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Wednesday, August 22, 2012

जन्‍मति‍थि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


जन्‍मति‍थि‍

तीस बरख नोकरी केला उत्तर रवि‍कान्‍त आइ.जी. पदसँ सेवा नि‍वृत्ति‍ भेला। जखनि कि‍ रवि‍शंकर आइ.जी.सँ आगू बढ़ि‍ डी.जी.पीक पदभार सम्‍हारलनि‍। साल भरि‍ ऐ पदपर रहता। ओते नोकरीक अवधि‍ वचल छन्‍हि‍। तीन दि‍न रवि‍शंकरकेँ पदभार सम्‍हारला उत्तर रवि‍कान्‍तकेँ मन पड़लनि‍ जे मीत-रवि‍शंकरकेँ बधाइ कहाँ देलि‍यनि‍। कारणो भेलनि‍ जे पनरह दि‍न पहि‍नेसँ जे कार्य-भार दि‍अए लगलखि‍न ओ नोकरीक अंति‍म दि‍न धरि‍ नै फरि‍छौट भऽ सकलनि‍। मनमे एलनि‍ जे मोबाइलेसँ बधाइ दऽ दि‍यनि। मुदा एक्के काजक तँ भि‍न्न-भि‍न्न जुइत होइए। जुइति‍क अनुकूले ने काज अनुकूल होइए‍, तँए मोबाइलसँ बधाइ देब उचि‍त नै बूझि‍ पड़लनि‍। ओना तत्काल जानकारीक रूपमे दऽ समए लेल जा सकै छल। मुदा से नै भेलनि‍। चाहक कप टेबुलपर रखि‍, दहि‍ना बाँहि‍ उठबैत पत्नी-रश्मि‍केँ कहलखि‍न-
की ऐ बाँहि‍क शक्ति‍ क्षीण भऽ गेल जे काज नै कऽ सकैए। मुदा...?”
रश्‍मि‍ अपना धुनि‍मे छेली। ओना एक्के टुबलपर बैस चाहो पीऐ छेली आ मेद-मेदीन चि‍ड़ै जकाँ मुँहमि‍लानी गपो-सप करै छेली। अपने धुनि‍मे मनो बौआइ छेलनि‍। एकठाम बैस‍‍ चाह पीबि‍तो मन दुनूक दू-दि‍शि‍या छेलनि‍। रश्‍मि‍क मनमे रवि‍शंकरक पत्नी कि‍रण नचै छेलखि‍न। जि‍नगी भरि‍ सखी-बहीनपा जकाँ रहलौं, मुदा आइ? आइ ओ रानीसँ महरानी बनि‍ गेली आ...? की हम ओइ बटोहि‍नी सदृश तँ ने भऽ गेलौं जेकरा सभ कि‍छु छीनि‍ घरसँ नि‍कालि‍ देल जाइ छै।
जहि‍ना कोनो नीनभेर बच्‍चा माएक उठौलापर चहाइत उठैत बेसुधमे बजैत तहि‍ना पति‍क प्रश्नक उत्तर रश्‍मि‍ देलखि‍न-
ऐ बाँहि‍क शक्‍ति‍ ओतबे काल रहै छै जेते काल शान चढ़ाएल हथि‍यार ओकरा हाथमे रहै छै। नै तँ प्राणशक्‍ति‍ नि‍कलला उत्तर शरीर जहि‍ना माटि‍ बनि‍ जाइ छै तहि‍ना बनि‍ कऽ रहि‍ जाइए। हाथसँ हथि‍हार हटि‍ते जि‍नगी हहरए लगै छै।
पुन: चाहक कप उठा चुस्‍की लैत रवि‍कान्‍त बजला-
बच्‍चेसँ दुनू गोरे संगे रहलौं। खेनाइ-पीनाइ, खेलनाइ-धुपनाइ, घुमनाइ-फीरनाइ सभ संगे रहल। कहाँ कहि‍यो मनमे उठल जे दुनू गोरेमे कोनो दूरी अछि‍। अपनाकेँ के कहए जे घरो-परि‍वार आ सरो-समाज कहाँ कहि‍यो बुझलनि‍। मुदा आइ...?”
मुदा आइ की?”
इहए जे...। आइ बहुत दूरी बूझि‍ पड़ि‍ रहल अछि‍। बूझि‍ पड़ैए जे जेना अकास-पतालक अंतर भऽ गेल अछि‍। कोन मुँह लऽ कऽ आगू जाएब, से ि‍नर्णये ने मन कऽ पाबि‍ रहल अछि‍।
तखनि?”
सएह ने मन असथि‍र नै भऽ रहल अछि‍। जि‍नगी भरि‍क संगीकेँ ऐहेन शुभ अवसरपर केना नै बधाइ दियनि‍। मुदा एते दि‍न बरबरि‍क वि‍चार छल आब ओ थोड़े रहत। कहाँ ओ सि‍ंह द्वारपर वि‍राजमान केनि‍हार आ कहाँ हम देशक अदना एकटा नागरि‍क। कि‍ अपनाकेँ ओइ कुर्सीक बुझी जइसँ हेट भेलौं। सीकपर राखल वा ति‍जोरीमे राखल वस्‍तु ओतबे काल ने जेते काल ओ ओतए रहैत। रवि‍शंकर आइ ओतए छथि‍ जतए हमरा सन-सन जि‍नगी अंति‍म छोड़पर पहुँचि‍नि‍हार हुनकर हुकुमदारी करैए। कोन नजरि‍ए ओ देखै छल आ आइ कोन नजरि‍ए देखता।
रवि‍कान्‍तक अन्‍तरमनकेँ रश्‍मि‍ आँकि‍ रहल छेली। मुदा जेते अाँकए चाहै छेली तइसँ बेसी घबाएल माछ जकाँ अपन सड़नि‍ बढ़ल जाइत रहनि‍। कि‍ आँखि‍क सोझक देखल झूठ भऽ जाएत। केना नै भऽ सकैए। दू गोटे बीचक बात तँ ओतबे काल धरि‍ सत्‍य रहैए जेते काल धरि‍ दुनू मानैए। काज थोड़े छी जे गरजि‍ कऽ कहत जे तोरा पलटने हम थोड़े पलटि‍ जाएब। मन असथि‍र होइते रश्‍मि‍क मनमे वि‍चार जगलनि‍। दुखक दबाइ नोर छी। पैघ-सँ-पैघ दुख लोक नोरक धारमे बहा वैतरणी पार करैए। बजली-
जहि‍ना अहाँक मनमे उठि‍ रहल अछि‍ तहि‍ना हमरो मनमे रंग-बि‍रंगक बात उठि‍ रहल अछि‍। कहाँ रवि‍शंकरक पत्नी कि‍रण राजरानी आ कहाँ हम...? कहाँ राधा संग कृष्‍ण आ कहाँ...? काल्हि‍ धरि‍ दुनू गोरे एकठाम बैस‍ एक थारीमे खेबो करै छेलौं आ एक्के गि‍लासमे पानि‍यो पीऐ छेलौं, मुदा आइ संभव अछि‍। आखि‍र कि‍अए?”
हवाक तेज झोंकमे जहि‍ना डारि‍-डारि‍क पात डोलि‍-डोलि‍ एक-दोसरमे सटबो करैत आ हटबो करैत तहि‍ना रश्‍मि‍क डोलैत वि‍चार सुनि‍ रवि‍कान्‍त स्‍वयं डोलए लगला। एक तँ पहि‍नेसँ मन डोलि‍ रहल छेलनि‍ तैपर रश्‍मि‍क वि‍चार आरो डोला देलकनि‍। अनभुआर जगह पहुँचलापर जहि‍ना सभ हरा जाइत तहि‍ना हराएल मोने रवि‍कान्‍त बजला-
कानसँ सुनि‍तो, आँखि‍सँ देखि‍तो कि‍छु बूझि‍ नै पाबि‍ रहल छी जे कि‍ नीक कि‍ अधला। की करी की नै करी। मुदा साठि‍ बरखक संगीकेँ एते दूर केना बूझब। मुदा लगो केना बूझब। साठि‍ बरखक पथि‍क संगी जौं दू दि‍शामे चली तखनि केते दूरी हएत। मुदा साठि‍ बरखक जि‍नगीओ तँ छोट नै भेल?”
रवि‍कान्‍तक वि‍चार सुनि‍ रश्‍मि‍ टपकि‍ पड़ली-
जि‍नगी तँ एक दि‍न, एक क्षण, एक घटनामे बदलि‍ जाइए आ साठि‍-बरख कि‍ धो-धो चाटब।
तखनि?”
सएह नै बूझि‍ रहल छी। एतेटा जि‍नगी एक संग बि‍तेलौं मुदा आइ जइ जि‍नगीमे पहुँच‍‍ गेल छी तइ जि‍नगीक संबन्‍धमे कि‍छु वि‍चार कहि‍यो नै केलौं।
पत्नीक बात सुनि‍ रवि‍कान्‍तकेँ जहि‍ना आन गामक चौबट्टी, तीनबट्टीपर पहुँचि‍ते भक्क लगि‍ जाइत, जइसँ पूब-पच्‍छि‍मक दि‍शे बदलि‍ जाइत। मुदा एहनो तँ होइते अछि‍ जे लगलो भक्क ओहने चौबट्टी, तीनबट्टीपर खुजि‍तो अछि‍। अपन भक्क तँ तेना भऽ कऽ नै खुजलनि‍, खाली एकटा प्रश्नेटा उठलनि‍ जे बच्‍चासँ सि‍यान भेलौं, सि‍यानसँ चेतन भेलौं, चेतनसँ बुढ़ाड़ीक प्रमाणपत्र भेट‍ गेल। हरबाह थोड़े छी जे अधमरुओ अवस्‍थामे बुढ़ाड़ीक प्रमाण नै भेटै छै। केना भेटि‍ते प्रमाणपत्रक संग पेन्‍शनो ने अबै छै। मुदा मन कि‍अए धक-धका रहल अछि‍। जि‍नगीक चारि‍म अवस्‍था वानप्रस्‍तक होइ छै, संयासीक होइ छै जे दि‍न-राति‍ दौगैत दुनि‍याँक हाल-चाल जानए चाहैए। से कहाँ मन मानि‍ कऽ बूझि‍ रहल अछि‍। पति‍केँ गंभीर अवस्‍थामे देखि‍ रश्‍मि‍ टि‍पलनि‍-
अहाँक मनमे जे नाचि‍ रहल अछि‍ उहए हमरो मनमे नाचि‍ रहल अछि‍। मुदा ईहो बात तँ झूठ नहि‍येँ छी जे जि‍नगीक संग बाटो बनै छै। आ बाटे संग बटोहीओ बाट बनबै छै।
रवि‍कान्‍त- की बाट?”
पति‍क प्रश्न सुनि‍ रश्‍मि‍ वि‍ह्वल भऽ गेली। हेराइत संगीकेँ बाट देखाएब बहुत पैघ काज छी। मुदा लगले मनमे उठि‍ गेलनि‍ जे तखनि अपने कि‍अए एते बौआइ छी। कम-सँ-कम चाह पीऐ काल बैसारीओमे ऐ बातक वि‍चार करैत अबि‍तौं तँ अौझुका जकाँ तँ नै बौऐतौं। जोतल आ बि‍नु जोतल खेतमे चललासँ जहि‍ना पहि‍ने धड़ि‍आइ छै, धड़ि‍एलाक पछाति‍ पति‍आइ छै, पति‍एलाक पछाति‍ पेरि‍आइत पेरा बनै छै। वहए एकपेरि‍या बहुपेरि‍या बनैत चलै छै। रश्‍मि‍ बजली-
अहाँ कौलेज छोड़ला उत्तर जि‍म्मा उठा सरकारी बाट पकड़ि‍ साठि‍ बरख पूरा लेलौं। ने कहि‍यो जमीन दि‍स तकैक जरूरति‍ महसूस भेल आ ने तकलौं। मुदा आइ तँ ओतइ उतरि‍ आबि‍ गेल छी जेकर रस्‍ता अखनि धरि‍क रास्‍तासँ भि‍न्न अछि‍।
पत्नी‍क वि‍चार सुनि‍ रवि‍कान्‍त मुड़ी डोलबैत आँखि‍ उठा कखनो पत्नीक आँखि‍पर रखैत तँ कखनो उतारि‍ धरतीपर दइत। आगि‍पर चढ़ल कोनो बरतनक पानि‍‍ जहि‍ना नि‍च्‍चाँसँ ताउ पाबि‍ ऊपर उठि‍ उधि‍याइक परि‍यास करैत तहि‍ना रवि‍कान्‍तक वैचारि‍क मन सेहो उधि‍याइक परि‍यास करैत रहनि‍। मुदा जहि‍ना पि‍जराक बाघ पि‍जरेमे गुम्‍हरि‍ कऽ रहि‍ जाइत, तहि‍ना आइ धरि‍क जे मन रूपी बाघ एहेन शरीर रूपी पि‍जरामे फँसि‍ गेल छेलनि जे जेते आगू मुहेँ डेग उठबैक कोशि‍श करथि‍ ओते समुद्री वादल जकाँ आस्‍ते-आस्‍ते ढील होइत रहनि‍। आगूक झलफलाइत बाट देखि‍ रवि‍कान्‍त बजला-
वि‍चारणीय बात जरूर अछि‍, मुदा बि‍नु बूझल जि‍नगीक संग तँ अहुँक जि‍नगी चलल। कहाँ केतौ बेवधान भेल। आइ जे कहलौं ओ तँ ओहू दि‍न कहि‍ सकै छेलौं, जइ दि‍नसँ बहुत आगू धरि‍ बढ़ि‍ गेलौं। से तँ रोकि‍ कऽ मोड़ि‍ सकै छेलौं। मुदा आइ तँ जानल-बि‍नु (ज्ञानी-मुरूख) जानल दुनू संगे बौआए चाहै छी!”
पति‍क बात सुनि‍ रश्‍मि‍ मोने-मन वि‍चार करए लगली जे दुनि‍याँमे एहनो लोकक कमी नै अछि‍ जेकरा जरूरति‍ भरि‍ लूड़ि‍-बुधि‍ नै छै, मुदा ईहो तँ झूठ नै जे जेकरा छेबो करै ओइमे बेसी ओहने अछि‍ जे या तँ उनटा वाण चलबैए वा नहि‍येँ चलबैए। तखनि सुनटा वाण केना आगू बढ़त जौं बढ़बे करत तँ केते आगू बढ़त जेकरा आगू दुश्मन जकाँ चौबगली उनटा वाण घेरने अछि‍। मुदा उपाए की? शुद्ध तेल-मोबि‍ल देल मजगूत इंजनो चढ़ाइपर दम तोड़ए लगै छै मुदा टुटलो चक्का बि‍नु तेलो-मोबि‍लक भट्ठा गरे दौगैत बि‍नु ब्रेकक गाड़ी जकाँ केतेकेँ जानो जइए आ केतेकेँ मुँहोँ-कानो फोड़ैए। डेग आगू उठाएब जरूर कठि‍न अछि‍। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे जइ बाट पकड़ि‍ आइ धरि‍ चललौं जौं ओही बाटकेँ छोड़ि‍ दोसर बाट पकड़ि‍ नव बटोही जकाँ वि‍दा होइ, ई तँ संभव अछि‍। जहि‍ना चि‍न्‍हार जगहक चोर पड़ा दूर देश जा अपन क्रि‍या-कलाप बदलि‍ नव-मनुखक जि‍नगी बना जीबए चाहैत ओ तँ संभव छै...।
