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Friday, October 18, 2013

(35) सुभद्रा

सुभद्रा
सुरूजक किरिण अन्‍हारकेँ धकलैत, संघर्ष करैत, पाछू मुहेँ ठेलि‍ रहल अछि। जीव-जन्‍तुक गाढ़ नि‍न्न पतराए लगल अछि। चि‍ड़ै-चुनमुन्नी प्रभात बेलाक धूनमे मस्‍त। गाए-महिंस घर-सँ-बाहर होइले डि‍रयाइत। एकाएक कमलनाथक ऐठाम कन्नारोहट शुरू भऽ गेल। गाएकेँ डोरी पकड़ि‍ रवि‍या बाहर करै छल आकि‍ सुनलक। कानब सुि‍न रवि‍या अकानए लगल आकि‍ गाएक डोरी हाथसँ छूटि‍ गेलै। गाए पड़ा गेल। गाए पकड़ैले रवि‍या पाछू-पाछू दौगबो करए आ कानबो अकानए। बेहटवाली कलपर पानि‍ भरैले अबै छेली आकि‍ गाए हुरपेट देलकनि। रस्‍ताक कि‍नछेरि‍मे बनल खाधि‍मे गि‍र पड़ली‍। चोट तँ कम्‍मे लगलनि मुदा सड़ल थाल-पानि‍ सौंसे देह लागि‍ गेलनि। चुट्टीक धाड़ी जकाँ लोक कमलनाथक ऐठाम जाए लगल।
एक तँ ब्‍लड-पेसरक रोगी दोसर दुखद समाचार सुनि‍ कमलनाथ दलानक ओसारपर अचेत पड़ल। बेधरक गि‍रने कमलनाथक अगि‍ला दुनू दाँत टूटि‍ गेलनि‍ जइसँ खून बहए लगलनि‍। जि‍ज्ञासा केनि‍हार हुनके मृत्‍यु बूझि‍ आँखि‍सँ नोरो बहाबए आ नाक लग आँगुर दऽ, छातीपर हाथ दऽ, परेखबो करए। छातीक धुकधुकी आ साँस ठीके रहनि‍। मोतीहारी अस्‍पतालमे डाक्‍टर चन्‍द्रकान्‍त कार्यरत रहथि‍‍, ओहो गाम आएल। चन्‍द्रकान्‍त अबि‍ते कमलनाथकेँ देखि‍‍ बीअनि‍ हौंकैले कहि‍, बेटीकेँ कहलखि‍न-
बौआ, कनी बैग नेने आबह?” बेटी दौगल आँगन गेली। टेबुलपर रखल बैग लऽ दौगल अाएल।‍ आला नि‍कालि‍ चन्‍द्रकान्‍त जाँच कऽ, एकटा सुइया लगा देलकनि‍। दसे मि‍नट पछाति‍ कमलनाथ होशमे एला। होशमे अबि‍ते कानि‍-कानि‍ बाजए लगला-
अन्‍याय भऽ गेल, जुलुम भऽ गेल। बाप-रे-बाप, एहेन वि‍‍पति केकरो नै दि‍हक। हे भगवान हमरा कोन सन्‍ताप देखैले रखने छह। बजैत-बजैत फेर बेहोश भऽ गेला। आँगनमे कमलनाथक पत्नी सुनयना कपार पटकि‍-पटकि‍ फोड़ि‍ अचेत भऽ ओंघराएल। एक्के-दुइए आँगनसँ दरबज्‍जा धरि‍ लोकक करमान लगि‍ गेल। दछि‍‍नबरि‍या घरमे सुभद्रा बताहि‍ जकाँ ओंघरनि‍या दइ छेली।
