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Friday, October 18, 2013

(31) अर्द्धांगि‍नी

अर्द्धांगि‍नी
आने दि‍न जकाँ लालकाकी घर-आँगन बहाड़ि‍ बाढ़नि‍केँ कलपर धोइ पछबरि‍या ओसार लगा ठाढ़ केलनि‍। हाथ-पएर धोअल बूझि‍ नजरि‍ फूल तोड़ैपर गेलनि‍। ओना लालकाकी एहेन नि‍अमि‍त छथि‍ जे जहि‍ना खढ़ लगा पेटीमे कपड़ा लगौने छथि‍ तहि‍ना दि‍न भरि‍क काजोक छन्हि। मुदा मन पाड़ैक जरूरति‍ ऐ लेल रहि‍ जाइ छन्हि जे पढ़ुआकाका (पति‍) गाममे छथि‍ आकि‍ नै‍? गाममे रहने कि‍छु काज बढ़ि‍ जाइ छन्हि‍ आ नै रहने कमि‍ जाइ छन्हि। गामेमे रहने फूल तोड़ब बुझलनि‍। ओसारक खुट्टीसँ फुलडाली उतारि‍ कल दि‍स बढ़ली। कलक बगलेमे रंजनीगंधापर हाथ दइते छेली आकि‍ नजरि‍ अपराजि‍त दि‍स बढ़लनि‍। मेल-पाँच करैक वि‍चार सोचैत रजनीगंधासँ अपराजि‍त दि‍स बढ़ली। अपराजि‍त तोड़ि‍ चम्‍पापर हाथ बढ़ौलनि‍। आँखि‍ पड़लनि‍ फुलडालीक फूलपर। फुलडालीक फूल देखि‍ वि‍चारलनि‍ जे पाँचटा बेलामे सँ नि‍कालि‍ लेब। चम्‍पासँ आगू बढ़ि‍ते छेली आकि‍ नजरि‍ पति‍पर गेलनि‍। पति‍पर नजरि‍ पड़ि‍ते मन दुखाए लगलनि‍। केकरा नै इच्‍छा होइ छै जे पति‍क संग एयर कंडीशन गाड़ीमे बैस‍ सराफा बाजार जा हीरा-मोतीसँ सजल सोनाक हार गाड़ामे लटकबितौं। मुदा तेहेन भेला जे जखनि सरकारी दरमाहा भेटए लगलनि‍ आ कहलि‍यनि‍ जे साइकिल कीनि‍ लिअ, सुभि‍तगर हएत तँ कहलनि‍ जे चालीस-पैंतालि‍सक भऽ गेलौं, हड्डी जुआ गेल, जौं खसि‍-तसि‍ पड़ब आ टुटत तँ केतबो पलस्‍तर करब, तैयो ने जुटत। तइसँ नीक पएरे। कहलनि‍ एक मानेमे नीक...। मुदा तैयो ढोढ़क बीख जकाँ हड़हड़ा कऽ नै उतरलनि‍। मन गेलनि‍ दोसर दि‍स। सभटा पोथी बर्खामे भीज‍-भीजि‍‍ सड़ि‍ गेलनि‍, जखनि घरे चुबै छेलनि‍ तखनि जौं सड़ि‍ए गेलनि‍ तँ ऐमे अपन साध की‍? मुदा जखनि घर बनौलनि‍ तखनि किए ने फेर‍ कीन‍लनि। जइ घरमे पोथी नै रहत ओ घर केहेन हएत। क्रोध कमलनि‍। क्रोध कमैक कारण भेलनि‍ अपन काज मन पड़ब। पाँच बजे भोरसँ ओछाइनपर जाइ बेर धरि‍ केकरा लेल करै छी, परि‍वारे लेल ने। फेर‍ तामस मुड़ि‍ गेलनि‍, कहैले आठ घंटा ड्यूटी करै छथि‍, चारि‍ घंटा बाटेमे लगै छन्हि। अदहा काज जँ सम्‍हारि‍ कऽ नै रखबनि‍ तँ पारो ने लगतनि‍। एहेन पुरुखे की जे अपन जि‍नगी अपनो हाथमे रखि‍ नै चलैत? फुलडाली रखि‍ते‍ मनमे एलनि‍, एक विहित काज भऽ गेल। चूल्हि‍‍ लग बैसैमे अखनो बहुत बाँकी अछि। हड़बड़ा कऽ घर-निप्‍पा उठा ओसारपर पूजा-ठाँउ कऽ चूल्हि‍‍‍-चि‍नमार दि‍स‍ बढ़ली। घर-नि‍प्‍पा रखि अर्घा-सरायसँ लऽ कऽ थारी-लोटा लेने कलपर पहुँचली। कलपर सँ आबि‍ लालकाकी घड़ी दि‍स देखलनि‍। अखनि तक समए आ काजमे तल-वि‍तल नै देखि‍ मनमे खुशी भेलनि‍। नजरि‍ पति‍पर गेलनि‍। किड़ी आँखि‍मे पड़ने जहि‍ना करुआ जाइ छै तहि‍ना मन करुआ गेलनि‍। बुदबुदेली-
एकटा काजपर तवक्कल रहने घर आगू मुहेँ ससरत?”
