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Monday, August 6, 2012

योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’ - देववाणी

हम ई नवका पंडितजी’क कने परीक्षा लऽ रहल छी। पंडित जी जे पुरना छलाह से तँ कहिया ने स्वर्गवासी भेलाह।ओ परोपट्टा मे नामी लोक छलाह पंडित संस्कार नाथ मिश्र। पंडितजी व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य, आयुर्वेदाचार्य आर नहि जानि कोन कोन विषयक आचार्य छलाह। हमरा गाम अर्थात् माहीपुर मे महामाया संस्कृत विद्यालय हुनके प्रयासे ँ स्थापित भेल छल जाहि मे सुनैत छियैक महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह स्वयं उद्घाटन करबा लेल आएल छलखिन्ह आ विद्यालय प्रांगण मे एकटा आम आ एकटा पीपर के गाछ रोपने छलखिन्ह। आमक गाछ तँ सन् सत्तावन के बाढ़ि मे सुखा गेलैक मुदा पीपर तँ एखनहुँ छैके जे अहूँ सब देखिते छियैक।
नवका पंडित जी भेलाह हुनकर प्रपौत्र।पंडित संस्कार नाथ मिश्र जी के ँ चारिम बियाह मे एकटा बालक भेलखिन्ह। ताहि सँ पहिने तीन बियाह मे चारि चारि टा कन्या रत्न प्राप्त भेलन्हि जेना लक्ष्मी सरस्वती सीता गौरी सब अपन अपन सखी बहिनपा’क संग अवतरित भेल होथि।पंडित जी जिद्दी लोक।चारिम बियाह सँ पूर्व जखन किछु आत्मीय सब हुनका बुझबए गेलखिन्ह जे “ देखू आब वयसो भऽ गेल। एहि बारह टा बेटी के पालन पोषण आ कन्यादान आदि मे अपनेक जे दशा भऽ रहल अछि से तँ अपनहि जनैत छिऐक। ते ँ हमरा सबहक कहब जे फेर बियाह करबाक ई विचार छोड़ि दियौक। मानि लिअऽ जे बेटा भाग्य मे नहि अछि।” तँ पंडित जी खिसिया कए बाजल छलखिन्ह “ देखू ई भक्त आ भगवान के लड़ाइ छियैक।यदि भगवान के ँ जिद्द लागल छन्हि जे बेटा नहिए दऽ कए परीक्षा लियैक तँ भक्त के सेहो प्रतिज्ञा छन्हि जे बेटा लइए कए रहताह। हमरा ई लड़ाइ लड़ए दिअऽ आ अहाँ सब कात सँ तमासा देखैत रहू।” अस्तु, जेना कि पौराणिक काल सँ होइत रहलैक अछि, सुच्चा भक्त’क सोझाँ भगवाने हारि मानैत रहलखिन्ह अछि, सएह भेलैक एहू बेर आ चारिम बियाह’क बाद करीब पचपन वर्षक उमेर मे पंडितजीक तपस्या सफल भेलन्हि आ आइमाइ सब गौलन्हि सोहर “ललना रे घर घर बाजे बधाई कि कृष्णजी जन्म लेल रे…” ।
