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Friday, August 10, 2012

वीरेन्द्र कुमार यादव -हमर समाज



वीरेन्द्र कुमार यादव
ग्राम- घोघड़रि‍या, पोस्ट - मनोहपट्टी, भाया- नि‍र्मली, जि‍ला सुपौल
हमर समाज

बि‍न्नू आ बीरू बालसंगी छलाह। दुनू गोटे कोशीक कछेर गाम घोघड़रि‍यामे मरूआक रोटी आ पोठी माछक चटनी जलखै खाइत छल। रेडि‍यो बाजि‍ रहल छल जे “लि‍ंक रोड नि‍रमलीमे वि‍ष्णुर महायज्ञ शुरू अछि‍, जइमेख गणेशजी महाराज लोक सभकेँ लड्डू दैत छथि‍न्‍ट‍।‍” ई सुनि‍तहि‍ बि‍न्नू अपन भजार बीरूकेँ कहलखि‍न- “यार, घोर कलि‍युगमे गणेशजी लड्डू बँटैत छथि‍।‍ एक दि‍न चलु आ अपनो सभ प्रसाद लए आबी‍।”
दुनू  भजार आश्चर्य करि‍तौं यज्ञ मेला देखबाक ि‍नश्चए कएलक। ओइ बीच गामक ठकनी काकी मुँहमे पान गलठैत, हाथमे बजैत रेडि‍यो नेने लगमे आबि‍ बजलीह- “यौ बि‍न्नू बौआ, ऐ रेडीमे कहलक जे लि‍ंक रोड ईटहरीमे गणेश भगवान लड्डू बँटैत छथि‍न, अपनो सभ चलै चलू गणेशक लड्डू लए आबी‍।‍”
बीरू बजलाह- “गै काकी धैरज धर, हम रेलगाड़ीक भाँज करै छि‍यौ, गामक सभ गोटे रेलपर चढ़ि‍ गणेशजीक प्रसाद लेबाक लेल अवश्यध जाएब।‍”
ठकनी काकी कने ठमकि‍ कऽ बजलीह- “‍रौ बकलेलहा, ऐ गाममे बस, मोटर चलबाक तँ रस्तेच नै अछि‍, तोँ रेल मंगबैत छैँ।”
बीरू हँसैत बजलाह- “गै काकी जहन माटि‍क मुरूत गणेशजी लड्डू बाँटि‍ सकैत छथि‍, तखन बि‍नु पटरीक रेल कि‍एक नै आओत?‍”
बीरूक बात सुि‍न बि‍चहि‍मे बि‍न्नू कहलखि‍न- “अहाँ सभ बकझक जुनि‍ करू, धर्मक काज देखबा, सुनवा आ कएलासँ स्व र्ग होइछ। हम सभ मि‍लि‍ ‍ देवी पूजा पाठ आ दर्शन करए एक दि‍न अवश्यब जाएब।‍”
गामक पैघ आ देहोदशासँ भरि‍गर पंडि‍त कमलशेखर बाबूसँ भेँट‍ कए दुनू भजार शुभ दि‍न तकौलक आ भाड़ाक बदलामे तेलपर परमाबाबूक ट्रेक्टडर भाँज कएलक।
जेठ मासक रौदमे ठकनी काकी, बीन्नू, बीरू आ गामक लोक सभ ट्रेक्ट रसँ यज्ञमेला देखबाक लेल प्रस्था न कएलक। उबड़-खाबड़मे ट्रेक्ट्रक झोलामे झुलैत, रंग-वि‍रंगक गप-सप्प  करैत रज्ञ स्थमल माने मेला पहुँच गेल।
यज्ञ स्थदलपर अनगि‍नि‍त लाउडस्पीैकरक आवाजसँ भारी शोर-शराबा होइत छल। ऐ बीच साइकि‍ल स्टेंरडसँ एगो चीकन युवती समतोला रंगक समीज सलवार पहि‍रने, आँखि‍पर रंगीन गोगुल्सइ धरौने, हाथक मोबाइलसँ फोटोग्राफी करैत ठकनी काकीपर नजरि‍ पड़ि‍तहि‍ बजलीह- “मौसी अहाँ आबि‍ गेलौं, बढ़ि‍याँ भेल, भेँट-मुलाकात भऽ गेल। हम तँ प्रचारे सुनि‍ अएलौं। एतेक लोकक भीड़ तँ ऐठाम कॉलेज परि‍सरमे देशक प्रधानमंत्री बाजपेयीजी आएल छलाह, ओहूमे नै भेल छल।” ई सोलह बरि‍सक बाला प्रेमलता जे हालहि‍मे पत्रकारि‍तासँ जुड़लीहेँ सएह छथि‍।
ऐ यज्ञ मेलामे अनेको लोक-लुभावन कार्यक्रममे भोरुकवा रेडि‍यो स्टेरशन एफ.एम ९२.८, राजवि‍राज (नेपाल)सँ आएल मैथि‍ली भाषी कलाकार सभ मैथि‍ली भाषाक वि‍कासक लेल आ समाजकेँ प्रगति‍मूलक शि‍क्षाक हेतू बढ़ि‍या कार्यक्रम देखौलक। 
ठकनी काकीक संगे प्रेमलता आ गामक लोक कार्यक्रमक आनंद लैत मुरूतक दर्शन करए आगू बाढ़लाह। सभसँ पहि‍ने घोर कलि‍युगमे सतयुगक कामधेनु गाए देखि‍तहि‍ प्रेमलता बजलीह- “मौसी, कामधेनुक थनसँ चुबैत दूधक पान करू आ जि‍बतहि‍ स्वरर्गक बदलामे मोक्ष प्राप्ति करू।‍” 