अगहनक बि‍आह-पंचमी दि‍न सुभद्राक बि‍आह इंजीनि‍यर बरक संग भेल। दू भाँइक बीच एकटा बेटी रहने कमलनाथ हृदए खोलि‍ बि‍आहमे खर्च केने छला। आगू पढ़ैले जमाए अमेरि‍का जाइत रहथि‍। हवाइ जहाज दुर्घटना भऽ गेल। यात्रीसँ चालक धरि‍ कि‍यो ने बँचल। वएह खबरि‍ टेलीफोनसँ चारि‍ बजे भोरमे कमलनाथकेँ एलनि‍। से सुनि‍ते परि‍वारमे, जेना पहाड़ टूटि‍ केकरो देहपर गि‍रैत, तहि‍ना भेल। खरचाक सोच नै मुदा सुभद्रा वि‍धवाक जि‍नगी बितौत सोच तेकर। अखनि धरि‍ समाजो जेकरा अधला बुझैत, अशुभ बुझैत।
जेहने सुभद्रा हँसमुख तेहने सुन्नरि‍। जोरसँ बजैत कि‍यो ने सुनने। पढ़बोमे चन्‍सगरि। घरक सभ काजक लूरि‍‍ माएसँ सि‍खने। भोरे उठि‍ फुलडाली धोइ फूल तोड़ि‍ नहा कऽ पूजा करैत। सालो भरि‍ जे उपास होइत सभ करैत। पि‍ताकेँ खुऔने बि‍ना सुभद्रा मुँहमे पानिओ ने लैत। भगवानकेँ कोसैत नवटोलवाली बाजलि‍-
भगवानो नीकेकेँ अधला करै छथि‍न। पपीयाहा सबहक बेरमे सुति रहता।‍
ओसारक खुट्टा लगल ठाढ़ भेल सुशील सभ देखैत-सुनैत। कि‍छु काल देखि‍‍ गुम्‍मे अपना ऐठाम वि‍दा भऽ गेल। अपना ऐठाम आबि‍ कोठरीक चौकीपर पड़ि‍ रहल। सुशीलक मनकेँ, जेते घटना नै झकझोड़ैत तइसँ बेसी समाजक बेवहार। अखनि धरि‍ सुशीलक वि‍चार पढ़ाइ समाप्‍त कऽ राँचीएमे नोकरी करैक छल। मुदा औझुका घटना वि‍चारकेँ बदलि‍ देलकनि‍। जहि‍ना भुमकम भेलापर खाधि ढि‍मका बनि‍ जाइत आ ढि‍मका खाधि‍, तहि‍ना। पि‍ता समाज शास्‍त्रक प्रोफेसर रहथि‍न। दू तल्‍ला कोठा राँचीमे बनौने छला। दस कट्ठा वाड़ी‍ओ किनने, जइमे तीमन-तरकारी उपजबै छला। एकाएक शुशीलकेँ गामक आकर्षण आ संकल्‍प जागल, जे कुबेवस्‍थाकेँ मेटौने बि‍ना समाजक नीक नै भऽ सकै छै। ‍जेकरे चलैत ढेरो बहि‍न‍ सभ पापीनी बनि‍ समाजमे मुँह नुका-नुका जीबै छथि‍। परीक्षा लग रहने दोसर दि‍न सुशील बससँ राँची वि‍दा भऽ गेल।
सुशीलक मन्‍हुआएल मुँह देखि‍‍ माए-पि‍ता सन्न भऽ गेलखि‍न। बि‍ना कि‍छु बजने सुशील दुनू गोटेकेँ गोड़ लागि‍ नहाइले गेल। माए थारी परोसलक। चि‍न्‍ति‍त भऽ पि‍ता कुरसीपर बैसल, टेबुलपर केहुनीक बले मुँहपर हाथ दए सोचए लगला। नहा कऽ आबि‍ सुशील खेनाइ खाए लगल, मौका बूझि माए पुछलकनि‍-
बौआ, बसमे बेसी झमार भेल जे मुँह ूखल अछि?
नै‍।‍
तखनि मन्‍हुआएल किए छी?