फेर‍ मनमे एलनि‍ आन दि‍न जकाँ जारनि‍ सुखाएल नै अछि। भानसमे देरी लागत, से नै तँ पानि‍ चढ़ा चूल्हि‍‍‍ पजारि‍ लइ छी। चूल्हि‍‍‍ पजरल रहत तँ कनी देरीओ लगने समैपर भऽ जाएत।
वाड़ी पहुँच‍‍ पतरका जारनि‍ सभ बीछ कऽ चूल्हि‍‍‍ लग रखलनि‍। चूल्हि‍‍‍ पजारि‍ वर्तन चढ़ा तरकारीक मुजेला आ कत्ता नेने चूल्हि‍‍‍ लग आबि‍ काटि‍‍-काटि‍ थारीमे रखए लगली। साढ़े आठ बजे साँस छोड़लनि‍। आगि‍मे सेकल देहो हल्‍लुक बूझि‍ पड़लनि‍। मनमे एलनि, ऐ‍सँ बेसी सेवा की भऽ सकै छै। फेर‍ मन पति‍पर गेलनि‍। उमकि‍ कऽ मन कहलकनि‍, आरो जे हुअए मुदा भगवान जि‍द्दि‍याह पुरुखक संग जोड़ा लगौलनि‍। हृदए बि‍‍हुँसि‍ गेलनि‍। जइ मर्दकेँ आनि‍ नै आ जइ बरदकेँ पानि‍ नै, ‍ओ अनेरे गाम घि‍‍नबैले किए जीबैए? मन पड़लनि‍ दुरगमनि‍याँ पिरही। जहि‍ना बाबू सतपुरनि‍ खोधाएल कटहरक पिरही देलनि‍ आइ धरि‍ ओइ‍पर बैस‍ भोजन करै छथि‍। थारी साँठि‍ लालकाकी पंखा नेने छोटकी पिरहीपर बैस‍ बनौल वि‍न्‍यासक सुआद बुझैले पढ़ुआकाका दि‍स‍ देखए लगली। मगन भऽ पढ़ुआकाका भोजन करए लगला। देहांगक सि‍रखार देखि‍ लालकाकी सि‍कुड़ि‍ गेली। मुदा भोजन काल जे बजबे ने करता हुनका कहलो की जाए। चुप्‍पे रहली।
कपड़ा पहि‍रि‍‍ पढ़ुआकाका घरसँ नि‍कलि‍ते‍ रहथि‍ आकि‍ आँगनमे पनबट्टी नेने पत्नीकेँ ठाढ़ देखलनि‍। पत्नीक काज देखि‍ मन मानि‍ गेलनि‍ जे सि‍पाही जकाँ छथि‍। मनमे खुशी एलनि‍। पान खा आगू-आगू पढ़ुआकाका आ पाछू-पाछू लालकाकी आँगनसँ नि‍कलि‍ डेढ़ि‍यासँ आगू सड़क धरि‍ एली। सड़कपर आबि‍ पढ़ुआकाका पुछलकनि-
कि‍छु कहबोक अछि?
लालकाकी कहली-
अपन तनदेही राखू।‍
दुनू गोटे दुनू दि‍स‍ वि‍दा भेलथि। मुस्‍कीआइत पढ़ुआकाका एक डेग आगू बढ़ि‍ पाछू घूमि‍‍ कऽ देखि‍ डेग तेज करैत आगू बढ़ला। नाकमे सुरसुरी लगलनि‍। भेलनि‍ जे छि‍क्का हएत। बामा हाथसँ नाककेँ सहलाबए लगला। मुदा सुरसुरीओ अपन चालि‍ छोड़ैले तैयार नै‍। हाथ नि‍च्‍चाँ करिते धि‍यान‍ पत्नीक शब्‍द तनदेहीपर गेलनि‍। पत्नीक मुहसँ नि‍कलल शब्‍द वि‍शारद पास पढ़ुआकाकाकेँ ओझरा देलकनि‍। फेर‍ घूमि‍‍ पत्नी दि‍स तकलनि‍ तँ देखलनि‍ जे सड़कसँ अँगनाक घुमौनक भौकपर पहुँच‍‍ गेल छेली। तँए आँखि‍सँ अढ़ भऽ गेली। कोकि‍लक कंठसँ नि‍कलल शब्‍दक तरंग पढ़ुआकाकाकेँ ठेलने-ठेलने, तन आ देहीपर लऽ गेलनि‍। तन-देह। शरीर आ शरीरी। देह आ देही। मुदा एहेन चंदन जकाँ झलकैत शब्‍द हुनका एलनि‍ केतएसँ। हम तँ कहि‍यो अपन सीमाक उल्‍लंघन नै केलौं। अपन ज्ञान घरक सीमासँ बाहर बँटलौं। हुनका अखनि धरि‍ कि‍छु देलि‍यनि‍ कहाँ। मुदा शब्‍द तँ शब्‍द जकाँ अछि। किए ने बजनि‍हारि‍एसँ पूछि‍ लि‍यनि‍। ओहो तँ आन नै अर्द्धांगि‍नीए छथि‍। घर-सँ-बाहर धरि‍ बनल रहैले दुनूक सहयोग तँ बरबैरे अछि। एक सीमाक भीतर ओ आ एक सीमाक भीतर अपने। अपने तँ कमा कऽ बि‍‍नु गनले रूपैआ हाथमे दऽ दइ छियनि‍। मुदा ओइ‍ रूपैआकेँ नचबै तँ वएह छथि‍। पि‍ताक देल दसो बीघा जमीनकेँ तँ सेहो वएह नचबै छथि...