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Friday, October 18, 2013

(36) सोनमाकाका

सोनमाकाका
भरि‍ राति‍ ओछाइनपर एक करसँ दोसर कर उनटैत-पुनटैत कखनो उठि‍ कऽ बैसै तँ कखनो पेशाब करैले बाहर नि‍कलै। पोह फटि‍ते चि‍ड़ै-चुनमुनीक चहचहेनाइ सुनि‍ सोनमाकाका डिबि‍‍या नेसि कुट्टी काटए लगल। घरवाली रूपनीक इलाज करबैले डाक्‍टर ऐठाम जाएब छेलै। काल्हि‍ए डेढ़ सएमे खस्‍सी बेचलक। सबेरे वि‍दा हएब तखनि ने समैपर पहुँच‍‍ बेर धरि‍ घूमि‍‍ कऽ आबि‍ सकब सोचि‍ सोनमाकाका औगताइ करैत गाम परहक काज सम्‍हारए लगल। घरवालाक चाल-चूल‍ पाबि‍ रूपनी सेहो उठि‍ कऽ हाँइ-हाँइ मकैक ि‍चक्कस नि‍कालि‍ चूल्हि‍ लग पानि‍ छींटि‍ पजारलक। रोटि‍पक्का धि‍पै दुआरे चूल्हि‍पर चढ़ौलक। चि‍क्कसमे लसि‍ए ने पकड़ै तँए बेसी काले सानि‍ दुनू हाथ पानि‍मे भि‍जा-भि‍जा रोटी बना रोटि‍पक्कामे देलक। रोटि‍पक्कामे रोटी दऽ कोठीपर रखल मौनीसँ चारि‍टा अल्लू नि‍कालि‍ चूल्हि‍मे घोंसि‍एलक। जाबे कि‍रि‍ण फूटै ताबे रोटी आ सन्ना बनौलक। सोनमाकाका नादि‍मे कुट्टी दऽ पानि‍ छींटि‍ दुनू हाथे मि‍ला गाएकेँ घर-सँ-बाहर केलक। लोटा लऽ कलपर जा हाथ-मुँह धोइ पानि‍ नेने आएल। अपनेसँ पिरही लऽ जलखै करैले बैसल। रूपनी पति‍केँ थारी आगूमे दऽ कलपर जा हाथ-पएर धोइ आबि‍ चूल्हि‍ए लग बैस‍ खाए लागलि‍। जलखै खा धोती, गोल-गला आ पएरमे चट्टी पहि‍रि‍ सोनमाकाका रूपनीकेँ कहलक-
केते दूर जाए पड़त से नै बुझै छि‍ऐ, फुर्ती करू?
काँख तर छाता कान्‍हपर तौनी, धोतीक खूटमे रूपैआ बन्‍हलक। रूपनीकेँ हुक्काक चहटि‍। बि‍ना हुक्काक भरि‍ दि‍न केना कटतै तँए बीड़ी-सलाइ खोंइछामे लऽ तैयार भेल‍। आगू-आगू सोनमाकाका पाछू-पाछू रूपनी बाजार दि‍सुका बाट पकड़ि‍ वि‍दा भेल।
ति‍नमहला भारी-भरकम मकान देखि‍‍ सोनमाकाकाकेँ फाटकसँ भीतर जाइक साहसे नै होइ। पीचपर ठाढ़ भऽ रि‍क्‍शाबलाकेँ पुछलक-
बौआ, डाक्‍टर साहैब ऐठाम जाएब?
