुनि‍ सबहक छाती डोलए लगल। पूव दि‍सक रस्‍ता बन्न भऽ गेल। कि‍छुए काल पछाति‍ पुन: हल्‍ला भेल जे बेटा संग रोगही पानि‍मे डुमि‍‍ गेल। कि‍छु काल धरि‍ तँ हल्‍लामे बाते नै फुटैत मुदा तोड़मारि‍ हल्‍लामे वि‍हि‍आति‍-वि‍हि‍आति‍ समाचार वि‍हि‍आ गेल। भाँसि कऽ केते दूर गेल हएत तेकर ठेकान नै तँए कि‍यो आगू बढ़ैक हूबे ने केलक। जहि‍ना एक टाँग टुटने गनगुआरि‍ नै नेंगराइत तहि‍ना एक गोटे मुइने समाज थोड़े नेंगराएत। सभ दि‍न होइत एलै आ होइत रहतै।
हल्‍ला शान्‍त होइते शंकरदेव पत्नीकेँ कहलखि‍न-
आब जान नै बँचत।
पत्नी पुछलखिन-
एते अन्‍हारमे केतए जाएब। भने ऐठाम छी।
तैपर पति पुछलखिन‍-
जौं अहूपर बाढ़ि‍ चढ़ि‍ जाएत?
सभ तूर संगे कोसीमे डुमि‍‍ जाएब। कि‍यो बँचब तखनि ने दुख हएत। जौं दुख केनि‍हारे नै रहब तँ दुख केकरा हएत। पत्नी कहलखिन।
पौरुकी घुटकल। आन-आन चि‍ड़ै सुतले रहए। पौरुकी अवाज सुनि‍ शंकरदेवक मनमे दुबिक नव मुड़ी जकाँ, नव चेतना जगलनि‍। बजला-
भि‍नसर होइमे देरी नै अछि‍। जँए एते काल तँए कनी काल आरो। दि‍न-देखार तँ असगरो लोक अमेरिका‍ चलि‍ जाइए। अपना सभ तँ बाधक थोड़े रस्‍ता काटब।
कि‍रि‍ण उगैसँ पहिने‍ ऊँचकापर पानि‍ चढ़ए लगल। चढ़ैत पानि‍ देखि‍ हरवि‍र्ड़ो भेल। गाए-महिंस, बक्‍सा-पेटी छोड़ि‍ सभ अपन जान बँचबए वि‍दा भेल। जहि‍ना वैरागी दुनि‍याँकेँ मायाजाल मानि‍, छोड़ि‍, आत्‍मचि‍न्‍तनमे लगि‍ जाइत तहि‍ना माल-असबाव छोड़ि‍ सभ वि‍दा भेल। तही बीच बाँसक झोंझमे मैनाक झौहरि‍ भेल। जेना केकरो वोनबिलाड़ि पकड़ि‍ नेने होउ, तहि‍ना।
पूब दि‍स फीक्का गुलावी जकाँ अकासमे पसरए लगल। मुदा बि‍लटैत जि‍नगी आ डुमैत सम्‍पति‍क सोग अन्‍हारकेँ आरो बढ़बैत। सूखल जमीनपर पहुँचिते छोट-छीन आशा शंकरदेवक मनमे जगलनि‍। मुदा चारू बच्‍चो आ पत्नीओक मनमे दुधाएल चाटल दानाक खखरी जकाँ। बेर-बेर शंका खिहारैत जे हो-न-हो फेर ने आगूएसँ बाढ़ि‍ चलि‍ आबए। मि‍रमि‍रा कऽ पत्नी शंकरदेवकेँ पुछलकनि-
एते लोकक गाममे एक्कोटा संगी नै देखि‍ रहल छी?
सभ अपने जान बँचबै पाछू अछि‍ तखनि के केकरा देखत।
जाबे लोक, भरल-पूरल रहैए ताबे दुनि‍याँ हरि‍अर बूझि‍ पड़ै छै। मुदा...।
हँ, से तँ होइते छै। मुदा...।
हँ ईहो होइ छै। अखनि माए जीबैए, केतए बौआएब। बच्‍चो सबहक मात्रि‍के भेल, अपनो नैहरे भेल आ अहूँक सासुरे।
पत्नीक बात सुनि‍ शंकरदेव गुम भऽ गेला। मनमे चूल्हि‍पर खौलैत पानि‍ जकाँ वि‍चार तर-ऊपर हुअ लगलनि‍। बजला-
कहलौं तँ बड़बढ़ि‍याँ। मुदा सासुरसँ नीक बहि‍न ऐठाम हएत।
केना?
