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Friday, August 10, 2012

किशन कारीगर - दाम-दिगर


किशन कारीगर

 दाम-दिगर

टुनटुन राम टनटनाइत बाजल- ‘कहू तँ एहनो कहीं दाम दिगर भेलैए जे दोसर पक्षबलाकेँ तँ दामे सुनि कऽ चक्करघूमी लागि जाइत छै। हे बाबा बैजनाथ, अहीं कनी नीक मति दियौ एहेन दाम-दिगर केनिहार सभकेँ।’
एतबा सुनितै बमकेसर झा बमकैत बजलाह- ‘आइँ रौ टुनटुनमा, हम अपना बेटाक दाम-दिगर कए रहल छी तँ ऐमे तोहर अत्मा किए खहरि रहल छौ।’
ताबै फेरसँ टुनटुन राम जोरसँ बाजल- ‘अहीं कहू ने, अत्मा केना नै खहरत। हम जे अपना बेटा बच्चा रामकेँ संस्कृतसँ इंटरमे नाओं लिखबैत रही तँ अहाँ कतेक उछन्नर केने रही। मुदा तैयो ओ नीक नम्बरसँ पास केलक। आब हम ओकरा फूलदेवी कॉलेज अंधराठाढ़ीमे संस्कृतसँ बी.ए.मे नाओं लिखा देलिऐ।’
ई सुनि बमकेसर झा तामसे अघोर भऽ बमकैत बजलाह- ‘रौ टुनटुनमा,ँू साफ साफ कहि दे ने जे हमरा बेटाक दाम-दिगरमे बिना कोनो भंगठी लगौने तों नै मानबेँ।’
दुनू गोटेमे एतबाक कहाकही होइते रहै आकि‍ पिपराघाटसँ पएरे-पएरे धरफराएल हम अप्पन गाम मंगरौना चलि अबैत रही। दरभंगासँ बड़ी लाइनक टेन पकड़ि राजनगर उतरल रही। ओतएसँ बस पकड़ि कहुना कऽ पिपराघाट एलौं, मुदा ओतए रिक्शाबला नै भेटल तही द्वारे पएरे-पएरे गाम जाइत रही। मुदा जहाँ गनौली गाछी लग एलौं तँ टुनटुन आ बमकेसरकेँ कहा-कही होइत देखलिऐ। उत्सुकता भेल जे दाम-दिगर कोन चिड़ैक नाओं छि‍ऐ से बूझिए लिऐ। मोन भेल जे एखने टुनटुनमसँ छि लै छि‍ऐ जे कथिक दाम-दिगरक फरिछौटमे अहाँ दुनू गोटे ओझराएल छी, मुदा बमकेसर झाक बमकी आ टुनटुनक टनटनी देखि‍ तँ हमर अकिले हेरा गेल अओर  हिम्मत जबाब दए देलक। सोचलौं जे गामपर जाइत छी तँ ओतए ठक्कनसँ प्रसंगमे सभटा गप-सप्‍प भए जाएत।
गामपर आबि कऽ सभसँ प्रणाम-पाति भेल, तेकरा बाद नहा सोना कऽ हम ठक्कनक भाँजमे भगवती स्थान दिस बिदा भेलौं। मुदा कियो कहलक जे ठक्कन तँ सतबिगही पोखरि दिस भेटत। हुनकर नामेटा ठक्कन रहनि‍ मुदा ओ बड्ड मातृभाषानुरागी रहथि।‍ कहियो गाम जाइ तँ हुनकेसँ मैथिलीमे भरि मोन गप-सप्‍प करी। भिनसुरका पहर रहै, हम बान्हे बान्हे गामक हाइ स्कूल दिस बिदा भेलौं जे कहीं रस्तेमे भेँट भऽ जाथि‍। मुदा ठक्कन महराज कतौ नै भेटलाह तँ बाधे-बाधे सतबिगही पोखरि लग एलौं। दूरेसँ देखलिऐ जे ठक्कन आ परमानन दुनू गोटे गप करैत चलि अबैत रहए, अवाज हम साफ-साफ सुनैत रही। ठक्कन बाजल- आइँ हौ भैया, ई कह तँ अमीनो साहेबकेँ जे ने से रहैत छन्हि। कहू तँ, ततेक दाम-दिगर कहैत छथि‍न जे घटककेँ घटघटी आ घुमरी धए लै छै। बेसी दाम भेटबाक लोभमे पारामेडिकलबला लड़काकेँ एम.बी.बी.एस कहि रहल छथि‍न। कहऽ, ई अन्याय नै तँ आर की छी।’
