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Friday, October 18, 2013

(39) केतौ ने

केतौ ने

चारि‍-पाँच बर्खसँ जनकपुरक बि‍आह पंचमी देखैक वि‍चार मनमे उठैत रहल मुदा माए कहै छेली, ‘‍अखनि बाल-बोध छह केतौ हरा-तरा जेबह।’
माएक बात नीक नै लागए। हुअए जे जहि‍ना गाम-घरमे लोक नै हराइए तहि‍ना ओतौ किए हराएत? ई नै बुझि‍ऐ जे ओइठीम दूर-दूरक लोक देखए अबैए, जइसँ भीड़-भाड़ बढ़ि‍ जाइ छै। भीड़े-भाड़मे बालो-बोध आ चेतनो हराइए। चौदहम बर्ख टपि‍ते पनरहमक शुरूएमे अगहन इजोरि‍याक पंचमी आएल। गामक लोकमे मेला देखैक सुन-गुनी शुरू भेल एक्के-दुइए सौंसे गाम पसरि‍ गेल। एक गामक कोन बात सगतरि‍ भेल। हमहूँ सुनलौं। माएक बात मन पड़ल। भलहि‍ं भोँट खसबै जोकर नै भेलौं मुदा बालो मजदूर जोकर तँ नै रहलौं। हराइओ जाएब तँ की हेतै? अपन खेबा-खरचा ने तीने दि‍नमे सधि‍ जाएत मुदा तैयो तँ कमाइत-खटाइत, खाइत पीऐत दस दि‍न पछातिओ तँ आबि‍ए जाएब। आशा जगल। बि‍सवास बढ़ल। माएकेँ कहलि‍यनि‍-
गामक लोक उनटि‍ कऽ जा रहल छथि‍, हुनके सभ सेने हमहूँ जाएब।‍
माए कि‍छु बजली नै। एतबे बजली-
नुआ-बस्‍तर खीच लि‍हऽ।‍
माएक बात सुनि‍ बि‍सवास भऽ गेल। मनमे उठल, टि‍कुला बीआ जकाँ थोड़े खि‍च्‍चा छी, भलहि‍ं पाकल जकाँ सक्कत आँठी नै भेलौं मुदा कोशाएल जकाँ तँ जरूर सकता गेल छी।
अगुआएल-पछुआएल दुआरे गामक बीच यात्रीक गि‍नती नै भेल। ओना गि‍नतीक महत बुझबो ने करि‍ऐ। गामक सि‍मानपर पहुँचि‍ते अगि‍ला यात्री रूकि‍‍ कऽ पछि‍ला सभकेँ हाथक इशारासँ शोरो पाड़थि‍न आ आँखि‍ उठा-उठा देखबो करथि‍न। हमहूँ पहुँचलौं। पतराइत रस्‍ता देखि‍ गि‍नती हुअ लगल। मर्द-औरत मि‍ला सताइस गोरे भेलौं। गि‍नतीमे सभसँ उमेरगर सुचि‍तादादी रहथि‍। बजली-
सभ कि‍यो सुनि‍ कऽ कान धरब। तीर्थ-वीर्त करए जाइ छी तँए रस्‍ता-पेरामे केकरो कोनो चीज-बौस नै छुबै, झूठ-फूस बाजि‍ केकरो ठकबै नै। भाए-बहि‍न जकाँ सभकेँ बुझबै आ कि‍यो अगुआ-पछुआ जाएब तँ ठाढ़ भऽ कऽ संग करैत चलब।‍
दादी गप्‍पक असरि‍ भेल। सभसँ कम उमेरक रही। बि‍ना कहने-सुनने कफलाक टहलू बनि‍ गेलौं। दादीकेँ कहलि‍यनि‍-
दादी, अपना कम्‍मे समान एक अढ़ैया चूड़ा आ कपड़ा झोरामे अछि‍, अहाँकेँ भारी लगैत हएत, लाउ नेने चलै छी।
बात सुनि‍ दादी छि‍ट्टा भरि‍ असि‍रवाद दैत अपन मोटरी देलनि‍। मोटरीक संग दादी अपन पुरना खेरहा सभ कहैत चलए लगली-
बौआ, अहि‍ना कुशेसर जाइत रही। तीन बर्खसँ नि‍यारैत रही घरमे गाएक घीउ पड़ल रहए। केना चौदह कोस डेरहे दि‍नमे चलि‍ गेलौं से बुझबे ने केलि‍ऐ। तइ दि‍नमे समरथाइओ रहए।‍
केतए-केतए गेल छि‍ऐ दादी? पुछलियनि।
कनीकाल गुम रहि‍ मन पाड़ि‍ बाजए लगली-
अपन गामक तीनू स्‍थान- दछि‍‍नमे कुशेसर, पूबमे सि‍ंहेसर आ उत्तर- पच्‍छि‍म जनकपुर बीचमे पड़ैए। कनीए रस्‍ताक तरपट हेतै। हँ, तँ कहए लगलिअ, अहि‍ना आठ-नअ गोटेक कफलामे सि‍ंहेसर स्‍थान वि‍दा भेलौं। अखनि तँ चढ़न्‍त जाड़ अछि‍ मुदा शि‍वराति‍क समए जाड़ फटए लगै छै‍। सबहक वि‍चार भेल जे घोघरडी‍हा तक टेनसँ जाएब, फेर सुपौल तक पएरे जाएब आ सुपौलसँ बस पकड़ि‍ जाएब।
बिच्चे‍मे पुछलि‍यनि‍-
‍कोसी धार सेहो टपए पड़ल हएत कि‍ने?”