प्रेमलताक एतेक सुि‍न बीरू बाजि‍ उठल- “काकी कामधेनुक चारू दि‍स आँखि‍ खोलि‍ कऽ ताकू। ई बुइधि‍क कमाल आ व्यरवसायक धार्मिक तरीका छी। जइपमर कोनो तरहेँ ऑंगुर नै उठए आ शांति‍सँ पाइक संचय हुअए। ई सभटा पाइ ि‍हन्दु  धर्मक ठीकेदार बाबा आ पंडि‍तजीक पाकि‍टमे जाएत, जइसँआ बाबा आ पंडि‍तक जि‍नगी शान-शौकत आ भोगवि‍लासमे बीतत।‍”
ठकनी काकी लोकक एतेक भीड़ रहि‍तौं ठेल‍-ठालि‍ कऽ अमृत पान कएलक आ लोको सभकेँ करौलक। बीनू कहलखि‍न- “आेइठाआम लाेकक बड्ड भीड़ छै, ओतए चलि‍ देखू कोन देवता की बाँटैत छथि‍न।” सभ गोटे ओइ भीड़ लग गेल। श्रद्धालु भक्तगण गणेश भगवानसँ टाका दए प्रसाद माने लड्डू लेबाक मुड़ कटबैत छल।‍
प्रेमलता मुरूतक सजाओल दृश्यिक फोटो खींचैत यज्ञशालाक बगलमे ठाढ़ छलीह आ मोनमे रहनि‍ जे कि‍छु श्रद्धालुजनसँ साक्षात्काभर करी आ संवाद प्रेषि‍त करी। ताबत काल माथपर भाेगारसँ उजरका आ सि‍नुरि‍या चानन घसल गेहुमा रंगक मोटगर लोक उजरका धोती पहि‍रने प्रेमलताक सोझाँ आएल। प्रेमलता पुछि ‍ देलखि‍न- “पंडि‍तजी, ई की भए रहल अछि?‍”
जोरसँ ठहाका दैत पंडि‍त जी बजलाह- “ई घोर कलि‍युग बीत रहल अछि‍। मनुखक गप्पद छोड़ू, आब तँ देवता लोकनि‍ सेहो पाइक लेल दोकान खोलि‍ देलक। िहन्दुर धर्मक चादरि‍ ओढ़ि‍ अधार्मिक, अनैति‍क काज करबा लेल हमरा समाजक प्रति‍ष्ठिल‍त व्येक्ति ‍ सभ कतेक तत्पओर अछि‍ से सभ आँखि‍ खोलि‍ देखबाक लेल आएल छी। दुनि‍याँक लोक सभ चाँदपर बसबाक लेल प्रयासरत अछि‍, आ हमरा समाजक लोकसभ साहुकार गणेशक लड्डू पाइ दऽ कऽ पबैत अछि‍।‍”
ठकनी काकी प्रेमलताक लग आबि‍ बजलीह- “गै छौड़ी, केकरासँ गप्प  करै छेँ, चल ऐठामसँ आब गामो जाएब।‍”
मौसीकेँ वि‍दा होइसँ पहि‍नहि‍ प्रेमलता वीरू दि‍स मुस्की‍ दैत बजलीह- “अपने कि‍छु कहब?” वीरू झटसँ कहलखि‍न- “कि‍ए नै‍? सभ लोककेँ धार्मिक होएबाक ‍चाही, मुदा ऐठाम जतेक आडम्ब र कएल गेल अछि‍ से उचि‍त नै‍। आजुक वैज्ञानि‍क युगमे ढ़ाइ-तीन लाख रूपैया खर्च कए ऐ तमाशासँ वातावरणक शुद्धि‍, भक्तिु‍मय माहौल आ गामक नाओं ऊँच केलक, एकर अलावा की प्राप्तय हएत? समाजक एतेक रास रकमक खर्च आधुनि‍क सोचसँ गरीबक बच्चावकेँ पढ़बा-लि‍खबामे, बेमारीसँ पी‍ड़ि‍त लोकक इलाज करेबामे, गामक वि‍कासमे हेबाक चाही। जइसँब हमरो समाजक धीया-पुताकेँ नोबेल पुरस्का र प्राप्ती करबाक अवसर भेटए। धार्मिक कार्यक्रमक उद्देश्य  बदलि‍ गेल अछि‍। सभटा खेला पाइ हँसोथबाक लेल भऽ रहल अछि‍। एना कएलासँ हमर समाज आगू नै बढ़ि‍ पाओत। अपि‍तु पाछूए रहत। ई हमरा सबहक लेल हास्याबस्पहद बात छी।”
प्रेमलता मुस्कुिराइत हाथ आगू बढ़बैत बीरूसँ हाथ मि‍लाए मौसीसँ वि‍दा लेलनि‍। वीरू प्रेमलता दि‍स आ प्रेमलता वीरू दि‍स घुि‍र-घुि‍र तकैत चलि‍ गेल। वि‍न्नु भाय, अपन भजार वीरूक मुस्कुलराइत चेहरा टुकुर-टुकुर तकि‍ते रहि‍ गेल। तत्पुश्चा़त् ठकनी काकी वि‍न्नु, वीरू आ गामक लोक सभ ट्रेक्टेरपर चढ़ि‍ गाम दि‍स वि‍दा भेल। 

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