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Friday, August 10, 2012

कामिनी कामायिनी - टुटल तारा


कामिनी कामायिनी


टुटल तारा
अखन फरिछ हेबामे किछुए विलंब छल ।क्षितिज धाे माँजि कऽ अपन रतुका कारीख साफ करबामे लीन। चैती बयार गाछ बिरीछक पातकेँ हल्लुकेसँ छुबैत दुलराबैत सहलाबैत बहि रहल छल आ संगहि बढ़ि रहल छल़ जमुना नदीक पार्श्ववर्ती बिरीछपर रैन बसेरा करैत खग विहगक मधुर कलरव गान। उम्हर रश्मिरथीक सुआगतक तैयारी चलि रहल छल, इम्हर अंतःपुरमे रत्न जड़ित बड़का पलंगपर सूतल सुल्तानक आँॅखि फूजि गेलै़। पार्श्वमे सूतल चंपाक खिलल खिलल कली सन मृग नयनी अपन सुतवा नाक गुलाबक फूल सन लाल लाल ठाेर ललाटपर कमानी सन सजल भाैंसँ अलाैकिक आभा पसारने। साैंदर्यक साक्षात प्रतिमूर्तिकेँ देखि‍ वजीरे आजम भाव विभाेर भऽ उठला़। आे हुनका अपन आगाेशमे भरि लेलनि। सुन्नरी जागि रहल छलीह मुदा लाथ केने पडल़ सुल्तानक बलिष्ठ बाँॅहिमे कसमसाइत सन पड़ल नहू-नहू मनुहा़रि करैत किछु प्रेमक फकड़ा दाेहराबैत रहली़। काेनमे आतिशदान जड़ैत रहल छल। खिड़कीसँ अकासक कालिमा छँटैत देखि‍ रूपसी हड़बड़ा कऽ उठि बैसली।जहाँपनाह अन्नदाता बड़ विलंब भऽ चुकल अछि आब हमरा यथाशीघ्र प्रस्थानक आज्ञा देल जाउ।सम्राटक आँॅखिमे पीड़ाक लहरि स्पष्ट देखार भऽ गेल छलै। मुदा तत्क्षण हुनक हाथ फराक भऽ गेल छलैन्ह आ आे एकदम माैन खिड़कीक बाहर नदीमे दूरसँ आबि रहल काेनाे कश्तीकेँ देखबामे लागि गेल छलाह। सुन्दरिक विदाइक पछाइत आेही रत्न जड़ित महलक दराेदिवार जेना एकदम बे-राैनक, सून सून सन, लागए लगलै़। सुल्तान एतेक उदास भऽ गेल छलथि जेना कियाे हुनक माथसँ ताज छीन नेने होइनि। बड़ असहाय हारल जुआड़ी सन। मस्तिष्कक साेर गुल कम करबा लेल आे पलंगसँ उतरि अपन पएरमे बेस कीमती नागाेरी जुत्ती पहीर, सुन्दर सुवासित बागीचा दिश टहलए जेबा लेल प्रस्तुत भेला मुदा नै जानि माेनमे काेन तरंग हिलकाेर मारि रहल छलन्हि। पएर दीवाने खासक विपरीत संगमरमरक श्वेत धवल झराेखा दिस बढ़ैत गेलनि जिम्हर जमुनाक कारी कचाेर पानि बड शांत भावसँ कश्ती बलाकेँ मधुर रससँ भरल गीत सुनैत बहि रहल छल। कनि विलमैत नहूँ नहूँ आे वाटिका दिस अग्रसर भेला। सुन्नर महल एखनो औंघाएल अलसाइत सन पड़ल छल। जाैवनसँ प्रफुल्लित पुष्पदलपर मँड़राति भमरा सबहक गुंजन आ नदीक धीर गंभीर हहराइत स्वर ऊपर अकासमे