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Friday, August 10, 2012

बचेश्वर झा- संगति


बचेश्वर झा- नि‍र्मली, सुपौल।

संगति‍

प्राय: जीवनक आरंभसँ आइ धरि‍ अनेक प्रकारक लोकक संगति‍ प्राप्‍त भेल अछि‍। संगति‍क कारणे कटु-मुधु दुनू तरहक अनुभव भेल, मुदा एहनो अनुभव भेल जे जीवन पर्यन्‍त मोन रहत।
हम जइ‍ मोहल्‍लामे रहैत छलौं ओइ बगलमे कोशी परियोजनाक सरकारी कॉलोनी छल। सरकारी सेवक लोकनि‍ आेइ‍मे रहैत छलाह। पड़ोसि‍याक कारणे हेम-क्षेम नीके छल। खास कऽ अमीन सहाएबसँ बेशी आपकता रहए कि‍ए तँ ओ एकान्‍तवासी जीवन बि‍तौनि‍हार रहथि‍। आन्‍तरि‍क खिचाव बुझू जे अमीन सहाएबक संगति‍ सायं-प्रात: रहै छल। अमीन सहाएब कंजूशक शि‍रोमणि‍ रहथि‍। सोलह आना दरमाहा बचएबाक चेष्‍टा करथि‍। एक साँझ कि‍छु बना पाबि‍ लैथि‍ अन्‍यथा अधि‍कांश राति‍ चुड़-फक्की करथि‍, कहबाक तात्‍पर्य जे एक-आध मुट्ठी चूड़ा फाँकि‍ कए रहि‍ जाथि‍। ई रहस्‍य बड़ थोड़ लोक जनैत छलनि‍। अपन ऐ कमजोरीकेँ ओ गप्‍पक आवरणसँ अनभि‍ज्ञ लोककेँ लखे नै देथि‍। यएह कारण छल जे सम्‍पूर्ण क्वाटरमे एकसरे रहै छलाह, दोसरकेँ संग राखब वा रहए देब मान्‍य नै छलनि‍।
कार्यरत लोक अमीन सहाएबसँ फराक रहबाक प्रयास करथि,‍ कि‍एक तँ केहनो अगुताएल लोक अमीन सहाएबक गपौढ़ामे लटपटा जाइत छलाह। हमहूँ जखन उदास आ कार्यरहि‍त अपनाकेँ पबैत छलौं, तखने हुनका अह्लादपूर्ण अबाजमे टोकैत रहि‍यनि‍ आ ओहो भाव बूझि‍ मनलग्‍गू गप कहए लागथि‍। टेंसगर चाह हुनके मुँहसँ सूनल अछि‍। सायं-प्रात: एक कप चाह हुनका पि‍आयब आ चाह चली‍साक पाठ हमरा सभक अभ्‍यास बनि‍ गेल छल।
संयोगवश! एक मास्‍टर सहाएब कतौसँ ओइ मोहल्लामे एलाह। हुनका डेराक प्रयोजन भेलनि‍। बगएवानि‍ तँ खटाशे सन रहनि‍, मुदा वि‍द्या वि‍भूषण रहथि‍। मोहल्‍लाक लोक नेनाक हेतु उपयुक्‍त बूझि‍ मास्‍टर सहाएब हेतु डेराक ताकमे घुमथि‍। मास्‍टरो सहाएब एकसरे रहथि‍ तँए आपकताक आकर्षण तँ नै‍, मुदा वि‍वशताक बन्‍धनमे आबि‍‍ संग रहए पड़लनि‍।
कि‍छु दि‍नक पश्‍चात् एक दोसरकेँ रूमेट कहए लगलाह। जखन दुनूमे सहबासक सि‍नेह बढ़लनि‍ तँ मास्‍टर सहाएब स्‍वयं पाकी होएबाक प्रस्‍ताव रखलनि‍। अमीन सहाएब भवि‍ष्‍यक लाभ सोचि‍ कऽ तैयार भऽ गेलाह। शुरूमे तँ पाक काज दुनू मि‍लि‍ ‍ कऽ करथि‍। बादमे मास्‍टर सहाएब भानस बनाएब अमीने सहाएबपर छोड़ देलखि‍न। मास्‍टर सहाएब ठीक भानसक समए पूजाक आसन पकड़ि‍ लैथि‍। ऐ बीच ज्‍याँै अमीन सहाएब कि‍छु पूछथि‍ तँ मास्‍टर सहाबक हूँ, हूँक शब्‍द अमीन सहाएबक लेल अंकुशक काज करनि‍। मोने मोन गुम्‍हरि‍ कऽ अमीन सहाएब रहि‍ जाथि‍। ऐ बीचमे जौं कि‍यो अपरि‍चि‍त लोक आबि‍ जाथि‍ तँ मास्‍टर सहाएबक पूजाक अवधि‍ बढ़ि‍ जाइत रहनि‍, संगहि‍ मन्‍त्रोचार जोड़-जोड़सँ करए लागथि‍। आगाँक परसल अन्न गर्गट भऽ जाइन्‍ह अमीन सहाएबकेँ, पि‍त्त लहरि‍ जाइन। तखन ओ अर्दर बाजए लागथि‍। आडम्बरी पूजाक अन्‍त कऽ मास्‍टर सहाएब अपन हे! हे! मे अमीन सहाएबक क्रोधकेँ पीब जाथि‍। मास्‍टर सहाएबमे अमोघ सहन शक्‍ति‍ सेहो छलनि‍। अमीन सहाएबक गन्जन आ मोहल्लाक लोकक वाककेँ अँगेज नेने छलाह।
