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Friday, August 10, 2012

बीनू भाइ - उत्ताप



सभटा मिथ्या थिक!
कि‍यो कतौ नै देखाइत अछि। कि‍यो तुरंते एलीह एवं देखिते चोटहि भागि गेलीह। चिन्हियो नै सकलियनि। अकार चिन्हारे सन छलनि। माथपर नुआक संग अधा कपार तक घोघ छलनि। विदीर्ण मोने उल्टे डेग बाहरे पड़ेलीह। तखन्हि दु गोटा दौगलि एलीह। पएर छूबि छगुंतैल चट घुरि गेलीह। एक गोटा हाक देलथिन। समर्थ सन कि‍यो दौगले एलाह। देखलनि। घोकरी सँ मोबाइल लगौलनि। विष्णुकेँ। कहलथिन्ह स्कूटरसँ तुरंते जाइ लेल। विनयानन्द नै होथि तँ सनटिटहा पएटघाटबलाकेँ संगहि नेने अबै लेल। विनयानन्दे एलाह। छूबि कऽ देखलनि। तर्जनी-औंठासँ दुनू पलक सटा देलनि। मुँह बिजका चल गेलाह। आशाहीन कि निरस्त मोने। तथापि देखाइ पड़िये रहल छल, जेना एतीकालसँ श्रवण काज करैत छल मुदा बुझिऐक नै जे के की बाजि रहल छथि, कारण धि‍यान कतौ छल। दृष्टिपर केन्द्रित। धि‍यान अंतः रहलासँ समक्ष आँखि कान नाक खुजलहु रहला संता कार्य नै करैत छै अर्थात श्वाँस तक ठमकल रहै छै। धि‍यानमे।
घरक किछु-किछु जुटि चुकल छल। विष्णु एवं सागर जुमि चुकल छलाह। हँय-हँय समान उठौलनि। धँय सँ वस्तु बाहर लऽ गेलाह जइसँ कि‍यो ई नै बुझए जे घरेमे.....। सबहक बओल मुँहसँ बुझाइत छल जे सभ कि‍यो रोदन कऽ रहल अछि। चारि गोटा जहाँ रोदन करै छै तँ शेषकेँ स्वतः कना जाइते छै, भलहि डाहे माखे रहउ तथापि। तहिना चारि गोटाकेँ प्रसन्न भेलासँ खुशीक प्रभावो सम्पर्क लोकपर लक्षण होइ छै। सुगुन छल जे ओऽ नै छलीह। कतौ नै छलीह। नै तँ मुर्छापर मुर्छाक दृश्य होइत। परम पहपटि भऽ जइतैनि सभकेँ। भन्नहि नै छथि! कतौ! कोनो समान दू गोटासँ घरसँ बाहर कि बाहरसँ घर होइत छै तँ भरिगर बुझाइते छै। निष्प्राण वस्तु तँ विशेष। मुदा एहेन समान घरसँ बाहर करैत काल चिंतन रहै छै जे अखन प्राण छै। प्राण बाहरमे जेबाक चाही तेँ धीयो-पुता हल्लुक जकाँ उठा लै छथि हूबापर। ‘बी’ तँ अल्पहारी भऽ गेलीह, साठिक पश्चाते जे ‘बच्चा’ सभकेँ भारी नै लगथिन। 
बाहर होइत भांतर नेमटेम प्रारम्भ। हरबासल, जितिया, एकादशी, गंगाजल, गोदान। कतेक लोक तँ सामान भऽ चुकल रहैत छथि। वस्तु देखै हेतु लोक गोलिया जाइत अछि छनाक सँ। बानर बनरी नाच सन। मदारी निपत्ता मुदा एकटामे सभ आनन्दित तँ दोसरमे हाक्रोश करैत।
