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Tuesday, December 31, 2013

पाइक मोल

हथिया नै बरसने वाड़ी-झाड़ीक काज अगते शुरू भऽ गेल। काल्हि‍ कोजगरा छी। ओना समए रौदि‍याह जकाँ भऽ गेल अछि‍। मुदा समैओक (मासोक) तँ अपन गुण-धर्म होइ छै। चटाएल ओस रहि‍तो जमीनमे ठंढ़ तँ पसरि‍ए गेल अछि‍। भोरुका सुरूजक जे सोहनगरता एबा चाही से तँ आबिए गेल अछि‍। बाध-बोनमे भलहिं रौदी बूझि पड़ैए, मरहन्ने-मरहन्ना देखि‍ पड़ैए मुदा बोन-झाड़क रूप तँ ओते नहियेँ बि‍गड़ल अछि‍। तहूमे जाड़क उसरन थोड़े छी जे पालाक पल्‍ला पड़ि ठि‍ठुरल रहत, वरसातक ने उनाड़ी छी! सरलो भुन्ना तँ रहुक दुना! लत्तीओ-फत्ती आकि‍ झाड़ो-झूड़ जे अगते अर्थात् वरसातसँ पहिने पुरना वस्‍त्र बदलि‍ नव वस्‍त्रक संग नव कलशक नव मुड़ीमे नव फूलक संग नव फलोक जोरन तँ जोरनाइए गेल अछि‍। नव सुरूजक संग रवि‍कान्‍त नव दि‍नक नव काज दि‍स नजरि‍ उठौलनि‍ तँ देखि‍ पड़लनि‍ जे दारीमक वाड़ी जाएब जरूरी अछि‍। केते रंगक कीड़ी-मकौड़ी, उपद्रव शुरू कऽ देने हएत। बि‍ना कि‍म्‍हरो तकने ओ दारीमक वाड़ी वि‍दा भेला। वाड़ीक मुहाँनीबला गाछपर नजरि‍ पड़ि‍ते दीपकक चि‍ट्ठी मन पड़लनि‍। मन पड़लनि‍ दुर्गापूजाक छुट्टीमे आएल सि‍नेहकान्‍त। कलशथापने दि‍न चि‍ट्ठी देने छल। जइमे लि‍खल छेलै जे बीसम दि‍न परीछाक फर्म भराएत, कौलेजक पछि‍लो बाँकी जे अछि‍ सेहो लागत। नाओं लि‍खौला पछाति‍ एको-पाइ देनौं ने छेलि‍ऐ। दारीमक वाड़ीसँ चोटे घूमि‍ रवि‍कान्‍त दरबज्‍जाक चारक ओलतीक बत्तीमे खोंसल चि‍ट्ठी नि‍कालि‍ दोहरा कऽ पढ़लनि‍। परीछाक फर्म भराएत तइले पाइक ओरि‍यान करब छेलनि‍। ईहो लि‍खल छेलनि‍ जे दीपक अपने गाम आबि‍ मात्रि‍कक कोजगरो पूरि‍ लेत आ तेसर दि‍न आपसो भऽ‍ जाएत। ओना केते पाइक ओरि‍यान करब अछि‍ से स्‍पष्‍ट नहि‍येँ अछि‍ मुदा बेटाक पढ़ाइक अंति‍म घड़ीमे कि‍छु बजलो तँ नहि‍येँ जा सकैए। तहूमे कौलेजक आखि‍री परीछा छि‍ऐ। अंति‍म परीछा मनमे अबि‍ते रवि‍कान्‍तकेँ खुशी उपकलनि‍। बेटाक स्‍नातक भेने परि‍वारक अगि‍ला सीढ़ीक एकटा पजेबा जोड़ाएत। एक पजेबा जोड़ेने एक सीढ़ीक रूप बनि‍ जाइए। तेतबे कि‍ए, ई की नै भेल जे साधारण पढ़ल-लि‍खल बाप, बेटाकेँ स्‍नातक बना दुनि‍याँक बीच ठाढ़ सेहो करत। स्‍नातक तँ स्‍नातक होइए। जेकरा राज-काज चलबैक बुधि‍ भऽ जाइ छै। ख्‍ाैर जे होउ, जेहेन मन मारि‍ मेहनति‍ करत तेहेन बनत। अपन जे कर्मक संकल्‍प दुनि‍याँक संग छल से तँ अबस्‍से पूर्ति हएत। जि‍नगीमे सभकेँ अपन-अपन दायि‍त्‍व होइ छै, तेकरा जे जेहेन संकल्‍पक संग पूर्ति करैए से तेहेन बनि‍ ठाढ़ होइए।
कोजगरा दि‍नक सुरूज उठि‍ कऽ एक बाँस ऊपर भेला, करीब आठ बजैत। दीपक गाड़ीक स्‍टेशनसँ गामपर पहुँचल। जहि‍ना दीपकक मनमे तेल-बातीक जोगाड़क वि‍चार मर्ड़ाइत तहि‍ना रवि‍कान्‍तोक मनमे ओही तेल-बातीक चि‍ड़ै चकभौर लैत रहए। दीपककेँ देखि‍ते रवि‍कान्‍त बजला-
बाउ, तोरे बात मनमे घुरि‍-फीरि रहल अछि‍ बहुत दि‍न जीबह।
ओना पि‍ताक असि‍रवादसँ दीपकक मनमे मि‍सिओ भरि‍ हलचल नै उठल, कारणो स्‍पष्‍टे अछि‍। शब्‍दवाण अकास मार्गसँ छोड़ल जा सकैए मुदा कर्मवाण तँ धरतीए पकड़ि‍ चलत। पएर छूबि‍ प्रणाम करब तँ बि‍ना स्‍पर्श भेने नहि‍येँ भऽ सकत। ओना दुनू हाथ जोड़ि‍ शब्‍दवाणो चलैत अछि‍ मुदा ओ अपना सीमामे। पिता-पुत्रक बीचक जे सीमा होइ छै ओ बि‍ना स्‍पर्श भेने जँ हएत तँ हाथक आँगुरक अधि‍कारक हनन हएत। आँगुरोक अपन कर्मभूमि‍ छै जे रणभूमि‍सँ रंगभूमि‍ धरि‍ पहुँचबैत अछि‍।
लग अबि‍ते दीपक पि‍ता-रवि‍कान्‍तकेँ गोड़ लागि‍, बाजल-
बाबू, काल्हि‍ चलि‍ जाएब। पाँचे दि‍न फर्म भरैक बाँकी अछि‍ संगे...?”
पीठपर हाथ दैत रवि‍कान्‍त बजला-
एना कि‍ए अधे मुहेँ बजलह। जे खगता तोरा हेतह, ओकर पूर्ति जहाँ धरि‍ सम्‍भव हएत, ओ करब अपन संकल्‍पक अंग बुझै छी। मुदा हम तँ पीठेपर ने रहबह, असल काज तँ तोरे हाथ रहतह। तइले जे सम्‍भव हएत तइमे पाछू नै हएब, तेतबे आश ने हमर करबह। अच्‍छा ई कहऽ जे केना-केना कार्यक्रम बना आएल छह?”
दीपक-
मामाकेँ तँ अपन परि‍वारमे काज नहियेँ छी, वएह हकार देलनि‍, तँए हुनका राति‍मे पूरि‍ काल्हि‍ भोरे गाम चलि‍ आएब, भरि‍ दि‍न गाममे रहब, परसुका गाड़ी पकड़ि‍ लेब। तीनिए मास परीछाक अछि, अखनि‍ एम्‍हर-ओम्‍हरमे समए गामाएब नीक नै हएत?”
