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Sunday, July 1, 2012

कर्ज :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल

कर्ज

जमीन नि‍लामीक नोटि‍श पाबि‍ बरीसलालक सभ आशा ओहि‍ना झड़ए लगल जहि‍ना वसन्‍तसँ पूर्व गाछक पतझर होइत वा फलसँ पहि‍ने फूल झड़ए लगैत अछि‍। हलसैत जि‍नगीक आशा देखि‍ बरीसलाल खेती लेल, बैंकसँ कर्ज लऽ बोरि‍ंग-दमकल करौलक। मुदा समैपर कर्ज अदा नै कए पाबि‍, जइले कर्ज लेलक सएह हाथसँ नि‍कलैत देखि‍ सोगसँ सोगाएल अखड़े चौकीपर पेटकान दऽ मने-मन सोचैत जे की करैत की भेल। साओनक मेघ जकाँ दुनू आँखि‍ नोरसँ ढबढबाएल।

बीसम शताब्‍दीक आठम दशकमे हरि‍त-क्रान्‍ति‍क हवा घुसकैत-घुसकैत गाम धरि‍ पहुँचल। नव हवाक सुगंध नाके-नाक खेत-खरि‍हानमे पहुँचल। गामक कि‍सानक सीमांकन शुरू भेल। ओना सीमांक नाम-मात्रेक भेल मुदा भेल तँ। नाम-मात्र एे लेल जे सैद्धान्‍ति‍क रूपमे तँ सीमांकनक रूप रेखाा तैयार भेल मुदा जमीनक ओझरी कँटहा बाँस जकाँ ओझराएल। कड़चीसँ बेसी काँट। एक-एक कड़चीमे सइयो काँट। सोरगर-मोटगर पाकल देखि‍ भलहि‍ं आरीसँ जड़ि‍ काटि‍ दि‍यौ मुदा झोझसँ नि‍कालब तँ असान नै। जइसँ बेवहारि‍क पक्ष कमजोर पड़ल।

चारि श्रेणीक अन्‍तर्गत कि‍सानकेँ राखल गेलनि‍। ढाइ एकड़सँ नि‍च्‍चा एक श्रेणी, चारि‍ एकड़सँ नि‍च्‍चा दोसर श्रेणी, दससँ नि‍च्‍चा तेसर आ तइसँ ऊपर चारि‍म। नि‍चला कि‍सानक लेल सरकारी खजाना खुजल। रंग-रंगक प्रोत्‍साहनक घोषणा भेल। सरकारी घोषणा तँए सभले भेल। मुदा बैंकक माध्‍यमसँ भेटत। जइ माध्‍यमसँ भेटत सएह नगण्‍य। एक दि‍स फौज जकाँ कि‍सान दोसर दि‍स जइठामसँ भेटत, सएह नै। मुदा तैयो गोटि‍ पंगरा तँ छलैहे। सरकारी सुवि‍धा सब्‍सि‍डीक रूपमे भेटत। तेकर कार्यालय भि‍न्न बनल। कि‍सानक बीच प्रोत्‍साहनक घोषणासँ नव जागरणक संचार भेल। गाम-गाममे भी.एल. डब्‍लूक माध्‍यमसँ काजक सूत्र तैयार भेल। आने कि‍सान जकाँ पाँचम कि‍सान बरि‍सालोक डेग बढ़ल। एक-ति‍हाइ सब्‍सि‍डी सुनि‍ केना ने बढ़ैत। जखने कि‍सानक हाथ पानि‍ आैत तखने चौमसि‍या खेती बारहमसि‍या बनि‍ जाएत। जखने बारहमसि‍या बनत तखने ने कि‍सान डारि‍-डारि‍ झूला लगा बारहमासा गाओत। नै तँ छह मासे, चौमासे ने गाओत। जे चौमास कि‍सानक बखारी छी, तेहीमे ने भाँग-धुथुर उपजैए।
वस्‍तुगत काज तँ नै मुदा चौरीसँ चौमास धरि‍क, चारि‍ गुणा उपजाक नक्‍शा तँ कि‍सानक मनमे बनबे कएल। बीघा-एकड़क हि‍साब भलहि‍ं अखनो धरि‍ नै फड़ि‍आएल मुदा-एकड़-हेक्‍टेयर तँ आबि‍ये गेल। कि‍छु एनए कि‍छु ओनए कऽ कि‍सान हि‍साब तँ बैसाइये लेलक।

