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Friday, August 10, 2012

सतीश चन्द्र झा- हमहूँ कहाँ बुझलिऐ


सतीश चन्द्र झा, राम जानकी नगर, मधुबनी
हमहूँ कहाँ बुझलि

चान! चान! हे यै चान ! सुतले रहब। केबार खोलू ने । हम कुशुम छी। हर्ष खुशीमे डूमल स्वर कानमे पड़िते निन्न खुजि गेल। भोरक किछु हेराएल सपना फेरसँ हेरा गेल.. आ हम उठि कऽ बैस गेलौं। आँखि मलि कऽ दुनू हाथकेँ जोड़ि दर्शन करिते केबाड़ खोलए दौड़ि गेलौं। की बात छौ ? एते भोरे ..? प्रश्न पूरा नै भेल मुदा ओ बाजल दीदी ..आइ हमर बि‍आह अछि। रातिमे बाबू कतौसँ ठीक कएने अएलै। पाँचमा पास छै आ दिल्लीमे कोनो काज सेहो करै छै। अहाँ अवश्य आएब। नै जानि ओ की की बाजि रहल छल, मुदा हम तँ ओकर पहिल शब्द बि‍आह सुनि ततेक ओझरा गेलौं जे किछु आओर नै छि सकलिऐ आ ओ दौगल चलि गेल। .. हँसैत ..एकटा अबोध हँसी . निर्विकार चेहरा ..। मुदा हम! हमर चेहरा तनावपूर्ण। लागल जेना हृदैमे किछु गरम चीज सन्हिया गेल हुअए आ हमर संपूर्ण रक्तमे एकटा अपरिचित झुनझुन्नी बनि कऽ दौड़ि रहल हो .सरपट.. अति तीव्र गतिसँ। अचानक शरीरक बोझ उठाबएमे पएर असमर्थ भऽ गेल आ हम धम्मसँ धरतीपर बैस गेल रही।. सुन्न भेल.. मुदा भीतर लड्डू जकाँ किछु नचैत रहल .. नचैत रहल .. अविराम । नै जानि कखनो कऽ एकटा आश्चर्य एतेक भएभीत किए कऽ दै छै .एकर उतर ने तहिया भेटल ने आइ धरि बुझबामे । मोनक किछु बातक अभिव्यक्तिक माध्यम अखनो नै छै। शब्द तँ किन्नहँु नै। हँ आँखिक नोर कखनो कऽ हृदैमे चुभैत कोनो भावनाकेँ बूझि जाइ छै।
गाम घरक जीवन। छल-प्रपंचसँ वंचित समतल धरती जकाँ समटल आचरण, जतए छोट-छोट सपना देखि‍ ओकरे परिपूर्ण करबा लेल छटपटाइत आत्मा। ओही श्वच्छ परिवेशमे हम आ हमर कुशुम संगी बनि कऽ अखन धरि रहैत छलौं। ओ हमर हरबाहक बेटी छल। छोट लोकक बेटी, मुदा तखन ई बात नै बुझलिऐ जखन पहिल बेर ओकरा अपन आँगनमे देखि‍ हाथ पकड़ने दौड़ि गेल छलौं दलानपर। नेनपन कहाँ बूझि पबै छै जाति पाति आ उच्च निचक बात। ई तउमेर बढ़लासँ समाजक व्यवस्था आ मोनक अहंमे लोक भसिया जाइत अछि। मुदा दोस्ती तमोनक एकटा मिठ्ठ संबंध छै, एकरा समाज आ परिवारसँ की मतलब। एक बएसक कतौ दू टा अबोध एक दोसरक अँाखिकेँ पढ़ि लेलक आ बन्हि गेल एकटा शब्दहीन संबंधमे।
आइ फेर नै जानि कि‍ए जीवनक बीतल संपूर्ण हवा बसात मोनमे प्रचंड बिरड़ो उठा देने छल आ हम ओइमे एकटा छोट फतिंगा जकाँ उड़ियाइत अपन अस्तित्वकेँ बचाबएमे संघर्षरत छी। यएह तँ जीवन छै- सतत संघर्ष आ अपन अस्तित्वक रक्षा। मुदा कहाँ भेल अस्तित्वक रक्षा। आलोकसँ बि‍आह भेलाक बाद लागल जेना जीवनक संपूर्ण सपना मूर्त रूप लऽ लेत। स्नेहक संबंध प्राणमे एकटा नव स्फूर्तिक संचार करै छै। विचारक धरातलपर पति-पत्नी एक दोसरकेँ सम्मान दै छै। मुदा बि‍आहक दू मासक बादे सभ किछु उल्टा लागए लागल। प्रेमक निर्वाध गतिसँ बहैत शीतल जलमे दुर्गंध आबि गेलै। आलोकक अहंमे अपन अस्तित्व कतए हेराएल जे अखनो धरि नै भेटल। पिताक एक मात्र संतान छलौं हम। स्नेहक कतौ कमी नै अनुभव भेल। शिक्षाक मर्यादा सदैव जीवनकेँ बान्हि कऽ रखलक। घरक संस्कार जाति समाजक कठोर बंधन कहियो स्वतंत्रता नै दऽ सकल जे अपन पतिसँ विद्रोह कऽ सकी आ अपन जीवनक ठमकल दुर्गंधित पानिकेँ समुद्रमे बहा कऽ निर्मल कऽ ली। आइ बुझाइत अछि जे शिक्षा आरो कमजोरे करै छै। लोक की कहत? सम्मानक क्षा केना हएत? समाजमे लोक की की बाजत? सभटा बिचार मोनमे उठिते हम अपनाकेँ बहुत कमजोर अनुभव करए लगैत छी आ अपन संपूर्ण व्यथाकेँ सहर्ष स्वीकार करैत अकासमे नुकाएल देवतासँ मृत्युक वरदान मंगैत प्रतिदिन अपन बान्हल दिनचर्यामे लागि जाइ छी। कमजोर नारिक कमजोर विचार। शिक्षित नारी आ एते कमजोर आत्मविश्वास। जखन कऽ ई विचार अबैत अछि तँ मोनक कारी वेदना स्वेत मुखमंडलपर ततेक ने अपन रेखाचित्र खिंचि दैत अछि जे ओकरा भरब असंभव भऽ जाइत अछि।
मोनक आँखिसँ फेर किछु देखैत छी तँ लगैत अछि जे  हमर कुशुम कहाँ कमजोर छल। दशमीमे पढ़ैत-पढ़ैत बि‍आह भेल रहै। बि‍आहक बाद एक दू बेर सासुर सेहो गेल। ओकर घरबला दारू पीब‍ कऽ ओकरा संग बहुत मारि-पीट करै छलै। एक दिन ओकर सूतल स्वाभिमान जागि गेलै आ ओकरा छोड़ि देलक। ओ अपन विगतक संपूर्ण पसरल स्याहीपर उज्जर पिठारसँ फेर कोबर लीखि लेलक। जीवनक निर्णय लेबामे ओ कतौ कमजोर  नै पड़ल। फेरसँ ओ अपन दोसर पतिक संग प्रेम करैत दुनियाँक टेढ़-मेढ़ बाटपर चलि पड़ल। एक दिन हमरो कहलक दीदी अहाँ एतेक कष्ट उठा कऽ केना अपन पतिक संग निर्वाह कऽ लै छी? ओना तँ अहाँ हमरासँ बेसी पढ़ल लिखल छी। नीक संस्कार अछि। स्वयं कमा कऽ खा सकै छी। तखन किए?’’ँू नै बुझबिही’’! ओ चुप भऽ गेल। मुदा हमहूँ कहाँ बुझलिऐ ? ओ तँ कम पढ़ल छल। छोट जाति .. ताहूपर गरीब.....। मुदा हम तँ पढ़ल लिखल उच्च जाति ..पैघ लोक ..नीक संस्कार! लेकिन कहाँ बूझि सकलिऐ एकर कारण ? की एकर कारण संस्कार छै? अथवा सुशिक्षा? पता नै केना बुझबै एकर रहस्य।
हम एम.ए. पास कऽ कऽ नौकरी करबा लेल पिताजीसँ अनुमति चाहैत छलौं लेकिन ओ कहलथि जे हम अहाँक बि‍आह लेल चिन्तित छी। एकटा पिताक सभसँ पैघ बोझ पुत्रीक कन्यादान होइ छै तँए ओ ऐसँ मुक्त होएबा लेल जतए ततए प्रयत्नशील रहथि। हमर सहमति तँ एकटा मात्र हुनका लेल स्नेहक अभिव्यक्ति छल जइमे कर्तव्यक एकटा निर्वहन सेहो छलै। हम अपन सहमति स्नेहक प्रतिदान स्वरूप दऽ देलियनि। गामसँ किछु दूर एकटा धनाढ्य पढ़ल-लिख परिवारक एकलौता पुत्र आलोक संग हमर बि‍आह भऽ गेल। दान दहेजक मांग नै सुनि हमर पिताकेँ लगलनि जे आजुक युगमे निश्चय ओ लोकनि भगवान छथि मुदा किछु दिनक बाद ज्ञात भेल जे ओइ भगवानक संपूर्ण आत्मा कलुषित छल। धनाढ्य आ सुशिक्षित नींवमे सौंसे दिबार लागि गेल छल आ ओही दिबारक मजबूती लेल हमरा बलिदान देबाक छल। आलोकक एकटा अओर बि‍आह भऽ चुकल छलनि। संभवतः पाँच छः साल पूर्वहि मुदा संतान नै होएबाक कारणे अपन वंश आ अहंकारक गाछकेँ आगाँ बढ़ाबए लेल एकटा सुशील कन्याक खोज रहन्हि। तखन हमरे संग प्रपंच भेल। जीवनक एक एकटा नुका कऽ पौतीमे राखल हमर सुन्दर कल्पना हेरा गेल। आ हेरा गेल हमर संपूर्ण अस्तित्व, जकर रक्षा करब हमर बसक बात नै रहल। एकटा हारल मनुख। मात्र बच्चा पैदा करबा लेल आनल गेल छल। इच्छा वा अनिच्छा  किछु कतौ नै। अपन घर नै। अपन किछु सपना नै। विद्रोह करबा लेल हिम्मति नै, एकदम कमजोर ..हम ..चान। मुदा हमर संगी कुशुम .. अपन जीवनक उतार चढ़ावमे अपन अस्तित्व अखनो धरि बचौने .. खूब होशगर आ ठोस कुशुम। 

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