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Friday, October 18, 2013

(28) संगी

संगी
बालि‍ग-नबालि‍गक सीमापर पहुँचल सुशील सतरह बरख सात मास पार कऽ चुकल। पाँच मासक उपरान्त बालि‍ग भऽ जाएत। शुक्र दिन रहने चारि क्लासक आशासँ समैपर कौलेज विदा भेल। संयोगो नीक, कौलेजक हातामे पहुँचि‍ते घंटी बजल। वर्गमे बैसल बहुतो संगीक बीच सुशीलो। पहिल घंटी फोंक गेल। दोसरो-तेसरो-चारिमो तहिना। एक्को घंटी पढ़ाइ नै देखि‍ कियो खुशीसँ समए बितबैत तँ कियो बन्न कोठरीमे जेठक दुपहरिया बिनु पंखे बितबैत रहए। ओइमे सँ एक सुशीलो रहए।
कनैत मने सुशील क्लासक कोठरीसँ निकलि डेरा दि‍स विदा भेल। मनमे एलै, की हमरा सबहक जिनगी पोखरिक पानि जकाँ चारू भरसँ घेराएल अछि वा पहाड़सँ निकलैत नदी जकाँ समुद्र दि‍स बढ़ैए।
डेरा एलाक उपरान्तो सुशीलक मनमे बेचैनी बढ़िते गेल। उन्मत्त सुशील कि‍ताब-काॅपी रैकपर फेकैत बिनु देहक कपड़ा आ पएरक चप्पल खोलनहि चौकीपर ओंघरा गेल। जेना मन काबुएमे ने होइ तहिना बेसुधि। पहिल घंटीक पढ़ाइ किए ने भेल? नजरि दौड़ौलक तँ देखलक जे ओइ विषयक तँ शिक्षके नै छथि तँ पढ़ैब‍तथि के? मनमे हँसी उपकलै। मुदा फेर मन घुमलै। बिनु शिक्षकक शिक्षण संस्था केना चलि सकैए। की एकरा प्राइवेट संस्थाक बाट खोलब नै कहबै? की सार्वजनिक शिक्षण संस्था बाघक खाल ओढ़ल संस्था तँ ने छी। मन घुसुकि दोसर घंटीक विषयपर पहुँचल। एगारह सए विद्यार्थीक बीच एकटा प्रोफेसर छथि। तहूमे जहियासँ इन्चार्ज भेला तहियासँ क्लासक कोन बात जे विभागक स्टाफो रूम छोड़ि प्रिंसिपलेक कुरसीपर बैसए लगला। जहिना ईंटाक देबाल लेटरीन आ कीचेनक दूरी बनबैत तहिना छात्रक पढ़ाइ आ नव वेतनक हि‍साब दूरी बनौने। अधखिलल फूल जकाँ, जेकरा ने कोंढ़ी कहबै आ ने फूल तहिना सुशीलक मन बीचमे पड़ल। मनमे उठलै मधु दइबला माछीकेँ विधाता ओहन डंक किए देलखिन। मुदा मन तेसर घंटीक विषयपर गेलै। तीन शिक्षक। तहन किए ने पढ़ाइ भेल। ई तँ ओहन विषय छी जे बिनु पढ़ौने विद्यार्थीकेँ बहुत अधिक कठिनाइ हेतै। प्रोफेसरपर नजरि पड़िते देखलक जे के एहेन वेपारी हएत, जे समए पाबि अपन सौदाकेँ महग करि कऽ नै बेचत। एहेन काज तँ वएह वेपारी कऽ सकैए जेकर मन वैरागी होइ। मुदा मन ठमकलै। ने आगू बढ़ै आ ने पाछू हटैले तैयार होइ। जहिना जीरो डिग्री अक्षांससँ सुरूज मकर रेखा दि‍स बढ़ैत तँ कर्क रेखा दि‍स विपरीत समए हुअ लगैत, तहिना तँ ने भऽ रहल छै। एक दि‍स घर-घर शिक्षा आ दोसर दिस सोनो-चानीसँ महग। जहिना गरीबक घरसँ सोनाकेँ दुश्मनी छै तहिना की शिक्षोक भेल जा रहल छै। मन आगू बढ़ि चारिम घंटीपर पहुँचलै। तीन शिक्षक तँ अोहू विषयक छथि। तहन किएक ने पढ़ाइ भेल? एक गोटे सीनेटक चुनावक तिकड़ममे लगल छथि मुदा तैयो तँ दू गोटे छथिए। एक गोटे तेरहम दिन रिटायर करता। मनमे खुशी उपकलै। जहिना मरै समए किछु दिन लोक दुनियासँ कारोबार समेटि‍ घरक ओछाइन धड़ैए तहिना तँ हुनको धड़ैक चाहियनि। सोगेसँ ने रोग होइए? तेरहे दिनक उत्तर दरमाहा अदहा भऽ जेतनि। समए तँ अहिना जहिना बिनु पढ़ौने, कौलेज नै अएने बितलनि, रहतनि‍। तँए सोग होएब अनिवार्य आ काज नै करब आवश्यक छन्हिए। मुदा तेसर तँ ऐ सभसँ अलग छथि। ओ किए ने एला। नजरि दौगबिते देखलक जे ओ तँ सप्ताहमे एक दिन आबि छबो दिनक हाजरी बनबै छथि। शनि तँ काल्हि छिऐ आइ केना अबितथि? एते मनमे अबिते सुशीलक आँखि झलफलाए लगल। मन खलियाएल बूझि पड़लै। उठि कऽ चप्पलो आ पेंटो-शर्ट खोललक। लूँगी बदलिते पानि पीऐक मन भेलै। कोठरीसँ निकलि कलपर हाथ-पएर-मुँह धोइले गेल। पानि पीबि‍ते मन हल्लुक बूझि पड़लै। मुदा जहिना खढ़हाएल खेतमे हरबाहकेँ हर जोतब भरिगर बूझि पड़ैत तहिना सुशीलक मन समस्याक वोनाएल रूप देखलक। कौलेजकेँ बीचमे देखि‍ सीमा दिस बढ़ौलक। एक सीमा सर्वोच्च शिक्षण दिस पड़लै तँ दोसर गामक टटघर स्कूलपर। जहिना पहाड़सँ निकलि अनवरत गतिसँ चलि नदी समुद्रमे जाए मिलैए तहिना ने टटघरोक ज्ञान उड़ि कऽ सर्वोच्च ज्ञानक समुद्रमे मिलत। एते विचार अबि‍ते गाछसँ गाछ टकराइत आगिक लुत्तीकेँ छिटकैत देखलक। ई लुत्तीक आगि तँ कोसक-कोस ूखल लकड़ीक संग-संग लहलहाइत फूलल-फड़ल गाछकेँ सेहो जरा दैत अछि। जहिना सघन वोनमे रस्ताक ठेकान नै रहैत तहिना सुशील कोनो रस्ते ने देखए। मन अपन उमेरपर गेलै। सतरह बर्खसँ ऊपर। अठारहमक बीच। अठारह बरख पूरलापर चेतन भऽ जाएब। मुदा हमर चेतना कहिया जागत जे बाहरी दुनियाँकेँ अंगीकार करब। आकि देखि‍ कऽ छोड़ि देब। स्कूल-कौलेजक पढ़ाइक तँ यएह गति अछि। जहिना एक-एक ईंटा जोड़ि वि‍शाल अट्टालिका बनैए‍ तहिना ने कनी-कनी सीख बाल चेतनाकेँ पैघ बना सकै छी। ई के करत? ई तँ अपने केने हएत। मन शान्त भेलै। नजरि देलक गामक ओइ बच्चापर जे माएक मुहसँ लुक्‍खी सीखैए मुदा स्कूलमे प्रवेश करिते गिलहरीसँ भेँट भऽ जाइ छै। की हमर मातृभाषा गामो धरि नै अछि। की हिमालय पहाड़सँ गंगा कूदि-कूदि रस्‍ता टपि समुद्रमे पहुँचैए आकि नीच-ऊँचक रस्‍ता टपैत समुद्रमे पहुँचैए। ज्ञान-कर्मक बीच भक्ति होएत। की बच्चाकेँ कर्मरूपी माएसँ सीख ज्ञान रूपी गुरुसँ मि‍लि‍ पबैए। जौं से नै तँ माए-बाप गुरु केना? गामक स्कूलसँ नजरि हटि मिड्ल स्कूल आ हाइस्‍कूलपर