दीपकक बात सुनि‍ रवि‍कान्‍त बजला-
भने एक दि‍न पहि‍ने आबि‍ गेलह। कि‍छु पाइ तँ अपना हाथमे अछि‍ मुदा तोरा केते चाही, से तँ खोलि‍ कऽ कहबह, तखने ने आरो ओरियान करब।
पिताक प्रश्न सुनि दीपक ठमकि‍ गेल। ठमकैक कारण भेल जे फर्म भरैक हि‍साब तँ बूझल अछि‍ मुदा कि‍छु नव पोथी कीनैक ने ठेकान अछि‍ आ ने सबहक दामे बूझल अछि‍। अखनि‍ धरि‍ तँ एके सेट कि‍ताबसँ काज चलेलौं, मुदा परीछा तँ परीछा होइ छै। तइले सीमि‍त दायरासँ बाहर हुअए पड़ै छै। मुदा लगले मनमे संतोख उठि‍ गेलै, बाजल-
तीन मास परीछामे शेष अछि‍ कोर्सक जे एक लेखकक पोथी अछि‍ ओ तँ अछि‍ए तइसँ बेसी पढ़ले केते जा सकैए, सेहो कि‍छु कीनब।
नव पोथीक नाओं सुनि‍ रवि‍कान्‍तक मनमे उठलनि‍, केहेन हएत जे भोजक बेर कुमहर रोपल जाएत। मुदा धड़फड़मे कि‍छु बाजबो उचि‍त नै हएत। जे काज जे करैए वएह ने ओकर भूतसँ भवि‍स धरि‍ गौर करत। दोसर तँ अनाड़ीए भेल। अनाड़ीओ तँ एके रंगक नहियेँ होइत। कि‍यो बूझल-गमल अनाड़ी तँ कि‍यो बि‍नु बूझल-गमल हेबे करैत। ओना अपनो साक्षर छी मुदा स्‍नातक धरि‍ तँ नै जनै छी। तँए बूझल-गमल नै बि‍नु बूझल-गमल भेलौं। ओह! अनेरे मनकेँ औनाबै छी। दीपक कि‍यो आन छी, कि‍ए ने सभ बात पुछिऐ कऽ बूझि‍ ली। बजला-
बौआ, हम तँ अपनो केलौं आ अनको देखैत एलि‍ऐ जे पढ़ाइ शुरू होइये समैमे सभ कि‍ताप-काँपी कीनि‍ लइ छेलौं आ भरि‍ साल पढ़ि‍ कऽ परीछा दइ छेलौं, तँू किए...?”
पि‍ताक पश्न सुनि‍ दीपककेँ दुख नै भेल एक वि‍चार मनमे उठल। वि‍चार ई जे काेर्समे कि‍छु पोथी शासन पद्धति‍क अनुसार चलैत आ कि‍छु अलग। वि‍षय एक रहि‍तो भि‍न्न-भि‍न्न लेखकक वि‍चारधारामे कि‍छु दूरी रहने वि‍षयक पोथीमे सेहो कि‍छु दूरी बनि‍ जाइ छै, तैसंग शि‍क्षको बीच कि‍छु-ने-कि‍छु रूपमे पढ़ेबा समए अपन वि‍चार प्रस्‍फुटि‍त होइते रहै छै, मुदा पढ़नि‍हार तँ कोरा कागत रहैए जइसँ मन-मस्‍ति‍ष्‍कमे कि‍छु-ने-कि‍छु भि‍न्नता आबि‍ऐ जाइत अछि‍, तहूमे वि‍चारक भिन्नता काँपी जाँच करबा समए सेहो मुड़ीआरी दइते रहैए जइसँ कि‍छु प्रभाव पड़ि‍ते छै, तँए आनो-आन लेखकक पोथी परीछा लेल जरूरी भऽ जाइए। वि‍द्यार्थी तँ नि‍ष्‍पक्ष ढंग यएह ने कऽ सकैए जे फुटा-फुटा वि‍चारक व्‍याख्‍या करत। तइले आनो-आन पोथी पढ़ब अछि‍ए तखनि‍ ने परीछाक तैयारी भेल। कि‍ए ने पि‍तोजीकेँ अपन वि‍चार सुना दि‍यनि‍। बाजल-
बाबूजी, कि‍छु आनो-आन लेखकक पोथी परीछामे देखब जरूरी बूझि‍ पड़ैए, पोथी तँ अनेको लेखकक अनेको छै मुदा जे चलनि‍मे अछि‍ तेकरा देखि‍ लेब तँ जरूरीए अछि‍ कि‍ने, तँए कि‍छु नव पोथी कीनब अछि‍।
दीपकक बात रवि‍कान्‍त बूझि‍ गेला। मुदा कम पाइबलाकेँ अधि‍क पाइक खर्चबला काज गरूगर भाइए जाइ छै, जे रवि‍कान्‍तोकेँ भेलनि‍। मुदा वि‍चारोक तँ अपन समुद्र छै जइमे रंग-रंगक हि‍लकोर उठि‍ते रहै छै। मनमे दोसर वि‍चार उठि‍ गेलनि‍। उठि‍ गेलनि‍ ई जे जखनि‍ ओकरे इमान बुझतै जे भाँग पढ़ै छी आकि‍ बथुआ। अपन काज एतबे भेल जे जे खर्च कहत से देबै। कि‍यो व्‍यायाम आकि‍ मनोरंजनक वि‍न्‍यासकेँ जीवि‍के बूझि‍ लेत तेकर हम की करबै। समगम होइत रवि‍कान्‍त बजला-
बौआ, फुटा-फुटा कऽ सभ काजक खर्च बुझा दैह, तइ हि‍साबसँ पाइक ओरि‍यान कऽ देबह। ई नै जे झाँपल-तोपल तहूँ बाजह आ हमहूँ दि‍अ। तइसँ काजमे बेवधान हेतह। घटी-बढ़ी भऽ जेतह। आगूसँ जे काज करबह ओ बढ़ि‍ जेतह आ पछि‍ला छूटि‍ जेतह। जइसँ काजमे खाँच औतह। काजेक खाँच जि‍नगीकेँ खोंचाह बनबैए।
पि‍ताक प्रश्न सुनि‍ दीपक असमनजसमे पड़ि‍ गेल जे नापल-जोखल काज अछि‍ ओकरा तँ स्‍पष्‍ट बाजि‍ सकै छी मुदा बि‍नु नपलो-जोखल काज तँ अछि‍ए। तखनि‍? तखनि‍ की, दू श्रेणीक काज बना बाजल-
कौलेजमे तीन हजार लगत, महि‍नाक खर्चा बुझले अछि‍ तखनि‍ नव पोथी लेल अन्‍दाजेसँ काज चला लेब।
दीपकक बात रवि‍कान्‍तकेँ जँचलनि‍। बजला-
छह-सात हजारसँ काज चलि‍ जेबा चाही।
उत्‍साहि‍त होइत दीपक बाजल-
जँ कनी-मनी घटबे करत तँ मोबाइलसँ कहि‍ देब अहूँ एटीएममे पठा देब।
सोझ-साझ रस्‍ता देखि‍ रवि‍कान्‍तक मनमे काजक अँटकार तँ भऽ गेलनि‍ मुदा हाथमे केते अछि‍ आ केते ओरि‍यान करए पड़त से अँटकार लगबैक वि‍चार उठलनि‍।
