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Friday, August 10, 2012

नवीन ठाकुर -मिथिला उवाच



नवीन ठाकुर, गाम- लोहा (मधुबनी ) बिहार, जन्म - १५-०५-१९८४, शिक्षा - बी .कॉम (मुंबई विद्यापीठ), रूचि - कविता, साहित्यक अध्यापन एवं अपन मैथिल सांस्कृतिक कार्यकममे रूचि।
मिथिला उवाच
फलना बाबू मरि गेला, बहुत नीक लोक छलाह। -के कहलक। -एखने एगो धिया-पुता बजैत जाइ छल जे फलना दिन भोज हेतै। बाहर निकललहुँ तँ ...हरिबोल-हरिबोल सुनाइ पड़ल!
तूँ ...जेबहक की नै कठियारी ...हाँ हाँ किए नै जेबै! ..जाएब तँ संग कऽ लेब कने।
...फलना बाबू छी यौ, कठियारीक हकार दैत छी .... चिलना बाबू नै रहला ...! -ओहो.. ओहो ...काल्हिये तँ गप्प भेल छल हुनका संग। हमरा पोखरिपर भेटल छलाह ...आहा.. हाँ .. कहियौ...... जन्म मरणक कोनो भरोसा नै होइत छै यौ बाबू ...ठीके कहैत छिऐे काका .......! लेकिन गेलाह सभटा सुख भोगि कऽ, बेटा-पुतौह बड़ निक छनि, खूब सेवा-वारी करैत छलनि! .हाँ हाँ, किए नै करथिन, कमिये कोन छलनि ....एगो बेटा डाक्टर छनि ...एगो वन विभागक अधिकारी छनि। बेटियो सभ सुखी सम्पन्न छनि, सभ काजसँ निश्चिंत भऽ कऽ मरलाहेँ! -हँ से तँ सभ अर्थेसँ महादेवक कृपा सन भरल पुरल छथि, लेकिन काज राज ढंगसँ करता तखन ने। भगवान् कोनो कमी नै देने छनि। जवार तँ खुएबाक चाही। हँ तँ से किए नै! -चल चल देरी भऽ रहल अछि, फेर एबाको अछि, पूजा पाठ करबाक अछि!
राम नाम सत्य......! हरी बोल ....हरी बोल .......!
-कथीक अतेक हल्ला भऽ रहल छै यौ छोटका बाबू । -भौजी, फलना बाबूक स्वर्वास भऽ गेलनि!
-ठीक छै, अहाँ चलि जाउ कठियारी, भैयाकेँक पठा दियौ कने अंगना। भोरसँ भुखले प्यासल बैसल छथि दलानपर !
-इजोरियो रातिमे टोर्च लऽ कऽ ई के आबि रहल अछि बुरलेल आदमी हौ। .. तखने मुँहपर टोर्च मारलकनि ....काका ...एकादसा- दुआदसाक नोत हकार दैत छी। ......पुरखक दफ्फा ..! ..आहा ...फलना बाबूबु ...आउ आउ, बैसू .....! -नै काका बड़ काज अछि एखन ...! -हाँ अहाँकेँ तँ एखन काजक अंगना अछि बौआ, ....बहिन सभ एलीहेँ की नै? -हाँ सभ आबि गेल ... काका छोटकी पुछै छल अहाँक बारेमे, जे काका जिबिते छथिन ने...! -हह हहह हा.. हा.. हाँ हाँ ओकरा तँ होइते हेतै, बच्चामे बड़ मारने रहिऐे ने ......! -बड़की बहिनकेँ तँ ननकिरबो छऽ ने एकटा ... -हाँ ५ सालक छै ननकिरबा ...! -भगवान् देह समांग दोउ बढ़िया .......बड़ निक ! -ठीक छै चलै छी काका .!
भोजक दिन-
-कए गो तरकारी छै हौ भाइ .....? -सात गो तरकारी छै काका ...! - कोन-कोन? -आलू-कोबी, भाटा-अदौरी, कदीमा, सजमैन, साग, बड़ आ बड़ी। -आह बहुत निक .......सबेर सकाल बिझो भऽ जेतै तँ ठीक रहितै ..बेसी रातिमे नै ठीक होइ छै।  ...धिया पुता सब उन्घा लागै छै ...हाँ .... कनेक देख कऽ आब तँ कतऽ तक काज आगाँ बढ़लैए ...!
