Pages

Friday, August 10, 2012

कपि‍लेश्वर राउत - थरथरी


कपि‍लेश्वर राउत

थरथरी

ओना तँ ऋृतु छह टा होइत अछि, गृष्‍म, वर्षा, शरद, हेमन्‍त, शि‍शि‍र आ वसन्‍त। मुदा व्‍यवहारमे लोक तीनटाकेँ मानै छै गर्मी, वर्षा आ जाड़। सभ ऋृतुक अपन अलग-अलग गुण अवगुण होइत छै। मुदा जाड़क एकटा अलगे गुण-अवगुण अछि‍। कोन भगवान जाड़केँ जन्‍म देलनि‍ से नै कहि‍। अान ऋृतु तँ लोक हर्ष-वि‍षम, रंगरभस आ वर्षाक फुहारक आनन्‍द लऽ कऽ ि‍बता दै छै मुदा जाड़ तँ कोढ़केँ कँपा दै छै। गरीबक वौस्‍तु मारूख आ धनि‍कक वौस्‍तु वि‍लासक ऋृतु होइ छै।
घुटर एक दि‍न एहने समैमे सुरेश बाबूक खेत जे मनखप केने छल, पटबैले गेल। समए छलै माघ मासक शुरूआतक। जहि‍ना २००३ई. मे शीतलहरी छलै तहि‍ना अहू बेर भेलै। पछि‍या बहैत, जाड़ सुसकारी दैत। सुरूजो भगवान कतए नुका रहला तकर ठेकान नै। कुहेश लागल। पानि‍क बुन्‍द जकाँ बर्फ खसैत। लोक हरदम घुरे लग आगि‍ तपैत। ठि‍ठुरल घास-पात खेलासँ माल-जालक पीठ पाँजर बैस गेलै। आ बि‍मारो पड़ए लागल। तनुक चि‍रै-चुनमुनी सभ जहि‍ंपटार मरए लागल। साँप सभ कोनो बिलमे तँ कोनो आरि‍क कातमे मूइल पड़ल। लोककेँ जीनाइ कठीन भऽ गेलै। एक पनरहि‍यासँ जे शीतलहरी चलल से लधले रहि‍ गेल।
एहने समएमे घुटर मनखप गहूम केने छल। तकरा पटबै लेल गेल। जोखन बोरि‍ंग चलबै लेल गेल, बोरि‍ंगमे जहन पम्‍पसेटसँ पानि‍ धराबए लागल पानि‍ धऽ लेलकै। पलास्‍टि‍क पाइपसँ पानि‍ लऽ गेनाइ छलै से जहाँ कि‍ पाइप पम्‍पसेटमे धराबए लागल आकि‍ पानि‍ दोसर दि‍सामे फुचुक्का मारलक, आकि‍ घुटर आ जोखन दुनू गोटाकेँ नहा देलक। तथापि‍ कोनो तरहेँ पाइपकेँ बान्‍हि‍ लेलक। जाड़े दुनू गोटे थरथर काँपए लागल। घुटर खेत जा एक कि‍यारीमे पानि‍ खोलि‍ देलकै आ आगि‍क जोगारमे घुटर बगलमे जे कलमबाग छलै, ओतए नार राखल छलै, ओतएसँ एक पाँज नार थरथराइते अनलक। आब जखने सलाइसँ आगि‍ धराबए लगल आकि‍ तेहेन जाड़ होइत रहै जे सलाइक काठी खरड़ले ने होइत होइ। थरथरीसँ सलाइक काठी मिझा जाइ। जँ काठीमे आगि‍ धरै तँ नारमे धरबेकाल मि‍झा जाइ। खएर, कोनो तरहेँ आगि‍ धरौलक, आगि‍ धधका दुनू गोटे आगि‍ तापए लागल। थोड़ेक कालक बाद होश भेलै।
सुरेश बाबू खेत देखक लेल पएर लग तक कोट देने, पएरमे मोजा-जुत्ता लगौने, जाँघमे ट्रोजर देने, कानमे मोफलर लगौने, तइपर सँ माथमे टोपी आ आँखि‍योमे चश्‍मा छलनि, तैयो ओ जाड़े थरथराइत छलाह। जखन बोरि‍ंग लग एला तँ देखलखि‍न जे दुनू गोटे आगि‍ तापि‍ रहल अछि‍। सुरेशो बाबू हाथ महक दस्‍ताना नि‍काि‍ल आगि‍ तापए लगला। आ बजला- घुटरा केहेन समए भऽ गेलै जे केतनो कपड़ा देहमे दैत छि‍ऐ तैयो जाड़ना जाइते ने अछि‍। तूँ सभ केना कऽ रहैत छेँ।‍