‍। मुदा जेते दुनू गोटेक भीतर‍ झाँकै छला तेते हटल-हटल बूझि‍ पड़नि‍। मन बौआ गेलनि‍ जे पति‍-पत्नीक, पुरुख-नारी आ स्‍त्री-स्‍वामीक बीच केहेन सम्‍बन्‍ध हेबाक चाही। मुदा वि‍चारमे समझौता भऽ गेलनि‍। किए ने दुनू गोटे वि‍चारि‍ कऽ परि‍वारकेँ ससारी। मनमे खुशी एलनि‍। गामक सीमो टपि‍ गेला। वि‍द्यालयक मुरेड़पर नजरि‍ गेलनि‍। सबूर भेलनि‍ जे पहुँच‍‍ गेलौं। तीस-पैंतीस सालक अभ्‍यास, तँए थकान नै बूझि‍ पड़नि‍ मुदा...।
वि‍द्यालय भवनक सीढ़ी, जैठाम ओसारपर चपरासी बैसैत तइ सीढ़ीसँ एक लग्‍गी पाछूए पढ़ुआकाका रहथि‍ आकि‍ चपरासी उठि‍ कऽ आॅफि‍स दि‍स वि‍दा भेल, जे कक्को देखै छेलखि‍न‍। सीढ़ी लग पहुँच‍‍ आगू तकलनि‍ जे चपरासी घूमि‍‍ कऽ अबैए आकि‍ नै‍। मुदा नै देखि‍ काकामे पौरुख जगलनि‍। मनमे उठलनि‍ अखनि तँ सेवानि‍वृत्तो नहियेँ भेलौं हेन, तहन किए अनकर सेवा लइले मुँह ताकब। सीढ़ीसँ ऊपर तँ चढ़ि‍ गेला मुदा सीढ़ीक ओ प्रश्न जे पछुएने अबै छेलनि आगूसँ घेर‍ लेलकनि‍। जे -चपरासी- बाबा कहैए, आॅफि‍सोक सभ भैये-काका कहै छथि‍ मुदा की से कहने शरीरक शक्तिओ घटि‍-बढ़ि‍ सकैए। जौं से नै तँ परि‍वारमे किए कहल जाइए। नजरि‍ ठनकलनि‍, अगर बीस बर्खक आधार बना देखै छी तँ उम्र दोबराइत जाइए। उम्रे तँ शरीरक शक्‍ति‍केँ घटबै-बढ़बैए। मन हल्‍लुक भेलनि‍। मुदा चपरासीक बेवहारसँ मन खटाएले रहलनि‍...।
हवा उठि‍ चुकल छल जे आइ चारि‍ बजे पढ़ुआकाकाकेँ सेवा-नि‍वृत्ति‍क चि‍ट्ठी भेटतनि‍। वि‍द्यालयक वातावरणमे सोग पसरि‍ गेल छल।
स्‍टाफ रूम पहुँचि‍ते एक नै अनेक तरहक खटका खटकए लगलनि‍। आन दि‍नसँ बेवहारो बदलल। मुदा चपरासीबला बेवहार मनकेँ बेसी
हौंड़ैत रहनि‍। कुरसीपर बैसि‍ते मनमे उठलनि‍। मुदा तह दैत मनसँ हटौलनि‍। शि‍क्षक सबहक बीच गप-सप्‍पक क्रम सेहो बदलल-बदलल बूझि‍ पड़नि‍। कि‍छु व्‍यंग्‍य-वाणसँ क्रमकेँ बदलौ चाहथि‍ तँ ओहन बेवहारे नै छेलनि‍। चालि‍सँ थाकल रहबे करथि‍ आँखि‍ झल-फलाए लगलनि‍। गमे-गम नीनो आबि‍ गेलनि‍। अलिसा कऽ आँखि‍ मूनि‍ लेलनि‍। आँखि‍ मूनल देखि‍ इशारामे उतरीक चर्चा हुअ लगल। मुदा पढ़ुआकाकाक आँखि‍ बन्न। तँए कि‍छु बुझबे ने करथि‍।
दू बजि‍ गेल। अढ़ाइ बजेमे ट्रेन तँए स्‍टाफ सबहक बीच चि‍लमि‍लक कुचकुची जकाँ देह-हाथ चुलचुलाए लगलनि‍। कुरसीक पौआ सबहक अवाजसँ पढ़ुआकाकाक भक्क टुटलनि‍। बैग लऽ संगी सभ नि‍कलैक उपक्रम करए लगला आकि‍ आॅफि‍सक बड़ाबाबू आबि‍ कऽ पढ़ुआकाकाकेँ कहलकनि‍-
अपनेक पत्र अछि। जे चारि‍ बजेमे देल जाएत, तँए अपने चि‍ट्ठी लेलाक बादे ‍प्रस्‍थान करबै?”