पहुँचलै। केतौ हाइस्‍कूलसँ क्लास काटि मिड्ल स्कूलमे जोड़ाइत अछि तँ केतौ कौलेजक क्लास हाइस्‍कूलमे। जहिना क्लास तँ कटि कऽ चलि अबैत तहिना शिक्षको अबैत। पढ़निहार तँ विद्यालय पैदा कऽ दैत अछि‍ मुदा पढ़ौनिहार केना...। आगू बढ़ैत सुशीलक मन कौलेजमे नै अँटकि विश्वविद्यालय पहुँच‍‍ गेल। मनमे उठलै जिनगीक पाँचम (भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्साक उपरान्त) आवश्यकता शिक्षा छी। ओना शिक्षण संस्था अनन्त अछि। मुदा एक सीमाक भीतर सेहो अछि। कियो अपना डेरापर पोथी उलटा प्रश्नक जवाब अपन परीक्षाक कॉपीमे लिखैए तँ कियो पढ़ाइक अभावमे प्रश्नपत्रो ठीकसँ नै बूझि पबैए। की ऐ दौड़मे के आगू बढ़त? कियो मार्कसीटे कीनि‍ लैत अछि। की शिक्षा सन समस्याकेँ बेदरा-बुदरीक खेतमे बनौल गरदा-गुरदीक घर-आँगन छी? चिन्तासँ मातल सुशील निराश भऽ ओछाइनपर ओंघराएले रहल। चिन्ताक वनमे चिन्तनक गाछ केतौ देखबे ने करए जइसँ आशाक फल देखैत। सूतल शरीर आरो सुति रहल।
कौलेजसँ आबि वसन्ती कोठरीमे किताब-काॅपी रखि सोझहे माए लग पहुँचल। जलखैक छिपली वसन्तीक आगूमे बढ़बैत माए पुछलखिन-
बुच्ची, उदास किए छह?”
अपनाकेँ छिपबैत वसन्ती बाजलि-
नै, नै। उदास कहाँ छी।
वसन्ती अपन वसन्ती-बहारकेँ छिपबैक कोशिश करैत मुदा जहिना शरीरक रोग तरे-तर बिसबि‍साइत रहैए तहिना मनक रोग वसन्तीकेँ बिसबिसाइत। मनमे नचैत रहै‍ कौलेजक पढ़ाइ आ अपन जिनगी। सुशील आ वसन्ती संगे पढ़ैत। पढ़ाइ नै हेबाक सोगसँ सोगाएल वसन्ती माएसँ आगू गप्प नै बढ़ा बि‍स्कुट खा चाह पीब चुपचाप अपन कोठरीमे आबि उतान भऽ ओंघरा गेल। सिरमापर माथ देने दुनू बाँहि समेटि‍ कऽ मोड़ि छातीपर रखि अपन जिनगी दिस ताकए लगल। आजुक शिक्षा लऽ कऽ की करब? माए-बापक संग जे अन्याय भऽ रहल अछि की ओ एक इमानदार बेटीक दायित्व नै बनैत जे आगूमे आबि ठाढ़ हुअए। आजुक शिक्षाक रूप एहेन बनि गेल अछि जे सरकारी स्कूल-कौलेजमे पढ़ाइ नै भऽ रहल अछि। तैपर एते महग शिक्षा भऽ गेल अछि जे अपन बेटा-बेटीक शिक्षा लेल बाप-माए अपन जिनगी तोड़ि, खूनक घोँट पीब कऽ जीवन-बसर करै छथि। जेकर परिणाम कि भेटै छन्हि तँ जेहो अपन बनौल आकि‍ पूर्वजक देल जे सम्पति‍ रहै छन्हि बेटीक बि‍आह करबैमे देमए पड़ै छन्हि। बीस लाख रूपैआ खर्च कऽ डाक्टरीक शिक्षा बेटीकेँ दि‍याउ आ तैपर सँ बीस लाख ि‍बआहोमे चाही। ओइ डाक्‍टर सभसँ पुछै छियनि जे देशक प्रथम श्रेणीक नागरिक होइतो अपन अन्याय नै रोकि सकै छी तँ की आशा अहाँसँ कएल जा सकैए। माघक शीतलहरीमे जाड़-भूखसँ ठिठुरल बच्चाकेँ जीबैक उपए अहाँ कऽ सकबै?