नवजात’क नाम पंडित संस्कार नाथ मिश्र अपनहि चुनलन्हि।परोपट्टाक लोक तँ हुनका सँ नामकरण करबैत छल, ओ कतए जइतथि। से नाम राखल गेल भूजानाथ। आब जे सूनए सएह हँसए। सब बूझए लागल जे सत्ते मे पंडितजी सठिया गेलाह’ए। कियो कियो ईहो अर्थ लगाबए जे पंडितजी के ँ भूजा बड़ पसिन्न छन्हि। किछु ईहो बाजए जे एहि सँ नीक तँ ‘अनाथ’ नाम होइतैक, किछु अर्थ तँ रहितैक। जखन चारू कात खिधांस होअए लगलन्हि तँ नवकी पंडिताइने एक दिन टोकलखिन्ह जे बारह टा बेटीक बाद तँ एकटा बेटा भेल तकर की नाम राखि देलियैक जे सौ ँसे गाम हँसैत अछि। पंडितजी कने दुअनियाँ मुसकी दैत नवकी के ँ बुझेलखिन्ह “ लोक की बुझतैक ? ओकरा सब के ँ ज्ञाने कतेक छैक ? देखू ई नाम अपूर्व छैक। एकरा एनाकए बुझियौक : भू ट्ट जा ट्ट नाथ। भू माने पृथ्वी, जा माने ताहि सँ उत्पन्न अर्थात् भूजा भेलीह सीता आ भूजानाथ भेलाह साक्षात् भगवान राम। अहीं सोचियौक यदि सोझे राम नाम राखि दितियैक बच्चा’क तँ संस्कार नाथ मिश्र’क ज्ञान’क कोन काज ? फेर ओहेन नाम तँ हरेक टोल परोस मे भेटत आ थोड़बे दिन मे राम भऽ जइतथि रमुआ।रमुआ ककरो हरबाह, रमुआ कोनो बोनिहर, रमुआ ककरो चाकर आ रमुआ कोनो पंडित’क बच्चा। फेर अन्तर की भेलैक ?”
आब जे ई व्याख्या सूनए सएह कहए वाहवाह, पंडित संस्कार नाथ मिश्र सन व्याकरणाचार्य के ँ छोड़ि के एतेक सुन्दर नाम सोचि सकैत छल ? नामकरण मे हुनकर ख्याति आर वेशी बढ़ि गेलन्हि।
मुदा सब किछु होइतो एहि परिवार मे आगू दू पुस्त तक व्याकरण आ साहित्य के ँ के कहए संस्कृत पढ़बो बन्द भऽ गेल। भेलैक एना जे संस्कार नाथ मिश्र भगवान सँ एकटा बाजी तँ जीत गेलाह परन्तु पूरा खेल तँ हुनका बूझल छलन्हि नहि।
भूजानाथ के ँ तीन टा बड़का माए आ बारह टा बहीन।सब मिला कए एहि सोलह स्त्रीगण’क ओ अति दुलारू बच्चा। लीखब पढ़ब सँ ओ तहिना पड़ाथि जेना नबका बियाह भेला पर पंडितजी पुरना कनियाँ सबसँ पड़ाथि। एहि शोक सँ बूझू आ कि उमेरक गुण दोष, पंडितजी अस्वस्थ रहए लगलाह। पाँचम वर्ष मे भूजानाथ’क उपनएन भेलन्हि आ तकर किछुए दिनक बाद पंडितजी भगवान सँ भेंट करए स्वर्ग चल गेलाह। भूजानाथ भठ्ठा नहिए धेलन्हि।
भूजानाथ बढ़ैत गेलाह आ ओतबे बेशी अबंड होइत गेलाह। हुनका पहुनाइ करऽ मे आ तिलकोर तोरै मे वेश आनन्द अबन्हि। जमीन जाल तँ पिताजी बारह टा कन्यादान मे प्रायः शेषे कऽ देने छलखिन्ह ते ँ घर गृहस्थीक चिन्ते कोन। बारह टा बहिन’क सासुर आ चारि टा मात्रिक मे बूलि बूलि ओ पहुनाइ करथि। भरदुतिया मे ओ बेशी परेशान भऽ जाथि। एक दिन मे बारह गाम कोना जेताह ? कोन बहिन सँ नोत लेथिन्ह आ किनकर उपराग सुनताह ? मुदा एकरो संयोगे कही जे पंडितजी अपन बारहो बेटीक बियाह जाहि गाम सब मे केलन्हि से सबटा गाम रेलबे लाइन के दूनू कात सकरी सँ निरमली के बीच आ कि सकरी सँ जयनगर के बीच एक कोस सँ कमे दूर पर।