जा-जा वएह मकान डाक्‍टर साहैबक छियनि‍।‍‍ रि‍क्‍शाबला हाथक इशारा दैत कहलक।
पीचसँ उतरि‍ फाटक लग सोनमाकाका जाइते छल आकि‍ खाटपर टँगने एकटा रोगीकेँ भीतर जाइत देखलक। सोनमोकाका पाछू-पाछू बढ़ल। लोकक करमान लगल देखि‍‍ रूपनीक दि‍ल दहलि‍ गेल। मने-मने बाजलि‍-
‍बाप रे बाप, एते दुखता केतएसँ एलै। असकरे डाक्‍टर साहैब केना इलाज करथि‍न।
सोनमाकाका भीतर जा कम्‍पाउण्‍डर लग फीस दऽ पुरजा बनौलक। पुरजा दैत कम्‍पाउण्‍डर सोनमाकाकाकेँ कहलक-
ताबे बाहर जा बैसू। जखनि नम्‍बर आैत तखनि सोर पारि‍ लेब।‍
सोनमाकाका बाहर नि‍कलि‍ फुलवाड़ीमे घूमि‍-घामि‍ फूल देखए लगल। रंग-बि‍रंगक फूल फुलवाड़ीमे। कोनो-कोनो सुगंधि‍त आ कोनो-कोनो बि‍ना सुगंधेक। किआरी बनल। पति‍यानीमे फूलक गाछ रोपल। पटैले पनि‍बट बनल। टहलै-बुलैले दू हाथ चाकर रस्‍ता। रस्‍तापर गदगर दुभि। पछबारि‍ भाग नीमक गाछ तर बैस‍ सोनमाकाका तमाकुल चुनबए लगल। चून झाड़ि‍ तमाकुल मुँहमे लऽ आगू तकलक आकि‍ दस-बारहटा खढ़ि‍याकेँ गाछक दोगे-दोग दौगैत देखलक। कोनो उज्‍जर, कोनो कारी, कोनो भटरंग देखि‍‍ दुनू परानी सोनमाकाका देखए लगल। हवा सि‍हकैत। नीमे गाछ तर गमछा बि‍छा सोनमाकाका पड़ि‍ रहल। थोड़े-काल पछाति‍ कम्‍पाउण्‍डरकेँ सोर पारि‍ते दुनू गोटे डाक्‍टर लग पहुँचल। रूपनीकेँ ब्रेन्‍चपर बैसा डाक्‍टर आला लगा जाँच करए लगलखिन। बिमारीक भाँज नै बूझि‍ डाक्‍टर साहैब सोनमाकाकाकेँ पुछलखि‍न-
केते दि‍नसँ बिमार छथि‍। की सभ होइ छन्हि?
मि‍रमि‍रा कऽ सोनमाकाका बाजल-
पौरूँका साल गाममे हैजा भेलै। बड़ लोक मुइलै। हमरो जेठका बेटा आ मझिली बेटी मरि‍ गेल। तहि‍एसँ बिमारीक परबेस भऽ गेलै।‍
केतेक बाल-बच्‍चा अछि?
आब एक्केटा छोटकी कनटि‍रबी रहल।‍
डाक्‍टर साहैब एकटा टाँनि‍क लि‍खि‍ कागत दऽ देलखि‍न। कम्‍पाउण्‍डर सामनेमे रोडक पच्‍छि‍म बा दोकान हाथक इशारासँ सोनमाकाकाकेँ देखा देलक। खाट उठा कऽ जे अनने छल ओकरा देखि‍‍ सोनमाकाका पुछलक-
‍भाय, तोरा रोगीकेँ की भेल छह?”
