Pages

Friday, October 18, 2013

(20) दोहरी मारि‍

दोहरी मारि‍
दस सालसँ डायबीटीज आ साढ़े-सात सालसँ ब्‍लड-पेसरक शि‍कार सरसठि‍म सालक प्रोफेसर गुलाब पाँच साल पहि‍ने कौलेजसँ सेवा-नि‍वृत्त भेल छला। सूर्यास्‍तक समए, सोफापर आेंगठि‍ पाँचो आलमारीक पोथीपर नजरि‍ खि‍ड़बैत रहथि‍। पत्नी -लालमनि‍- चाह नेने कोठरीक मुँह टपि‍ते छेली आकि‍ भुक दऽ मड़कड़ी बड़ि‍‍ उठल। ओना अन्‍हारक आक्रमण तइ रूपे नै भेल छेलै मुदा किड़ी-फति‍ंगीक‍ आवाहन बाहरसँ घर (कोठरी) दि‍स हुअ लगल छेलै। टुटल अगि‍ला दाँतक मुहसँ मुस्‍की दैत लालमनि‍ पति‍ दि‍स कप बढ़बैत बजली-
कौफी सधि‍ गेल छेलए। पहुलके चाहपत्ती घरमे छेलै सएह बनेलौं। मुदा चाहक गंध केनादन लगल।‍
पत्नीक बात सुनि‍ गुलाबक मन अमता गेलनि‍। मुदा जहि‍ना पाकल अमतीक खट-मधुर सुआद होइए‍ तहि‍ना प्रोफेसर गुलाब अपन चौहु टुटल मुहसँ मुस्‍कीआ देलनि‍। मन कलपि‍ उठलनि‍। एहेन समए भऽ गेल जे एक कप चाहोपर...। ठीके बूढ़-बुढ़ानुसक कहब छन्हि-
करनी देखब मरनी बेर।‍
पत्नीक हाथसँ कप पकड़ि‍ मुँहमे लगौलनि‍। मुँहमे चाह अबि‍ते ठोर बि‍जैक‍ गेलनि‍। हाँइ-हाँइ कऽ चाह तँ घोंटि‍ गेला मुदा जाकरी पत्तीक सुआद मनकेँ हौंड़ देलकनि‍। चाहक कप टेबुलपर रखि‍ उठि‍ कऽ ठाढ़ होइते रहथि‍ आकि बूझि‍ पड़लनि‍ जे उल्‍टी हएत। दुनू हाथसँ छाती दाबि‍ पुन: सोफापर बैस गेला।
चौसठि‍ वर्षीए लालमनि‍ गैस्‍टि‍कसँ आक्रान्‍त। पेटक गैससँ मन अस-बि‍स करनि‍। जोरसँ ढेकार भेलनि‍। मन हल्‍लुक होइते पति‍क पीठ ससारए लगली। रसे-रसे प्रोफेसर गुलाबक मन खनहन हुअ लगलनि‍। मन खनहन होइते पत्नीकेँ पुछलखि‍न-
मन बेसी गड़बड़ तँ ने अछि?‍
दुनि‍याँक रागसँ ऊपर उठि‍ लालमनि‍ चहकि‍ उठली-
की गड़बड़ आ की‍ नीक, कोनो की तेहैया बोखार छी जे तीन दि‍न जाइते चलि‍ जाएत, नि‍रकटौबलि‍ भऽ कऽ छूटि‍ जाएत। गोटीक चाह करैए। जाइ छी एकटा गोटी खा लेब, ठीक भऽ जाएत।‍
कहि‍ लालमनि‍ दोसर काेठरीक रस्‍ता धेलनि‍। प्रोफेसर गुलाबक नजरि‍ चाहक कपपर गेलनि‍। मुदा चाहक कपपर नजरि‍ नै अँटकि पोथीक आलमारीपर पहुँच‍‍ गेलनि‍। अखनुक जे जि‍नगी अछि से आइ धरि‍ किए ने बुझलौं? जौं अपने नै बुझलौं तँ जि‍नगी भरि‍ पढ़ौलि‍ऐ की? आकि‍ दि‍मक बनि‍ पोथीकेँ माटि‍ बनौलि‍ऐ? तैबीच ब्‍लड-पेसरक जोर पबि‍ते गरजला-
एकटा गोटी खाइमे केते देरी लगैए।‍
पति‍क बात सुनि‍ लालमनि‍ बूझि‍ गेली जे ब्‍लडपेसरक झोंक छियनि। औगताइते कोठरीमे आबि‍ मुस्‍की दैत आलमारीसँ गोटी नि‍कालए बढ़ली। गोटी नि‍कालि‍, गि‍लासमे जगसँ पानि‍ लऽ पति‍क हाथमे दैते रहथि‍ आकि‍ सि‍रमाक बगलमे मोबाइल टनटनाएल। गुलाब हाँइ-हाँइ कऽ गोटी मुँहमे लैत पानि‍ गुलगुलबैत मोबाइलपर हाथ बढ़ौलनि‍। मोबाइल उठा नम्‍बर देखलनि‍। बेटा-लीलाकान्‍तक नाओं देखि‍ पत्नी दि‍स मोबाइल बढ़बैत बजला-
