Pages

Friday, August 10, 2012

सत्यनारायण झा -रिटायरमेंट


सत्यनारायण झा
रिटायरमेंट
सोनभद्र नदीक तट। साँझक समय छै। सुरज डुबि रहल छै। नदीमे जल करतल ध्वनिक वेगसँ बहि रहल छै। पश्चिम दिस आकाश सिनुरिया रंगक देखा रहल छै। लगै छै जेना भगवान भास्कर दुनियाँक सभटा दुखक ताप अपनामे समेट प्रस्थान कऽ रहल छथि। मलयानिल मद्धिम मद्धिम चलि रहल छै। सत्येन बाबू एनीकटपर बैसल किछु सोचि रहल छथि। एनीकट अंग्रेज शासन द्वारा बनाएल गेल छै। ऐ इलाकाक लोक बड़ गरीब छलै। सोनभद्र नदीकेँ एनीकट बाँध द्वारा बाँधि देलकै आ पूर्वी आ पश्चिमी नहर निकालि ऐ इलाकामे हरित क्रान्ति आनि देलकै। यद्यपि एनीकट आब भग्नावशेष छै तथापि एतए चहल पहलमे कोनो कमी नै अएलैक अछि। एनीकटसँ १५ कि० मी० दूर इन्द्रपुरी बराज भारत सरकार द्वारा बना देल गेलै आ लिंक नहरसँ पूर्वी आ पश्चिमी मुख्य नहरकेँ जोड़ि देल गेलैक अछि। मुदा साँझक समय एखनो लोक एनीकटेपर घुमय लेल जाइत अछि। साँझक समय ऐठामक दृश्य बहुत मनोहर रहै छै। सत्येन बाबू तँ सभ दिन साँझक समय एतए बैसैत छलाह। ओही सोन प्रणालीमे विगत तीन बरखसँ सत्येन बाबू पदस्थापित छलाह। आ ६० बरख भऽ गेलनि तैँ काल्हि रिटायर भेलाह अछि। सोनभद्राक तटपर एकटा विशाल कलोनी छै। ओही कलोनीमे सत्येन बाबू सपत्नीक रहैत छथि। एखन किछु दिनसँ पत्नी दीपमाला अपन पुत्री इन्दुबाला लग बंगलोर गेल छथिन, से सत्येन बाबू एनीकटपर बैसल जल तरंगकेँ देखैत छथिन जे कोना तरंग उठै छै आ कोना खतम भऽ जाइ छै। अपनो जीवन ओही जलतरंग जकाँ बुझा रहल छनि। काल्हि तक कतेक उफान छलै जीवन मे, मुदा आइ सभटा शांत भऽ गेलै।
यएह सोनभद्राक तट छै जतए प्रत्येक दिन जल तरंगकेँ कल-कल छल-छल करैत देखि आनन्दित होइत रहैत छलाह। अभियंता छथिए आ बेशी समय नहरक नौकरीमे बितेलनि, तैँ अभियंत्रण काजसँ बेशी लगाव छलनि। मुदा आइ ओ बेशी गंभीर छलाह। काल्हिये ने रिटायर भेलाह अछि। कतेक रूटीन लाइफ छलनि। मुदा आब रिटायरमेंटक जीवन कोना कटतनि? यएह सोचि रहल छलाह एखन। मोन नै लगलनि। थोड़बे कालक बाद चलि देलाह अपन डेरा। डेरापर सेहो तँ अखन असगरे छथि। चुपचाप लॉनमे कुर्सी लगा बैस जाइ छथि। आ पुनः अतीतमे चलि जाइ छथि। याद पड़ैत छनि अपन बचपन। घरमे माय बाबूजी, पित्ती- पितियाइन सभ रहथिन। सभ पितयौत आ सभ बहीन मिलाकय बहुत पैघ परिवार रहै। सभ कतेक खुशी रहै। सत्येन बाबू बचपनमे कतेक खेल सभ ने खेलाथि। चोरा नुकी, झिझिरकोना, चोर सिपाही, कतेक खेल सभ रहै। एक बेर लिलियासँ कतेक झगड़ा भऽ गेल रहनि, तँ ओकर हाथे मरोड़ि देने रहथिन, तँ कोना काकीसँ मारि खुआ देलकै। ओ छौड़ी बड़ बदमास छल मुदा हमरा सहोदरोसँ बेशी मानैत छल। कोनो चिंता नै, कोनो फिकिर नै। भरि भरि दिन महराजी पोखरिपर गेंद खेलाइत छलाह आ पोखरिमे चुभकी मारैत छलाह, मुदा धीरे धीरे बचपन समाप्त भऽ गेलनि। बाबूजी मरि गेलखिन। कतेक कानल रहथि सत्येन बाबू। बहुत स्नेह रहनि बाबूजीसँ। क्रमहि सभ पित्ती मरि गेलखिन। अराध्यदेवी माय सेहो स्वर्ग चलि गेलखिन। सत्येन बाबू सोचैत छथि, जावे माय जिबैत रहथिन, कहियो अपनाकेँ पिता नै बुझैत छलाह। संतान लग पिता जरुर छलाह मुदा माय लग पहुँचैत बेटा बनि जाइत छलाह। आत्मा तृप्त भऽ जाइत छलनि मुदा आब ओ जिनगी कहाँ देखैत छथिन। सत्येन बाबूकेँ कतबो तकलीफ, दर्द होइत छलनि मायक एकटा स्पर्श दुःख दर्दकेँ तुरंत समाप्त कऽ दैत छलनि। मायसँ आत्मीय प्रेम रहनि। जीवनमे कतेक तूफान अएलनि, कतेक समस्या रहलनि, मुदा सत्येन बाबू कहियो हतोत्साह नै भेलाह, तेकर कारण एक संजीवनी-बूटी माय छलखिन। कतेक पारिवारिक समस्या होइत छलनि मुदा मायक विचारसँ कहियो कोनो समस्या बुझेलनि? सत्येन बाबू पारिवारिक परिवेशमे सेहो बहुत संतुलित छलाह। समग्र परिवारसँ अपनापन छलनि। जइ माटि-पानिमे जन्म छलनि तइसँ अत्यधिक प्यार छनि। मुदा आबक जीवन कोना बिततनि से बुझा नै रहल छनि।
सर बजारसँ की अनबाक अछि? रामझुमनी आ कदीमा तँ भोरे अनने रही।सत्येन बाबूक तन्द्रा टुटलनि। नौकर बनबारी आगूमे ठाढ़ रहनि। कहलखिन्ह- जखन तरकारी अछिये तँ छोड़ू बजार गेनाइ। पहिने नेबोक चाह बना कऽ आनू। देखू, तुलसी पात देनाइ नै बिसरब।
बनबारी चाह बनाबए चलि गेलनि। सत्येन बाबू लॉनमे टहलऽ लगलाह। गेंदा, चमेली, सिंगरहार, गुलाब तथा रातरानी फूलसँ पूरा लॉन भरल छै। काते कात कतेक गाछ जेना आम, कटहर, धात्री, अशोक आदि सभ छै। अनवर माली हरदम किछु ने किछु करिते रहै छै। गुलाबक फूल कइएक रंगक छै। कोनोमे कली देने छै तँ कोनो अर्द्धविकसित छै तँ कोनो पूरा फुलाएल छै। ऐ लॉनक बीचमे एकटा चबूतरा बनाएल छै। ई चबूतरा अंग्रेज शासन द्वारा निर्मित छै। नवमे कतेक रमणीय लगैत हेतै? सत्येन बाबू जखन कोनो आत्म चिंतनमे रहैत छथि तखन अही फूलक बीचमे चलि अबैत छथि। चारुकातसँ नीक नीक सुगंध लगैत छनि। सुगन्धित वातावरणमे चिंतन सेहो सकारात्मक भऽ जाइत छनि। चारुकात फूलसँ आच्छादित चबूतरापर बैस जाइ छथि। ताबे बनबारी चाह बना कऽ आबि जाइ छनि। बनबारी सत्येन बाबूक संग बहुत दिनसँ छनि। ओ गाड़ी सेहो चलबैत छनि आ किचेनक काज सेहो करैत छनि। ओकर माय जखन ओ दू सालक छल तखने मरि गेलै। बनबारी टुगर भऽ गेल। पैघ भेल तँ सत्येन बाबूकेँ ओकरापर दया आबि गेलनि। राखि