भाेरक रूहानी़ आध्यात्मक ताकत़ चिड़ै चुनमुनीक मधुर तान मुदा सुल्तानक गमे इश्कपर किछु मरहमक काज नै कऽ सकल। कत्ताे क्षण मात्र नै बिलमइत। जेना छरपट्टी लागि गेल हाेन्हि। उद्विग्न हृदैसँ आे खुदाक इबादत करबा लेल माेती मस्जिद दिस बढ़ि गेल छलाह। दूरस्थ मस्जिदसँ आबैत अजानक स्वर हुनक हृदएकेँ छूने बिनु दशाे दिशामे झहैर झहैर कऽ विलुप्त भेल चलल जाइत छल। बड़ कुमनसँ कहुना कऽ अपन आसन बिछा ठेहुन मोड़ि नमाज पढ़लनि। काँॅच पाकल अपन नाम नाम दाढ़पर हाथ फेरैत अतीतमे डूमल भसियाएल सन स्नान करबा लेल आे हमाम दिश मुड़ि गेलाह। चढ़ैत सुरूजक संग दिवसक क्रिया कलाप प्रारंभ करए लेल दीवाने आममे दरबार सजए लागल। आब नै आे गुल रहल आ नै आे गुलशन। सुल्तानक आे बुलंद साख सेहाे नै बाँॅचल छल मुदा तैयाे बड़का नाओंक टेग तँ लागले छल लाल किलाक संग। राजकाज सीमिते मुदा छलै तँ अवस्स। बेसकीमती वस्त्राभूषण आे राजमुकुट पहिर राजसिंहासनपर बैस राजकीय माेहर लगबैत प्रशासक प्रबंधक आ न्यायाधीशक भूमिका निभाबैत निभाबैत आे जेना फेरसँ नशामे मातल बहकल बहकल सन व्यवहार करए लागल छलाह। चतुर सुजान मंत्रि सबहक नजरिसँ ई नै बाँचि सकल छल। किंकर्त्तव्यविमूढ आे सभ। आखिर करितथि तँ की? लाल़ टरेस उन्मत्त आँॅखि आ नशाक आगाेशसँ सुन्न हाेइत दिमागक तंतु तंतु केँ सुरा आ सुन्नरि अपन हुश्नक हुकुमतमे बंधक बनाैने नचा रहल छल।
हुस्न जाम आ इश्कक भमरमे घेराइलि उबचुभ हाेइत माेहित नजरिसँ आे अपन चारू कात देखलक। सम्पूर्ण दरबार दरबारी़ प्रजा आ मंत्रिपरिषद हुनका शत्रुसम दृष्टिगाेचर हाेमए लागल छल़। मस्तिष्कक खाेहमे तँ मंडीलक घंटी आ मस्जिदक अजान सन एकेटा स्वर प्रतिध्वनित हाेमैत रहल छल, इम्तियाज इम्तियाज इम्तियाज।
हुनक वश चलितनि‍ तँ सम्पूर्ण संसारक मिल्कियत आेकरा नाओं लिख आेकरा मल्लिकाए तरन्नुम बना विश्व मानचित्रपर अमर बना दैतथि।
शनैः शनैः बढ़ैत प्रचंड धूप हुनक बेचैनीकेँ, अनमनस्कताकेँ आआेर बेलगाम करए लागल छल। तखने विशाल विशाल कारी चारि टा अश्व अपन वीर जाेद्धा संग आेतए पधारल। सहायककेँ घेाड़ा साैंपि सैनिक सभ जहाँॅपनाहक खिदमतिमे अपन आदाब अर्ज करैत बड़का बड़का डेग भरैत दीवाने खास दिसि‍ मुड़ि चुकल छल।
संर्पूण मंत्रिमंडल संग कनिकाल लेल सुल्तान सेहाे चिंताक अथाह सागरमे डूमि‍ गेल छलथि। गुप्तचर सभ काेन सनेस लऽ एहेन व्यग्र भऽ पहुँॅचल अछि?

