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Friday, October 18, 2013

(38) पड़ाइन

पड़ाइन
पछुलका बाढ़ि‍मे खेतक फसिल तँ धुआइए गेल जे मालो-जाल गामसँ उपटि‍ गेल। अपनो दुनू बरदो आ महिंसो मरि‍ गेल। जहि‍ना जंगलक जानवरकेँ मेघसँ खसैत पाथरक चोट छटपटबैत तहि‍ना ऐ साल आन-आन कि‍सानक संग अपनो भेल। बाधसँ लऽ कऽ घर धरि‍क दशा सहाज करै जोकर नै रहल। बाढ़ि‍ अबि‍ते खेतक धान डूमि‍‍ गेल। मोटाइत-मोटाइत पानि‍ आँगन-घरमे सलाढ़ लगि‍ गेल। नारक टाल पानि‍क बेगमे भसि‍ गेल। भुसकाँर खसि‍ पड़ल जइसँ गहुमक भूसी भँसिआ गेल। आश्रमक घरक संग-संग मालो घरमे पानि‍ पहुँच‍‍ गेल। जहि‍ना लाठीपर लाठी खाइत दशा होइत तहि‍ना भेल।
चढ़ि‍ते काति‍क आगि‍ला खेतीले सभ सूर-सार करए लगल। मुदा खेतीक तँ प्रमुख अंग बरद छी। बिनु बरदे खेत जोताएत केना। अपनेटा गामक एहेन दशा नै, परोपट्टाक एक्के रंग दशा। कि‍सानक बीच एक्के रंग समस्‍या पसरि‍ गेल, जइसँ बँचल-खूचल माल-जालक दाममे आगि‍ लगि‍ गेल। बरदक दाम दोबर-तेबर भऽ गेल। एक तँ भेटैबला नै दोसर पैकार सभ जे बाहरसँ आनि‍-आनि‍ बेचै ओकरो वएह हवा।
अपन इलाका छोड़ि‍ दोसर इलाकासँ बरद कीनि‍ अनैक वि‍चार भेल। मुदा असगर-दुसगर आननाइओ भारी बूझि‍ पड़ल। गाममे गप्‍प चलेलौं। एक्के-दुइए आठ-नअ गोटेक वि‍चार भेल। जोड़ा किननि‍हार तीन गोटे भेलौं। बाँकी छबो- गोटे पल्‍ले-पल्‍ला किननि‍हार। हुनका सबहक वि‍चार जे एकटा बरदसँ हर नै जोतल जाएत मुदा जोड़ा लगा लेलासँ भजैती नीक रहत। बेजोड़ बरद रहने एकटाकेँ बेसी भीड़ होइ छै आ एकटाकेँ कम, जइसँ साले भरि‍मे बरद टूटि‍ दाम बुड़ा दइ छै।
तेसर दि‍न नअ गोटे लौकहावाली गाड़ी झंझारपुर हाॅल्‍टपर पकड़लौं। साढ़े बारह बजे लौकहा स्‍टेशन उतरि‍‍ मेन रोड छोड़ि‍ धनबदहेक उत्तर मुहेँ रस्‍ता पकड़लौं। कखनि सीमा टपलौं से बुझबे ने केलि‍ऐ। एक्के रंग बाध आ बाधक उपजा। नम्‍हर-नम्‍हर बाध, खेतमे लहलाहइत धान। दुधाएल धानक सीस जइसँ जहि‍ना धानक गाछक रंग तहि‍ना सीसोक। ऊँचगर-चौड़गर खेतक आड़ि‍, जैपर फुलाइतो आ छीमीओ भेल राहड़ि‍। टाट जकाँ राहड़ि‍क गाछ खेत सबहक परि‍चए करबैत। अपन सभ जकाँ चनकी राहड़ि‍क गाछ नै, मझोलका गाछ। खेसारी छि‍टैत एक गोरेकेँ पुछलि‍ऐ तँ कहलक जे ऐ दि‍गारमे बेसी पये (पाया) राहड़ि‍ होइ छै। धानोक