परमानन खैनी चुना कऽ पट पट बाजल- ‘रौ ठक्कना, तोरो तँ गजबे हाल छौ। अमीन साहेब अपना बेटाक दाम दिगर कए रहल छथि तइसँ तोरा।’
ताबै ठक्कन बाजल- ‘हमरा तँ किछु नै तोहँए कहऽ ने। अपना चैनो उड़लपर २ लाख रूपैया गना लेलहक आ हमर मोल जोल करबा कालमे तोरा दिल्ली कमाइसँ फुरसत नै रहऽ। हौ भैया तेहेन ठकान ठकेलौं से की कहिअ। हम बिपैतमे रही आ तूँ अमीन साहेबक चमचागिरीमे लागल रहऽ।’
परमानन बाजल- ‘आसते बाज रौ ठक्कन, जँ कही अमीन सहएबक बेटाक दाम दिगर भंगठलै तँ कोनो ठीक नै। ओ हमरा जमीनक दू चारि जरी हेरा-फेरी कए देताह आ तोरो चारि सटकन दऽ देथुन।’
ठक्कन बाजल- ‘हम कोन हुनकर तील धारने छि‍यनि‍। तूँ धारने छहक तँ तोरा डर होइ छह हम तँ नै मानबनि,‍ सोहाइ लाठी हमहूँ बजाइरे देबनि‍ की।’
दुनू गोटे एतबाक गपमे ओझराएल रहए, मुदा परमानन हमरा दूरेसँ अबैत देखलक तँ बाजल- ‘रौ ठक्कन, रस्ता पेरा चुपेचाप बाज ने। देखै नै छिही जे मीडियाबला सेहो एखने धरफराएल अछि। तूँ तेहेन भंगठीबला गप बाजि देलही से डरे झारा सेहो सटैक गेल।’
ताबै हम लगमे पहुँचि कऽ दुनू गोटेकेँ प्रणाम कहलियनि‍। हमरा देखि‍ ठक्कन अकचकाइत बजला- ‘किशन जी, कहू समाचार की? आइ भोला रामक रिक्शा नै भेटल जे पएर-पएरे आबि रहल छी। हम बजलौं- ‘सएह बुझियौ, मुदा ई कहू जे अहाँ सभ कथिक दाम-दिगरक फरिछौटमे लागल छलौं।’
एतबामे परमानन  बजलाह- ‘जाउ अखन हम सभ पोखरि दिससँ आबि रहल छी जँ बेसी बुझबाक हुएअ तँ साँझखिन ठीक पाँच बजे अमीन साहेबक दरबज्जापर चलि आएब।’
ठीक समैपर ५ बजे हम अमीन साहेबक दरबज्जा दिस बिदा भेलौं। ओतए लोक सभ घूड़ तपैत गप-सरक्का करैत छल। टुनटुन सेहो ओतए बैसल। ओ पुछलक- ‘कहू अमीन सहएब, मोन माफिक दाम भेटल की अहाँ पछुआएले छी।’
एतबामे परमानन फनकैत बाजल- ‘हौ टुनटुन भैया, बमकेसर संगे पटरी खेलकह तँ आब ऐठाम दाम दिगर भंगठबैक फेरमे आएल छह की नै।
-रौ परमानन, तो तँ दोसरे गप बूझि गेलही।
ताबै चौक दिससँ धनसेठ धरफराइल आएल आ बाजल यौ अमीन बाबा हमरो दाम-दिगर करा दिअ ने। ई सुनि अकचकाइत घूरन अमीन ठोर पट-पटबैत तमसाइत बजलाह- ‘मर बँहि तूँ किए हरबड़ाएल छैं रौ। हमरा तँ अपने बेटाक दाम दिगर भंगठि रहल अछि आ तूँ ‘हरबरी बि‍आह कनपटी सेनुर’ करैमे लागल छैं। ओ बाजल- ‘बाबा हम छी धनसेठ, आइए पूनासँ गाम आबि रहल छी। –-मर बहिं, मुरूख चपाट तोरा कहने रहिऐ जे संस्कृतसँ मध्यमा कए ले तँ से नै केलही। कह तँ ठक्कना सी.एम साइंस कॉलेजसँ इंटर केने अछि ओकरा कियो पूछनाहार नै भेटलै तोरा के पुछतौ रौ।
