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Friday, August 10, 2012

ओमप्रकाश झा -डीहक जमीन

ओमप्रकाश झा  


डीहक जमीन
 ट्रेन सकरी टीशन सँ फूजल आ पूब दिस घुसकऽ लागल। नरेश एकटा बोगीमे अपना सीटपर बैसल अपन गामक बात सभ मोन पाड़ैत विचारमग्न भऽ गेल। बहुत दिनक बाद ओ अपन गाम जा रहल छल। भरिसक १० बरखक बाद। ओ एखन भोपालमे शिक्षा विभागमे नौकरी करैत छल अधिकारीक पदपर। गाम जाइ लेल चिकना टीशन उतरि कऽ जाए पड़ै छलै। सकरी तक बड़ी लाइनक ट्रेन चलैत अछि। ओतएसँ फेर छोटी लाइनक ट्रेन। ओकरा बोगीमे पूरा लोक कोंचल छल। चारि पसिन्जरक सीटपर सात-आठ लोक बैसल छल। हो-हल्ला आ गप-शपसँ पूरा डिब्बामे कोलाहल जकाँ छलै। मुदा ओकर दिमागमे अपन पुरनका दिन घुरियाए लगलै। सभटा दृश्य चलचित्र जकाँ ओकर आँखिक आगाँ घूमऽ लगलै। ओ अपनाकेँ २० बरख पहिनुका स्कूलमे देखऽ लागल। बस्ता लऽ कऽ नित भोरे पाठशाला जेबाक दृश्य आगाँमे नाचऽ लगलै। ओकर पिता फेंकन मरड़ हरवाह छला आ गाममे भुटकुन बाबू ओतए खेतीक आ माल-जालक काज करै छला। किछु बटाइपर खेती सेहो करै छला। अपन जमीनक नाम पर पाँच कट्ठा खेतीक जमीन आ आठ धूरक घरारी छलन्हि। हुनकर माय मरौनावाली केर नामसँ जानल जाइत छलीह। भरि दिन मरौनावाली भुटकुन बाबू ओतए घरेलू काजमे मदति करैत छलीह आ साँझे घर आबै छलीह। नरेश बच्चा छलाह आ भरि दिन एम्हर ओम्हर खेलाइत रहैत छलाह। एक दिन भुटकुन बाबू फेंकनकेँ कहलखिन्ह जे नरेशबा भरि दिन टौआइत रहै छौ, किए नै ओकरा हमरा ऐठाम चरवाहीमे पठा दैत छिहीं। फेंकन बजलाह- "गिरहत, ई गप नै कहियौ, ओ एखन मात्र चारि बरखक छै। ओकरा अगिला बरखसँ स्कूल पठेबै।" भुटकुन बाबू व्यंग्यमे बजलाह- "तौं तँ एतबे टा सँ हमरा ऐठाम चरवाही करै छलैं। तखन तोहर बाबू हरवाही करै छलखुन्ह, मोन छौ ने।" फेंकन कहलक- "जी ओ जमाना आब नै छै गिरहत। मरौनावाली एकदम जिद केने छै जे नरेशबाकेँ स्कूल पठबियौ। किछु दिन पहिने बिसेसर बाबू मास्टर साहब भेंटल छलाह। ओ कहलथि जे पढेनाइ बड्ड जरूरी छै तैं नरेशबाकेँ स्कूल पठाबहक।" भुटकुन बाबू- "जे तोहर इच्छा। हम तँ तोरे दुआरे कहलियौ। तोहर काज किछु हल्लुक भऽ जइतौ।" फेंकन- "गिरहत, हम जाधरि सकब ताधरि अहाँक काज करैत रहब।"
अगिला साल नरेशक नाम स्कूलमे लिखाओल गेल। नरेश पढ़ैमे नीक छलाह आ जल्दिये मास्टर सबहक प्रिय भऽ गेलाह। दसवीं बोर्डमे ओकरा अस्सी प्रतिशत अंक आएल। ओ कओलेजमे पढै लेल दरिभंगा चलि आएल आ ट्यूशन पढा कऽ अपन खर्च निकालैत पढ़ऽ लागल। ओम्हर गाममे फेंकन आ मरौनावाली भुटकुन बाबूक काजमे लागल रहल। नरेशक पढाइ पूरा भेलै आ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोगक इम्तिहान पास कऽ कए शिक्षा विभागमे नौकरी भेटलै। नियुक्ति पत्र गामक पतापर आएल छल आ सौंसे गाम अनघोल भऽ गेल रहै। ओइ दिन नरेश अपनाकेँ आकाशमे उड़ैत