कहि‍ आॅफि‍स दि‍स बढ़ि‍ गेला। ठाढ़े प्रणाम करि कऽ संगीओ सभ नि‍कलि‍ गेलनि‍। पि‍जरामे बन्न सुुग्‍गा जकाँ पढ़ुआकाका असकरे कोठरीमे बैसल रहला। बड़ाबाबूक भाषापर नजरि‍ गेलनि‍। आन दि‍नक जे बोली रहै छेलनि‍ ओइ‍मे  कि‍छु करुआहट बूझि‍ पड़ि‍ रहल अछि। भषे नै अखने की‍ देखलौं? काल्हि‍‍ धरि‍ सहयोगी सभ अरि‍याति‍ कऽ पहि‍ने वि‍दा कऽ दइ छला तेकर बादे ि‍कयो जाइ छला। नौकरीक एहसास भेलनि‍। जहि‍या वि‍द्यालयमे सेवा करए एलौं तहि‍या बच्‍चा -वि‍द्यार्थी- सभसँ की‍ सम्‍बन्‍ध छल। एकठीम खेनाइ, एकठीम रहनाइ आ एकठीम बैस‍ पढ़ौनाइ। पानि‍ पीबाक इच्‍छा होइ छेलए आ बजै छेलौं तँ पानि‍ अननि‍हारक होड़ लगि‍ जाइ छल। जे पहि‍ने लोटा पकड़ि‍ पानि‍ अनै छल ओ अपनाकेँ कुशाग्र बुझै छल। मुदा आइ की‍‍ देखै छी। शि‍क्षकक आगूमे छात्र सि‍गरेटक धुँआ उड़बैए! केना एहेन रोगक प्रवेश शि‍क्षण-संस्‍थानमे भेल। जहि‍एसँ वि‍द्यालय सरकारीकरण भेल तहि‍एसँ विद्यार्थी पतराए लगल। ओना गाम-गाममे स्‍कूलो खुजल आ पढ़बैक रूप सेहो बदलल। होइत-हबाइत वि‍द्यालय छात्र-वि‍हि‍न भऽ गेल। ओना महि‍नवारी वेतनो नीक बनि‍ गेल। मुदा ओहूमे कमी रहल। मासे-मास नै भेट सालक चुकती सालमे हुअ लगल। अखनि धरि‍ नोकरीकेँ नोकरी नै अपन काज बुझै लौं। मुदा आइ बूझि‍ पड़ि‍ रहल अछि जे केतौ बंधनमे जरूर फँसल छी।
चारि‍ बजि‍ते आॅफि‍सक बड़ाबाबू आॅफि‍सक स्‍टाफक संग, पढ़ुआकाका लग आबि‍ हाथमे चि‍ट्ठी दैत हस्‍ताक्षर करैले बोही आगू बढ़ा देलकनि‍। जहि‍ना रजि‍ष्‍ट्री आॅफि‍समे हस्‍ताक्षर केने परि‍वारक सम्‍पति‍‍ टुटैए तहि‍ना पढ़ुआकाकाकेँ नौकरी टूटि‍ रहलनि‍ हेन। हस्‍ताक्षर करि‍ते‍ पढ़ुआकाका हताश भऽ गेला। मनमे उठलनि‍ सभ कि‍छु हरा गेल। जेते पढ़ने छेलौं ओइ‍मे सँ पहि‍ने ओते हराएल जेकर उपयोग नै भेल। जेहो कि‍छु बँचल ओ वि‍द्यार्थी हरेलासँ हरा गेल। जे कि‍छु जीबैक आशा बँचल छल ओहो हरा गेल। की हम ऐ‍ठामसँ उठि‍ सोझहे असमसाने जाएब आकि‍...। प्रश्न ठाढ़ होइत मोन पड़लनि‍, अपना संग कि‍नको हाथो पकड़ने छियनि‍ कि‍ने? दू प्राणीक जि‍नगी केना चलत? कहैले पेंशन भेटत मुदा पेंशन पेबामे जे लेन-देन छै ओ हमरा बुते कएल हएत। अखनि धरि‍, जहि‍यासँ सरकारी दरमाहा भेटए लगल तहि‍यासँ आॅफि‍सक बड़ाबाबू आनि‍ कऽ हाथमे जे दइ छला ओ चुपचाप जेबीमे रखि पत्नीक हाथमे दऽ दइ छेलि‍यनि‍। मुदा जेना सुनै छी तेना हमरा बुते कएल हएत। जि‍नगीक एक्कोटा व्रत नि‍माहै जोकर नै छी...।
द्वन्‍द्वमे पड़ल पढुआकक्काक छाती दलकए लगलनि‍। तैबीच चपरासी आबि‍ टोकलकनि‍-
कोठरी बन्न करब, अपने प्रस्‍थान करियौ।‍
