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Friday, October 18, 2013

(25) प्रेमी

प्रेमी
फगुआक दिन। मुर्गाक बाङ सुनिते ओछाइन छोड़ि पक्षधर बाबा परिवारक सभकेँ उठबैत टोलक रस्‍ता धेने गौआँकेँ हकार दिअ विदा भेला। मनो गद्गद्। खुशी भीतरसँ समुद्रक लहरि जकाँ उफनैत रहनि। गौआँकेँ फगुआक भाँग पीबाक हकार दए दरबज्जाक ओसारपर बैस गर अँटबए लगला जे दस किलो चीनी, मसल्ला आ भाँगक पत्तीक ओरियान तँ कइए नेने छी। आब खाली बाजा-गाजा संग लोककेँ एबाक छन्‍हि। एते बात मनमे अबि‍ते उठि कऽ भाँगक पत्ती आ मसल्ला -मरीच, सौंफ, समतोलाक खोंइचा, गुलाब फूलक पत्ती, काबुली बदाम- लऽ आँगन जाए पुतोहुकेँ कहलखिन-
कनियाँ, बुरहीकेँ पुआ-मलपुआक ओरियान करए दियनु आ अहाँ भाँग पीसू। खूब अमैनियासँ पत्ती धुअब। ति‍नसलिया पत्ती छी, जल्ला-तल्ला लगल अछि।कहि ओसारपर सभ सामान सूपमे रखि दरबज्जा दि‍स घूमि‍ गेला। हँ-हूँ केने बिना गांधारी मसल्लाक पुड़िया निच्चाँमे रखि पत्तीकेँ सूपमे पसारि आँखि गड़ा-गड़ा जल्ला ताकए लगली। मनमे उठलनि जे आइ बूढ़ा सनकि-तनकि तँ ने गेला हेन। एते भाँग लऽ कऽ की करता। मुदा किछु बजली नै। आँखि उठा कऽ देखि‍ बि‍‍हुँसि कऽ नजरि निच्चाँ कऽ लेलनि। ओना मिथिलाक नारी आँखिमे गांधारी जकाँ पट्टी बान्हि घरती सदृश सभ किछु सहैत एली। दरबज्जापर बैस पक्षधर सोचए लगला, जिनगीक एकटा दुर्गम स्थान दुर्गा टपा देलनि। मने-मन दुनू हाथ जोड़ि हृदैसँ सटा हुनका गोड़ लगलनि। सुकन्‍या अपना विचारसँ जिनगीक प्रेमी चुनलक। केना नै आनन्दसँ जीबैक असिरवाद दैति‍ऐ। जइ फुलवाड़ीकेँ लगबैमे साठि‍ सालक श्रम लगल अछि ओइ‍ श्रमकेँ, जहिना छोट-छोट बेदरा-बुदरी टिकुली पकड़ि पुनः उड़ा दइए तहिना हमहूँ उड़ा देब? कथमपि नै।
रूपनगर हाइस्‍कूलक बोर्ड परीक्षाक सेन्टर प्रेमनगरक हाइस्‍कूल भेल। देहाती स्कूल रहितो परीक्षार्थीकेँ डेरा लेल मनमे कोनो चिन्ता नै। सबहक मनमे एते खुशी जे डेरापर धियाने ने जाइत। सभ निश्चिन्‍त जे गाम-घरमे अखनो विद्याकेँ देवी स्वरूप बूझि सभ मदति करए चाहै छथि। जौं मधुबनी सेन्टर होइतए तहन ने डर होइतए जे मेहता लौजमे सभ सामान चोरीए भऽ जाएत तँए असुरक्षित अछि आ प्रोफेसर कौलनीक भाड़े तेते अछि जे ओतेमे तँ विद्यार्थी परीक्षाक सभ खर्च पूरा लेत। ओना प्रेमनगरक सएओसँ ऊपरे कुटुमैती रूपनगरमे अछि, तँए किएक केकरो मनमे रहैक चिन्ता होइतै। तहूमे प्रेमनगर हाइस्‍कूलक हेडमास्टर तेहेन छथि जे स्कूलक समैमे स्कूलक काज करै छथि बाँकी बारह बजे राति धरि विद्यार्थीक खोज-पुछाड़िमे लगल रहै छथि जे केकरो कोनो तरहक असुविधा तँ ने भऽ रहल छै। तहूमे आनन्‍दी बाबाक दरबज्जा तेहेन छन्हि जे इलाकाक लोक अपन रहैक ठरे बुझैए। घर्मशल्ले जकाँ। धैनवाद यशोदियादादीकेँ दियनि जे बुढ़ाड़ीओमे अभ्यागत सबहक अँइठ-काँठ बारह बजे राति धरि उठबिते रहै छथि।