संग-संग अगहनेमे कटाइ छै। सोहरी लगल घुरछा-घुरछे फड़ल। छीमीओ नम्‍हर। कोला-कोली गि‍रहस्‍त खेसारी, मसुरी छि‍टैत। आड़ि‍ सभपर जेरक-जेर ढेरबा-सँ-सि‍आन धरि‍ घसवाहि‍नी घास छि‍लैत। उपजा देखि‍‍ माटि‍ नि‍हारलौं तँ सोलहन्नी खसि‍आइ माटि‍ (कारी माटि‍) बूझि‍ पड़ल। माटि‍ देखि‍‍ मन गद्गद् भऽ गेल। मुदा अपन इलाका मन पड़ि‍ते मन ति‍ता गेल। कमला-कोसीपर खाैंझ उठल। दुनू तेहेन हेहर अछि‍ जे इलाकाक माटि‍केँ बि‍गाड़ि‍ देलक। बालु भरि‍ खेतकेँ बलुआह बना देलक। रस्‍ताक पछबारि‍ भाग एकटा नमगर-चौड़गर परतीपर पचासो महिंस चरैत देखि‍‍ मन खुशी भऽ गेल। चरवाह सभ महिंसकेँ अनेर चरैले छोड़ि‍ अपने सभ खेलाइत। खेलो अजगुत, ठेंगा-ठेंगा। कनी अँटकि‍ देखए लगलौं। एकटा सीमा -चेन्‍ह- देने। ओइ सीमापर सँ रागक तर देने उनटि‍ कऽ दुनू हाथे ठेंगा फेकैत। जेकर ठेंगा जेते दूर जाए ओ ओते सुरक्षि‍त। जेकर लग रहै ओ हारै। जे हारै ओकरा घुघुआ -पीठ- पर चढ़ि‍ ठेंगा लग तक जाए। फेर दोहरा कऽ खेल शुरू होइ। गोबरबि‍छनी सेहो बैस कऽ खेल देखैत। कोनो औगताइ रहबे ने करै। तीि‍नए चारि‍ गोरे रहए, पथि‍यामे केते अँटितै। जहि‍ना एकाधि‍कार पूजीपति‍क कारोबार नि‍चेनसँ चलैत, कोनो प्रति‍योगि‍ता रहबे ने करैत, तहि‍ना पचास महिंसक गोबरक बीच तीनू-चारू गोबरबि‍छनी। मुदा एकटा देखलि‍ऐ जे एकबेर‍ एकटा महिंस धानक खेत दि‍स बढ़ए लगलै तँ एक गोरे माने एकटा ढेरबा गोबरबि‍छनी उठि‍ कऽ महिंस घुमा देलकै।
कोसक अन्‍दाज आगू बढ़लौं तँ हाट लगल देखलि‍ऐ। समैओ चाइरि‍क करीब भऽ गेल। मनमे भेल जे कोनो ठेकानल जगहपर थोड़े जाइक अछि‍ जे अबेर हएत। जखनि एलौं तँ देखैत-सुनैत जाएब। हाट देखए बढ़लौं। गमैया हाट। कट्ठा डेरहेक परतीपर लगल। तीन-चारि‍ पल्‍लाबला दू-तीनटा अन्न-पानि‍क दोकानदार, दस-बारहटा तीनम-तरकारीक, एक-एकटा माछ-मासुक दूटा झि‍ल्‍ली-कचड़ी-मुरहीवाली, एकटा मनि‍हारा, एकटा माटि‍क बर्त्तन, एकटा छि‍ट्टा-पथि‍याक, एकटा चाहक दोकान आ एकटा पान-बीड़ीक। मुदा खरीदारी बढ़ि‍याँ होइत। अन्‍दाज केलौं तँ बूझि‍ पड़ल जे जेते कि‍न‍ि‍नहार अछि‍ ओतबे समानो आ बेचि‍नि‍हारो। चाहक दोकानपर बैस चाह दइले दोकानदारकेँ कहलि‍ऐ। चूल्हि‍क छाउर झाड़ि‍, डोमौआ बीअनि‍सँ हौंकि‍, चूल्हि‍पर केटली चढ़ौलक। दोकानदारसँ पुछलि‍ऐ-
हाट सभ दि‍न लगैए?
दोकानदार कहलक-
ऐ पँचकोसीमे चारि‍टा हाट लगै छै। सोम आ शुक्रकेँ ई हाट लगैए। रवि‍ आ बुधकेँ बिस्‍टौल लगै छै, मंगल आ वरसपति‍केँ चि‍कना आ शनि‍-मंगलकेँ परसा।‍
चाह बनल। सभ ि‍कयो पीब दोकानदारकेँ पाइ दऽ वि‍दा भेलौं। अपने गाम जकाँ गामो, अपना सबहक तँ पोखरि‍-इनार या तँ बालुमे भोथा गेल वा मरने भऽ गेल अछि‍, ओइ सभमे अखनो अछि‍ए। गोटि‍-पंगरा ईंटाक घर। रस्‍ता-पेरा कच्‍चीए। उत्तरे-दछि‍ने गाम सभ। जइसँ आगि‍-छाइसँ सुरक्षि‍त। जौं केतौ पुरबा-पछबामे आगि‍ लगबो कएल तँ कम घर जरल। जहि‍ना गाम उत्तरे-दछि‍ने तहि‍ना अँगनो सभ। अपने सभ जकाँ लोकोक बगए-बानि आ बोलीओ। जइसँ अनभुआर जकाँ बूझि‍ऐ ने पड़ए। गोसाँइ लूक-झूका गेला। जहि‍ना पछबा सबेर-सकाल अपन बोरा-बिस्‍तर समेटि‍ लैत तहि‍ना ने परदेसीओकेँ सबेर-सकाल ठौर पकड़ि‍ लेबाक चाही। मनमे उठि‍ते अँटकैक गर लगबए लगलौं। एक गोटेसँ पुछलि‍ऐ-
कोन गाम छी?
रोहि‍तपुर।‍
मुदा कोनो नि‍श्चि‍त गाम तँ जेबाके नै छल जे दोहरा कऽ पूछि‍ति‍ऐ। तैकाल एक गोरेकेँ दोसर गोरे सोर पाड़लक-
मधेपुरबला हौ, हौ मधेपुरबला। कनी एम्‍हर आबह।‍
मधेपुर सुनि‍ मन चौंकल। मुदा लगले असथि‍र भऽ गेल। नाम-गामक कोनो ठेकान अछि‍। एक-एक नामक केतेक लोको आ केतेक गामो हाेइए। मुदा मनमे तैयो घुरि‍याइते रहि‍ गेल। मधेपुरबलाक घर पुबारि‍ भाग रस्‍ताकातेमे। घास झाड़ि‍ते मधेपुरबला उत्तर देलक-
हाथ लगल अछि‍, लगले अबै छी।‍ कहि‍ घास झाड़ब छोड़ि‍ मधेपुरबला उत्तर मुहेँ वि‍दा भेल। लगमे अबि‍ते पुछलि‍ऐ-
कोन मधेपुर रहै छी?
गामक नाआें सुनि‍ बाजल-
अहाँ सभ केतए रहै छी?
कहलि‍ऐ-
हमहूँ मधेपुरे रहै छी। तँए पुछलौं।‍
मधेपुर सुनि‍ ओ चौंक‍ गेल। जेना कि‍छु भेट गेल होइ तहि‍ना। मुस्‍कीआइत बाजल-
झंझारपुरसँ पूब-दछि‍‍नक जे मधेपुर छै, ओही मधेपुर रहै छी।‍
अपन मधेपुर सुनि‍ हमहूँ हँसैत बजलौं-
हमरो सबहक घर तँ ओही मधेपुर अछि‍।‍
हमरा सबहकेँ दरबज्‍जापर बैसबैत बाजल-
लगले अबै छी। ओइ वेचारा ऐठाम पाहुन सभ आैत डेढ़ि‍या परहक टाट लगाैत आेकरे गर धरौने अबै छी। हमर भाग जे गौआँ-घरूआ सभ एला।‍
अपन भेटैत ठौर देखि‍‍ कहलि‍यनि‍-
हँ, हँ भेल, आउ। समाजमे सबहक काज सभकेँ होइ छै।‍
काजक बोझसँ अपनाकेँ लदल देखि‍‍ चेथरू रस्‍तेपर सँ सोर पाड़ि‍ पत्नीकेँ कहलक-
लगले अबै छी।‍ ताबे अहाँ एक बाल्‍टीन पानि‍ आ एकटा लोटा आनि‍ पएर धोइले दि‍यनु। कहि‍ चेथरू आगू बढ़ल। भरि‍ बाल्‍टीन पानि‍ आ एकटा लोटा नेने चमेली दरबज्‍जापर आबि‍ पुछलनि-
बौआ, अहाँ सबहक घर केतए अछि‍?