जइ दि‍न बेचारीक ऊपर विपति आएल छेलै तइ दि‍न यएह देह अपन घर-परि‍वार छोड़ि‍ ठाढ़ भेल छेलै। आइ, की‍ हमरे गाम-घर मेटा रहल अछि‍ आकि‍ ओकरो नैहर।
अहाँकेँ जे वि‍चार हुअए।
वि‍चारे नै, विपतिमे लोकक बुधि हरा जाइ छै। जइसँ नीक-अधलाक वि‍चार नै कऽ पबैए‍। मुदा अहीं कहूँ जे सासुरमे कान्‍हपर कोदारि‍ लऽ कऽ खेत-पथार जाएब से केहेन हएत। अपन जे दुरगति‍ हएत से तँ हेबे करत मुदा दुनू परि‍वारक -सासुर नैहर- की गति‍ हएत।
बाढ़ि‍क समाचार इलाकामे पसरि‍ गेल। मायरामक कानमे सेहो पड़लनि‍। भाय-भौजाइक आशा-बाट तकैत मायराम बेटा राहुलकेँ संग केने आगू बढ़ली। मुदा कि‍छु दूर बढ़लापर सोगसँ पथराएल पएर उठबे ने करनि‍। बाटक बगलक गाछक नि‍च्‍चाँ बैस बेटाकेँ कहलखि‍न-
बौआ, पएर तँ उठबे ने करैए। केना आगू जाएब? ता तूँ आगू बढ़ि‍ कऽ देखहक।
छबो तूर शंकरदेव ऐ आशासँ झटकल अबैत जे जेते जल्‍दी पहुँचब ओते जल्‍दी बच्‍चा सभकेँ अन्न-पानि‍सँ भेँट हेतै। रतुको सभ भुखले अछि‍। तैबीच राहुलक नजरि‍ मामपर आ मामक नजरि‍ भागि‍नपर पड़ल। नजरि‍ पड़ि‍ते राहुल दौग कऽ ठाढ़े मामाकेँ गोड़ लागि‍ मामीक कोराक बच्‍चाकेँ लऽ बाजल-
माएओ अबैए मुदा डेगे ने उठै छेलै। आगूमे बैसल अछि‍।
राहुलक बात सुनि‍ मामी बच्‍चा सभकेँ कहलखि‍न-
भैयाकेँ गोड़ लगहुन।
बच्‍चाकेँ कोरामे नेने आगू-आगू आ पाछू-पाछू सभ कि‍यो वि‍दा भेला। सभसँ पाछू शंकरदेव अपने। मन पड़लनि‍ रतुका दृश्‍य। केना छनमे छनाक भऽ गेल! जि‍नगी भरि‍क जोड़ियाएल घरक वस्‍तु-जात आगि‍ लगने आकि‍ बाढ़ि‍ एने केना लगले नास भऽ जाइ छै। मान-प्रति‍ष्‍ठा, गुण-अवगुण, केना छनेमे केतए-सँ-केतए चलि‍ जाइ छै। ठीके लोक बजैए जे दि‍न धराबे तीन नाम। अपने छी जे एक दि‍न बहि‍नक रक्षक बनि‍ ऐ गाममे छेलौं आ आइ...। एक दि‍न गाड़ीपर नाह आ एक दि‍न नाहपर गाड़ी। माटि‍-पानि‍क खेल छी। गंगा-यमुनाक बीच केतौ माटि‍ओ छै अाकि‍ पानि‍ए-पानि‍ छै!
कि‍छु फरि‍क्केसँ भाय-भौजाइकेँ अबैत देखि‍ मायरामक मन ओइ धरतीपर पहुँच‍‍ गेलनि‍ जे सात समुद्रक बीच अछि‍। एक ओद्रक रहि‍तो एक भि‍खारी दोसर राजा! परोपट्टाक लोक सि‍नेहसँ मायराम कहै छथि‍ मुदा भैयाकेँ की कहतनि‍? की भैयाक कर्म वि‍गड़ल छन्‍हि‍? एक परि‍वारक बँचौल कर्म छन्‍हि‍। चान, सुरूज, धरती, ग्रह-नक्षत्र इत्‍यादि‍ तँ अपना गति‍ए करोड़ो बरखसँ नि‍अमि‍त चलि‍ रहल अछि‍ आ चलैत रहत, की मनुखोक गति‍ ओहन भऽ सकैए? आकि‍ चाने-सुरूज जकाँ मनुखोक चलैक एकबटीए अछि‍? ब्रह्मक अंश जीव‍ रहि‍तो की फुलझड़ीक लुत्ती जकाँ नै अछि‍? जेतए जेहेन जलवायु तेतए तेहेन उपजावारी! जौं केतौ वायु प्राणक रूपमे घट-घटकेँ आगू बढ़ैक प्रेरणा दैत तँ वएह वि‍षाक्‍त बनि‍ प्राण नै लैत?