वाण लागल पंछी जकाँ पति‍केँ देखि‍ अनुभवक सान्‍त्‍वना भरल शब्‍द नि‍कालि‍ रश्‍मि‍ बजली-
जहि‍ना अहाँक जि‍नगी तहि‍ना ने हमरो बनि‍ गेल अछि‍। जएह बुढ़ापा अहाँक सएह ने हमरो अछि‍। मुदा एकठाम तँ दुनू गोटे एक छी। एक्के दबाइक जरूरति‍ दुनू गोरेकेँ ने अछि‍। तँए वि‍चार दइ छी जे आब ने ओ रूतबा रहल आ ने ओकाइत, तखनि जानि‍ कऽ जहरो-माहूर खा लेब सेहो नीक नै।
रश्‍मि‍केँ आगूक बात पेटेमे घुरि‍आइत रहनि तइ बिच्‍चेमे रवि‍कान्‍त टि‍प देलखि‍न-
बेसी दुख तँ नै बूझि‍ पड़ैए मुदा साठि‍ बरखक प्रोढ़ा अवस्‍था धरि‍ हमरा सबहक नजरि‍ नै गेल। सरकारीक पैघ जि‍म्मामे रहलौं। समायानुसार काज करि‍तो मुदा अपन जि‍नगी तँ सुरक्षि‍त रखि‍तौ। साठि‍ बरखक पछाति‍यो तँ चालीस बरख जीबैक अछि‍। कि‍ नै जनै छेलौं जे दरमाहा टूटि‍ जाएत जि‍नगीक आवश्‍यकता बढ़ैत जाएत ओहन स्‍थि‍ति‍मे कि‍ कएल जा सकै छै।
पति‍क वि‍चारकेँ गहराइत समुद्र दि‍स जाइत देखि‍ मुँहक दसो वाण साधि‍ रश्‍मि‍ छोड़लनि‍-
अनेरे मनमे जूर-शीतलक पोखरि‍क पानि‍ जकाँ घोर-मट्ठा करै छी। घोरे मट्ठा ने घीओ नि‍कालैए आ अनहै सेहो नि‍कालैए। संयासी सभ केना फटलाहा कमलक मोटरी बान्‍हि‍ कन्‍हामे लटका लइए आ सौंसे दुनि‍याँ घुमैए। अहाँकेँ तँ सहजे‍ चरि‍-चकि‍या गाड़ी चलबैक लूड़ि‍यो अछि‍।
पत्नीक वि‍चार सुनि‍ रवि‍कान्‍त ओझरा गेला। एक दि‍स संयासीक बात बाजि‍ कहि‍ रहल छथि‍ जे जहि‍ना कानूनी अधि‍कारसँ जीवन-रक्षा होइत तहि‍ना ने संयास अवस्‍था -वानप्रस्‍त- पवि‍त्र मनुखक नैति‍क अधि‍कार सेहो छी। दोसर दि‍स चरि‍ चकि‍या गाड़ीक चर्चा सेहो करै छथि‍ जे भरि‍सक अपनो लगा कऽ कहै छथि‍। संगी देखि‍ रवि‍कान्‍त दहलाए लगला। जहि‍ना कोसी-कमलाक बाढ़ि‍मे भँसैत घरपर बैस‍‍ घरवारी बंशीओ खेलाइए आ कमला-कोसीक गीतो गबैए, तहि‍ना वि‍ह्वल भऽ रवि‍कान्‍त बजला-
हँसी-चौल छोड़ू। आब कोनो बाल-बोध नै छी। हम सभ अपन जीवन अपन सामाजि‍क जीवन नै बनाएब तँ देखि‍ते छि‍ऐ जे मनुख एक दि‍स चान छूबैए तँ दोसर दि‍स सीकीक वाणक जगह बम-वारूद लऽ मनुखक बीच केहेन खेल दुनि‍याँमे खेल रहल अछि‍। खैर, ओते सोचैक समए आब नै रहल। जेकर ति‍ल खेलि‍ऐ ओकरा बहि‍ देलि‍ऐ। अपन चलीस बरखक जि‍नगी अछि‍, ने हमर कि‍यो मालि‍क आ ने हम केकरो मालि‍क छि‍ऐक। भगवान रामकेँ जहि‍ना अपन वानप्रस्‍त जीवनमे अनेको ऋृषि‍-मुनि‍, योगी-संयासी सभसँ भेँट भेलनि‍ आ अपनो जा-जा भेँटो केलखि‍न। तहि‍ना ने अपनो दोसराक ऐठाम जाइ आ ओहो अपना ऐठाम आबए। मुदा वि‍चारणीय प्रश्न ई अछि‍ जे रामकेँ के सभ भेँट करए एलनि‍ आ कि‍नका-कि‍नका ओतए भेँट करए स्‍वयं गेला। ई प्रश्न मनमे अबि‍ते गाछसँ खसल पघि‍लल कटहर जकाँ मन छँहोछि‍त्त भऽ गेलनि‍। खोंइचा-कमरी संग एक दि‍स तँ दोसर दि‍स कोह उड़ि‍-उड़ि‍ कौआ आगू पहुँच‍‍ जाइत। आँठी छड़पि‍-छड़पि‍ बोन-झारमे बच्‍चा दइ दुआरे जान बँचबैत, तँ नेरहा उत्तर-दछि‍ने सि‍रहाना दऽ पड़ल-पड़ल सोचैत जे जेते पकबह तेते सक्कत हेबह तँए समए रहैत भक्ष बना लैह नै तँ दुइर भऽ जाएब। रवि‍कान्‍त सोचैत-सौचैत जेना अलि‍साए लगला। हाफी भेलनि‍।
रवि‍कान्‍तकेँ हाफी होइत देखि‍ रश्‍मि‍क मनमे उठलनि‍ जे हाफी तँ नि‍नि‍या देवीक पहि‍ल सि‍ंह दुआरि‍क घंटी छी। भने नीक हेतनि‍ जे सुति‍ रहता नै तँ एे उमेरमे जौं नि‍न उड़लनि‍ तँ अनेरे सालो-महि‍नेमे बदलि‍ जेतनि‍। फटकि‍‍‍ कऽ बजली-
जेते माथ धुनैक हुअए वा देह धुनैक हुअए अपन धुनू। हमर जे काज अछि‍ तइमे हम वि‍थूत नै हुअए देव। हमरा लिए तँ अहीं ने सभ कि‍छु छी।
तीन सए घरक बस्‍ती बसन्‍तपुर। छोट-नम्‍हर चालीस टा कि‍सान परि‍वार शेष सभ खेत-बोनि‍हारसँ लऽ कऽ आनो-आनो रोजगार कऽ जीवन-बसर करैए। अनेको जाति‍ गाममे। ओना मझोलका कि‍सान बेसी। ओकरो दशा-दि‍शा भि‍न्न-भि‍न्न। तेकर अनेको कारणमे दूटा प्रमुख। जइसँ वि‍धि‍-बेबहारमे सेहो अंतर। कि‍छु जाति‍क लोक अपने हाथे हरो-जाेइत लैत आ खेतक काजो करैत जइसँ आमदनीक बचतो होइत आ कि‍छु एहनो जे अपने हाथसँ काज-उदम नै करैत तँए बचत कम। कम बचत भेने परि‍वार दि‍नानुदि‍न सि‍कुड़ैत जाइत। ओना गामक बुनाबटियो भि‍न्न अछि‍। एक तँ ओहुना दू गामक बुनाबटि एक रंग नै अछि‍। तेकर अनेको कारणमे प्रमुख अछि‍, खेतक बुनाबटि‍, जनसंख्‍या जाति‍ इत्‍यादि‍। बसन्‍तपुरक बुनाबटि‍ आरो भि‍न्न। ऊँचगर जमीन बेसी नि‍चरस कम अछि‍ जइसँ गाछी-बि‍रछी सेहो बेसी अछि‍ आ घर-घराड़ी, रस्‍ता-पेरा सेहो ऐल-फइल अछि‍।
बसन्‍तपुरमे दूटा नम्‍हर कि‍सान बाँकी छोट। नम्‍हर कि‍सान परि‍वार रहने गामोक आ अगल-बगलक आनो गामक लोक जेठरैयती परि‍वारो बुझैत आ जेठरैयत कहबो करैए। राजक जमीन्‍दार तँ नै मुदा गमैया जमीन्‍दार सेहो कि‍छु गोटे बुझैत। तेकर कारण जे दुनूक महाजनीओ चलैत आ गामक झड़-झंझटक पनचैतीओ करैत। कनी-मनी अनचि‍तो काजकेँ गामक लोक अनठि‍या दैत। तइमे राधाकान्‍त आ कुसुमलाल दुनू गोटेक जमीनोक बुनाबटि‍ आरो भि‍न्न अछि‍। चौबगली टोल सभ बसल अछि‍ आ बीचक जे तीस-पेंतीस बीघाक प्‍लॉट छै ओ मध्‍यम गहींर अछि‍। जइसँ अधि‍क बर्खा भेने नाला होइत पानि‍क नि‍कासी कऽ लैत, कम भेने चाैबगलीक ओहासी एने रौदि‍याहो समैमे उपजि‍ए जाइत। ओना दुनू गोरे बोरि‍ंग सेहो गड़ौने छथि‍। तँए रौदि‍याहो समए भेने खेतक लाभ उठाइए लइ छथि‍। पच्‍चीस-तीस बीघाक बीचक दुनू कि‍सान। मुदा दुआरपर बखारीओ आ पोखरि‍क महारपर दू-सलि‍या तीन-सलि‍या नारोक टाल रहि‍ते छन्‍हि‍।
राघाकान्‍तो आ कुसुमलालोक परि‍वार बीच तीन पुश्‍तसँ उपरेक दोस्‍ती रहल छन्‍हि‍। ओना दुनू दू जाति‍क मुदा अपेक्षा-भाव एहेन जे चालि‍-ढालि‍सँ अनठि‍या नै बूझि‍ पबैत जे दुनू दू जाति‍क छथि‍। कि‍अए तँ कोनो काज-उदेममे एक-दोसराक बाले-बच्‍चे एक-दोसरठाम जाइत। ओना आने गामक कुटुम जकाँ दुनू परि‍वारक बीच कपड़ा-लत्ताक वर-वि‍दाइक चलनि‍ सेहो अछि‍। मुदा तैयो सराध-बि‍आह आदि‍ पारि‍वारि‍क काजमे दुनू दू जाति‍क परि‍चय देबे करैए।
नम्‍हर भुमकम होइसँ पहि‍ने जहि‍ना नहियोँ होइबला बच्‍चा सबहक जनम भऽ जाइ छै‍ जइसँ दोस्‍तीयारेक संभावना अनेरो बढ़ि‍ जाइए‍, मुदा से नै राधाकान्‍त आ कुसुमलाल दुनू गोटेकेँ एक्के दि‍न बेटा भेलनि‍। ओना कि‍यो-केकरो ऐठाम जि‍गेसा करए नै गेलखि‍न तेकर कारण भेलै जे अपने-अपन घर ओझरा गेलनि‍। ओना पमरि‍या-हि‍जरनी महिना दि‍न धरि‍ दौग-बड़हा करैत रहल। दाइओ-माइ छठि‍यारमे रवि‍दि‍न एकक नाओं रवि‍कान्‍त आ दोसराक नाओं रवि‍शंकर रखि‍ देलकनि‍। अनेरे फूलक बोनमे टहलि‍तथि‍ आकि‍ साँप-कीड़ाक बोनमे। बोन तँ बोने छी, दुनूक छी। तँए हरहर-खटखटसँ नीक दि‍नेकेँ पकड़ि‍ लेलनि‍। ओना एकटा आरो केलनि‍ जे दुनूमे सँ कि‍यो जाति‍क पदवी नै लगौलनि‍।
सुभ्‍यस्‍त परि‍वार रहने तीन बरखक पछाति‍ए स्‍कूल जाइ जोकर भऽ गेल मुदा चारि‍म बरखमे दुनूक नाओं गामेक स्‍कूलमे लि‍खौल गेल। ओना जेहने सोझमति‍या राधाकान्‍त तेहने कुसुमलालो। मुदा नाओं लि‍खबै दि‍न रवि‍कान्‍तक पि‍ता गेलखि‍न आ राधाकान्‍त अपने नै जा भायकेँ पठौलखि‍न आ रवि‍शंकरक पि‍त्ती एक बरख घटबी कऽ कऽ नाओं लि‍खौलखि‍न। ओना राधाकान्‍तकेँ स्‍कूलपर जेबाक मनो ने होइ छन्‍हि‍। कि‍एक तँ स्‍कूल सबहक जे कि‍रदानी भऽ गेल ओ देखै जोग नै अछि‍। शि‍क्षक सभ वि‍द्यार्थीकेँ नहि‍येँ पढ़ैले प्रेरि‍त आ नहि‍येँ पढ़ैक जि‍ज्ञासा जगा पबै छथि‍। छड़ी हाथे पढ़बए चाहै छथि‍।
एक तँ एक रंगाह परि‍वार तहूमे दोस्‍ती। दुनू गोरे तेहेन चन्‍सगर जे गामेक स्‍कूलसँ पटका-पटकी करैत नि‍कलल। पटका-पटकी ई जे एक साल रवि‍कान्‍त फस्‍ट करैत तँ दोसर साल रवि‍शंकर ओना हाइ स्‍कूलमे थोड़े गजपट भेल, स्‍कूलक शि‍क्षक आँकि‍ लेलनि‍ जे केतबो उपरा-उपरी छै तैयो सोचन शक्‍ति‍मे दुनूमे अन्‍तर कि‍छु जरूर छै। कौलेज तँ बि‍ना माए-बापक होइए, केकरा के देखत। मुदा आॅनर्सक संग दुनू गोटे प्रथम श्रेणीमे नि‍कलल।
आइ.पी.एस. कऽ दुनू गोटेक ट्रेनि‍ंग आ ज्‍वानि‍ंग सेहो भेल। दोस्‍तीमे बढ़ोत्तरी होइते गेल।