परीक्षासँ एकदिन पहिने लोचन सभ समान शूटकेशमे लऽ साइकिलसँ प्रेमनगर पहुँचल। लोचनक परिवारकेँ पक्षधरक परिवारसँ साठिओ बरख ऊपरसँ दोस्ती अबैत रहनि। आजादीक हूर-बरेड़ाक समए रहए। जहिना गामक धिया-पुता गुल्ली-डंटासँ क्रिकेटक मनोरंजन करैए‍ तँ शहरक धि‍या-पुता जगहक अभावमे खेलक स्कूलमे नाओं लिखा मनोरंजन करैए, तहिना पक्षधरो आ ज्ञानचन्दो आजादीक लड़ाइमे पढ़ाइ छोड़ि समाजक बीच आबि‍ हूर-बरेड़ामे शामिल भऽ गेला। समाजक काजमे हाथ बँटबए लगला। समाजमे केकरो ऐठाम बेटीक बि‍आह होइ आकि‍ बरियाती अबैत तँ अपन बहि‍न बूझि, बिनु कहनौं पाँच दिन निश्चित समए दिअ लगल। तहिना आरो-आरो काज सभमे हाथ बँटबए लगला। मुदा अस्सी बर्खक उपरान्तो पक्षधर पक्षधरे आ ज्ञानचन्द ज्ञानचन्दे रहि गेला। कहियो कियो नेता नै कहलकनि। हँ एते जरूर भेलनि जे भाए-भैयारी भेने गाममे तेते भौजाइ भऽ गेलनि जे वसन्त छोड़ि ग्रीष्मक रस्ते घेरि देलकनि। आब तँ सहजे बुढ़ाड़ीमे धिया-पुताक संग रंगो-रंग खेलै छथि आ जोगीरो गबै छथि। गाम स्वर्ग जकाँ लगि रहलनि अछि।
किएक नै मन लगि‍तनि जइ गाममे कालि‍दास सन विद्वान भेला जे जही डारिपर बैसब ओही डारिकेँ काटब मुदा ने तँ कुड़हरिक धमक लगत‍, ने डारि‍ए डोलत, ने दुनू हाथे कुड़हड़ि भाँजब तँ देह डोलत आ ने दुनू पएरक बाइलेंस गड़बड़ाएत। निश्चििन्तसँ जखनि डारि खसए लगतै तखनि ओइ‍पर बैसले-बैसल धरतीपर चलि आएब, एहेन विद्वान् सभसँ तँ गामे भरल अछि। एते दिन, अपराधीक संख्या कम रहने ओकरा सबहक नजरि निच्चाँ रहै छेलै मुदा आब केकरा कहबै अपनो घरवाली धमकी देती जे माए-बाप आ भाय-भौजाइक पाछू लगल रहै छी आ अपना धि‍या-पुताले किछु करबे ने करै छी। ऐ जिनगीसँ जहर-माहुर खाए कऽ मरब नीक। हौ बाबू, हमरा एहेन भ्रममे नै दएह। ऐ दुनियाँमे ने कियो अप्पन छी आ ने बिरान। सीता जकाँ लक्ष्मणक रेखाक भीतर रहअ। नै तँ रावण औतह आ लऽ कऽ चलि जैतह। अपन-अपन पएरपर ठाढ़ भऽ गंगोत्रीसँ निकलैत गंगाक पानि जकाँ, जे साथीक संग ऊपर-निच्चाँ होइत प्रशान्‍त महासागरमे मिलैए तहिना समैक संग चलैत रहअ।