मने-मन रवि‍कान्‍त खर्चक अँटकार लगबिते रहथि आकि पत्नी-चन्‍द्रावती आबि झटकि बजली-
रस्‍ता-पेराक थाकल-ठहियाएल बच्‍चा आएल अछि पहिने कि‍छु मुँहमे कहाँसँ दैत तँ अपन रमा-कठोला सुनबए लगलिऐ। बातो केतौ पड़ाएल जाइ छेलै जे पहिने सएह पसारि‍ देलि‍ऐ।
चन्‍द्रावतीक वि‍चारक मोड़ कनी आगूए रहनि‍ तैबीच दीपक निहुरि कऽ पएर छूबि गोड़ लगलकनि‍। पछिला बातकेँ ब्रेकलेल साइकि‍ल जकाँ एकाएक रोकि, असिरवादक प्रमुखता बुझैत बजली-
अखनि‍ हाथी सन दुनू परानी जीवि‍ते छी।
माएक बात जहि‍ना दीपककेँ उत्‍साह भरलक तहि‍ना रवि‍कान्‍तक उत्‍साहकेँ दबलक। दबलक ई जे जइ काजसँ दीपक आशा बान्‍हि‍ आएल अछि‍ ओकरा आगू केना जीवि‍त राखल जाए ओ बि‍ना बुझने केना हएत? बूझल रहत तखनि ने अखनेसँ लागि‍ ओकरा पुरबैक परि‍यास करब आकि गुमे-गुम रहि, जेबा काल बाजत जे एते पाइक काज अछि‍। कोनो कि‍ अपना हाथमे कागतक रूपैआ छपैक मशीन अछि‍ जे बटम दाबि देबै आ हरहरा कऽ खसत। अपना हाथक तँ ओहन मशीन अछि‍ जे काज रूपमे जनम लऽ समैक संग चलैत समायानुसार दैत। मुदा ई तँ भेल बुझनि‍हार लेल, कम बुझिनि‍हार आकि‍ नै बुझनि‍हार लेल तँ दोसर उपए अछि‍। बेटा सोझहामे जँ ओ बजली तँ उचि‍त बजली, अपन अधि‍कारक प्रयोग केलनि‍। अपन अधि‍कार ई जे जन्‍मेसँ बच्‍चाक खेबा-पीबाक माने पेट-भरैक भार हुनके ऊपर छेलनि‍, जइसँ भूख अबै-जाइक बाट बुझै छथिन। ठीके कहलनि‍ जे मुजफ्फरपुरसँ अबैमे चारि‍-पाँच घंटाक समए लगले हेतै, तहूमे चुल्हि‍क ओरि‍यानक आदति‍ लगले छन्‍हि‍। आदति‍ ई जे भानसक बेर उनहल जाइए घरमे नून नै अछि‍ आ अहाँ अपना तालमे बेताल छी। खैर जे होउ, मुदा ई बात दाबिओ कऽ राखब परि‍वार लेल नीक नहियेँ भेल। बजला-
दीपक केतए आएल, किए आएल से जँ अबि‍ते नै पुछि लेति‍ऐ, तखनि समैपर ओकर ओरि‍यान केना होएत?”
पति‍क बात सुनि चन्‍द्रावती ठमकली। मन पड़लनि‍ पावनि‍क उपास। दीपककेँ खाइमे कनी अबेर भेल हेतै, मुदा अपनो तँ पावनि‍क व्रत भरि‍-भरि‍ दि‍न सहि कऽ करि‍ते छी। कहाँ पराण छूटि जाइए। तहूमे की दीपकक रस्‍ता-बाटक दोकान-दौरी आकि‍ इनार-कल बन्न भऽ गेल छेलै। रस्‍ता-बाटमे तँ लोककेँ अपने आशापर ने चलए पड़ै छै। कि‍यो जे केतौ जाइए तैठाम जँ संगबे रहल तँ तेकर आशा भेल जँ सेहो नै रहल तँ अपने आशा करि‍ कऽ ने चलए पड़ै छै। एना मुँह झाड़ि बेटा आगू बाजब नीक नै भेल।
चन्‍द्रावतीक मनक ग्‍लानि‍ रवि‍कान्‍त बूझि‍ गेला। बूझि एना गेला जे मुँहक ठोर सिकुड़ए लगलनि‍। मुदा बेटा सोझहामे किछु अनर्गल बाजबो उचित नै बूझि, बात बदलैत बजला-
पाँच हजार रूपैआ जे रखैले देने रहौं, से तँ हेबे करत किने? बच्‍चाकेँ हजार-पान सए आगर करि कऽ नै देबै तँ आनठाम केकर मुँह ताकत?”
रूपैआक हि‍साब सुनि‍ चन्‍द्रावती सकपकेली। अखनि‍ धरि‍ जे खर्च पति‍केँ कहै छेलखि‍न, रवि‍कान्‍त घरक खर्च बूझि‍ टोक-चाल नै करै छेलखि‍न मुदा आइ! बेटाक पढ़ैक ओरि‍यान करब अछि‍, जहि‍ना पाइ-पाइक खर्च हएत तहि‍ना ने पाइ-पाइक ओरि‍यानो करब अछि‍। बजली-
एक हजार तँ खर्च भऽ गेल?”
पत्नीक खर्च सुनि रवि‍कान्‍त ठमकि गेला। मनमे उठलनि‍ जे जहिये मातृनवमी-पि‍तृपक्ष (आसीनक पहिल पख) चढ़ल तही दि‍न बजारसँ महिनो दिनक सभ खर्चक ओरियान कइए देने छेलियनि‍, तखनि‍ खर्च केतए कऽ लेलनि‍। पचास रूपैआ फुटा कऽ दसमी मेला देखैले देनौं रहियनि‍। तखनि? बजला-
कथीमे खर्च भऽ गेल?”
उत्साहि‍त होइत चन्‍द्रावती बजली-
दुर्गा-पूजाक नमियेँ दिनक मेलामे एक हजार उठि गेल।
पत्नीक बात सुनि‍ रवि‍कान्‍त बजला-
अखनि छठि पावनि‍केँ बीसो दि‍नसँ ऊपरे अछि तखनि‍ एते अगुरवार किए कीनि‍ लेलौं? अच्‍छा ई कहू जे की सभ कीनलौं?”
चन्‍द्रावती-
चारि‍टा कोनि‍याँ, सूप, डगरी, छि‍ट्टा, कूर, हाथी, इत्‍यादि‍ ने कीनि‍ लेलौं।
मने-मन रवि‍कान्‍त हि‍साव जोड़ि‍ अँटकारि‍ लेलनि‍, मुदा अनेको प्रश्न एक संग उठि‍ गेलनि‍। सोझहामे बेटा-दीपककेँ देखि‍ बाजब उचि‍त बुझलनि‍। काल्हुक पावनि‍ हाथ देखि बजला-
एक तँ कोनियाँक काज सूपेसँ होइ छै तहूमे एकटाकेँ मानलो जा सकैए, ऐ युगमे माटिक हाथीक कोन काज छै आ आब केतए घैलक काज चलैए जे अनेरे पाइकेँ पानि‍मे फेकि‍ देलि‍ऐ?”