गोलाक चोटसँ जहि‍ना पोखरि‍क पानि‍मे हि‍लकोर उठैत आ आस्‍ते-आस्‍ते असथि‍र होइत चि‍क्कन आँगन जकाँ सहीट बनि‍ जाइत तहि‍ना मायरामक मन सहीट भऽ गेलनि‍। मुदा लगले नजरि‍ उड़ि‍ भतीजीपर गेलनि‍। भतीजीपर पहुँचिते मन तड़पए लगलनि‍। बाप रे बाप, एहेन दुरकालमे भैया केना इज्‍जत बँचौता। अपनो लग जमा कि‍छु तँ नहि‍येँ अछि‍ साले-साल हि‍साव फरि‍या लइ छी। हे भगवान जौं केकरो दुखे दइ छि‍ऐ आकि‍ सुखे दइ छि‍ऐ तँ तुलसी पात आकि‍ दुबि‍क मुड़ी जकाँ खोंटि‍-खाेंटि‍ किए ने दइ छि‍ऐ जे गुलाब-गेन्‍दा तोड़ि‍ए कऽ दऽ दइ छि‍ऐ? लगले नजरि‍ मायराम छिप्‍पा जकाँ छि‍हलि‍ अपन मातृत्‍वपर पहुँच‍‍ गेलनि‍। केना बेटाकेँ पोसि‍-पालि‍ ठाढ़ केलौं आ ई सभ...। लुधकी लागल एकटा गाछ फड़बे करत तइसँ गामक सबहक मुँहमे थोड़े जाएत। जेते मनुख अछि‍ ओकरा तँ धरतीसँ अकास धरि‍ चाहि‍ए। तखनि ने जीबैक आजादी भेटतै। मुदा लगले जहि‍ना पानि‍ ठंढ़ेने बरफक रूप लि‍अए लगैत तहि‍ना दूधसँ उपजैत दही जकाँ मायरामक मन सकताए लगलनि‍। साँस सुषुमा गेलनि‍। मनमे खौललनि‍- नैहर मेटा गेल तँए कि‍ सासुरो मेटा गेल। जहि‍ना भैया नैहरमे भैया छला तहि‍ना अहूठाम भैया रहता। भगवान अपन कोखि‍ अगते लऽ लेलनि‍ तँए कि‍ ओकरा -भतीजी- अपन कोखि‍क नै बुझबै। ऐठाम जे अछि‍ ओ की भैयाक नै छि‍यनि‍? खेत-पथार, घर-दुआरि‍ चलि‍ गेलनि‍ आकि‍ हाथो-पएर चलि‍ गेलनि?
गुमे-गुम, जहि‍ना मृत्‍युक अवसरपर गुम भऽ स्‍मरण कऽ नि‍राकरणक बाट जोहल जाइत, तहि‍ना सभ घरपर पहुँचला। ताधरि‍ पुतोहु-रोहि‍तक पत्नी- हाँइ-हाँइ कऽ खिचड़ि आ अल्‍लूक सन्ना बना, बाट तकैत रहथि‍। सबहक आँखि‍ सभ दि‍स हुलैक-हुलैक बौआइत। तैबीच राहुलक कोरक छोटका बच्‍चा, घर देखि‍ते, बाजल-
दीदी, बड़ भूख लगल अछि‍?
बच्‍चाक बात सुनि‍ मायरामक भक्क टुटलनि‍। अनासुरती मन पड़लनि बटोहीकेँ जहि‍ना इनारपर ठाढ़े-ठाढ़ पानि‍ पिऔल जाइत तहि‍ना ने अखनि ईहो सभ छथि‍। नहाय-धोयमे अनेरे देरी किए लगाएब। बजली-
कनि‍याँ, भरि‍ राति‍क थाकल-ठेहि‍याएल सभ छथि‍ तँए पहि‍ने कि‍छु खुआ कऽ आराम करए दि‍अनु। गप-सप्‍प पछाइतो‍ हेतै। भोजन बादेक आराम तँ सोग कम करैक उपए छी।

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