हँ, हँ। पहि‍ने टेनक बात सुि‍न लैह। जखनि गाड़ीमे चढ़लौं तँ खाली सीट सभ देखलि‍ऐ। दुनू कातक सीट मि‍ला कऽ तीन-चारि‍ गोरे बैसल रहै। हमरो सभकेँ जगह भऽ‍ जाएत। मुदा तेहेन ऐंठल सभ रहए जे नहियेँ बैसए देलक। पुरुख सभसँ मुँह केना लगबितौं। सभ स्‍त्रीगणे रही।
किए ने बैसए देलक?
तेहेन-तेहेन छुद्दर पुरुख सभ भऽ गेल अछि‍ जे केकरोमे पुरुखपाना छइहे नै। अपना एठीनक पुरुख अनको माए- बहि‍नकेँ अपन बुझैए‍। ओइ इलाकाक थोड़ै बुझै छै। ठाढ़े भेल घोघरडी‍हा तक गेलौं। निच्चाँमे बैसबो करि‍तौं से तेते सि‍करेट-बीड़ीक अधजरुआ टुकड़ी आ चि‍नि‍याँ बदामक खोंइचा रहै जे बैसैक परपन‍ नै भेल।
मोटरी की केलि‍ऐ?
मथेपर रखने गेलौं। ऊपरका सीटपर गेंड़ा जकाँ दूटा मुनसा सूतल रहै कि‍न्नो नै मोटरी रखए देलक। जखनि कोसी धारमे नवपर चढ़लौं तखनि फेर घटवारक संगे कहा-कही हुअ लगल। मुदा बाबापर सुरैत‍ लगा कहुना पहुँच‍‍ गेलौं।‍
स्‍टेशन पहुँचि‍ते गप-सप्‍प बन्न भेल। गाड़ी आएल। सभ कि‍यो चढ़ि‍ गि‍नती कऽ जयनगर पहुँचलौं। जयनगर प्‍लेटफार्म यात्रीसँ भरल। ति‍ल रखैक जगह नै। मुदा एते बि‍सवास भऽ गेल जे एते दूर देखलो भइए गेल। आब तँ बालो-बोध नहियेँ छी जे बि‍सरि‍ जाएब। जौं कहीं छूटिओ जाएब आकि‍ हराइओ जाएब तैयो घूमि‍‍ कऽ गाम चलि‍ए जाएब।
नेपालक गाड़ीओ छोट आ इंजि‍नो कमजोर मुदा तैयो निच्चाँ-ऊपर लादि‍ यात्रीकेँ पहुँचाइए दैत अछि‍। गाड़ीमे चढ़ै-दुआरे केते यात्री एक स्‍टेशन पएरे चलि‍ उनटामे चढ़ि‍ पहुँचै छथि‍। मुदा सीमा कखनि टपलौं से बुझबे ने केलौं। लोको एक्के रंग आ बोलीओ तहि‍ना। जनकपुर पहुँच‍‍ गेलौं।
यात्री देखि‍ मन उधिया गेल। मन मानि‍ गेल जे ऐ भीड़मे केतौ जरूर हराइए जाएब। मुदा लोकक भीड़मे लोक अपनाकेँ हराएल केना बूझत। सभ तँ लोके छी। सबहक मुँहमे बोलो अछि‍ए। सभ तीर्थे करए आएल छथि‍ तखनि हराइक प्रश्न केतए? मुदा तैयो मन थरथराइते रहए। फेर भेल जे हराएब तखनि ने, आ जौं नै हराइ। तइले अनेरे चि‍न्‍ता किए करै छी। खाइत-पि‍ऐत एक फेरा लगबैत तीन बजि‍ गेल। बि‍आहक प्रकरण तँ राति‍मे हएत मुदा बि‍आह होइक कारण तँ धनुष टुटब अछि‍। तँए पहि‍ने धनुखा जेनाइ उचि‍त हएत। घुमैत-फि‍रैत एकठीम बैस सभ वि‍चारए लगलौं। बि‍आह प्रकरण देखए एलौं अखनि धरि‍ बरि‍यातीओ पछुआएले अछि‍। पछुलके धरमशल्‍लामे अँटकल अछि‍। ऐठाम अबैमे चारि‍-पाँच घंटा लगत। से नै तँ अपनो सभ ताबे धनुखासँ भऽ आबी। एक स्‍वरमे वि‍चार भेल। बसक भाँजमे वि‍दा भेलौं। सभ आगू-आगू हम आ दादी पाछू-पाछू। यात्रीकेँ देखबैत दादी बजली-
‍बौआ, तँू ने अखनि तक दोसर कोनो स्‍थान (तीर्थ) नै गेल छह। मुदा हम तँ बहुत ने देखने छि‍ऐ।