मन आगू बढ़ि अपनापर एलै। बी.ए. पास कऽ शिक्षिका बनब। पति या तँ किसान, वेपारी आकि‍ नोकरिहरे किएक ने होथि महिलाक संग जे असुरक्षा बढ़ि रहल अछि ऐमे केते गोटे अपनाकेँ सुरक्षित बूझि रहल छथि। की कौलेज-हाइस्‍कूलक विद्यार्थी अपन अध्यापिकाकेँ ओहने नजरिसँ देखैए जइ नजरिसँ अध्यापककेँ। की अदौसँ अबैत हमर संयुक्त परिवारक सामाजिक ढाँचा रूपी धरोहर, गाछसँ खसल पाकल कटहर जकाँ आँठी उड़ि केतौ, कोह उड़ि केतौ, कमड़ी खोइचा थौआ भेल एकठीम आ नेरहा ओंघराइत केतौ, तहिना आँखिक सोझहामे नष्ट भऽ जाएत। ऐ दुखद घटनाक जवाबदेह के? गामक बच्चाकेँ स्कूलसँ लऽ कऽ कौलेज धरि एते तरहक गाड़ीक अवाजसँ लऽ कऽ लाेडस्पीकरक अवाज धरि कानमे पड़ैए। जैठाम गप-सप्प करब कठिन भऽ जाइत अछि तैठाम पढ़ाइक की दशा होएत।
एते बात मनमे उठैत-उठैत परा-अपराक क्षितिजपर वसन्ती अँटकि गेल। जहिना शिशिर-ग्रीष्मक बीच वसन्तक स्‍वागत गाछपर बैस कोइली अपन जुआनीक इठलाइत राग-तानसँ करैए तहिना वसन्तीक स्‍वागत लेल होरी खेलाइत राधा-कृष्ण सेहो वृन्दावनमे प्रतीक्षा कऽ रहल छन्हि। अबीर उड़बैत राधा अपन पौरुख देखबैत अखाड़ाक माटि लऽ हाथ मिलबए चाहै छथि तँ कृष्ण पाछू घुसकैत पिचकारीक निशान साधि कखनो गुलाबी रंग फेकए चाहै छथि‍ तँ कखनो हरिअरका। आँखिपर नजरि पड़िते तँ कारी रंग मनमे अबनि मुदा निशाने साधैक बीच राधा सतरंगा अबीर मुँहपर फेक‍ देलकनि। मुँहपर अबीर पड़िते दुनू हाथे कृष्ण मुँह-कान पोछए लगलथि। आकि हाथसँ पिचकारी खसिते राधा आगू बढ़ि दुनू बाँहि पसारि हृदैसँ लगबैत वि‍ह्वल भऽ निराकार-साकारक बीच दुनू हँसए लगलथि। नम्‍हर साँस छोड़ैत वसन्तीक मनमे उठल- ऐ धरतीपर किछु करए लेल संगीक जरूरति‍ अछि। जाधरि पुरुख-नारी मि‍लि‍ अपन समस्या लेल अपन पौरुखकेँ नै जगाैत ताधरि सपना साकार केना भऽ पओत।
ओछाइनसँ उठिते सुशील सुरूजक किरिणकेँ देखए लगल। देबालक एक छोट भूर देने रोशनी कोठरीमे प्रवेश करै छल। सुरूजक ओ रूप नै जैठाम आँखि नै टिकैत। मुदा कोठरीक रोशनी ओहन नै। पातर-कोमल। बिजलौका जकाँ सुशीलक मनमे उठल पुरुख-नारीक बीच सृष्टि निर्माण करैक शक्ति अछि तहन जौं ओ नान्हि-नान्हिटा समस्यामे ओझरा जाए, केतेक लाजिमी छिऐ। कोठरीसँ निकलि सुशील वसन्तीसँ भेँट करैक वि‍चार केलक।