मास्‍टर सहाएबमे और तँ जे गुण दोष रहनि‍, मुदा कि‍छु एहनो गुण छलनि‍ जे पैघ दुगुर्ण कहल जा सकैछ। मास्‍टर सहाएब डेरामे दि‍नो कऽ अर्द्ध दि‍गम्बर रहैत छलाह आ राति‍ कऽ पूर्ण दि‍गम्बरे। नव मे तँ अमीन सहाएब संकोच करथि‍न, जखन मास्‍टर सहाएबक ई गति‍वि‍धि‍ नै बदललनि‍ तँ अमीन सहाएब- रूमेट ई ठीक नै- कहि‍ चेतबैत रहथि‍न। अमीन सहाएब चूल्‍हि‍ फूकैत आ भानस करैत अपन स्‍वछन्‍द जीवनमे परतंत्रक अनुभव करए लगलाह। आब ओहो पाक काजसँ उचहि‍ गेलाह। रूमेटक आलोचना-प्रत्‍यालोचना हुनक मुख्‍य वि‍षए भऽ गेलनि‍। मोहल्‍ला लोकक प्रति‍ आक्रोश रहबे करनि‍। एक दि‍न वि‍क्षि‍प्‍त मुद्रा देखि‍ हम हुनकासँ सि‍नेह पूर्वक कहलि‍यनि‍- हम एकसरे रहैत छलौं सएह ठीक, संगति‍क प्रभावसँ संतप्‍त भऽ गेल छी।‍
एक दि‍न मास्‍टर सहाएब देह उजागर करबाक हेतु टॉनि‍क अनलनि‍ जइ‍मे चारि‍ अना अलकोहल लि‍खल छलै। हम कहलि‍यनि-‍ अमीन एेमे सँ आध कप जौं मास्‍टर दि‍तथि‍ तँ मोन बुलन्‍द भऽ जाइत। कहैत-कहैत हम शीशीसँ चारि‍ चम्‍मच करीब ढारि‍ मुँहमे दऽ देलि‍यनि‍, ऐ‍पर मास्‍टर सहाएब गि‍द्ध जकाँ झपट्टा मारि टॉनि‍कक शीशी लऽ क्रोधाभि‍भूत भऽ गेलाह। दू बर्षक अन्‍तरालमे प्रथम बेर एह तामस देखल। मास्‍टर सहाएब सम्‍पूर्ण शीशी पीब गेलाह। मध्‍य राति‍मे जखन खौंत फेकि‍ देलकनि‍ तखन ओ चेतना हीन भऽ फर्शपर ओंघरनि‍या देबए लगलाह। अमीन सहाएब पूर्ण चि‍न्‍ति‍त भऽ हमरा लग दौग‍ल एलाह। हमहूँ ओतए गेलौं। नतीजा भेल जे चारि‍ बजे भोरमे जाऽ कए मास्‍टरकेँ चैन भेलनि‍ तखने हमरो लोकनि‍ चैन भेलौं। बादमे मास्‍टरकेँ पूछलोत्तर जबाब भेटल जे अपने सभ चखैत-चखैत पीब‍‍ लि‍तौं तँए हम सभटा एके बेरमे पीब लेल। अस्‍तु! आगाँ पुछबाक साहस नै भेल।
एक दि‍न मास्‍टर सहाएबक दि‍गम्‍बर अवस्‍थाक नि‍वार्णार्थ हम हुनका पलंगक तरमे जाऽ कऽ बैस गेलौं। अमीन सहाएब हमर सहयोगी रहथि‍। लालटेमक प्रकाश मन्‍द कऽ जखन मास्‍टर सहाएब ओछाइनपर लम्बायमान भेलाह, नि‍न्‍न आएले छलनि‍ तखन हम पलंगक भीतरसँ खट्-खट् अावाज कएल आ अमीन सहाएब कागज सभकेँ फर-फरा देलथि‍न। हम सभ चुपे रही कि‍ मास्‍टर सहाएब चोर-चोर बजलाह। हमहूँ सभ संग दऽ देलि‍यनि‍। ओ फानि‍ कऽ बाहर भेलाह जोर-जोरसँ चोरक हल्‍ला कएलनि‍, मोहल्‍लाक नर-नारी चाेर शब्‍द सुि‍न अमीन सहाएबक डेरा दि‍स दौग‍ गेल। मास्‍टर सहाएब तावत काल धरि‍ बेसुधि‍ये रहथि‍ जखन अनेको हथबत्तीक इजोत हुनाकपर एक संग पड़ल, तखन मास्‍टर सहाएब संकोचसँ गर्हित भऽ बैस गेलाह। सभ हुनका लू-लू थू-थू करए लगलनि‍। अन्‍तमे अपन तोलि‍या फेकि‍ हुनका दि‍गम्‍बर रूपकेँ श्‍वेताम्‍वरमे परि‍णत कएल।
ओइ राति‍क घटनाक बाद मास्‍टर सहाएब पुन: मोहल्‍लाक भीतर नै देखल गेलाह। मुदा हुनक चर्चा सबतरि‍ अनेको दि‍न तक होइत रहल। अमीन सहाएब ऐ संगति‍सँ मुक्‍त भऽ फेर पुरना बाटक बटोही भऽ गेलाह। हमरा प्रति‍ हुनक नि‍ष्‍ठा भऽ गेलनि‍ कि‍एक तँ हम आश्‍वासनकेँ पूरा कऽ देलि‍यनि‍। संगति‍क संकटसँ मुक्त भऽ गेलाह।


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