Friday, August 10, 2012

अमित मिश्र -प्रेम नै जहर छै


अमित मिश्र , गाम-करियन, जिला –समस्तीपुर|


प्रेम नै जहर छै
एकटा गाम। मननपुर। भोरक समय। गामक बीच दुर्गा मंदिरसँ उठैत नारी स्वर, गीतक एहन प्रवाह, लगै छल जे स्वयं सरस्वती कमलक आसनपर बैस अपन हाथक वीणा संग मधुर भजन गाबि रहल छथिन ।यएह भजन "जय जय भैरवि....." सँ ऐ गामक मनुष्य अपन आँखि खोलै छथि। आब फरिच्छ भs गेल छै। किसान अपन बड़दक संग खेत दिश चललाह। बड़दक घेटमे बान्हल घंटी, ओही मधु भरल स्वर संग तालमे ताल मिलएबाक भरिसक कोशिश कऽ रहल छै। भोर सात बजे ऐ गामसँ ओइ नारीकेँ पहिल भेँट होइ छै। किरण, जी हँ किरण नाम छै ओकर। सोलह -सत्रह वर्षक घेट लगेने, मानू कोनो आधा खिलल गुलाबक कली। यौवनक चिन्ह आब उजागर होबऽ लागल छै। सुन्दरताक चलैत-फिरैत दोकान। ककरोसँ कोनो उपमा नै, अनुपम। एकदम मासूम मुँह, समाजक रीति-रिवाजसँ अंजान। गाममे सबहक चहेती। कोनो काज एहन नै जे ओ नै कऽ सकैए। सभ काजमे पारंगत, किरण।
"किरण, गै किरण, कतऽ चल गेलही, स्कूल कऽ देर भऽ रहल छौ", सुलोचना टिफिन बन्न करैत किरणकेँ सोर केलखिन।
"आबै छियौ, बस दू मिनट", कहैत किरण घरसँ बहराएल। कनेक काल ठमकि ठोरपर मुस्की नचबैत बाजल- "माँ आइ कने देरसँ एबौ, आइ ने हमर सहेली पिंकीक जनमदिन छै।"
आ ई कहैत साइकिल लऽ स्कूल दिश चलि देलक।
स्कूलमे एकटा लड़का छलैए, राकेश, पढ़ै-लिखैमे गोबरक चोत मुदा पाइबाला बापक एकलौता बेटा, से पाइक गरमी जरूर छलै। सभ साल मास्टरकेँ दू टा हजरिया दऽ दै आ वर्गमे प्रथम कऽ जाए। एक नम्मरक उचक्का। ओ जखन-तखन किरणकेँ देखैत रहैए। आब किरण गरीब घरक सुधरल बेटी, ओ की जानऽ गेलै जे कनखीक अर्थ की होइ छै। जहिना आन सभ छात्र-छात्रा राकेशक किनल चॉकलेट, मलाइबर्फ, बिस्कुट आदि अनेको चीज सभ खाइ छल ओहिना किरणो बिना छल-प्रपंचक राकेशक संग रहै छल। इम्हर किछु दिनसँ राकेश महगासँ महगा आ सुन्नरसँ सुन्नर चिज-बित सभ आनि कऽ किरणकेँ चुप्पे-चाप दै छलै। जइ अवस्थामे एखन किरण छल ओइमे विपरीत लिंगक प्रति आकर्षण भेनाइ स्वभाविक छै, आ जौँ पैसाक गमक लागि जाए तँ फेर बाते कोन छै। ईएह कारण छै जे राकेशक संग ओकरा आब नीक लागऽ लगलै। राकेशक जादू एहन चलले जइमे फँसि पढ़ाइ-लिखाइ सभ पाछू छुटि गेलै आ मस्ती हावी भऽ गेलै। ऐ आकर्षणकेँ ओ नाम देलक प्रेम। प्रेम, जइ शब्दकेँ एखन धरि कोनो उपयुक्त परिभाषा नै भेटल। प्रेम, जकरा विषयमे जतेक लिखब ततेक कम। प्रेम, शायरक तुकबंदी, दिलक मिलन। प्रेम, जे मौतसँ लड़बाक साहस दै छै। लैला-मजनूबला प्रेम भेल छलै आकि किछु आर से जानी नै।
"आउ, आउ, आइ बड़ देर कऽ देलिऐ," किरणकेँ आबैत देख राकेश बाजल।
"हँ, की करब साइकिल पंगचर भऽ गेल छल।" किरण जबाब देलक।
राकेश मक्खन लगाबैत बाजल," आहा, हम्मर जानकेँ आइ बुलैत आबऽ पड़लै . . . काल्हि चलब नवका स्कूटी किन देब .. तखन नै ने कोनो दिक्कत।"
किरण मुस्कुराइत बाजल,"दुर जाउ, स्कूटीपर चढ़बै तँ गामक लोग की कहतै। कहतै जे छौड़ी बहैस गेलै।"
"लोक किछु कहैए कहऽ दियौ, अहाँ बताबू वेलेंटाइन डे आबि गेल छै, गिफ्ट की लेबै।" राकेश एक्के साँसमे बाजल।
"हम किछु नै लेब, जखन प्रेम केलौं आ बियाह करबे करब तखन अहाँक सब किछु अपने आप हम्मर भऽ जेतै।" किरण विश्वासक साथ बाजल।
कनेक काल मौन ब्रतक पालन केलाक बाद राकेश किरणक हाथ पकड़ैत बाजल,"किरण, हम चाहै छी ऐबेर वेलेंटाइन डे पर दरभंगा घुमै लेल चलब। जौं अहाँ कहब तँ एखने होटल बुक करबा दै छी।" फेर कने आर लग आबि बाजनाइ शुरू केलक- "ओतऽ खूब मस्ती करब, फिल्म देखब आ राज मैदानमे पिकनिक मनाएब, आ बहुतो रास गप्प करब।"
किरण अपन हाथ छोड़बैत बाजल,"नै नै, हम असगर अहाँ संग दरभंगा नै जाएब। माँ हम्मर टांग तोड़ि देत, अहाँ जाएब तँ जाउ, हम एतै ठीक छी।"
" हे . . .हे . . . हे . . . हे . . . एना जुनि बाजू।" राकेश किरणकेँ पँजियाबैत बाजल,"हम अहाँक होइबला घरबला छी आ पति संग घुमैमे कोन हर्ज छै, मात्र एक्के दिनक तँ बात छै, अहाँ कोनो बहाना बना लेब।"
जेना-तेना कऽ राकेश अप्पन बात मना लेलक। तय दिन किरण आ राकेश शिवाजीनगरसँ बस पकड़ि दरभंगा दिश चल देलक। भरि रस्ता प्यार-मोहब्बतक बात बतियाइत रहल। दरभंगा आबि राज किला देखलक, श्यामा मंदिर आ मनोकामना मंदिरमे पूजा केलक, टावर चौकसँ शॉपिंग केलाक बाद साँझ होटलमे आएल।
आब एक कमरा, एक बेड, दू जन। बड़ मुश्किल घड़ी छलै।
राकेश कहलक, "आउ कने सुस्ता लै छी, काल्हि भोरे ऐठामसँ विदा हएब।"
किरण प्यारक कारी पट्टीसँ अपन आँखि बान्हि लेने छलि। बिना किछु बाजने ओ सभ करैत गेलि जे राकेश चाहै छल। जौं कखनो बिरोधो करै तँ प्रेमक दुहाइ दऽ राकेश मना लै छलै। आ अन्ततः ओ भेलै जे नै हेबाक चाही। प्रेमक मायाजालमे फसल प्रेमक मंत्रसँ वशीभूत कएल किरण किछु नै बाजलि, शाइद अप्पन प्रेमपर हदसँ बेसी विश्वास छलै। भोरे नीन खुजलै तँ अपनाकेँ असगर देखलक। कनेक काल प्रतीक्षा केलक मुदा राकेशक कोनो अता-पता नै छलै। काउन्टरपर सँ पता चललै जे राकेश तँ तीन बजे भोरे चल गेल छल।
आब बुझू किरणपर बिपैतक पहाड़ टुटि पड़लै। विभिन्न तरहक बात मोनमे आबै। माँकेँ की कहब, आगू जीवन कोना काटब, लोक की कहतै। सोचैत-सोचैत मोन घोर भऽ गेलै। गाम दिश जएबाक लेल डेगे नै उठै। कतऽ जाएब, की करब। चलैत-फिरैत लहाश भऽ गेल छलि किरण। भीड़-भाड़मे रहितो एकदम तन्हा। मनक तूफान रूकबे नै करै। बेकार, जीवन बेकार भऽ गेलै। सभटा सोचल सपना क्षणमे टुटि गेलै। सोचै, माँकेँ अफसर बनि कऽ के देखतै, भगबतीक गीत के गेतै?
एतेक दिन दुर्गा माँक पूजा केलौं... तकर इनाम ई भेटल।....सभ झूठ छै,... देवी-देवता सभ बकबास छै..... गरीबक साथ कोनो देवी-देवता नै दै छै।.... सभ कहै छै, प्रेम बड़ नीक शब्द छै,..... प्रेमसँ पत्थर दिल मोम भऽ जाइ छै, .....मुदा नै......, प्रेम तँ जहर छै, जहर ... जैसँ केवल मौत भेटै छै, मौतक सिवा किछु आर नै, मौत . . मृत्यु . . मौत . . जहर . .। हम जानि-बुझि कऽ ई जहर पिलौँ।... हम अपवित्र छी, हम कुलक्षणी छी ..., हम धरती परक बोझ छी ......हमरा जीबाक कोनो अधिकार नै। हमरा सन कऽ लेल ऐ दुनियाँमे कोनो जगह नै। .....हम माँ-बापक इज्जत अओर निलाम नै करब।...... हम मरि जाएब, ककरो किछु खबर नै हेतै। ......हम अप्पन बलिदान करब। अनेको रास बातसँ माँथ लागै फाटि जेतै। ओ एक दिश दौड़ल, किम्हर से ओकरो नै पता, ओ कतऽ जा रहल छै ....., नै जानी। ....दौड़ैत-दौड़ैत भीड़मे कत्तो चल गेल। अप्पन अंजान मंजिल दिश।
भोरे अखबारक मुख्य पृष्ठपर मोट-मोट अक्षरमे लिखल छल "सोलह-सतरह सालक एकटा गोर-नार युवती रेलवे पटरीपर दू टुकड़ीमे भेटल। नाम-गामक पता नै चलल अछि। पोस्टमार्टमक लेल लाश भेज देल गेलैए। अंतिम दाह-संस्कार पुलिसक निगरानीमे हएत . . .।

ओमप्रकाश झा- लोकतन्त्रक माने


ओमप्रकाश झा
लोकतन्त्रक माने
शैलेश बाबू अपन मिनी लाइब्रेरी मे बैसल किछु पोथी सबहक पन्ना उनटेने जाइ छलाह। हुनकर कनियाँ सुनन्दा आबिकेँ कहलखिन्ह- "कोन खोजमे लागल छी अहाँ। तीन घण्टासँ अपस्याँत भेल छी।" शैलेश बाबू बजलाह- "लोकतन्त्रक माने ताकि रहल छी।" सुनन्दा हँसैत बजलीह- "हुँह, कथीकेँ प्रोफेसर छी अहाँ यौ। लोकतन्त्रक माने होइ छै, बाई द पीपुल, औफ द पीपुल, फौर द पीपुल। ई गप तँ बच्चा-बच्चा बूझै छै।" शैलेश बाबू बजलाह- "ई माने तँ हमरो बूझल छल। हम लोकतन्त्रक आधार बनल किछु गोटेक हरकतकेँ व्याख्या करबाक फेरमे एकर विशिष्ट अर्थ ताकि रहल छी। जतए जाइ छी किछु ने किछु विचित्र हरकत करैबला लोक सभसँ भेँट भऽ जाइए। हुनकर सबहक लीला लोकतन्त्रक परिभाषामे आबै छै वा नै, यएह खोजमे तबाह छी।" सुनन्दा कहलखिन्ह- "छोड़ू एखन ई सभ आ चलू किछु पनपियाइ कऽ लिअ।"
शैलेश बाबू पनपियाइ करैत छलाह तखने हुनकर मित्र मनोज चौधरीक फोन एलन्हि- "कहिया पूर्णिया आबै छी प्रोफेसर साहेब? ऐ बेरक दुर्गा पूजामे हमर गामक प्रोग्राम फाइनल अछि ने?" शैलेश बाबू बजलाह- "हम काल्हि चलै छी।" दोसर दिन शैलेश बाबू पूर्णिया गेलाह आ ओतए सँ मनोज जीक संग हुनकर गाम गेलाह। ओतए हुनकर गामपर जलखै कऽ केँ साँझमे दुनू दोस्त मेला घूमै लेल निकललाह। मेलामे ऐ बेर नौटंकीक बेवस्था सेहो छलै। सभ ठामसँ घूमि दुनू गोटे नौटंकी देखबा लेल पंडालमे पहुँचि अपन स्थान ग्रहण केलथि। नौटंकीक बीचमे बाइजीक नाचक सेहो प्रबन्ध छलै। एकटा बाइजी स्टेजपर आबि अपन लटका झटका देखबैत कोनो फिल्मी गानापर नाच करऽ लगलै। शैलेश बाबू मनोज जीकेँ कहलखिन्ह जे चलू, ई नाच हम नै देखब। ताबे एकटा घटना भेल, जे देखि ओ ठमकि गेलाह। नाचक बीचेमे दर्शकमे आगूमे बैसल एक गोटे उठलाह आ नाच करऽ लगलाह। ओ साँवर रंगक उज्जर कुरता पायजामा पहिरने एकटा दाढ़ीदार लोक छलाह आ हाथमे एकटा नलकटुआ रखने फायरिंग सेहो करै छलाह। मनोज जी बजलाह- "ई हमर सबहक विधायक छथि आ सभटा आयोजन हुनके सौजन्ये छन्हि।" तावत ओ विधायक मंचपर चढ़ि गेल आ बाइजी संगे फूहड़ भाव-भंगिमामे नाच करऽ लागल। शैलेश बाबू खिसियाइत बजलाह- "चलू तुरन्त। हम नै रूकब आब। ई किरदानी विधायकक, राम-राम।" ओतए सँ दुनू गोटे गामपर एलाह आ शैलेश बाबू रातिये पटनाक बस पकड़ि विदा भऽ गेलाह। दोसर दिन भोरे पटना पहुँचलाह। डेरापर बैसि चाह पीबै छलाह, तखने सुनन्दा बजलीह- "केहेन जमाना आबि गेलै। विधायक नर्तकी संगे स्टेजपर नाच करै छलै। पूरा समाचारमे यएह सभ देखा रहल छै।" शैलेश बाबू तुरंत टी.वी. दिस भगलाह आ एकटा न्यूज चैनल लगेलाह। ओइठाम यएह समाचार बेर बेर देखबै छलै। ओइ चैनलक स्टूडियोमे ऐ विषयपर बहस चलै छलै। किछु राजनीतिक लोक सभ आ किछु बुद्धिजीवी लोक सभ चर्चामे लीन छलाह। विधायक जीक पार्टीक नेताकेँ छोड़ि बाकी लोक ऐ कृत्यक घोर निन्दा करै छलाह। बीच बीचमे प्रचार आ चैनेल दिससँ ई उद्घोषणा कि सभसँ पहिने वएह ई समाचार देखौलक। ई विषय गरीबी आ भूखमरीक समस्याकेँ कतौ बिला देलकै। एना लागए लागल जे देशमे आब एकमात्र यएह समस्या रहि गेलै। शैलेश बाबू चैनल बदललाह। सभ ठाम वएह देखबै छलै। ओ बड़बड़ाय लगलाह- "कते महत्वपूर्ण समाचार भऽ गेलै ई।" ताबत एकटा चैनलपर विधायक जीक बयान आबि गेलै- "ई सभ विरोधी पार्टीक दुष्प्रचार थीक। हम ओइ नर्तकीकेँ पुरस्कार देबा लेल स्टेजपर गेल छलौं। वीडियोमे छेड़छाड़ कएल गेल अछि। ई हमरा बदनाम करै लेल विरोधी सबहक चालि थीक। हम जाँच लेल तैयार छी। एकटा कमीशन बैसाएल जाए।" शैलेश बाबू सुनन्दाकेँ कहलखिन्ह- "ई झूठ बाजैए। हम अपनहि आँखिसँ ई कृत्य देखलौं।" सुनन्दा बजलीह- "चुप रहू आ ई गप आन ठाम नै बाजब। छोड़ू ने, सिनेमाक चैनल लगाउ।"
साँझमे एकटा चैनलपर "विधायक जी स्टेजपर" ऐ विषयपर जनताक बीच विधायक जी केर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम छल। शैलेश बाबू ई देखऽ लगलाह। विधायक जी साफ-साफ कहलखिन्ह जे ओ स्टेजपर नर्तकीकेँ ईनाम दै लेल गेल छलाह। हुनकर कहनाइ रहन्हि जे वीडियोमे छेड़छाड़ कएल गेल। जनताक बीचसँ ढेरो सवाल पूछल गेल आ विधायक जी बिना तमसायल मुस्की दैत शांत जवाब दैत रहलाह। शैलेश बाबू कुनमुनाबऽ लगलाह। बाजए लगलाह जे केहेन झूठ बाजै छै। मुदा हुनकर के सुनै छन्हि। सुनन्दाकेँ ई गप बूझल छलन्हि जे शैलेश बाबू जोशमे ओतए जा सकै छथि, तैं ओ हुनकर पहरेदारीमे मुस्तैद छलीह। एकाएक जनताक बीचसँ एकटा युवक उठलै आ हाथमे एकटा चप्पल लेने मंच दिस दौड़ि गेलै। ओ चप्पल सोझे मंच दिस फेकलक जकरा विधायक जीक अंगरक्षक सभ लोकि लेलकै। ओइ युवककेँ पुलिस पकड़ि लेलक आ धुनाइ करए लागल। विधायक जी बाजए लगलाह जे देखू विरोधी सबहक कुकृत्य। हमरा नै फँसा सकल तँ आब अपन पार्टीक लुच्चा सभकेँ पठा कऽ हमरा बेइज्जत करबाक प्रयास करै जाइए। शैलेश बाबू धेआनसँ ओइ युवककेँ देखलाह तँ हुनकर मुँहसँ निकललन्हि- "अरे ई तँ धनंजय छी। अपन फूलधर बाबूक जेठका बेटा। ई कोनो पार्टीक लोक नै अछि। ई तँ डिग्री लऽ केँ घुमैत एकटा बेरोजगार युवक अछि।"
शैलेश बाबू टी.वी. बन्न कऽ माथपर हाथ धेने बैस गेलाह आ सुनन्दासँ कहलखिन्ह- "कनी एक गिलास पानि पियैबतौं। हम फेर लाइब्रेरी जा रहल छी, लोकतन्त्रक माने ताकबा लेल।"