प्रात भने क्लासक संगी वसन्ती ऐठाम पहुँचल। टेबुलक एक कोणपर पोथी गेँटल। एकटा कि‍ताब आ काॅपी आगूमे पसरल आ पेन सेहो खोइल कऽ रखल मुदा कुरसीपर ओंगठि आँखि बन्न केने वसन्ती अपन वसन्ती-बहारपर नजरि अँटकौने रहए। जहिना वसन्त साले-साल अबैए आ जाइए तहिना की मनुखोक जिनगीमे वसन्त अबैत आ जाइत अछि? कथमपि नै। मनुखक जिनगी तँ ओहन होइए जइमे वसन्त एलापर पुनः जाइ नै छै। दिनानुदिन बढ़ैत-बढ़ैत समुद्र जकाँ महा वसन्त बनि जाइत अछि। एते बात मनमे अबि‍ते देह चौंकि गेलै। हृदए सिहरए लगलै। मुदा अपनाकेँ संयत करैत धियान वसन्त ऋृतुपर देलक। ऋृतुपर नजरि पड़िते देखलक जे एकठीम फसिल लागल चौरस खेत, सुन्दर-सुन्दर गाछसँ सजल बगीचा जैपर खोंता लगा रंग-बिरंगक चिड़ै अपन मधुर स्वरसँ वसन्तक स्‍वागत करैए। तँ दोसर कोसीक बाढ़िसँ नष्ट भेल ओ इलाका जइमे बालुसँ भरल ढि‍मका-ढि‍मकी बनल खेत, गाछ बि‍रि‍छक अभाव देखि‍ कनैत चिड़ै रहैक ठौरक दुआरे छोड़ि पड़ा गेल। की ओइठाम चैत-बैशाखकेँ वसन्त ऋृतु नै कहल जाइत अछि? अथाह समुद्रमे वसन्ती कखनो उगए तँ कखनो डूमए। अनासुरती नोरसँ आँखि ढबढबाए गेलै। नोर केहेन? दुखक आकि क्रोधक। ओढ़नीसँ वसन्ती नोर पोछिते छल आकि सुशील कोठरीक दरबज्जापर सँ बाजल-
वसन्ती।
वसन्ती कानमे पड़िते औगता कऽ कुरसीसँ उठि दुनू हाथ आगू बढ़बैत वसन्तीक मुहसँ निकलल-
सुशील।
कुरसीपर सुशीलकेँ बैसा अपने बगलक कुरसीपर बैस पुछलकै-
पढ़ाइ-लिखाइक की हाल-चाल?”
सुशील कहलकै-
कौलेज छोड़ैक विचार भऽ रहल अछि।
सुशीलक बात सुनि अकचका कऽ वसन्ती पुछलकै-
किए?”
-“कौलेज सहित शिक्षाक जे दुरगति देखि‍ रहल छी ओइसँ मन दुखी भऽ रहल अछि। ऊपरी ढाँचा किछु देखि‍ रहल छी आ भीतरी किछु आर छै।
सुशीलक बात सुनि वसन्ती बाजलि-
सि‍रि‍फ अहींटा दुखी छी आकि आरो गोटे छथि।
वसन्तीक बात सुनि सुशीलक विचार ठमकि गेलै। कनी रहि कऽ बाजल-
अखनि धरि जे देखलौं ओइमे नगण्य दुखी भेटला आ अधिकांशकेँ कोनो गम नै।
किछु तँ भेटला?”
मुदा ओ कहिया तक संग रहता एकर कोन ठीक। जौं रस्तेसँ घूमि‍ जाथि आकि‍ हलुआइक कुकुर जकाँ रसगुल्ला-जि‍लेबीक रस चाटए लगथि।
अहाँ जे कहलौं ओकरो हम नै कटै छी मुदा एकर अतिरिक्तो किछु छै?”
से की?”
जौं पुरुख-नारी मि‍लि‍ सृष्टिक निर्माण कऽ सकैए तँ की कोनो बेवस्थाकेँ नै बदलि‍ सकैए?”
बदलि‍ सकैए मुदा ओकरा लेल...।
हँ। ओकरामे पौरुख चाही। पौरुख सि‍रि‍फ पुरुखेक धरोहर नै मनुख मात्रक छी। गललसँ गलल आ सड़लसँ सड़ल बेवस्थाकेँ हमहीं-अहाँ ने संग मि‍लि‍ बदलि‍ सकै छी।
वसन्तीक बात सुनि, नम्‍हर साँस छोड़ैत सुशील बाजल-
ओहन संगी केतए भेटत?’’
संकल्प स्थलपर।
ओ स्थल केतए अछि?”
दुनियाँक एक-एक इंच जमीनपर।
संकल्पक विधान की?”
आत्माक मिलन।कहि दुनू गोटे दहिना हाथ मिला संग-संग जीवन जीबाक वचन एक-दोसराकेँ देलक।
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