अखन धरि‍क जे छोट आ मध्‍यम कि‍सान महाजनीक कर्जमे डूबल छल ओइमे पूँजीपति‍क प्रवेशक दुआर खुजल। कम सूदि‍क बात तँ आएल मुदा छअ मास पछाति‍ सूद मूड़ बनि‍ जाइत से एबे ने कएल। अखन धरि‍ सूदि‍क-सूदि‍ प्रथा नै छल से आएल। भलहि‍ं कतौ महाजन सप्पत खा केकरो घराड़ी लऽ लेने होइ आकि‍ कतौ सप्‍पत खा कर्जा डूमल होइ, ई अलग बात। आजुक दहेज ओते भारी नै छल जते माए-बापक सराध। ओना दहेजोक जड़ि‍ मजगूत बनि‍ रहल छल, कि‍एक तँ शहरक आमदनी गाम दि‍स आबए लगल छल।

गाममे छोट -सीमान्‍त-माध्‍यम- पैघ लगा कि‍सानोक संख्‍या बेसी मुदा बोनि‍हारक संख्‍यासँ कम अछि‍। ओना सभ गामक रूपो-रेखा एक रंग नहि‍ये अछि‍। कोनो गाम एहेन जइमे पाँच प्रति‍शतसँ कम जनसंख्‍या नवे-पनचानबे प्रति‍शत जमीन पकड़ने, तँ कोनो गाम एहेन जइमे दस पनरह-प्रति‍शतक अंतर। एहनो कि‍सान जि‍नका अपन जमीनक अता-पता नै बूझल तँ एहनो कि‍सान जे अपने सबतूर मि‍लि‍ खेती करैत। तइ संग एहनो जे खेतक आड़ि‍पर पहुँचि‍ जूति‍-भाँति‍ तँ लगबैत मुदा अपने हाथे कि‍छु नै करैत। गाछी-खरहोरि‍, बँसबाड़ि‍, घराड़ी लगा बरीसलालकेँ पाँच बीघा जमीन। दू बीघा बेख-बुनि‍यादि‍मे फँसल बाकी तीन बीघा जोतसीम। एकटा बड़द रखने। सफटैती कऽ खेती करैत। ओहू तीन बीघा जोतसीम जमीनमे तीन मेल। पनरह कट्ठा चौरीमे मलगुजारीक संग लगतो साले-साल डुमैत। मुदा छोड़ि‍यो केना देत, आखि‍र खेत तँ खेत छी। रौदी भेने ओहीमे ने उपजा होइ छै। बाकी सवा दू बीघा मध्‍यमसँ भीठ धरि‍। दसो कट्ठा भीठमे मरूआ, भदै-गदैरक संग कुरथी-तेबखा होइत। गहुमक खेती तँ आबि‍ गेल मुदा खेतीक लेल पानि‍ चाही। पटबैक साधन पोखरि‍, जइसँ करीनसँ कि‍छु अगल-बगलक खेती होइत। लोकक बीच ने पढ़बै-लि‍खबैक जि‍ज्ञासा रहै आ ने सुवि‍धा। गनल-गूथल वि‍द्यालय-महावि‍द्यालय। बरीसलालो दुनू बेटाकेँ गामक स्‍कूल धरि‍ पढ़ा‍ खेति‍एक काजमे लगौने। मि‍थि‍लाक कि‍सान खेतक ओहन प्रेमी बनल रहला जेहन पति‍व्रता नारी जे बाल वि‍धव होइतो प्रति‍ष्‍ठाकेँ कमलक माला बना गरदनि‍मे लटका हँसि‍ रहली अछि‍ तहि‍ना कि‍सानो। जँ से नै रहल छथि‍ तँ भागि‍-पड़ा अर्थशास्‍त्री बनि‍ कि‍अए अपन खेत-पथारकेँ सम्‍पति‍ नै बूझि‍ प्रति‍ष्‍ठाक वस्‍तु बूझि‍ रहल छथि‍। की ओहि‍ना खेतीकेँ उत्तम आ नोकरीकेँ मध्‍यमक वि‍चार देलनि‍। जँ एकरा मुहावरा-कहावत बना देखब तँ मिथि‍लाक चि‍न्‍तनधारा धरि‍ नै पहुँचि‍ पाएब। जइठाम खेतकेँ अपन अधि‍कारक वस्‍तु बूझि‍ अपना हाथक हथि‍हार बना अपन स्‍वतंत्रताकेँ अक्षुण्‍य रखैक वि‍चार सेहो देलनि‍। ई तँ अपन-अपन वि‍चार होइ छै जे कि‍यो हथि‍यारकेँ बम-बारूद बुझैत तँ कि‍यो हाथक यार माने प्रेमी बूझि‍ वि‍चारक बाट बनबैक वि‍चार व्‍यक्‍त करैत अछि‍। तहि‍ना अस्‍त्र–शस्‍त्र सेहो अछि‍।