ओमप्रकाश झा- बुढ़िया मैयाँ

ओमप्रकाश झा

बुढ़िया मैयाँ
मोबाइलपर बाबूजीक फोन आएल। हम उठेलौं तँ कुशल क्षेमक बाद बाबूजी कहलथि- "बुढिया मैयाँ स्वर्गवासी भऽ गेलीह।" हम धक दऽ रहि गेलौं। एखने दू मास पहिने गाम गेल छलौं, तँ बुढ़िया मैयाँ स्वस्थ छलीह। ओना हुनकर अवस्था ९५ बर्ख छलन्हि। पता चलल जे हर्ट अटैक आबि गेल छलन्हि आ दरिभंगा लऽ जाइत काल बाटेमे हुनकर देहान्त भऽ गेलन्हि। बाबूजीक निर्देशानुसार हम तुरत गाम चलि देलिऐ। रातिमे गाम पहुँचलौं, तँ पता चलल जे दाह संस्कार लेल कठियारी गेल छथि सभ। माताजीक निर्देशक मोताबिक काठी चढेबा लेल हमहूँ कठियारी भागलौं। बुढिया मैयाँक दिव्य आ शान्त मुख देखि एना लागल जे ओ आब उठि बैसतीह। हुनका सानिध्यमे बिताओल समय मोनमे घुरिऐ लागल। एक दिन सभ एहिना शांत भऽ जाएत। बुढिया मैयाँ कखनोकेँ कहैत रहथिन जे बौआ, आब कते दिन बुढ़िया मैयाँ, हमर जे पार्ट छल से हम खेला लेलौं, आब अहाँ सभ अपन पार्ट खेलाइ जाइ जाउ। ठीके कहै छलखिन्ह ओ। अपन पार्ट खेलाकेँ कते दिनसँ हमरा सबहक पूर्वज एहिना शांत होइत रहलाह आ नबका पात्र सभ मनुक्ख आ मनुक्खताकेँ आगू बढ़बैत रहलाह। ई खेल सतत चलैत रहत। नव-नव पौध आंगनमे आबैत रहत आ पुरान गाछ सभ अहिना धाराशायी होइत रहत। मायाक जंजालमे बान्हल हम सभ अहिना मुँह ताकैत रहब। कतेक असहाय भऽ जाइ छै मनुक्ख, जखन कियो अपन सामनेसँ चलि जाइ छै आ ओ किछु करबामे असमर्थ रहैत अछि। एहने विचार सभ मोनमे आबैत रहल आ हुनकर चिता जरैत रहलन्हि। जखन दाह संस्कार पूर्ण भऽ गेलै तँ हरिदेव कक्का कहलथि- "कोन विचारमे हरायल छी ओम बौआ। चलू आब नहा कऽ गामपर चली। ओहिनो भोर भऽ गेल। नहा-सोना कऽ कनी सुतब, रतिजग्गा भऽ गेल।" हम कहलियन्हि- "कक्का, बुढिया मैयाँ बड्ड मोन पड़ै छथि।" हरिदेव कक्का बजलाह- "छोडू ने ई सभ गप, हमरा की नै मोन पड़ै छथि? ऐ लेल गाम नै जाएब की? मोन खराप कऽ ली बिना सुतने। अरे भेलै चलू, ९५ बरख केर पाकल उमैर मे गेलथि, कते शोक मनाएब।" हम चुपचाप चलि देलिऐ गाम दिस। आबिकेँ नहा-सोना कऽ सुतै लेल गेलौं। ओतए आँखि मुइन सुतबाक उपक्रम करऽ लागलौं। आँखि मुनैत देरी बुढ़िया मैयाँ सामने ठाढ़ भऽ गेलीह। हमरा दिस सिनेहसँ ताकैत वएह पुरना सवाल पूछऽ लागली जे बौआ खेलौं। हम हुनका एकटक ताकैत रहि गेलौं।
बुढिया मैंया हमर बाबाक काकी छलीह। हमर प्रपितामही लागैत छलीह। पूरा आंगनमे सभसँ जेठ आ आब तँ बच्चा सभक संग सभ गोटे हुनका बुढ़िया मैयाँ कहऽ लागल रहन्हि। पूरा आंगनक बच्चा सभक सम्पूर्ण भार हुनके पर रहै छलन्हि आ ओ एकरा पसिन्न करै छलखिन्ह। बच्चा सभसँ खूब सिनेह रहै छलन्हि हुनका। हमरा सभ केँ खुएनाइ हुनके जिम्मा रहै छलन्हि। जखने हम सभ खाइमे एको रत्ती हिचकिचाइ छलिऐ की ओ तुरत्ते तोता कौर आ मैना कौर बनाकेँ खुआबऽ लागै छलीह। माताजी गामपर पहुँचैत देरी हमरा सभकेँ हुनकर संग लगा दैत छलीह। जेना हमरा बूझल-, बुढिया मैयाँ ३५ बरखक आयुमे वैधव्य प्राप्त केने छलथि। हुनका तीन गोट पुत्र श्रीदेव, रामदेव आ विष्णुदेव छलखिन्ह। विष्णुदेव बाबाक पुत्र हरिदेव कक्का छलाह जिनका सँ हमरा बड्ड पटै छल। श्रीदेव बाबा खेती पथारी करै छलाह। रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा नौकरी करै छलाह आ आब रिटायर भऽ केँ गामेमे रहै छलाह। बुढ़िया मैयाँक तीनू पुत्र आ तीनू पुतौह जीविते छलखिन्ह। हम नौकरी भेटलाक बाद कखनो काल गाम जाइत छलौं तँ बुढिया मैयाँ कहथि जे भगवान हमरा उठबैमे किए देरी लगा रहल छथि, हम चाहै छी जे तीनू पुत्रक सामने आँखि मुनी। पूरा आंगनक बच्चा बच्चा बुढिया मैयाँक चेला छल। हमहूँ छलौं। किए नै रहितौं, ओ निश्छल प्रेम, ओ देखभाल सभ गोटेकेँ हुनका दिस आकर्षित करै छलै। सभ पुतौह हुनका लग नतमस्तक रहैत छलीह। बुढिया मैयाँक हुकुमक अवहेलना कियो नै करैत छल। सबहक लेल हुनका मोनमे नीक भावना छलन्हि। हम तँ हुनकर जाउतक पोता छलौं, मुदा ओ कहियो आन नै बुझलथि। एहेन बुढ़िया मैयाँक पौत्र हरिदेव कक्का केर गपसँ हमरा बड्ड छगुनता लागल छल। हम सोचैत रही जे एखन चौबीसो घण्टा नै भेल हुनका मरल आ ई सभ हुनका बिसरैमे लागि गेलाह। किए, एना किए? ठीक छै जन्म मरणपर अपन बस ककरो नै छै, मुदा जे एतेक बर्ख धरि हमर धेआन राखलक, की हम ओकरा लेल किछो दिन, किछो बर्ख धरि नै सोची।
यएह सभ सोचैत कखनो आँखि लागि गेल। एकाएक हंगामासँ निन्न टूटल। जल्दी कोठलीसँ बहरेलौं। आंगनमे बुढ़िया मैयाँक तीनू पुतौह वाक युद्धमे लीन छलथि। पता चलल जे बुढ़िया मैयाँक गहना गुड़ियापर बहस होइत छल। श्रीदेव बाबाक कनियाँ एक दिस छलखिन्ह आ रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा केर कनियाँ एक दिस। बहसक विषय वस्तु छल एकटा अशर्फी। बुढ़िया मैयाँक पेटीमे १६ गोट अशर्फी छलै। तीनू पुतौह ५-५ टा हिस्सा लेलाक बाद सोलहम अशर्फीपर भीड़ल छलीह। पहिने कहा सुनी भेल आ बादमे व्यंग्य आ गारिक समायोजन सेहो भेल। हम जल्दीसँ आँगनसँ बाहर दलानपर चलि एलौं। ओतुक्का दृश्य कोनो नीक नै छल। बुढ़िया मैयाँक तीनू पुत्र हुनकर कोठलीक अधिकार विषयपर धुरझार वाक युद्धमे लागल छलाह। हमरा ई सीन किछु किछु संसद आ विधान सभाक सीन जकाँ लागै छल। तीनू भाइ अपन अपन कण्ठक उच्च स्वर प्रवाहसँ लाउडस्पीकरकेँ मात देने रहथिन्ह। एना लागै छल जे एकटा लहाश आइ खसिये पड़तै। हम बड्ड डरि गेलौं आ बाबूकेँ फोन लगेलियन्हि- "बाबूजी, एतए तँ मारा-मारीक भयंकर दृश्य उपस्थित भेल अछि। आब की हेतै।" बाबूजी कहलाह- "अहाँ नै किछु बाजब। यौ दियादी झगड़ा एहिना होइ छै। फेर मेल भऽ जेतन्हि।" मुदा हमरा नै रहल गेल आ झगड़ाक स्थान पर जा केँ हम कहलियन्हि जे बाबा अहाँ सभ क्रिया-कर्म हुअए दियौ, तकर बाद ऐ मुद्दाक समाधान कऽ लेब। विष्णुदेव बाबा बजलथि- "समाधान तँ आइये हेतै। हमहूँ तैयारे छी।" हम बजलौं- "एना नै भऽ सकैए जे ओइ कोठलीकेँ बुढ़िया मैयाँक स्मृति बनाओल जाए।" ऐ बेर श्रीदेव बाबा बजलाह- "बड़का ने एला स्मृति बनबाबैबला। बुढिया की कोनो चीफ मिनिस्टर छलै आ की कतौक प्रेसीडेण्ट।" हम गोंगियाइत बजलौं- "मुदा बाबा ओ हमरा सभक एकटा स्तम्भ छलीह। मजबूत स्तम्भ।" रामदेव बाबा मुस्की दैत हमरा दिस ताकैत बजलाह- "ई छौंडा चारि लाइन बेसी पढ़िकेँ भसिया गेलै हौ। ई नै बुझै छै जे पुरना घर खसैत रहै छै आ नबका घर उठैत रहै छै। बुढिया बड्ड दिन राज केलकै नूनू, आब हमर सबहक राज भेल, हम सब फरिछा लेब।" तीनू गोटे हमरे पर भिड़ गेलाह। हम तुरत ओइठामसँ गाछी दिस निकलि गेलौं, जतए बुढिया मैंयाकेँ जराओल गेल छलन्हि। साराझपी नै भेल छल। ओइ स्थानपर छाउर छल, जतए हुनका जराओल गेल छल। हमरा लागल जेना बुढ़िया मैयाँ ओइ छाउरमे सँ निकलि हमरा सामने ठाढ़ भऽ गेलीह आ कहऽ लागलीह- "बउआ अही माटिसँ एकदिन हम निकलल छलौं आ अही माटिमे फेरसँ चलि एलौं। अहाँ कथी लेल चिन्तित होइ छी। हमर स्मृति अहाँक मोनमे अछि, सएह हमर पैघ स्मृति अछि। जखन पुरना घर खसै छै ने, तँ ओकर मलबा एहिना कात कऽ देल जाइ छै। ओइ जगहपर नबका घर बनाओल जाइत अछि। हम पुरान घर छलौं, खसि पड़लौं, अहाँ सभ नब घर छी, जाउ उठै जाउ आ नाम करू। ऐसँ हमरो आत्मा तृप्त रहत। बिसरि गेलौं, बच्चामे अहाँ सभकेँ घुआँ-मुआँ खेलबैत छलौं तँ की कहै छलौं, नब घर उठए, पुरान घर खसए।" हमरा अपन नेनपनक खेल मोन पड़ए लागल। बुढिया मैंया अपन ठेहुनपर चढा कऽ घुआँ मुआँ खेलबै छलीह। की ई संसार एकटा घुआँ मुआँक खेल थीक। ऐमे एहिना पुरना घर खसाकेँ बिसरि देल जाइए आ नबका घर सभ अपन चमक देखबैत रहैए। हम ओइठामसँ सोझे बाजार दिस विदा भऽ गेलौं ई बड़बड़ाइत जे नब घर उठए, पुरान घर खसए।