घुटर बाजल- याै मालि‍क, गरीबक जि‍नगी कोनो जि‍नगी छि‍ऐ। एक तँ दैवि‍क मारल छी, दोसर सरकारोक व्‍यवस्‍था तेहेन ने छै जे की कहब। कमाए लंगोटीबला आ खाए धोतीबला।‍ देहमे देखैत छि‍ऐ जेतने कपड़ा अछि‍ तैसँ राति‍क जाड़मे गुजर करैत छी। घरवाली परसौती भेल अछि‍। एकेटा रहैक घर अछि‍। दोसर बकरी आ गाए लेल अछि‍। तइमे एक कोनमे जारैन-काठी रखैत छी। सेहो बकरीबला घरक टाट टुटल अछि।‍
सुरेश बाबू बजला- तब तँ बर दि‍क्कत होइत हेतौ?”
घुटर बाजल- यौ मालि‍क, की कहू। खएर जाए दियौ। हमरा सभले तँ एकटा उपरेबला छथि‍। मुदा हे एकटा बात कहैत छी जे केतनो अहाँ सभ कपड़ा लगाएब, बि‍जलीक गर्मीमे रहब मुदा तीन बेर अहूँ सभकेँ जाड़ पछारबे करत।‍
सुरेश बाबू अकचकाइत पुछलाह- कन्ना रौ।‍
घुटर कहए लगल- नै बुझै छि‍ऐ, नहाइ, खाइ आ झारा फि‍रै कालमे।‍
सुरेश बाबू- ठीके कहै छेँ।‍
घुटर- मालि‍क, हमरा सभकेँ कोन अछि‍। खूब मोटगर कऽ लार बिछा दइ छि‍ऐ तइपर सँ कुछो बि‍छा दइ छि‍ऐ आ चद्दैर ओढ़ि‍ लै छी आ तखनो जँ जाड़ होइए तँ झट्टासँ बनेलहा पटि‍या ओढ़ि‍ लै छी। बगलमे गोरहन्नी आ खरड़न-मरड़नकेँ ओरि‍या कऽ रखने रहै छी। नै भेल तँ ओकरो पजारि‍ दइ छि‍ऐ। भरि‍ राति‍ सुनगैत रहल घर गरमाएल रहल। अहाँकेँ तँ बुझले हएत जे बोरैसक आगि‍ केहेन होइ छै। ठाठसँ सुतै छी।‍
तहन तँ एअर-कण्‍डीशन‍ बना कऽ घरमे रहै छेँ। बड़ नीक एहि‍ना जाड़सँ बचैक कोशि‍श करि‍हेँ। नै तँ सत्तो डाक्‍टर जकाँ हेताै, बेचारा काल्हि‍खि‍न पैखानासँ अाएल, कलपर कुरूड़ करि‍ते रहए आकि‍ ठंढा मारि ‍ देलकै। टांगि‍-टुंगि‍ कऽ डाक्‍टर लग लऽ गेलै। तँए कहलियौ जे जाड़सँ बचि‍ कऽ रहिहँ। बकरी आ गाएकेँ सेहो झोली ओढ़ा कऽ रखि‍हँ। सुरेश बाबू कहलखि‍न।
मुँड़ी डोलबैत घुटर बाजल- ठीके कहै छी मालि‍क।‍
सुरेश बाबू- रौ घुटर, धियो-पुतोकेँ हाँटि‍-दबाि‍र दि‍हेँ जे ठंढासँ बँि‍च कऽ रहतौ।‍
घुटर- से छौड़ा मानि‍ते नै अछि‍। खन गुल्‍ली डण्‍टा, खन क्रि‍केट तँ खन कबड्डी खेलाइते रहैए। की करबै। हम तँ कहबे ने करबै मालि‍क।‍
सुरेश बाबू- सएह हम कहबौ ने।‍
घुटर- हम तँ भरि‍ दि‍न काम धन्‍धामे लागल रहलौं। अहीं सबहक बॅसबि‍ट्टीमे बाँसक ओधि‍ उखारि‍ चीर-फार कऽ लै छी। जैसँ देहमे घाम फेकैत रहैए।‍ आ राति‍ कऽ बौरेसबला आगि‍ गरमेने रहैए।
