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Friday, October 18, 2013

(32) ऑपरेशन

ऑपरेशन
पत्नीक बढ़ैत बिमारी देखि‍ चेतानन्‍द डाक्‍टर ऐठाम जाइले रूपैआक ओरि‍यान करए लगला। अपना हाथमे तीनेटा पचसटकही। कम-सँ-कम तँ पाँचो हजार चाही। जहि‍ना गारामे उतरी नेने लोक घराड़ी लि‍खैले रजि‍ष्‍ट्री आॅफि‍स जाइत तहि‍ना चेतानन्‍द चौमासपर रूपैआ उठा पत्नीकेँ संग नेने डाक्‍टर ऐ‍ठाम पहुँचला। ओना पत्नी-सुनि‍याकेँ गैस्‍टि‍कक शि‍काइत चारि‍-पाँच बर्खसँ छन्‍हि जे मुदा आनो सभ जकाँ एकटा-दूटा गोटी खा-खा रोगकेँ दबने रहथि‍। जाँच-पड़ताल केलापर डाक्‍टर बूझि गेलखि‍न जे सात दि‍नक अभ्‍य‍न्‍तरे दुनि‍याँ छोड़ि‍ देती। मुदा जखनि कि‍यो मृत्‍युक बाट पकड़ैए तखने डाक्‍टर ऐ‍ठाम जाइत अछि। बोल-भरोस दैत चेतानन्‍दकेँ डाक्‍टर कहलखि‍न-
हि‍नका आँतमे पत्‍थलगोला भऽ गेल छन्हि, आॅपरेशन करए पड़त। मुदा शरीर तेते अब्‍बल भऽ गेल छन्हि‍ जे आॅपरेशन करैसँ पहि‍ने पाँच-छह दि‍न बा खुआबए पड़त। देहमे खून बनतनि‍ तखनि आॅपरेशन अासान हएत।‍ कहि‍ बाक पुरजी बना देलखि‍न। भाड़ाक कोठलीमे पहुँच‍‍ पत्नीकेँ चौकीपर सुता, दुनू बच्‍चा मांगनि आ बि‍लटीकेँ पत्नीक लगमे बैसा चेतानन्‍द बाजार वि‍दा भेला। पहि‍ने बाक दोकानपर पहुँच‍‍ बा कीनि‍ फूट-पाथेक दोकानमे रोटी-तरकारी कीनि‍ डेरा एला। डेरा आबि‍ समान रखि‍ कलपर सँ पानि‍ अनलनि‍। बा खुआ दुनू बच्‍चाक संग अपनो खाए लगला। खाइक मन नै होइन। कंठसँ नि‍च्‍चाँ धँसबे ने करनि‍। मुदा पानि‍ पीब‍-पीब‍ खाए लगला। मन कहनि‍ जौं अदहो पेट खाएब नै तँ दि‍न-राति‍ दौग-बरहा केना कएल हएत? जी-जाँति‍ तरकारीक संग तीनटा रोटी खाए दू गि‍लास पानि‍ पीलनि‍। पानि‍ पीब‍ चेतानन्‍द बि‍लटीकेँ पानि‍ पि‍आ पानि‍क हाथे मुँह पोछि‍ देलखि‍न। मांगनि अपने हाथे मुँह धोइ उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। थारी उठा अचौनामे धोइ कोनमे रखलनि‍। पड़ल-पड़ल सुनि‍या सभ कि‍छु देखै छेली। पति‍क मनमे मन सटि‍ थारी धोइत अपन रूप देखलनि‍। जहि‍ना ऐनामे अपन चेहरा लोक देखैए‍ तहि‍ना सुनि‍या देखए लगली। दुनू भाए-बहिन‍केँ पाँजर लगा सुतबैत सुि‍नया पति‍केँ कहलनि‍-
अहूँक देह-हाथ बथैत हएत, पड़ि‍ रहू।‍
बात बदलैत चेतानन्‍द बजला-
मन केहेन बूझि‍ पड़ैए।‍
अखनि की कहब।‍
बि‍नु बात दोहरौने‍ चेतानन्‍द जाजीम बि‍छा नि‍च्‍चेमे पड़ि‍ रहला। बि‍लटीक देहपर हाथ सहलबैत सुनि‍या कहलखि‍न-
डाक्‍टरे साहैब जकाँ बुच्‍चीकेँ डाँक्‍टरी पढ़ाएब। जखनि बुच्‍ची डाक्‍टरी पढ़ि‍ लेत तखनि अहि‍ना कुरसी-टेबुल लगा कऽ काज करत। कि‍ने बुच्‍ची?