आब ऐठाम (राँचीमे) नै रहब। परीक्षा दऽ गाम चलि जाएब।‍
माए-बेटाक गप-सप्‍प कान पाथि‍ पि‍ता सुनैत। सुशील पढ़ाइसँ कि‍एक वि‍मुख भऽ रहल अछि। एे तारतम्‍यमे प्रोफेसर तरूणक दि‍माग ओझराएल। रंग-बि‍रंगक सवाल-जवाब मनमे उठए लगलनि‍। सि‍रि‍फ तीन साल अपन नोकरी बँचल अछि। अखनि धरि‍क कमाइक मकानेटा अछि। के रहत? अपन इच्‍छा छल जे सुशील एम.ए. कऽ ऐठाम नोकरी करत। सभ मि‍लि‍ कऽ रहब। सभ वि‍चार धूरा बनि‍ हवामे उड़ि‍या रहल अछि। सुशील नवयुवक अछि जे नि‍र्णए कऽ लेत तइमे पाछू नै हटत। जि‍द्दी तँ ओ शुरूहेसँ रहल। जौं हम दुनू परानी राँचीमे रही आ सुशील गाममे, तखनि केकर सेवा के करत? राँचीओक वातावरण जे पहि‍ने छल ओ धीरे-धीरे अधला भेल जाइत अछि। सेवा-नि‍वृत्ति‍ भेलापर पेंशन भेटत। पि‍ताजीक देल गाममे बहुत सम्‍पति‍‍ अछि। ऐठामक सभ कि‍छु बेचि‍‍ गामेमे बना लेब। सुशीलोक बि‍आह नै ऐ साल तँ आगू साल करबे करब। गामेमे सभ गोटे मि‍लि‍ रहब।
सुभद्राक समाचार रूपलाल बाबाक कानमे पड़ल। शरीरसँ असमर्थ बाबा। १९३४ई.क भुमकममे सेवाक इमानदारीक चलैत सभ गाँधीजी कहए लगलनि‍। लोकक बीच बाजब, गोलबन्‍द करब, बाबा जहलमे सि‍खलनि‍। आजादीसँ पहि‍ने बकास्‍त सि‍क्कमी जमीनक लड़ाइ लड़ि‍ गरीबक बीच सेहो बँटौलनि‍। जमीन्‍दार सबहक वि‍रोध एे रूपे रूपलाल बाबा केलनि‍ जे सस्‍तेमे बेचि‍-बेचि‍ सभ गामसँ पड़ा गेल। समाजमे केकरोसँ कोनो भेद-भाव नै‍। ने जाति‍-पाति‍ ने छोट-पैघ ने ई धरम, ऊ धरमक पछड़ामे कहि‍यो पड़ला। सबहक ऐठाम एनाइ-गेनाइ, नीक-बेजाएक गप-सप्‍प करब शुरूहेसँ रहलनि‍। आजादीक उपरान्‍त जखनि गाँधीजी गोलीक शि‍कार भेला, रूपलाल बाबाक मन टूटि‍ गेलनि‍। अपन जीवन-यापन लेल समाजसँ सि‍कुड़ि‍ परि‍वारमे समा गेला। जवानीक सभ अरमान आ क्रि‍या-कलाप बुढ़ाड़ीमे चूर-चूर भऽ गेलनि‍।
आनर्सक परीक्षा समाप्‍त होइते सुशील गाम चलि आएल। बसक झमारसँ भरि‍ दि‍न घरमे सुतले रहल। गामक जानकारी पबैले सुशील भोरे चाह पीब‍ रूपलाल बाबा ऐठाम गेल। पाकल आम जकाँ जि‍नगीसँ लड़ैत रूपलाल बाबा दलानेपर बैस‍ सुइया-डोरासँ धोती सि‍बैत। एकटा पतरे ठेंगा बगलमे रखल। आँखि‍क ज्‍योति‍ सेहो कमि‍ गेलनि‍। पएर छूबि‍ सुशील गोड़ लगलकनि‍। अनचि‍न्‍हार बूझि‍ बाबा पुछलखि‍न-
नै चि‍न्‍हलौं?
वि‍स्‍तारसँ अपन परि‍चए दऽ सुशील आगूमे बैसल। पहुलका सभ वृतान्‍त रूपलाल बाबा कहलखि‍न। जि‍ज्ञासा भरल स्‍वरमे सुशील पुछलकनि‍-
‍समाज कल्‍याणक सम्‍बन्‍धमे अपनेक की वि‍चार अछि?”