पक्षधर बाबाक घर-दुआर लोचनकेँ देखले। केकरो पुछैक जरूरते किएक होइतै। साइकिल हड़हड़ौने दरबज्जापर पहुँच‍‍ साइकिलसँ उतरि‍ घरक देबालक पजरामे साइकिल ठाढ़ कऽ दुनू हाथे बाबाक पएर छूबि गोड़ लगलकनि। बाबाकेँ बुझले रहनि, कहलखिन-
भने अखने चलि एलह। सभ सामान सेरिया सेन्टरपर जा कऽ देखि‍-सुनि अबि‍हऽ।
कहि पोती सुकन्याकेँ सोर पाड़लखिन। मुदा लोचनो तँ आँगन-घर जाइते-अबैत रहए। सुकन्याकेँ लोचन आँगनसँ बजा अनलक। भाए-बहि‍न जकाँ दुनूकेँ देखि‍ पक्षधर सुकन्याक कहबाक बात बि‍सरि दुनू गोटेकेँ कहलखिन-
बाउ, आब तँ हम चलचलाउ भेलिअ। तोरे सबहक पार ऐ दुनियाँमे एलह हेन। दुनियाँमे जेते मनुख अछि ओ अपना समैक जिम्मा लऽ जीबैए। अखनि तँू सभ सुकुमार कोमल किसलय सदृश छह। मनुख बनि जिनगी जीवि‍हऽ। हम दुनू संगी -पक्षधर आ ज्ञानचन्द- दू जातिक रहितो संगे-संग जिनगी बितेलौं, जे समाजोक लोक बुझै छथि। मुदा हुनको धैनवाद दइ छियनि जे संगीक महत अदौसँ बुझैत आएल छथि। एकरे फल छी जे जाति-कुटुमसँ कनीओ कम दोस्तीकेँ नै बूझल जाइ छै। संगे-संग जहलो कटलौं आ एक्के ओछाइनपर सुतबो करै छी। मिथिलांचलक कोनो राजनीतिक आकि‍ सामाजिक संगठनक बात होइ मुदा की ऐ संस्कृतिकेँ आँखिक सोझहामे नष्ट होइत देखि सकै छी।
मन पड़लनि गाड़ीक ओ दिन जइ दिन जहल जाइत काल दुनू गोटेकेँ पैखाना लगि‍ गेल आ हाथमे हथकड़ी छल। ट्रेनक पैखाना-कोठरीमे पानि नै। की कएल जाए? जेबीसँ रुमाल निकालि दू टुकड़ीमे फाड़ि दुनू गोटे शुद्ध भेलौं। आँखि ढबढबाए गेलनि। भरल आँखिसँ पोतीकेँ कहलखिन-
बुच्ची, दरबज्जापर रहने बौआकेँ पढ़ि नै हेतै। एक तँ पढ़बह कि खाक। बहुत लि‍लसा छल जे परिवारमे इंजीनियर-डाक्‍टर देखिऐ मुदा से हमरा सन-सन परिवारबला लेल सपना नै तँ आरो की अछि। एक दि‍स पनरह-बीस लाखक पढ़ाइ आ दोसर दि‍स दुइओ हजार मासक आमदनीक परिवार नै। मुदा अखनि बच्चा छह, आशासँ जीबैक उत्साह मनमे जगबैक छह।
जहिना जनकजीक फुलवाड़ीमे राम आ सीताक प्रथम मिलन भेलनि तहिना सुकन्या आ लोचनक बदलल रूपक बीच भेल। अखनि धरि जे बच्चा सदृश परिवारमे खेलौना छल ओकरा कानमे एकाएक जिनगीक बात पड़लै। जिनगी लेल प्रेम भरल संगीक जरूरति‍ होइत अछि। जिनगीक बात सुनि दुनूक देह सिहरि गेलै। सिहरैत देह देखि‍ पक्षधर कहलखिन-
बुच्ची, लोचन तोहर पाहुन भेलखुन। अँगनेक ओसारक कोठरी दऽ दहुन। सभ देखभाल तोरे ऊपर। कोनो तरहक असुविधा पढ़ैमे नै होइन।