परम सत्य एकेटा! से आइ विश्वास भऽ रहल अछि। पहिनौं कदाच से अभरय मुदा मरीचिका सन मृगतृष्णा जकाँ। कड़गर कि उत्कंठा सँ नै। तँइ एक गोट परम सत्य जँ पहिने पक्का पक्की बूझि जैतिऐक तँ कमसँ कम घरहट सन जंजाल काज कदापि नै ठनितौं।पजेबा सीमेंट सुर्खी छड़ कोजैक टाइल्स माखुल आ बाँस कोड़ो बत्ती करची खाम्ह, फ्लैटक कर्ज लऽ सूदपर सूद चुकता करैमे डँर तोरी। राजो महराजोक अट्टालिका हक्कन कनैत रहि जाइ छन्हि,। ऐ सँ नीक वृक्षा-रोपण। बेसी पूंजीपगहोक हाहे बेरबा नै। एकोटा गाछ रोपि कऽ पोसि लेलौं। संतानो सँ नीक बुझैत। अपनौं फल खा सुख करू आनहुँ युग युग तक सुख करताह। फल पात जाड़निसँ। नै किछु तँ छायासँ। छाया जेँ बड़ प्रिय होइ छै तँए जिनगी भरि संग नै छोड़ै छै। सबहक। कोनो भेदभाव नै। मनुष्य़ छी कि वनस्पति! सूर्यहु केँ संग नै छोड़ैत छथि। हुनकहि संग निपत्ता। हुनकहु वएह छथिन्ह। सहचरणीय। ऋषि मुनि सभकेँ कुटी पसीन छलनि, बोन-झाँखुर जंगलमे। ज्ञानी छलाह तँए । राजो महराज निंघुरैत छलथिन कुटी प्रवेश काल।
सभसँ उकठ्ठी जीव मनुष। यमराजोक तस्वीर घीच लेलक। अत्यंत विकराल भयावह। जखन कि कतौ किछु नै। समान जकाँ पड़ल रहू। गाछक ढेंग सन। सेहो नै। ढेंग सड़ैत छै तँ पहिने कोकनैत छै तथापि विकट दुर्गन्ध नै। तइ भभक दुआरे जड़ा देल जाइ छै आ खूब गहींरमे गोड़ि देल जाइ छै तेल फुलेल चानन लगा कऽ। समानकेँ। एहेन समानकेँ जे सड़लासँ बोकरए लागत केहनो तन्दरूस्त लोक। समाज डराइ छै एहेन एकटा समानसँ।
तखन ऐंठी। कि‍यो अवंच नै।  सब दिक भऽ देल अछि। भगवानो भगवतीक खिस्सासँ। कथो पिहानीमे सभ प्रेम तकै छै। ओ प्रेम नै। सिनेमाबला प्रेम। दैहिक संभोगबला, बि‍आह भऽ जाइबला। बि‍आह संस्थाकेँ थकुचयबला। ई की भेलइ! पहिने वरदान फेर वध करै लेल अपस्याँत। एके खेड़हा मात्र! सभ भगवानक। हुँह! मुदा ई कि‍यो नै बूझि पबै छै तथापि जे अहंकार-वध बेर-बेर देखौल जाइ छै, जे सभकेँ बेर-बेर मोन पड़ैक अपनहुँ अहंकार! जेकर मर्दन करी। तमसेबाक बदला जँ से साधि लितौं तखन तँ बुधियार एवं ब्रह्मज्ञानी भऽ गेल रहितौं, याज्ञवल्क्य लोकनि सदृश। कतबहु देखलौं खिस्सा-टीली-सिनेमा आ वध; से कहाँ बुझलिऐ। 
आब बुझाइये। से गूढ़ विषय। एकटा सत्य! सभटा हुसि गेलाक पश्चात्। एकटा सत्य! अठारहो पुरान छोड़ू। व्यासक दुनू वचन भारी बुझाइत अछि तँ एकेटा मानू। एकेटा सँ गति भेट जाएत। परोपकार टा करू। ताहूमे जँ बड़ शोणित सोखैत बुझाइये तँ तहू सँ हल्लुक एकेटा बात अवधारि लिअ जे किनकहु अधलाह नै करब संज्ञान। बैसल ठाम बिनु मेहनतिक तप। एकपर विश्वाससँ सिद्धि भेटत। ई एक सभसँ शीर्ष थिक जतए पहुँचए आरम्भमे दू, तीन, चारि, पाँच....। अर्थात् ..... पाँच, चारि, तीन, दू तत्पश्चात् एक। सभ आ लगभग सभ, दूइयेमे लेपटाएल बीत जाइ छथि। जँ दू सँ एकक अनुभूति भऽ गेल तँ लक्ष्य भेट गेल। इएह प्रेम छी। दोसर शब्द मे ई प्रेमक अतिरिक्तहु सभ किछु छी। तँए सभ किछु प्रेमे छी। एकानन, चतुरानन, पंचानन; ....।