फेर बहीने सब अपना मे विचार क कए हुनका रस्ता बता देलखिन्ह जे एक बरख मे ओ चारि ठाम जाथि। भरदुतिया सँ एक दिन पहिने एक गोटे ओतए पहुँचि जाथि आ ओतए अगिला दिन एकदम सकाल नोत लऽ कए दोसर गाम पहुँचि जाथि। ओतए नोत लऽ कए फेर बरहबजिया गाड़ी पकड़ि बाकी दू बहिन के गाम जा कए नोत लेथि। एवम् प्रकारे ँ दिन अछैते ओ सब ठाम पार पुरि लेताह। एहि प्रकारे ँ हर चारिम बरख मे सब बहिन के ँ भाइ के ँ नोतबाक सऽख पूर होइत रहतन्हि। एहि मे भूजानाथ के ँ एकटा नफा ई भेलन्हि जे भार दोर के झंझट खतम भऽ गेलन्हि। चारि चारि ठामक भार तँ एक संगे लऽ जइतथि नहि। मुदा पैघ घाटा ई भेलन्हि जे भरि दिन एक गाम सँ दोसर गाम दौड़ैत रहला सँ कत्तौ इच्छा भरि तिलकोर नहि खा पबैत छलाह।
अस्तु, उचित समय पर भूजानाथ के बियाहो भेलन्हि। अबंड छलाह आ कि संस्कृत नहि पढ़लन्हि तै सँ की ? मिथिला मे ने कोनो वर कुमार रहलैक’ए आ ने कोनो कन्या कुमारि रहलैक’ए। लूल्हि नाङर कनियाँ आ आन्हर बहीर आ कि ढहलेल बकलेल वर, सबहक बियाह भेबे केलैए, घटक टा होशियार रहल चाही। तखन भूजानाथ तँ पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क पुत्र छलखिन्ह। घटक दरिद्र नारायण चौधरी एहि काज मे सहायक भेलखिन्ह। कोसिकनहा कात’क एकटा मसोमात’क लूल्हि किन्तु सुन्दरी कन्या स्वर्गीय पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क पुतोहु बनिकए माहीपुर एलीह। ओ फेर घूरि कए नैहर तँ नहि गेलीह, माइए मास दू मास पर खोज खबरि लेबा लेल आबि जाइत छलखिन्ह।
समय पाबि भूजानाथ के ँ पहिले प्रयास मे पुत्र भेलन्हि। हुनका पिता जकाँ तपस्या नहि करए पड़लन्हि। मुदा एहि समय एकटा दोसरे विचित्र घटना भेलैक।सौरी सँ बहराइते एकटा अगलटेंट छौंड़ी बाजि उठल जे उएह मुसरी भेलैक। ई मात्र ओहि बच्चा’क लिंग निर्धारण सूचक शब्द छलैक। मुदा से ओहि बच्चा के नामकरणे भऽ गेलैक आ. ओ मुसरीए भऽ कए रहि गेल। नाम किछु विचित्र तँ जरूर छलैक मुदा मिथिलाक गौरवमय इतिहास मे कतेको मुसरी भऽ गेल छथि से तँ अहूँ सब जनिते छिऐक। आ नामो सब एक सँ एक विचित्र जेना कि खुद्दी, फुद्दी, तिनकौड़ी, पलटू सलटू आदि। ते ँ एहि बात पर कोनो बेशी ध्यान नहि देल गेलैक। ओना स्वर्ग मे पंडित संस्कार नाथ मिश्र अपन पौत्रक एहि नामकरण पर की सोचने होएताह से हमरा सब कहियो बूझि नहि सकब।
मुसरीक माए लूल्हि जरूर छलखिन्ह मुदा छलखिन्ह होशियार। हुनका अपना बच्चा के ँ पढ़ेबा पर बेशी ध्यान छलन्हि। मुसरी स्कूल जाए लगलाह। संस्कृत विद्यालय नहि, गाम’क सरकारी प्राथमिक विद्यालय। रजिष्टर मे नाम लिखाएल मुसरी नाथ मिश्र। आ तकर बाद हुनकर नाम लिखाएल गेल माहीपुर सँ करीब डेढ़ कोस दूर सरपतिया चऽर के पुबरिया सीमा पर स्थित गाम कनकटोली के माता यशोदा हाई स्कूल जे हमरा सबहक नवका एम एल ए यादव जी किछुए बर्ष पहिने स्थापित कएने छलाह। मुसरी गामहिं सँ स्कूल जाइत अबैत छलाह।