लेलखिन्ह अपना लग। से ओ बनबारी सत्येन बाबूक बहुत सेवा करैत छनि। सत्येन बाबू अखन बेचलरे रहै छथि। तैँ सत्येन बाबू बनबारीपर पूरा निर्भर रहैत छथि। चाह पिबए लगै छथि। तुलसी पात देलासँ चाहक स्वादे बदलि जाइ छै। सत्येन बाबूक तुलसीक चाह विभागमे प्रसिद्ध भऽ गेल छनि। चाह पिबैत पिबैत पुनः अतीतमे विचरए लगै छथि। १९७१ मे सत्येन बाबूक ब्याह एकटा छोट मुदा संभ्रांत परिवारमे दीपमाला संग भेल रहनि। सत्येन  बाबूपर घरक प्रत्येक आदमीक दृष्टि रहनि। ओइ समयमे कतौ कतौ इंजीनियर होइत छलै। सत्येन बाबूकेँ इंजीनियर होइते परिवारक पृष्ठिभूमि बदलि गेल रहनि। सत्येन बाबूपर पारिवारिक जिम्मेदारी रहनि। सत्येन बाबूसँ कियो रुष्ट नै रहथिन। आइ सत्येन बाबू सोचैत छथि, जइ व्यक्तिकेँ पत्नी संग नै छै ओ व्यक्ति समाज, परिवारक दृष्टिमे हीन भऽ जाइ छै। कहावत छै, सभ सफल व्यक्तिक पाछू एकटा स्त्री होइत छै। ओ पत्नी, माय, बहीन या कियो आनो भऽ सकैत छै। मुदा सोसल स्टेटस (सामाजिक अवस्था) पत्नीक व्यवहारपर निर्भर छै। पत्नीक महत्व जिनगीमे बहुत छै। ओ स्वर्गो देखा सकैत छै आ नर्को। आइ सत्येन बाबू सफल बेटा छथि, सफल पति छथि, सफल पिता छथि एवं सफल सामाजिक प्राणी छथि, ओइमे हुनकर पत्नी दीपमालाक पैघ हाथ छनि। मुदा आबक समय सत्येन बाबूकेँ कठिन बुझा रहल छनि। ६० बरख भऽ गेलनि। बुढ़ारी दस्तक दऽ रहल छनि। नौकरीसँ रिटायर कऽ गेल छथि। आब संतानक जरुरत बुझा रहल छनि। सत्येन बाबूकेँ तीनटा संतान छनि। दूटा बेटा आ एकटा बेटी। सुकांत बाबू चौदह सालसँ नौकरी करैत छथिन। बहुत प्रतिभावान। ओ अपना जीवनक अपन लक्ष्य प्राप्त करबामे लगा देने छथिन। लक्ष्य प्राप्त करबाक लेल कतौ दोसर दिस देखबाक पलखति नै छनि। ब्याह भऽ गेल छनि। एकटा पुत्र रत्न छनि। पारिवारिक दृष्टिसँ सुव्यवस्थित छथि। दोसर बेटा निशिकांत मेधावीक संग अपन काजमे व्यस्त छथि। नीक नौकरी करै छथि। हुनको ब्याह भऽ गेल छनि। पत्नीक संग प्रसन्न छथि। दुनू भाइक पढ़ाइमे सत्येन बाबू कमी नै केलखिन। धीयापुताक पढ़ाइ एवं पारिवारिक तथा अन्य सामाजिक काज करए कऽ कारण सत्येन बाबू सतत अभावक जिनगी जीलनि। तैँ सत्येन बाबू आधुनिक सुखसँ वंचित रहलाह। जिम्मेदारीक बोझसँ दबल रहलाह, तथापि आत्मीय सुखक कमी नै रहलनि। जतबे रहनि ओतबेमे संतोष रहनि। अपन दुनियाँ ततेक ने बढ़ा लेलनि जे अपना लेल किछु नै रखलनि। सभसँ चिंता इन्दुबालाक ब्याह रहनि। मुदा भगवानक इच्छा, इन्दुबालाक ब्याह सेहो नीक भऽ गेलनि। इन्दुबाला आ अंशुमान बाबूक जोड़ी बहुत नीक। अंशुमान बाबू बहुत उदार प्रकृतिक छथि। जेहने प्रतिभा तेहने