कहलि‍यनि‍-
मधेपुर।‍
जहि‍ना अनचोकमे देहपर खढ़ो गि‍रि‍ते लोक चौंक जाइए तहि‍ना मधेपुर सुनि‍ चमेली चौंक गेली। अदहा मुँह झँपैत बजली-
‍औक्‍सी महादेव मंदि‍रसँ थोड़बे हटि‍ क‍ऽ हमरो नैहर अछि‍।
चमेलीक बात सुि‍न दूभिक मुहसँ छोड़ैत नव पत्ती (पात) जकाँ हृदैमे भेल। अपन तीस बरख पहुलका जि‍नगीमे ओ -चमेली- डूमि‍‍ गेली। मुँह शि‍थि‍ल भ‍ऽ गेलनि‍, जइसँ कि‍छु आगूक बकार नै नि‍कललनि‍। मुदा दरबज्‍जापर आएल अति‍थि‍ लेल घरवारीक रहब अनि‍वार्य बूझि‍ खुट्टा जकाँ ठाढ़ रहली। बेरा-बेरी हमहूँ सभ पएर धोइ-धोइ चौकीपर बैसए लगलौं। जहि‍ना देवालयमे दर्शकक नजरि‍ एकाएकी मुरती सभपर पड़ैत तहि‍ना चमेलीक आँखि‍ हमरा सभपर नाचए लगलनि‍।
घूमि‍ क‍ऽ अबि‍ते चेथरू पत्नीकेँ कहलखि‍न-
जलखै नेने आउ। रस्‍ताक झमाड़ल सभ छथि‍। भूख लगल हेतनि‍।‍
हमहूँ सभ बेरा-बेरी कुर्रा क‍ऽ बैसलौं। चंगेरा भरि‍ मुरही, नोन-मि‍रचाइ आँगनसँ आनि‍ चमेली बीचमे रखि‍ देलनि‍। जलखै देखि‍ चेथरू बजला-
अहाँ सभ जाबे जलखै करब ताबे छि‍ड़ि‍एलहा काज सभ समेटि‍ लइ छी।‍ कहि‍ एकटा छि‍ट्टा आ हँसुआ नेने वाड़ी दि‍स चेथरू आ आँगन दि‍स चमेली बढ़ली। काति‍क मास रंग-बि‍रंगक तरकारीसँ सजल चौमास। बि‍ना तजबीज केनहि‍ चेथरू आठो-नओ रंगक तरकारीक छि‍ट्टा आँगनमे रखि‍, लगमे आबि‍ बैसला। बैसि‍ते कहलि‍यनि‍-
अपन इलाकाक जहिना खेती-पथारी उपटि‍ गेल तहि‍ना मालो-जाल। मुदा बि‍ना बरदे खेती केना करि‍तौं। तँए एलौं। सुनै छी जे ऐ इलाकाक लोक अपना इलाकाबलाकेँ कहै छथि‍ जे अपन कमाएल रूपैआ ल‍ऽ क‍ऽ एलौं आकि‍ बाप-दादाक‍, से ठीके छि‍ऐ‍?
हमर बात सुनि‍ चेथरू तरे-तर हँसए लगला। मुदा अपनाकेँ दुनूठामक पाबि‍ कनीकाल गुम रहि‍ बजला-
खि‍स्‍सा-पि‍हानी अहि‍ना लोक जोड़ती-जोड़ि‍ बना लइए। एहनो-एहनो बात हुअए। कोनो धरती कर्मभूमि‍सँ धर्मभूमि‍ बनैए‍। देखै छी जे गामोमे दि‍ल्‍ली-बम्बइसँ घूमि‍ क‍ऽ आएल कनि‍याँ सभ अति‍थि‍-अभ्‍यागतकेँ ओतुक्के चालि‍-ढालि‍सँ स्‍वागत करै छथि‍ तँ एहनो सभ छथि‍ जे केरल-मद्रासमे रहि‍तो गाम-घर जकाँ स्‍वागत करै छथि‍। हम-अहाँ भैयारी भेलौं। तँए भैयारी जकाँ दुख-धंधाक गप-सप्‍प करू।‍
चेथरूक वि‍चारसँ मन खनहन भ‍ऽ गेल। हृदए बाजि‍ उठल जे सहारा भेटल। अखनि तँ धान फुटबे कएल, जखनि पाकत तँ बीओ-बाि‍ल ल‍ऽ जाएब। ऐठामक बरदो अपना ऐठामक बरद तँ सक्कतो होइ छै आ बेसी दि‍न जीबो करै छै। अपना ऐठामक माल गदि‍याह भ‍ऽ गेल। ऐठामक जमीनक माल नि‍रोग अछि‍। चुप्‍पा-चुप्‍पी देखि‍ पुछलि‍यनि‍-
अहाँ केना ऐठाम आबि‍ गेलौं‍?
