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Friday, July 20, 2012

सूदि‍ भरना :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



बालपनमे लागल चोट जहि‍ना अधवेशू वा बुढ़ाड़ीमे उपकि‍ जाइत तहि‍ना डोमीकाकाकेँ बेटी बि‍आहक चोट मास दि‍नक पछाति‍ उपकलनि‍। रोगाएल अवस्‍थामे जख्‍न कि‍यो जि‍नगी-मृत्‍युक मचकीपर झुलए लगैत तखन तहि‍ना धर्मराजक दरवार लगैत तहि‍ना हुअए लगलै। नि‍ष्‍पक्ष समीक्षक जहि‍ना साहि‍त्‍यक कोण-कोणक समीक्षा करैत तहि‍ना डोमीकाका सेहो करए लगलाह। अन्‍तो-अन्‍त अही ि‍नर्णएपर पहुँचलाह जे गाममे रहने जीवन-यापन नै कऽ पाएब तँए बि‍नु परदेश गेने जीब असंभव अछि‍। केना नै असंभव होएत? पाँच बीघा जमीनबला डोमीकाकाकेँ दू बीघा घर-घराड़ीसँ लऽ कऽ गाछी-बि‍रछी, खरहोरि‍मे बरदाएल बाकी तीन बीघा जोतसीम। समाजोक देखा-देखी आ कुटुमो-परि‍वारक स्‍तरक अनुकूल तँ करए पड़तनि‍। जहि‍ना धरमोक स्‍वरूप समयानुसार बदलि‍ जाइ छै तहि‍ना ने समाजोमे जे बेसी लाम-झामसँ बेटीक बि‍आह आ माए-बापक सराध करैत ओ समाजमे ओते ऊपर होइत। ततबे नै जइ समाजमे दोससँ बेसी दुश्‍मन रहैत तइ समाजमे ईहो पुरौनाइ तँ जरूरि‍ये होइत जे अनकासँ कि‍ मोर छी।