माथ कुरि‍यबैत ओ बाजल-
की कहब भैया, हमरा भायकेँ दूटा स्‍त्री। अपने हर जोतए गेल रहए। आँगनमे दुनू सौति‍न झगड़ा करए लागलि‍। छोटकी बुफगर। ओ बड़कीकेँ उठा कऽ सि‍लौटपर पटकि‍ देलक आ मुकियाबए लगल। मुकियबैत-मुकि‍यबैत बेहोश कऽ देलक। जाबे भैयाकेँ खबरि‍ होइ आ आबै ताबे थारी-लोटा-नुआक मोटरी बान्‍हि‍ समदौआ पड़ा गेल। हमहूँ गामपर नै रही। जखनि एलौं तँ देखलिऐ। लगले एक सए रूपैआ पि‍ति‍याइनसँ लऽ टँगने एलौं।
बा-फीस लगा सोनमाकाकाकेँ सए रूपैआ खर्च भऽ गेल। रूपैआ गनि‍ देखलक तँ पचास रूपैआ बँचल। मने-मन सोनमाकाका सोचलक जे कहि‍या बाजार आएब कहि‍या नँइ। बि‍छानोक तकलीफ अछि आ अन्नो राइ-छि‍त्ती होइत रहैए‍। कि‍राना दोकान जा सुपारीबला खलि‍या चारि‍टा प्‍लास्‍टि‍कक बोरा कीनि‍ लेलक। अन्न रखैले दूटा बोरे राखब आ दूटाकेँ सिय‍ि‍न उधारि‍ कऽ बि‍छानो बना लेब। पथारो सूखत आ सुतबो करब। जखनि बाजारसँ बहराएल आकि‍ धक् दऽ सोनमाककाकाकेँ मन पड़ल जे बाजार एलौं कि‍छु खेलौं कहाँ? घूमि‍‍ कऽ कनी आगू बढ़ल आकि‍ मुरही-कचड़ी बेचैत एकटा बुढ़ि‍याकेँ देखलक। पाँच रूपैआक मुरही-कचड़ी मि‍ला सोनमाकाका कि‍न‍लक। अदहा अपने गमछाक खोचड़ि‍ बना लेलक अदहा धरवाली रूपनीकेँ देलक। रूपनी खोंइछामे लऽ लेलक। दुनू गोटे रस्‍तो चलै आ खेबो करै। कचड़ीकेँ गुडि‍़ मुरहीमे सोनमाकाका मि‍ला देने रहए। थोड़े दूर आगू बढ़ल तँ मुँहमे मि‍रचाइक टुकड़ी पड़लै। कड़ू मि‍रचाइ रहने सोनमाकाकाकेँ हुचकी उठलै। दुनू आँखि‍सँ नोर सेहो गिरए लगलै। जहाँ हाथसँ नोर पोछलक आकि‍ आँखिओमे लागि‍ गेलै। पानि‍क केतौ पता नै‍। सोनमाकाका सुसुएबो करै, आँखि‍सँ नोरो चुबै आ हुचकबो करै। मील भरि‍ जखनि बढ़ल तँ रस्‍ताक बगलेमे उतरबारि‍ भाग इनार देखलक। इनार देखि‍ते सोनमाकाकाकेँ हूबा भेल। इनारक चारू कात सि‍मटीक लहरा बनल। चारि‍-पाँच गोटेकेँ पानि‍ भरैत देखि‍‍ हि‍चकैत सोनमाकाका कहलक-
बुच्‍ची, कनी पानि‍ पि‍आबह, कड़ू लगल अछि। बिच्चेमे हुचकी उठलै।‍ हुचकैत आ सुसुआइत सोनमाकाकाकेँ देखि‍‍ पनि‍भरनी सभ आँचरसँ मुँह दाबि‍-दाबि‍ हँसबो करए। करि‍या डोलमे पानि‍ भरि‍ सोनमाकाकाकेँ देलक। पानि‍ पीब‍ सोनमाकाका इनारक बगलेमे कनैल फूलक छाहरि‍मे बैस खाए लगल। करि‍या भूल्‍लीकेँ कहलक-
हे गै पि‍तरिया आँखि‍वाली बाबाकेँ देखि‍-देखि‍‍ हँसै छीही?
आँखि‍ डेढ़ करैत भूल्‍ली करि‍याकेँ कहलक-
हे गै जरसी गाए, अनके टेटर देखै छीही। रूपनीदादी अखनो दुनू गोटे‍ हाट-बाजार घूमैले जाइत अछि।
बिच्चे‍मे नेंगरी बहि‍रीकेँ कहलक-
अपना सभ चल। एकरा दुनूकेँ ठि‍ठियाए दही। नहेबो ने केलौं हेन।‍

सोनमाकाका पानि‍ पीब‍ तमाकुल चुनबए लगल। रूपनी बीड़ी नेसि पीबए लागलि‍। दुनू गोटे रस्‍ता धेलक। अपना गामसँ कोस भरि‍ पाछूए दुनू परानी सोनमाकाका रौदमे गरमा गेल। रस्‍ताक बगलेमे पीपरक गाछ देखि‍‍ सुसताए लगल। भोलबाकेँ पहि‍नेसँ सुसताइ देखि‍‍ सोनमाकाका पुछलक-
तँू केतएसँ अबैत छेँ भोला?