मुसरी पढ़बा मे कोनो वेशी कुशागबुद्ध्रि नहि छलाह। लागल लागल कहुना दशवीं पास केलन्हि। आगू पढ़बाक ने इच्छा रहन्हि आ ने साधन। रोजीक ताक मे गामैक किछु लोक’क संग ओ पहिने कलकत्ता एलाह आ ओतए सँ एकटा ठीकेदारक संग कोरबा चल गेलाह जतए बड़का बड़का थरमल पावर स्टेशन बनि रहल छलैक। एतए ओ ठीकेदार’क मुन्सी के असिस्टेंट भऽ गेलाह आ नाम भऽ गेलन्हि श्री एम एन मिसरा जी। नाम छोट करैक ई अंगरेजिया तरीका सेहो कमाल के छैक।
हमर एम एन मिसरा के ठीकेदार मकान आदि बनबैत छलाह। मिसराजी’क काज भेलन्हि मजदूर सब के पाछू रहब। मजदूर सब ठीक सँ काज करए, सूति बैसि नहि रहए आ किछु सामान चोरा नहि लिअए तकरे देखभाल करब भेल काज हुनक। मुन्सी अपने तँ टेन्ट मे आराम करथि आ एम एन मिसरा के ँ रौद बसात पानि बिहारि मे मजदूर’क संगे रहए पड़न्हि।
गाम मे खबरि गेलैक जे भूजानाथ’क बेटा के ँ नीक नौकरी भेटि गेलन्हि। घटक दरिद्र नारायण चौधरी बूढ़ो भेला पर सक्रिय छलाहे। ओ आबि भूजानाथ के ँ मनौलन्हि आ किछु साधारण टाका’क लोभ दऽ कए हुनक बेटाक बियाह ठीक करा देलखिन्ह।
समय पर मुसरी अर्थात् एम एन मिसरा’क बियाह भेलन्हि आ फेर पितामह’क तपस्या’क फले ँ पुत्ररत्न के प्राप्ति सेहो। नाम राखल गेल दिलीप कुमार। नब परम्परा’क अनुसार पारिवारिक नाम ‘मिश्र’ हटा देल गेल।
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आब आउ असली खिस्सा पर जे पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क प्रपौत्र एहि आधुनिक कम्प्यूटर युग मे पंडित कोना भऽ गेलाह।
एम एन मिसरा जखन कोरबा मे रौद बसात पानि बिहारि मे मजदूर सबहक ओगरबाही करैत रहथि तखन हुनका डेराक बगल मे हरलाखी लगहक कोनो गाम के एकटा पाँड़ेजी रहैत छलखिन्ह जे ओतए पंडिताई करैत छलाह। पाँड़ेजी कम्मे पढ़ल लिखल किन्तु व्यावहारिक लोक।अपन पंडिताई मे संस्कृत कम हिन्दीए सँ बेशी काज चलबैत छलाह। हनुमान चालीसा पढ़ि कए ओ महादेवक पूजा सेहो कऽ दैत छलखिन्ह आ कतेक ठाम कन्यादान सेहो। मुदा तैयो खूब व्यस्त रहैत छलाह आ नीक टाका कमा लैत छलाह। एम एन मिसरा जी दसवीं पास आ ठीकेदार’क मुन्सी के असिस्टेंट मात्र पाँच हजार कमाइत छलाह आ पाँड़ेजी सुखारो ऋतु मे पचीस तीस हजार उठा लैत छलाह। भादव, कातिक, माघ, बैसाख आदि मास मे तँ पचासो हजार पार कऽ लैत छलाह।टाका तँ जे से, मान सम्मान सेहो खूब बेशी। यजमान सब अपन अपन वित्तक अनुसार रिक्सा वा गाड़ी पठा हुनका बजबैत छलखिन्ह। ते ँ रौद बसातक झंझट हुनका कहियो नहि परेन्हि।