पक्षधरक बात सुनि सुकन्या शूटकेस माथपर उठा लोचनक पाछू-पाछू विदा भेल। कोठरी खुजले रहै, अँटकैक केतौ जरूरते नै पड़लै। एकजनियाँ चौकी, कपड़ा लेल अलगनी, एकटा टेबुल आ एकटा कुरसी। कुरसीपर शूटकेश खोलि लोचन कपड़ा निकालि चौकीपर रखलक। चौकीपर रखि‍ते सुकन्या ओही अलगनीपर लोचनक कपड़ा रखलक जैपर पहिनेसँ ओकर अपनो रखल कपड़ा छेलै। साैनक झूला जकाँ दुनूक कपड़ा झूलए लगल। कि‍ताब, काॅपी, कलम निकालि टेबुलपर रखलक। एक्के कोर्सक पोथी दुनूक। लोचन मैट्रिकक सेनटप केंडीडेट आ सुकन्या मैट्रिकक विद्यार्थी। टेबुलक बगलमे लोचन लग ठाढ़ भऽ सुकन्या पोथी फुटा कऽ नै रखि, सभकेँ जोड़ा लगा-लगा रखलक। दुनूक नजरि दुनूक कि‍ताब-काॅपी-पेनक जोड़ापर अँटकि गेल। पहिनेसँ दोबर पोथीक थाक भऽ गेल। ऐना जकाँ एक-दोसराक हृदैमे अपन-अपन रूप देखए लगल। पोथीक लिखाबटि‍ प्रेसक होइ छै। तहूमे एक्के प्रेसक पोथी छेलै। मुदा काॅपी तँ अपन-अपन हाथक लिखल होइ छै। एक दोसराक काॅपी उलटा-उलटा देखए लगल। देवनागरी लिखाबटि‍ लोचनक सुन्दर मुदा रोमन लिखाबटि‍ सुकन्याक सुन्दर। एना किए भेल? एक्के हाथक लिखाबटि‍ दब-तेज केना भऽ गेल। मुदा उत्तर केकरो मनमे नै अबै छेलै। अनासुरती सुकन्याक मन नाँचल। एते काल भऽ गेल, अखनि धरि पानिओ नै अनलौं। औगता कऽ कोठरीसँ निकलि छिपलीमे जलखै आ लोटामे पानि नेने आबि चौकीपर छिपली रखि हाथ शुद्ध करैले लोटा बढ़ा, चौकीक गोड़थारी दि‍स पलथा मारि बाबाक पाहुनकेँ खुआबए बैस गेली। खाइकाल पुरुख चुप रहैत अछि‍, नोन-अनोनक प्रश्न किए उठि‍तै। समदर्शी मिथिला छिऐ किने?
एक बजेसँ लऽ कऽ चारि बजे धरि परीक्षाक कार्यक्रम रहए। पहिल दिन लोचन दुर्ग टपैले जाएत तँए सुकन्याक मन मृगा जकाँ नचैत। भिनसरेसँ सुकन्या लोचनपर नजरि अँटकौने...। समैपर अपन काज पुरबैक अछि। हमरा चलते जौं शुभ काजमे बाधा होएत तँ भगवानक ऐठाम दोखी हएब। मास्टर साहैबक सिखाैल बात सुकन्याकेँ मन पड़ल। काजक भार तँ लोचनक ऊपरमे छन्हि। हम तँ हुनकर मदतिगार मात्र छियनि। तँए नीक हएत जे हुनकेसँ पूछि लियनि। चंचल मनमे उठलै, पूजाक तैयारीमे सभ किछु फुलडालीमे सजबैत होएत। बीचमे बाधा देब उचित नै। हो-ने-हो फूल-पत्तीक जगहे बदलि‍ जाइन। अनासुरती पुन: मनमे उठलै- हाय रे बा, घड़ी तँ देखबे ने केलौं। अगर बारह बजि गेल हेतै तँ खुएबाक दोखी के हएत? मन व्याकुल, अव्यवस्थित वस्त्र, केश छिड़ियाएल, कर्मक भारसँ भादबक अन्हरिया जकाँ सुकन्‍याक आँखि‍क आगू अन्हार पसरि गेलै। केतए जाउ, केकरा पुछिऐ? गाछो-बिरि‍छ नै अछि जे पूछि लि‍तिऐ। अस्त-व्यस्त अवस्थामे सुकन्या माए लग पहुँच‍‍ पुछलकनि-
भानस भेलौ?”
अखने। अखनि तँ आठो नै बाजल हएत।
जलखै भेलौ?”