पओलक। भुटकुन बाबू जे आब वृद्ध भऽ गेल छलाह ओहो नरेशकेँ बजा कऽ आशीर्वाद देलखिन्ह। मरौनावाली तँ कानैत बेहाल छल जे बेटा आब नजरिसँ दूर भऽ जाएत। किछु दिनक बाद नरेशक बियाह भऽ गेलै। किछु दिन कनियाँ गामेमे रहलन्हि। फेर जएबाक जिद कऽ देलकै। नरेश कनियाँकेँ लऽ कए भोपाल चलि गेल। मरौनावाली ओइ दिन बड्ड कानल रहै। नरेश अपन माता पिताकेँ संगे रहै लेल बहुत आग्रह केलक, मुदा फेकन साफ मना कऽ देलकै। ओकर कहनाइ रहै जे पुरखाक डीह छोड़ि नै जाएब। नरेश कहलक जे ई आठ धूर डीह अहाँकेँ एतेक प्रिय भऽ गेल जे अपन एकलौता संतान संगे रहै लेल तैयार नै छी? ओतए नाना प्रकारक सुविधाक गप सेहो नरेश कहलकै, मुदा फेकन अपन जिदपर अड़ल रहलाह। मरौनावाली कनी जिद केलखिन्ह तँ फेकन खिसिया गेला आ कहलखिन्ह जे अहाँ चलि जाउ, हम असगरे रहब। मरौनावाली धर्मसंकटमे पड़ि गेली आ अंतमे गामेमे रहै कऽ निर्णय लेलथि। नरेश नियमित रूपसँ गाम पाइ पठबैत रहै आ ओ फेकनकेँ हरबाही जबरदस्ती छोड़ा देलक। फेकन साल दू सालपर नरेश लग जाइत रहै छलाह आ नरेश काजक अधिकता आ बच्चा सबहक पढाइ दुआरे गाम कहियो नै आबैत छलाह। आब मोबाइलक जमानामे नरेश फेकनकेँ मोबाइल सेहो कीन देने छलखिन्ह, जइसँ ओ सभ नियमित रूपसँ सम्पर्कमे रहऽ लगलाह। एक दिन फेकन मोबाइलसँ नरेशकेँ फोन केलखिन्ह आ कहलखिन्ह- "बौआ, अपन डीहसँ सटल भुटकुन बाबू केर दू कट्ठा जमीन परती पड़ल छै। ओ ओइ जमीनकेँ बेचऽ चाहै छथि। हमरा कहलथि जे तूँ जे ओ जमीन किनबऽ तँ हम तोरा पच्चीसे हजारमे दऽ देबऽ। बौआ ओइ जमीनक कीमत चालीस हजारसँ कम नै छै। नीक मौका छै। पाइ पठा दितहक तँ हम तोरे नामसँ वा तोहर कनियाँक नामसँ जमीन कीन दितिअ।" नरेश चोट्टे खिसिया गेल आ बाजल- "हमरा गामसँ कोनो मतलब नै अछि। अहाँ बलौं जमीन कीनऽ चाहै छी। हम तँ सोचै छी जे आठ धूरक डीह आ पाँच कट्ठा खेतीबला जमीन बेची आ गामसँ पिण्ड छोड़ाबी।" फेकन- "हमरा जिबैत ई काज नै हेतौ। पुरखाक जमीन बेचबाक बात तोहर मोनमे कोनाकेँ एलौ। तूँ ओइ गामसँ पिण्ड छोड़ेबाक गप करै छँ, जतए नेनामे खेलेलह, जतुक्का पानि पीबिकेँ नमहर भेलऽ, जतए तोहर बाप-दादा केर सारा छह। तूँ डीहक नबका जमीन नै कीन, मुदा पुरनका बेचैकेँ गप नै कर।" अस्तु नबका घरारी किनबाक गप एतहि खतम भऽ गेल।
एक दिन नरेशक बड़की बेटी सुनन्दा, जे चौथामे पढै छल, नरेशकेँ कहलक- "पापा, जेना हम अहाँ संगे रहै छी, अहूँ तँ बच्चामे बाबा संगे रहैत हैब।" नरेश- "हाँ, रहै छलौं। सभ रहैत अछि।" सुनन्दा- "अहाँ केँ सभ गप मानैत हेता बाबा।" नरेश- "हाँ यथासम्भव मानैत छलाह।" सुनन्दा- "अहाँ बड्ड नीक छी पापा। हमर सभ गप पूरा करै छी। हमहूँ नमहर भऽ केँ अहाँक सभ गप जरूर मानब।" ई कहैत ओ खेलाइ लेल चलि गेल। ओकर अन्तिम वाक्य सुनि नरेश धक सँ रहि गेल। ओकरा अपन नेनपनक सभ गप मोन पड़य लागलै, जे कोना फेकन फाटल धोती पहिरैत