मध्‍यम कि‍सान वा लघु कि‍सानक जीबैक जि‍नगी ब्‍लौटि‍ंग पेपर सदृश बनि‍ गेल छन्‍हि‍ जेकरामे लालो रोशनाइ सोंखैक शक्‍ति‍ छै आ करि‍यो रोशनाइक। बाढ़ि‍-रौदी एकैसम शताब्‍दीक ऊपज नै अदौसँ रहल अछि‍। भलहि‍ं कहि‍ सकै छी जे धार-धूड़क बान्‍ह-छान्‍ह दुआरे हुअए लगल अछि‍, भऽ सकै छै कतौ-होइत  हेतै, मुदा प्रश्न धारेक पानि‍क नै अछि‍। तहि‍ना रौदि‍यो रहल अछि‍। धारोक कटनी-खोंटनी कम नै अछि‍। मि‍थि‍लांचलकेँ कोसी-कमला तेखार कऽ दुब्‍बरसँ धोधि‍गर धरि‍ अछि‍। पानि‍क एक साधन भेल, दोसर बरखा भेल। ओहन-ओहन बरखा होइत रहल अछि‍ जे पनरह दि‍न हथि‍याक बरखाक ओरि‍यान कऽ कऽ पूर्वज रखैत छलाह। हथि‍या मात्र एक नै जेकरा बरखा ऋृतुक अंति‍म नक्षत्र कहि‍ टारि‍ देब। ओना पानि‍क कोनो ठेकान नै, माघोमे पाथर खसि‍ उपजल उपजाकेँ नाश करैत रहल अछि‍। अंति‍मक जन्‍म ताधरि‍ नै होइत जाधरि‍ आदि‍ नै होइत बरखा ऋृतुक आदि‍ आद्रा छी। तँए आदि‍ आद्रा अंत हस्‍त ई भेल बरखाक आँट-पेट। पूर्वज सभ स्‍पष्‍ट वि‍चार देने छथि‍ जे बरखाक कोनो बि‍सवास नै, कते हएत। १९७१ ई.मे बंगला देशक लड़ाइक लगभग सालो भरि‍ बरखा होइते रहल, ओहन-ओहन बरखा होइत रहल अछि‍ जइमे सएक-सए घर खसैत रहल अछि‍। घरमे दबल-बाल-वृद्ध, धन-सम्‍पति‍ नष्‍ट होइत रहल अछि‍ मुदा तैयो ब्‍लौटि‍ंग पेपर जकाँ सोखि‍ कि‍अए जीबैक बाट धेने आबि‍ रहल अछि‍। दुनि‍याँमे ने सााधकक कमी आ ने साधना भूमि‍क, मुदा मि‍थि‍लांचल श्रेष्‍ट कि‍अए? कतौक जाड़क साधना तँ कतौक तापक तप, जइमे तपि‍ तपस्‍या करैत, तँ कतौ पानि‍क सौभरी ऋृषि‍ बनि‍ करैत। मुदा मि‍थि‍लांचल साधनााक फुलवाड़ी लगा रखने अछि‍। ओइ फुलवारीक फूल सजबै छलीह सीता।
ने मि‍थि‍लाक भूमि‍ बदलल, आ ने बदलल ऋृतु ऋृतुराज, बदलि‍ रहल अछि‍ खाली बोतलक रस। घरक समस्‍या कहाँ? समस्‍या तँ तखन उठैत जखन रहैक घरसँ घर भाड़ा असुलैक ि‍वचार जगैत। गाछक नि‍च्‍चा सात-हाथ नौ हाथक घरमे जीवन-यापन कऽ वेद-पुराण सि‍रजलनि‍। की दुनि‍याँ देखि‍नि‍हार मि‍ि‍थलांचल छोड़ि‍ देखि‍ रहला अछि‍, जँ से नै तँ समस्‍याकेँ कोन रूपे देखलनि‍। यएह ने सरकारी योजना जहि‍ना कागजपर औषधालय बना साले-साल मरम्‍मतक नामपर योजना लुटाइत रहैत आ पान सालक बाद माटि‍पर खसा मलबा हटबैक खर्च होइत। खेतसँ उपजल खढ़, बाँस साबेक घर बना समस्‍याक समाधान करैत छलाह। ओ सभ अपन वि‍चारकेँ स्‍वतंत्र रखि‍ स्‍वतंत्र जीवन व्‍यतीत करैत छलाह। पढ़ै-लि‍खैक ओते समस्‍या नै, जेहन