बच्चा कहलक एक्केबेर खा कऽ सबेरे जाएब।
जहिना केचुआ छोड़ैत समए साँपकेँ कष्‍ट होइ छै, भले ही नव जीवन किएक ने प्राप्त करत, मुदा दर्द तँ हेबे करै छै। मीरा जकाँ सुकन्या राजस्थानक तँ नै। मिथिलाक बाला। परिवार आ समाज लेल अदौसँ समरपित। बम्बइक गीतक धून बहुत मधुर होइए तहि‍ना तँ समबेत स्वरमे माए-बहिनक चैताबर, बारहमासा आ समदाउनो तँ मधु सदृश अछि। जहिना मधुमाछी उड़ि-उड़ि कखनो आमक गाछपर चढ़ि सोझहे अपन प्रेमी मंजर लग पहुँच‍‍ जाइत अछि‍, तँ लगले माटिपर ओंघराएल चमेलीक रसकेँ आमक रसमे महामिश्रण कऽ घोल बनबैए‍, तहिना ने हम आ लोचनो छी।
कोठरीसँ निकलिते लोचनक आँखि सुकन्यापर पड़ल। हजारो रश्मि रूपी तीर दुनूक बीच टकराए लगल। मुदा दू रंग। जहिना लड़ाइक मैदानमे वीर असीम बि‍सवासक संग मरैले नै बलिदान लेल बढ़ैए, तहिना लोचनोक हृदैमे होइत। कलीक खिलैत फूल जकाँ मुँह। मुदा सुकन्या मने-मन भगवानसँ आराधना करै छलि‍ जे-
कुरुक्षेत्रसँ लोचन हँसैत आबए।
उचंगल मन फेर उचंगि गेल। ओसारसँ निच्चाँ उतरिते सुकन्याक हृदए लोचनकेँ पाछूसँ ठेलए लगल। जहिना बच्चा सभ माटिक पहि‍या, कड़चीक गाड़ी बना धनखेतीक माटि उघि-उघि अँगनाक ओलतीमे दऽ खुशी होइत जे आँगन चिक्कन बनत, तहिना आगू-बढ़ैत लोचनकेँ देखि‍ सुकन्याकेँ खुशी भेलै। मुदा खुशी अँटकलै नै। लगले चारि बाजि गेलै। मनमे उठलै- भूखल भायकेँ जलखै कहाँ खुएलौं। जहिना किसानक खेत दहा गेलासँ, व्यापारमे मंदी आबि गेलासँ, बेरोजगारी बढ़लासँ भीखमंगोकेँ कियो भीख देनिहार नै रहैत तहिना जे धरती करोड़ो पतिव्रता नारी पैदा केलक वहए धरती पतिहत्यारि‍नकेँ जनम दऽ ओकरा जहल कटबै छै।
साढ़े चारि बजे बेर-बेर देखला पछाति‍ सुकन्याक नजरि मौकनी हाथीपर चढ़ल गणेशजी जकाँ लोचनकेँ अबैत देखि‍ लोटामे पानि, थारीमे जलखै परसि अँगनाक ओलतीमे ठाढ़ भऽ देखए लगल। अखनि धरिक लोचनक सएओ मनोहर रूप मनमे नाचए लगलै। कोठरी आबि लोचन गरमाएल देहक कपड़ा बदलि‍ जलखै करए लगल। विस्मित भेल सुकन्याक मुँह बाजि उठल-
केहेन परीक्षा भेल भाय?”
बहुत बढ़ियाँ। जरूर पास करब।
‘जरूर पास’ सुनि सुकन्याक हृदए लोचनकेँ सीताक राम जकाँ गुण देखलक। मनमे आशाक सिहकी उठलै। संगीए तँ जिनगीक जीत दियबैए। अपन सुखद जिनगीक मनोहर रूप लोचनमे देखि‍ सुकन्या मोहित होइत बाजलि-
औझुका पेपर तँ नीक भेल मुदा आन दिनक जौं अधला हुअए, तहन?”