रहल, कोना मरौनावाली फाटल नुआ पहिरैत रहलीह, मुदा नरेशक पढाइमे कोनो बिथुत नै हुअ देलखिन्ह। एक बेर तँ नरेशकेँ फार्म आ किताब लेल पाँच सय टका भुटकुन बाबूसँ पैंच लेबामे कोन कोन गप नै फेंकन केँ सुनऽ पड़ल छलै। नरेशक मोनमे विचारक तूफान उठि गेल। ओ घरसँ बाहर निकलिकेँ घूमऽ लागल। घुमैत पार्क दिस चलि गेल। ओतए एकटा गाछपर एकटा चिड़ै अपन बच्चा सभकेँ चोंचमे दाना दैत छल। ओकर हृदय फाटऽ लागलै। पण्डितजी केर संस्कृतक कक्षा मोन पड़ऽ लागलै जइमे ओ "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि" पर लगातार दू घन्टी पढ़बैत रहि गेल छलखिन्ह। ओ कक्षा नरेशकेँ बड्ड नीक लागल रहै। कतेक दिन धरि ओ ऐ श्लोकक पाठ करैत रहै छल। ऐ विषयपर वाद विवाद प्रतियोगितामे सेहो ओ नीक बाजल छल आ जिला स्तरपर पुरस्कार सेहो भेटल छलै। ओ एकटा निर्णय लेलक आ डेरा आबिकेँ कनियाँसँ कहलक- "हमर अटैची तैयार कऽ दिअ। हम गाम जाएब।" कनियाँ बाजलथि- "ई की बाजै छी। ओतए एखन जा कऽ की करब? दस बरखसँ ऊपर भेल गाम गेला। के चिन्हत? बाबूजीसँ नित गप होइते अछि।" नरेश- "डीहक जमीन कीनै लेल जाइत छी।" कनियाँ- "ई कोन बतहपनी धेलक अहाँकेँ।" नरेश- "बताह तँ एखन धरि छलौं। आब ठीक भऽ गेलौं। जइ मातृभूमि केर माटि-पानिसँ हमर देह पोसल अछि, जे मातृभूमि हमरा हमर पहचान देलक, ओकरा हम बिसरि गेल छलौं। माय-बाबूक आकांक्षा आ मनोरथ बिसरि गेल छलौं। एतए भोपालमे सभ सुविधा अछि, मुदा जे अपनैती हमरा गाममे भेटैत रहए तकर अभाव बुझाइत रहैए। आब गाम सालमे एक बेर तँ जरूर जाएब।" कनियाँ कनी काल घमर्थन केलकन्हि, मुदा हुनकर जिद आ दृढताक आगाँ चुप भऽ गेली।
एकाएक नरेशक भक टूटल। बगलक यात्री, जिनकासँ सकरीमे परिचय भेल रहन्हि, हुनका हिलबैत कहैत रहए जे श्रीमान् चिकना आबि गेलै, कतेक सुतब, उतरू नै तँ ट्रेन फूजि जाएत। मुस्की मारैत नरेश बजलाह- "नै यौ, आब जागि गेल छी। एखन धरि सुतल छलौं।" ई कहैत ओ टीशनपर उतरि गेल आ गाम दिस चलि देलक। डेग जेना हल्लुक भऽ गेल रहै आ तुरन्ते गाम पहुँचि गेल। फेंकन एकाएक नरेशकेँ देखलक तँ आश्चर्य भेलै आ मरौनावाली भरि पाँजमे बेटाकेँ पकड़ि कानऽ लागल। नरेश फेकनकेँ गोर लागिकेँ कहलक- "बाबू, हम आबि गेलौं डीहक जमीन किनबाक अछि ने।"
साँझमे दुनू बापुत भुटकुन बाबू लग गेलाह। भुटकुन बाबू नरेशकेँ आशीर्वाद दैत कहलखिन्ह- "गामकेँ कोना बिसरि गेलहक?" नरेश- "नै बाबा, बिसरल नै छलौं, कतौ हरा गेल छलौं। आब आबि गेलौं। डीहक जमीन कीनै लेल।" भुटकुन बाबू हँसैत बजलाह- "चल काल्हिये रजिस्ट्री कऽ दैत छियौ। पाइ आगाँ पाछाँ दऽ दिहऽ।" नरेश- "पाइ आनने छी बाबा।"
साँझमे फेकनक छोट दलान लोकसँ भरल छल। मरौनावाली रहि रहि कऽ चाह बनाबैत छल। नरेशक गाममे आ ओकर घरमे जेना पावनि-तिहारक चुहचुही छलै।

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