पानि‍मे फेकब सुनि‍ चन्‍द्रावती उमकि‍ बजली-
पुरुख-पात्र अहिना पावनि‍क वस्‍तुकेँ दुसै छै।
पत्नीक बात सुनि बेसी तामस करब उचि‍त नै बूझि‍ रवि‍कान्‍त मने-मन वि‍चारए लगला जे काजो तेहेन अछि‍ जे छोड़ब बेबकूफी हएत मुदा जँ अहिना मौका पाबि‍ होइत रहल तखनि‍ जि‍नगीक गाड़ी केना ससरत? लगले दोसर प्रश्न मनकेँ घेरि‍ कऽ पकड़ि‍ लेलकनि‍। घेरि‍ कऽ ई पकड़लकनि‍ जे एक परि‍वार एक पुरुख-नारीक बीच ठाढ़ अछि‍ तैबीच दू रंगक वि‍चार कि‍ए चलि‍ रहल अछि‍। मुदा जे धारा चलि‍ रहल अछि‍ ओहो तँ बरखा पानि‍क धारा नै, स्‍थायी धारक धारा जकाँ अछि! मन ठमकि‍ गेलनि‍। तीनू गोटे दीपक-चन्‍द्रावती आ रवि‍कान्‍त तीनू दि‍स तकैत, मुदा मुँहक बोल सबहक हराएल। रवि‍कान्‍तक मन औनाइत जे जे काज सालतनी छी अदौसँ होइत आएल अछि‍ ओ काज जि‍नगीक गाड़ीकेँ रोकि‍ देत, ई केहेन भेल? जि‍नगी चलबैक काज जि‍नगीए रोकि‍ देत तखनि‍ आगू मुहेँ गाड़ी ससरत केना? लगले आगूमे ठाढ़ दीपकपर नजरि‍ पहुँचिते मनमे उठलनि‍, काल्हिए भरि‍ समए अछि‍ तैबीच दोसर काजमे समए गमाएब उचि‍त नै। जि‍नगीक बहुत पैघ काजक परीछा छी। काल्हि‍ दि‍न बेटाक मुहेँ सुनब केते ग्‍लानि‍क बात हएत जे कहत पढ़ैक खर्च पि‍ताजी नै जुमा सकला तँए आगू बढ़ैमे बाधा भेल। ओना जेकर पिता समैसँ पहि‍ने मरि‍ जाइ छथि‍न, ओ केना पढ़ि‍ पौत। मुदा सेहो तँ नहियेँ अछि‍। जि‍बठ बान्हि‍ पढ़नि‍हार तँ पढ़िए लैत अछि‍। खैर जे होउ, जैठाम एहेन परि‍स्‍थि‍ति‍ बनैए तैठामक प्रश्न ई भेल। ऐठाम तँ से नै अछि‍। अपन मनक अभि‍लाषा अछि‍ जे बेटाकेँ स्‍नातक बना दुनि‍याँक बीच ठाढ़ करी। सघन बोनमे हराएल जकाँ माइक मुँह देखि‍ दीपक बाजल-
बाबूजी, आइ जेते खर्चक पावनि‍ भऽ गेल अछि‍, ओहेन खर्चक पावनि‍ पूर्वज केना बनौलनि‍ जे परि‍वार-लोक तंग होइत रहैए।
दीपकक प्रश्नक गंभीरता रवि‍कान्‍तक मनकेँ ओहिना घकेलि‍ देलकनि‍ जहि‍ना कि‍यो घारक महारपर सँ बहैत बीच धारमे कूदि‍ हेलि‍ कऽ ऊपर आबए चाहैए। मुदा अपन गुरुतर भार देखि‍ रवि‍कान्‍त बजला-
बौआ, तोहर प्रश्न एहेन छह जेहेन मनुख आ मनुखक छापल कागतक चि‍त्र हुअ। अदौसँ रहल जे आजुक श्रमक फल आजुक जि‍नगीक समए छी। तँए कि‍छु बँचा कऽ काल्हि‍ लेल राखब अनुचि‍त भेल, एहेनठाम पावनि‍-ति‍हार केना हएत? मुदा...।
वि‍स्‍मि‍त होइत पि‍ताकेँ देखि‍ दीपक बाजल-
मुदा की?”
एक दि‍स काज दोसर दि‍स अराम कुर्सीक बीच जहि‍ना कि‍यो ठकुआ जाइत तहि‍ना रवि‍कान्‍त ठकुआ गेला। बेटाक जि‍ज्ञासा भरल प्रश्न स्‍वाती नक्षत्रक अमृत बून जकाँ भऽ गेल, जइसँ एक दि‍स मोती बनैत तँ दोसर दि‍स बि‍ष सेहो बनैत अछि। ओना केकरो प्रश्नक उत्तर पाबि‍ जे संतोख होइ छै ओ वएह उत्तर लदलासँ कम होइ छै, तँए दीपककेँ बुझा देब रवि‍कान्‍त जरूरी बुझथि‍ तँ दोसर दि‍स जि‍नगीक एक सीढ़ी टपैक काज देखथि‍। दुनूमे सँ कोनो छोड़बैबला नै। कारण, जँ समैपर पाइक ओरि‍यान नै हएत, फर्म नै भराएत तँ परीछा केना देत? तहूमे अपना हाथमे पाइ कम अछि‍ कोनो ब्‍यौंत करए पड़त। अनका हाथक काजक ठेकाने केते। मुदा दीपको तँ परीछामे बैसैबला वि‍द्यार्थी छी, अखनि‍ जेते ओकरा बरावरीकेँ भरल जेतै, तेते ने परीछामे असान हेतै। ताल-मेल बैसबैत रवि‍कान्‍त बजला-
बौआ, कि‍सानी जि‍नगीमे कि‍सानसँ लऽ कऽ काज केनि‍हार धरि‍ अगहनमे धान घर अनैए। चाहे खेतक उपजा होइ आकि‍ बोइन आकि‍ आरो-आरो उपए, जेना-जेना अगहनक पछाति‍ समए आगू बढ़ैए तेना-तेना खर्च होइत जाइ छै। घटबी होइ छै। भदबारि‍मे जे जे भदइ धान आकि‍ मरूआ होइ छै ओकरा पावनि‍-ति‍हारमे अशुद्ध मानल जाइ छै। दोसर दि‍स आसीनक पनरह दि‍न खएन-पीअनि होइ छै आ अगि‍ला पनरह दि‍न दुर्गापूजासँ कोजगरा धरि‍ होइ छै। तहि‍ना कोजगरा प्रात जे काति‍क चढ़ैए, ओकरा धर्ममास मानि‍ अनेको तीर्थ-वर्त आ पावनि‍-ति‍हार होइ छै। एहेन स्‍थि‍ति‍मे की कएल जाए। मुदा अखनि‍ बेसी कहैक समए नै अछि। केकरो हाथे बच्‍छा बेचि‍ पहि‍ने तोहर काज आगू बढ़ा देबह पछाति‍ कहि‍यो नि‍चेनसँ आगूक बात कहबह।
पति‍क बात सुनि‍ते चन्‍द्रावतीकेँ जेना कोजगराक पुनोचान आ दीपककेँ दि‍वालीक ज्‍योति‍ जगि‍ गेलनि‍।¦¦¦


२२ दिसम्‍बर २०१३