पता चलैत अछि बाँसक फठ्ठीक बिछानपर पाड़ि टांग हाथ ममोड़ि जौड़सँ सक्कतसँ बान्हि जेना भागि ने जाए कहीं, तखन। कुमारिल भट्ट तँ जीविते अग्निक तापकेँ शीतल सिद्ध केलनि। शेष ओहिना नियति सँ स्थान विशेषपर जड़ैत छी, दुर्वाशाक श्रापे नै। भोजघारा कि दैनिक चुल्हा पजड़ैत नै रहत। मुदा ई समान काँचे बीजू आमक फेंण संगे स्वतः एना धधकैत अछि कि स्वयं धृत, धूमन, सरड़ रहए। भरि जीवन जे तेल घी चपने रहैत अछि। जतबे-ततबे, मुदा सएह धू-धू धधकैत अछि।
मुदा कोनो तापबोध नै। से तँ मनुखक ललाटपर लिखल रहै छै किंवा धस्सल। जे चेतनावस्थामे अछि। आतंकवादी कि खूनियाँ चेतनावस्थामे नै होइत अछि। ओ नि‍शामे होइत अछि। वा हुनक रक्त दूषित होइ छन्हिा, जइ रक्तक ग्रूप पता लगेबाक ज्ञान अखन तक किनकहु नै। यएह कहि सकैत छी जे एहेन कुलंगार आंतरिक रूपें सामाजिक प्राणी नै होइत अछि तँए समाजमे अछैत ओ अपराध करैत अछि, जानि बूझि कऽ अपहरण, हत्या, गर्दनि रेतनाइ करैत अछि। भारद्वाज सन त्रिकाल दर्शी वैज्ञानिक एहेनकेँ देखिये कऽ बारि दितथि।
अग्नि सन पवित्र! शीतल! लहलह करैत एवं धधराक संग। पुनः छाउर। फेर माटि। आ चुट्टीक भोजन भऽ पुनः क्षारित भऽ माटि। एकहि बात भेल। तथापि अस्तित्व रहिते छै। माटि भऽ जाइत अछि पाथर। पाथरसँ मूर्त्ति। जीवंत मूर्त्ति। मुक्ति कहाँ! आ माटिक संग अनंत सूक्ष्म जीव बनि जाइत अछि। एकटा बड़का जीव अंततः अमीबासँ। माटियोमे उर्वरा शक्तिक उर्जा समाहित रहै छै। 
ई अटल विश्वास जे समान बनैसँ पूर्व तइसँ किछु निस्सन होइ छै; नि:सृत। प्राण कि आत्मा आ जे किछु। से मात्र कल्पना अद्यावधि। कोनो प्रमाण नै। जे नि:सृत भऽ ब्रह्ममे विलीन भऽ जाइ छै। वशिष्ठ नीतिज्ञ कहै छथि। अदृश्य सत्ताक तँ ढेर अस्तित्व आ प्रमाण अछि। विद्युत, चुम्बकत्व, ध्वनि, प्राणवाच प्रभृत्ति अदृश्य सत्ताक रूप छी। देखबामे यएह अबै छै जे समान मँहक अंतर्निहित क्रिया रूकि गेलैक अछि। जेना कोनो चलैत मशीन बन्द भऽ जाइत छै तँ मशीनसँ किछु भगैत नै छै। मुदा मशीन पुनः चलौल जाइ छै, कारण ओकर रहस्य मनुष्यकेँ माने वैज्ञानिक मनुष्यकेँ मनुखक अपन रहस्य अद्यावधि सोलहन्नी ज्ञात नै। जे ज्ञात करैत अछि ततबे व्याधि सँ आर ओझराएल जा रहल अछि। सकरी, लोहट, हायाघाट, समस्तीपुर कि सिन्दरीक मशीन तँ जंग-लोहा सँ माटि भइये गेल सन लगैत अछि। चिकित्सा विज्ञानसँ आब पुनः भोग विज्ञान। चहुँ दिस रहस्य जानए वपहिं बपहिं। ग्रहपर तक। सृष्टि केना बनल। केहन विस्फोट भेल छलै ओ?