नै। खजुरि‍या दीदी जहाइन हमरो बि‍आह कऽ दे?” -तीन बर्खक बि‍लटी बाजल।
बेटीक मुहेँ बि‍आहक बात सुि‍न सुनि‍या हरा गेल। मनमे उठलनि‍ घूमि‍‍ कऽ घर जाएब तहन ने। बिमारी छूटत की‍ नै, से के कहलक। दि‍न-राति‍ तँ नि‍च्‍चे मुहेँ भेल जाइ छी। खेनाइओ-पीनाइ छुटले जाइए। वि‍चार बदललनि- जौं मरि‍ जाएब तँ बेटीक बि‍आह केना हएत। की‍ बि‍लटी बि‍लैटि‍ए जाएत? जेकरा माए-बाप रहै छै तेकरो बि‍आह हएब भारी भऽ गेल छै। ई तँ सहजे मइटुग्‍गर भऽ जाएत। मइटुग्‍गर बेटीकेँ कि‍यो अपना घर लैयो जाइले तैयार हएत आकि‍‍ नै‍। हे भगवान, एहेन युगमे बेटी किए देलह? जौं देबे केलह तँ ऐ बेटीक कोन दोख भेल जे मइटुग्‍गर भऽ दुनि‍याँक नजरि‍मे खसल रहत। यएह ने भानस-भात करैक लूरि‍‍ नै हेतै। की‍ मनुख माटि‍ सदृश छी जे एकबेर‍ आगि‍मे पकलापर अपन स्‍वरूप बदलि‍ दैत अछि‍? मनुख तँ ओहन होइए‍ जे अनाड़ीसँ जीवनी, भोगीसँ जोगी आ डाकूसँ साधू बनि‍ जाइत अछि। की वि‍धाता हमरा कपारमे यएह लि‍खलनि‍ जे संगीक संग छोड़ि‍ असकरे वोनमे बौआइले छोड़ि‍ दियनि। जौं सएह लि‍खैक छेलनि‍ तँ एक उमरि‍या देखि‍‍ किए ने जोड़ा लगौलनि‍? तैबीच आँतमे दर्द उठलनि‍। चि‍चि‍आ कऽ बजली-
हौ बाप, आब नै बँचब।‍
खालीए सि‍मटीपर जाजीम बि‍छा, कपड़ाक मोटरी मुड़ीतर रखि उतान करे बन्न दुनू आँखि‍केँ बामा बाहि‍सँ झाँपि‍ चेतानन्‍द पड़ल। मनमे उठलनि‍। अखनि सीमाक सि‍पाही जकाँ ड्यूटीमे छी। ड्यूटीमे आराम कहाँ होइ छै? अारामो तँ केते रंगक होइए। ओहनो अराम होइए जे नि‍न्नसँ प्रेम करैए आ एहनो होइए जे अपन दुख नि‍वारणक बाट जोहैए। फेर भेलनि भरि‍सक पत्नी नै बँचती। दुनू गोटेक बीचक अंति‍म समए गुजरि‍ रहल अछि। अंति‍म समैपर नजरि‍ पड़ि‍ते भेलनि‍ जे लड़का-लड़कीक माने बर-कन्‍याक बि‍आह स्‍थापि‍त करैमे उमेरक मानदंड कि‍एक बनौल जाइत? जौं सन्‍ताने लेल होइत तँ उम्रक लगीचक कोन प्रयोजन? पनरह बर्खसँ पचास बर्खक सुवि‍धा अछि। उम्रक बरबरि‍ तँ एे लेल मानल गेल अछि कि‍ने जे दीर्घ जि‍नगी संग-संग चलैत रहए। तहन एना किए भेल? वि‍द्यार्थी जीवनमे सपना देखै छेलौं जे मातृभूमि‍क सेवा करब। तँए नोकरी नै केलौं। नोकरी केतए करि‍ताैं? जैठाम जनम भेल अछि ओइ‍ठाम ने शि‍क्षण संस्‍थान अछि, ने