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Friday, August 10, 2012

अमित मिश्र -प्रेम नै जहर छै


अमित मिश्र , गाम-करियन, जिला –समस्तीपुर|


प्रेम नै जहर छै
एकटा गाम। मननपुर। भोरक समय। गामक बीच दुर्गा मंदिरसँ उठैत नारी स्वर, गीतक एहन प्रवाह, लगै छल जे स्वयं सरस्वती कमलक आसनपर बैस अपन हाथक वीणा संग मधुर भजन गाबि रहल छथिन ।यएह भजन "जय जय भैरवि....." सँ ऐ गामक मनुष्य अपन आँखि खोलै छथि। आब फरिच्छ भs गेल छै। किसान अपन बड़दक संग खेत दिश चललाह। बड़दक घेटमे बान्हल घंटी, ओही मधु भरल स्वर संग तालमे ताल मिलएबाक भरिसक कोशिश कऽ रहल छै। भोर सात बजे ऐ गामसँ ओइ नारीकेँ पहिल भेँट होइ छै। किरण, जी हँ किरण नाम छै ओकर। सोलह -सत्रह वर्षक घेट लगेने, मानू कोनो आधा खिलल गुलाबक कली। यौवनक चिन्ह आब उजागर होबऽ लागल छै। सुन्दरताक चलैत-फिरैत दोकान। ककरोसँ कोनो उपमा नै, अनुपम। एकदम मासूम मुँह, समाजक रीति-रिवाजसँ अंजान। गाममे सबहक चहेती। कोनो काज एहन नै जे ओ नै कऽ सकैए। सभ काजमे पारंगत, किरण।
"किरण, गै किरण, कतऽ चल गेलही, स्कूल कऽ देर भऽ रहल छौ", सुलोचना टिफिन बन्न करैत किरणकेँ सोर केलखिन।
"आबै छियौ, बस दू मिनट", कहैत किरण घरसँ बहराएल। कनेक काल ठमकि ठोरपर मुस्की नचबैत बाजल- "माँ आइ कने देरसँ एबौ, आइ ने हमर सहेली पिंकीक जनमदिन छै।"
आ ई कहैत साइकिल लऽ स्कूल दिश चलि देलक।
स्कूलमे एकटा लड़का छलैए, राकेश, पढ़ै-लिखैमे गोबरक चोत मुदा पाइबाला बापक एकलौता बेटा, से पाइक गरमी जरूर छलै। सभ साल मास्टरकेँ दू टा हजरिया दऽ दै आ वर्गमे प्रथम कऽ जाए। एक नम्मरक उचक्का। ओ जखन-तखन किरणकेँ देखैत रहैए। आब किरण गरीब घरक सुधरल बेटी, ओ की जानऽ गेलै जे कनखीक अर्थ की होइ छै। जहिना आन सभ छात्र-छात्रा राकेशक किनल चॉकलेट, मलाइबर्फ, बिस्कुट आदि अनेको चीज सभ खाइ छल ओहिना किरणो बिना छल-प्रपंचक राकेशक संग रहै छल। इम्हर किछु दिनसँ राकेश महगासँ महगा आ सुन्नरसँ सुन्नर चिज-बित सभ आनि कऽ किरणकेँ चुप्पे-चाप दै छलै। जइ अवस्थामे एखन किरण छल ओइमे विपरीत लिंगक प्रति आकर्षण भेनाइ स्वभाविक छै, आ जौँ पैसाक गमक लागि जाए तँ फेर बाते कोन छै। ईएह कारण छै जे राकेशक संग ओकरा आब नीक लागऽ लगलै। राकेशक जादू एहन चलले जइमे फँसि पढ़ाइ-लिखाइ सभ पाछू छुटि गेलै आ मस्ती हावी भऽ गेलै। ऐ आकर्षणकेँ ओ नाम देलक प्रेम। प्रेम, जइ शब्दकेँ एखन धरि कोनो उपयुक्त परिभाषा नै भेटल। प्रेम, जकरा विषयमे जतेक लिखब ततेक कम। प्रेम, शायरक तुकबंदी, दिलक मिलन। प्रेम, जे मौतसँ लड़बाक साहस दै छै। लैला-मजनूबला प्रेम भेल छलै आकि किछु आर से जानी नै।
"आउ, आउ, आइ बड़ देर कऽ देलिऐ," किरणकेँ आबैत देख राकेश बाजल।
"हँ, की करब साइकिल पंगचर भऽ गेल छल।" किरण जबाब देलक।
राकेश मक्खन लगाबैत बाजल," आहा, हम्मर जानकेँ आइ बुलैत आबऽ पड़लै . . . काल्हि चलब नवका स्कूटी किन देब .. तखन नै ने कोनो दिक्कत।"
किरण मुस्कुराइत बाजल,"दुर जाउ, स्कूटीपर चढ़बै तँ गामक लोग की कहतै। कहतै जे छौड़ी बहैस गेलै।"
"लोक किछु कहैए कहऽ दियौ, अहाँ बताबू वेलेंटाइन डे आबि गेल छै, गिफ्ट की लेबै।" राकेश एक्के साँसमे बाजल।
"हम किछु नै लेब, जखन प्रेम केलौं आ बियाह करबे करब तखन अहाँक सब किछु अपने आप हम्मर भऽ जेतै।" किरण विश्वासक साथ बाजल।
