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Friday, August 10, 2012

सन्‍तोष कुमार मिश्र - मुसीबत


सन्‍तोष कुमार मिश्र
 मुसीबत
 दुरागणे दिनसँ जे कननीरोइनी ओकरापर सबार भेलै से अखन धरि छुटल नै छलै। तेँ हम साँझखन कऽ जखन कतौसँ आबी तँ सबहे दिन लोडसेडिङ्गक कारणे अन्‍हार ताहुमे ओ असगरे कनैत। कहियो मैन (मुख्य) बत्ती बड़ैत तँ कहियो अपने बारए पड़ै छल। हुनका कनैत देखि कऽ हम मैन बत्ती लऽ कऽ हुनकर मुँहक चारु दिश घुमबैत कहए लगितीऐ- आको मइया चाको, पहलाद मइया राखो, संझा मइया तारणी, सभ दुःख निवारणी…. हँसनीखेलनी आगु आउ, डिठमुठि नजरिगुजरि सभ पाछु जाउ, .........” एते कहिते ओ छमसिया बच्‍चा जकाँ खिलखिला-खिलखिला कऽ हँसए लगितथिन। हम तँ कनही बिलाइ, मारे तिरपित। हुनका हँसिते हमर सुप सन करेज भऽ जाइ छल। आ हम खुशीसँ दङ्ग पड़ैत कहितिऐ सो डारलिङ्ग ह्‍वाट टु डू ? (प्रिय, तखन की करी?)”
जेना बापक जिमदारी हुअए तहिना ओ तखनसँ काज अढ़ाबएकेँ शुरु करै छलखिन। हम तँ धोखासँ अंग्रेजीमे बजै छली आ तकर बाद ओकर अंग्रेजी शुरु होइ छल। इहे तँ बात छै, कहूँ माथपर बैसल तँ सोचि लिअ, दिशा करबाक चान्‍स बेशी रहत।
समए एहिना बड़ निकसँ शुद्ध पत्नीवर्ता पुरुष जकाँ चलैत रहए। मुदा एकबेर ऑफिसक काजसँ काठमाण्‍डू जाए पड़ल। समए तँ किछु बेसि‍ए लागएबला रहै। करीब एक महिना। आ सबहे दिन फोनपर बात करब, से वचन सेहो देनेहे रही। आबए बेरमे ओ बेरबेर कहैत रहथिन,–“काठमाण्‍डूमे ठंढा बेशी छै, अहाँकेँ मिसेज डिकोल्‍ड कऽ आवश्‍यकता पड़त।हम बेरबेर जबाब दिऐ, “अच्‍छा, जरूरत बुझएतै तँ किन लेबै।हमर जबाब ओ सुनिते हँसि दै। मुदा ई बात, जखन बसमे हमरा ठंढ़ा लागल, तखन महसूस भेल जे ओ डिकोल्‍डक आगूमे मिसेज किए लगेलकै? ओ तँ अपना लेल कहए। तखन मतलब साफ नजरि आएल जे हुनको काठमाण्‍डू आबए कऽ मोन छलनि।
काठमाण्‍डू पहुचलाक बाद एक दिन पहिने बात कएने रही मुदा काल्‍हिखन दिन भरि फोन लागले नै रहए। जखन फोन लगबिऐ तँ आवाज अबै–“तपाइले .....मतलब सम्‍पर्क नै हएत। मुदा तकरे प्रातः कलंकीसँ कनियाँक फोन आएल, “हम अग्‍नी बसक काउन्‍टर लग ठाढ़ छी, जल्दीसँ लेबए आउ। ओ माइ गॉड (हे भगवान), अखन तँ साढ़े चारिए बजलैए। पुछलिऐ टेक्‍सीक बारेमे, तँ जबाब आएल जे आइ उपत्‍यका बन्‍द छै। कनियाँ आएल काठमाण्‍डू, एकटा मुसीबत। उपत्‍यका बन्‍द, दोसर। 
हम होटलक स्‍टाफक खुशामद कऽ कऽ गाड़ी तँ मंगलहुँ मुदा ओ कलंकीमे मात्र छोड़त ओतएसँ फिर्ता नै आओत, से शर्त लगेलक। कहाँदोन हड़तालमे टुट-फुटक इन्‍स्‍योरेन्‍स कभर नै करै छै। हम कलंकी पहुँचली। हुनका देखलियनि, ओते ठंढ़ामे पातर ओढ़नामे। मुदा ओढ़ना जतबे पातर छलै लोलमे लिपस्‍टिक ओतबे मोट। तै सँ ओतबे मोट लाठीसँ हुनका पिटए कऽ सेहो मन भऽ गेल । मुदा..... ।
हम हुनक नजदीक जा कऽ बड़ प्रेमसँ मुस्‍कैत कहलिऐ -“चलु डारलिङ्ग, ... अहाँक बेग कतए अछि?” ओ क्‍लोजअप स्‍माइल दैत अप्‍पन ह्‍याण्‍ड बेग दैत कहली,–“हम तँ एतबे लऽ कऽ आएल छी।ओ तँ काठमाण्‍डू आबि कऽ बड़ खुश मुदा हमर मन तँ हुनक बेग देखि कऽ खौंझा गेल। तैयो हम सभ आगू बढ़लौं। किए तँ पैदले जाए कऽ आश छल। करीब एक किलोमीटर चललो नै रही कि ओ कहए लगली,–“चाह पिअब।कनिके आगू जा कऽ देखलिऐ, एकटा महिला टेबुलपर स्‍टोभ धऽ कऽ चाह बेचैत छली। हम दुनू गोटे ओतै चाह पिलौं। आ ओतएसँ बिदा भेलौं। ओतएसँ बिदा भेला दुइयो मिनट नै भेल रहए कि ओ अपन पेटपर हाथ हौस्‍तैत कहऽ लगली,–“हे यौ ....यौ सुनू ने, एह रस्‍ता दने चलू जतए लगमे ट्वाइलेट हुअए।आब ई परेशानी संग पकड़लक। मतलब जे हम भोर खन कऽ हिनका बेड टी दइ छलियनि तखन ई ट्वाइलेट जाइ छलखिन। आदति‍सँ लाचार, की करु। जखनजखन जोरसँ लगैन तखनतखन मुँह घोकचऽबैत पेट पकड़ैत बजथिन,–“आहऽऽऽ।आ जखन कने ठीक जकाँ जे हुऐन तँ बजथिन,–“दरएऽऽ, बज्‍जरखसो काठमाण्‍डूमे, एकटा ट्वाइलेटो नै।फेर कने आगू सएहे ताल। करीब एक किलोमीटर आगू जा कऽ कालीमाटीक पुलक निचाँ एकटा सार्वजनिक शौचालय भेटल। मुदा ओतौ खाली नै। मुदा हुनक छटपटाहट देखि कऽ एकटा ट्वाइलेटक केबार हम ढकढका देलिऐ। आ कने दूर हटि कऽ ठाढ़ भऽ गेलीऐ। तुरत्ते एकटा मोटचोट महिला ओइ ट्वालेटमे सँ निकलली आ एक थप्‍पर हुनका माइर कऽ फेर आेइमे पैसि गेली। हुनकर मुँह तँ लाल रहबे करै, आब कि? कनिके देर बाद एकटा दोसर ट्वाइलेटमे सँ एकटा पुरुष निकलल आ ओ आेइमे गेली आ शाइद ओतै ओे उपत्‍यका बन्‍द सन पावनिकेँ सेलीब्रेट कएली । 

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