ओ ओइ‍ दिनक मेहनति‍पर निर्भर अछि। एकर जवाब हँ-नइमे नै देल जा सकैए।
आइ सातम दिन परीक्षाक अंत भेल। स्कूलसँ आबि पक्षधरकेँ गोड़ लगि लोचन बाजल-
बाबा! परीक्षा समाप्त भऽ गेल। गाम जाइ छी।
असिरवाद दइसँ पहिनहि‍ बाबाक मनमे उठलनि, जहन ऐठाम काज सम्पन्न भऽ गेलै तहन रोकब उचित नै। सबेर-अबेर भेनौं अपन घर तँ पहुँच‍‍ जाएत। बात बदलैत बाबा पुछलखिन-
केहेन परीक्षा भेलह?”
मुस्की दैत लोचन बाजल-
पास करब, बाबा।
लोचनक मुस्की पक्षधरक हृदैकेँ, सलाइक काठी जकाँ, आनन्दक कोठरीकेँ रगड़ि देलकनि। मन पड़लनि जनकपुरक धनुष यज्ञ। ठहाका मारि कहलखिन-
भाग्य केकरो लिखल नै होइ छै, बनौल जाइ छै बौआ।
अँगनाक ओलती लग ठाढ़ सुकन्याक मन मृगा जकाँ व्याकुल भऽ नचै छेलै। जहिना अपने नाभिक सुगंधसँ मृगा नचैए‍ तहिना सुकन्याक मन परीक्षाक समाचार सुनैले नचैत। मुदा दरबज्जो तँ दोसराक नहियेँ छी, सोचि आगू बढ़ल।
दुनू गोटे माने सुकन्या आ लोचनकेँ देखि‍ पक्षधर बाबा कहलखिन-
आइ तोँ विद्याध्ययनसँ गृहस्‍ताश्रममे प्रवेश कऽ रहल छह। तँए बाबाक लगाैल फुलवाड़ीक सूखल-मौलाएल डारिकेँ कमठौन कऽ खाद-पानिसँ सेवा करिहऽ। ओइ‍मे नव-नव कलश चलतै, जइसँ हँसैत-खेलाइत जिनगी चलतह।
मुड़ी गोंतने लोचन आँगन आबि पानि पीब पोथी सेरियबैक विचार केलक। पोथीपर पोथी गेंटल देखि‍ हाथ काँपए लगलै। सुकन्याक मन कानि उठलै। जहिना कोनो धारक दुनू महारपर बैसल यात्रीकेँ होइए तहिना सुकन्याक मनमे दुरीक भाव उठए लगल। लोचन सफलताक जिनगीमे पहुँच‍‍ गेल आ हम? आशा-निराशाक क्षितिजपर लसकि गेल सुकन्या।
सुकन्या लोचनकेँ सीमा धरि अरियातए विदा भेल। गामक सीमा बिला गेलै। ने लोचन सीमा ठेकानि‍ सकल जे घुमबाक आग्रह करितै आ ने सुकन्या बूझि‍ सकल जे अंतिम विदाइ दैतै। अजीब गामोक सीमा अछि। एक्को परिवारकेँ गाम मानल जाइए -जेना भोजमे- तहिना दसोगाम माला बनि गाम बनि जाइत (दस गम्मा जाति) अछि। अरियातने-अरियातने सुकन्या लोचनक घर धरि पहुँच‍‍ गेल।
पनरह दिन बीतैत-बीतैत अनेको मौगियाही कचहरीमे फैसला लिखा गेल जे सुकन्या पक्षधरक घरसँ निकलि अजाति भऽ गेली।कचहरीक फैसला सुनि सुकन्याक माए-बाप दुनू गोटेक करेज दड़कए लगलै। कनैत मन बाजए लगलै, मनो ने अछि जे कहियासँ दुनू परिवारमे दोस्ती अछि। सभ तुर हमहूँ जाइ छी आ ओहो सभ आबि जाइ छथि। मुदा आइ की देखि‍ रहल छी। जाधरि पिता जीबै छथि ताधरि ऐ परिवारक हमसभ के? समाजक लोकक जवाब ओ देथिन। पिताकेँ गामक लोकक बात कहलखिन। बेटा-पुतोहुक बात सुनि गरजि कऽ पक्षधर कहलखिन-