ओमप्रकाश झा -डीहक जमीन

ओमप्रकाश झा  


डीहक जमीन
 ट्रेन सकरी टीशन सँ फूजल आ पूब दिस घुसकऽ लागल। नरेश एकटा बोगीमे अपना सीटपर बैसल अपन गामक बात सभ मोन पाड़ैत विचारमग्न भऽ गेल। बहुत दिनक बाद ओ अपन गाम जा रहल छल। भरिसक १० बरखक बाद। ओ एखन भोपालमे शिक्षा विभागमे नौकरी करैत छल अधिकारीक पदपर। गाम जाइ लेल चिकना टीशन उतरि कऽ जाए पड़ै छलै। सकरी तक बड़ी लाइनक ट्रेन चलैत अछि। ओतएसँ फेर छोटी लाइनक ट्रेन। ओकरा बोगीमे पूरा लोक कोंचल छल। चारि पसिन्जरक सीटपर सात-आठ लोक बैसल छल। हो-हल्ला आ गप-शपसँ पूरा डिब्बामे कोलाहल जकाँ छलै। मुदा ओकर दिमागमे अपन पुरनका दिन घुरियाए लगलै। सभटा दृश्य चलचित्र जकाँ ओकर आँखिक आगाँ घूमऽ लगलै। ओ अपनाकेँ २० बरख पहिनुका स्कूलमे देखऽ लागल। बस्ता लऽ कऽ नित भोरे पाठशाला जेबाक दृश्य आगाँमे नाचऽ लगलै। ओकर पिता फेंकन मरड़ हरवाह छला आ गाममे भुटकुन बाबू ओतए खेतीक आ माल-जालक काज करै छला। किछु बटाइपर खेती सेहो करै छला। अपन जमीनक नाम पर पाँच कट्ठा खेतीक जमीन आ आठ धूरक घरारी छलन्हि। हुनकर माय मरौनावाली केर नामसँ जानल जाइत छलीह। भरि दिन मरौनावाली भुटकुन बाबू ओतए घरेलू काजमे मदति करैत छलीह आ साँझे घर आबै छलीह। नरेश बच्चा छलाह आ भरि दिन एम्हर ओम्हर खेलाइत रहैत छलाह। एक दिन भुटकुन बाबू फेंकनकेँ कहलखिन्ह जे नरेशबा भरि दिन टौआइत रहै छौ, किए नै ओकरा हमरा ऐठाम चरवाहीमे पठा दैत छिहीं। फेंकन बजलाह- "गिरहत, ई गप नै कहियौ, ओ एखन मात्र चारि बरखक छै। ओकरा अगिला बरखसँ स्कूल पठेबै।" भुटकुन बाबू व्यंग्यमे बजलाह- "तौं तँ एतबे टा सँ हमरा ऐठाम चरवाही करै छलैं। तखन तोहर बाबू हरवाही करै छलखुन्ह, मोन छौ ने।" फेंकन कहलक- "जी ओ जमाना आब नै छै गिरहत। मरौनावाली एकदम जिद केने छै जे नरेशबाकेँ स्कूल पठबियौ। किछु दिन पहिने बिसेसर बाबू मास्टर साहब भेंटल छलाह। ओ कहलथि जे पढेनाइ बड्ड जरूरी छै तैं नरेशबाकेँ स्कूल पठाबहक।" भुटकुन बाबू- "जे तोहर इच्छा। हम तँ तोरे दुआरे कहलियौ। तोहर काज किछु हल्लुक भऽ जइतौ।" फेंकन- "गिरहत, हम जाधरि सकब ताधरि अहाँक काज करैत रहब।"
अगिला साल नरेशक नाम स्कूलमे लिखाओल गेल। नरेश पढ़ैमे नीक छलाह आ जल्दिये मास्टर सबहक प्रिय भऽ गेलाह। दसवीं बोर्डमे ओकरा अस्सी प्रतिशत अंक आएल। ओ कओलेजमे पढै लेल दरिभंगा चलि आएल आ ट्यूशन पढा कऽ अपन खर्च निकालैत पढ़ऽ लागल। ओम्हर गाममे फेंकन आ मरौनावाली भुटकुन बाबूक काजमे लागल रहल। नरेशक पढाइ पूरा भेलै आ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोगक इम्तिहान पास कऽ कए शिक्षा विभागमे नौकरी भेटलै। नियुक्ति पत्र गामक पतापर आएल छल आ सौंसे गाम अनघोल भऽ गेल रहै। ओइ दिन नरेश अपनाकेँ आकाशमे उड़ैत पओलक। भुटकुन बाबू जे आब वृद्ध भऽ गेल छलाह ओहो नरेशकेँ बजा कऽ आशीर्वाद देलखिन्ह। मरौनावाली तँ कानैत बेहाल छल जे बेटा आब नजरिसँ दूर भऽ जाएत। किछु दिनक बाद नरेशक बियाह भऽ गेलै। किछु दिन कनियाँ गामेमे रहलन्हि। फेर जएबाक जिद कऽ देलकै। नरेश कनियाँकेँ लऽ कए भोपाल चलि गेल। मरौनावाली ओइ दिन बड्ड कानल रहै। नरेश अपन माता पिताकेँ संगे रहै लेल बहुत आग्रह केलक, मुदा फेकन साफ मना कऽ देलकै। ओकर कहनाइ रहै जे पुरखाक डीह छोड़ि नै जाएब। नरेश कहलक जे ई आठ धूर डीह अहाँकेँ एतेक प्रिय भऽ गेल जे अपन एकलौता संतान संगे रहै लेल तैयार नै छी? ओतए नाना प्रकारक सुविधाक गप सेहो नरेश कहलकै, मुदा फेकन अपन जिदपर अड़ल रहलाह। मरौनावाली कनी जिद केलखिन्ह तँ फेकन खिसिया गेला आ कहलखिन्ह जे अहाँ चलि जाउ, हम असगरे रहब। मरौनावाली धर्मसंकटमे पड़ि गेली आ अंतमे गामेमे रहै कऽ निर्णय लेलथि। नरेश नियमित रूपसँ गाम पाइ पठबैत रहै आ ओ फेकनकेँ हरबाही जबरदस्ती छोड़ा देलक। फेकन साल दू सालपर नरेश लग जाइत रहै छलाह आ नरेश काजक अधिकता आ बच्चा सबहक पढाइ दुआरे गाम कहियो नै आबैत छलाह। आब मोबाइलक जमानामे नरेश फेकनकेँ मोबाइल सेहो कीन देने छलखिन्ह, जइसँ ओ सभ नियमित रूपसँ सम्पर्कमे रहऽ लगलाह। एक दिन फेकन मोबाइलसँ नरेशकेँ फोन केलखिन्ह आ कहलखिन्ह- "बौआ, अपन डीहसँ सटल भुटकुन बाबू केर दू कट्ठा जमीन परती पड़ल छै। ओ ओइ जमीनकेँ बेचऽ चाहै छथि। हमरा कहलथि जे तूँ जे ओ जमीन किनबऽ तँ हम तोरा पच्चीसे हजारमे दऽ देबऽ। बौआ ओइ जमीनक कीमत चालीस हजारसँ कम नै छै। नीक मौका छै। पाइ पठा दितहक तँ हम तोरे नामसँ वा तोहर कनियाँक नामसँ जमीन कीन दितिअ।" नरेश चोट्टे खिसिया गेल आ बाजल- "हमरा गामसँ कोनो मतलब नै अछि। अहाँ बलौं जमीन कीनऽ चाहै छी। हम तँ सोचै छी जे आठ धूरक डीह आ पाँच कट्ठा खेतीबला जमीन बेची आ गामसँ पिण्ड छोड़ाबी।" फेकन- "हमरा जिबैत ई काज नै हेतौ। पुरखाक जमीन बेचबाक बात तोहर मोनमे कोनाकेँ एलौ। तूँ ओइ गामसँ पिण्ड छोड़ेबाक गप करै छँ, जतए नेनामे खेलेलह, जतुक्का पानि पीबिकेँ नमहर भेलऽ, जतए तोहर बाप-दादा केर सारा छह। तूँ डीहक नबका जमीन नै कीन, मुदा पुरनका बेचैकेँ गप नै कर।" अस्तु नबका घरारी किनबाक गप एतहि खतम भऽ गेल।
एक दिन नरेशक बड़की बेटी सुनन्दा, जे चौथामे पढै छल, नरेशकेँ कहलक- "पापा, जेना हम अहाँ संगे रहै छी, अहूँ तँ बच्चामे बाबा संगे रहैत हैब।" नरेश- "हाँ, रहै छलौं। सभ रहैत अछि।" सुनन्दा- "अहाँ केँ सभ गप मानैत हेता बाबा।" नरेश- "हाँ यथासम्भव मानैत छलाह।" सुनन्दा- "अहाँ बड्ड नीक छी पापा। हमर सभ गप पूरा करै छी। हमहूँ नमहर भऽ केँ अहाँक सभ गप जरूर मानब।" ई कहैत ओ खेलाइ लेल चलि गेल। ओकर अन्तिम वाक्य सुनि नरेश धक सँ रहि गेल। ओकरा अपन नेनपनक सभ गप मोन पड़य लागलै, जे कोना फेकन फाटल धोती पहिरैत रहल, कोना मरौनावाली फाटल नुआ पहिरैत रहलीह, मुदा नरेशक पढाइमे कोनो बिथुत नै हुअ देलखिन्ह। एक बेर तँ नरेशकेँ फार्म आ किताब लेल पाँच सय टका भुटकुन बाबूसँ पैंच लेबामे कोन कोन गप नै फेंकन केँ सुनऽ पड़ल छलै। नरेशक मोनमे विचारक तूफान उठि गेल। ओ घरसँ बाहर निकलिकेँ घूमऽ लागल। घुमैत पार्क दिस चलि गेल। ओतए एकटा गाछपर एकटा चिड़ै अपन बच्चा सभकेँ चोंचमे दाना दैत छल। ओकर हृदय फाटऽ लागलै। पण्डितजी केर संस्कृतक कक्षा मोन पड़ऽ लागलै जइमे ओ "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि" पर लगातार दू घन्टी पढ़बैत रहि गेल छलखिन्ह। ओ कक्षा नरेशकेँ बड्ड नीक लागल रहै। कतेक दिन धरि ओ ऐ श्लोकक पाठ करैत रहै छल। ऐ विषयपर वाद विवाद प्रतियोगितामे सेहो ओ नीक बाजल छल आ जिला स्तरपर पुरस्कार सेहो भेटल छलै। ओ एकटा निर्णय लेलक आ डेरा आबिकेँ कनियाँसँ कहलक- "हमर अटैची तैयार कऽ दिअ। हम गाम जाएब।" कनियाँ बाजलथि- "ई की बाजै छी। ओतए एखन जा कऽ की करब? दस बरखसँ ऊपर भेल गाम गेला। के चिन्हत? बाबूजीसँ नित गप होइते अछि।" नरेश- "डीहक जमीन कीनै लेल जाइत छी।" कनियाँ- "ई कोन बतहपनी धेलक अहाँकेँ।" नरेश- "बताह तँ एखन धरि छलौं। आब ठीक भऽ गेलौं। जइ मातृभूमि केर माटि-पानिसँ हमर देह पोसल अछि, जे मातृभूमि हमरा हमर पहचान देलक, ओकरा हम बिसरि गेल छलौं। माय-बाबूक आकांक्षा आ मनोरथ बिसरि गेल छलौं। एतए भोपालमे सभ सुविधा अछि, मुदा जे अपनैती हमरा गाममे भेटैत रहए तकर अभाव बुझाइत रहैए। आब गाम सालमे एक बेर तँ जरूर जाएब।" कनियाँ कनी काल घमर्थन केलकन्हि, मुदा हुनकर जिद आ दृढताक आगाँ चुप भऽ गेली।
एकाएक नरेशक भक टूटल। बगलक यात्री, जिनकासँ सकरीमे परिचय भेल रहन्हि, हुनका हिलबैत कहैत रहए जे श्रीमान् चिकना आबि गेलै, कतेक सुतब, उतरू नै तँ ट्रेन फूजि जाएत। मुस्की मारैत नरेश बजलाह- "नै यौ, आब जागि गेल छी। एखन धरि सुतल छलौं।" ई कहैत ओ टीशनपर उतरि गेल आ गाम दिस चलि देलक। डेग जेना हल्लुक भऽ गेल रहै आ तुरन्ते गाम पहुँचि गेल। फेंकन एकाएक नरेशकेँ देखलक तँ आश्चर्य भेलै आ मरौनावाली भरि पाँजमे बेटाकेँ पकड़ि कानऽ लागल। नरेश फेकनकेँ गोर लागिकेँ कहलक- "बाबू, हम आबि गेलौं डीहक जमीन किनबाक अछि ने।"
साँझमे दुनू बापुत भुटकुन बाबू लग गेलाह। भुटकुन बाबू नरेशकेँ आशीर्वाद दैत कहलखिन्ह- "गामकेँ कोना बिसरि गेलहक?" नरेश- "नै बाबा, बिसरल नै छलौं, कतौ हरा गेल छलौं। आब आबि गेलौं। डीहक जमीन कीनै लेल।" भुटकुन बाबू हँसैत बजलाह- "चल काल्हिये रजिस्ट्री कऽ दैत छियौ। पाइ आगाँ पाछाँ दऽ दिहऽ।" नरेश- "पाइ आनने छी बाबा।"
साँझमे फेकनक छोट दलान लोकसँ भरल छल। मरौनावाली रहि रहि कऽ चाह बनाबैत छल। नरेशक गाममे आ ओकर घरमे जेना पावनि-तिहारक चुहचुही छलै।

ओमप्रकाश झा -सफल अधिकारी



ओमप्रकाश झा                                              
सफल अधिकारी
 वातानूकुलित चैम्बरक शीतल हवा मे रिवॉल्विंग चेयर पर आरामसँ अर्द्धलेटल अवस्थामे बैसल छलाह श्री बिमलेश चन्द्र। जी हाँ श्री बिमलेश चन्द्र, जे हमर विभागक एकटा सफल आयकर अधिकारी मानल जाइत छथि। हुनकर प्रभावी व्यक्तित्वक आगाँ पूरा विभाग नतमस्तक रहैत अछि। जतए ककरो कोनो काज अटकल कि श्री बिमलेश तुरत यादि कएल जाइत छथि। की अधिकारी आ की कर्मचारी, सभ गोटे हुनकर काज कराबै केर क्षमता आ हुनकर व्यक्तित्वक लोहा मानैत छथि। आइ वएह बिमलेश जी किछ शोचपूर्ण मुद्रामे अपन कुर्सीमे घोंसिआएल छलाह। हम भीतर ढुकबाक आज्ञा माँगलियन्हि तँ बिना डोलल संकेतसँ बजेलाह आ हम ओइ सुन्नर वातानूकुलित कक्षमे प्रवेश कऽ गेलौं। एतए ई बता दी जे जहियासँ हमर विभागमे कम्प्यूटर जीक पदार्पण भेलन्हि, तहियासँ सभ अधिकारीक कक्ष वातानूकुलित भऽ गेल अछि। ओना ई अलग गप थीक जे ई वातानुकूलन कम्प्यूटर जी लेल भेल छन्हि। हम बिमलेश जी सँ चिन्ताक कारण पुछलियन्हि। ओ बजलाह- "जहियासँ मयंक सर गेलाह आ खगेन्द्र सर एलाह, तहियासँ हम चिन्तित छी।" मयंक शेखर हमर सभक आयकर आयुक्त छलाह जिनकर बदली भऽ गेलन्हि आ हुनका स्थानपर खगेन्द्र नाथ जी नवका आयुक्तक पदभार ग्रहण केलखिन्ह। हम कहलियन्हि- "यौ ऐ गपसँ चिन्ताक कोन सम्बन्ध? कियो आयुक्त रहथि, अपना सभकेँ तँ काज करै केँ अछि, से करैत रहब।" बिमलेश- "अहाँ ऐ दुआरे फिसड्डी छी आ सदिखन अहिना फिसड्डी रहब।" हम चुप रहि कऽ पराजय स्वीकार केलौं आ ऐसँ अओर उत्साहित होइत ओ बजलाह- "अहाँ बुड़िराज छी। ई जनतब राखनाइ बड्ड जरूरी अछि जे नबका सर कोन मिजाजक लोक छथि।" हम- "से किए?" ओ अपन ज्ञानसँ हमरा आलोकित करैत कहलाह- "मिजाजक पता रहत तहन ने ओइ अनुरूपे काज कएल जेतै।" फेर ओ सोझ भऽ कऽ बैस गेलाह आ एकटा नम्बर दूरभाषपर डायल करैत बजलाह जे मयंक सर केँ फोन करै छियन्हि। ओकरा बाद एकटा चुप्पी आर, फेर बिमलेश जी मुस्की दैत विनीत भावमे दूरभाषक चोगापर बाजलथि- "प्रणाम सर। हम बिमलेश।"
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"जी सब नीके छै अपनेक आशीर्वाद सँ।"
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"जी अहाँ संगे काज करए केर आनन्द किछु अओर छल। अहाँक विषयक पकड़ आ अहाँक ज्ञान--- ओ सभ मोन पड़ैत अछि।"
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"झूठ नै कहै छी। अच्छा सर अहाँक सामान सभ पहुँचल की नै? सॉरी सर, एक दिन बिलम्ब भऽ गेल, ट्रान्सपोर्टमे ट्रक खाली नै छल।"
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"जी ई अपनेक महानता अछि। नै तँ हम कोन जोगरक लोक छी। कोनो अओर काज हुअए तँ कहब जरूर सर।"
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"जी प्रणाम सर।" ई कहैत ओ दूरभाषक सम्बन्ध विच्छेद करैत हमरापर विजयी मुस्की फेकलथि आ अपन आँखि हमर आँखिमे ढुकबैत कहलथि जे कहू आर की हाल चाल। हम- "नीके छी यौ। बजबै लेल आएल छलौं। चलू नबका आयुक्तक चैम्बरमे मीटिंग अछि।" ओ तुरत हमरा संगे चलि देलथि आ हम सभ आयुक्त महोदयक चैम्बर पहुँचलौं जतए सभ अधिकारी बैसल छलाह। मीटिंग शुरू भेल। एकटा चुप्पी ओइ कक्षमे पसरि गेल। हमरो विभागमे आन सरकारी विभाग जकाँ भरि साल मीटिंग चलैत रहैत अछि। ऐ विषयपर एकटा ग्रन्थ लिखल जा सकैत अछि जे मीटिंगक कतबा फएदा अछि। खैर मीटिंगमे आयुक्त महोदय अधिकारी सभकेँ खूब पानि पियेलखिन्ह आ खराब प्रदर्शनक लेल पुरकस डाँट सेहो भेटल। कहुना मीटिंग खतम भेल आ हम सभ ओहिना पड़ेलौं जेना बिलाड़िक डरसँ मूस पड़ाइत अछि। मुदा बिमलेश जी फेरसँ अनुमति लऽ केँ भीतर ढुकलाह आ आयुक्तसँ कहलखिन्ह- "प्रणाम सर, हम बिमलेश।" आयुक्त भावरहित बजलाह- "बैसू।" हमर विभागमे कोनो नबका अफसर आबैत छथि तँ विभिन्न अधिकारी आ कर्मचारी केर खासियतसँ हुनका परिचित करेबामे किछु लोक आगाँ रहैत छथि। बिमलेश जीक (कु)ख्याति सँ आयुक्त महोदय नीक जकाँ परिचित कऽ देल गेल छलाह। भाव विहीन चेहरासँ आयुक्त महोदय बिमलेश जी केँ कहलखिन्ह- "अहाँक रेकॉर्ड तँ बड्ड खराब अछि। किछु काज नै भेल अछि।" बिमलेश जी पैंतरा बदलैत बजलाह- "सच पूछू सर तँ ऐ लेल अपनेक मार्गदर्शन लेल हम आएल छी। ऐ चार्जमे कहियो ठीकसँ काज नै भेल। आब अहाँकेँ अएलाक बाद सभ ठीक भऽ जेतै।" आयुक्त महोदय कनी नरम भेलाह आ अपन योजनापर चर्चा करए लगलाह। बिमलेश जी मन्त्र मुग्ध भऽ मुस्की दैत हाँ हूँ करैत सुनैत रहलाह। गप खतम भेलाक बाद बिमलेश जी कहलखिन्ह- "सर अहाँक डेरापर सामान उतारबाक लेल ५ टा लोक पठा देने छी आ रातिक खेनाइ डिलाइट होटलमे आर्डर कऽ देने छी।" आयुक्त महोदय किछु नै बजलाह। ओकर बाद पता चलल जे बिमलेश जी केँ नियमित बोलाहट होबए लगलन्हि आयुक्त महोदय लग। दू मासक बाद आयकर अधिकारीक बदलीक आर्डर आयुक्त महोदयक आफिससँ निकलल। श्री बिमलेश जीकेँ अपन कार्यालयमे छोड़ैत एकटा आर कार्यालय केर अतिरिक्त प्रभार देल गेलन्हि। संगहि आयकर अधिकारी (मुख्यालय) क अतिरिक्त प्रभार सेहो देल गेलन्हि। हमर पदस्थापन एकटा दूरक जिला मे कऽ देल गेल छल। साँझमे बिधुआयल मुँह लेने घर पहुँचलौं। कनियाँ मुँह फुलेने बैसल छलीह, किएक तँ हुनका पहिने बदलीक समाचार भेंट गेल छलन्हि। हमरा दिस तिरस्कारक संग देखैत बजलीह- "अहाँ तँ ओहिना बुड़िबक रहि गेलौं। बिमलेश जी केँ देखियौन्ह, कतेक सफल अधिकारी छथि। सभक पसिन्नक छथि।" हम मौन रहिकेँ हुनकर गप सुनैत अपन पराजय स्वीकार केलौं।