बौआ, हमर नेता गाँधीजी छला। जाबे जीबैत रहला आ जे कहथि‍न जान-पराण लगा लड़ैत रहलौं। कहियो पाछू घूमि‍ नै तकलौं। मुदा जखनि हुनका गोली लागब सुनलौं मन टूटि‍ गेल। जखनि गाँधीजी सन ति‍यागी-तपस्‍वी नेता गोलीसँ दागल गेला तखनि समाजक कल्‍याण केना होएत। पढ़ल-लि‍खल नै छी। हुनकर लि‍खल पोथी जे किनलौं ओहि‍ना बक्‍सामे रखल अछि। जेकरा हाथमे देशक शासन गेल, अपन सुख-भाेगक खाति‍र, अपना-अपना ढंगसँ गाँधी जीक वि‍चारकेँ व्‍याख्‍या करए लगल। बेइमानी-शैतानी बढ़ैत गेल।‍
बड़ अनुभवक बात बाबा कहलौं।‍
जहलमे बड़का नेता सभ कहथि‍न जे गामक भीतरक सभ कि‍छु गाैआँक छी। ओकरा अधि‍कसँ अधि‍क उबजाए गामक वि‍कास करब। छोट-छोट कारोबारक जनम हएत। आमदनी बढ़ैत जेतै। छोट कारोबार पैघ बनैत जाएत। जेते पैघ कारोबार होइत जेतै गाम ओते खुशहाल होइत जाएत। छोट-छीन झगड़ा अपनेमे फड़ि‍याएत। सबहक धि‍या-पुता पढ़त-लि‍खत। बा-दारूक जोगार सरकार करतै। स्‍वस्‍थ समाज, स्‍वस्‍थ देशक नि‍र्माण‍ करत। सभ सपना भऽ गेल। हृदए वि‍दीर्ण भऽ गेल। जेते दि‍नका दाना-पानी अछि, जीबै छी। सभकेँ सभ जाल बुनि-बुनि फँसबए चाहैए। शान्‍तक जगह अशान्‍त लए लेलक। प्रेमक जगह कटुता। समाज टूटि‍-टूटि‍ कमजोर बनैत जा रहल अछि।
जे वि‍चार सुशीलकेँ आइ धरि‍ नै आएल छल ओइ‍ले हृदैमे जमीन तैयार हुअ लगल। गुम-सुम्‍म सुशील एक टकसँ रूपलाल बाबा दि‍स‍ देखैत रहल। जहि‍यासँ सुभद्राक सम्‍बन्‍धमे बाबा सुनलनि‍ तहि‍यासँ राति‍ कऽ नि‍न्न नै होइन। भादो मास जकाँ सदि‍खन आँखि‍सँ नोर झहैरते रहनि‍। सोगाएल स्‍वरमे सुशील पुछलकनि‍-
बाबा जइ वि‍पतिमे सुभद्रा फँसि‍ गेलि‍, ओइ‍‍सँ उबरबाक कोनो रस्‍ता छै?
हँ अछि। जइ वि‍पतिक चर्चा केलौं ओ बनौआ छी। ओकरा सुधारल जा सकैत। सुधारलासँ ओइ‍‍ वि‍पतिक अंत भऽ जेतै।‍
सुधारवाक की रस्‍ता हेतै?