पाँड़ेजीक कमाई आ मान सम्मान सँ एम एन मिसरा जी बहुत प्रभावित भेलाह। एक दिन पाँड़ेजी हुनका लऽग अपन विचार व्यक्त केलखिन्ह “ देखियौ मिसरा जी, आइ कालि सबहक बेटा बेटी कम्प्यूटर इंजिनीयर भऽ रहलैक’ए। सब बंगलोरे मे नौकरी करए चाहैत अछि आ कि अमेरिके जाए चाहैत अछि। मुदा पंडित’क संख्या कतेक कम भऽ गेलैक अछि। एतेक टा कोरबा मे हम सब मात्र दश गोटे छी आ हरदम एक यजमान सँ दोसर के ओहि ठाम दौड़ैत रहैत छी। पंडित सब कम्प्यूटर इंजिनीयर सँ कोन कम कमाइत छथि यदि अपने ठीक सँ जोरियौक। सुनै छी अहाँक पितामह नामी पंडित छलाह से अहूँक परिवार सँ ई परम्परा उठि गेल। हमरा तँ लगैत अछि अगिला पुश्त मे पंडित जातिए विलुप्त भऽ जाएत।”
एम एन मिसरा जी’क पुत्र दिलीप कुमार गामहि मे सरकारी प्राथमिक विद्यालय मे पढ़ैत छलखिन्ह आ अगिला साल हुनकर विचार छलन्हि माता यशोदा हाइ स्कूल मे भर्ती करेबाक।एही समय पाँड़ेजी सँ प्रभावित भए ओ एकटा क्रांतिकारी निर्णय लेलन्हि जे बेटा के ँ महामाया संस्कृत विद्यालय मे पढ़ौताह आ अपन पितामहक सुयश के ँ पुनः स्थापित करताह।
दिलीप कुमार महामाया संस्कृत विद्यालय मे भर्ती भऽ गेलाह आ लगलाह लघु सिद्धान्त कौमुदी आ अमर कोष रटए। मुदा हुनक प्रपितामह’क युग सँ एहि युग तक बहुत परिवर्तन भऽ गेल छलैक जाहि मे संस्कृत विद्यालय आ मदरसा आदि मे सरकार नवका पाठ्यक्रम लागू करा देने छलैक। नवका पाठ्यक्रम’क अनुसार विद्यार्थी के ँ आनो बिषय जेना गणित, इतिहास आ विज्ञान आदि सेहो पढ़ए पड़ैत छलन्हि। उचिते, संस्कृत’क प्राथमिकता कने कम भऽ गेल छलैक।
मध्यमा पास केलाक बाद दिलीप कुमार आबि गेलाह कोरबा आ पाँड़ेजीक संरक्षण मे लगलाह पंडिताइ के व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करबा मे। अथवा कहू अपरेन्टिस भऽ कए प्रशिक्षण लेबए लगलाह।
पाँड़ेजी दिलीप कुमार के पढ़बा लिखबाक ज्ञानक परीक्षा किछुए क्षणक गपसप मे लऽ लेलखिन्ह। तकर बाद ओ एक प्रकारक क्रैश कोर्स के पाठ्यक्रम बनौलन्हि जाहि मे सत्यनारायण पूजा आ दुर्गा शप्तशती पाठ मूल संस्कृत मे छलैक। आ सब देवी देवता’क प्रार्थना सेहो संस्कृते मे। बाकी हनुमान चालीसा आ रामचरित मानस के विभिन्न उद्धरण छलैक। एकर अतिरिक्त किछु छिटफुट वेदपाठ सेहो। ई सब दिलीप के ँ कण्ठस्थ करबाक छलन्हि।