आे सभ यथाशीघ्र ओइठामक कार्यवाही समाप्त कऽ उठि चुकल छलाह।
तीन साै बरखसँ जे साम्राज्य जनमानसमे घुसिक कऽ आेकर रग रगमे अपन जड़ि जमा चुकल छल़, जेकर असीम सत्ता आ प्रचुर दाैलत साेन-चानी हीरा जवाहरात लाेकक हृदैमे भय वा इज्जतक कारण बनल छल, जेकर विराट न्यायप्रियता़ वा क्रूरताक शासन प्रबंधक चारूकात पताका फहरा रहल छल़, ओइ विख्या़त साम्राज्यक हाथसँ एकक बाद एक कऽ रियासत सभ निकलल जा रहल छल। चारूकात विद्राेहक अग्नि प्रज्ज्वलित हाेमए लागल। ऊपरसँ विदेसी आक्रमण घाघ आ शातिर खेलाड़ी इस्‍ट-इंडिया कपनी तँ बड़ चालाकीसँ टामस राे केँ पठा जहाँगीरेक शासनकालमे व्यापार करबाक अनुमति लइत शनैः शनैः अंगुरि पकैड़ कऽ पहुँचा पकड़नाइ प्रारंभ कऽ देने छलै।
मैत्रीक नाओंपर एते पैघ छलावा। आइे पहिल अंगरेजक पछाति कत्तेक रास राजकेँ अपन भ्रामक महाजालमे फँसबैत चलल गेल़  ऐतिहासिक दस्तावेज ऐ दुर्भाग्य पूर्ण गाथाक प्रत्यक्ष प्रमाण अछि जे भारत भूमिक अनेकानेक राज रजवाड़ाक कूप मंडूकता आपसी इरखा़ द्वेष आ अदूरदर्शिताक लाभ उठबैत सभसँ फराक फराक संधि करैत, आेकर नाओं देलकैट्रीट्री फाॅर फ्रेन्डशिप ट्रीट्री एडाेप्टेशन। चलाकीसँ कखनाे संधि कखनाे खेलमे हार जीतक बहाने हथियाबैत रहल सभटा राज्य। उम्हर अंगरेजक सतर्क चुस्त दिमाग, इम्हर अभाग्यक प्रतीक ई सुस्त़ सूतल सुल्तान। लाेक चकाेर सन हिनका दिश ताकि रहल छल़, सल्तनतक पुरान कला़ रणनीति देखाबए लेल, मुदा एतए तँ नजारे किछु आर।
दीवाने खासमे गुप्तमचर सभसँ वार्ता कऽ आपसी विचार विमर्श कऽ पश्चात दरबार उठि चुकल सुल्तानक कार्य अकुशलता क़र्त्तव्यहीनता आ विलासितासँ उदास मंत्रिगण माथ झुकाैने अपन अपन घर दिसि‍ प्रस्थान तँ हाेमए लगला़ मुदा नाना विध दुश्चिन्तासँ आशंकासँ भरल मस्तिष्क पएरमे जेना भारी भारी पाथर बाँधि देने छल़। कहुना कऽ घिसिया घिसिया कऽ आगाँ बढ़ैत रहला अकस्मात बड़ हिम्मत वृद्ध वजीर हाजी मियाँ अपन भारी भरकम कनी बझल बझल सन स्वरमे बाजि उठल छलाह, दाैलते आजम, विपत्तिक कारी कारी घनगर बादरि आब शाही आकाससँ बेशी दूर नै छै। खुदा माफ करथि मुदा किछुए दिनमे ई लाल सुर्ख इमारत, सुसज्जित वैभव पूर्ण किला, अंधार श्मशान घाट बनैत कालक तीव्र प्रवाहमे नै विलुप्त भऽ जाए। अपने किछु फरमान जारी करितिऐ ऐ विपत्तिमे, आखिर कएल की जाए। सेना सभकेँ कत्तेकाे माससँ दरमाहा नै भेटलै, अेाकराे सबहक माेनमे आक्रोशक लुत्ती प्रज्ज्वलित भऽ रहल छै। तइयाे जहाँॅपनाहक आदेशपर आेकरा सभमे नव स्फूर्ति नव ऊर्जा उत्पन्न कएल जा सकैत अछि। नै जानि काेन गपपर सुल्तान एकदम हत्थासँ उखड़ि गेला, खाैंझाइत बाजि उठला खुदाक इबादत करू, सभ मि‍लि‍ जुल कऽ पाक कुरान शरीफ पढू, उपरबलाक रहमाेंकरमसँ सभ विपत्ति टलि जेतै। अहाँॅ सभ व्यर्थ भयाक्रांत भऽ कऽ काफिर जकाँ गप कऽ रहल छी।