तखने दूरसँ.....! -फलना बाबू छी यौ ....बिझो करबैत छी .! -हाँ हाँ.... ठीक छै...! -हइ बिझो भेलै ....बिझो भेलै....! -हइ छौड़ी सभ, हल्ला नै कर ....! -बाबा ......भर्तुआ सुइत रहल ...! -हइ जो ने, उठा दही ने, साँझेसँ हल्ला केने छलै भोज खाएब.. भोज खाएब .....जो जल्दी लोटा लऽ कऽ आऽ गऽ ..! दू गो लोटा लऽ लिहँ... हाँ...! -यौ एगो आउर पात दिअ ई फाटल अछि .. -हइ छौड़ी....पात खेबा की भात .....! -जाए दियौ बच्चा छै, हइ ले बौआा ...दोसर पात! -हइ भात उठबऽ ने......! मऽ तोरी, गप की करैत छऽ, उम्हर एखन धरि पत्तो नै परसला ....! दाइल लेब दाइल ..! डालना.... डालना....! -पाइनो एगोटा तँ उठा लाए कमसँ कम ....की सभ तरकारिये परसबऽ! ..हरे करिया ..एम्हर आ ..चल पाइन उठा ले तूँ .! -हइ हम पानि नै उठाएब ...! -हइ बहिन्चो पानि पिएलासँ धर्म हेतौ ....उठा ने! -हइ कात भऽ कऽ हाथ धोए जाइ जाउ। -हइ, ई के धिया-पुता अछि .....हइ, बिच्चइमे रास्तापर पाइन हरबै छऽ। ...लोक पिछड़ि कऽ खसतै। एकने चंडाल कही के ...! -बहुत नीक छल काका भोज। जय जय भऽ गेलै ..! - हौ एतबो नै करितै तँ नाक-कान कटबऽ के छलै की ...एतेक सम्पैत कतऽ कऽ रखतै ....समाजमे रहऽ के छै की नै ....! -हाँ सेहो छिऐ........देखियौ आब काल्हि की होइए। ....सुनऽमे आएलऽ जे जवार भऽ रहल अछि, पाँच गाम नोतत! -आह करबाके चाही.. अइसँ नाम होइत छै.. ..अपने नाम हेतै ने कोनो हमर थोड़े ने, हाँ ....गामक नाम सेहो हेतै किने!
भोजक २-४ दिन पश्चात ......!
-हौ फलना बाबुकेँ राति तबियत खराप भऽ गेलै की ....! -हल्ला सुनलिऐ काका आइ भोरमे ....ओहो लटकले छथि, पाकल आम छथि। ..... आब जे दिन जिबैत छथि से दिन! -हाँ ...हमरो जेबाक छलए बंबई लेकिन ई हल्ला सुनलिऐ तँ रुकि गेलहुँ ! -दू चारि दिन आर रूकि जाइ छी ...कहीं ओहो ने ...आब कतबो छथि तँ दियादे छथि ने ....चलि जाएब तँ बदनामिये हएत!
तइ दुआरे रुकिए जाइ! - पुरवा बहि रहल अछि, चंडाल जकाँ साँइ साँइ कऽ रहल अछि, जेना दौगि रहल अछि आतुर भऽ- व्याकुल भऽ। हरा गेलैए किछु ..ताकि रहल अछि जेना! -सुखा गेल मुँह, नाक, कान सभटा। पएर तरक धरामे दरार पड़ि गेल अछि सौंसे खेतमे। छाती फाटि कऽ कानि रहल अछि जेना बुझा रहल छै सीता एखने गेलीहेँ धरतीमे फाँक दऽ कऽ! मूड़ी ऊपर उठेलहुँ तँ लागल जेना चुनरी ओढ़ा देलक कियो मुँहपर...! हे भगवान्, बज्जर खसौ ई करिया बदराकेँ। सभ दिन कऽ अपन सकल देखा कऽ, मुँह दुइस कऽ भागि जाइए! कनेकबो दर्द नै छै कोंढ़मे बेदर्दाकेँ!