कल-कारखाना, ने सरकारी कार्यालय आ ने अस्‍पताल। की ऐ‍ठाम एे सबहक जरूरति‍ नै छै? की हमसभ शपथ खेने छी जे अपना माटि‍-पानि‍ परहक कारखानाक वस्‍तुक उपयोग नै करब, आकि‍ शासनमे सहयोग नै करब, आकि‍ शि‍क्षा-स्‍वास्‍थक लाभ नै लेब। मुदा अखनि धरि‍ ऐ‍सँ आगू बुझैक ने अवसर भेटल आ ने करैक जमीन। देश-सेवा की? यएह ने जे अपनो देशकेँ एक्कैसम शताब्‍दीक दुनि‍याँक कतारमे ठाढ़ करी। मुदा कतार तँ एकसँ लऽ कऽ सए तकक होइए। तइमे केते? एक दि‍स‍ दुनि‍याँक गनल-चुनल धनवान तँ दोसर दि‍स सड़कपर भीख मंगनि‍हारक संख्‍या ओते अछि जेते कताक देशक जनसंख्‍या नै छै। तैकाल पत्नी मन पड़लनि‍। जहि‍ना अन्‍हार राति‍मे माएक पाँजर लग सूतल बच्‍चाकेँ नि‍न्न टुटिते उठि‍ कऽ माएक सूतल मुँह देखि‍‍ पुन: गर लगा कऽ सुति रहैत तहि‍ना चेतानन्द पत्नीक मूनल आँखि‍ देखि‍‍ पुन: ओछाइनपर आबि‍ पड़ि‍ रहला।
ओछाइनपर पड़ि‍ते चेतानन्‍दकेँ मन पड़लनि‍ कौलेजक ओ दि‍न जइ दि‍न सरस्‍वती पूजा स्‍थलपर सुनि‍यासँ पहि‍ल भेँट भेलनि‍। मुदा लगले मनमे आबि‍ गेलनि‍ कौलेजक डि‍ग्री आ पी.एच.डीक रजि‍ष्‍ट्रेशन। पाँच बरख भऽ गेल मुदा एक्को अक्षर अखनि धरि‍ लि‍खि‍ नै पेलौं। लिखिओ केना पबि‍तौं? अखनि धरि‍ तँ यएह ने बूझि‍ पेलौं जे देश सेवा की? मुदा आब तँ सहजे पत्नीक भार कपारपर पड़ने बच्‍चाक तँ माएओ हुअ पड़त। दोबर भार पड़त। बच्‍चाकेँ पढ़ाएब आकि‍ अपने पढ़ब। कौलेज छोड़ला पछाति‍सँ अखनि धरि‍ गृहसूत्रो धुरझाड़ पढ़ल आ ने सीखल‍ भेल। धर्मसूत्र तँ पछुआएले अछि। खाली मंगलाचरण रटि‍ नेने नै ने हएत। वि‍धातोक अजीब खेल छन्हि। जहि‍ना गणेशजी मुसो आ बाघोकेँ नांगरि‍ पकड़ि‍ लड़बै छथि‍ तहि‍ना वि‍धातो रंग-बि‍रंगक जगहपर रंग-बि‍रंगक बानरक नाच, मदारी जकाँ ठाढ़ केने छथि‍। एक दि‍स हार-पाँजर टुटल मनुखकेँ अपन देहक सोनि‍त दऽ कि‍यो देशसेवा करैत तँ दोसर दि‍स एक लबनी ताड़ी पिआ देशभक्‍त बनैत। कि‍यो श्‍मशानमे अपन बेटाक लहास जरबैत जि‍नगी देखैत तँ दोसर सजल-धजल वि‍शाल भवनमे बैस मस्‍तीक जि‍नगीमे पलड़ैए। तैबीच सुनि‍याक बाजब सुनलनि-
हौ बाप, आब नै बँचव।‍