अर्द्धचेत अवस्थामे पढ़ुआकाका कोठरीसँ नि‍कलि‍ पताइत डेगे ओसारपर एला। डेगे ने उठनि‍। कहुना-कहुना सीढ़ी लग आबि‍ ओंगठि कऽ बैस‍ गेला। अर्द्धचेत मनमे वि‍द्यालयक चि‍ट्ठी एलनि‍। जेबीसँ नि‍कालि‍ पढ़ए लगला‍। सूचना देल जाइत अछि तेसर मासक अंति‍म ति‍थि‍सँ सेवा-मुक्‍त होएब। नि‍चला पाँती‍ पढ़ौ ने लगला‍, मचोड़ि‍-सचोड़ि‍ चि‍ट्ठीकेँ सीढ़ीक आगूमे फेक‍ लहरैत मने उठि‍ कऽ वि‍दा भेला। मुदा जहि‍ना नदीक कि‍नछड़ि‍क पानि‍मे पैसैसँ माल-जाल पाछू पएर करैत रहैए तहि‍ना पढ़ुओकक्काक पएर आगू-पाछू हुअ लगलनि‍। मनक लहरि‍सँ पएर तनेलनि‍। आगू बढ़ए लगला। वि‍द्यालयक फाटक लग पहुँच‍‍ पाछू घूमि‍‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जेना खंडहर ठाढ़ अछि। मात्र ईंटा-सि‍मटीक जोड़ल घर। मुदा क्रोध चढ़ले रहनि‍। फुरेलनि‍, जहन जीबैक सभ रस्‍ता बन्न भऽ रहल अछि तहन मरैओक तँ ढेरी उपए अछि। मुदा ओ तँ अपराधक श्रेणीमे औत। जीबैले अपराध करि कऽ कि‍यो मृत्‍यु प्राप्‍त करैए मुदा मृत्‍यु लेल अपराध...।
बीच रस्‍तापर आबि‍ क्रोधक लहरि‍मे आरो ओझरा गेला। मुदा मनमे हूबा जगलनि‍। फुरेलनि‍, जहन वि‍द्यालय अकाजक श्रेणीक सर्टिफि‍केट दइए देलक तहन एक्केटा उपए अछि जे ि‍जनकर हाथ पकड़ि‍ भार नेने छियनि‍ तिनका लग पहुँच‍‍ कहि‍यनि‍ जे अखने दुनू परानी हरि‍द्वारक रस्‍ता धरू। छोड़ू ऐ घर-दुआरकेँ। ओतै कोनो मंदि‍रक पुजेगरी बनि‍ जाएब आ शि‍वजीक शरणमे रहि‍ हुनको महेशवाणी सूनब आ अपनो नचारी कहबनि‍। डमरूओ बजाएब आ हुनके जकाँ नचबो करब। तखने एकटा छुछुनरि‍ दहि‍ना भागसँ बामा भाग छूछूआइत टपैत रहए। आकि‍ भक्क टुटलनि‍। ताबे छुछुनरि‍ ससरि‍ कऽ बामा भाग पहुँच‍‍ गेल। मनमे शंका भेलनि‍ जे छुछुनरि‍ पएरमे काटि‍ लेलक। झूकि‍ कऽ तर्जनीक नहसँ टोबए लगला। छोटकी चुट्टीक बीख जकाँ बि‍स-बि‍सेलनि‍। मन मानि‍ गेलनि‍ जे छुछुनरि‍ काटि‍ लेलक। सोझ भऽ चारू भाग हियौलनि‍। काजक बेर‍ रहने सभ छि‍ड़ियाएल रहए। रस्‍ता  खाली। वि‍द्यालय दि‍स‍ तकलनि‍। सभ चलि‍ गेल छला। मनमे एलनि‍ छुछुनरि‍क बीख तँ अपनो झाड़ए अबैए। मनमे खुशी एलनि‍। मुदा लगले मन बदलि‍ गेलनि‍। अपन बीख अपना बुते कहाँ झड़ै छै, तँ की‍ एेठाम पएर पटकि‍ कऽ मरि‍ जाएब आकि‍ जेतए मनतरि‍या भेटत ओतए जाँच करा लेब। ताधरि‍ अपने मंत्रसँ काज चलाएब। मंत्र पढ़ैत... सैयाँ-नि‍नाबे... दु... एक...।
मंत्रकेँ चारि‍ चरणमे बाँटि‍, एक चरण पढ़ि‍ मुहसँ फुकि‍ देथि‍। अबैत-अबैत गामक सीमापर पहुँच‍‍ गेला।
परि‍वारक पहि‍ल पीढ़ीक वि‍शारद पढ़ुआकाका। कि‍सान परि‍वार। दस बीघा खेती। लालकाकी सेहो कि‍साने परि‍वारक। खेतीक सभ लूरि‍‍ माए-बाप सि‍खा देने रहनि‍। कि‍साने परि‍वार देखि‍ लालकाकीक पि‍ता कुटुमैती केलनि‍। ओना पढ़ल बर पाबि‍ दुनू परानीक हृदए जुड़ा गेल रहनि‍ जे लक्ष्‍मीक संग सरस्‍वतीओ छन्हि‍।