जि‍नगी रहत ततबे बुधि‍क ने जरूरत। बेसी भेलासँ तँ लोक छड़पि‍-छड़पि‍ अनको गाछक आम तोड़ए लगैत अछि‍। भलहि‍ं अपन पूर्वजक घराड़ीपर नढ़ि‍या कि‍अए ने भुकए, मुदा दुनि‍याँकेँ मातृभूमि‍ कहि‍ सेवारत् रहैत छी। ओही रूपक फूसघर बना जि‍नगीक गारंटी केने छलाह। अखुनका जकाँ नै जे एक दि‍स लग्‍गी  लगा भाँटा तोड़ैक बाट धेने छी आ दोसर दि‍स हजार-दस हजार जीबैबला ऋृषि‍-मुनि‍क दुहाइ दैत छी। एकैसम सदीमे कि‍यो अपनाकेँ अगि‍ला पीढि‍क नजरि‍क पुतली बना रहल छी। जहि‍ना बरखा, तहि‍ना जाड़ तहि‍ना रौद-ताप, बाल जीवनसँ लऽ कऽ वृद्ध तकक अनुभव कऽ अपन जि‍नगीकेँ असथि‍र बना नीक-नीक उमेर पबैत रहला अछि‍।
पश्न उठैत जे की एहेन वि‍चार मरि‍ गेल आकि‍ जीवि‍त अछि‍? ने मरल आ ने स्‍वस्‍थ भऽ जीवि‍त अछि‍। गाम-समाजमे लटपटाइत जीवि‍त जरूर अछि‍ मुदा.....। जीवि‍त ऐ रूपे अछि‍ जे अखनो खेतीकेँ उत्तम मानल जाइत अछि‍। कृषि‍ जि‍नगीकेँ थाहि‍ चलबैत अछि‍। तहूमे सामाजि‍क स्‍तरपर तँ आरो थाहल अछि‍। जँ जि‍नगीमे दोसराक जरूरत नै हुअए तँ ऐ सँ नीक जीवन ककरा कहबै। आजुक हवा भलहि‍ं जते जोर मारए मुदा हवा असथि‍र वस्‍तुकेँ कहाँ कि‍छु बि‍गाड़ि‍ पबैत अछि‍। अनभुआर धारमे ने नमहर-नमहर जलचरक भय रहै छै कि‍एक तँ धुमैत धारमे जे गहींर-गहींर मोइन खुना जाइ छै तइमे ने डुमैक डर, जँ से नै तँ डुमैक डर कतए। तहि‍ना ने धरति‍योक बीच अछि‍। जहि‍ना पानि‍मे गोहि‍, नकार आदि‍ रहैए तहि‍ना ने धरति‍योपर बाघ सि‍ंह, नाग बास करैए। थाहल जि‍नगीक अर्थ ई जे जँ तीन बीघा वा दू बीघा जमीनकेँ जँ समुचि‍त बेवस्‍था कऽ खेती कएल जाए तँ युगानुकूल मनुष्‍य बनब बड़ भारी नै। जि‍नगी तखन भारी बनैत अछि‍ जखन गरथाहमे जि‍नगी पड़ि‍ जाइत अछि‍। कि‍सानक जि‍नगीकेँ पंगु बना देल गेल अछि‍। जँ से नै तँ सरकारी बेवस्‍था कोन -कि‍सान हि‍तैषी- जि‍नगीक कोन जरूरति‍केँ पूरा नै कऽ पाबि‍ सकैए, मुदा नीको-नीको -दस बीघासँ ऊपरबला कि‍सान- परि‍वार ने अपना बेटाकेँ नीक शि‍क्षा दऽ पाबि‍ रहल अछि‍ आ ने जनमारा बेमारि‍क इलाज कऽ पाबि‍ रहल अछि‍। जहि‍ना सुति‍ उठि‍ सीता-राम, राधा-कृष्‍ण वा सतनामक नाम लेल जाइत तहि‍ना ने आब टाटा-पापा लैत उठै छी। मुदा कि‍ हम सभ नढ़रा मकैक सदृश जि‍नगी नै जीबै छी जे भोगार गाछ रहि‍तो अन्नक कतौ पता नै। कृषि‍ तँ आमक बगीचा वा खीराक लत्ती सदृश अछि‍। जहि‍ना गाछक पल्‍लवक मुँहसँ गि‍रहे-गि‍रहे पल्‍लव नि‍कालि‍ डारि‍ बनैत रहैए, खीरा लत्तीक