Pages

Friday, August 10, 2012

कपिलेश्वर राउत -तरकारी खेती


कपिलेश्वर राउत
तरकारी खेती

गणेश्वर नाथ महादेव स्थानमे हाट लगैत छलै। हाटपर लोकक करमान लागल छल। गणेश्वर नाथ महादेवक स्थापना गणेश झाक पोता जे एस. पी
. भेल छला, बाबाक नाओंपर महादेवक स्थापना कऽ एकटा भव्य मंदिरक निर्माण करौलनि। अगल-बगलमे दोसरो-तेसरो भगवानक मंदिर अछि। आगाँमे पोखरि सेहो अछि। पोखरिक रकबा बिघा पाँचेकसँ उपरे अछि। वएह पोखरिक पुबरिया मोहारपर हाट लगैत अछि। एकटा प्राइमरी स्कूल सेहो उत्तरबरिया मोहारपर अछि, बरसातक समैमे रौद आ पानिसँ बचबाक लेल एकरा पैघ बनौल गेल अछि, ऊपरमे सिमटीक चदरासँ झाँपल अछि।
ललन हाटपर कोबी बेचबाक लेल आएल अछि। हाटपर रंग-विरंगक समान सभ रहै छै
, से रहए। करीब दस कट्ठामे हाट लगैत अछि। नून तेलसँ लऽ कऽ कपड़ा-लत्ता, सिनुर-टिकुली, चन्द तरहक मसल्ला सभ, मास-माउस तकक बिकरी होइत अछि।
माघ मास बित रहल छल आ फागुनक चढ़ंत रहए। कोबी
, भाँटा, सीम, टमाटर, सलगम, आलू, मुरै, फर माने अरुआ, पालक साग, बथुआ, सरसो, तोरी, कोबी, लौफा इत्यादि ओइ दिन खूब पहुँचल छल जे पएर रक्खेक जगह नै छल। कोबी भाव दस रुपैये पसेरीसँ लऽ कऽ बीस रुपैये पसेरी छल। कोबीबला सभ माथा हाथ देने छल। आेइमे एक शिबलाल आ ललन सेहो। ललन शिबलालकेँ पुछलक- ‘‘कि हौ भाय, की हालत छै?’’
शिबलाल कहलक-
‘‘धू, सभ चौपट्ट भऽ गेल। दुइये कट्ठामे ऐबेर मगही कोबी केने छलौं, बड़ मेहनत भेल रहए। दस किलो डी.ए.पी, पाँच किलो पोटास, एक किलो जिंक आ छौड़-गोबर लेल देने रहिऐ। तखन कोबी रोपने छलौं। दू बेर पानि से देलिऐ। कोबियो नीक भेल। देखि‍ कऽ मन बड़ खुश रहए। दू किलोसँ छ-छ किलो धरि एकहक गो छत्ता अछि। मुदा भाव देखिते छहक जे पुजिओ उपर हएत कि नै। सुनै छी जे पंडित सभ ऐबेर लगन नै बनौने अछि। किछु लगन छैहो से जेठ-अखाढ़मे।’’
ललन बाजल-
‘‘हमरो हालत तँ सएह अछि।
ँू तँ दुइये कट्टामे केने छह। हमर तँ पाँच कट्टामे कएल अछि। मुदा किछु रुपैया नैै भेल।’’
थोड़े काल उदास रहल मुदा चौंकेत शिबलाल बाजल-
‘‘हे पि‍यौजक बि‍आक हालत ठीक अछि। दू कट्ठामे पि‍यौजक बि‍आ पाड़ने छी, अखन सोलह रुपैयेसँ लऽ कऽ पच्चीस रुपैये तक अछि। तहन दुनूकेँ मिला कऽ घाटा नै लागत। मुदा जे चाहैत छलौं से नै भेल।’’
ललन बाजल-
‘‘हुअ, तोरा मिला-जुला कऽ पुँजी बँचलह।’’ दुनूक बीच गप-सप्प होइते छल आकि तखने बगलमे बैसल रामरुप पुछलक- एना किए मुँह लटका कऽ दुनू गोटे गप-सप्प करै छह। की बात छिऐ?’’
ललन उत्तर देलक-
‘‘ऐँह, कोबीक भावक बारेमे गप-सप्प करै छी।’’
रामरुप-
‘‘धू, एहिक लेल कियो चिन्ता करए। खेती छिऐ हौ। एकटामे जाएत तँ एकटामे आओत, हम
ँू खेती करैत छह जँ ओकरा छोड़ि देबहक तँ कि करब। कोनो कि बाहरक आमदनी छह जे आेइसँ गुजर जेतह। १९८७ई. मे बाढ़ि एलै तँ सभटा दहा भसिया कऽ लऽ गेलै। मुदा लोक सभ कहाँ कोनो खेती छोड़ि देलकै। ऐबेर पानक हाल देखहक ने, ततेक ने पाला खसलै जे इलाकाक पान सुड्डाह भऽ गेलै। तैयो पानबला सभ पानक खेती छोड़ि देलकै। कहाँ ककरो मुँह मलीन छै। हँ तहन एकटा बात छै जे खेती एक्के रंगक नै करक चाही। जेना तरकारीये उपजाबै छह तँ दू कट्ठामे कोबी, तँ दू कट्ठामे बैगन, कम-सँ-कम दस धूरमे मुरै, दस धूरमे टमाटर, किछुमे पि‍यौजक बीआ, एहिना थोड़ेक-थोड़ेक आनो-आनो खेती करक चाही। लाटमे इहो सभ रहत ने तँ मुँह मलीन कहियो नै हेतह। केहेन बढ़ियाँ शिबलाल कहलक हेन जे पि‍यौजक बिआक बिक्रीसँ नीक आमदनी भेल। तँए तरीकासँ काज मेहनत करह।’’
ललनकेँ रामरुपक बात जँचलै। मने-मन विचारलक जे आगूसँ सभ तरहक खेती करब।
 

No comments:

Post a Comment