हमर बात सुि‍न चेथरूक मन पसीज गेलनि‍। गपकेँ आगू नै बढ़ा बजला-
भानसो भ‍ऽ गेल हएत। अहँू सभ थाकल छी। जखनि बरद किनए एलौं तँ हेबे करत। कोनो की अनत‍ए एलौं। अपन घर छी। पाँच दि‍नमे इलक्को घुमा क‍ऽ देखा देब। मन मोताबि‍‍क बरदो कीनि‍ देब।‍
चेथरूक बात सुनि‍ हुँहकारी भरैत बजलौं-
हँ, हँ, से तँ ठीके। देस-कोस ने बदलैए। मनुख तँ मनुक्‍खे रहैए कि‍ने।‍
खेला-पीला पछाति संगी सभ नीनसँ सुति‍ रहला। मुदा अपना नीने ने हुअए। अदहा घंटा बाद चेथरू खा-पी, मालक घरक घूर सेरिया, खाइले द‍ऽ बरका बाटीमे शुद्ध तोड़ीक तेल नेने आबि‍ बजला-
सुति‍ रहलौं।‍
आरो गोटेक साँसे कहैत जे सूतल छी। बजलौं-
नै, जगले छी।‍
हमरा लग आबि‍ चेथरू तेलक बाटी बढ़बैत कहलनि‍-
थाकल-ठेहियाएल छी, पएरमे तेल औंसि‍ लिअ।‍
दहि‍ना हाथ तेलमे डूमा बजलौं-
भ‍ऽ गेल। एकरे मि‍ला लइ छी। रखि‍ दियौ।‍
एकेठाम बैस दुनू गोरे गप-सप्‍प शुरू केलौं। पुछलि‍यनि‍-
ऐठाम एला केते दि‍न भेल‍?
कनीकाल चुप रहि‍ चेथरू बजला-
जहि‍ना बि‍नु पढ़ल-लि‍खल परि‍वारक (टि‍प्‍पणि‍ दुआरे) बेटा-बेटीक जनमोक ठेकान नै रहैत तहि‍ना हमहूँ छी। अंदाज पच्‍चीस बर्खसँ ऊपरे भेल हएत‍?
ऐठाम बेसी नीक लगैए आकि‍ ओइठाम, मधेपुरमे?
प्रश्न सुनि‍ चुप भ‍ऽ गेला। जहि‍ना दुबट्टी-ति‍नबट्टीपर पहुँच‍‍ अपन रस्‍ता लोक हि‍याब‍ए लगैत तहि‍ना चेथरूओ हि‍याबए लगला। उठि‍ क‍ऽ तमाकुल थुकड़ि‍ आबि‍ बैस बाजए लगला-
जेतए बसी वएह सुन्‍दर। भने अखनि दुइए भाँइ जागल छी। अपन गाम मन पड़ैए तँ छाती दहलि‍ जाइए। बाबाक रोपल गाछी भुताहि‍ भ‍ऽ गेल। बाबाक कहल सभ बात तँ मन नै अछि‍ मुदा गोटे-गोटे मन अछि‍। कहने छला जे केना अपन गाम बसल आ अखनि धरि‍ केना परि‍वार चलैत रहल। दैवी चक्र एहेन चलल जे बि‍गड़ैत-बि‍गड़ैत एते बि‍गड़ि‍ गेल जे बास होइ जोकर नै रहल।‍
कहैत-कहैत हुचकी उठए लगलनि‍। गरा -कंठ- बाझए लगलनि‍। चुप होइत देखि‍ पुछलि‍यनि‍-
से की‍? से की‍?
आँगुरसँ अपन मौसाक घर दि‍स देखबैत बजला-
हमरा अबैसँ पहि‍ने ऐठाम मौसा एला।‍
मौसाक नाओं सुनि‍ पुछलि‍यनि‍-
ओ किए एला‍?