दलानक ओसारक दछि‍नबरि‍या चौकीपर चि‍त्त भेल पड़ल, दहि‍ना हाथ मोरि‍ दुनू आँखि‍पर लेने डोमीकाका परि‍वारक बदलैत स्‍वरूपपर आँखि‍ गड़ा सोचि‍ रहला अछि। मनमे उठलनि‍ गलती अपनो भेल। ई तँ नजरि‍पर आएल जे समाज आ कुटुम-परि‍वारक देखौंस करब जरूरी अछि‍ मुदा ई नै आबि‍ सकल जे ओहूमे पति‍आनी लगल अछि‍। एकठाम सभ समटल कहाँ छथि‍। भैयारि‍योमे तँ होइते अछि‍ जे संगे-संग जि‍नगी बनौनि‍हारि‍ पति‍औत बहि‍नक बीच एककेँ इंजीनि‍यर, डाॅक्‍टर संगी भेटैत तँ दोसरकेँ ऑफि‍सक कि‍रानी वा स्‍कूलक शि‍क्षक भेटैत अछि‍। भूल भेल, आगू दि‍स तकलौं मुदा पजरबािह आ पाछू दि‍स नै तकलौं। एकरा के उचि‍त नै कहत जे एक-ओद्रक बेटा-बेटीक बीच इमान-बेइमान बनि‍ जाउ। पाँच बीघा जमीन अछि‍ चारू भाए-बहि‍न हि‍स्‍साक संग पाँचम अपनो दुनू परानीक हेबे करत। जँ से नै हएत तँ अपन जि‍नगी अनाका हाथमे जेबे करत। मुदा गलती भेल, धड़फड़ी केने। तहूमे पत्नी आरो मन घोर कऽ देलनि‍। ई कहू जे अर्द्धांगि‍नी भऽ केहेन वि‍चार देलनि‍ जे ऐ गाममे कर्ज नै भेटत तँ हम नैहरसँ आनि‍ देब। एकटा मुर्गी जँ दसठाम हलाल हुअए तँ ओकरा की कहबै?
एक तँ ओहि‍ना परि‍वार महजालमे ओझराएल अछि‍ तइपर हमरा कि‍रतबे समाजक ऊपर आन समाजक कर्ज आबि‍ जाए, एहेन काज जीता-जि‍नगी नै करब। मुदा तइमे कनी औगताइ भेल। औगताइ ई भेल जे पच्‍चीस-तीस हजार रूपैये कट्ठाक चीज पाँचे हजार रूपैये भरना लगा देलि‍ऐ। मुदा बीतलकेँ बि‍सरबे नीक। जँ से नै करब तँ भूतलग्‍गू जकाँ अपन देह-हाथ अपने नोचए पड़त। फेर मन भरना जमीनपर घुमलनि‍। केना लोक पावनि‍-ति‍हारमे सेर-पसेरी लऽ खेतो भरना लगबैए आ बेचबो करैए। मनमे खैंझ उठलनि‍, कानूने बनने कि‍ सुथनी हएत जे आठ बर्खक पछाति‍ भरना जमीन घूमि‍ जाएत, मुदा होइ कि‍ अछि‍। ततबे कि‍अए, जहि‍ना महाजनीक सूदि‍केँ समीमे बान्‍हि‍ देल गेल जे दोबरसँ बेसी कहि‍यो ने हएत, तहि‍ना बैंकक कर्जकेँ कि‍अए ने बान्‍हल जाइए, जे ग्रामीण-दशा (गामक लोकक जि‍नगी) आगू मुँहे नै ससरि‍ पाछुए मुँहे ससरि‍ रहल अछि‍। जइठाम पढ़ाइ भऽ गेल अछि‍, लाखक इलाज (शरीरक) भऽ गेल अछि‍, लाखक घर बनि‍ रहल अछि‍ तइठाम, कि‍ उपाए अछि‍। हँ एते जरूर हेबाक चाही जे जखन सभ अपने छी तखन बीचमे इमान-बेइमान नै बनए। जहि‍ना बरसातक मासमे एक दि‍सुका पानि‍केँ दोसर दि‍सुका रोकि‍ तेसर दि‍सक रास्‍ता पकड़ैत तहि‍ना घीचा-तीरीमे डोमीकाकाक मन असथि‍र भेलनि‍। पड़ले-पड़ल पत्नीकेँ सोर पाड़लखि‍न।
आंगनक ओसारक शीतल पाटीपर बैसि‍ दायरानी बि‍आहक उनटा गि‍नगी करैत रहथि‍। फल्लांक करोध हरा गेलइ, ओकरा तँ कहब जरूरी अछि‍। जँ से नै कहबै तँ अनेरे ओ दस ठाम बाजत जे फल्‍लाँ करौछ राखि‍ लेलक। कोन चीज छी जखन एते खर्च भेबे कएल तखन एकटा करौछे कि‍ छी। जहि‍ना जि‍नगी बनबैमे जेहेन कठि‍न मेहनति‍ भेल रहैए तहि‍ना ने जि‍नगीयो ठाढ़ होइए। जँ से नै तँ लाखक जि‍नगी केना पाँच-दसमे हारि‍ मानत। फेर दायरानीक मनमे खुशी एलनि‍, अपना जँ बौको लागल तैयो बैहरी दादीकेँ नफे भेलनि‍।
टुटल चंगेरा लेलि‍यनि‍, नवका कीनि‍ कऽ देलि‍यनि‍। केना नै दि‍ति‍यनि‍ ओ थोड़े बुझलखि‍न जे हमरा चंगेरामे केरा-आम छोड़ि‍ दोसर चीज जाइबला नै अछि‍। ओना हमरो तँ काज चलि‍ऐ गेल भने पुरान गेल नव आएल से नीके भेल। पति‍क अवाज सुनि‍ ओसारेपर सँ एते जोरसँ बजलीह जे डोमीकाकाकेँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे लगमे नै कनी हटल छथि‍।
डोमीकाका लग तँ दायरानी काकी पहुँचि‍ गेली मुदा मनमे अपने घि‍रनी नचैत रहनि‍। एक चालि‍ चलि‍ जहि‍ना घि‍रनी वि‍श्रास लैत तहि‍ना काकीकेँ सेहो भेलनि‍। आँखि‍ उठा तकलनि‍ तँ देखलखि‍न जे ग्रीष्‍मकालीन घास-पात जकाँ कुम्‍हलाएल मुँह, जेठुआ गरेक मेघ जकाँ चि‍न्‍तासँ लादल आँखि‍, नि‍रजन वनमे हेराएल बटोही जकाँ देखि‍ मन सहमि‍ गेलनि‍। अपन कर्तव्‍यक एहसास भेलनि‍। पि‍यासल लेल जहि‍ना पानि, तबधल लेल पंखाक हवाक जरूरति‍ होइत तहि‍ना चि‍न्‍ताएल मनक लेल सेहो मीठ बोलक जरूरत होइत अछि‍। आँचरसँ ढबढबाएल पति‍क दुनू आँखि‍ पोछैत बजलीह-
एहेन सकल-सूरत कि‍अए बनौने छी?”
सि‍कीक वाण सदृश पत्नीक बोल डोमीकाकाक हृदैमे बोधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत बजलाह-
उपाये कि‍ अछि‍ जे.....?”
दायरानी- तखन?”
डोमीकाका- परदेश जाएब। दुनू बेटोकेँ नेने जाएब, नहि‍यो कमा कऽ देत पेट तँ पालत ने। जँ दसो हजार महीना कमाएब ते, एक बरखे नै दू बरखे, पाँचो बरखे ते खेत छोड़ाइये लेब।
दायरानी- तइ बीच?”
डोमीकाका- अहाँकेँ जाबे धरि‍‍ बरदास हएत ताबे धरि‍ रहब नै तँ भाएकेँ नैहर समाद पठा देबनि‍।
नैहरक नाओं सुनि‍ते दायरानी बजलीह-
अहाँ सभ जखन चलि‍ऐ जाएब तखन घरमे कोठि‍ये-भरली लऽ कऽ की करब। मसोमातक चुड़ी जकाँ कि‍अए ने ओकरो सभ फोड़ि‍-फोड़ि‍ कऽ फेकि‍ये देबइ।
पत्नीक बातकेँ डोमीकाका ताड़ि‍ गेलाह। कहलखि‍न-
हँसी-ठठा छोड़ू एहेन गरूगर समए केना टपब, से वि‍चार दि‍अ। आखि‍र अहूँ तँ अर्द्धांगि‍नि‍ये छी कि‍ने?”
पति‍क वि‍चार सुनि‍ वि‍चारवान पत्नी जकाँ दायरानी कहलखि‍न-
पच्‍चीस-तीस हजार रूपैयेक जमीन अछि‍। दस-बारह कट्ठा बेचि‍ लेब, भरना छूटि‍ जाएत। बुझबै जे तीन बीघा जोतसीम नै अढ़ाइये बीघा अछि‍।

अखाढ़क पहि‍ल बरखाक पहि‍ल बुन पड़लासँ जे जमीनक सुगंध नि‍कलैत ओहने सुगंध डोमीकाकाकेँ पत्नीक वि‍चारमे लगलनि‍। मुस्‍की दैत आँखि‍-पर-आँखि‍ गड़ा धन्‍यवाद देलखि‍न।
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