एहि किताबी ज्ञान के अतिरिक्त व्यावहारिक ज्ञान’क लेल पाँड़ेजी दिलीप के ँ अपना संगे किछु किछु ठाम आयोजन सब मे लऽ जाए लगलखिन्ह। ओतए दिलीप हुनकर असिस्टेंट जकाँ काज करथि, जेना यजमान सँ विभिन्न वस्तुक ओरिआओन कराएब, पूजाक सामग्री सजाएब, आदि। पाँड़ेजीक अनुभव छलन्हि जे जतेक विस्तृत रूपे ँ सामग्री सजाओल जाए, यजमान वर्ग पर ओतबे वेशी प्रभाव पड़ैत छैक। विन्यास’क लूड़ि सीखब मंत्र सीखब सँ वेशी महत्वपूर्ण। एकर अतिरिक्त दिलीप पूजा’क समय पाँड़ेजीक प्रत्येक भाव भंगिमाक सूक्ष्म अध्ययन करथि। सत्यनारायण पूजा मे कथा’क समय भाषा टीका द्वारा हिन्दी मे लोक के ँ ओकर महत्त्व बुझाएब पाँड़ेजीक विशेषता छलन्हि। समय जरूर वेशी लगैत छलैक मुदा एहि सँ पाँड़ेजीक पांडित्यक धाख बढ़ैत छलन्हि। ओ दिलीप के ँ गर्व सँ सुनबथिन्ह “गाम पर पूजा होइत छैक तँ कथा’क समय यजमान आ आनो लोक सब बैसल बैसल ओंघाए लगैत छथि, मात्र पुरहित जी अपने कथा बँचैत रहैत छथि। हमरा कथा बँचैत काल अहाँ देखियौक, लोक आनन्द सँ झूलैत रहैत अछि। बीच बीच मे हमरा संगे सत्यनारायण भगवान के जयजयकार सेहो करैत रहैत अछि। कारण स्पष्ट छैक। संस्कृत मे कथा भेला सँ ककरो किछु बूझऽ मे तँ अबैत नहि छैक। पुरहितजी’क सस्वर पाठ ओहने होइत छन्हि जेना बच्चा के ँ सुतबै कालक लोरी गीत। कथा एहेन भाषा मे कहियौक जे लोक बूझए। बस, अपनहि सब अहाँक संगे एकाकार भऽ जाएत।”
दिलीप एक दिन मन्द विरोधक स्वर मे कहलखिन्ह जे संस्कृत तँ देववाणी छिऐक। तै पर पाँड़ेजी हुनका बड़ नीक जकाँ बुझेलखिन्ह “ देखियौक, संस्कृत देववाणी तखन छलैक जखन सब लोक संस्कृते बजैत छल। देवता’क कोनो वाणी नहि छन्हि। हमरे अहाँक वाणी सँ देवता बजैत छथि।वाल्मीकि रामायण छैक संस्कृत मे आ तुलसीदास रामयण लिखलन्हि हमरा अहाँक भाषा मे। लोक ककरा वेशी पढ़ैत छैक ? एखन अहाँ भगवान’क आरती गबैत छी कि लक्ष्मीजी’क आरती कि आन कोनो देवता’क आरती। सबटा तँ हिन्दी मे छैक आ कतेक आनन्द अबैत छैक लोक के ँ आरती गबैत। एकरे संस्कृत मे बना दियौक, कम्मे लोक बचत अहाँ के ँ संग दै बला। ”
दिलीप बूझि गेलाह असली गप्प। एवम् प्रकारे ँ ओ ट्रेन्ड होबए लगलाह। छोटछीन आयोजन सब मे यजमानक हैसियत देखि पाँड़ेजी दिलीप के ँ एकसरे पठबए लगलखिन्ह। हुनका अतीव खुसी छलन्हि जे लुप्तप्राय पंडित प्रजाति मे एकटा सदस्य जोड़ा रहल अछि।
एक दिन पाँड़ेजी एम एन मिसरा जी सँ दिलीप कुमारक भविष्य के लेल विचार विमर्श केलन्हि। हुनकर विचार छलन्हि जे दिलीप कोरबा छोड़ि कोनो नव जगह चल जाथि। एतए ओ पंडिताइ सिखलन्हि अछि। बारीक पटुआ तीत होइते छैक। अपना इलाका मे कोनो विद्वान के ँ यश नहि भेटैत छन्हि। ते ँ विद्वान के ँ विदेश मे अपन विद्वत्ताक प्रचार करबाक चाही। तहिना पंडित के ँ अपरिचित जगह मे यजमनिका’क प्रसार करबाक चाही। शूरवीर के ँ अनचिन्हार लोक’क बीच जा कए राज करैक चाही। बाहरक लोक के गुण अवगुण’क थाह जल्दी नहि लगैत छैक। ते ँ ई सब दीर्घायु होइत छैक जेना अपना देश मे अंग्रेजक राज।