मुँहसँ लत्ती बनि‍ फुलाइत-फड़ैत रहैए तहि‍ना ने जि‍नगि‍यो छी जे धरतीसँ जनमि‍ फुलाइत-फड़ैत वि‍सरजन करत। खेत तँ ओहन सम्‍पत्ति‍ छी जे जि‍नगीकेँ आगू-बढ़बैक शक्‍ति‍ रखैए। कतबो शक्‍ति‍शाली कि‍अए ने आगि‍ हुअए मुदा जँ ओइमे नव ज्‍वलनशील वस्‍तुक समागम नै हेतै, तँ कते काल ओ जीवि‍त रहि‍ सकैए। जाधरि‍ धार टपनि‍हार वा सरोवरमे स्‍नान केनि‍हारकेँ पानि‍क थाह नै लगि‍ जाएत ताधरि‍ धार टपब वा स्‍नान करब तँ अथाहे अछि‍। जाधरि‍ अथाह रहत ताधरि‍ शंका रहबे करत। जाधरि‍ आशंका रहत ताधरि‍ वि‍चार प्रभावित हेबे करत। मुदा एतेकक बावजूद हम कि‍अए.....? की हम नै जनै छी जे जाधरि‍ कृषि‍केँ सर्वांगि‍न वि‍कासक प्रक्रि‍या नै अपनौल जाएत ताधरि‍ नचारी-सोहर कते काल सोहनगर हएत। हर आदमी हर परि‍वारकेँ ठाढ़ भऽ चलैक प्रश्न अछि‍, नै कि‍ एक दोसराकेँ छि‍टकी मारि खसबैक।
पाँचटा कि‍सानक संग बरीसलाल सेहो बोरि‍ंग-दमकलक वि‍चारकेँ आगू बढ़ौलक। प्रखण्‍ड कार्यालयसँ फार्म लऽ बैंकमे आवेदन केलक। संगीक जरूरति‍ तँ पड़बे केलै कि‍एक तँ जि‍नगीमे पहि‍ल खेप प्रखण्‍ड कार्यालय आ बैंक पहुँचैक अवसर भेटलै। नव योजनाक काज बैंकमे आएल। ओना गामक आ गामक कि‍सानक हि‍साबे बैंकक संख्‍या दूधक डाढ़ि‍ये छल, मुदा छल तँ। बरीसलालक आवेदन स्‍वीकृति‍ करैत जमीनक बाैण्‍ड बना माइनर एरीगेशनकेँ काज करैक भार देलक। बैंक-कर्जक सूद शुरू भेल।
माइनर एरीगेशनक आँट-पेट छोट। एकाएक काजमे बढ़ोत्तरी भेल। ने काज करैक औजार अधि‍क आ ने करैबला। तँए ठीकेदारीक चलनि‍। तहूमे एक अनुमंडलक बीच एकटा कार्यालय। लेनि‍हार हजार हाथ देनि‍हार एक। मुदा तैयो बरीसलालक आदेश पत्रकेँ फाइलमे लगा देल गेल। एक-ति‍हाइ सब्‍सि‍‍डीक लेल सब्‍सि‍डी कार्यालयक जरूरत। सब्‍सि‍डी कार्यालय जि‍लाक अन्‍तर्गत। दौड़-बरहा करैत बरीसलालकेँ खर्चक संग-संग साल बीत गेल। बरसातमे एक तँ धसना धसैक डर दोसर लोक खेती कहि‍या करत। बोरि‍ंगक काज छोड़ि‍ बरीसलाल खेतीमे लगि‍ गेल। साल बीतल दोसर साल शुरू भेल। ताधरि‍ बैंकक कर्जक चक्रवृद्धि‍ ब्‍याजक दरसँ एते मोटा गेल जे सब्‍सि‍डी उधि‍या गेल।
दोसर साल शुरूहेसँ बरीसलाल काजक -वोरि‍ंग-दमकलक- पाछू पड़ि‍ गेल। आइ-काल्हि‍ करैत माइनरो-गरीगेशनक काज आ सब्‍सि‍डीयो ऑफि‍सक काज लटकले रहलै। चढ़ैत बैसाख -दोसर साल- बरीसलाल रघुनन्‍दनकेँ कहलक-
बौआ, छोड़ि‍ दहक। बोरि‍ंग नइ भेल तँ करजो तँ नहि‍ये भेल। बुझबै जे एते दि‍न घुमबे-फि‍रबे केलौं।