ननुगर बेटाक फोन छी। लिअ...।‍
प्रोफेसर गुलाब अपनाकेँ बेटा रूपमे देखलनि‍। मन पड़लनि‍ माए-बाप। की जि‍नगी छल, की आइ अछि। जाधरि‍ पि‍ता जीबै छला परोपट्टाक कि‍सानक-समाज रूपी समुद्रमे बसल छला। माल-जालसँ लऽ कऽ बीआ-बालि‍ धरि‍क कारोबार छेलनि‍। लेब-देब छेलनि‍। सोझहे लेब-लेब नै छेलनि‍। लेब-लेबसँ बेसी देब-देब छेलनि‍। खीड़ा-झि‍ंगुनी आकि‍ नव कोनो अन्न, फल-फलहरी होइ, बीआक मूल्‍य कहाँ लइ छेलखि‍न। मुदा हमरा कोन दुर्मतिया चढ़ि‍ गेल जे एक तँ कौलेजक नोकरी भेटल तैपर सँ पि‍ताक देल घर-घराड़ी धरि‍ उजाड़ि‍ देलौं। की हम दरमाहाक पाइसँ जीवन नै चला सकै लौं। तरे-तर अपन पछि‍ला वि‍चारपर सेवा-नि‍वृत्त‍ प्रोफेसर गुलाब गरमा गेला। मुदा जहि‍ना खढ़-पातक धधरा धुधुआ कऽ उठैत आ लगले पझा कऽ तेहेन छाउर बनि‍ जाइत जेकरा हवाक सि‍हकी‍ओ उड़ि‍या दैत, तहि‍ना लगले मन खढ़क झोली जकाँ ठंढा गेलनि‍। मन घुमलनि‍, कि‍छु मजबुरीओ भेल। एक तँ परोपट्टामे बहरबैया जमीनपर लड़ाइ सुनगि‍ गेल, दोसर अपन पि‍तियौत कारी भायकेँ बटाइ खेत करए कहलि‍यनि‍ तँ कहलनि‍ जे एक बाबाक अरजल सम्‍पति‍‍ छी, सेहो किनल नै दान देल, तइ जमीनक उपजा बाँटि‍ बटेदार बनब। अहाँ कि‍यो आन छी। जहि‍ना सभ दि‍नसँ एक परि‍वार बनल रहल अछि तहि‍ना रहत। जखने हम बाँटि‍ कऽ देब तखने बटेदार भऽ जाएब। कि‍सान जौं बटेदार भऽ जाए तँ ओकर प्रति‍ष्‍ठा बँचलै केना। पावनि‍-ति‍हारसँ लऽ कऽ परि‍वारि‍क काज-उद्यम धरि‍ जहि‍या गाममे रहब अपन परि‍वारक समांग जकाँ रहब। मौका-मुसीबतमे दरभंगा जाएब तँ अपन घर जकाँ हमहूँ रहब। कहलनि‍ तँ वि‍चारणीय बात मुदा से उचि‍त भेल? बाजारक चमक-दमक देखि‍ अपनो मन उधियाएल। महग बूझि‍ घराड़ीओ बेचि‍‍ मकान बना शेष बैंकमे रखि‍ लेलौं। फेर‍ मन घुमलनि‍, की आजुक बाजारवादक नींव हमहीं सभ ने तँ देलौं। आइ की देखै छी, भरि‍ मन चाहो नै पीब‍ सकलौं। हुनके (पत्नीए) की‍ दोख देबनि‍, तीन दि‍नसँ बाजारमे करफू लगल अछि। दोकान-दौरी, चट्टी-बट्टी सभ बन्न अछि। सौंसे बाजार भकोभन लगैए। बंदूकधारी पुलि‍स आ पुलि‍सक गाड़ी छोड़ि‍ सड़कपर अछिए की‍‍? पनरहे दि‍न मेहतरक हड़ताल भेल, गंदगीसँ बाजार भरि‍ गेल। बिमारीक प्रकोप बढ़ि‍ गेल। तहि‍ना पानि‍क अछि। ताड़ी-दारू, चोरी-डकैती, लूट-पाट, अपहरण तँ आम भऽ गेल अछि। एक दि‍स गाम छोड़लौं, दोसर दि‍स बेटा-पुतोहु राँचीमे सभ बेवस्‍था कऽ लेलक। दुनू परानी रोगसँ अथबल बनल छी, केना दि‍न कटत? की अछैते औरूदे पराण ति‍यागि‍ ली? हे भगवान जनिहऽ तूँ?