चोरूक्क झगड़ा


आने दि‍न जकाँ भि‍नसुरका चाह पीबए शि‍वशंकर, कि‍सुनदेव, सि‍ंहेश्वर, राधाकान्‍त आ मनोहर एक्केबेर चाहक दोकानपर पहुँचला। पाँचोक जेहने मि‍लान चाह दोकानक तेहने मि‍लान बात-वि‍चारक आ तेहने जि‍नगीक काजोक। ओना पाँचो पाँच टोलक, पाँच जाति‍क मुदा चाहक दोकानक एक्के नि‍अम बनौने जे अपने-अपने चाहक खरचे अपनो पीब आ समाजोकेँ पि‍आएब। भोज हेतै। हि‍साबो सोझराएले, पाँचो गोटे छह-छह दि‍नक भोजक खर्चाक हि‍स्‍सा तीस गि‍लास चाहक दाम एक्केठाम जमा करैत रहथि‍। जइसँ तीसो गि‍लासक दाममे अपनो तीसो दि‍न पीबैत आ चारू संगीओकेँ पीअबैत। ऐ बीचमे एकटा शंका नै करब जे के कहि‍या पीऔलनि‍। बही-खताबला दोकानदार पाहि‍ लगा कऽ नाम बजैत जे आइ फल्लाँक भोज छि‍यनि‍। ओना चाहक दोकान बजारक नै गामक चौक परहक। बजारक दोकानमे सि‍रि‍फ कारोबारक गप-सप्‍प चलैत मुदा गामक चौक अन्‍तर्राष्‍टीय होइत। जैठाम सएओ रंगक गप चलैत। केतो चीलमक चौखड़ी तँ केतौ ताड़ी-दारूक, केतो खेती-पथारीक तँ केतो शास्‍त्र-पुराणक। केतो पार्लियामेंट तँ केतो युनि‍वरसि‍टीक।
तीन दि‍नसँ गुलेति‍या दुनू परानी सौंसे गाम केता बेर भौड़ी दऽ देलक। भौड़ीक दइक कारण रहै जे शुरूहेक जेठुआ लगनमे गुलेतिया कबुतरीकेँ मेलासँ पटि‍या कऽ बि‍आह कऽ लेलक। कुमारि‍ कन्‍या कबुतरी नै बूझि‍ सकली जे दोती बर गुलेती अछि‍। मुदा जखनि‍ कबुतरी सासुर आएल तँ सासुक जगह सौतीनक गारजनीमे फँसि‍ गेल। जहि‍ना पड़बा नव-पुरान खोप नै चीन्‍हि‍ चहरेमे लोभा जाइए तहि‍ना। सौतीनक गारजनी कबुतरीकेँ पसि‍न ऐ दुआरे नै होइ जे जखनि‍ एके घरबलाक दुनू घरवाली छि‍ऐ तखनि‍ ओकर हुकुम कि‍ए मानबै। जहि‍ना ओकर घर छि‍ऐ तहि‍ना ने हमरो छी आ जौं अपन नीक दुआरे हमरासँ काज करा लि‍अए तखनि‍ अपना की रहत।
गुलेति‍या अपने पस्‍त रहए। होइ जे कहुना साँपो मरि‍ जाए आ लाठीओ ने टुटए। झगड़ो फड़ि‍छा जाए आ दुनू घरवालीसँ मि‍लानो रहि‍ जाए। मने-मन सोचए जे बाप-माएक बि‍आह केलहा पहि‍लुका घरवाली छी, जौं कोनो तरहक दुख हेतै आ वेचारी कलपत तँ पड़ि‍ जाएत। हो-न-हो हाथे-पएर लुल्ह भऽ जाए तखनि‍ की धोइ-धोइ चाटब। तँए बि‍आही घरवालीक डर होइ मुदा दोसरसँ ऐ दुआरे डराइत रहए जे, घटकैतीकाल घरवाली लग बाजि‍ गेल रहए जे बि‍आह-ति‍आह नै भेल अछि‍। रस्‍ते-रस्‍ते कबुतरीयो भाँज लगा नेने रहए जे अंगनामे एकटा स्‍त्रीगण छै। मुदा ई भाँज नै पाबि सकल जे सासु हएत आकि‍ सौतीन।
गामक लोक दुनूक बातो सुनि‍ लि‍अए आ अनठाइओ दि‍अए। अनठबैक कारण रहै जे सभ बुझैत जे सँए-बहुक झगड़ा कि‍ए होइ छै। ओना गुलेति‍यो आ कबुतरीयोमे सँ कि‍यो पाछू हटैले तैयारो नै। मरदे जकाँ गुलेतियाे लोक लग बाजे आ महि‍ले जकाँ कबुतरीयो।
तीन दि‍न गामक भौड़ी केला पछाति‍ चाहक दोकानपर गुलेतिया पहुँचल। गुलेतियाकेँ देखि‍ते चाहबला बाजल-
अखनि‍ गाममे केकरो चलती छै तँ ओ गुलेती भायकेँ अछि‍।
ब्रेन्‍चपर बैसल शि‍वशंकर टोनलक-
की चलती गुलेती भायकेँ छन्‍हि‍ हौ?”
मुँह-बनबैत दोकानदार बाजल-
अरे बा, चलती! तेहेन गुलेती भाय छथि‍ जे महाभारतक तीरो छोड़ै छथि‍ आ मेना-पौड़की मारैबला गुल्लीओ।
चाहक दोकानपर बैसल सभ दोकानदारक बात अकानैत मुदा अर्थे ने कि‍नको भेटनि‍। कि‍यो कि‍छु तँ कि‍यो कि‍छु।
तही बीच कबुतरी पहुँचल। गुलेतियाक बि‍ना रोच रखने बाजलि‍-
ऐ मरदाबाकेँ पुछि‍यौ जे अपनाकेँ कुमार कहि‍ कि‍ए बि‍आहि‍ अनलक।
सभ चुप। चुपो केना नै रहता। जखने मुद्दे-मुदालह सोझहामे सवाल-जवाब करत तँ पनचैतीओ अपने कऽ लेत तइले पंचक कोन काज छै। पत्नीक प्रश्नक उत्तर दैत गुलेतिया बाजल-

ई झूठ केना भेल। जैठाम तीस-तीस, चालीस-चालीसटा लोक बि‍आह करैए तैठाम तँ हम दुइएटा केलौं, तइले एकरा लगै कि‍ए छै। काेनो कि‍ हमहींटा अपनाकेँ कुमार कहलि‍ऐ आकि‍ सभ कहने हेतै?” ¦¦¦

Wednesday, October 23, 2013

डाक्‍टर बेटा

डाक्‍टर बेटा

रामकुमार चटिया सभकेँ पढ़ा अँगना एला तँ पत्नीकेँ कनैत देखलनि। देखिते ओ अकबका गेला। पुछलखि‍न-
की भेल?”
पत्नी कनिते कहलकनि-
छि‍टहीसँ बाबूजी फोन केने रहथि‍न, माएकेँ लकबा मारि देलक। बजबो-भुकबो ने करै छै।
रामकुमार पुछलकनि-
कहि‍या लकबा मारलक?”