नवीन ठाकुर -मिथिला उवाच



नवीन ठाकुर, गाम- लोहा (मधुबनी ) बिहार, जन्म - १५-०५-१९८४, शिक्षा - बी .कॉम (मुंबई विद्यापीठ), रूचि - कविता, साहित्यक अध्यापन एवं अपन मैथिल सांस्कृतिक कार्यकममे रूचि।
मिथिला उवाच
फलना बाबू मरि गेला, बहुत नीक लोक छलाह। -के कहलक। -एखने एगो धिया-पुता बजैत जाइ छल जे फलना दिन भोज हेतै। बाहर निकललहुँ तँ ...हरिबोल-हरिबोल सुनाइ पड़ल!
तूँ ...जेबहक की नै कठियारी ...हाँ हाँ किए नै जेबै! ..जाएब तँ संग कऽ लेब कने।
...फलना बाबू छी यौ, कठियारीक हकार दैत छी .... चिलना बाबू नै रहला ...! -ओहो.. ओहो ...काल्हिये तँ गप्प भेल छल हुनका संग। हमरा पोखरिपर भेटल छलाह ...आहा.. हाँ .. कहियौ...... जन्म मरणक कोनो भरोसा नै होइत छै यौ बाबू ...ठीके कहैत छिऐे काका .......! लेकिन गेलाह सभटा सुख भोगि कऽ, बेटा-पुतौह बड़ निक छनि, खूब सेवा-वारी करैत छलनि! .हाँ हाँ, किए नै करथिन, कमिये कोन छलनि ....एगो बेटा डाक्टर छनि ...एगो वन विभागक अधिकारी छनि। बेटियो सभ सुखी सम्पन्न छनि, सभ काजसँ निश्चिंत भऽ कऽ मरलाहेँ! -हँ से तँ सभ अर्थेसँ महादेवक कृपा सन भरल पुरल छथि, लेकिन काज राज ढंगसँ करता तखन ने। भगवान् कोनो कमी नै देने छनि। जवार तँ खुएबाक चाही। हँ तँ से किए नै! -चल चल देरी भऽ रहल अछि, फेर एबाको अछि, पूजा पाठ करबाक अछि!
राम नाम सत्य......! हरी बोल ....हरी बोल .......!
-कथीक अतेक हल्ला भऽ रहल छै यौ छोटका बाबू । -भौजी, फलना बाबूक स्वर्वास भऽ गेलनि!
-ठीक छै, अहाँ चलि जाउ कठियारी, भैयाकेँक पठा दियौ कने अंगना। भोरसँ भुखले प्यासल बैसल छथि दलानपर !
-इजोरियो रातिमे टोर्च लऽ कऽ ई के आबि रहल अछि बुरलेल आदमी हौ। .. तखने मुँहपर टोर्च मारलकनि ....काका ...एकादसा- दुआदसाक नोत हकार दैत छी। ......पुरखक दफ्फा ..! ..आहा ...फलना बाबूबु ...आउ आउ, बैसू .....! -नै काका बड़ काज अछि एखन ...! -हाँ अहाँकेँ तँ एखन काजक अंगना अछि बौआ, ....बहिन सभ एलीहेँ की नै? -हाँ सभ आबि गेल ... काका छोटकी पुछै छल अहाँक बारेमे, जे काका जिबिते छथिन ने...! -हह हहह हा.. हा.. हाँ हाँ ओकरा तँ होइते हेतै, बच्चामे बड़ मारने रहिऐे ने ......! -बड़की बहिनकेँ तँ ननकिरबो छऽ ने एकटा ... -हाँ ५ सालक छै ननकिरबा ...! -भगवान् देह समांग दोउ बढ़िया .......बड़ निक ! -ठीक छै चलै छी काका .!
भोजक दिन-
-कए गो तरकारी छै हौ भाइ .....? -सात गो तरकारी छै काका ...! - कोन-कोन? -आलू-कोबी, भाटा-अदौरी, कदीमा, सजमैन, साग, बड़ आ बड़ी। -आह बहुत निक .......सबेर सकाल बिझो भऽ जेतै तँ ठीक रहितै ..बेसी रातिमे नै ठीक होइ छै।  ...धिया पुता सब उन्घा लागै छै ...हाँ .... कनेक देख कऽ आब तँ कतऽ तक काज आगाँ बढ़लैए ...!
तखने दूरसँ.....! -फलना बाबू छी यौ ....बिझो करबैत छी .! -हाँ हाँ.... ठीक छै...! -हइ बिझो भेलै ....बिझो भेलै....! -हइ छौड़ी सभ, हल्ला नै कर ....! -बाबा ......भर्तुआ सुइत रहल ...! -हइ जो ने, उठा दही ने, साँझेसँ हल्ला केने छलै भोज खाएब.. भोज खाएब .....जो जल्दी लोटा लऽ कऽ आऽ गऽ ..! दू गो लोटा लऽ लिहँ... हाँ...! -यौ एगो आउर पात दिअ ई फाटल अछि .. -हइ छौड़ी....पात खेबा की भात .....! -जाए दियौ बच्चा छै, हइ ले बौआा ...दोसर पात! -हइ भात उठबऽ ने......! मऽ तोरी, गप की करैत छऽ, उम्हर एखन धरि पत्तो नै परसला ....! दाइल लेब दाइल ..! डालना.... डालना....! -पाइनो एगोटा तँ उठा लाए कमसँ कम ....की सभ तरकारिये परसबऽ! ..हरे करिया ..एम्हर आ ..चल पाइन उठा ले तूँ .! -हइ हम पानि नै उठाएब ...! -हइ बहिन्चो पानि पिएलासँ धर्म हेतौ ....उठा ने! -हइ कात भऽ कऽ हाथ धोए जाइ जाउ। -हइ, ई के धिया-पुता अछि .....हइ, बिच्चइमे रास्तापर पाइन हरबै छऽ। ...लोक पिछड़ि कऽ खसतै। एकने चंडाल कही के ...! -बहुत नीक छल काका भोज। जय जय भऽ गेलै ..! - हौ एतबो नै करितै तँ नाक-कान कटबऽ के छलै की ...एतेक सम्पैत कतऽ कऽ रखतै ....समाजमे रहऽ के छै की नै ....! -हाँ सेहो छिऐ........देखियौ आब काल्हि की होइए। ....सुनऽमे आएलऽ जे जवार भऽ रहल अछि, पाँच गाम नोतत! -आह करबाके चाही.. अइसँ नाम होइत छै.. ..अपने नाम हेतै ने कोनो हमर थोड़े ने, हाँ ....गामक नाम सेहो हेतै किने!
भोजक २-४ दिन पश्चात ......!
-हौ फलना बाबुकेँ राति तबियत खराप भऽ गेलै की ....! -हल्ला सुनलिऐ काका आइ भोरमे ....ओहो लटकले छथि, पाकल आम छथि। ..... आब जे दिन जिबैत छथि से दिन! -हाँ ...हमरो जेबाक छलए बंबई लेकिन ई हल्ला सुनलिऐ तँ रुकि गेलहुँ ! -दू चारि दिन आर रूकि जाइ छी ...कहीं ओहो ने ...आब कतबो छथि तँ दियादे छथि ने ....चलि जाएब तँ बदनामिये हएत!
तइ दुआरे रुकिए जाइ! - पुरवा बहि रहल अछि, चंडाल जकाँ साँइ साँइ कऽ रहल अछि, जेना दौगि रहल अछि आतुर भऽ- व्याकुल भऽ। हरा गेलैए किछु ..ताकि रहल अछि जेना! -सुखा गेल मुँह, नाक, कान सभटा। पएर तरक धरामे दरार पड़ि गेल अछि सौंसे खेतमे। छाती फाटि कऽ कानि रहल अछि जेना बुझा रहल छै सीता एखने गेलीहेँ धरतीमे फाँक दऽ कऽ! मूड़ी ऊपर उठेलहुँ तँ लागल जेना चुनरी ओढ़ा देलक कियो मुँहपर...! हे भगवान्, बज्जर खसौ ई करिया बदराकेँ। सभ दिन कऽ अपन सकल देखा कऽ, मुँह दुइस कऽ भागि जाइए! कनेकबो दर्द नै छै कोंढ़मे बेदर्दाकेँ!
-आह ..हा ...नाकपर एगो शीतल बुन्न खसल ओढ़नीसँ चुबि कऽ। मोनक भ्रम अछि की? तखने दुनु पपनीपर खसल जेना कहि रहल अछि, उठू, आब नै सताएब हम अहाँकेँ, किया एतेक अन्धेर्ज भेल अछि .....संतोख भेल भीतरसँ कने!
ठनका, ठनकल जोरसँ तखने! कतऽ गेल गै छौड़ी ...अमोट सुखाइ छौ अंगनामे, उठा ले ने, पाइन एलै... भिजलौ सभटा!
यै भौजी, असगनीपर सँ कपड़ा उतारू सभटा ....भीजल ....(अमोट उठबैत एगो भौजीयोकेँ काज अरहेने गेल दुलरिया।)
एक अछार बरिस कऽ रुकि गेल तँ निकलि गेलौं खेत दिस कने... आह हा ....हृदयक गहराइ तक उतरि गेल ओ सोन्हगर माटिक सुगंध, पहिल अछारक बाद दबने छल जे बहुत दिनसँ भीतरमे! मृग मरीचिका जेना भटकलौंहेँ कने काल, ओर ने कोनो छोर ओइ सुगंधक, सजि-धजि कऽ बैसल अछि जेना मिलनक आसमे प्रेमीक बाट तकैत... चारु दिस सुन्न पड़ल अछि खेत, नबका फसलक इंतजारमे! सरजू काका महिना भरिसँ हरक शान चढ़ा रहल छथि फराक, बड़द सभकेँ खुआ-पिया कऽ टनगर बनेने निङहारैत छलथि आकाश.. सभ दिन चारू दिशामे घूमि कऽ बरखाक आसमे,
लिअ आइ बरसि पड़ल! राति भरि कतेक बरसल नै बुझि पड़ल, मुदा निन एहन पड़लौं जेना काल्हिये बोर्डक परीक्षा खतम भेल! भरि गर्मीक निन आँखिमे घुरमैत छल!  भोरे उठि दलानपर बैसि कऽ चाह पिबैत रही.... चन्दन बाबू कान्हपर कोदारि नेने दौगल जाइत छलाह बाध दिस। टोकलियनि तँ इशारामे किछु कहि कऽ भागि गेला। आन दिन चाहक नामपर बिन बजेन्हो टपकि पड़ैत छलथि, आइ की भऽ गेलनि! -हे यौ, ई चन्दन बाबूकेँ की भऽ गेलनिहेँ, भोरे –भोरे। सरजू काका ओम्हरसँ अबैत रहथि, पुछलियनि। -हौ बौआ, हुनकर खेतक पाइन सभटा बहल जाइत छनि, गेलाहेँ आइड़ बान्हऽ। -ओहो सुआइत!
संझाक बेर बिदा भेलहुँ पोखरि दिस .....लागल, बेंगक अज्ञातवास खतम भऽ गेल .......टर्र-टर्र करैत खत्ताक ओइ पारसँ अइ पार तक। सुर ताल देबऽबलाक कमी नै, सभ एकै साथे प्रतियोगितामे ठाढ़ भेल जेना! सबहक धानक बीया खसि पड़ल। लुटकुन बाबूक बीया बड़ जोरगर छनि ....हेतै कोना ने, बेचारा ..राति दिन एक कऽ कऽ छाउर आ गोबरसँ खेतकेँ पाटि देने छलखिन! हुनकर खेतो तँ सभसँ पहिने गाममे रोपा जाइत छनि! आइयो कादो कऽ कऽ एलैथहेँ, झौआहमे!
गमछामे किछु फड़फराइत देखलियनि, पुछलियनि- काका की अछि तौनीमे? -हौ, खेतमे बड़ माछ छल, गमछासँ माँरलहुँहेँ! काल्हि निचका बला खेतमे चास देबै, भेज दिहक छोटकाकेँ, बड़ माछ छै ओहू खेतमे! -ठीक छै। -कहलियनि!
मंगनीक माछ खाइमे बड़ मोन लगै छै मुँहमे पाइन आबि गेल सुनि कऽ! जल्दी अबिहेँ, मशाला पिसबा कऽ रखने रहबौ( छोटका केँ जाइत-जाइत कहलिऐ)।