जहि‍ना पूसक ओस सदति‍ काल प्रकृति‍केँ ठंढ़ बनौने रहैए तहि‍ना हृदए शीतल भऽ गेलनि‍। पत्नी दि‍स आँखि‍ उठा कऽ देखली तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जहि‍ना हमर मन जि‍नगीसँ नि‍राश भऽ कानि‍ रहल अछि तहि‍ना हुनकर (पत्नीक) मन बेटाक फोन सुनैले कोढ़ी सदृश बि‍हँुसि‍ रहल छन्हि। मन आरो बेथि‍त भऽ गेलनि‍। जहि‍ना श्‍मशानक बरि‍यातीक मन खाएब-पीब‍सँ हटि‍ मृत्‍युक घाटपर बैस‍ गंगा (नदी, सरोवर) मे डुम दऽ पवि‍त्र होइले कछमछाइत तहि‍ना प्रोफेसर गुलाबबाबूक मन जि‍नगीक घाटपर बौआ गेलनि‍। पुष्‍कर (राजस्‍थान) जकाँ अनेको घाट। उन्‍मत्त मन आलमारीक पोथी दि‍स पड़लनि‍। सतरहम शताब्‍दी धरि‍ अर्थशास्‍त्र-राजनीति‍शास्‍त्र सझि‍या भाए छल। संगे-संग जीवन-यापन करै छल। से भीन भऽ गेल। हम सभ खुट्टा गाड़ि‍ राजनीति‍शास्‍त्रकेँ धेलौं। गामसँ लऽ कऽ दुि‍नयाँ भरि‍केँ अधि‍कार-कर्तव्‍य  सि‍खबै छि‍ऐ मुदा जइ अवस्थामे अखनि दुनू परानी जीब‍ रहल छी ओ कोन अधि‍कार-कर्तव्‍य छी? की बारह बजे राति‍मे डाक्‍टर ऐठाम जा सकै छी? जौं से नै हएत तँ की रोग (बिमारी) हमरा मुकदमाक तारीख जकाँ भरि‍ राति‍क मोहलत दऽ देत?
जि‍नगीक काँट-कूश फानि‍ लालमनि‍ मोबाइल कानमे सटौने पति‍सँ फूट भऽ सुनैक वि‍चार केलनि‍। मुदा मुहसँ नि‍कलि‍ गेलनि‍-
बौआ, नूनू।‍
हँ, हँ। पाँचम दि‍न बौआ- कल्‍पनाथक मूड़न छी।
टाबर हटने लाइन कटि‍ गेलनि‍। मुदा लालमनि‍ से नै बूझि‍ सकली। बूझि‍ पड़नि‍ जे कम जोरसँ बजने नै सुनैए। छातीसँ जोर लगा जोर-जोरसँ बाजए लगली-
सभ प्राणी नीके छह कि‍ने?