-आह ..हा ...नाकपर एगो शीतल बुन्न खसल ओढ़नीसँ चुबि कऽ। मोनक भ्रम अछि की? तखने दुनु पपनीपर खसल जेना कहि रहल अछि, उठू, आब नै सताएब हम अहाँकेँ, किया एतेक अन्धेर्ज भेल अछि .....संतोख भेल भीतरसँ कने!
ठनका, ठनकल जोरसँ तखने! कतऽ गेल गै छौड़ी ...अमोट सुखाइ छौ अंगनामे, उठा ले ने, पाइन एलै... भिजलौ सभटा!
यै भौजी, असगनीपर सँ कपड़ा उतारू सभटा ....भीजल ....(अमोट उठबैत एगो भौजीयोकेँ काज अरहेने गेल दुलरिया।)
एक अछार बरिस कऽ रुकि गेल तँ निकलि गेलौं खेत दिस कने... आह हा ....हृदयक गहराइ तक उतरि गेल ओ सोन्हगर माटिक सुगंध, पहिल अछारक बाद दबने छल जे बहुत दिनसँ भीतरमे! मृग मरीचिका जेना भटकलौंहेँ कने काल, ओर ने कोनो छोर ओइ सुगंधक, सजि-धजि कऽ बैसल अछि जेना मिलनक आसमे प्रेमीक बाट तकैत... चारु दिस सुन्न पड़ल अछि खेत, नबका फसलक इंतजारमे! सरजू काका महिना भरिसँ हरक शान चढ़ा रहल छथि फराक, बड़द सभकेँ खुआ-पिया कऽ टनगर बनेने निङहारैत छलथि आकाश.. सभ दिन चारू दिशामे घूमि कऽ बरखाक आसमे,
लिअ आइ बरसि पड़ल! राति भरि कतेक बरसल नै बुझि पड़ल, मुदा निन एहन पड़लौं जेना काल्हिये बोर्डक परीक्षा खतम भेल! भरि गर्मीक निन आँखिमे घुरमैत छल!  भोरे उठि दलानपर बैसि कऽ चाह पिबैत रही.... चन्दन बाबू कान्हपर कोदारि नेने दौगल जाइत छलाह बाध दिस। टोकलियनि तँ इशारामे किछु कहि कऽ भागि गेला। आन दिन चाहक नामपर बिन बजेन्हो टपकि पड़ैत छलथि, आइ की भऽ गेलनि! -हे यौ, ई चन्दन बाबूकेँ की भऽ गेलनिहेँ, भोरे –भोरे। सरजू काका ओम्हरसँ अबैत रहथि, पुछलियनि। -हौ बौआ, हुनकर खेतक पाइन सभटा बहल जाइत छनि, गेलाहेँ आइड़ बान्हऽ। -ओहो सुआइत!
संझाक बेर बिदा भेलहुँ पोखरि दिस .....लागल, बेंगक अज्ञातवास खतम भऽ गेल .......टर्र-टर्र करैत खत्ताक ओइ पारसँ अइ पार तक। सुर ताल देबऽबलाक कमी नै, सभ एकै साथे प्रतियोगितामे ठाढ़ भेल जेना! सबहक धानक बीया खसि पड़ल। लुटकुन बाबूक बीया बड़ जोरगर छनि ....हेतै कोना ने, बेचारा ..राति दिन एक कऽ कऽ छाउर आ गोबरसँ खेतकेँ पाटि देने छलखिन! हुनकर खेतो तँ सभसँ पहिने गाममे रोपा जाइत छनि! आइयो कादो कऽ कऽ एलैथहेँ, झौआहमे!
गमछामे किछु फड़फराइत देखलियनि, पुछलियनि- काका की अछि तौनीमे? -हौ, खेतमे बड़ माछ छल, गमछासँ माँरलहुँहेँ! काल्हि निचका बला खेतमे चास देबै, भेज दिहक छोटकाकेँ, बड़ माछ छै ओहू खेतमे! -ठीक छै। -कहलियनि!
मंगनीक माछ खाइमे बड़ मोन लगै छै मुँहमे पाइन आबि गेल सुनि कऽ! जल्दी अबिहेँ, मशाला पिसबा कऽ रखने रहबौ( छोटका केँ जाइत-जाइत कहलिऐ)।

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