विलक्षण स्वभाव। ज्ञानी तँ नीर क्षीर हंस जकाँ आ विवेकी महान। सत्येन बाबू बहुत खुशी भेलाह। सत्येन बाबूक भाग्य देखि कतेककेँ ईर्ष्या होइ छै। सत्येन बाबूकेँ सभ संतानसँ समान प्यार छनि। मुदा इन्दुबालाक संग २५-२६ बरख तक रहलासँ सत्येन बाबू बेटीपर बेशी निर्भर भऽ गेल छलाह। बेटी सासुर चलि गेलनि तहियासँ सत्येन बाबू कमजोर भऽ गेलाह। यद्यपि जहियासँ बेटा बेटी बाहर चलि गेलनि तहियासँ सत्येन बाबूक देख रेख हुनक पत्नी दीपमाला करैत छथिन मुदा इन्दुबालाक विछोह सत्येन बाबू आइ तक नै बिसरि सकलाह अछि। इन्दुबालाक संगीत सत्येन बाबूक रोम रोम मे बसल छनि। इन्दुबालाक संगीत सत्येन बाबूक  प्राणदायनी छनि। इन्दुबाला कहियो नै बुझि सकलीह मुदा सत्य छै जे इन्दुबालाक अवाजपर सत्येन बाबू किछु काल लेल मृत्युकेँ भगा देथिन। संतान तँ सभ एके रंग होइ छै। मुदा संतानक अपन अपन दुनिया छै, तैँ कोनो कोनो संतान भौतिक सुखमे माय बापकेँ बिसरि जाइ छै। युग अनुसार धर्म बदलि जाइ छै। ओना माय बापकेँ सेहो बेटा दिस टकटकी नै लगेने रहबाक चाही। ओइसँ संतानक उन्नति प्रभावित होइ छै। संतानकेँ स्वतंत्र छोड़ि देबाक चाही। जतेक मोह होइत छै ओतेक कष्ट होइ छै। ऐ जीवनक कोन मोल तैँ सुख दुःखक अनुभूति बेकार। बस जे होइ छै से होइते रहतै।
सत्येन बाबू मस्तिष्ककेँ एकटा झटका देलखिन्ह। की सभ सोचए लगलौं। सत्येन बाबूकेँ एकटा घटना याद अबिते हँसी लागि गेलनि। इन्दुबाला छोटेसँ बहुत नटखट छलै। ओकरा अपना बाबूजीसँ असीम प्यार छलै। सत्येनबाबूक सहरसा जिलान्तर्गत कोसी परियोजनामे पोस्टिंग रहनि। ओइठाम सत्येन बाबू केनाल एस.डी.. रहथि। केनालक गप्प डेरापर ततेक ने होए जे घरक बच्चा सभ सेहो मुख्य, शाखा, लघु आ जलवाहा नहर बुझए लगलै। डेराक आगाँमे निशि, इन्दुबाला आ कालोनीक अओर छोट छोट बच्चा सभ मुख्य, शाखा आ लघु नहरक निर्माण खुरपीसँ जमीन कोड़ि कोड़ि कऽ करैत छलैक। नहरक निर्माणक बाद लोटा, गिलास, मगसँ पानि भरि कऽ नहरमे जलश्राव करैक आ नहरमे पानि जखन एक नहरसँ दोसरमे बहए लगैक तँ सभ बच्चा थोपड़ी पारि नाचए लगै। ऐ बीच इन्दुबाला एकटा लघु नहरकेँ तोड़ि थोपड़ी पाड़य लगै जे नहर टुटि गेलै। फेर ओही बच्चा सभमे कियो चीफ इन्जीनियर, कियो एस.., कियो एस. डी.. बनि कऽ कमीटीक गठन करै आ मामलाक जाँच होइक। कमीटी द्वारा इन्दुबालाकेँ दोषी ठहराएल जाइक। दोषीक आँखिपर पटटी बान्हि चोर घोषित कएल जाइक। इन्दुबाला चोर बनए लेल तैयार नै होइत छलै, तखन सभ मिलि कऽ ओकरा मारि खुएबाक लेल सत्येन बाबू लग अनबाक प्रयास करैक। मुदा इन्दुबाला सभकेँ धमकी दैत सभकेँ कहै- तोरा सभकेँ नै बुझल छौक जे बाबूजी हमरा किछु नै कहै छथि, आ दौड़ कए भागि कऽ उल्टे सभ बच्चाक शिकाइत सत्येन बाबू लग करैक। बच्चेसँ कतेक कंफिडेंस अपना बाबूजी पर रहै इंदुकेँ। इन्दुबाला आब अपना घर गृहस्तीमे लागल छै, तथापि सत्येन बाबूकेँ लगैत छनि जेना ओ अखनो हुनका गरदनिमे लटकल छन्हि। संतान तँ वएह छै जेकरा अपना माय बापक सेंटीमेंट्स अनायास बुझा जाइ छै। इन्दुबाला सत्येन बाबूक आत्मामे बैसल छै। जीवनक ढलानपर सत्येन बाबू पहुँच गेल छथि। सूर्यक प्रखर तेज आब सत्येन बाबूमे नै छनि। आब तँ केखनो रात्रिक अन्हार सूर्यक लालिमाकेँ झाँपि देतैक। सत्येन बाबू केखनो कऽ उदास भऽ जाइत छथि। सत्येन बाबू अतीतक यादसँ वर्तमानमे अबैत छथि। ऐ समय की करक चाही? रिटायरमेंटक सदमा तँ सभ नौकरी पेशा लोककेँ होइ छै। तखन सत्येन बाबू किए चिंतित छथि? हुनका तँ चारु तरफ अपन बच्चा सभ ठाढ़ छनि। हुनका किए असुरक्षाक भावना मोनमे अएलनि? तकदीरमे जे लिखल हेतै सएह हेतै। अपना बच्चा सभकेँ संस्कार तँ ओ स्वयं देने छथिन। तखन एतेक डराएल किए छथि? डेराएल छथि ओ समयसँ। डेराएल छथि ओ आजुक सभ्यतासँ। समयमे बहुत परिवर्तन भऽ गेलैक अछि। भौतिकवादी युगमे सभ अर्थपर विशेष जोर देने छै। केकरो फुर्सत नै छै जे कतौ दोसर दिस देखतै। चारुकात त्राहि त्राहि छै। मुदा मोनकेँ आत्म संयमित करक छै। हर माय-बापकेँ सोचबाक चाही जे हमर समय बीति गेल। जेकर समय छै ओकरा सोचए कऽ छै। सत्येन बाबू विचार मग्न रहथि। एतबेमे पुनः बनबारी आबि गेलनि आ कहलकनि सरखाना तैयार भऽ गेल। सत्येन बाबू देखलनि, ९ बाजि गेलै। डेराक भीतर गेलाह। खाना टेबुलपर लगाएल छै। सत्येन बाबू भोजन केलनि आ बिछौनपर पड़ि रहलाह। नींद शीघ्रे भऽ गेलनि। निद्रामे देखै छथि जे हुनके हमशक्ल एकटा दोसर सत्येन ठाढ़ भऽ हुनका देखि हँसि रहल छनि। सत्येनबाबूकेँ देखि आश्चर्य भेलनि। पुछलापर कहलकनि, ओ सत्येन बाबूक आत्मा छिऐ। ओ कहलकनि जे देख हमर दोस्त, जिनगी तोहर नै छियौ। जिनगी तँ तोरा देल गेल छौक। जहिया तोहर काज समाप्त भऽ जेतौक तोरा देहसँ हम निकलि जेबौ आ तोहर देह निर्जीव भऽ जेतौ। तैँ तू बेकार किछु सोचैत छेँ। तोरा अपना दऽ किछु नै बुझल छौ। तोहर शरीरक कोनो महत्व नै छौ। महत्व छै हमर अर्थात आत्माक। ई कहि छाया सत्येन चलि गेलै। सत्येन बाबू अवाक रहि गेलाह। ताबे बनबारी उठेलकनि। सरउठू, भोर भऽ गेल। चाय सेहो बना देने छी। तुलसी पात सेहो धऽ देने छी। सत्येन बाबू आँखि मिड़ैत उठैत छथि आ देवालपर लागल दर्पणमे अपन मुँह देखै छथि आ अस्थिरेसँ मुसकिया दै छथि। 

No comments:

Post a Comment