पत्नी कहलकनि-
परसू रातिमे। बाबूजी बजै छेलखि‍न जे बँचत कि नै तेकर कोनो ठीक नै। अपना सभकेँ परसू रातिएसँ फोन लगबै छेलखि‍न मुदा फोने ने लगलनि।
रामकुमार बाजल-
तखनि तँ आइए छि‍टही जाए पड़त। माएक उमेरो तँ अस्‍सीसँ कम नै हेतनि‍। काेन ठीक कखनि‍ चलि‍ जेती। चलू दस बजीआ बस पकड़ि‍ ली। ओना तँ गहुमक दौनी करब जरूरी अछि‍। रहि-रहि कऽ मेघ अबै छै। जँ बरखा भऽ जाएत तँ बुझू गहुमक खिजानैत भऽ जाएत। थ्रेसरबला शम्‍भु कल्हुका नाओं कहने रहथि‍। मुदा अपना नै रहने दौनी केना हएत। शंभुकेँ फोन लगा कहि दइ छि‍यनि‍ जे हम काल्हि‍ नै रहब अन्‍तए जा रहल छी। ओतएसँ एला पछाति‍ दौन कराएब। अच्‍छा जे हएत से हएत। माएक जि‍ज्ञासा करब तँ जरूरीए अछि‍। हुनका सभकेँ के छन्‍हि‍। एकटा बेटो छन्‍हि‍ जे पटनामे डाक्‍टरी करै छथि‍न, परि‍वार लऽ कऽ ओतइ रहै छथि‍न।
छि‍टहीवाली बजली-
एकटा काज करू, खेखनाकेँ बजा गहुमक बोझ कड़ीआ दि‍यौ आ ऊपरसँ ति‍रपाल ओढ़ा झाँपि‍ दियौ। बरखो हएत तँ नोकसान नै हएत। छि‍टहीसँ कहि‍या आएब तेकर कोन ठेकान।
रामकुमार कहलकनि‍-
ठीके कहै छि‍ऐ। ति‍रपाल तँ अछि‍ए कनी मेहनति‍ करए पड़त। दसबजीआ बस नै पकड़ि‍ बरहबजीआ पकड़ए पड़त। गहुम झाँपल रहने चि‍न्‍ता नै रहत।
सएह केलनि। गहुमकेँ सेरि‍आ झाँपि‍ देल गेल। गौरकेँ पड़ोसीआक जि‍म्‍मा लगा, घरमे ताला मारि‍ दुनू परानी बेटाकेँ लऽ छि‍टही वि‍दा भेला।
  रामकुमार एकटा छोट कि‍सान। मात्र दू बि‍घा खेतक मालिक। ओना तँ एम.ए. पास छथि‍। मुदा बेरोजगार। कतेको बेर सरकारी नौकरी लेल परि‍यासो केलनि‍ मुदा ऐ जुगमे भगवान भेटब असान अछि‍ मुदा सरकारी नौकरी कठि‍न। की करता, खेतीक अलाबा चटि‍या सभकेँ टि‍शन पढ़ा कोनो धरानी अपन गुजर करै छथि‍। परि‍वारमे मात्र तीनिए‍ गोटे। दू परानी अपना आ एकटा दस बर्खक बेटा कन्‍हैया। मालो जालक नाआंेपर एकटा मात्र गौर। पत्नीओ मध्‍यमा परीक्षा पास केने मुदा ऊहो बेरोजगारे। नौकरी हेबो केना करितनि‍। जखनि‍ बी.ए., एम.ए.बला सभ झख मारैए तखनि‍ मैट्रि‍क-मध्‍यमाक कोन गप।
  छि‍टहीवालीक पि‍ता रवि कान्‍त जमानाक मैट्रि‍क छथि‍। हुनका एकटा बेटा आ एकटा बेटी। बेटाक नाआें फूल कुमार आ बेटीक सुमि‍त्रा। रवि‍ कान्‍त रजि‍ष्‍ट्री आॅफि‍समे मुनसीक काज करै छला। पहि‍ने तँ हुनका पाँच बि‍घा खेत छेलनि‍ मुदा आब घराड़ीक अलाबे मात्र दस कट्ठा बँचल छन्‍हि‍। बेटा फूल कुमार पटना मेडि‍कल कौलेजमे डाक्‍टर। नौकरीक अलाबे खानगीओ क्लिनीक खोलने छथि‍। प्राय: पाँच हजारक आमदनी भरि‍ दि‍नक छन्‍हि‍। मुदा एक नम्‍बरक मक्‍खीचूस आ अबेवहारि‍क। बहि‍न-बहनोइसँ कोनो सरोकार नै। माए-बाबू फोन-पर-फोन करैत रहै छन्‍हि‍ मुदा हुनका लेल धैनसन। गाम एबो केना करता। कमतीमे चारि‍ दि‍न तँ लगतै जे बीस हजारक अामदनीपर पानि‍ फेड़त, कहबीओ छै बाप बड़ो ने मैया सभसँ पैघ रूपैआ।
  झलअन्‍हारीमे राम कुमार परि‍वारक संग सासुर पहुँचला। गामक बीचमे सुमि‍त्राक पि‍ताक घर। अँगनामे पच्‍छि‍मसँ पूब मुहेँ एकटा ओ दोसर घर पूबसँ पच्‍छि‍म मुहेँ। ईंटाक देबाल आ ऊपरसँ खपड़ा। अँगनाक उत्तर आ दछि‍नसँ देबाल दऽ घेरल। उत्तरवरि‍ये कातसँ अँगना एबा-जेबाक रस्‍ता। दछि‍नवरि‍या देबालपर एकचारी जइमे भानस-भात होइए। पछवरि‍या ओसारपर चौकी जइपर सुमि‍त्राक माए सूतल छेली। रवि‍ कान्‍त बुढ़ीक पाँजरमे बैसल छला। ओसारि‍क कोरोमे लालटेन टाँगल छल।
  राम कुमार सुमि‍त्रा आ कन्‍हैया अँगना पहुँचला। सभ गोटे रवि‍ कान्‍तक पएर छूबि‍ गोर लगलकनि‍। सुमि‍त्रा बेटी जमाए आ नाति‍केँ देखि‍ रवि‍ कान्‍तक छाती सूप सनक भऽ गेल। ओ कुरसी आनि‍ जमाएकेँ बैसैले देलखि‍न‍। सुमि‍त्रा माएक पाँजरमे जा बैसली। रवि‍ कान्‍त चाह बनबैले चुल्हि‍ पजारए लगला। राम कुमार कहलखि‍न-
बाबूजी, अखनि‍ चाह बनेनाइ छोड़ि‍ देथुन पहि‍ने एतए आबथु।
माएक पाँजरमे बैसल सुमि‍त्रा माएकेँ ि‍हलबैत बजली-
माए, माए। माए गै, माए।
मुदा बुढ़ीक शरीरमे कोनो हरकति‍ नै भेलनि‍। सुमि‍त्राक आँखि‍सँ दहो-बहो नोर जाए लगल। हुनकर बाबूजी कहलखि‍न-
गै बताहि‍। आब माए थोड़े बजतौ। दू-चारि‍ दि‍नक मेहमान छि‍यौ। परसू राति‍मे जे खसलौ से खसलै छौ। कखनो-कखनो आँखि खोलि‍ चारू दि‍स तकै छौ। ठोरो पटपटबै छौ मुदा मुँहसँ अवाज नै नि‍कनि‍ पबै छै।
पि‍ताक बात सुनि‍ सुमि‍त्रा बोम फाड़ि‍ कानए लगली। राम कुमार ससुरसँ पुछलखि‍न-
डाक्‍टर भैयाकेँ फोन नै केलखि‍न?”
रवि‍ कान्‍त जवाब देलकनि‍-
परसूए जखनि‍ अहाँक सासु गि‍रल तखने फूलबाबूकेँ फोन केलौं तँ ओ कहलक, अखनि‍ बड़ बि‍जी छी, घंटा भरि‍ पछाति‍ फोन करब। अहाँ सभकेँ लगेलौं तँ सुइच‍ आॅफ कहलक।
रामकुमार कहलखि‍न-
हँ परसू मोबाइलक बैटरी चार्ज नै रहए। की कहबनि‍, हमरा गाममे ने बि‍जलीए छै आ ने जेनरेटरे। नरहि‍या नै तँ ि‍नर्मली जा मोबाइल चार्ज करबै छी। काल्हि‍ ि‍नर्मली गेल रहि‍ऐ तँ ओतइ चार्ज करौलि‍ऐ। अच्‍छा तँ, राति‍मे डाक्‍टर साहैबसँ बात भेलनि‍?”