पंकज कुमार प्रियांशु -जीवनक अनमोल क्षण


पंकज कुमार प्रियांशु
पिता- श्री विद्याधर झा, जन्म ०३.०२.१९८५
जीवनक अनमोल क्षण
जखन प्लस टू सँ इण्टर कएलाक बाद महाविद्यालयमे प्रवेश कएलौं तँ बहुत प्रयास कएलाक बाद दू गोट संगी बनल, ओहो समाज सेवा कार्यसँ जुड़लाक बाद। सुनबामे अबैत छल जे कॉलेज स्टूडेन्टकेँ कए गोट मित्र रहैत अछि- पुरुष मित्र आ महिला मित्र, दुनू। पुरुष मित्र तँ बुझएमे आएल मुदा महिला मित्र, ऐपर हमरा कनी आपत्ति छल, किए तँ हमरा बुझने पुरुष ओ महिला मात्र मित्रेटा बनि नै रहि सकैत अछि। महिला मित्र नै बनए एकरा प्रति सचेष्ट रहैत छलौं। जौं कोनो लड़कीसँ आमने-सामने गप करबाक स्थिति उत्पन्न भऽ जाइत छल तँ परेशान भऽ जाइत छलौं। बातपर हम सदिखन दृढ़ निश्चय रही जे जौं कहियो कोनो लड़कीसँ मित्रता भेल तँ ओकरा अपन जीवन-संगिनी बनबाक प्रस्ताव अवश्य देबै। मुदा तकरा लेल एकटा एह कियो होएबाक चाही जकर कल्पना हम कएने छी। आ हमर कल्पनामे जकर प्रतिबिम्ब छल, तकरामे एकमात्र विशेषताक आशा ई कएने रही जे ओ हमरा बूझि सकए। मुदा आजुक समए एह साथी भेटनाइ, ओहूमे हमरा एह सामान्य परिवारक लड़काकेँ, असम्भव बुझना जाइत छल। तँए दिशामे हमर कोनो विशेष प्रयास कहियो नै रहल।
समए बितैत रहल आ महाविद्यालयमे नामांकन लेलौं। हमर मनकेँ जकर इन्तजार छल से शाइत ओतहि आसपास हमर प्रतीक्षामे छल, ई बात बड्ड बादमे बुझएमे आएल। एक दिन कोनो विशेष कार्यवश स्टेशन जएबाक मौका भेटल, किछु अतिथि लोकनि आएल रहथि, हुनका लोकनिकेँ ट्रेनपर बैसेबाक लेल। जइ बॉगीमे हिनका लोकनिक आरक्षण छल आेइमे नीचाँबला दूटा बर्थ खाली रहै। ट्रेन खुजबामे अखन किछु समए छल। तँए हम ओइ खाली बर्थपर बैस रहलौं। किछु समैक बाद ओइ बॉगीमे दूटा लड़कीकेँ चढ़ैत देखलिऐ। आेइमे एकटा लड़की चिन्हार सन लागल। भगवानसँ प्रार्थना कएलौं जे कम-सँ-कम किछु क्षणक लेल ओ हमरा लग आबि बैसए। हमर मन तत्क्षण पूरा भऽ गेल। जखन करीबसँ हमर नजरि ओकरासँ मिलल तँ इच्छा भेल जे सभ मर्यादा तोड़ि एकटक ओकरे देखैत रहिऐ। मुदा से नै भऽ सकैत छल। हमरा लागल, ई तँ ओएह छथि जिनका हमर आत्मा एकीकार करए लेल व्याकुल छल। किछु देर बाद ट्रेन खुजल आ एक खुबसूरत पल हमरासँ दूर होइत गेल।
ओ हमरासँ दूर तँ चलि गेली मुदा हमर मन हमरा संगे नै छल। किछु दिन बाद विश्वविद्यालयक कोनो कार्यक्रममे पुनः भेँट भेल। तखन बुझएमे आएल जे ओ हमर विभागक बगलबला विभागक छात्रा छलीह। आब सप्ताहमे एक-दू दिन हुनकासँ भेँट भऽ जाइत छल। कोनो बात करबाक साहस तँ नै होइत छल मुदा जाधरि ओ सोझाँमे रहैत छलीह दुनियाँ बिसरबाक मन होइत छल। एक साल बाद ओकर सत्र समाप्त भऽ गेलै आ ओ अनचोक्के एक दिन शहरसँ दूर चलि गेली। बहुत किछु कहबाक रहए मुदा आब सभ मनेमे रहि गेल। तखन मनकेँ सांत्वना देबाक लेल तरह-तरहक बात अपने-आपसँ करए लगलौं। सोचलौं एतेक पैघ परिवारक लड़की हमरासँ दोस्ती किए करत? एतेक सुन्दर नयनाभिराम लड़कीक की पहिनेसँ कोनो दोस्त नै हेतै जकरा ओ दोस्तसँ बेसी आर किछु मानैत हएत। एहने सभ विचारसँ मनकेँ बुझबाक प्रयास करैत छलौं, मुदा आगू जा कए हमर ई सभ विचार असत्य भेल।

धीरे-धीरे हम अपन कार्यमे लागि गेलौं मुदा ओ मनमोहिनी चेहरा हमरा सामनेसँ कहियो नै हटल। तीन-चारि मासक बाद संयोगसँ ओइ विभागमे जेबाक मौका लागल। ओतए सामान्य प्रयासक बाद हमरा ओकर नम्बर सेहो भेट गेल मुदा बात करबाक हिम्मति नै जुटा सकलौं। संयोगसँ ओइ विभागमे कोनो विशेष कार्यक्रमक आयोजन छल। हम कार्यक्रमक जानकारी देबए लेल हुनका फोन कएल। बहुत बेसी नै, दू-चारि मिनट गप भेल। जखन ओ दोबारा भागलपुर अएलीह तँ लगभग एक घंटा समए बितेबाक मौका भेटल। ओइ बीचमे एक-दू बेर हुनक मोबाइलपर फोनो आएल, जइमे आधा घंटा लगभग ओ व्यस्त रहलीह। हमरा ई पक्का बुझा गेल जे हुनक पहिनेसँ कोनो मित्र छल, कोन प्रकारक से नै बूझि सकलौं।
ओ जखन वापस चलि गेली तँ हुनका लए परेशान रहए लगलौं। ओना आब फोनपर बातचीतक सिलसिला शुरू भऽ गेल छल। तैयो हमर मन हुनका प्रति एतेक आकृष्ट भऽ गेल छल जे एक दिन हुनका बिना बितेनाइ मोश्किल भऽ गेल छल। परोक्ष रूपसँ अपन मोनक दशा हुनकासँ गपशपक क्रममे बता दइ छलियनि। हमरा आस्ते-आस्ते एह लागए लागल जे शाइत ओहो हमरासँ प्रेम करैत छथि।शाइत ओ पहिने हमरा दिससँ पहलक आशा कएने छलीह। लगभग दू मासक बाद एहेन मौका लागल जे हम डराइत-डराइत अपन मनक बात कहि देलियनि। दू दिन बाद हमरा जबाब भेटल। जबाब अनुकूल छल। आब तँ हमरा लागए लागल जे हमर जिन्दगीक सभसँ बहुमूल्य वस्तु हमरा भेट गेल।
विश्वास नै होइत अछि मुदा ई सत्य अछि जे आइ ओ हमर जीवन संगिनीक रूपमे संग दऽ रहल छथि। आ एक आदर्श गृहिणीक अपन जिम्मेदारी सम्हारि रहल छथि। ईश्वरकेँ धन्यवाद दैत छियनि जे हमरा एक एहेन जीवन साथी प्रदान कएलनि जे हमर जीवनक क्षण-क्षणकेँ अमृत समान पवित्र आ विशिष्ट बना देने छथि।

किशन कारीगर - दाम-दिगर


किशन कारीगर

 दाम-दिगर

टुनटुन राम टनटनाइत बाजल- ‘कहू तँ एहनो कहीं दाम दिगर भेलैए जे दोसर पक्षबलाकेँ तँ दामे सुनि कऽ चक्करघूमी लागि जाइत छै। हे बाबा बैजनाथ, अहीं कनी नीक मति दियौ एहेन दाम-दिगर केनिहार सभकेँ।’
एतबा सुनितै बमकेसर झा बमकैत बजलाह- ‘आइँ रौ टुनटुनमा, हम अपना बेटाक दाम-दिगर कए रहल छी तँ ऐमे तोहर अत्मा किए खहरि रहल छौ।’
ताबै फेरसँ टुनटुन राम जोरसँ बाजल- ‘अहीं कहू ने, अत्मा केना नै खहरत। हम जे अपना बेटा बच्चा रामकेँ संस्कृतसँ इंटरमे नाओं लिखबैत रही तँ अहाँ कतेक उछन्नर केने रही। मुदा तैयो ओ नीक नम्बरसँ पास केलक। आब हम ओकरा फूलदेवी कॉलेज अंधराठाढ़ीमे संस्कृतसँ बी.ए.मे नाओं लिखा देलिऐ।’
ई सुनि बमकेसर झा तामसे अघोर भऽ बमकैत बजलाह- ‘रौ टुनटुनमा,ँू साफ साफ कहि दे ने जे हमरा बेटाक दाम-दिगरमे बिना कोनो भंगठी लगौने तों नै मानबेँ।’
दुनू गोटेमे एतबाक कहाकही होइते रहै आकि‍ पिपराघाटसँ पएरे-पएरे धरफराएल हम अप्पन गाम मंगरौना चलि अबैत रही। दरभंगासँ बड़ी लाइनक टेन पकड़ि राजनगर उतरल रही। ओतएसँ बस पकड़ि कहुना कऽ पिपराघाट एलौं, मुदा ओतए रिक्शाबला नै भेटल तही द्वारे पएरे-पएरे गाम जाइत रही। मुदा जहाँ गनौली गाछी लग एलौं तँ टुनटुन आ बमकेसरकेँ कहा-कही होइत देखलिऐ। उत्सुकता भेल जे दाम-दिगर कोन चिड़ैक नाओं छि‍ऐ से बूझिए लिऐ। मोन भेल जे एखने टुनटुनमसँ छि लै छि‍ऐ जे कथिक दाम-दिगरक फरिछौटमे अहाँ दुनू गोटे ओझराएल छी, मुदा बमकेसर झाक बमकी आ टुनटुनक टनटनी देखि‍ तँ हमर अकिले हेरा गेल अओर  हिम्मत जबाब दए देलक। सोचलौं जे गामपर जाइत छी तँ ओतए ठक्कनसँ प्रसंगमे सभटा गप-सप्‍प भए जाएत।
गामपर आबि कऽ सभसँ प्रणाम-पाति भेल, तेकरा बाद नहा सोना कऽ हम ठक्कनक भाँजमे भगवती स्थान दिस बिदा भेलौं। मुदा कियो कहलक जे ठक्कन तँ सतबिगही पोखरि दिस भेटत। हुनकर नामेटा ठक्कन रहनि‍ मुदा ओ बड्ड मातृभाषानुरागी रहथि।‍ कहियो गाम जाइ तँ हुनकेसँ मैथिलीमे भरि मोन गप-सप्‍प करी। भिनसुरका पहर रहै, हम बान्हे बान्हे गामक हाइ स्कूल दिस बिदा भेलौं जे कहीं रस्तेमे भेँट भऽ जाथि‍। मुदा ठक्कन महराज कतौ नै भेटलाह तँ बाधे-बाधे सतबिगही पोखरि लग एलौं। दूरेसँ देखलिऐ जे ठक्कन आ परमानन दुनू गोटे गप करैत चलि अबैत रहए, अवाज हम साफ-साफ सुनैत रही। ठक्कन बाजल- आइँ हौ भैया, ई कह तँ अमीनो साहेबकेँ जे ने से रहैत छन्हि। कहू तँ, ततेक दाम-दिगर कहैत छथि‍न जे घटककेँ घटघटी आ घुमरी धए लै छै। बेसी दाम भेटबाक लोभमे पारामेडिकलबला लड़काकेँ एम.बी.बी.एस कहि रहल छथि‍न। कहऽ, ई अन्याय नै तँ आर की छी।’
परमानन खैनी चुना कऽ पट पट बाजल- ‘रौ ठक्कना, तोरो तँ गजबे हाल छौ। अमीन साहेब अपना बेटाक दाम दिगर कए रहल छथि तइसँ तोरा।’
ताबै ठक्कन बाजल- ‘हमरा तँ किछु नै तोहँए कहऽ ने। अपना चैनो उड़लपर २ लाख रूपैया गना लेलहक आ हमर मोल जोल करबा कालमे तोरा दिल्ली कमाइसँ फुरसत नै रहऽ। हौ भैया तेहेन ठकान ठकेलौं से की कहिअ। हम बिपैतमे रही आ तूँ अमीन साहेबक चमचागिरीमे लागल रहऽ।’
परमानन बाजल- ‘आसते बाज रौ ठक्कन, जँ कही अमीन सहएबक बेटाक दाम दिगर भंगठलै तँ कोनो ठीक नै। ओ हमरा जमीनक दू चारि जरी हेरा-फेरी कए देताह आ तोरो चारि सटकन दऽ देथुन।’
ठक्कन बाजल- ‘हम कोन हुनकर तील धारने छि‍यनि‍। तूँ धारने छहक तँ तोरा डर होइ छह हम तँ नै मानबनि,‍ सोहाइ लाठी हमहूँ बजाइरे देबनि‍ की।’
दुनू गोटे एतबाक गपमे ओझराएल रहए, मुदा परमानन हमरा दूरेसँ अबैत देखलक तँ बाजल- ‘रौ ठक्कन, रस्ता पेरा चुपेचाप बाज ने। देखै नै छिही जे मीडियाबला सेहो एखने धरफराएल अछि। तूँ तेहेन भंगठीबला गप बाजि देलही से डरे झारा सेहो सटैक गेल।’
ताबै हम लगमे पहुँचि कऽ दुनू गोटेकेँ प्रणाम कहलियनि‍। हमरा देखि‍ ठक्कन अकचकाइत बजला- ‘किशन जी, कहू समाचार की? आइ भोला रामक रिक्शा नै भेटल जे पएर-पएरे आबि रहल छी। हम बजलौं- ‘सएह बुझियौ, मुदा ई कहू जे अहाँ सभ कथिक दाम-दिगरक फरिछौटमे लागल छलौं।’
एतबामे परमानन  बजलाह- ‘जाउ अखन हम सभ पोखरि दिससँ आबि रहल छी जँ बेसी बुझबाक हुएअ तँ साँझखिन ठीक पाँच बजे अमीन साहेबक दरबज्जापर चलि आएब।’
ठीक समैपर ५ बजे हम अमीन साहेबक दरबज्जा दिस बिदा भेलौं। ओतए लोक सभ घूड़ तपैत गप-सरक्का करैत छल। टुनटुन सेहो ओतए बैसल। ओ पुछलक- ‘कहू अमीन सहएब, मोन माफिक दाम भेटल की अहाँ पछुआएले छी।’
एतबामे परमानन फनकैत बाजल- ‘हौ टुनटुन भैया, बमकेसर संगे पटरी खेलकह तँ आब ऐठाम दाम दिगर भंगठबैक फेरमे आएल छह की नै।
-रौ परमानन, तो तँ दोसरे गप बूझि गेलही।
ताबै चौक दिससँ धनसेठ धरफराइल आएल आ बाजल यौ अमीन बाबा हमरो दाम-दिगर करा दिअ ने। ई सुनि अकचकाइत घूरन अमीन ठोर पट-पटबैत तमसाइत बजलाह- ‘मर बँहि तूँ किए हरबड़ाएल छैं रौ। हमरा तँ अपने बेटाक दाम दिगर भंगठि रहल अछि आ तूँ ‘हरबरी बि‍आह कनपटी सेनुर’ करैमे लागल छैं। ओ बाजल- ‘बाबा हम छी धनसेठ, आइए पूनासँ गाम आबि रहल छी। –-मर बहिं, मुरूख चपाट तोरा कहने रहिऐ जे संस्कृतसँ मध्यमा कए ले तँ से नै केलही। कह तँ ठक्कना सी.एम साइंस कॉलेजसँ इंटर केने अछि ओकरा कियो पूछनाहार नै भेटलै तोरा के पुछतौ रौ।
सेठ महासेठ आ धनसेठ खूम गरीबक धीया-पुता तइ द्वारे नान्हिटामे परदेश कमाइ लेल चलि गेल रहए। तीनू भाँइमे सभसँ छोट धनसेठ कनी पढ़लो रहए, ओ कनी साहस कए बाजल- ‘यौ बाबा, हम पूणेमे ओपनसँ मैटीक पास कए कऽ आब इंटरमे नाओं लिखा लेलौं। ई सुनि अमीन सहएबक दिमाग गरम भऽ गेलनि‍, ओ बजलाह- ‘रौ परमानन ई ओपेन-फोपेन की होइ छै रौ। आइ तँ धनसेठो नहिए मानत।’
ताबै ठक्कन बाजल- ‘कक्का, पत्राचार कोर्सकेँ ओपेन कहल जाइ छै। अहूँ नाओं लिखा लिअ ने। ई सुनि सभ गोटे भभा भभा हँसए लागल मुदा अमीन सहएब तामसे अघोर भेल तमसा कऽ बजलाह, -रौ उकपाति सभ, हमर देह जरि रहल अछि अओर तूँ सभ हँसी ठिठोलामे लागल छैंह। टुनटुन बाजल- ‘कक्का, हम तँ कहैत छी जे दाम दिगरक परथे हटा दिअ ने, नै दाम दिगर हेतै ने एतेक सोचबाक काज। ताबै केम्हरोसँ बमकेसर झा घुमैत-घुमैत अमीन सहएब ऐठाम पहुँचलाह। ओहीठाम टुनटुनकेँ देखि‍ बमकैत बजलाह- ‘बुझलौं की अमीन सहएब, टुनटुन द्वारे अकच्छ भेल छी। ई सुनि ठक्कन बाजल- ‘अपने करतबे ने अकच्छ छी। अहाँ कम्पाउण्डर बेटाकेँ प्रैक्टीसनर डागडर कहि लोककेँ ठकि रहल छि‍ऐ, तइ द्वारे तँ घटक सभ घूमि रहल छथि, तँ ऐमे टुनटुन भैयाक कोन दोख।’
अमीन सहेब पानक पीक फेकि बजलाह- ‘मर तोरी कऽ, रौ ठक्कना, आबो सुखचेनसँ गप सुनए दे ने, की भेल औ बमकेसरबाबू। अमीन सहेब इशारा कऽ बजलाह। बमकेसर टुनटुनसँ भेल कहा-कही कहलखिन। अमीनो सहएब अपन दुखरा सुनौलनि। सभटा गप सुनि टुनटुन बाजल- ‘दाम दिगरक चलेनमे गरीब लोक मारल जा रहल अछि। ओ कतएसँ लड़काबला सभकेँ एतेक फरमाइसी पुराओत। बेटीक बि‍आह तँ सभ गोटेक छन्‍हि‍। हमरो अहँूकेँ, समाजक सभ लोककेँ। अहीं दुनू गोटे निसाफ कहू। बमकेसर बजलाह- ‘तूँ ई तँ सोलहो आना सच्च गप बजलह। कि औ अमीन सहएब अहाँक की विचार।’
अमीन सहएब बजलाह- ‘टुनटुन ठीके कहि रहल अछि, हमरो यएह विचार जे लेब देबक प्रथा हटा देल जाए तँ अति उत्तम। जेकरा जे जुड़तै से देतै, मुदा कोनो तरहक फरमाइस केनाइ उचित नै।’
हम ई सभटा गप बान्हेपरसँ ठाढ़ भेल सुनैत रही। लगमे जा कऽ सभ गोटेकेँ प्रणाम कहैत ठक्कनसँ पुछलौं- ‘दाम-दिगर की होइ छै कनी अहीं बुजहा दिअ ने।’
एतबाकमे टुनटुन मुस्की मारैत बाजल- ‘कहू तँ, इहो मीडियाबला भऽ कऽ अनहराएल लोक जकाँ बजैत छथि, अमीन सहरब कनी अहीं बुझहा दियौन हिनका। की सभ गोटे ठहक्का मारि हँसए लगलाह। अमीन सहेब हाँ हाँ कऽ खीखि‍याइत हँसैत बजलाह- ‘बच्चा, अखन अहाँ काँच कुमार छी, तँए जहिया अपने बिकाएब तँ अहँू बुझिए जेबै जे केकरा कहै छै दाम-दिगर।’