समाजमे सबहक लेल ई वि‍पति नै अछि। किछु जाति‍क बीच अछि। एे लेल नौ-जबानकेँ डेग उठबए पड़त। मेहौता बरद जकाँ हमहूँ सभ पाछू-पाछू चलब।‍
उत्‍साहि‍त भऽ सुशील पुछलकनि-
बाबा ऐ लेल जे करए पड़त, करब। अहाँक असि‍रवाद चाही।‍
बौआ, जेना लोक जीबैए तेना हम मरि‍ गेल रहि‍तौं। अस्‍सीसँ ऊपरे वएस भऽ गेल। दधीचि‍क हड्डी जकाँ जे जरूरति‍ होएत अखनो तैयार छी।
अखनि जाइ छी। काल्‍हि‍खनि फेर आएब।‍ कहि‍ सुशील वि‍दा भेल। सूतल जवानी रूपलालमे पुन: जागि‍ गेलनि‍। देहमे नव शक्‍ति‍क संचार हुअ लगलनि‍। थरथर कँपैत शरीर, हाथमे ठेंगा नेने बाबा कमलनाथ ऐठाम वि‍दा भेला।
सोनपुरवाली दादी चौपारि‍पर सोफ बि‍छा बारहोटा पोता-पोतीकेँ खेलबैत रहथि‍। कोरामे केतेकेँ रखि‍तथि‍। सभ धि‍या-पुता खेलाइत। खेलबैले दादी एकटा छि‍पली आ कड़चीक टुकड़ी रखने। जहाँ कोइ कानए लगै छल तँ दादी छि‍पली बजा गीत गाबए लगैत। बच्‍चा चुप भऽ दुनू हाथे थोपड़ी बजा दादीक संग गीत गाबए लगै छल। दादीक लाटमे आनो-आनो गोटे अपना बच्‍चाकेँ आनि‍ खेलबैत। महरैलवाली हँसमुख। सदि‍खन हँसि‍ए कऽ बजैत। मुदा आइ मन्‍हुआएल देखि‍‍ ननौरवाली चुटकी लैत कहलकनि‍-
दीदी, बड़ मन्‍हुआएल छथि‍, भैया कि‍छु कहलकनि‍?
बिच्चे‍मे कछुबीवाली टपकि‍ कऽ बाजलि‍-
भैयाकेँ तँ दीदी खेलौना बनौने छथि‍, ओ की कहथि‍न।‍
कछुबीवालीक बात सुनि‍ महरैलवाली उत्तर देलखि‍न-
नै कनि‍याँ, सुभद्रा दाइक दुख मन पड़ि‍ गेल। भरि‍ दि‍न अन्नो ने नीक लगल।‍
सुभद्राक नाओं सुि‍न ठाढ़ीवाली च्‍यू,च्‍यू करैत बाजलि‍-
कनि‍याँ, तँू सभ नव-नौतुक छह। नै बूझल हेतह। हमर जे मझि‍ली पुतोहु अछि ओ दोती अछि। पहुलका घरबला जे रहै ओ बौर गेलै।‍
कछुबीवाली पुछलक-
केतए बौर गेलै?
ठाढ़ीवाली उत्तर दैत बाजलि‍-
दि‍ल्‍लीमे नोकरी करए गेल, से घूमि‍ कऽ नै आएल। बेटा तँ हमर कुमार रहए। बापक मन दोती लड़कीसँ बि‍आह करबाक नै रहनि‍। मुदा वि‍देसरक मेलामे जे कनि‍याँ देखलौं, देखि‍‍ कऽ मनमे गड़ि‍ गेल। हमरे जोरसँ बि‍आह भेलै। अखनि ओकरेपर गि‍रथाइन बनल छी। जेठकी तँ तेहेन‍ अछि जे कहि‍या ने झोंटि‍या कऽ बइला देने रहि‍ताए।
सोनपुरवाली दादीकेँ सभ बुधि‍यारि‍ आ बेसौह बुझैत। ओ कहए लगली-
कनि‍याँ, तोरा सभकेँ नै बूझल हेतह। हमर बि‍आह ढेरबामे भेल रहए। दादी जीवि‍‍ते रहथि‍। ओ दोसर बि‍आहकेँ अधला बुझैत। बाबू हमर बड़ वि‍चारक। साल भरि‍ पछाति‍ माएकेँ कहलखि‍न, ‘बुच्‍चीक दोसर बि‍आह कऽ देबै। जाबे अपना दुनू गोटे जीबै छी ताबे ने। जखनि ‍मरि‍ जाएब तँ ओकरा के देखतै। गाममे तँ देखि‍ते छिऐ जे केहेन-केहेन लुच्‍चा-लम्‍पट सभ अछि। खानदानक नाक कटि‍ जाएत।’ हम सुनलौं तँ बुकौर लगि‍ गेल। माए पोलहा-पोलहा बुझौलक। हम हँ कहि‍ देलि‍ऐ। अखनि देखि‍ते छहक जे भगवानक दयासँ केहेन फड़ल-फुलाएल परि‍वारमे सुख करै छी। भगवान सभकेँ सुख-भाेग देथुन। केकरो मन कलपै नै‍।