प्राणीक नाओं सुनि‍ कोठीक चाउर जकाँ प्रोफेसर गुलाबक मन गुमसरए लगलनि‍। जहि‍ना सड़ल आ नीकक बीच अपन-अपन सेनाक बीच रणभूमिक‍ दृश्‍य होइए‍ तहि‍ना गुलाबोबाबूकेँ भेलनि‍। मुदा जहि‍ना बेटा-पुतोहुपर खौंझ उठल तहि‍ना पत्नीक अनभि‍ज्ञता (मोबाइल नै बूझब) पर हँसी सेहो लगलनि‍। पत्नीक हँसी दौगल आबि‍ हृदैकेँ सूतल आदमी जकाँ डोलबए लगलनि‍। मुहसँ नि‍कललनि‍-
सभ प्राणीक कुशलमे अपनो लगा कऽ कहलि‍यनि‍ आकि‍ अपनाकेँ छोड़ि‍?‍
बाजि‍ तँ गेला मुदा लगले मन धि‍क्कारए लगलनि‍। पत्नी अज्ञानी रहि‍ गेली, तइमे हमर कोनो दोख नै‍? दि‍नमे डेरासँ बाहर रहै छी मुदा बाँकी समए...।
अपने कएल लोककेँ काज अबै छै। जेते अपना दि‍स देखथि‍‍ तेते ओझरी लगए लगलनि‍। एक कालखंडक पढ़ल-लि‍खल कर्त्ता (परि‍वारसँ लऽ कऽ समाज धरि‍) रहि‍तो‍ आइ धरि‍ एकरा (ऐ‍ वि‍षयकेँ) बुझैक कोन बात, जे मनोमे नै उठलनि‍। मन कानए लगलनि‍।
अपने रोपल गाछी भुताहि‍ भऽ गेलनि‍। दलकैत मनमे भाव उठलनि‍- गाछी तँ फूल-फलसँ लऽ कऽ बगुर धरि‍क होइए‍ मुदा कहबैत तँ सभ गाछीए अछि‍। तहि‍ना तँ जि‍नगी‍ओ अछि। भदबरि‍या अन्‍हार जकाँ इजोत केतौ देखबे ने करथि‍। तैबीच पत्नी मोबाइल बढ़बैत कहलकनि-
देखियौ ते, की भऽ गेलै। बजबे ने करैए।‍
पत्नीक बात सुि‍न पुन: प्रोफेसर गुलाबक मनमे आशा जगलनि‍। हाथमे मोबाइल लऽ कहलखि‍न-
टाबर चलि‍ गेल। तँए नै अवाज अबैए। फेर टाबर आैत तँ अवाजो आैत।‍
लालमनि‍ टाबर बुझबे ने करथि‍। बजली तँ कि‍छु नै मुदा जहि‍ना दोकानसँ कोनो वस्‍तु झोरामे अनैत काल, झोरा मसकि‍ गेलासँ वस्‍तु गि‍रए लगैत तहि‍ना मनसँ पति‍पर भेल आक्रोश सस‍रए लगलनि‍। गुलाबबाबूक मनमे एलनि‍, पाँचम दि‍न पोता- कल्‍पनाथक मूड़न छी। मूड़न की छी संस्‍कार छी। संस्‍कार तँ समाजमे भेटै छै, देल जाइ छै। राँची समाज आ मि‍थि‍ला समाज तँ एक नै छी। तहूमे शहरक समाज तँ आरो गजपट भऽ गेल अछि। पुन: मोबाइलमे रि‍ंग भेल। रि‍ंग होइते पत्नीकेँ कहलखि‍न-
आबि‍ गेल टाबर। लिअ।‍
पाँचम दि‍न कल्‍पनाथक मूड़न बैष्‍णो देवी स्‍थान (कश्‍मीर)मे रखने छी। अहाँ दुनू गोटे (माता-पि‍ता) भोरुके गाड़ी पकड़ि‍ चलि‍ आउ। परसूक्का टि‍कट बनबा देने छी।‍
बेटाक फोन सुनि‍ प्रोफेसर गुलाबक छाती छहोछि‍त्त भऽ गेलनि‍। मुँह मलि‍न, नोरसँ ढबकल आँखि‍, देहक पानि‍ उतरल, मन्‍हुआएल स्‍वरमे लालमनि‍केँ कहलखि‍न-
कनी मोबाइल लाउ।‍
मोबाइल दइसँ पहि‍ने लालमनि‍ बेटाकेँ कहलनि‍-
बाउ, बाबूसँ गप्‍प करह।‍
बौआ।‍
हँ बाबू। अपने असि‍रवाद देबै...।‍
पोताकेँ असि‍रवाद देबाक बात सुनि‍ गुलाबकेँ वकार नै फूटलनि‍। हुचकी‍क अवाज सुनि‍ लीलाधर पुछलकनि‍-
अपने कनइ किए...।‍
खखसैत गुलाबबाबू बजला-
मोबाइल छोड़ि‍ असि‍रवादो केना दऽ सकब। तीन दि‍नसँ‍ बाजारमे करफू लगल अछि। सि‍पाहीसँ सड़क भरल अछि। एहेन स्‍थि‍ति‍मे घरसँ केना नि‍कलब।
कौलेजोमे छुट्टी लऽ नेने छी। टि‍कटो कटा नेने छी तहन...?

mm

No comments:

Post a Comment