शंभु नाथ झा ‘वत्स’ -अतीतक घटना/ सपना/ कोशीक प्रलंकारी बाढ़िमे भाँसल एकटा लड़कीक सत्य कथा


शंभु नाथ झा वत्स
अतीतक घटना/ सपना/ कोशीक प्रलंकारी बाढ़िमे भाँसल एकटा लड़कीक सत्य कथा      

मनोरमा आइ उठैमे देर कऽ देलक। आइ आँखि खुजिए नै रहल छलै। देबारक घड़ीपर नजरि गेलै। साढ़े छ बजि गेल। हड़बड़ाइत मनोरमा नल लग जाए आँखिमे पानिक छिटा मारलक। झटसँ पेस्ट आ ब्रश लऽ कए मुँह धोअए लागल। तावत रजनीशक अवाज सुनाए पड़लै- मनोरमा, चाह...।
आँए। रजनीश पहिनहिए उठि गेल छल।
फेर रजनीशक आवाज होइ छै।
-हे ऐठाम टेबुलपर चाह धरि देलौंहेँ।
मनोरमा मुँह-हाथ धोए कुरूड़ कऽ कमरामे प्रवेश करै छथि आकि रजनीश तैयार भऽ कऽ बाहर निकलि कऽ कहलक- हम जा रहल छी। हमर बस छूटि जाएत। अहाँ उठैमे देर कए देलौं- रजनीश बाजल।
 -नाश्ता कऽ लिअ, बना दैत छी।-मनोरमा बजलीह।
 -हम नास्ता बना कऽ खा लेलौं। अहूँ लेल धऽ देने छी।
 रजनीश बाजिते-बाजिते बाहर भऽ गेल।
 मनोरमा सकपका गेलीह। आइ हमरा की भऽ गेल छल। आँखिए नै खुजि रहल छल। रजनीश कखन उठि कऽ सभ काजसँ निवृत्त भऽ गेल। आ अपनहिसँ चाह सेहो बना लेलक आ नाश्ता सेहो? हमरा नै उठौलक। कत्तौ मोनमे दुःख तँ नै भऽ गेलैए। नै दुःख तँ आइ धरि नै केलक। हमहूँ रजनीशकेँ खुश करबा लेल कोनो कसर नै राखलौं। मुदा आइ की भऽ गेल छल जे उठैमे देरी भऽ गेल। हँ रातिमे सपना देखलौं। सपना भोरे-भोर धरि देखलौं। तँ उठबामे देर भऽ गेल। रजनीशक स्कूल दूर पड़ैत छैक। तेँ रोज साढ़े पाँच बजे उठि जाइ छै। हमरो निन्न साढ़े पाँचसँ पहिने टूटि जाइत छल। मुदा आइ हमरा की भऽ गेल छल जे आँखिए नै खुजल। रजनीश हमरा उठएबो नै केलक।
मनोरमा रातुक सपनाक स्मरण कऽ अतीतमे चलि गेलीह। महाकाल रात्रि छल। कुशहा बान्ह टूटि गेलै। कोशी माए रोद्र रूप धारण कऽ भयानक गर्जन करैत गामक-गाम अपना उदरमे समाबए लगलीह। कतौक नारी-पुरुषक सुतलेमे प्राण पखेरू उड़ि गेलै। मरल बच्चा-माल-मवेशी भाँसि-भाँसि कऽ बहै लागल। सुपौल, मधेपुरा, सहरसाक किछु भाग आ पूर्णियाँ आ अररिया जिलाक पश्चिम भाग सेहो डूमि‍ गेल। दू मंजिला मकान सभ तँ कतोके उलटि गेल। फूस घरक कथे कोन। त्रिवेणीगंज बाजार, मुरलीगंज बाजार तँ बर्बाद भऽ गेल। महाप्रलयकालीन धारा भऽ जखन कोशीक धारा दक्खिन दि‍सि‍ बढ़ल तँ गाम-घर, बाग-बगान सभटा नष्ट भ्रष्ट भऽ गेलै। विशाल-विशाल गाछ-बिरीछ सभ धराशायी भऽ गेलै। चारू दि‍सि‍ पानि-पानि नजरि आबए। कतौ-कतौ बाँस भरि पानि। पक्काक मकानपर बचल-खुचल आदमी सभ आश्रय लेलक।
मनुक्खोमे जे राक्षसी प्रवृतिक मनुख छल, सहायताक ढ़ोंग रचि-रचि धन लोभसँ ग्रस्त भऽ महा-अनर्थ कार्य केलक। जइ गाममे पानि पहुँचैमे देर भेलै तइ गामक लोक सभ आशामे, जे आब पानि घटि जेतै, लोभसँ गाम नै छोड़लक। मुदा अओर पानि बढ़िए गेलै।
जिनका सभकेँ पक्काक मकान छलै से सभ अपन-अपन टाका गहना जेवर लऽ कऽ मकानक छतपर पहुँचि गेल। तीन-चारि दिन बीति गेलै। भोजनक समस्या। बच्चा सबहक प्राण निकलए लागल। सभटा अनाज, चूल्हा-चौका, जारनि आदि तँ नीचेमे छलै। सभटा जलमग्न छलै, जिनका हाथमे मोबाइल फोन छल ओ अपन सर-कुटुमकेँ सूचना दऽ देलक। मुदा सरो-कुटुमकेँ किछु नै फुरन्हि। बल-कल तेज धारमे किनको हेलए केर साहस नै होइन्‍हि।
एम्हर लूटे खसोटे केर मोन बला सभ नाह लऽ कऽ बचाबए केर स्वांग रचि नाहपर चढ़ा कऽ माँझ धारमे आबि सभटा माल-पत्तर गहना जेवर छीनि कए पानिमे धकेल दैत छलए।
केन्द्र सरकार आ राज्य सरकारकेँ त्राहिमाम् संदेश जखन भेटलै तखन जा कऽ फौज केर नाह आएल। ऊपरसँ हेलीकॉप्टरसँ बिस्कुट आ भोजन सामग्री पहुँचाएल गेल। सहायता शिविर स्थापित भेल।
ई काल रात्रि १८ अगस्त २००८ केँ आएल छल। मनोरमा सेहो अपन परिवारक संग अपन मकान केर छतपर छलि। कतेक दिन बीति गेल छल। चारू दिस पानिए पानि। कत्तो भागए केर रास्ता नै। उपरसँ झमाझम बरखा सेहो बरसै छल। भूख प्याससँ बाँचब कठिन भऽ गेल छलै। ताबत एकटा नाह लऽ कऽ तीन-चारि आदमी आबि नाहपर चढ़ा लेलक। किंतु माँझ धारमे जाए सभटा गहना जेवर टाका छीनि कऽ सभकेँ लाठीसँ मारि पानिमे धकिया देलक।
मनोरमा सेहो धक्का खाए पानिमे खसि ऊब-डूब करए लगलीह। ओ बेहोश भऽ भाँसैत-भाँसैत एक किनार लागि गेलीह।
मनोरमाक आँखि खुजलै- होशमे अएलीह तँ अपनाकेँ राहत शिविरमे पओलीह। राहत शिविरमे अन्यान्यो सबहक डॉक्टरक उपचार भऽ रहल छलै। मनोरमा जखन दूइ चारि दिनक बाद स्वस्थ भेलीह तँ डॉक्टर आ राहत शिविरक व्यवस्थापक मनोरमाक निर्देशसँ ओकर सूचना ममहर भेजवा देलकै।
मनोरमाक पिता अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक छलाह। मनोरमाक जेठ भाए युगेश कृष्णाष्टमी पूजामे गाम आएल छल। युगेश कलकत्तामे मेडिकल पढ़ि रहल छलै। मनोरमाक बि‍आहक कथा लागि गेल छलै युगेशेक साथी धर्मानन्दसँ। अगला माघ-फागुन मासमे बि‍आह होमए बला छलै। मनोरमा सेहो बी.ए. छलीह। दरवज्जेपर कृष्णाष्टमी पूजा धूम-धामसँ हरेक साल मनाएल जाइत छलै। सभ भगवानक मूर्त्ति सभ बनि कऽ तैयार छलै। पूजाक व्यवस्था जोर-शोरसँ भऽ रहल छलै ताबते ई महाप्रलयक घटना घटित भऽ गेल। माम एक छोट छिन शहरमे शिक्षकक नोकरी करए छलनि। मनोरमाक सातम आठम दिन ममहरमे रहब भेल छलै। मामीक व्यवहार मनोरमाकेँ नीक नै बुझा रहल छलै। मामी एकांतमे मामसँ कहथिन- एकरा माथपर किए बैसा लेलिऐ। आगाँ किछु सोचबो करै छिऐ। एकर बियाहो करबै पड़त। एक दिन मनोरमा मामीक मुँहसँ मामसँ ई कहैत सुनि लेलक। मनोरमा चिंतित भऽ गेलीह। बेर-बेर मामीक तानासँ अकच्छ भऽ गेल छलीह। मनोरमा शहरक मोहल्लामे घुमि कऽ सम्पर्क कऽ कऽ छोट-छोट नेना सबहक ट्यूशन करए लगलीह। मामो ओतए पूर्वसँ आवागमन रहबे करै तँए मुहल्लाक लोग सभ मनोरमाकेँ चिन्हते रहै तेँ ट्यूशन भेटैमे भाङ्गठ नै भेलै।
एक दिन रघुवीर जे सम्बन्धमे ममियौत छलै मनोरमासँ कहलखि‍न- बहिन कोनो कान्वेन्ट धऽ लैतिए तँ बड्ड नीक होइतौ।
मनोरमा बजलीह- भाए। हमर सार्टिफिकेट तँ घरेमे पानिमे नष्ट भऽ गेल। अहाँ भाए मदति कऽ दिअ। सहरसा कॉलेजसँ प्रिंसिपल साहेबसँ आवेदन अग्रसारित कराए मधेपुरा यूनिवर्सीटीसँ द्वितीयक लब्धांक पत्र सभ मंगा दिअ। हे भाए हमर सन अभागल केर किछु मददि कऽ दिअ। हमरा किछु नै सूझि रहल अछि। हम अनाथ छी।-  कहि कऽ मनोरमा फफकि-फफकि कानए लगलीह। रघुवीर सान्त्वना दऽ चुप करौलक। रजनीशकेँ हाल-फिलहालमे सेंट्रल स्कूलमे नोकरी भेटल छलै। ओ छुट्टीमे अपन शहर आएल छल। रघुवीरक संग एक दिन रजनीश बाजार करएले जा रहल छल। मनोरमा सेहो किछु सहेली संग बाजार घूमि रहल छलीह। रजनीश केर नजरि जखन मनोरमापर पड़ल तँ रूप-लावण्य देखि‍ ओ भाव विह्वल भऽ गेल। ओ रघुवीरसँ प्रश्न कएलक- रघुवीर, ई नवयुवती के थिक?  
नजरि हटिए नै रहल छलैक।
-हमरे पिसियौत बहिन थिकीह। बाढ़िमे सभ किछु बर्बाद भऽ गेलैए। भाए, माए, पिताजी केर कोनो पता नै छै।- रघुवीर सकल वृतांत कहि सुनौलक।
रजनीश दुर्घटनाकेँ सुनि व्यथित भऽ गेल। ओ मोने-मोन विचारै लागल जे एकर बि‍आह नीक घरमे होएबाक चाही। एह शिक्षित सुन्दरि जइ घर जएतीह, ओ घर स्वर्ग भऽ जेतै। प्राकृतिक विपदासँ एह उत्तम कुल शील वाली कन्या अनाथ भऽ गेल अछि। रजनीश विचार मग्न रघुवीरक संग आगाँ बढ़ल जा रहल छल।
ताबत पाछाँसँ मधुर शब्द सुनाए पड़लै -रघुवीर भाए। ई देखू विद्या विहार कान्वेन्टमे एकटा महिला शिक्षक केर विज्ञापन छै। मनोरमा एकटा न्यूज पेपर देखइत बजलीह।
-बड्ड नीक। आवेदन कऽ दियौ।- रघुवीर बाजल। 
-कतेक योग्यता अछि।- रजनीश हठाते पुछि देलक।
-बी.ए. संस्कृत आनर्स फर्स्ट क्लास।- मनोरमा सकपकाइत बजलीह।
-अहा हा! तखन तँ अहाँ कऽ निश्चिते भऽ जाएत।-रजनीश बाजल।
तरहे गप्प सप्प करैत घर घुरि सभ आबि गेल। रजनीश केर मोनमे मनोरमा बैस गेल। रजनीश एक दिन प्रसंगमे माएसँ कहि देलक। -माए हम कमाबैत छी, लेल हम आदर्श बि‍आह करब आ एहेन लड़कीसँ जे कुलीन हुअए आ परिवार जनक सेवा कऽ सकए। सभ परिवार जनकेँ मनोरमा पसिन्न भऽ गेलीह, खास कऽ रजनीशक मोन राखए लेल।
बि‍आह कए रजनीश मनोरमाकेँ लऽ कऽ शहर आबि गेल। गर्मीक समए, अप्रैल-मइ मास। रजनीशकेँ सबेरे तैयार भऽ नाश्ता कऽ स्कूल जाए पड़ैत छलै। बि‍आह कऽ शहर आएब पन्द्रह-बीसे दिन लगधग भेल छलै। दुनोक बीच अगाध प्रेम छलै। मनोरमा नित भिनसरे साढ़े चारिये बजे उठि कऽ चाह बनाबैत, दुनू गोटे संगहि पीबै छल। आ नास्ता बनाए रजनीशकेँ खुआ प्रेमसँ बिदा करै छलीह। मुदा आइ अतीतक घटनाक सपना देखैत भोरमे आँखिए नै खुजलै। तइ लेल रजनीश अपनहिसँ सभ काम कऽ लेलक आ फेर अपन स्कूल चलि गेल।