रूपलाल बाबाकेँ अबि‍ते देखि‍‍ कमलनाथ आगू बढ़ि‍ बाँहि‍ पकड़ि‍ दुआरपर अनलकनि‍। दुनू आँखि‍सँ कमलनाथकेँ नोर टघरए लगलनि‍। कानि‍-कानि‍ अपन दुखनामा बाबाकेँ सुनबए लगलखिन। बबोक आँखि‍सँ नोरक टघार गालपर होइत चौकीपर ठोपे-ठोप खसए लगल। कनैत रूपलाल बाबा कमलनाथकेँ कहलखि‍न-
कमल, समाज एहेन नाशक रस्‍ता धेने अछि जे केकरो नीक नै हेतै। आइ तोरा जे भेलह केते दुखद अछि। हमर नेता गाँधी जी कहथि‍न मर्द-औरतक बीच जे वि‍षमता अछि ओकरा मेटबए पड़त। तखनि समाज एकरंग बनत। अखनो देखै छी जे मरद तीन-तीनटा बि‍आह करैए मुदा औरत जि‍नगी भरि‍ बैधव्‍य भारसँ कलंकि‍त जरैत रहैए। ने कोइ देखि‍नि‍हार आ ने कोइ ओकरा मनुख बुझि‍नि‍हार।‍
भाय, एकर उपए?
हँ छै। लकीर-क-फकीर बनब नीक नै‍। पैघ-पैघ समाज सुधारक समाज सुधारलनि‍। अखनो कि‍छु बाँकी छै। जे हमहीं-तोहीं ने सुधारबै।‍
कमलनाथक हृदैमे जे बेथाक पहाड़ बनल अछि आस्‍ते-आस्‍ते पघि‍लए लगल। चेहरामे चमक आ मुँहमे मुस्‍कान आबए लगल। उत्‍साहि‍त भऽ कहलखि‍न-
भाय, समाज अहाँकेँ गुरु मानै छथि‍। जि‍नगीमे केकरो नीक छोड़ि‍ अधला नै केलि‍ऐ। हमहूँ अहाँसँ बाहर नै छी। जे कहब मानि‍ लेब।‍
कमलनाथक बदलल वि‍चार रूपलाल बाबाकेँ जुआनीक उमंग आनि‍ देलकनि‍। ठहाका मारि‍ दुनू गोटे हँसला। गद्-गद् हृदैसँ रूपलाल बाबा बजला-
कमल, तोरा कोनो तर्दुत नै करए पड़तह। सभ भार हमरा ऊपर। हमहूँ जि‍नगीक अंति‍म घड़ीमे जुआनि‍क कएल कीर्तिकेँ पुन: जोड़ि‍ जीब‍। समाजक बीच ढोलहो दऽ कहबै जे पढ़ल-लि‍खल नौजबान सुशील अछि। देखबोमे भव्‍य, वि‍चारो उत्तम छै। ओकरा संग सुभद्राक बि‍आह होएत।
हँसैत कमलनाथ बजला-
सुभद्रा हमरे बेटी नै समाजक छिऐ। तँए नीक-अधलाक भार समाजक ऊपर छै।
उठि‍ कऽ ठाढ़ होइत रूपलाल बाबा बजला-
कन्‍यादान हम करब‍
गाममे फगुआक उमंग जकाँ रंग-अबीर उड़ए लगल। मुरझाएल सुशील एकाएक प्रफुल्‍लि‍त भऽ गेल। जहि‍ना जाड़क मासमे ठंढ़सँ गाछ-बि‍रि‍छ मरनासन्न भऽ जाइत अछि।‍ मुदा वसन्‍तक बयार पबि‍ते लहलहा उठैए‍, तहि‍ना समाजमे भेल।
सौंसे गामक लोक बरहम स्‍थानमे जमा भेला। की मरद, की औरत, की बूढ़, की बच्‍चा सभमे खुशीक आनन्‍द। समाजक बीच सुशील-सुभद्राक बि‍आह परस्‍पर माला पहि‍रा सम्‍पन्न भेल।
लोक नारा लगबए लगल-
रूपलाल बाबा- अमर रहे‍-२
वि‍धवा बि‍आह- अमर रहे-२

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