बैंकक प्रक्रि‍या रघुनन्‍दनकेँ बूझल। बरीसलालक बात सुनि‍ अवाक् भऽ गेल। मन कलपि‍ उठलै बाप रे, सूदि‍-मूड़ लदा गेलै, कोट-कचहरीक मुद्दा बनि‍ गेलै। दोख केकरा लगतै। कोन मुँह लऽ कऽ समाजमे रहब। ग्‍लानि‍सँ मन बि‍साइन भऽ गेलै। साहस बटोरि‍ रघुनन्‍दन बाजल-
काका, जँए एते दि‍न तँए दू मास आरो। बैसाख-जेठ बचल अछि‍। काल्हि‍ चलू या तँ अपन काज वापस लेब वा हाथ पकड़ि‍ काज कराएब। तइले जे हेतै से देखल जेतै।

रघुनन्‍दनक बात सुनि‍ बरि‍सलाल ठमकि‍ गेल। बाजल-
बौआ, हम तँ तोरेपर छी, आगि‍मे जाइले कहह आकि‍ पानि‍मे तोरासँ बाहर थोड़े हएब।

बरीसलालक वि‍चार सुनि‍ रघुनन्‍दनक मनमे उत्‍साह जगल। दोसर दि‍न दुनू गोटे -बरीसलाल, रघुनन्‍दन- माइनर एगरीगेशनक कार्यालयसँ बोरिंग गाड़ैक सामान नेने आएल। गाड़ैक दि‍न तकबए गेल तँ आगूमे भदबा पड़ैत रहए। जोड़-घटाओ करैत आठ दि‍न पछाति‍ बोर करब शुरू भेल। ि‍सर्फ ठीकेदारे टा आएल बाकी सभ काज गामेक मजदूर करत। ओना बोरि‍ंगक काजमे गामक मजदूर अनाड़ि‍ये छल मुदा अनाड़ि‍यो तँ कते रंगक होइ छै। जते काज तते जीवनी तते अनाड़ी। जखने काजक लूरि‍ भऽ गेल तखने जीवनी, जाधरि‍ नै भेल ताधरि‍ अनाड़ी। ततबे नै एक काजक जीवनी दोसर काजक अनाड़ी सेहो होइत। तँए जीवनी-अनाड़ीक भेद करब कठि‍न अछि‍। ओना काजक भीतरो जीवनी-अनाड़ी होइत। जहि‍ना एकपर सए खड़ा अछि‍। कहैले तँ एक पहि‍ल सीमा भेल आ सए दोसर सीमा मुदा दुनूक बीच अंतर ओते अछि‍ जते एक प्रति‍शत आ सए प्रति‍शत। तहि‍ना काजोक अछि‍। एके काजक भीतर सइयो रंगक काजक अंश होएत। कि‍छु अंशक बादे जीवनी मानल जाए लगैत मुदा जीवनी -लूरि‍गर- होइतो पूर्ण लूरि‍गर नै मानल जाएत। पूर्ण लूरि‍गर तखन मानल जाएत जखन काज समए सीमाक भीतर होइत। ओना काजोक सीमाक ि‍नर्धाणरण व्‍यास पद्धति‍क अनुकूल होएत। जँ से नै होएत तँ कि‍छु एहनो काज केनि‍हार होइत जे समयो-सीमासँ पहि‍नहि‍ कऽ लैत आ कि‍छु एहनो होइत जे काज तँ कऽ लैत मुदा समए सीमा टपि‍ कऽ करैत। तँए कि‍ ओकरा अनाड़ी कहल जेतैक।

मुलाइम माटि‍ रहने सबा साए फीट बोर आठे दि‍नमे भऽ गेल। लेयरो बढ़ि‍याँ। चालीस फीट लेयर। ओना जँ नीक लेयर होइत तँ पनरहो फीटमे पाँच हार्स पावरक इंजन पूर्ण पानि‍ दैत, मुदा लेयरोक तँ ठेकान नै। नीक-अधला संगे होइत। कोनो बालु -सौतबी- एहेन होइत जइमे पानि‍क मात्रा पनरह प्रति‍शतक आस-पास होइत आ कोनो एहेन होइत जइमे अस्‍सी प्रति‍शत धरि‍ पानि‍ रहैत। मुदा बरीसलालक बोरक लेयरक स्‍थि‍ति‍ कि‍छु भि‍न्न छल। नि‍च्‍चाक तीस फीट लेयरमे अस्‍सी प्रति‍शत पानि‍ छल आ ऊपरकामे कम। तँए ठीकेदार बाजल-
बरीसलालबाबू, अहाँक तकदीर नीक अछि‍। कहि‍यो बोरि‍ंग भथन नै हएत। कि‍एक तँ तेहेन नि‍चला बालु अछि‍ जे सभ दि‍न पानि‍ दनदनाइते रहत। तँए नीक हएत जे जहि‍ना भीत घरमे ठेमा-ठेमा रद्दा पड़ैए तहि‍ना कि‍छु दि‍न जे बोर ठेमा जाएत तँ धँसना धसैक संभावना समाप्‍त भऽ जाएत। ओना केसि‍ंग-पाइपसँ बोर कएल अछि‍, पाइप लोड करैमे कोनो दि‍क्कत हेबे ने करत, मुदा अहीं हि‍तमे कहै छी।