हाजी मियाँक नजरि पहिनेसँ झूकल, आब आर झुकि गेल छल। ओइ वृद्ध बुद्धिमान पुरूखकेँ संग देबएबला कत्तेकाे अमीर उमरा।
कत्तेक षङयंत्र भऽ रहल छलै़ सभतरि। शाही सेनाक जांबाज सेनापत़ि कत्तेक बेर हाजी साहब दिसि‍ सक्षम नेतृत्वक उम्मेदसँ तकने रहै़ मुदा पुरान लाेक कृतज्ञताक चासनीमे डूमल सुल्तानसँ बगावतक गप साेचियो नै सकैत छल़। राजघरानामे काेनाे सक्षम नेतृत्व दूर दूर धरि नजरि नै आबि रहल छल।
गुप्त षडयंत्रक माध्यमसँ आेइ सुन्नरिकेँ जानसँ मारबाक कत्तेक प्रयास कएल गेल, आेइ निशाबद्ध सुतली रातिमे आेकर घरकेँ आगि लगा सुपुर्दे खाक कऽ देल गेल रहै़। मुदा किस्मत आेकर, आे तँ ओइ राति अपन भवनमे नै भऽ कऽ हवेलीक नर्म नाजुक अलंकृत पलंगपर शाेभायमान छल। ऐ अग्नि कांडसँ सुल्तानक शरीरमे अपन पूर्वजक वीर खून प्रवाहित हाेमए लगलै। तामसे मुँहसँ झाग फेन बहराए लगलै, चारू कात गुप्तचर सतर्क भेल, आखिर ई काेन आदम जातक करिस्तानी अछि।
कएक दिन धरि आेहाे राज काज ठप्पा रहलै। चारू कात मचल भयानक डर आशंका आ अस्थिरताक बीच फरियादी सभ छाती पिटैत कानैत कल्पैत आपस जाइत रहलै।
ई तँ आआेर विकट माहाैल। आखिर कूटनीतिक चालि चलि आेइ नर्तकीकेँ समझा बूझा कऽ सुल्तानसँ कहाआेल गेल जे आगि आर कियाे नै आेकर अपने असावधानीसँ जड़ैत मशालसँ लागि गेल छलै, हवा तेज रहै आ खिड़की खुजल।
इएह सभ साेचैत हाजी मियाँ आसमानमे रूहानी ताकत दिसि‍ आससँ तकने छलथि।
सुरूजक भीषण तापसँ बचवा लेल तँ ओइ संगमरमरक वृहदाकार भवनमे जमुनाक पानि झींक कऽ भीतरे भीतर शीतल बनेबाक साधन तँ वर्त्तमाने छलै़ मुदा तैयाे खस़ चाननक लेप आ विविध ठंढा सरबतक मध्य ओइ सहस्त्र जीव्हा बला धाहकेँ राेकबाक भरिसक प्रयास कएल जा रहल छल।
उम्हर प्रचंड भास्कर नहूँ नहूँ कऽ अस्तगामी हाेबाक फेराकमे छलथि।
इम्हर साँझमे सुल्तानक मनाेरंजनक लेल रंगमहलक फर्शकेँ, झाड़फानूसकेँ, राेशनदानकेँ, दरो-दीवारकेँ धाे पाेछि कऽ चमका चमका कऽ सुसज्जित कएल जा रहल छल। रंगशालाक देवारमे चुनैल बेशकीमती पाथर हीरा माेती़ पन्ना जवाहरात़ कदीलक राेशनीमे स्वर्गक सुषमा बखानि रहल छल। जमुना दिसि‍सँ अबैत शीतल मद्धिम बयार इत्र फुलैल केवड़ा, रातरानी़क गंधसँ मह-मह करैत सुखमय वातावरण।
मशालची तबलची ढाेलकिया तानपूरा़ सितार सराेद पखावज जलतरंग सारंगी, अपन अपन वाद्य यंत्र नेने विशेषज्ञ सभ अपन निर्धारित स्थान धऽ नेने रहथि। हारमाेनियमपर राग छेड़ल जा चुकल छल।अपन ख्वाेबगाहसँ निकसि रात्रिपरिधानमे सुल्तान बड़का भव्य फाैवारासँ कनि मध्य राखल गाव-तकियापर स्थान ग्रहण कऽ चुकल छलाह कि तखने मुनहरि साँझमे संध्या सुन्नरि जकाँ छम छम पाजेब खनकाबैत़ अवगुंठनसँ मुँह झँपने नर्तकीक प्रवेश़ भेलै। कनि झुकि कऽ माेहिनी अदासँ सुल्तानकेँ सलाम पेश करैत घाेघ उठा कऽ फेंकलक, भरिदिन आैंधाएल चिन्तातुर मुखमंडलपर जेठमे जेना सावनक हरियरि आबि गेलै़। आे मुस्कैल आ महफिल धन्य धन्य भऽ गेल। नामी गिरामी मुँह लगुआ अमीर उमरा, झराेखासँ झकैत़ गुलाम किन्नर दास दासीगण। माैधसँ सनल स्वर लहरी हवामे तूर जकाँ दूर दूर धरि छितरै लागल छल़, माेहब्बत ््ऽ््ऽऽ््््््।