रवि‍ कान्‍त कहलखि‍न-
राति‍मे फोन लगौलि‍ऐ तँ सुइच‍ ऑफ कहलक। भि‍नसर भेने जखनि‍ फोन लगेलौं तँ कनि‍याँ उठबैत कहली जे अखनि‍ एकटा रोगीमे लगल छथि‍। बारह बजे करीब फोन करए कहली। बारह बजे फोन केलौं तँ फूलबाबूसँ गप भेल। कहलक, कोनो डाक्‍टर बजा माएकेँ देखा दि‍यनु आ डाक्‍टर जे कहता से हमरा फोनपर बताएब। जौं पाइ-कौड़ीक अभाव हुअ तँ ताबए इंजाम कऽ काज करब पछाति‍ हम पठा देब। चौकपर सोम आ शुक्र दि‍न एकटा डाक्‍टर अबै छथि‍न। ओना तँ हुनकर क्लिनीक सि‍मराही बजारमे छन्‍हि‍ मुदा हाटे-हाट रमण जीक दबाइ दोकानपर रोगी सभकेँ देखै छथि‍न। काल्‍हि‍ सोम रहने डाक्‍टर साहैब लग गेलौं तँ देखलि‍ऐ भाड़ी भीड़। रोगी सभकेँ देखैत-देखैत साँझ पड़ि‍ गेलनि‍। सि‍मराहीओ जेबाक रहनि‍। मुदा रमणजीकेँ कहलि‍यनि‍ तँ डाक्‍टर साहैबकेँ कहलखि‍न जे हि‍नको बेटा डाक्‍टर छथि‍न तखनि‍ अपना ऐठाम एला। आला लगा देखलखि‍न, ब्‍लडपेसर सेहो जँचलखि‍न आ कहला जे बढ़ल छन्‍हि‍ जइसँ लकबा मारि‍ देलकनि‍। दबाइ सभ लि‍खि‍ कहलखि‍न चलए दि‍यौ। काल्‍हिसँ आइ धरि‍ दस बोतल पानि‍ चढ़ि‍ गेलनि‍ मुदा कोनो सुधार नै भेलनि‍। खाली कखनो-कखनो आँखि‍ खोलि‍ तकैत रहै छथि‍न जेना केकरो खोजैत हुअ।
ई कहैत कहैत रवि‍ कान्‍तकेँ बुकौर लगि‍ गेलनि‍। आँखि‍सँ टप-टप नोर झहरए लगलनि‍। पि‍ताकेँ कनैत देखि‍ सुमि‍त्रा सेहो कानए लगली। रामकुमार फेरो पुछलकनि‍-
डाक्‍टर भैयाकेँ फेर फोन केलि‍यनि‍ आकि‍ नै?”
रवि‍ कान्‍त कहलखि‍न-
राति‍एमे फोनपर सभ बात बतौलि‍ऐ। तैपर फूलबाबू कहलक, काल्हि‍ दू बजै सि‍मराही जा डाक्‍टर साहैबकेँ सभ बात कहि‍हक। मुदा अपनासँ फूलबाबू फोन कऽ माएक हालति‍ नै पुछलक। जेते बेर फोन केलौं हमहीं केलौं।
बि‍च्‍चेमे सुमि‍त्रा पि‍ताकेँ पुछलखि‍न-
भौजीओ ने फोन केलक?”
रवि‍ कान्‍त बजला-
गै बताहि‍, जौं अपन जनमल नै पुछलक तँ आनक कोन बात। तोरा तँ सभ गप बुझले छौ जे केते कठि‍नसँ ओकरा पढ़ैलौं।
सुमि‍त्रा बजली-
से कोनो हमरा नै देखल अछि‍। अहाँक कमाइसँ पूरा नै भेल तँ माएक सभटा गहना-जेबर बेचि‍ कऽ दऽ देलि‍यनि‍। तहूसँ नै भेल तँ जमीनो बेचि‍ दऽ देलि‍यनि‍। हँ तँ सि‍मराहीवला डाक्‍टर लग गेलि‍ऐ तँ ओ की कहलनि‍?”
रवि‍ कान्‍त बजला-
कहलनि‍ जे लकबा मारने छन्‍हि‍। उमेरो अस्‍सीसँ ऊपरे हेतनि‍ से आब उठब मोसकि‍ल छन्‍हि‍। अपना जानि‍ जे सेवा कऽ सकबनि‍ से करि‍यनु।
  राति‍मे सुमि‍त्रा सबहक खेनाइ बनौलक। खेनाइ खा रामकुमार कन्‍हैया आ रवि‍ कान्‍त सुतैले चलि‍ गेला। सुमित्रा माएक पाँजरमे बैसल छेली। राति‍म एगारह बजे बुढ़ीक शरीरमे हरकति‍ भेल। आँखि‍ ताकि‍ बजली-
बौआ नै आएल? डाकडर बौआ हौ डाकडर बौआ?”
सुमि‍त्रा टोकलकनि‍-
माए हम छि‍यौ, सुमि‍त्रा गोर लगै छि‍यौ।
के, बुच्‍ची? कखनि‍ एलँह? पाहुनो एलखुन हेन?”
हँ ऊहो आएल छथि‍न आ कन्‍हैयौ आएल अछि‍।
तखने रवि‍ कान्‍त एलखि‍न आ राम कुमार सेहो।
गोर लगै छि‍यनि‍ माए।
रामकुमार बुढ़ीक पएर छुबैत कहलखि‍न।
नीक्के रहथु। जुग-जुग जीबथु। डाकडर बौआ नै आएल। आब ओकर मुँह नै देखबै। पोताक देखैक सि‍हन्‍ता नेनहि‍ मरि‍ जाएब।
रामकुमार कहलखि‍न-
हि‍नका कि‍छु नै हेतनि‍। हम भि‍नसरे डाक्‍टर भैयाकेँ फोन कऽ गाम बजाएब।
बुढ़ी कहलखि‍न-
अच्‍छा!
अच्‍छा कहि‍ते बुढ़ीकेँ हि‍चकी उठलनि‍ आ गरदनि‍ सि‍रमापरसँ गि‍र पड़ल। सुमि‍त्रा माए-माए कहैत कानए लगली। रामकुमार बुढ़ीक नारी देखैत बजलखि‍न-
माए चलि‍ गेली!
¦

वाड़ीक पटुआ

वाड़ीक पटुआ

डाक्‍टर प्रमोद कलकत्ता मेडि‍कल कौलेजसँ एम.डी.क डि‍ग्री लऽ गाम एला। गाममे पि‍ताजी आ मि‍त्र सभसँ क्लिनीक खोलैक वि‍चार करए लगला। मि‍त्र सभ लहेरि‍यासरायक वि‍चार देलकनि‍। मुदा पि‍ताजी कहलकनि‍-
लहेरि‍यासरायमे तँ एक-पर-एक डाक्‍टर सभ अछि‍ए जे रोगीक इलाज करैए। कि‍छु डाक्‍टर सेवा-भावनासँ इलाज करै छथि‍ तँ कि‍छु सोलहैनी पेशा बनेने अछि‍। रंग-रंगक ढाढ़स करैत कहत जे हम डाक्‍टर छी आकि‍ अहाँ। जे कहै छी से करू नै तँ...। सोवहावि‍को छै ओइ वि‍भागक तरी-घटी, नीक-बेजाएक ज्ञान आमकेँ छैइहो नै। तँए सोलहैनी सुतरबो करै छै। से नै तँ गामेमे क्लिनीक खोलह जे सामाजोकेँ लाभ हेतै आ तोरो जि‍नगीक महत रहतह।