ठीकेदारक मुँहसँ तकदीर सुनि‍ बरीसलालक मन उधि‍या गेल। ठीकेदारक अगि‍ला बात नीक नहाँति‍ सुनबो ने केलक। अंति‍म हि‍तक चर्च सुनि‍ बरीसलाल बाजल-
ठीकेदार सहाएब, अहाँ कि‍ कि‍यो बीरान थोड़े छी जे अधला करब। अहाँ तँ सद्य: इन्‍द्र भगवान छी, जेमहर ताकि‍ देबइ तेमहर ताड़ि‍ देबै। जेना-जेना अहाँ कहब तेना-तेना करैले तैयार छी।
ठीकेदार- हमरो गाम गेना बहुत दि‍न भऽ गेल। अखन ऑफि‍सक छुट्टीक काजो ने अछि‍। कि‍एक तँ बोर करैक सीमा जते अछि‍ तइ पूरैमे एकबेर गामसँ घूमि‍ आएब। अहूँक काज नीक हएत आ अपनो काज भऽ जाएत। कहि‍ ठीकेदार गाम चलि‍ गेल।
पनरह दि‍न बीत गेल। जेठ चलए लगल। रोहणि‍ नक्षत्रक आगमन भऽ गेल। संयोगो नीक रहल जे अगते वि‍हरि‍या हाल सेहो भऽ गेल। जहि‍ना भक्‍त भगवानक मि‍लन होइत तहि‍ना बरीसलालक मनमे भेल। अपनो हाथ पानि‍ आबि‍ गेल, ऊपरसँ भगवानो देताह। पानि‍क धनि‍क बनि‍ जाएब। जहि‍ना टि‍कुली अपन पाँखि‍क होश केने बि‍ना हवामे उधि‍आइत ओतए पहुँचए लगल जतए ओकर पाँखि‍ बेकाबू भऽ टुटि‍ जाइत। माि‍टक चुट्टी वा गाछक घोड़नकेँ पाँखि‍ होइते मरैक दि‍न लगि‍चा जाइत, मुदा बूझि‍ नै पबैत तहि‍ना बरीसलालोकेँ हुअए लगल।
रोहणि‍या हाल जहि‍ना धरतीक शक्‍ति‍मे नव उर्जा दैत तहि‍ना बरीसलालोक मनमे आएल। पत्नि‍यो आ दुनू बेटोकेँ शोर पाड़लक। तेल वि‍हीन बच्‍चाक मुँह लाली धरैत अनरनेबा जकाँ हरि‍अरसँ लाल होइत जाइत देखलक। तहि‍ना पत्नि‍योक ओ दि‍न मन पड़लै जइ दि‍न हाथ पकड़ि‍ जि‍नगीक भार उठौने रहए। मुदा, कि‍अए ने लोक भार उठाओत? एकटा नव शब्‍द -word- ताधरि‍ संग पूरैत जा धरि‍ ओकर मथन होइत। नै तँ कअए रहत। बड़ीटा दुनि‍याँ छै कतौ बौरु जाएत। पत्नीक नव रूप देखि‍ बेटाकेँ सम्‍बोधि‍त करैत बरीसलाल बाजल-
बौआ, तोरा सभकेँ जहि‍ना कोरा-काँखमे खेलेलि‍यह तहि‍ना हँसी-खुशीसँ जीबैक ओरि‍यान सेहो कऽ देलि‍यह।
पति‍क बात सुनि‍ पत्नी सुशीलालक मन पहाड़क झरनासँ झड़ैत पनि‍क चमकैत रेत जकाँ चमकए लगलनि‍। बजलीह-
सोझे दीक्षा देने नै हाएत। एक-एक दि‍न, एक-एक क्षणक काजक बात बुझा दि‍औ तखन हएत?”