जहि‍ना एकटा सीमा टपने एशि‍‍या-यूरोपक दू तरहक सभ कि‍छु भेटैत, तहि‍ना पढ़ुआकाकाकेँ सीमापर अबि‍ते बूझि‍ पड़लनि‍। सौनक मेघ जकाँ मनमे टोपर बान्‍हि‍ देलकनि‍। पानि‍ जकाँ बुधि‍‍ पसरि‍ गेलनि‍। जीवि‍‍त छी आकि‍ मुइल से होशे ने रहलनि‍। थुस दऽ बैस‍ रहला। मन पड़लनि‍ अकाजक हएब। दुनि‍याँ तँ काज करैबलाक छी। की मृत्‍यु शय्यापर सजि‍ जाइ? जेहो कनी-मनी आशा पेंशनक होइत, सेहो नहियेँ हएत। जि‍नगीमे कहि‍यो जइ हाथसँ घूस नै देलौं ओतनो नै नि‍माहल हएत। मुदा व्रत तँ जि‍नगीक पाशापर बैसल अछि। मन राँइ-बाँइ भऽ फटि गेलनि‍। पहाड़क झड़नासँ झहरैत पानि‍ जकाँ नोर हृदए दि‍स‍ बोहि‍ गेलनि‍। हृदए पसीज गेलनि‍। मन पड़लनि‍ अर्द्धांगिनी। चालीस बर्खसँ संग रहनि‍हारि‍, जे वृत्ति‍ अछि ओइ‍सँ हटल रखैमे केकर दोख भेल? की हम हुनका साँझो-भोर पढ़ा नै सकै छेलि‍यनि‍। जौं से केने रहितौं तँ जि‍नगी बेलाइग किए होइत? जि‍नगीक सुख-दुख संगे भोगि‍तौं। दू मि‍लि‍ करी काज, हारने-जीतने कोनो ने लाज। माटि‍क मुरूत बना घरमे छोड़ि‍ देलि‍यनि। अपनो एते होश नै केलौं जे सए बर्खक जि‍नगीमे अधडरेड़ेपर कानून अकाजक घोषि‍त कऽ देत। शेष जि‍नगी केना चलत? अपनो ने छोटोटा स्‍कूल बनेलौं जइमे जि‍नगी भरि‍ सेवारत रहि‍तौं। नि‍राश मनमे सासुर मन पड़लनि‍। बि‍आहमे जे जमाए रूसैए से कोन दादाक कमेलहा लेल रूसैए। मुदा सासु मन पड़ि‍ते मन मधुआ गेलनि‍। जौं लोक सासु लग नै रूसि‍‍ अपन मनोकामना पूरा करत तँ केतए करत? मन आरो पिघलि‍ गेलनि‍। हुनके देल ने कामधेनु पत्नी छथि‍। मुदा फेर‍ मनमे उठलनि‍ जे रूसबो तँ केते रंगक होइए। बचकानी आ सिआनी रूसब, एक्के रंग केना हएत। तत्-मत् करैत वि‍चारलनि‍ जे सिआनी रूसबसँ शुरू करब आ जेते नि‍च्‍चाँ धरि‍ सुतरि‍ जाएत तेते नि‍च्‍चाँ धरि‍ आबि‍ अँटकि जाएब। फुड़फुड़ा कऽ उठि‍ घर दि‍स वि‍दा भेला। चारू भर चकोना होइत रहथि‍ जे कि‍यो देखए नै‍। मुदा से सुतरलनि‍। घरपर आबि‍ हाँइ-हाँइ कऽ चौकीपर पड़ि‍ गुम्‍हरि कऽ बजला-
ई घर मनुखक रहैबला छी! एम्‍हर मकड़ाक झोल लटकल अछि तँ ओम्‍हर ि‍बढ़नी छत्ता लगौने अछि।‍
कहि‍ रूसि‍‍ कऽ सि‍रहौनीपर मुड़ी रखि‍ आँखि‍ तकि‍ते सुति‍ रहला। वाड़ीमे काज करैत पत्नी अबैत देखि‍ नेने रहनि‍। हँसुआ-खुरपी वाड़ीएमे छोड़ि‍ आँगन ि‍दस बढ़ली तँ कि‍छु अवाज सुनि पड़लनि‍ मुदा नीक नहाँति‍ नै बूझि‍ सकली। ओना लोकक दुआरे पढ़ुओकाका मुँह दाबिए कऽ, बजैत रहथि‍। दोहरा कऽ फेर‍ तरसँ गुम्‍हरैत बजला-
एहेन-एहेन घरमे मरि‍तो रहब तँ कि‍यो खोजो-पुछाड़ि‍ करैबला...।‍
पढ़ुआकक्काक बात लालकाकी बूझि‍ गेलखि‍न जे केतौ कि‍छु भेलनि‍ हेन। दू बीघा हटल अवाजमे लालकाकी बजली-
एलौं।‍
एलौं सुि‍न पढ़ुआकाकाकेँ सबूर भेलनि‍। लालकाकी मने-मन सोचै छेली जे पुरुखक लटारम्‍भ की धमना लटारम्‍भसँ कम होइए जे लगले सोझराएत। अच्‍छा कनी बौस कऽ शान्‍त कऽ देबनि‍। माल-जाल अबैक बेर‍ अछि। करजानमे उपद्रव करत। सएह केलनि‍।
पत्नीक अवाज सुि‍न पढ़ुआकाकाकेँ छाती दहलि‍ गेलनि‍। नांगड़ि‍ सुररि कऽ वि‍द्यालय घर धरौलक। केतौ के ने रहलौं। मन गरमेलनि।‍ बमकि‍ कऽ बजला-
काल्हि‍ए वि‍द्यालय जा लि‍खि‍ कऽ दऽ देबै जे आइएसँ छुट्टीमे जा रहल छी। मन हुअए तँ मनि‍आर्डर कऽ रूपैआ पठा दिअ, नै तँ नै पठबऽ।‍