सुरेश बाबू- ठीक करै छेँ। जान छौ तँ जहान छौ।‍ शरीर नै तँ कि‍छु नै। अच्‍छा एकटा कह जे योगासन करै छेँ आकि‍ नै?”
घुटर- यौ मालि‍क, हम मूर्ख आदमी की जानए गेलि‍ऐ‍ योगासन आकि‍ प्रणायाम। हमरा सभले देहे धुनब योगासन आ परनि‍याम होइत छै। खटनि‍यौ सँ ने देह दुहाइत रहैए।
सुरेश बाबू बजलाह- इहो बात ठीके छौ।‍
घुटर बाजल- मालि‍क अगहनमे मारि-घुसि‍ क‍ऽ कमेलौं, खूब धान कटलौं जैसँ घरमे एक कोठी धानो अछि‍ आ थोड़ेक चाउरो अछि‍। खेतसँ खेसारी साग, बथुआ साग, सेरसो साग, तोरी साग सबहक तीमन कऽ लै छी। कहि‍यो काल अल्‍लू, कोबी, भट्टा, मुरै सेहो सबहक तीमन खा लै छी आ बम-बम करैत रहै छी।
सुरेश बाबू- तहन तँ नीके वस्‍तु सभ खाइ छेँ।‍
घुटर- अहाँ सभ जकाँ की अण्‍डा, मौस-तौस आकि‍ दूध-दही हमरा सभकेँ भेटैत अछि‍। हमरा सबहक देह तँ वैसाख जेठक रौद, भादवक वर्षा आ माघ मासक जाड़सँ ठाेकाएल-ठठाएल अछि‍। अहाँ सभ जकाँ की गैद परहक बाँस जकाँ मोटगर नै ने अछि‍ जे तागत कि‍छु ने। केहनो भिरगर काज देखा दि‍अ कऽ देब।‍ हँ अहाँ सभ जकाँ पोथी-पतरा नै ने पढ़ने छी। थमहू खेत देखने अबै छी।
कहि‍ खेत आबि‍ दोसर कि‍यारीमे पानि‍ खोलि‍ फेर घूर तर चलि‍ आएल आ गप-सप्‍प केलक। बाजल- यौ मालि‍क, अहाँ सभ जकाँ की हमरा सौ बीघा खेत अछि‍। लऽ दऽ कऽ अपन दस कट्ठा खेत अछि‍। कनीमे तरकारी-फरकारी, कनीमे दलि‍हन-तेलहन, कनीमे साग-पात केने छी। धान-गहूम तँ अहीं सबहक खेतमे मनखप कऽ कए गुजर करै छी।‍
सुरेश बाबू- एकटा कहावत छै जे लड़ा-चड़ा धन पाउ बैठे देत के। हे बड़ जाड़ होइ छै जल्‍दी खेत पटा लए आ घरपर जा। हमहूँ आब अधि‍क घुम फि‍र नै करब घरेपर जाइ छी।‍
घुटर कहलक- जँ गपे-सप्‍प करै छी तँ एकटा गप अओर सुनि‍ लि‍अ। हम तँ पंजाब-भदोही आकि‍ दि‍ल्‍ली-बम्‍बइ नै ने कमाइले गेलौं। देखै छि‍ऐ जे ढबाहि‍ लागल लोक देासर मुलुक जाइत अछि‍। हँ ओतएसँ पाइ तँ अनैए मुदा परि‍वारसँ हटल रहैए। जबकि‍ सरकारो खेतीपर वि‍शेष धि‍यान देलकैहेँ। खेत अफर-जात पड़ल अछि‍, केनि‍हारक चलैत। कम उपजा भेने तंगी तँ बढ़बे करत गाममे माए-बाप से हकन कनै छै। माि‍लक अहीं अपन दशा देखियौ ने, एते खेत अछि‍ आ धि‍या-पुता सभ वि‍देशमे नोकरी करैए। मालकि‍न बूढ़मे कन्ना कऽ भानस भात करैत हेती से वएह जनैत हेती।‍
सुरेश बाबू बजला- से तँ ठीके कहैत छेँ। कखनो कऽ हमरो मनमे होइत अछि‍ जे कथीले एते कमेलौं आ एते जमा केलौं।‍ अच्‍छा छोड़ ई सभ बात। हम जाइ छि‍यौ।‍ कहि‍ सुरेश बाबू घर दि‍स वि‍दा भेला। आ घुटर अंति‍म कि‍यारीमे पानि‍ काटए लगल।

No comments:

Post a Comment