एते बात सुनि‍ते मनमे भेल जे दादी कोनो ठेकनगर बात कहए चाहै छथि‍। हुँहकारी दैत कहलि‍यनि‍-
हँ से तँ ठीके। अखनि हमरा भेबे की कएल, जनमि‍ कऽ ठाढ़ भेलौं हेन।‍
आगू दादी बजली-
देखहक ई स्‍थान भगवान राम आ सीताक छियनि‍। अयोध्‍यावासी राम आ मि‍थि‍लाक जनकक कन्‍या सीता तँए दुनूक मि‍लन स्‍थल छी। तँए देखै छहक जे सभ रंगक यात्रीओ अछि‍ आ स्‍त्रीगण-पुरुखमे बेराैल हेतह जे पुरुख बेसी अछि‍ आकि‍ स्‍त्रीगण। तहि‍ना देखै छहक जे सभ रंगक मुँह-कानबला यात्री अछि‍। केकरो मान-अपमानक बात अछि‍। मुदा आन-आन स्‍थानमे से कहाँ देखबहक। जहि‍ना एकचलि‍या लोक तहि‍ना एकचलि‍या चालि‍।‍
मैक्‍सीपर बैस सभ धनुखा वि‍दा भेलौं। घंटा भरि‍ लगैत-लगैत धनुखा पहुँच‍‍ गेलौं। गाड़ीक ड्राइवर आ खलासी उतरि देखबए वि‍दा भेल। मंदि‍रक हाताक भीतर पहुँचि‍ते ड्राइवर बाजल-
भगवान राम जे धनुष तोड़लनि‍ ओ तीन टुकड़ी भऽ गेल। एक टुकड़ी एतै खसल। सएह स्‍थान छी। देखै छि‍ऐ धनुषेक टुकड़ी छि‍ऐ कि‍ने?
दर्शन केलौं। सबहक वि‍चार भेल जे बि‍ना कि‍छु खेने-पीने आ सनेस नेने केना जाएब। हमहूँ चाह पीब पान खेलौं आ हनुमानी बद्धी कीनि‍ कऽ गरदनि‍मे पहि‍रि‍ लेलौं। कि‍रि‍न डूमि‍‍ गेल। मुदा केकरो औगताइ नै। कि‍एक तँ घंटा भरि‍ जाइमे लागत आ आठ बजेमे बरि‍याती दुआर लागत।
गाड़ी चलल। करीब चाि‍र माइल आगू बढ़ल आकि‍ अपने ठाढ़ भऽ गेल। पंचमीक चान, ओसेसँ घेराएल। झल-अन्‍हार। गाम-घर केतौ ने देखि‍ऐ। बीच पाँतरमे गाड़ी रूकल। ड्राइवरो आ खलासीओ रि‍न्‍च-हथौरी नि‍कालि‍ ठोक-ठाक शुरू केलक। हमहूँ सभ गाड़ीसँ उतरि‍ देखए लगलि‍ऐ। ठोकि‍-ठाकि‍ ड्राइवर गाड़ीमे बैस चलबए चाहै तँ चलबे ने करए। फेर उतरि‍ कऽ ठोकै मुदा फेर ओहि‍ना होइ। समए बितल जाए। मोबाइल देखि‍ ड्राइवर बाजल-
आठ बजल।‍
दुआर लागबक समए बूझि‍ सुचि‍तादादी बजली-
केतए एलौं, तँ केतौ ने?
मन हुअए जे कहि‍ऐ- पाइ घुमा दए। दोसर गाड़ीसँ चलि‍ जाएब। इजोरीओ डूमि‍‍ गेल। दि‍सम्‍बरक अंति‍म समए तँए जाड़ो बढ़ैत जाए। मुदा सभकेँ ओढ़ना रहबे करै, ओढ़ि‍ लेलौं। होइत-हबाइत भोरमे गाड़ी ठीक भेल। घूमि‍ कऽ जनकपुर एलौं। ताबे बि‍आहक सभ प्रक्रि‍या समाप्‍त भऽ गेल छल। रतुका जगरनासँ यात्रीओ सभ ओंघाएल। हमहूँ सभ तहि‍ना रही।
यात्री सभ ट्रेन पकड़ि‍ घुमए लगला। हमहूँ सभ नहा कऽ एकबेर‍ सौंसे मेला घूमि‍, डोरि‍-सि‍नुर आ सनेस कीनि‍ आबि‍ खेनाइ खेलौं आ गाड़ी पकड़ैले वि‍दा भेलौं। भरि‍ बाट दादी रटैत रहली-
केतए एलौं तँ केतौ ने। केतए एलौं तँ केतौ ने। केतए एलौं तँ केतौ ने।‍

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