उठि‍ कऽ बैसैत भोलबा उत्तर देलक-
तेल पेरबैले गेल लौं। रौदमे मन घूमए लगल। काकीकेँ केतए लऽ गेल छेलहक?
की कहबौ भोला। तीन सालसँ वि‍‍पतिए-वि‍पतिमे पड़ल छी। साल भरि‍सँ बुचि‍‍या माए तरे-तर खि‍याइत जाइत अछि। पहि‍ने होइ छेलए जे बेटा-बेटी मुइलाक सोग भऽ गेलै। मुदा डाक्‍टर लग गेलौं तँ बिमारी ठहरल।‍
देखहक काका, एे देहि‍याकेँ कोन ठेकान। मुदा जाबे तक शरीरमे पराण रहै छै ताबे तक सेवा करैक चाही। जाबे तक आँखि‍ तकै छह तेतबे काल ई दुनि‍याँ। स्‍वर्ग-नर्क सभ एतै छै।‍
बेस कहलेँ भोला। ई तँ अपनो सोचै छी जे घरवालीक भार घरबलापर रहै छै।‍
काका, हमर वि‍चार अछि जे दोसर बि‍आह कऽ लैह। बि‍ना बेटे बापकेँ गति‍ नै होइ छै।‍
भोला तँू चौल करै छेँ। बुढ़ाड़ीमे दोसर बि‍आह कऽ गरदनि‍मे ढोल बान्‍हब। जाबे थेहगर छी कहुना-कहुना दि‍न कटि‍ए जाएत। बादमे बूझल जेतै।‍
तीनू गोटे गाम दि‍स‍ चलल। थोड़े आगू एलापर पि‍पराहीमे हल्‍ला सुनलक। कान लग हाथ दऽ दऽ सभ सुनै जे हल्‍ला कथीक होइ छै। ओना गामे छि‍ऐ, कोनो-ने-कोनो हल्‍ला होइते रहै छै। हल्‍ला सुनि‍ डेगो नम्‍हर दैत बढ़ल। गाममे प्रवेश केलक तँ हल्‍ला स्‍पष्‍ट सुनाइ पड़ए लगलै। कि‍यो कहै नीक भेलै तँ कि‍यो कहै अधला भेलै। तीनू गोटेकेँ कोनो भाँजे ने लगै। रस्‍ताक दछि‍‍नबारि‍ भाग मुनेसरकेँ दरबज्‍जापर बैसल देखलक। तीनू गोटे रस्‍ता छोड़ि‍ मुनेसर ऐठाम जा पुछलक। मुनेसर अखरे चौकीकेँ अंगपोछासँ झाड़ि‍ तीनू गोटेकेँ बैसैले कहि‍ कहए लगलै-
बजैत लाज होइए। मुदा जब पुछलौं तँ कहबे करब। आ-हा-हा रामलोचनकाका छल। कहयो केकरो अधला नै केलक आ ने केकरोसँ कहियो मुहाँ-ठुठी भेलै। सभ साल काति‍कमे भोज कऽ सौंसे गौआँकेँ खुआबै छला। कोनो चीजक कमी नै‍। वेचारे मरला अाकि‍ तेहेन चालि‍-चलनि बेटा धेलक जे सभ सम्‍पति‍‍ बोहा देलक। घैला-घैले ताड़ी पीब अनेरो लोककेँ गरि‍यबै। घराड़ीओ नै बँचलै। बापक रखल नाओं रामकि‍सुन रहै जेकरा सभ बतहा कहए लगलै। वएह मुइल तँए कोइ नीक कोइ अधला कहै छै।‍
सोनमाकाका मुनेसरसँ पुछलक-
परि‍वारमे के सभ छै?