बनल ठनल दू टा सुन्नरि अंगड़ाउर लैत सुल्तान लग नमगर बड़ दीव नक्कासीबला सुराहीदार स्वर्ण पात्रसँ सुवर्णक गिलासमे भरि भरि कऽ शराब पराेसि रहल छल। गजल़ ठुमरी कजरी नृत्य व गानसँ भरल माहाैलमे जामपर जाम पीबैत सुल्तान आ अमीर। जखने शुरू कएल जिद ऽ्ऽऽ आ सुल्तान गिलास हाथमे नेने ठाढ़ भऽ झूमै लगला। रूपकुँवरिक स्वर रंगशालासँ उछैल उछैल जमुनाक विस्तृत पाटपर विलीन हाेमैत रहलै।
किछु शायर लाेकनि सेहाे अपन शेरसँ ओइ रंगमे आर रंग मिलाबैत रहला। कनि कालमे सुन्नरीक साेझाँ ताेहफाक ढेर लागि गेल रहै।
भीतर बैसल बाहरसँ झकैत अमला सबहक राेम राेम सिसकि रहल छल, महलक बाहर चारू कात विद्राेह स्वर सुनाइ दैत छलै, राजकर्मचारीकेँ पकड़ि-पकड़ि लाेक मारै। आकुल व्याकुल जनानी सभ महलसँ पड़ेबाक ब्याेंतमे लागल। कत्तेकाे नाह कश्ती किलाक सुरंगमे तैयार, केहनाे आपद स्थितिमे जमुना बाटे पड़ेबा लेल। अन्तःपुरसँ नित्यकप्रति कन्ना राेहटक आवाज, आे असहाय स्त्रीगण दास दासीक मुँहसँ बाहरक गप सुनि मृत्युंभयसँ कँपैत, जाेर जाेरसँ घाना पसारबा आ इबादत तजि आर की कऽ सकैत छलीह।
मनाेरंजन खेनाइ पिनाइक बाद गहराइत रातिमे अपन आराम गाहमे पसरल़ रूप सुंदरिक रंगमे मातल सुल्तान आइ आेकरा अपन घर नै जाए दऽ रहल छल। आब अओर नै, क्षणभरिक अलगाव हमरा पागल कऽ दैत अछ़ि। कहू तँ ई लाल किला, ई संपूर्ण सम्पत्ति, अहाँक नाओं लिख कऽ ओइपर शाही माेहर लगा दैत छी।
आलमपनाह हम अपने संग ऐ वैभव विलासमे तँ अपार आनंद आ हर्षक संग रहि सकैत छी, ई तँ हमर अहाे भाग्य हएत मुदा आे दुर्दिनक हमर सखी जे महलक बाहर खरभुजा बेचैत अछ़ि हम आ आे दू शरीर एक प्राण आे काेना जीतै़, बिलटि जेतै ओ।सुन्नरिकेँ अपन आगाेसमे नेने मत्त-उन्मत्त प्रेमी सुल्तान आँखि कनी खाेलने खाेलने बाजल छलाह हम अहाँक संगीकेँ अहाँक दासी मुर्करर कऽ रहल छी आब तँ खुश ऽ्ऽ्ऽ्।सुल्तान अपन छातीसँ आेकर मुँह उठा कऽ पुछने छल़, कारी कजरारी बड़का बड़का, पिपनी फड़फड़ाबैत आे इत्मी्नानसँ मुस्कैल छल, जेना आेकर बड़ पाकल गुरक इलाज भऽ गेल हुअए।
आरामगाहक काेनमे जड़ैत मशाल सल्तनतक ऐ दुर्भाग्यपर फफैक फफैक कऽ कानलाक बाद मिझा गेल छलै। दूर कत्तेकाे नढ़िया गीदड़ कुकूरक कननाइ प्रारंभ भऽ चुकल रहै।
चारू दिशा भीषण अंधकारमे विलीन ऊपर आकासमे आइ चान सेहाे नै। भयंकर अंधेरिया़ अपन आधिपत्य कायम कऽ चुकल छलै़, तखने दच्छिन दिसक आकाससँ एक गाेट लहकैत टुटल तारा महलक प्रांगणमे खसि पड़ल छलै।

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