जेना माटि‍ पानि‍मे मि‍लि‍ भऽ जाइत तहि‍ना लगले मन थलथला गेलनि‍। एना पाइयक खेल किए भऽ रहल अछि। वि‍द्यालयक शि‍क्षक होइक नाते एे खेलकेँ किए ने बूझि‍ रहलौं हेन। अाकि‍ अर्थशास्‍त्र पढ़बाक अभाव रहल?
पढ़ुआकक्काक लगमे आबि‍ लालकाकी पुछलकनि‍-
चूड़ा भूजि नोन-तेल-मरीच मि‍ला कऽ रखने छी, नेने आएब?
पत्नीक बात सुि‍न पढ़ुआकक्काक मन मचकी जकाँ झूलए लगलनि‍। मुदा आससँ दोसर दि‍स भऽ गेलनि‍। खि‍सिआ कऽ बजला-
हूँ। चूड़ा-तूड़ा नै खाएब। रक्‍खू अपन चूड़ा-तूड़ा।‍
मुस्‍की दैत लालकाकी उत्तर देलखि‍न-
हमरे छी, अहाँक नै छी?
पत्नीक बात सुि‍न मन सि‍हरि‍ गेलनि‍। बेरुका सुरूजक रौद जकाँ पढ़ुआकक्काक गरमी कमलनि‍। बजला-
एकटा गप कहए चाहै छी?
‍भरि‍-भरि‍ राति‍ तँ गप्‍पे सुनलौं। अखनि हाथ धूराएल अछि। हाथ-पएर धोने अबै छी तखनि अंडी तेलसँ घुट्ठीओ ससारि‍ देब आ गि‍रहो फोड़ि‍ देब। मन हल्‍लुक भऽ जाएत। सदति‍ काल कहैत रहै छी जे मोटरगाड़ी लऽ लिअ। अारामसँ जाएब-आएब। से हम्‍मर गप थोड़े सूनब। तैकालमे कहब जे मौगी-मेहरि‍क गप छी।
लालकाकीक गप सुनि‍ पढ़ुआकक्काक मन आगि‍मे पकैत भट्टा जकाँ असुआ गेलनि‍। लजबीजी जकाँ दुनू पि‍पनी सटि‍ गेलनि‍। कल पड़ल रोगी जकाँ लालकाकी बूझि‍ सहटि‍ कऽ नि‍कलि ठाेकले वाड़ी पहुँच‍‍ गेली।
पि‍ताक देल जमीनकेँ पढ़ुआकाका बि‍सरि‍ गेला। खाली गाछी-बँसबारि‍टा धि‍यानमे रहलनि‍। कि‍सानक बेटी लालकाकीकेँ खेतीक सोलहो आना लूरि‍। अन्नक खेती बटाइ लगा लेने छथि‍, पाँच कट्ठा चौमास आ गाछीक सेवा टहल अपने करै छथि‍। दूटा गाएओ पोसि‍याँ लगौने छथि‍, जइसँ सुभ्‍यस्‍त भोजन भेट‍ जाइ छन्हि। पक्का घर बना सभ बेवस्‍थो केने छथि‍।
हँसुआ, खुरपी, कोदारि‍ आँगनमे रखि‍ लालकाकी झाड़ू लऽ कऽ अँगना बहारि‍, कलपर पएर-हाथ धोइ‍ पानि‍ पीबि‍ते रहथि‍ आकि‍ मन पड़लनि‍ पति‍क रूसब। फेर‍ मन पड़लनि‍ अपन जि‍नगी। जाधरि‍ माए-बाप लग रहलौं बच्‍चा रहलौं। दुनू गोटेक इच्‍छा सदति‍ काल यएह रहनि‍ जे धि‍या-पुता कखनो कानए नै‍। तहि‍ना तँ सासुर एलाक बादो भेल। बूढ़ी (सासु) सदति‍ काल कहैत रहै छेली जे कनि‍याँ अँगनाक मालि‍क स्‍त्रीगणे होइ छथि‍। तँए आँगनमे, बि‍आहक मड़बा जकाँ सतरंगा फूल लटकौने रही। यएह मि‍थि‍लाक धरोहर छी। एहेन कनि‍याँक कमी नै जे बेटा-बेटीसँ लऽ कऽ सासु-ससुर होइत पति‍ धरि‍क दुखकेँ अपन दुख बूझि‍ सती धर्मक पालन करैत एली- सावि‍त्री, दमयन्‍ती। करुआ कऽ कि‍छु कहब उचि‍त नै‍। तैबीच दरबज्‍जा परहक अवाज सुनलनि‍। हे भगवान, जानह तँू।‍
मने-मन पढ़ुआकाका अपने सम्‍बन्‍धमे सोचैत रहथि। आमोक गाछी तेहेन अछि जे एक तँ दू मासक भोजन, तहूमे सभ साल नहि‍येँ। गोटे साल मोजरबे ने करैए, तँ गोटे साल ि‍बजलौकेमे मोजर जरि‍ जाइए। गोटे साल बि‍हाड़ि‍एमे, आमक कोन बात जे गाछो खसि‍ पड़ैए। गोटे साल तेहेन बा रहैए जे मोजरेकेँ जरा दैत अछि। हुन्‍डा-हुन्‍डी पाँच बर्खपर दू मास आम भेटत, तइमे जीब‍‍ सकै छी, बाँकी...?