सेठ महासेठ आ धनसेठ खूम गरीबक धीया-पुता तइ द्वारे नान्हिटामे परदेश कमाइ लेल चलि गेल रहए। तीनू भाँइमे सभसँ छोट धनसेठ कनी पढ़लो रहए, ओ कनी साहस कए बाजल- ‘यौ बाबा, हम पूणेमे ओपनसँ मैटीक पास कए कऽ आब इंटरमे नाओं लिखा लेलौं। ई सुनि अमीन सहएबक दिमाग गरम भऽ गेलनि‍, ओ बजलाह- ‘रौ परमानन ई ओपेन-फोपेन की होइ छै रौ। आइ तँ धनसेठो नहिए मानत।’
ताबै ठक्कन बाजल- ‘कक्का, पत्राचार कोर्सकेँ ओपेन कहल जाइ छै। अहूँ नाओं लिखा लिअ ने। ई सुनि सभ गोटे भभा भभा हँसए लागल मुदा अमीन सहएब तामसे अघोर भेल तमसा कऽ बजलाह, -रौ उकपाति सभ, हमर देह जरि रहल अछि अओर तूँ सभ हँसी ठिठोलामे लागल छैंह। टुनटुन बाजल- ‘कक्का, हम तँ कहैत छी जे दाम दिगरक परथे हटा दिअ ने, नै दाम दिगर हेतै ने एतेक सोचबाक काज। ताबै केम्हरोसँ बमकेसर झा घुमैत-घुमैत अमीन सहएब ऐठाम पहुँचलाह। ओहीठाम टुनटुनकेँ देखि‍ बमकैत बजलाह- ‘बुझलौं की अमीन सहएब, टुनटुन द्वारे अकच्छ भेल छी। ई सुनि ठक्कन बाजल- ‘अपने करतबे ने अकच्छ छी। अहाँ कम्पाउण्डर बेटाकेँ प्रैक्टीसनर डागडर कहि लोककेँ ठकि रहल छि‍ऐ, तइ द्वारे तँ घटक सभ घूमि रहल छथि, तँ ऐमे टुनटुन भैयाक कोन दोख।’
अमीन सहेब पानक पीक फेकि बजलाह- ‘मर तोरी कऽ, रौ ठक्कना, आबो सुखचेनसँ गप सुनए दे ने, की भेल औ बमकेसरबाबू। अमीन सहेब इशारा कऽ बजलाह। बमकेसर टुनटुनसँ भेल कहा-कही कहलखिन। अमीनो सहएब अपन दुखरा सुनौलनि। सभटा गप सुनि टुनटुन बाजल- ‘दाम दिगरक चलेनमे गरीब लोक मारल जा रहल अछि। ओ कतएसँ लड़काबला सभकेँ एतेक फरमाइसी पुराओत। बेटीक बि‍आह तँ सभ गोटेक छन्‍हि‍। हमरो अहँूकेँ, समाजक सभ लोककेँ। अहीं दुनू गोटे निसाफ कहू। बमकेसर बजलाह- ‘तूँ ई तँ सोलहो आना सच्च गप बजलह। कि औ अमीन सहएब अहाँक की विचार।’
अमीन सहएब बजलाह- ‘टुनटुन ठीके कहि रहल अछि, हमरो यएह विचार जे लेब देबक प्रथा हटा देल जाए तँ अति उत्तम। जेकरा जे जुड़तै से देतै, मुदा कोनो तरहक फरमाइस केनाइ उचित नै।’
हम ई सभटा गप बान्हेपरसँ ठाढ़ भेल सुनैत रही। लगमे जा कऽ सभ गोटेकेँ प्रणाम कहैत ठक्कनसँ पुछलौं- ‘दाम-दिगर की होइ छै कनी अहीं बुजहा दिअ ने।’
एतबाकमे टुनटुन मुस्की मारैत बाजल- ‘कहू तँ, इहो मीडियाबला भऽ कऽ अनहराएल लोक जकाँ बजैत छथि, अमीन सहरब कनी अहीं बुझहा दियौन हिनका। की सभ गोटे ठहक्का मारि हँसए लगलाह। अमीन सहेब हाँ हाँ कऽ खीखि‍याइत हँसैत बजलाह- ‘बच्चा, अखन अहाँ काँच कुमार छी, तँए जहिया अपने बिकाएब तँ अहँू बुझिए जेबै जे केकरा कहै छै दाम-दिगर।’

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