करीब दू साल तक व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त केलाक बाद पंडित दिलीप कुमार पहुँचि गेलाह सिलबासा जे एकटा नवका औद्योगिक केन्द्र भऽ रहल छलैक। ओतए किछु दिन स्थानीय हनुमान मन्दिर पर एकसरे दिन राति हनुमान चालीसा., किछु रामायण’क उद्धरण आ विभिन्न देवी देवता’क प्रार्थना संस्कृत मे सस्वर पाठ करैत रहलाक बाद शनैः शनैः यजमान सब भेटए लगलन्हि। एतए ओ नवका पंडितजी नाम सँ विख्यात भऽ गेलाह।
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हम सब सिलबासा आएल छी जतए हमर जमाए एकटा फैक्ट्री मे इंजीनियर छथि। ओ एकटा नवका फ्लैट लेलन्हि अछि तकरे गृहप्रवेश’क पूजा छिऐक। एही आयोजन मे नवका पंडितजी बजाओल गेल छथि। हमर बेटी कहलन्हि जे नवका पंडित छथि हमरे ग्रामीण दिलीप कुमार, स्वर्गीय पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क प्रपौत्र। ओना मुम्बई मे हमर दीर्घ प्रवास मे गामक ई एकटा परिवत्र्तन हमरा बूझल नहि भेल छल।
हम पूरा आयोजन मे हुनका सँ नजरि बचा कए हुनकर व्यवहार’क अध्ययन कऽ रहल छी। हुनका ईहो नहि बूझल छन्हि जे हम हुनकर ग्रामीण छिएन्हि। ओ अपन काज एकटा नीक प्रोफेसनल जकाँ सम्पादित करैत छथि जाहि मे संस्कृत कम हिन्दीए बेशी रहैत छैक। एकटा आमंत्रित बूढ़ व्यक्ति हुनका टोकैत छथिन्ह “ पंडितजी, हिन्दी मे जे अर्थ बुझेलियैक से तँ नीक लागल मुदा संस्कृत मे पूजा पाठ’क विशेषता किछु भिन्ने छैक। हमरा बुझने तँ संस्कृते वेशी रहितैक तँ नीक।” पंडितजी बड़े संयत भावे ँ हुनका कटलखिन्ह “एतए प्रायः साठि सत्तरि लोक छी। बताउ कते गोटे संस्कृत बूझैत छी ?” सब चुप। पंडितजी आगू बजलाह “ देखू देववाणी सँ लोकवाणी वेशी प्रमुख होइत छैक। इएह बात तँ कवि विद्यापति कहि गेलाह। जे बुझियैक सएह वाणी। नहि तँ हम संस्कृत मे पूजा करी आ कि तमिल मे, दूनू एक्के।” नवका पंडितजी अपन पांडित्यक प्रभाव बना लेलन्हि।
हमरा ई देखि खुसी होइत अछि जे अपन प्रपितामह’क पंडिताइ के किछु अंश जरूर दिलीप कुमार जी बचा रहल छथि। ओना हमरा ई नहि बूझल अछि जे देववाणी’क ई परिवर्तित रूप स्वर्ग मे विराजमान पंडित संस्कार नाथ मिश्र के ँ केहन लागल हेतन्हि।

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