एना संतोष लेल चारि पाँच तरहक गाछ रोपण। तेँ भीष्म पितामहबला गाछ थोड़े भेटत। कते रास ईँटा-तींटा पकिला कारबार बूझि करैत छथि। फेर वएह बात! जखन राजा महराजाक अट्टालिकाओ धूल धुसरित भऽ जाइत अछि तखन ई.....। केहन-केहन मन्दिर गिरिजाघर मस्जिद काल कलवित भऽ जाइछ। आब की जमीन्दार! ठाकुर! महराजपर अठ्ठावज्जर करै छी उद्योग पतिक बदला। जनिक मोटका-मोटका गगनचुम्बी स्तंभ कलांतरे पताल लोक आ नङटे अकाश मुँहे ठार रहि जाइत अछि। कालचक्र! सागरमे पहाड़ डुबा दैछ कि समुद्रपर पहाड़ ठार कऽ दैछ। 
ई की भेलै? अकाश ठेकल मन्दिरमे एक बीतक मूर्त्ति। मस्जिदमे तँ सेहो नदारत। छुच्छे ढ़ं ढ़ं। ऐसँ नीक स्कूल। अंग्रेजीबला नै। तइमे तँ पाइबला धनिकहाक बच्चा महान बनैत अछि। मनुख बनबैबला पाठशाला। बोर्डहु लागि गेलै। बीनू भाय बाल मन्दिर। कालांतरे चपा गेल। अंग्रेजी स्कूलक उत्कर्षसँ। सभ अंग्रेजीक गुलाम। बड़का गौरबबला बात। बोकबा अझरूद्दीनहुँ कऽ टऽ कऽ केँ बाजए लगलाह। विश्वस्तरीयो ख्याति फीका बिनु अंग्रेजी बजने। गुलामीक। द्विभाषककेँ रोजी भेट जेतैक ने! श्री संत पर्यंत! ऐ बीर्ड़ोमे बोर्डहु उड़ि कऽ कत्तऽ गेल पता नै। स्कूलोक पता नै। मात्र लेखामे। दू गोटा मुदा दरमाहा उठबैत चुपेचाप जा कऽ पूर्णियाँ, आब ककरो अनका पतो नै जे बीनू भाय नामे स्कूल चलै छै। कहुखनकेँ लागत जे परशुरामक सिद्ध मन-गतिये कलियुगमे सभ किछु विपरीत चलै छै।
जखन मनुष्य वस्तु भऽ जाइत! तइमे एकटामे जीव नै रहैछ एवं नष्ट भऽ जाइछ मुदा दोसर जीवंत समान। बुढ़ारीमे जखन छलौं तँ सामाने छलौं मुदा प्राण कि हुकहुकी रहए। एसगर बगुला सन टकटक तकैत। कि‍यो पूछनिहार नै ने, फुरसतिक अभावे। दया आबए मुदा वएह उल्टे दयाक पात्र बुझए। अहाहा! झुनकुट भऽ गेलथिन। सत्तरि टपि गेलनि। की दवाइ दौरीमे! बेकार कऽ! ऐ सँ नीक जे आब ...। वर्षीमे, पाँच वर्षी तक जाइत जाइत अकच्छ! तिथि, पतरा, महापात्र, गाम गेनाइ, छुट्टी लेनाइ। धुत्! अंग्रेजी गुलाम लेल ऐ सँ सुनीनगर नीक फस्ट जनवरी, मैरिज डे, बर्थ डे, भेलेनटाइन डे। हरिबाशर कि जितिया व्रत! बाप रे बाप! बर्थ डे, मैरीज डे … बारहो महिना! जतेक मोन हुअए! धुर छी, गुलाम! तिथि बूझिते नै छथिन डेटपर जेता! छोछनए छोड़ि कऽ पोछनए। लोक आब करोड़मे महवारी पबैत अछि! ई एतनीमे फुच्छ! खबाशीमे!