अखन धरि‍ बरीसलाल कोट-कचहरी करैत बहुत कि‍छु सीख नेने छल। गाम-गामक खेती-पथारी, गाम-गामक माल-जाल पोसब, गाम-गाम फल-फलहरी, तीमन-तरकारीक खेती, माछ पोसब इत्‍यादि‍ सुनि‍ चुकल छल। जहि‍ना मि‍ड्ल स्‍कूलक बच्‍चा हाइ स्‍कूलमे प्रवेश करैत नव-नव पोथी देखि‍ ललाए लगैत तहि‍ना बरीसलालक दुनू बेटाक जि‍ज्ञासा जगल। जि‍ज्ञासा देखि‍ बरीसलाल बाजल-
बौआ, माटि‍मे धन छि‍ड़ि‍आएल छै, बीछि‍नि‍हार चाही।

अखन धरि‍ दुनू भाँइ आमक टि‍कुलासँ लऽ कऽ पाकल आम धरि‍ बीछि‍ चुकल छल तँए बीछैक बात सुनि‍ जेठका बेटा महावीर पुछलक-
केना बि‍छबै बाबू?”
बरीसलाल बेटाक प्रश्न सुनि‍ खुशि‍या गेल। आजुक बेटा जकाँ नै जे नोकरि‍यो करैत आ नोकरो रखैत। जखन अपने काज अछि‍ तखन अपनासँ जे समए बचत सहए ने दोसरकेँ देब। बाजल-
बौआ, अखन तँू सभ भारी काज करै जेकर नै भेलहहेँ। ओना कनी-कनी कऽ हेन्‍डि‍ल मारब सीख लेबह तँ दमकलो चलाएल भइये जेतह। मुदा जँ दस कट्ठामे सालो भरि‍ तरकारीक खेती करबह तँ ओते कोन परदेशि‍या कमाएत। हँ समए बदलने लोक रंग-बि‍रंगक वृति‍यो बदलि‍ लेलकहेँ। जइसँ कि‍छु अनाप-सनाप सेहो भऽ रहल छै। मुदा बुधि‍क संग पूँजी आ पूँजीक संग बुधि‍ नै चलत तँ अनेरे दब-उनाड़ होइत रहत।

जेठक पूर्णिमा दि‍न बोरि‍ंग लोड भेल। लोड होइसँ तीन दि‍न पहि‍ने अपन ऊषा मशीन आबि‍ गेल रहै। बो‍रि‍ंग लोड कऽ ठीकेदार-मजदूर मि‍लि‍ माछक भोज खा, सोलह घंटा पानि‍ चला काज सम्पन्न केलक।

अखाढ़ चढ़ि‍ते मानसून उतड़ि‍ गेल। पहि‍लुके दि‍न एहेन बरखा भेल जे खेत-पथारमे पानि‍ लगि‍ गेल। नीचला खेती बुड़ैक लक्षण धऽ लेलक। तेसरे दि‍न बाढ़ि‍ चल आएल। पोखरि‍-झाखड़ि, चर-चांचर भरि‍ गेल। पानि‍पर पानि‍ आ बाढ़ि‍पर बाढ़ि‍ कते बेर आबि‍ गेल। दहार भऽ गेल। एहेन दहार भेल जे नवान पावनि‍यो लोक बि‍सरि‍ गेल। मुदा काति‍क अबैत-अबैत रब्‍बी-राय छीटब शुरू भेल। गहुमक खोती नै भऽ सकल। अन्नमे गहुमक खेती सभसँ महग खेती होइत। मुदा धान नै भेने कि‍सानक स्‍थि‍ति‍ बि‍गड़ि‍ गेल। एक तँ आेहि‍ना बरीसलालक स्‍थि‍ति‍ दू सालक दौड़-बरहामे वि‍गड़ि‍ गेल तइपर दाही आरो बि‍गाड़ि‍ देलक। सालो भरि‍ बोरि‍ंग-दमकल बैसल रहि‍ गेल।
तरकारी खेतीक ओहन दशा बनि‍ गेल जे बजार नै। कच्‍चा सौदा, नष्‍ट होएत।

देखैत-देखैत सतासीक बाढ़ि‍ आ अट्ठासीक भूमकम आबि‍ गेल। जर-जर बसीसलाल फड़-फड़ करैत फड़फड़ा गेल। तही बीच बैंकक पक्षसँ जमीनक नि‍लामीक नोटि‍श भेटलै।
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