जइ समाजमे मनुखक खरीद-बि‍क्री गाए-महिंस, खेत-पथार जकाँ होइए की ओइ‍ समाजकेँ पंच तत्वक बनल मनुख कहल जा सकैए? जौं से नै तँ हमर कियो मालिक नै छी। कियो ओंगरी देखाैत तँ ओकर ओंगरी काटि लेबै। आइए दोस्तक ऐठाम जाइ छी आ देखि‍-सुनि अबै छी।
जखनि‍ भाँग पानिमे अलगि गेल तखनि‍ पुतोहु बुझलनि जे भाँग पि‍सा गेल। पोछि-पाछि सिलौटकेँ धोइ बाटीमे रखलनि। दरबज्जापर बैसल पक्षधरक मनमे उठलनि जे नअ बाजि गेल, अखनि धरि किए ने कियो आएल। फेर मन उनटि कऽ भाँगपर गेलनि। भाँगपर नजरि पहुँचि‍ते मनमे उठलनि जे बिनु भाँग पीनहि‍ तँ ने सभ निशाँए गेल अछि। तहन भाँगक जरूरते की? किछु दिन पहिने धरि सभ गाममे एकदिना फगुआ होइ छेलै मुदा आब तीन दिना भऽ गेल। ओना तीन रंगक पतरो आबि गेल अछि। मुदा अपना गाममे तँ एकदिने अखनो धरि होइत आएल अछि आ जाधरि जीब ताधरि होइत रहत।
कीर्तन मंडलीक संग-संग आनो-आन पक्षधर ऐठाम पहुँचला। अनगिनित थोपरी बजौनिहार आ अनगिनत गबैयाक समारोह। चीनीमे घोड़ल भाँग। सभसँ उमेरदार रहितो पक्षधर भाँग परसिनिहारकेँ कहलखिन-
पहिने नवतुरिया सभकेँ पिआबह। वएह सभ ने बेसी काल गेबो करतह आ नचबो करतह।
मुदा एक्कोटा नवतुरिया बाबाक बात नै सुनलक। सबहक यएह कहब रहै जे बाबा गाममे सभसँ श्रेष्ठ छथि, अनुभवी सेहो छथि। तँए जौं ओ गोबरखत्तोमे खसता तैयो हम सभ नै छोड़बनि। नवतुरियाक बात सुनि पक्षधरक मनमे उठलनि अखनि आँगनमे कहाँ छी दरबज्जापर छी। दस गोटेक बीच छी। तहन के छोट के पैघ? सभ तँ ब्रह्मेक अंश छी। तहूमे एते टुकड़ी एकठीम एकत्रित छी। दू गिलास भाँग पीब पक्षधर उठि कऽ ठाढ़ होइत फगुआ शुरू केलनि-
सदा आनन्द रहे ऐ दुआरे मोहन खेले होरी हो।
ढोलक, झालि, कठझालि, हरिमुनियाँ, मजीरा, खजुरी, डम्फा, गुमगुमाक संग सएओ जोड़ थोपड़ीक महामिश्रणक धूनक संग कोइली सन मधुर अवाजसँ लऽ कऽ टिटहीक टाँहि धरिक बोल अकासमे पसरि गेल। ओना जमीनो खाली नै रहल। इंगलिश डान्ससँ लऽ कऽ जानी धरिक नाच आ मेल-फीमेलक जोगीरा जोर पकड़नहि‍ रहए। बजनि‍याँ सभ अपन-अपन बजो बजबैत आ कुदि-कुदि नचबो करैत। गोसाँइ डुमैबेर फेर पक्षधर भाँग बनबौलनि। अपन शक्तिकेँ कमजोर होइत देखि‍ दोबरा-दोबरा सभ पीलक। उत्साहो दोबरेलै। पुरनिमाक राति। हँसैत चान। फागुन मास रहने अकासमे केतौ बादल नै। मुदा तरेगन मलिन भऽ अपन जान लऽ झखैत। किएक ने तरेगन अपना जान लेल झखत? आखिर वसन्त-वसन्तीक समागमक दिन छेलै किने।
गामक दछि‍‍नबरि‍या सीमापर समन जरए लगल। समनक धधड़ाकेँ पक्षधर उत्तरसँ दछि‍‍न मुहेँ कुदला। बाबाकेँ देखि‍ते सभ एका-एकी कूदए लगल।
धधड़ा मिझा गेल। मुदा जारनि‍क आगि चकचक करिते रहल। समदाउन गबैत सभ घरमुहाँ भेला।

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