सुनिते हृदए चहकि‍ गेलनि‍। मनकेँ थीर करैत आगूक बात सुनैले कान पाथि‍ देलनि‍। मुदा आगूक बात नै सुनि‍ मनमे उठलनि‍, जहि‍ना मि‍झेबैकाल डिबि‍‍या भुक दऽ जोरसँ बड़ि‍ जाइए‍, तहि‍ना तँ ने भऽ गेल‍। मन गुन-धुनमे पड़ि‍ गेलनि‍। एक मन कहनि‍ जे जौं पराण छूटि‍ गेल होन्‍हि‍‍ तखनि की करब? दोसर मन कहनि‍ जे पराण नै छुटल हेतनि‍ तखनि की करब? ऐठाम तँ चारि‍ए गोरे छी। तहूमे दूटा बच्‍चे अछि। जौं एक्कोरत्ती आँखि‍सँ नोर बहत तँ बच्‍चा सभ अनेरे चि‍चि‍याए लगत। गाममे तँ नै छी जे समाजक लोक आबि‍ कऽ मदति‍ करत। मुदा ई जानि‍ लेब तँ जरूरी अछि कि‍ने जे पराण छूटि‍ गेलनि‍ आकि‍ बँचल छन्हि। ओछाइनपर सँ चेतानन्‍द पुछलखि‍न-
एना किए बजलौं?
पति‍क बात सुि‍न सुनि‍या उत्तर देलकनि‍-
दर्दक धक्का लगि‍ गेल छेलए मुदा अखनि असथि‍र भऽ गेल।‍
साँझक आठ बजे डाक्‍टर साहैब क्‍लि‍निकसँ आबि‍ सोझहे वाथरूम वि‍दा भेला। साँझू पहर टहलए नै जाइत। स्‍पष्‍ट वि‍चार रहनि‍ जे टहलब तँ हुनकर छियनि‍ जे अपना पएरे चलै छथि‍। गाड़ी-सवारीमे बैस टहलब मन बहलाएब छी। जाधरि‍ वाथ रूमसँ नि‍कलला ताधरि‍ पत्नी टेबुल सजा, चौकीदार जकाँ केवाड़क परदा लग ठाढ़ छेली। कुरसीपर बैस‍ डाक्‍टर साहैब रस-पानि‍ कऽ आराम कुरसीपर बैस‍ गेला। मन फुहराम हुअ लगलनि‍। टेबुल सम्‍हारि‍ पत्नी चलि‍ गेलखि‍न। भरि‍ दि‍नक हि‍साब जोड़ए लगला। नापल रोगी, नापल फीस, तँए जोड़ैमे देरी नै लगलनि‍। आमदनीक हि‍साब जोड़ि‍ काजपर नजरि‍ दौड़ौलनि‍। काजक ऊपर होइत मन छि‍छलैत सुनि‍यापर आबि‍ अँटकि‍ गेलनि‍। मुदा लगले काज हरा गेलनि‍। मन उड़ि‍ कऽ अपनेपर चलि‍ एलनि‍। अपनापर अबि‍ते खुशीसँ मन ठहाका मारलकनि‍। अँइ, कहू जे आठ घंटा ड्यूटीक नि‍अम अछि, तैठाम बारह घंटा खटै छी तहन किए लोक बजैए जे फल्‍लाँ डाक्‍टर दरमहे उठबैटा लेल अस्‍पताल जाइ छथि‍। यएह ने जे खानगी रोगी देखै छी। जाधरि‍ अस्‍पतालक समुचि‍त बेवस्‍था नै हएत ताधरि‍ डाक्‍टरे की‍ करता? जैठाम अखनि धरि‍ रोगोक गि‍नती (पहचान) सेरिया कऽ नै भेल अछि तैठाम रोगीक ि‍हसाब जोड़ब औगताइमे बाजब हएत। फेर मन घूमि‍‍ सुनि‍यापर पहुँच‍‍ गेलनि‍। आइ धरि‍ एक्कोटा रोगी इलाजक बीच मरल नै मुदा...। आखि‍र कमी की अछि? जे दोख लगत? मन नचलनि‍। गंजीए-लूंगी पहि‍रने चेतानन्‍दक कोठरी वि‍दा भेला।
सोगमे डुमल चेतानन्‍दकेँ पुछलखि‍न-
कहाली जगले छथि‍ आकि‍ सूतल?