चेथरू-
आब तँ अपने नै छथि‍, बेटा छन्‍हि‍। वएह ऐठामक गाम-परधान छी। ओकरा दुआरपर पाँचटा धरम बखारी (धान रखैबला) छै। सौंसे गौआँ बेर-बेगरता लेल धान जमा केलक। साले-साले बढ़बैत गेल। अखनि तेते जमा भ‍ऽ गेल अछि‍ जे जेकरा (गामक लोककेँ) जेते बेगरता होइ छै ओ ओते लइए आ पीठक-पीठ आपस करैए।‍
मुहसँ नि‍कलि‍ गेल-
वाह‍! अच्‍छा, ओ किए एला‍?
चेथरू-
मौसाकेँ अनटेटल गप आ अन्‍ट-सन्‍ट काज पसि‍न्न नै छेलनि‍। सोभावे ओहने छेलनि‍। जेकरा चलैत चारि‍-पाँच बेर गौआँ सभ मारलकनि‍। अंति‍म माि‍रमे बेसी चोट लगलनि‍। मन टूटि‍ गेलनि‍। जहि‍ना एक घटनासँ कि‍यो वैरागी बनि‍ जाइत तँ कि‍यो अपराधी, कि‍यो नि‍रमोही बनि‍ घर-परि‍वार छोड़ि‍ दैत तँ कि‍यो सि‍ंह सदृश गर्जन करैत रहैए‍, तहि‍ना गामक मोह छोड़ि‍ खेत-पथार बेचि‍ चलि‍ एला।‍
‍अहाँकेँ की भेल?”
‍कोनो एक्के गाम ओहन अछि‍। हमर गाम तँ आरो बेसी बि‍गड़ि‍ गेल। एक दि‍स महाजनक अति‍याचार तँ दोसर दि‍स खेत-पथारक बेइमानी-शैतानी। बलजोरी अपन नम्‍हर खेतमे छोटका खेतक आड़ि‍ तोड़ि‍ जोइत लैत। तहि‍ना चोराइओ आ देखाइओ क‍ऽ खेतक जजात गाए-महिंससँ चरा लैत। आम तोड़ि‍ लैत, दोसराक माए-बहि‍न‍क इज्‍जत-आबरूपर हाथ बढ़बैत तँ आगि‍-पानि‍ ढाठि‍ भागैले उड़ी-बि‍ड़ी लगबैत। सेन्‍ह काटि‍-काटि‍ घरक वस्‍तु-जात ल‍ऽ भागैत तँ बि‍ना कि‍छु बजनौं दसटा बात-कथा कहि‍ दैत।‍
चेथरूक बात सुनि‍, जहि‍ना भुम्‍हुर आगि‍क धुआँ नि‍कलैए‍ तहि‍ना लहरल हृदैक गर्म सांस नि‍कलल। पुछलि‍यनि‍-
शुरूमे (एलापर) तँ बड़ दि‍क्कत भेल हएत‍?
नै। अपना तीन कट्ठा खेत रहए। दू सए रूपैए कट्ठा बेचि लेलौं। घरो बेचि लेलौं। खाली अपन देहक कपड़ा आ रूपैआ ल‍ऽ क‍ऽ मौसे ऐठाम एलौं। वएह दस कट्ठा खेतो कीनि‍ देलनि,‍ एकटा घरो बना देलनि‍ आ कहलनि‍ जे जइ चीजक बेगरता हुअ, से लि‍हऽ। घरक बि‍चला खुट्टा जकाँ ठाढ़ भ‍ऽ गेला। आब तँ अपने सभ कि‍छु भ‍ऽ गेल। जाबे सासु-ससुर जीबै छला ताबे सासुर जाइ छेलौं, मामा-मामी धरि‍ मात्रि‍क। बहि‍न-बह‍नोइ ऐठाम जाइते छी। ओहो सभ अबि‍ते अछि‍।‍
चेथरूक बात सुनि‍ मन औनाए लगल। कछ-मछी आबि‍ गेल। कहलि‍यनि‍-
नीनसँ देह भँसियाइए। बड़ राि‍त भ‍ऽ गेल। अहूँ सुतैले जाउ।‍
एतै ने हमहूँ सूतब।‍
पाँच दि‍न मेहमानी केलौं। छठम दि‍न बरद नेने गामक रस्‍ता धेलौं।

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