दरबज्‍जापर लालकाकीकेँ अबि‍ते पढ़ुआकक्काक टुटल मन कलपि‍ उठलनि‍। गोरथारीमे बैस‍ लालकाकी कहलखि‍न-
पएर सोझ करू।‍
लालकाकीक बात सुि‍न, जहि‍ना तारक कम्‍पनसँ वीणाक स्‍वर बनैत तहि‍ना पढ़ुआकक्काक बोल नि‍कललनि‍-
‍पएर नै टटाइए, हृदैक बेथा छी।
पति‍क बात सुि‍न फरकि‍‍ कऽ चौकीपर सँ उठि‍ लालकाकी मधुआएल स्‍वरमे बजली-
साँचे स्‍त्रीगण सबहक मुहेँ सुनै छी जे पुरुख नंगरकट होइ छथि‍। कुत्ता जकाँ सदति‍ काल नांगरि‍ टेढ़े रहै छन्हि‍।‍
जे बुझी।‍
तँए कि‍ स्‍त्रीगण अपन पति‍केँ मुइल कुकुर जकाँ टाँगमे डोरी बान्‍हि‍ घि‍सिआ कऽ बँसबीट्टीमे फेक‍ आैत।‍
चौकीपर सँ उठलौं किए? डाँड़ सोझहे बैसू। बामा हाथ तँ दुनू गोटेक एक्के वृत्त करैए‍, तँए बामा हाथपर हाथ रखि‍ दहि‍ना हाथसँ छाती सहला दिअ।‍
पढ़ुआकक्काक बेथा सुि‍न लालकाकीक मन कानि‍ उठलनि‍। जाधरि‍ ओछाइनोपर पड़ल रहता ताधरि‍... सत्ती साध्‍वी तँ...।
चौकीपर बैसि‍ते‍ पढ़ुआकाका आँखि‍-मे-आँखि‍ मि‍ला कहलखि‍न-
सभ अंगक दूरी समान अछि। वि‍धाताक बनौल जि‍नगीक अदहा भाग अहाँ छी।‍
‘अहाँ छी।‍’ बजि‍ते पढ़ुआकाकाकेँ मन पड़लनि‍ छठि‍यारीक बात। आनन्‍द-मग्‍न होइत पत्नीकेँ कहलखि‍न-
भारी भूल भेल जे आहाँसँ भरि‍ मन कहि‍यो जि‍नगीक गप नै केलौं। जेकर प्रायश्चि‍त अहाँ मुहेँ सूनब।‍
अवसर पाबि‍‍‍ लालकाकी पूछि‍ देलखि‍न-
अहीं कहू जे आइ धरि‍ कहि‍यो ई बात बुझा देलौं जे दुनू परानी केते दि‍न जीब‍? जेते दि‍न जीब‍ ओते दि‍न केहेन जि‍नगी जीब‍? राजा-दैवि‍क कोनो ठेकान छै जे अहीं कहि‍या मरब आकि‍ हमहीं कहि‍या मरब? अखनि दुनू परानी जीबै छी, मुदा ईहो तँ भऽ सकैए जे एक गोरे जीबी आ एक गोरे मरि‍ जाइ।‍‍
पत्नीक बात सुि‍न उछलि‍ कऽ चौकीपर सँ ठाढ़ होइत पढ़ुआकाका बजला-
नोकरी छीन नि‍हत्‍था केलक मुदा तँए कि‍ मरि‍ जाएब। जौं अन्‍हरा-नेंगरा सौंसे जि‍नगी बना गामक आगि‍सँ अपन रच्‍छा कऽ सकैए तहन तँ...।‍

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