कनेक काल मौन ब्रतक पालन केलाक बाद राकेश किरणक हाथ पकड़ैत बाजल,"किरण, हम चाहै छी ऐबेर वेलेंटाइन डे पर दरभंगा घुमै लेल चलब। जौं अहाँ कहब तँ एखने होटल बुक करबा दै छी।" फेर कने आर लग आबि बाजनाइ शुरू केलक- "ओतऽ खूब मस्ती करब, फिल्म देखब आ राज मैदानमे पिकनिक मनाएब, आ बहुतो रास गप्प करब।"
किरण अपन हाथ छोड़बैत बाजल,"नै नै, हम असगर अहाँ संग दरभंगा नै जाएब। माँ हम्मर टांग तोड़ि देत, अहाँ जाएब तँ जाउ, हम एतै ठीक छी।"
" हे . . .हे . . . हे . . . हे . . . एना जुनि बाजू।" राकेश किरणकेँ पँजियाबैत बाजल,"हम अहाँक होइबला घरबला छी आ पति संग घुमैमे कोन हर्ज छै, मात्र एक्के दिनक तँ बात छै, अहाँ कोनो बहाना बना लेब।"
जेना-तेना कऽ राकेश अप्पन बात मना लेलक। तय दिन किरण आ राकेश शिवाजीनगरसँ बस पकड़ि दरभंगा दिश चल देलक। भरि रस्ता प्यार-मोहब्बतक बात बतियाइत रहल। दरभंगा आबि राज किला देखलक, श्यामा मंदिर आ मनोकामना मंदिरमे पूजा केलक, टावर चौकसँ शॉपिंग केलाक बाद साँझ होटलमे आएल।
आब एक कमरा, एक बेड, दू जन। बड़ मुश्किल घड़ी छलै।
राकेश कहलक, "आउ कने सुस्ता लै छी, काल्हि भोरे ऐठामसँ विदा हएब।"
किरण प्यारक कारी पट्टीसँ अपन आँखि बान्हि लेने छलि। बिना किछु बाजने ओ सभ करैत गेलि जे राकेश चाहै छल। जौं कखनो बिरोधो करै तँ प्रेमक दुहाइ दऽ राकेश मना लै छलै। आ अन्ततः ओ भेलै जे नै हेबाक चाही। प्रेमक मायाजालमे फसल प्रेमक मंत्रसँ वशीभूत कएल किरण किछु नै बाजलि, शाइद अप्पन प्रेमपर हदसँ बेसी विश्वास छलै। भोरे नीन खुजलै तँ अपनाकेँ असगर देखलक। कनेक काल प्रतीक्षा केलक मुदा राकेशक कोनो अता-पता नै छलै। काउन्टरपर सँ पता चललै जे राकेश तँ तीन बजे भोरे चल गेल छल।
आब बुझू किरणपर बिपैतक पहाड़ टुटि पड़लै। विभिन्न तरहक बात मोनमे आबै। माँकेँ की कहब, आगू जीवन कोना काटब, लोक की कहतै। सोचैत-सोचैत मोन घोर भऽ गेलै। गाम दिश जएबाक लेल डेगे नै उठै। कतऽ जाएब, की करब। चलैत-फिरैत लहाश भऽ गेल छलि किरण। भीड़-भाड़मे रहितो एकदम तन्हा। मनक तूफान रूकबे नै करै। बेकार, जीवन बेकार भऽ गेलै। सभटा सोचल सपना क्षणमे टुटि गेलै। सोचै, माँकेँ अफसर बनि कऽ के देखतै, भगबतीक गीत के गेतै?
एतेक दिन दुर्गा माँक पूजा केलौं... तकर इनाम ई भेटल।....सभ झूठ छै,... देवी-देवता सभ बकबास छै..... गरीबक साथ कोनो देवी-देवता नै दै छै।.... सभ कहै छै, प्रेम बड़ नीक शब्द छै,..... प्रेमसँ पत्थर दिल मोम भऽ जाइ छै, .....मुदा नै......, प्रेम तँ जहर छै, जहर ... जैसँ केवल मौत भेटै छै, मौतक सिवा किछु आर नै, मौत . . मृत्यु . . मौत . . जहर . .। हम जानि-बुझि कऽ ई जहर पिलौँ।... हम अपवित्र छी, हम कुलक्षणी छी ..., हम धरती परक बोझ छी ......हमरा जीबाक कोनो अधिकार नै। हमरा सन कऽ लेल ऐ दुनियाँमे कोनो जगह नै। .....हम माँ-बापक इज्जत अओर निलाम नै करब।...... हम मरि जाएब, ककरो किछु खबर नै हेतै। ......हम अप्पन बलिदान करब। अनेको रास बातसँ माँथ लागै फाटि जेतै। ओ एक दिश दौड़ल, किम्हर से ओकरो नै पता, ओ कतऽ जा रहल छै ....., नै जानी। ....दौड़ैत-दौड़ैत भीड़मे कत्तो चल गेल। अप्पन अंजान मंजिल दिश।
भोरे अखबारक मुख्य पृष्ठपर मोट-मोट अक्षरमे लिखल छल "सोलह-सतरह सालक एकटा गोर-नार युवती रेलवे पटरीपर दू टुकड़ीमे भेटल। नाम-गामक पता नै चलल अछि। पोस्टमार्टमक लेल लाश भेज देल गेलैए। अंतिम दाह-संस्कार पुलिसक निगरानीमे हएत . . .।

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