  डाक्‍टर प्रोमदक पि‍ता अनंत प्रसाद समाज सेवी बेकती। सबहक दुख-सुखमे संग रहए बला। केतेको मरीज सभकेँ लहेरि‍यासराय लऽ जा इलाज करा अनने छथि‍न। तँए हि‍नका सभ गपक तजुरबा छन्‍हि‍। डाक्‍टरकेँ भगवान बुझै छथि‍न मुदा डाक्‍टरो तँ रंग-बि‍रंगक अछि‍। सेहो फर्क करैत रहै छथि‍न। प्रमोदकेँ डाक्‍टरी पढ़ेबाक उदेस छेलनि‍ जे गाम-देहातमे समैपर इलाजक अभावसँ केते लोक काल-कलवित भऽ जाइए। तँए देहातोमे डाक्‍टर जरूरी छै। ओ केतोको डाक्‍टरकेँ आग्रह सेहो केलखि‍न मुदा कि‍यो तैयार नै भेलनि‍। मुदा डाक्‍टर प्रमोद तँ अपन खून छि‍यनि‍। हुनकापर अनंत प्रसादकेँ तँ पूरा अधि‍कार छन्‍हि‍। ओना डाक्‍टर प्रमोदोमे पि‍ताक गुण-बेवहार छन्‍हि‍। जखनि‍ ओ मेडि‍कल कौलेजमे एम.डी.क पढ़ाइ कऽ रहल छला तहू समैमे केतेको मरीज सभकेँ मदति‍ केने रहथि‍न। अनंत प्रसादक कहब रहनि‍ जे बेरमेमे क्लिनीक खोलल जाए। मुदा बेरमामे तँ खून, लगही, पैखाना इत्‍यादि‍क जाँचक तँ सुवि‍धा नै अछि‍ तँए सबहक वि‍चार भेल जे प्रमोद ि‍नर्मलीमे क्लिनीक खोलता आ सप्‍ताहे-सप्‍ताह बेरमामे समए देथि‍न। अनंत प्रसाद प्रमोदकेँ कहलखि‍न-
बौआ, सेवाक भावनासँ मरीजक इलाज करि‍हऽ। भगवान अहीमे बड़्क्कति‍ देथुन। एकर मतलब ईहो नै जे सोलहैनी फोकटेमे इलाज करब। अपन उचि‍त फीस लऽ रोगीक इलाज करि‍हऽ। तहि‍ना उचि‍त दबाइओ आ जाँचो करबि‍हक।
डाक्‍टर प्रमोद कहलकनि‍-
सएह करब बाबूजी।
  ि‍नर्मलीमे क्लिनीक खोलला छह मास नै बि‍तल हएत। परोपट्टामे हुनकर नाओंक डंका बाजए लगल। रोगी आ रोगीक संबन्‍धी सभ डाक्‍टर साहैबकेँ जश दिअ लगलनि‍। जड़दगरसँ जड़दगर ि‍बमारी डाक्‍टर साहैब ठीक केलखि‍न। सभसँ पैघ बात ई जे गरीब रोगीक इलाज बि‍नु फि‍सेक करै छथि‍न। दबाइओ फाजील नै लि‍खै छथि‍न तँए रोगी सबहक भीड़ लगल रहैए। रवि‍ दि‍न छह बजीआ ट्रेन पकड़ि‍ राेगी देखए बेरमा चलि‍ जाइ छथि‍न। ओतौ बहुत रोगी सभ रहैत अछि‍। सभ रोगीक इलाज कऽ रतुका ट्रेनसँ आपस ि‍नर्मली चलि‍ अबै छथि‍न। बेरमामे बेसी रोगी रहलापर कखनो काल अँटकैओ पड़ै छन्‍हि‍।
  डाक्‍टर साहैबक पि‍ताक मि‍त्र छथि‍न मंगनू प्रसाद। ओहो बेरमेक बासी छथि‍न। अनंत प्रसादक लंगोटि‍या संगी। डाक्‍टर साहैब मंगनू प्रसादकेँ बड़ इज्‍जति‍ करै छथि‍न। प्राय: सभ रवि‍ मंगनू प्रसाद डाक्‍टर साहैबसँ भेँट करए क्लिनीकपर आबि‍ जाइ छथि‍न। डाक्‍टर साहैब हुनका चाहो-पान करबै छथि‍न।
  आइ रवि‍ छी। आठ बजे धरि‍ डाक्‍टर साहैब बेरमा क्लिनीकपर पहुँचता। ई गप सभकेँ बूझल छन्‍हि‍। हम चौकपर चाह पीऐत रही। देखै छी जे मंगनू प्रसाद आ हुनकर पुतोहु आ पोता रि‍क्‍शापर बैस तमुरि‍या दि‍स जा रहल छथि‍। हम लग जा पुछलि‍यनि‍-
मंगनू बाबू अपने लोकनि‍ केतए जा रहल छि‍ऐ?”
मंगनू प्रसाद कहलनि‍-
तमुरि‍या जा रहल छी। ट्रेन पकड़ि‍ लहेरि‍यासराय जाएब। गोपालकेँ मन खराब छै।
तैपर हम कहलि‍यनि‍-
आइ तँ रवि‍ छी। डाक्‍टर प्रमोदो एबे करता। हुनकासँ एक बेर देखा दैति‍ऐ। इलाज तँ ओहो नीक्के करै छथि‍ आ बच्‍चे वि‍भागक छथि‍ओ।
मंगनू प्रसाद कहलनि‍-
छोड़ू, हमरा लहेरि‍येसराय जाए दिअ। हम गाम-घरक फेरमे नै रहए चाहै छी।
ई कहि‍ ओ रि‍क्‍शाबलाकेँ इशारा दैत वि‍दा भऽ गेला।
आठ बजे डाक्‍टर प्रमोद क्लिनीकपर पहुँचला। हमरो ब्‍लड प्रेशर जँचेबाक रहए तँए हमहूँ ओतै रही। हमरा मुँहसँ अनासुरती नि‍कलि‍ गेल-
तमुरि‍या टीशनपर मंगनूबाबू भेटबो केला।
डाक्‍टर साहैब कहलनि‍-
नै तँ, से की? केतए गेला हेन मि‍त्ता काका?”
हम कहलि‍यनि‍-
पोताकेँ डाक्‍टरसँ देखबैले लहेरि‍यासराय गेला हेन। हम कहबो केलि‍यनि‍ अहाँ दऽ जे एबे करता। मुदा कहलनि‍ जे छोड़ू हमरा लहेरि‍येसराय जाए दिअ।
डाक्‍टर साहैब बजला-
जाए दि‍यनु।
  लहेरि‍यासरायमे मंगनू प्रसाद अपना पोताकेँ डाक्‍टरसँ देखौलखि‍न। डाक्‍टर साहैब तीन सए फीस लेलकनि‍। दू हजारक जाँच आ छह सएक अल्ट्रसाउण्‍ड लि‍खलकनि‍। जाँच-परतालक पछाति‍ दू हजारक दबाइ लि‍खलखि‍न। अदहा दबाइसँ बेसीए दबाइ चललोपर गोपालक पेटक दरद ठीक नै भेल। तखनि‍ हारि‍-थाकि‍ कऽ डाक्‍टर प्रमोद लग ि‍नर्मली लऽ जा कहलखि‍न-
हौ डाक्‍टर, लहेरि‍यासरायमे चारि‍ हजारसँ बेसीए खर्च भऽ गेल मुदा गोपलाक दरद कनि‍योँ उन्नैस नै भेल। से कनी देखहक।
डाक्‍टर साहैब गोपालक सभटा जाँचक पुर्जा देखलखि‍न। लहेरि‍यासरायक डाक्‍टर सभटा पटनि‍याँ दबाइ लि‍खने रहै। जाँचो अनाप-सनाप करबौने छेलै। से सभ देखि‍ डाक्‍टर प्रमोद लहेरि‍यासरायक सभटा दबाइ बन्न कऽ मात्र दू सए टाकाक दबाइ लि‍खलखि‍न। तीने ि‍दन दबाइ खेला पछाति गोपालक दरद ठीक भऽ गेल।
  अगि‍ला रवि‍ मंगनू प्रसाद बेरमामे डाक्‍टर साहैबक क्लिनीकपर जा भेँट कऽ तारतम्‍य करैत कहलकनि‍-
हौ, हम तँ लहेरि‍यासराय जा ठका गेलौं। तोहर लि‍खलाहा दबाइ तीनि‍ए दि‍न खेलापर गोपला पेटक दरद सोलहैनी ठीक भऽ गेल।
डाक्‍टर साहैब मंगनू प्रसादकेँ कहलखि‍न-
यौ काका, हम तँ वाड़ीक पटुआ छी। जे तीत सभ दि‍नसँ होइत रहलै हेन।
मंगनू बाबू कि‍छु नै बजला।

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