अहिना एक दिन जा कऽ सोलहनी गुलाम भऽ जाइत अछि, लेकिन मार्क्स लोकनिक चोला लगा वेद वाक्य सर्वे भवंतु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम्, ...नारी पूज्यंते रमंते... देवता... सार्वभौमिक वैश्वीकरणक सनातनी मत सभकेँ हरकुचि थकुचि। दोसर महात्मा गान्धी जन्मताह! से, बाट तकिते तकिते दाँत खिशोटि देब। से गीठ्ठ बान्हि लिअ। ओना बाबा रामदेव अवतरित भेलाह अछि घोधिबलाक धोधि फोड़इ लेल, खेलहाकेँ बोकरबइ हेतु। तहिया तँ भूलचुक सँ आँखिमे अमेरिकन लेंस एवं हृदैमे अमेरिकन स्टैंट लगबाबए पड़ल। कपालभाथी सँ बाहर ने फेका जाएत तकर भय छले। मुदा हुनका कोन जे पोलीस्टर चाउर, लेमिनेटेड भट्ठा कि दस दिनमे जन्मौल एक हाथक गेन्हारी कि सुइया देलहा सजमनि कदीमा अनरनेबा खाइ छी। फुलकोबीक नामे सुनि गैस कि भरोड़ दिअ लगैत अछि!
सभटा देखि‍ रहल छी। बूझि रहल छी! अकानियो रहल छी। टॉंट, जाड़नि सन पजड़ैत। तथापि ने कुहड़नए आने उत्ताप। एक मिशिया चिनगी उड़ि पड़ला सँ लोककेँ लहरए लगै छै। काँच जाड़नियो कानि कऽ नोर बहबए लगैत अछि। धू धू धुधुऐतो शीतलताक बोध भऽ रहल अछि हमरा! कारण जीवनमे ऐसँ उत्कट ताप छलै डाह मारब, ईर्ष्या, पश्चाताप, क्रोध, अहंमे समावेशी नीति आरक्षणसँ भिन्ने अपमान बोध। प्रोन्नतियोमे। आबऽबबा बले फौदारी नै। अपनेमे लड़ि कटि मरि जाउ। पाटलीपुत्रो अपने कहाँ ठठला! आर्यावर्त्त केँ डुबबैत अपनहुँ स्वाहा। गर्त्तमे कर्त्ता। 
मैथिलीयो केँ साठि वर्षे दयाक भीख! संत महात्मा ब्रह्मचारी कालमे। बाबा बले होइते तँ कहिया ने भेटल रहितै ई। पुनः एकटंगा देने रहुआ अपने मोने गज्जैत रहू। चारि गोटा। चानन ठोपबला। फोल्डिंग शीष-सूत्रबला। मिथिला सासुरबला १०८ श्री श्री भगवान राम माँ मैथिली केँ ततेक सधलथिन जे विष्ठो देखि‍ मिथिलावासी कहए लगलाह, राम राम! आब कहए पड़त-त्यज गोविन्दम् त्यज गोविन्दम्। मात्र माँ शक्तिक शरणम् मैथिली शरणम्।
मनुज प्रेम सूत्रसँ बीनल मात्रकेँ कथा कहैत छथि। महाकवि लोकनि तहिया जँ रति क्रीड़ाक श्रम जलक बदला श्रमिकक श्रमजल परखने रहितथि तँ आइ श्रम जलधारी पिछड़लाहा श्रमजीवी मैथिलीसँ दूरस्थ नै भऽ सभसँ बेसी संख्यामे समाजक आगाँ रहितथि। भगवान रामकेँ सीता माँ सँ प्रेम आकि काट? से रामकथा कहैत अछि। वएह काट कि विधान-निर्णय प्रेमक प्रतीक, प्रेमक परिभाषा। राधा विरहक नोर प्रेमक प्रथम दृष्टांत। तेँ एहेन विषादसँ पृथक संसारो निस्सन प्रेम थिक। जे पढ़ल हुअए। जे पढ़ैमे नीक लागए। जे एकोरत्ती उत्तम संदेश हुअए। प्रज्वलित शिखो मध्य हार्दिकतासँ अर्पित हुअए। सभ तँ छाया सहित भस्म होइते छथि। सबहक छाया भास्कर संग साँझ होइत-होइत भरि राति लेल निपत्ता भऽ जाइछ तथापि हम यथावत छी। लहकैतहु भस्म नै भेलौं अछि। भगवतीक दया मायासँ हमर छाया सेहो अद्यावधि अहर्निश सङ छथि जे गीता सेहो थिकीह एवं प्रेमवश गीतू अर्थात् ऐ प्रेम कथाक राधा! 
जाउ सभ अपन-अपन नीन्न गबए लेल! शेष अगिला जनममे! शुभ कलियुग!

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