एकटा तेरह-चौदह बर्खक बेटा छै। ओहो मइटुग्‍गर अछि। समदौआ बहु जे छेलै ओ मास दि‍न पहि‍ने भागि‍ गेलै। अन्न-अन्नकेँ बतहा मुइल। अँगनामे ओहि‍‍ना पड़ल अछि। ने बाँस छै जे चचरी बनत, ने कपड़ा छै। लगमे बैस‍ बेटा कनै छै।‍
मइटुग्‍गर सुनि‍ रूपनीक आँखि‍मे नोर आबि‍ गेलै। सोनमाकक्काक हृदए पसीज गेलै। बजि‍ते-बजि‍ते मुनेसरक आँखि‍मे सेहो नोर आबि‍ गेलै। सोनमाकाका मुनेसरकेँ कहलक-
भाय साहैब, मुरदा जरा दियौ। बेटा धन छि‍ऐ, चरबाहिओ करि कऽ जीबे करतै।‍
सोनमाकक्काक वि‍चार सुनि‍ मुनेसरक मन बदलि‍ गेल। चौकीपर सँ उठि‍ बाजल-
सभ कोइ चलि‍ कऽ देखियौ। जौं कोनो जोगार हेतै तँ अँगनेमे बेटासँ मुँहमे आगि‍ दि‍या गारि‍ देबै।‍
रामकि‍सुन बतहाक बेटाक नाओं भुखना। जहि‍ना पूब मुहेँ बतहा सूतल तहि‍ना अछि। भुखना लगमे बैसल कनबो ने करैत। केते कानत। कनैत-कनैत मुँह दुखा गेलै। जहि‍ना अोसमे भीजल दुभि‍ रौद लगि‍ते सूखि‍ जाइ छै तहि‍ना मुनेसरक क्रोध भुखनाक दशा देखि‍‍ सूखि‍ गेल। हृदए पि‍घलि‍ गेलै। डेन पकड़ि‍ मुनेसर भुखनाकेँ उठा कहलक-
बच्‍चा, अखनिसँ तोरा हम बेटा बना रखबौ।‍
मुनेसरकेँ देखि‍‍ टोलोक लोक एकाएकी आबए लगल। सोनमाकाकाकेँ जे बीस रूपैआ बँचल छल ओ डाड़सँ नि‍कालि‍ कपड़ा लेल देलकै। मुनेसर अपने गाछीमे जरबैले सेहो कहलक। जारनि‍ आ चचरीक बाँस सेहो देलक। सभ मि‍लि‍ बतहाकेँ जरौलक। समाज समुद्र होइ छै। अधला-सँ-अधला आ नीक-सँ-नीक सबहक समाबेश समुद्रे जकाँ समाजोमे होइ छै।
गरमी मास रहने सोनमाकाका भोरे हाँसू-छि‍ट्टा लऽ घास लेल वि‍दा भेल। कनी आगू बढ़ल तँ मोनमे एलै जे भुखनाकेँ ऐठाम आनि‍ बेटीक संग बि‍आहो कऽ देबै आ रखिओ लेब। घुि‍र कऽ आबि‍ हाँसू-छि‍ट्टा रखि‍ छाता लेलक आ पि‍पराही वि‍दा भेल। पि‍पराही जा मुनेसरकेँ कहलक-
भाय, हमरो बेटा नै अछि, एकटा बेटी अछि। वि‍चार भेल जे भुखनाकेँ बेटीसँ बि‍आह कऽ जमाए बना रखी। अोहू बच्‍चाकेँ नीक हेतै आ हमरो दुनू परानीकेँ।‍
हँसैत मुनेसर बाजल-
तेलोसँ चि‍क्कन। अखने भुखनाकेँ नेने जाउ।‍
सोनमाकाका भुखनाकेँ संग केने अपना ऐठाम आएल। गाममे जेते घरहटि‍या अछि सभकेँ सोनमेकाका सि‍खौने अछि स्कूल जकाँ सोनमाकाका घर बन्‍हैक एक-एकटा काज करैक लूरि‍‍ सभकेँ सि‍खौने तँइ सभ काका कहैत।

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