डाक्‍टर साहैबक बात सुि‍न देह-हाथ समटि‍ सुि‍नया बाजलि‍-
जगले छी डाक्‍टर साहैब।‍
सुनि‍येँक चौकीपर बैस‍ डाक्‍टर साहैब पुछलखि‍न-
केते दि‍नसँ दुि‍खत छी?
ठीक-ठीक तँ नै कहि‍ सकै छी मुदा पान-छह बर्खसँ पेटमे गैस बनए लगल। गामेमे बहुतो गोटेकेँ ई रोग छन्हि। वएह सभ बा बता देलनि‍। एकटा-दूटा गोटी सभ दि‍न खाइ छी, नीके रहै छी।
नजरि‍ दौगबैत डाक्‍टर पुछलखि‍न-
उपासो करै छी?
केना नै करब! अहीपर तँ आंग-समांग, वाड़ी-फुलवाड़ी लहराइए।‍
मासमे केतेक दि‍न सहै छी?
सात दि‍नमे रवि‍, मंगलवारी, शुक्रवारी तँ करि‍ते छी। एकर बादो पावनि‍क उपास सेहो करि‍ते छी!‍
देहक काट-खोंट करए पड़त तखनि आॅपरेशन हएत।‍
दोसर उपए नै छै। अपरेशनक कोनो ठेकान नै छै, बाल-बच्‍चा बि‍लटि‍ जाएत।‍
हँ, उपए छै। बा लि‍खि‍ दइ छी। साँझ-परात खाइत रहलासँ नीके रहब।‍
बड़बढ़ियाँ।‍
चौकीपर सँ डाक्‍टर उठि‍ चेतानन्‍दकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ कोठरीसँ नि‍कलि‍ ओसारपर कहलखि‍न-
आँतमे एहेन गोला बनि‍ गेल छन्हि जे बि‍ना कटने नै हेतनि‍। तहूमे रोग बढ़ैत-बढ़ैत एते जुआ गेलनि‍ जे देहक कोनो लज्‍जति‍ए नै रहलनि‍। अंग-अंग बैस‍ गेलनि‍। तीनसँ चारि‍ दि‍नक जि‍नगी बँचल छन्हि। नीक हएत अहाँ भोरे गाम चलि‍ जाउ। ऐठाम पहपटिमे पड़ि‍ जाएब। बाजारमे सभ सुवि‍धा रहि‍तो कि‍यो केकरो बेर‍पर ठाढ़ नै होइ छै।‍ कहि‍ डाक्‍टसाहैब घरमुहाँ भेला। कोठरी आबि‍ चेतानन्‍द पत्नीकेँ कहलखि‍न-
डाक्‍टर साहैब छुट्टी दऽ देलनि‍।‍
बड़बढ़ियाँ। भोरे वि‍दा भऽ जाएब।‍
चेतानन्‍दक नजरि‍ सुनि‍याक परोछ भेलापर गेलनि‍। मनमे उठलनि‍ माएक मृत्‍यु बेटा-बेटीकेँ कलंकक मोटरी कपारपर देने जाइ छै। जौं से नै तँ मइटुग्‍गरकेँ ओछ-आँखि‍ए किए देखल जाइए। पत्नीक मृत्‍युपरान्‍त जौं परि‍वार ठाढ़‍ करैले दोसर बि‍आह करब तँ आरो पहपटि‍ बढ़त। कि‍यो एहेन कहनि‍हार नै हएत जे भूखल बच्‍चाकेँ खाइले कहि‍ बूझत जे बच्‍चा भूखल अछि आकि‍ खेने। मुदा ई जरूर कहतै जे सतमाए खाइले दइ छथुन आकि नै। रंग-बि‍रंगक अबलट जोड़ब शुरू कऽ देत।

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